Rajat Sharma

डीजीपी से फिर पूछा जाए कि करौली हिंसा के पीछे किसका हाथ है!

rajat-sirराजस्थान के करौली शहर में हिंदू नववर्ष के मौके पर हिंदुओं ने 2 अप्रैल को एक बाइक रैली निकाली थी। उनका जुलूस आगे बढ़ ही रहा था कि इसी दौरान भीड़ ने पथराव और आगजनी कर दी, और बाद में दंगा होने लगा। करौली शहर को हिलाकर रख देने वाली इस घटना ने अब एक दिलचस्प मोड़ ले लिया है। राजस्थान के DGP एमएल लाठर ने दंगाइयों और स्थानीय कांग्रेस पार्षद मतलूब अहमद को क्लीन चिट देने की कोशिश करते हुए कहा कि यह घटना हिंदू नौजवानों द्वारा भड़काऊ नारे लगाने का नतीजा थी। उन्होंने कहा, ‘उस दिन जो कुछ भी हुआ वह हिंदू संगठनों की वजह से हुआ। उनके भड़काऊ नारे लगाने के बाद हिंसा भड़की।’

डीजीपी लाठर ने यह भी आरोप लगाया कि हिंदू संगठनों ने मुसलमानों के इलाके से गुजरते हुए बगैर इजाजत डीजे बजाया था। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से स्थानीय लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। डीजीपी ने अपने बयान में यह भी कहा कि जो हुआ था वह ‘ऐक्शन का रिऐक्शन’ था।

डीजीपी गलतबयानी कर रहे हैं। पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR में साफ लिखा है कि उसने बाइक रैली की इजाजत देने से पहले रूट की जांच की थी और पुलिस की गाड़ियां बाइक रैली के आगे-आगे चल रही थीं। FIR में लिखा है कि पुलिसवाले शांति के साथ निकल रही बाइक रैली की वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे थे। इस दौरान किसी तरह की भड़काऊ बातें नहीं कही गई थीं, ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लग रहे थे। जुलूस में शामिल कुछ लोग ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगा रहे थे। पुलिस की तरफ से दर्ज FIR में लिखा है कि शाम के 4 बजे करीब 200 बाइक सवारों ने रैली की शुरुआत की थी और आगे-आगे एक पिकअप गाड़ी में डीजे बज रहा था।

शाम करीब 5 बजे के आसपास बाइक रैली हडवाड़ा बाजार में स्थित मस्जिद के पास पहुंची, तो अचानक इलाके के पार्षद मतलूब अहमद के घर की छत से पत्थर चलने लगे। कुछ देर बाद ही आसपास के मकानों से पत्थरबाजी शुरू हो गई। पुलिस की FIR के मुताबिक, इसी दौरान मस्जिद के आसपास के घरों की छतों से भी अंधाधुंध पथराव शुरू हो गया, जिसके बाद रैली में शामिल लोगों में भगदड़ मच गई। जिम सेंटर और आसपास के घरों से 100-150 की संख्या में लोग हाथों में लाठी-डंडे लेकर निकले, और पूरी प्लानिंग के साथ रैली में शामिल लोगों पर जानलेवा हमला किया, उनके साथ मारपीट की।

इससे पता चलता है कि या तो DGP ने अपनी पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR नहीं पढ़ी या वह गलतबयानी कर रहे थे। उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के पार्षद मतलूब अहमद को क्लीन चिट देने की कोशिश की। DGP ने कहा कि मतलूब अहमद को पुलिस ने इलाके में व्यवस्था की बहाली में मदद करने के लिए बुलाया था। अब सवाल यह उठता है कि अगर पुलिस ने मतलूब को शांति बहाल करने में मदद के लिए बुलाया था, तो FIR में उसका नाम आरोपी के तौर पर क्यों लिखा गया है? पुलिस मतलूब को क्यों खोज रही है?

हमारे जयपुर संवाददाता मनीष भट्टाचार्य ने 3 दिन पहले एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें दिखाया गया था कि करौली में मतलूब और उसके आसपास के घरों की छतों पर किस तरह से पत्थर इक्कठा करके रखे गए थे। क्या लोगों को पहले से मालूम था कि हिंदू संगठनों का जुलूस निकलेगा जिसमें वे भड़काऊ नारे लगाएंगे, उसके बाद पत्थरबाजी और आगजनी करनी पड़ेगी?

DGP गुमराह कर रहे हैं। मतलूब दंगाई भीड़ का नेतृत्व कर रहा था और यह शुक्रवार को सामने आए एक वीडियो में साफ नजर आ रहा है। वीडियो में सभी दंगाइयों के चेहरे साफ-साफ दिख रहे हैं और उनको कांग्रेस पार्षद मतलूब अहमद लीड कर रहा था। वह बाकी के दंगाइयों को फोन पर ऑर्डर दे रहा था और उन्हें हिंसा के लिए उकसा रहा था। वीडियो में भीड़ हाथों में लाठियां और हथियार लेकर दुकानों, घरों और गाड़ियों में तोड़फोड़ करती दिखाई दे रही है। FIR में नामजद 4 मुख्य आरोपियों को इस वीडियो में देखा जा सकता है। मतलूब अहमद इन सबको लीड कर रहा था जो पिछले एक हफ्ते से फरार है।

