Rajat Sharma

My Opinion

महिला कल्याण के मामले में मोदी का अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है

AKB30 लोकसभा ने नारी शक्ति वंदन विधेयक को लगभग सर्वसम्मति से पारित किया. राज्य सभा में भी आज दिन भर बहस के बाद ये बिल लगभग सर्वसम्मति से पास हो जाएगा. मैं राजनीतिक दलों की प्रशंसा करूंगा कि सारे मतभेद भुलाकर उन्होने लगभग सर्वसम्मति से इस बिल को पास किया. लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण तो मिलेगा लेकिन संवैधानिक आवश्यकताओं को देखते हुए ये तभी लागू हो पाएगा जब देश भर में जनगणना पूरी होगी और उसके बाद परिसीमन आयोग आपना काम पूरा करेगा. बिल तो पास हो गया, लेकिन अब इसे मुद्दा बनाकर जातिगत जनगणना और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक की सियासत शुरू हो गई. लोकसभा में सोनिया गांधी, डिंपल यादव, सुप्रिया सुले, कनीमोली जैसे विपक्ष की सभी नेताओं के भाषण की शुरूआत इसी लाइन से हुई कि वो महिला आरक्षण का समर्थन तो करती हैं, लेकिन इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए और ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाय. राहुल गांधी ने भी यही बात की और साथ में जातिगत जनगणना की भी मांग की. सिर्फ एक सांसद असद्दुदीन ओवैसी ऐसे थे जिन्होंने कहा कि वो बिल के खिलाफ खड़े हैं. लोकसभा में कुल 454 मत पक्ष में पड़े और सिर्फ दो वाट विरोध में पड़े. ये दोनों वोट ओवैसी की पार्टी AIMIM के थे. ऐसा नहीं है कि विरोधी दलों के सांसदों ने पूरे मन से, बिना किसी शक शुबहे के, महिलाओं को उनका हक देने वाले विधेयक का समर्थन किया. तमाम तरह के सवाल उठाए गए, राजनीतिक दांव खेले गए, किसी ने सरकार की मंशा पर शक जाहिर किया, पूछा, महिला आरक्षण तुरंत लागू क्यों नहीं हो सकता? सरकार जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराती? किसी ने पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की. किसी ने मुस्लिम महिलाओं को आऱक्षण देने की वकालत की. किसी ने कहा कि ये सिर्फ चुनावी शिगूफा है, होगा कुछ नहीं, लेकिन आखिर में अमित शाह ने सारे सवालों के, सारी आशंकाओं के जवाब दिए और जो सियासी चालें थी, उनको भी बेनकाब कर दिया. लोकसभा में नेताओं के बयान सुनेंगे, तो साफ हो जाएगा कि महिला आरक्षण लागू करना कितना मुश्किल काम था, ये मामला 27 साल से क्यों लटका था. मोदी सरकार ने जो बिल पेश किया है, उसमें कहा गया है कि नारी शक्ति वंदन बिल संसद में पास होने के बाद जनगणना होगी, फिर परिसीमन आयोग बनेगा. वही आयोग तय करेगा कि लोकसभा और विधानसभाओं की कौन-कौन सी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. बिल के इसी प्रावधान को विरोधी दलों के नेताओं ने पकड़ा, सरकार की नीयत पर सवाल उठाए. कहा कि अगर सरकार की मंशा साफ है तो महिलाओं को तुरंत आरक्षण क्यों नहीं देती, इसमें देर करने की क्या जरूरत है. परिसीमन आयोग के नाम पर इस मामले को 2029 तक लटकाने की क्या जरूरत है? बिल पास होते ही महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता? जवाब में अमित शाह ने साफ शब्दों में कहा कि परिसीमन और सीटों का आरक्षण एक संवैधानिक प्रक्रिया है, और सरकार इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती. अमित शाह ने ये लेकिन जरूर कहा कि मोदी सरकार किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होने देगी. विरोधी दल भी अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि कोई भी सरकार होती, महिला आरक्षण बिल को संसद से पास करवाकर तुरंत लागू करना संभव नहीं था. विपक्ष सरकार की मजबूरियां समझता है. संविधान के मुताबिक, परिसीमन 2026 से पहले नहीं हो सकता. संविधान में ये भी कहा गया है कि परिसीमन जनगणना के बाद ही होगा. परिसीमन आयोग ही लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की नई संख्या तय करेगा और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें तय करना भी परिसीमन आयोग की जिम्मेदारी होगी. इसलिए ये सरकार की मजबूरी है कि 2026 से पहले कुछ नहीं कर सकती. अब तक तीन बार सीटों का परिसीमन हुआ है. तीनों बार कांग्रेस की सरकारें थी. इसलिए कांग्रेस के नेता ये बात अच्छी तरह जानते हैं. इसके बाद भी सोनिया गांधी समेत सभी विरोधी दलों के नेता कह रहे हैं कि सरकार की मंशा साफ नहीं है. ये समझने की जरूरत है कि आखिर आज सभी विरोधी दलों के नेता पिछड़े वर्ग की महिलाओं और जातिगत जनगणना की बात क्यों कर रहे हैं. असल में विरोधी दलों को लगता है कि विकास के नाम पर मोदी को हराना मुश्किल है, गरीब कल्याण योजनाओं के मुकाबले में भी वो नहीं ठहरेंगे, मोदी पर भ्रष्टाचार का इल्जाम भी नहीं लगा सकते. हिन्दू-मुसलमान की बात करके भी मोदी को नहीं घेर सकते. तो अब एक ही रास्ता बचता है, जाति का मुद्दा उठाया जाए. विरोधी दलों को लगता है कि वोट बैंक के लिहाज से पिछड़े वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है, इसलिए जातिगत जनगणना की बात करके पिछड़ों को भड़काया जाए. इसीलिए नीतीश कुमार ने बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा उछाला. मोदी विरोधी मोर्चे की सारी पार्टियों को पूरा गणित समझाया, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी’ का नारा दिया. अखिलेश यादव तो पहले ही PDA को जीत का फॉर्मूला बताते हैं. PDA का मतलब है, पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक. अब कांग्रेस को भी ये बात समझ आ गई. इसीलिए राहुल और सोनिया गांधी ने भी जातिगत जनगणना की मांग की. लेकिन ये नरेन्द्र मोदी की चतुराई है कि तमाम विरोध और सवालों के बाद भी उन्होंने सभी विरोधी दलों को महिला आरक्षण बिल का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया .और ये बिल लोकसभा में बिना किसी विरोध के पास हुआ. इस बिल का समर्थन 454 सांसदों ने किया. सिर्फ दो सासदों ने इस बिल का विरोध किया. एक असदुद्दीन ओबैसी और दूसरे उन्हीं की पार्टी के सांसद इम्तियाज जलील. उनका विरोध का कारण था, मुस्लिम महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया गया. ओवैसी ने आरोप लगाया कि महिला आरक्षण बिल सिर्फ सवर्ण जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है. असल में कोई भी पार्टी देश की आधी आबादी को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती. सबने अपना सियासी फायदा देखा लेकिन सबने इल्जाम लगाया कि नरेंद्र मोदी ये कानून राजनीतिक मकसद से लाए हैं. लेकिन अमित शाह ने बताया कि मोदी का महिला कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता कोई आज का नहीं है. अमित शाह ने जो बताया उसे समझने की जरूरत है. मोदी जब बीजेपी के संगठन में थे तो उन्होंने पार्टी से ये प्रस्ताव पास करवाया था कि बीजेपी के पदाधिकारियों में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाय. गुजरात में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे, तो जो भी उपहार उन्हें मिलते थे, उनकी हर साल नीलामी होती थी और नीलामी से आने वाला पैसा गरीब लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च किया जाता. जिस दिन मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ा, उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर जितनी भी सैलरी मिली थी, वो सारी उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए दान कर दी. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के लिए शौचालय बनाने का बड़ा फैसला किया और इसका जिक्र कई बार हुआ है कि कैसे शौचालय बनने से महिलाओं की रोज़ की दिक्कतें कम हुई, उनकी सेहत और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हुई. इसी तरह मोदी ने चूल्हे की आग से होने वाले धुएं पर ध्यान दिया. इस त्रासदी से महिलाओं को बचाने के लिए उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिए. नल से जल योजना भी महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई क्योंकि गांव-देहात में महिलाओं की आधी ज़िंदगी पानी भरने में गुजर जाती थी.मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का कानून बनाया . अगर इस पृष्ठभूमि को देखें तो मोदी पर ये आरोप सही नहीं बैठता कि वह महिलाओं की चिंता सिर्फ चुनाव से पहले करते हैं. ये कहना कि महिला आरक्षण बिल सिर्फ उनके वोटों के लिए लाया गया, कमजोर तर्क है. एक बात मैं फिर कहना चाहता हूं कि कोई भी नेता, कोई भी पार्टी अगर लोक कल्याण के काम करके वोट मांगना चाहती है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. महिला आरक्षण का कानून बनने से महिलाओं को देश की सत्ता में भागीदारी मिलेगी. लोकसभा औऱ विधानसभाओं में उनकी संख्या बढ़ेगी, उनके अधिकार बढेंगे, उनका मान बढ़ेगा. ये एक ऐसा फैसला है जिसका सबको स्वागत करना चाहिए.