वीडियो में मतलूब का भाई मुश्ताक पुलिस के साथ उलझते हुए आ रहा है। इस दौरान एक अन्य आरोपी फहीम और उसका भाई अंशी भी उसके साथ नजर आ रहा है। 2 अप्रैल को हिंदू संगठनों की बाइक रैली करौली के हाथीघटा से शुरू होकर गुलाब बाग सर्कल, हिंडौन गेट, फूटाकोट होते हुए हडवाड़ा बाजार पहुंची थी। यह शहर का घना इलाका है। पुलिस ने FIR में जो लिखा, वही बात स्थानीय लोग भी कह रहे हैं। वे बता रहे हैं कि मतलूब अहमद के घर से पत्थर चले। मस्जिद की छत से भी पत्थरबाजी हुई। दंगाई तलवारों और लाठियों से लैस थे।

हिंसा में घायल हुए लोगों में शामिल केशवदास शर्मा ने कहा कि उन्हें दुख इस बात का है कि जो मुस्लिम उनके दोस्त थे, जो उनके बचपन के साथी थे, उन्ही लोगों ने हमला किया और उनमें मतलूब भी शामिल था। घटना में 10वीं में पढ़ने वाला अंशु भी घायल हुआ था। बाइक रैली में गए अंशु का एक हाथ बुरी तरह टूट गया है। अंशु ने बताया कि उस पर उन लड़कों ने ही हमला किया, जो उसके साथ स्कूल में पढ़ते हैं। जिस जगह पर पथराव और हिंसा हुई, वहां एक तरफ मस्जिद है और दूसरी तरफ मंदिर को रास्ता जाता है। मंदिर से सटी दुकानें हिंदुओं की हैं, और इस इलाके के दुकानदार अब दहशत में हैं। बीजेपी ने करौली हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की है।

कांग्रेस सरकार ने शुक्रवार को गृह सचिव कैलाश चंद्र मीणा को जांच कर 15 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। इस बीच, विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के उपनेता राजेंद्र राठौर के नेतृत्व में एक 7 सदस्यीय समिति ने 2 दिन करौली के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके एक रिपोर्ट पहले ही तैयार की है। राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पुनिया ने शुक्रवार को दिल्ली में पार्टी नेताओं को यह रिपोर्ट सौंपी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से प्लान किया गया यह दंगा पुलिस की लापरवाही के कारण हुआ। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दंगों से एक दिन पहले 1 अप्रैल को कुछ स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने बाइक रैली रोकने की बात कही थी, और रैली निकालने पर नतीजे भुगतने की धमकी दी थी, लेकिन पुलिस ने कोई एहतियाती कदम नहीं उठाया। बीजेपी की जांच समिति की रिपोर्ट में पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को लिखी गई एक चिट्ठी का भी जिक्र है।

बीजेपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस दिंन दंगा हुआ उस दिन इस इलाके में मुसलमानों के ऑटोरिक्शा, रिक्शा और ठेले सड़कों से नदारद थे, और दुकानें बंद थीं। इससे यह संदेह होता है कि क्या किसी समुदाय विशेष के लोगों को दंगों के बारे में पहले से पता था। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने निष्पक्ष जांच का वादा किया और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने शुक्रवार को करौली शहर का दौरा किया, दंगा पीड़ितों से मुलाकात की और आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार अपने पार्षद मतलूब अहमद को बचाने की कोशिश कर रही है।

मैं डीजीपी लाठर के बयानों से हैरान हूं। ऐसे समय में जब जांच चल रही है, सूबे के पुलिस चीफ नतीजा कैसे बता सकते हैं? वह कैसे कह सकते हैं कि दंगे भड़काऊ नारों की वजह से भड़के? जिस आदमी को पुलिस खोज रही है, उसे पुलिस चीफ बेगुनाह कैसे कह सकता है? डीजीपी ने जो कहा उस पर सवाल बहुत सारे हैं।

अगर हिंसा हिन्दू संगठनों की नारेबाजी से भड़की, माहौल नारेबाजी से खराब हुआ तो PFI ने 2 दिन पहले लिखी चिट्ठी में जुलूस की इजाजत को रद्द करने की मांग क्यों की थी? PFI ने सरकार को पहले ही चिट्ठी लिखकर हिंसा की आशंका कैसे जता दी थी? अगर हिन्दू संगठनों को बाइक रैली में डीजे बजाने की इजाजत नहीं थी, तो फिर जुलूस के साथ चल रहे पुलिस अफसरों ने डीजे लेकर चल रही गाड़ी को रोका क्यों नहीं?

अगर पुलिस ने मतलूब को मदद के लिए बुलाया, तो उसे आरोपी क्यों बना दिया, और वह अचानक अंडरग्राउंड क्यों हो गया? मुझे लगता है कि DGP जैसे बड़े पद पर बैठे अफसर को दंगों पर बयान देते हुए बहुत सोच-समझकर बोलना चाहिए, क्योंकि उनकी बातों का गंभीर असर होता है। समाज में नफरत पैदा करने वाले, माहौल को खराब करने वाले लोगों का मजहब से कोई लेना-देना नहीं होता।

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