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Women welfare : Modi has a good track record

AKB30 I would like to praise all political parties for burying their differences and passing the landmark Women’s Reservation Bill in Lok Sabha almost unanimously. 454 MPs supported and only 2 MPs from AIMIM opposed. As Rajya Sabha took up this bill on Thursday, the path seems to be clear for near unanimity on the bill in both Houses of Parliament. It will then be up to the President to give her assent and it will become law. Reservations of seats for women in Parliament and state assemblies will take place only after the nationwide census and delimitation commission’s work are completed. In course of daylong debate in Lok Sabha, there was politics over giving reservation to women from Other Backward Classes and conducting a nationwide caste census. Sonia Gandhi, Dimple Yadav, Supriya Sule, Kanimozhi, took this line in their speeches. Rahul Gandhi demanded reservation for OBC women and a caste census. Sonia Gandhi, Rahul and other opposition leaders demanded why the government is not implementing women’s reservation immediately. Home Minister Amit Shah pointed out that delimitation of constituencies is a Constitutional process and Centre cannot intervene. He however assured that Modi government would not allow injustice to any section. It’s not that all political leaders gave unstinted support to the bill. Several leaders described this as an election gimmick, but Amit Shah replied to their concerns directly. He pointed out that the issue was hanging fire for the last 27 years and it was Modi’s government which has come forward to make a law. He promised a nationwide census next year, soon after Lok Sabha elections. Based on the census figures, the Delimitation Commission will then start its work. Opposition leaders, particularly those from the Congress, know that women’s reservation cannot be implemented immediately after it becomes law. The delimitation work cannot start before 2026. It is a compulsion for the government due to Constitutional requirements. Congress leader Rahul Gandhi in his brief speech alleged that there were only three OBC secretaries among the 90 secretary level officials working at the Centre. He demanded caste census and alleged that the government is not giving power to other backward classes. Naturally, Rahul’s speech was meant with an eye on forthcoming elections. His aim was to attract the OBC vote banks. Amit Shah questioned Rahul Gandhi’s argument and pointed out that the country is run by the government and parliament, not bureaucrats. He gave figures about the number of BJP MPs, ministers and MLAs who belong to other backward classes. He alleged that the opposition was only shedding crocodile tears for OBCs. One must understand why opposition parties are demanding reservation for OBC women and a caste census. These parties have realized that it is difficult to defeat Modi on the development plank, on the issues of welfare schemes for poor. They cannot level charges of corruption against Modi. They cannot put Modi in a spot on the Hindu-Muslim issue. They have therefore taken up the caste issue. Opposition leaders have realized that OBCs constitute a formidable vote bank among voters across states. This is the reason why the demand for caste census is being made in order to incite backward class voters. It was Bihar chief minister Nitish Kumar who was the first to demand a caste census. The anti-Modi front has realized this caste arithmetic and has given the slogan ‘jiski jitni sankhya bhaari, utni uski bhagidari’ (give participartion as per numbers). Akhilesh Yadav has been harping on the PDA (Pichhda, Dalit, Alpasankhyak – OBC, Dalit, minorities) slogan. Congress has realized this, and it was because of this that Rahul and Sonia Gandhi on Wednesday demanded that a caste census be done. With all such ifs and buts, the bill was passed almost unanimously in Lok Sabha. No political party worth its name can afford to antagonize half the population. All the parties found it politically advantageous to back the bill. Though most of them alleged that Modi has brought the bill because of political objectives, it was left to Amit Shah to explain that Modi’s commitment to women welfare is not a new phenomenon. He disclosed, when Modi was working for the party, he got a resolution passed providing for one-third reservation for women in all office bearer posts. When Modi was chief minister of Gujarat, he used to auction all gifts every year, and spend the money on education of poor girls. The day Modi vacated the chief minister post, he donated his entire accumulated salaries for girls’ education. When he became PM, he launched a nationwide campaign for building toilets for women. This was to ensure security and health hygiene for women in rural areas. Modi then turned his attention to women facing eyesight problems due to smoke from wooden fuel in their kitchens. The Ujjwala LPG scheme was launched and millions of women were given free LPG connections. He launched the Jal Yojana so that women could get drinking water in their homes. Half their lives used to go waste in collecting water in villages. For Muslim women living a life of uncertainty and fear, he enacted the law to ban triple talaq. If one looks at his entire track record, the allegation against Modi that he brought the women’s reservation bill with an eye on elections does not hold water. It seems to be a weak argument. I want to reiterate that if any leader or party seeks votes in the name of public welfare, nobody should object. Women in India will get more share in governance with the passage of this bill. Their numbers in Parliament and state assemblies will increase. This is a historic step which needs to be welcomed.

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अब दुनिया देखेगी कि भारत की नारी देश की तकदीर कैसे बदलती है

AKB30 गणेश चतुर्थी के पवित्र मौके पर देश के नये संसद भवन का श्रीगणेश हुआ और विघ्नहर्ता विनायक ने महिला आरक्षण के रास्ते की सारी बाधाएं भी दूर कर दी. पहले ही दिन महिला आरक्षण बिल पेश किया गया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नीति निर्माताओं में महिलाओं को उनका वाजिब हिस्सा देने का ऐलान किया. मोदी ने कहा कि उनकी सरकार लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की तैंतीस प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करेगी. महिला आरक्षण के लिए जो बिल पेश किया गया है, उसका नाम है, नारी शक्ति वंदन अधिनियम. कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बिल लोकसभा में पेश किया. बुधवार को लोक सबा में दिन भर महिला सांसदों ने बढ चढ़ कर बहस में भाग लिया. अब ये तय है कि ये विधेयक संसद के दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से पारित हो जाएगा. संविधान संशोधन होने के कारण इसे आधे से ज्यादा राज्य विधानसभाओं में पास कराना होगा. उसके बाद गनगणना होगी, और फिर परिसीमन का कार्य होगा, और तभी संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हो पाएंगी. अब महिला आरक्षण का विरोध मुद्दा नहीं है. अब तो राजनीतिक दलों में इस बात की होड़ लगी है कि वो महिलाओं को आरक्षण देने के लिए कितने बेताब हैं. अब सब यही कह रहे हैं कि महिला आरक्षण का तो वो शुरू से समर्थन कर रहे थे. मोदी ने कहा कि ये ईश्वर की इच्छा है, ईश्वर की कृपा है कि लंबे समय से लटके, बड़े बड़े मुद्दों को, बड़े बड़े कामों के लिए भगवान ने उन्हें ही चुना है. अब ये साफ दिख रहा है कि महिला आरक्षण पर अब श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गयी है. सब ये कह रहे हैं कि ये बिल मेरा है. जो बिल पेश किया गया उसमें साफ कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभाओं के साथ साथ केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें रिजर्व की जाएगी. अनुसूचित जाति, जनजाति की जो सीटें आरक्षित हैं, उनमें भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. फिलहाल लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व हो जाएंगी. इस 181 में से 28 सीटें अनुसूचित जाति और 15 सीटें अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित होगी. जब संसद की सीटों का परिसीमन होगा, तो महिलाओं के लिए रिज़र्व सीटों की संख्या और बढ़ जाएगी. पहले आरक्षण 15 साल के लिए लागू होगा. पंद्रह साल बाद इसकी समीक्षा होगी और महिलाओं के लिए रिज़र्व सीटों को रोटेट किया जाएगा. इस समय लोकसभा और विधानसभाओं में महिला सांसदों और विधायकों की संख्या बहुत कम है. लोकसभा में इस समय 543 में से केवल 78 सांसद महिला हैं. ये आंकड़ा भी आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा है, लेकिन महिला आरक्षण लागू होने के बाद ये संख्या कम से कम 181 हो जाएगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 विधायकों में सिर्फ केवल 48 महिलाएं हैं, लेकिन महिला आरक्षण लागू होने के बाद महिलाओं की संख्या कम से कम 132 हो जाएगी. इसी तरह 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में फिलहाल केवल 26 महिलाएं हैं, लेकिन अब ये बढकर कम से कम 80 होगी. पश्चिम बंगाल विधानसभा में 295 विधायकों में सिर्फ 40 महिलाएं है. उनकी संख्या अब बढ कर कम से कम 98 होगी. महाराष्ट्र की 288 सदस्यों वाली विधानसभा में इस समय 23 विधायक महिला हैं. ये बढ़ कर 96 हो जाएगी. मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढ़कर 76 हो जाएगी जबकि अभी सिर्फ 17 महिला विधायक हैं. दिल्ली विधानसभा में कुल 70 में से सिर्फ 8 महिला विधायक हैं. अब 24 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व होंगी. इसमें तो कई शक नहीं है कि आरक्षण लागू होने के बाद देश के फ़ैसलों में महिलाओं की भूमिका अहम होगी, महिलाओं की ताक़त बढ़ेगी, इसीलिए देश की आधी आबादी में इस विधेयक लेकर जबरदस्त उत्साह और जोश है. और यही वजह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है. महिला आरक्षण बिल की आलोचना करने वाले कई तरह की बातें कह रहे हैं. किसी ने कहा कि ये बिल वोटों के लिए लाया गया. महिलाएं मोदी को वोट दें, इसीलिए ये कानून बनाया जा रहा है. मेरा कहना है कि इसमें तकलीफ किस बात की है? क्या राजनीतिक दल चुनाव लड़ने के लिए नहीं बनते? क्या पार्टियां वोट पाने के लिए काम नहीं करती? और अगर कोई अच्छा काम करके, महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर वोट मांगता है, तो इसमें बुरा क्या है? कांग्रेस भी जो दावा कर रही है कि ऐसा बिल पहले वो लेकर आई थी, ममता बनर्जी अगर कहती हैं कि ये उनका आइडिया था, तो ये सब भी तो वोटर का दिल जीतने के लिए कह रहे हैं. कुछ Cynics कहते हैं कि आरक्षण से कुछ नहीं होगा. पंचायतों में भी 50 प्रतिशत आरक्षण हैं. महिलाएं चुनाव जीततीं हैं, लेकिन पति उनके नाम पर पंचायत चलाते हैं. गाड़ी पर लिखते हैं ‘पति सरपंच’, लेकिन ये पुराने जमाने की बातें हैं. अब वक्त बदल गया है. अगर आंकड़े देखें, तो पत्नी के नाम पर पंचायत चलाने वाले मामले अब गिने चुने हैं. ज्यादातर जगहों पर महिलाएं पंचायत चलाती हैं, फैसले लेती हैं और लोकसभा और विधानसभा में जो महिलाएं चुन कर आईं, वहां एक भी ऐसा मामला नहीं मिला, जहां महिलाओं ने स्वतंत्र हो कर अपना काम ना किया हो. ये महिलाएं सशक्तिकरण की मिसाल हैं. एक तर्क ये दिया जा रहा है कि कानून तो बन जाएगा, पर इसे लागू करने में कई साल लग जाएंगे, जनसंख्या की गिनती होगी, फिर सीटों का परिसीमन होगा. तब कहीं जाकर ये कानून लागू हो पाएगा. मेरा कहना ये है कि महिला आरक्षण कानून का इरादा सिर्फ इसीलिए तो नहीं छोड़ा जा सकता कि इसमें वक्त लगेगा. महिलाओं ने 27 साल इंतजार किया है. अब कम से कम ये प्रॉसेस तो शुरू होगा. और मोदी का पिछले साढे़ 9 साल का रिकॉर्ड बताता है कि वो हर काम को जल्दी करने का रास्ता निकाल लेते हैं. मुझे लगता है कि छोटी मोटी बातों के फेर में न पड़कर सबको मानना चाहिए कि आज का दिन नारी शक्ति के लिए ऐतिहासिक है. एक अच्छा कानून बन रहा है. ज्यादा महिलाओं को कानून बनाने वालों में शामिल किया जाए और फिर दुनिया देखेगी कि भारत की नारी, भारत की तकदीर कैसे बदलती है. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां भले ही महिला आरक्षण को लेकर अपने अपने हिसाब से बात कर रही हों, लेकिन देश की महिलाओं को इसकी कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि जैसे ही संसद में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश हुआ, देश भर में महिलाओं ने जश्न मनाया.

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LET THE WORLD SEE, HOW INDIAN WOMEN CAN MAKE AND IMPLEMENT LAWS

AKB30 As Parliament, in a show of unanimity, today, in a daylong debate, discussed the provisions of Constitution 128th Amendment Bill, named as Nari Shakti Vandan Adhiniyam, the writing is clear on the wall. Despite opposition parties’ demand for providing reservation in seats for women belonging to Other Backward Classes, the bill is set to be adopted almost unanimously in Lok Sabha and the same is going to be passed in the Upper House too. The lead was taken by Prime Minister Narendra Modi on Tuesday, when he said. “it seems God has chosen me for the sacred task of empowering women and leveraging their power. I congratulate all mothers, sisters and daughters for this bill, and I assure them that we are committed to ensure that this bill becomes law soon.” Questions have been raised about the probability of this law unlikely to be implemented by next year’s Lok Sabha elections, because reservation of seats can be implemented only after publication of census, followed by a delimitation exercise. The 2021 Census was delayed due to Covid pandemic. The present bill provides for 33 per cent reservation in seats for women belonging to scheduled castes and tribes. The number of women in Lok Sabha will rise to 181 from 82 currently, if the bill is implemented. Since it is a Constitution Amendment Bill, it will have to passed by two-thirds majority in both Houses and will have to be ratified by at least 50 per cent of the states. Out of the 181 reserved seats for women, 28 seats will belong to women for SC and 15 seats will belong to women from ST. Once the delimitation work is over, the number of reserved seats for women may increase. The reservation for women seats will initially be for 15 years, and will be reviewed thereafter. Presently there are only 78 women members in Lok Sabha. In UP assembly, there are only 48 women in a House of 403, which comes to slightly higher than 10 per cent. If the bill becomes law, the number will go up to 132 in UP. In Bihar, there are presently only 26 women MLAs, but if the bill becomes law, the number will jump to 80. In West Bengal assembly, there are presently only 40 women in a house of 295, and if the bill becomes law, it will rise to 98. In Maharashtra, there are presently 23 women in a House of 288, and if the bill becomes law, it will go up to 96. In Madhya Pradesh assembly, there are presently only 17 women in a House of 230, and this number will go up to 76. In Delhi assembly, there are presently only eight women MLAs in a House of 70, and if the bill becomes law, it will go up to 24. There is no doubt that if Nari Shakti Vandan Adhiniyam, is passed and implemented, it will bring a sea change in politics. The role of women in governance will increase, and there will be a corresponding rise in their strength in society. Already, women across India have welcomed this measure by Prime Minister Narendra Modi. Of course, there are leaders in opposition who have said that the bill has been brought by Modi to gain votes from women. My view is: what is the problem? Are political parties not formed to fight elections? Do political parties not work to garner votes? If any party does good work and seeks votes in the name of women empowerment, what’s wrong in this? Congress claims that it brought the bill for the first time, Mamata Banerjee says, it was her original idea. Are they not saying this because they want to win the hearts of women voters? Some cynics say, women’s reservation will not bring any fundamental change. Already there is 50 per cent women’s reservation in panchayats, women are elected as sarpanch, but their husbands run panchayats and sport name plate on their vehicles with ‘Pati Sarpanch’ written. All these are now arguments of the past. Times have now changed. If you go through statistics, there are only a handful of panchayats where husbands run the show in the name of their wives. The ground reality is: in most of the panchayats, women sarpanch run the show. They work for development of their villages. Women have been elected as MPs and MLAs, but there is not a single case in which women legislators have failed to work independently. This is a shining example of women empowerment. One argument that is being given is that, it will take several years for the law to be implemented, given the arduous exercise of conducting a census followed by delimitation. My view is: the core issue of women’s reservation cannot be overlooked only because it may take time to implement. Already, Indian women have waited for 27 years. Now, at least the process will begin. And if one goes through Narendra Modi’s nine-year-long record, I can say, he has this knack of finding a faster way to get things done. I think, instead of wasting time on minor issues, let us all celebrate that today is a historic day for women empowerment in India. A good law is going to be enacted. Let us involve more and more women in making laws. The world will now sit up and take notice, how Indian women can change the nation’s future. Political parties may well take their stand that suits them, but the women of India do not care. This was seen on the streets on Tuesday when women came out and celebrated when the Women’s Reservation Bill was introduced.

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WOMEN’S RESERVATION BILL : A GOOD BEGINNING, A NEW HOUSE

akbHistory was made today when India’s Parliament met in the new building with the introduction of the landmark Women’s Reservation Bill providing 33 per cent reservation for women in Parliament and state assemblies. Today was Day 2 of the special session of Parliament. On Monday, Parliament met for the last time in the old building with Prime Minister Narendra Modi bidding adieu to the old and ushering in the new. Modi said, the old Parliament building will continue to be a source of inspiration for future generations, as it has witnessed 75 years of India’s march towards progress. Modi said, the echoes of Pandit Jawaharlal Nehru’s ‘Tryst with Destiny’ speech made in the hallowed precincts on the midnight of August 14-15, 1947, will continue to inspire all countrymen. He also remembered Indira Gandhi, Lal Bahadur Shastri, P V Narasimha Rao, Atal Bihari Vajpayee and Dr Manmohan Singh, who made their stellar contributions to Indian history. Modi reminded what Vajpayee had said, after losing the no-confidence motion. Atalji had then said, ‘governments may come and go, parties will be made and unmade, but this country should survive.’ Modi also reminded how during Indira Gandhi’s rule, parliament had supported the struggle for liberation of Bangladesh, and had also witnessed the assault on democracy during Emergency in 1975. Modi said, “when I entered Parliament building for the first time as an MP in 2014, I bowed my head on the steps of the temple of democracy. I could have never imagined that a boy belonging to a poor family, living on a railway platform, would one day be able to enter Parliament.” The Prime Minister said, “this chapter of the glorious journey of our Parliament will continue to serve as a reminder of India’s potential as a thriving democracy”. Before the Prime Minister spoke, the House felicitated Modi on the successful hosting of G20 summit of world leaders. The old Parliament building, which housed the Imperial Legislative Council during British rule, will now be converted into a museum of Indian Parliament history. I have full hopes that our members will work with new vigour and positivity in the new Parliament building, and avoid ruckus, quarrels, abuses and pandemonium that used to take place in the old building. Members of all parties should leave behind all wrong precedents in the dustbin of history, and start work on a positive note. This will be their major contribution in ensuring that the new Parliament building reflects and fulfils the aspirations of 1.4 billion Indians. The beginning has been good, with the introduction of the historic Women’s Reservation Bill, that was cleared by Union Cabinet on Monday night and introduced in Parliament on Tuesday.

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नया संसद भवन : महिला आरक्षण बिल के साथ नई शुरुआत

AKBआज एक ऐतिहासिक दिन है. आज़ादी के अमृत काल में हमारी संसद ने नये भवन में अपना कामकाज शुरू कर दिया. शुरुआत हुई, 22 साल से इंतज़ार में लटके महिला आरक्षण बिल के पेश होने के साथ. सुबह पुराने संसद भवन में विदाई समारोह के बाद जब नये संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को संबोधित किया, उसके फौरन बाद लोक सभा में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया. इस नये बिल का नाम है – नारी शक्ति वंदन अधिनियम. इसमें संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखने का प्रावधान है. सोमवार शाम को नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने इस नये बिल पर मुहर लगा दी थी. गणेश चतुर्थी के अवसर पर जब पुराना संसद भवन छोड़कर नवनिर्मित संसद भवन में पहली बैठक हुई, तो सबसे पहले इस विधेयक को पेश किया गया. सोमवार को ही नरेंद्र मोदी ने कह दिया था कि संसद का यह अधिवेशन छोटा भले ही हो, लेकिन इसमें बड़े और ऐतिहासिक निर्णय लिये जाएंगे. सोमवार को अधिवेशन के पहले दिन पुराने संसद भवन में आखिरी बार बैठक हुई, जिसमें प्रधानमंत्री से लेकर तमाम दलों के नेताओं ने 75 साल के संसद के सफर के बारे में अपने उद्गार व्यक्त किये. सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी को जी20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिये दोनों सदनों में बधाई दी गई. इसके बाद मोदी ने अपने भाषण में संसद भवन के 75 साल के सफर का विस्तार से ब्यौरा दिया. मोदी का रुख बिलकुल अलग था. उन्होंने विरोधी दलों पर हमले नहीं किये, बल्कि भारत के पहले राष्ट्रपति से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का ज़िक्र किया. इसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के 15 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक भाषण से शुरू कर लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरसिम्हा राव, और डॉ. मनमोहन सिंह का भारतीय इतिहास में योगदान का उल्लेख किया. पीएम मोदी ने सभी प्रधानमंत्रियों के कामों को याद किया, देश के विकास में सभी के योगदान की तारीफ की, कहा कि 75 साल के इतिहास में इस संसद भवन में बहुत अच्छे फैसले हुए, कुछ गलत फैसले भी हुए, हंसी खुशी के पल भी देखे, कुछ कड़वे पल भी देखे, लेकिन तमाम विघ्न बाधाओं को पार करके देश हमेशा आगे बढ़ता रहा. मोदी के बाद तमाम दलों के नेता बोले. एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को याद किया. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी भी बोले. कहा, कि आज इस संसद भवन के आख़िरी दिन, संसद की नाकामियों की भी चर्चा होनी चाहिए. संसद में आबादी के अनुपात में मुस्लिम सांसद नहीं आ रहे हैं, ये लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने नए संसद भवन को लेकर कहा कि पिच बदलने से नहीं, गेम बदलने से बदलाव आएगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बड़ी बात कही. मोदी ने वो दिन याद किया जब वो पहली बार संसद में पहुंचे थे. मोदी ने कहा कि जब वो पहली बार सांसद बनकर इस इमारत में दाखिल हुए, तो श्रद्धा से उनका सिर ख़ुद ब ख़ुद झुक गया. मोदी ने कहा कि ये लोकतंत्र की ताक़त ही है कि प्लेटफॉर्म पर गुजर बसर करने वाला गरीब का बेटा पार्लियामेंट तक पहुंचा और देश का प्रधानमंत्री बना. संसद के पुराने भवन में कामकाज बंद होगा लेकिन भवन में 75 साल का इतिहास, नेताओं के भाषण और संसद की कार्यवाही सुरक्षित रहेंगी. पुराना संसद भवन देश के संसदीय इतिहास का एक संग्राहलय बनेगा. मुझे लगता है कि सांसदों को नये संसद भवन में नए तेवरों के साथ जाना चाहिए. पुराने संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान जो हल्ला, हंगामा, झगड़ा -झंझट होता था, वो नये भवन में नहीं होना चाहिए. सभी दलों के सासंद को गलत परंपराओं को पुराने संसद भवन में ही छोड़ देना चाहिए. नये संसद भवन में नई और सकारात्मक सोच के साथ जाना चाहिए, नई शुरुआत करनी चाहिए, जिससे नया संसद भवन देश की जनता की आशाओं और आकाक्षाओं को पूरा करने का ज़रिया बन सके.

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आप की अदालत में जयशंकर ने खोले कई राज़

AKB30 विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहली बार साफ साफ कहा है कि न तो चीन ने हमारी एक इंच जमीन पर कब्जा किया, न हम चीन की सीमा में घुसे. भारत चीन सीमा को लेकर जयशंकर ने कहा कि LAC पर जमीनी हालात बदल गए हैं. फर्क ये आया है कि पहले दोनों देशों के सैनिक अपनी अपनी चौकियों में रहते थे लेकिन अब हमारे हथियारों से लैस 70 हजार सैनिक चीनी फौज के बिल्कुल सामने खड़े हैं. जयशंकर ने कहा कि जहां तक हमारी हजारों मील जमीन पर चीन के कब्जे का सवाल है तो 1962 में चीन ने हमारी 38 हजार किलोमीटर जमीन कब्जा कर ली थी. उसके बाद और खास कर पिछले दस सालों में चीन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाया है. जयशंकर ने पहली बार चीन के sensitive मुद्दे पर इतना खुलकर बात की. हर सवाल का बेबाकी से जबाव दिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर आप की अदालत में इस बार मेरे मेहमान हैं. उनसे मैंने चीन को लेकर वो सारे सवाल पूछे जो लोगों के मन में है. क्या चीन भारत की सीमा के अंदर घुस आया है…क्या चीन ने हमारी हजारों किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है? अगर चीन अंदर नहीं घुसा तो मिलिट्री लेवल पर 19 बार बात किसलिए हुई? क्या चीन ने सरहद के किनारे गांव बसा दिए हैं? क्या चीन की फौज के आगे हमारी तैयारी कम है? क्या सरहद पर चीन ने सड़कें, पुल और टनल बनाए हैं और हमने कुछ नहीं बनाया? ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनके जवाब अभी तक साफ साफ नहीं मिले थे. इसके अलावा चीन को लेकर राजनीतिक सवाल भी हैं. शी जिनपिंग से नरेंद्र मोदी 18 बार मिले लेकिन उनसे रिश्ते क्यों नहीं बना पाए? क्या नरेंद्र मोदी चीन से डरते हैं ? मैंने विदेश मंत्री से ये सारे सवाल पूछे. पहली बार सरकार की तरफ से किसी मंत्री ने चीन को लेकर हर सवाल का जवाब दिया, सारी आशंकाओं को दूर किया. जयशंकर ने कहा कि भारत इस वक्त दुनिया का अकेला देश है जो चीन से आंख में आंख डालकर बात कर रहा है. भारत एकमात्र देश है जिसकी फौज चीन की सेना के सामने सीना तानकर खड़ी है. राहुल गांधी ने थोडे़ दिनों पहले लद्दाख में आरोप लगाया था कि चीन ने हमारी हजारों किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है. मैंने एस. जयशंकर से राहुल गांधी के इस इल्जाम पर सफाई मांगी. चीन पर हर सवाल का बेबाक जवाब आपको देखने को मिलेगा ‘आप की अदालत’ में शनिवार रात 10 बजे मैंने एस जयशंकर से G20 समिट को लेकर भी बात की. G 20 से देश के लोगों को क्या मिला ? .ज्वॉइंट डिक्लेरेशन पर सहमति कैसे बनी? ट्रंप के दोस्त माने जाने वाले मोदी ने जो बायडेन से इतने गहरे रिश्ते कैसे बनाए? सऊदी अरब के प्रिंस सलमान मोदी के मुरीद क्यों हो गए? जयशंकर ने ऐसे कई राज़ खोले. अगर आप मोदी की विदेश नीति को समझना चाहते हैं, अमेरिका और रूस से भारत के रिश्तों को समझना चाहते हैं, तो ‘आप की अदालत’ में आपको हर सवाल का जवाब मिलेगा.

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JAISHANKAR’S REVELATIONS IN ‘AAP KI ADALAT’

AKB30 External Affairs Minister Dr. S. Jaishankar was my guest this week in ‘Aap Ki Adalat’. This show will be telecast on India TV on Saturday night. For the first time, Dr Jaishankar spoke in detail about how China transgressed Line of Actual Control and made heavy army deployment when there was a lockdown in India because of Covid in April-June, 2020. He disclosed how Prime Minister Narendra Modi decided to make mirror deployment of our army, and ordered airlifting of nearly 70,000 jawans to the Ladakh front. Dr Jaishankar said, the situation on LAC has now completely changed. Our soldiers stand in eyeball-to-eyeball against Chinese PLA soldiers. He rubbished Rahul Gandhi’s charge about China occupying several thousand sq km of area in Ladakh, and pointed out that India lost 38,000 sq km territory to China between 1959 and 1962. Dr Jaishankar did not hide or obfuscate facts. He spoke out clearly and precisely and did not try to dodge questions. He explained why army commanders from both sides met 19 times in Ladakh, and why PM Modi’s 18 one-to-one meetings with Chinese President Xi Jinping did not work out. Jaishankar said, India is now the only country in the world which stands eye-to-eye against China on the border. China is no doubt a sensitive subject and what Dr Jaishankar said will give you a clear insight to the happenings on the ground. He said there appears to be “a plan, an order” behind Chinese transgressions on LAC. Dr Jaishankar also spoke about how Prime Minister Modi, in a last-minute effort met two or three important leaders at the G20 summit and persuaded them to adopt the Delhi Declaration unanimously. You will also get insight about different facets of Modi’s foreign policy vis-a-vis America, China, Saudi Arabia and Pakistan. Do remember to tune in to India TV on Saturday night at 10.

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मोदी, विपक्ष और सनातन

AKB30 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार सनातन पर हो रहे विरोधी दलों के हमलों पर खुलकर बात की. मोदी ने साफ कहा कि विरोधी दलों ने एक गठबंधन बनाया है, इस गठबंधन का एक ही लक्ष्य है, एक ही मकसद है – सनातन को खंड खंड करना, सनातन को खत्म करना, भारतवर्ष की हजारों सालों की सनातन परंपराओं को छिन्न भिन्न करना. मोदी ने कहा कि ये वक्त की मांग है कि संगठन की ताकत से सनातन को बचाना है. मोदी मध्य प्रदेश के बीना में पचास हजार करोड़ रु. की योजनाओं का उदघाटन और शिलान्यास करने का बाद औक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे. मोदी ने बात शुरू की, विरोधी दलों के गठबंधन से. कहा, कि विरोधी दलों का जो गठबंधन बना है, उसके नेताओं ने मुंबई में हुई मीटिंग में यही तय किया है, यही लक्ष्य रखा है कि सनातन पर हमले करो, सनातन को बदनाम करो, सनातन को खंडित करो, सनातन को खत्म करो. सनातन को खत्म करने की बात DMK के नेता, तमिलनाडु सरकार में मंत्री, मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने शुरू की थी. कहा था कि सनातन के विरोध से काम नहीं होगा, सनातन को जड़ से खत्म ही करना पड़ेगा, सनातन का समूल नाश जरूरी है. मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे ने उदयनिधि का समर्थन किया, फिर ए. राजा ने उदयनिधि की बात को आगे बढ़ाया. उसके बाद तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी ने सनातन पर हमला किया, लेकिन इंडिया एलायन्स में शामिल किसी पार्टी ने कड़े शब्दों में न तो सनातन पर हमलों का विरोध किया, न DMK के नेताओं को मुंह बंद रखने को कहा. दो हफ्ते से लगातार सनातन पर हमले हो रहे हैं. दो हफ्ते से मोदी सब सुन रहे थे और गुरुवार को उन्होंने सबको आईना दिखा दिया. मोदी ने कहा कि सनातन को अहिल्या बाई होल्कर, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे महापुरूषों ने शक्ति का श्रोत माना, समाज में फैली बुराइयों को दूर करने का साधन बनाया था. मोदी ने कहा कि जो सनातन स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के लिए आजादी की लड़ाई में संबल बना, इंडिया एलायन्स के नेता सनातन का समूल नाश करना चाहते हैं, ये सहन नहीं किया जाएगा, इसका प्रतिकार होगा, इसका जवाब दिया जाएगा. हालांकि इससे पहले, सनातन पर DMK के नेताओं के हमलों पर बीजेपी के नेताओं ने जोरदार जवाब दिए हैं. इसका असर ये हुआ कि DMK और विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल दूसरी पार्टियों ने ये कहना शुरू कर दिया कि वो सनातन के खिलाफ नहीं हैं, वो सनातन में पैदा हुई बुराइयों को दूर करने की बात कह रहे हैं, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ बोल रहे हैं, वो दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के साथ अन्याय की बात कर रहे हैं. मोदी ने जवाब में महर्षि वाल्मीकि, माता शबरी और संत रविदास का उदाहरण देते हुए कहा कि आदिकाल से अब तक ये सारे महापुरूष सनातन के संवाहक थे, सनातन परंपरा को आगे बढ़ाने वाले थे लेकिन विरोधी दल अब सनातन को खत्म करने की बात कह रहे हैं, ये सहन नहीं किया जाना चाहिए.मोदी ने कहा कि देश के करोड़ों लोगों को एकजुट होकर इस मुद्दे पर विरोधी दलों को सबक सिखाना होगा, संगठन की ताकत से सनातन की रक्षा करनी होगी. माता शबरी आदिवासी थीं, लेकिन प्रभु राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाए थे. महर्षि बाल्मीकि दलित थे, प्रभु राम के अनन्य भक्त थे, उन्होंने रामायण की रचना की. संत रविदास भी दलित थे, इन सब महान संतों की आज भी पूजा होती है. मोदी ने इन सबका नाम इसलिए लिया क्योंकि विरोधी दलों के नेता DMK के नेताओं के बयानों का ये कहकर बचाव कर रहे हैं कि DMK सनातन के नहीं, ब्राह्मणवाद के खिलाफ है, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ है, लेकिन मोदी ने सबको जवाब दे दिया. ये भी साफ कर दिया कि सनातन पर हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. विरोधी दलों के नेता भी समझ गए हैं, अब बीजेपी पूरे देश में इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी और वो इस पिच पर बीजेपी की धारदार बॉलिंग को झेल नहीं पाएंगे. इसीलिए मोदी के कड़े रुख का असर तुरंत दिखाई दिया. जो प्रियांक खरगे दो दिन पहले तक कह रहे थे कि जिस धर्म में जहां इंसानों में भेदभाव हो, उसे खत्म हो जाना चाहिए, वही गुरुवार को ये कहते सुनाई दिए कि सनातन को बचाने के लिए किसी प्रधानमंत्री या मंत्री की ज़रूरत नहीं है. सनातन ख़ुद अपनी रक्षा करने में सक्षम है, सनातन हजारों साल से चला आ रहा है. ये न कभी खत्म हुआ, न होगा. प्रियांक खरगे ने कहा कि मोदी को सनातन की चिंता करने की बजाए मंहगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता अरविन्द सावंत ने कहा कि अगर किसी पार्टी के एक-दो नेताओं ने कुछ गलत कह दिया तो उसे इतना बड़ा मुद्दा बनाना, पूरे देश में उसको लेकर माहौल खराब करना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी सनातन के बारे में DMK के नेताओं के बयानों का विरोध करती है लेकिन मोदी और बीजेपी को भी सनातन धर्म पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि हिंदू धर्म और सनातन परंपरा को सबसे ज़्यादा नुक़सान मोदी और बीजेपी ने ही पहुंचाया है.
अब एक बात तो साफ दिख रही है कि कल तक विरोधी दलों के नेता सनातन पर हमले कर रहे थे, उन्हें समझ आ गया कि सनातन धर्म पर प्रहार करने से नुकसान होगा लेकिन ये समझ आया थोड़ी देर से. गुरुवार को मोदी ने जब जवाबी हमला किया, तो इंडिया अलायन्स की सारी पार्टियां इधर उधर की बातें करने लगीं. हालांकि विरोधी दलों की मजबूरी है कि मोदी को हराने के लिए उनका एक होना जरूरी है, DMK गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. उसे नाराज नहीं कर सकते इसलिए बुधवार को एक बीच का रास्ता निकाला गया था. विरोधी दलों के गठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी की मीटिंग के बाद बताया गया कि सनातन के विरोध के मुद्दे पर DMK से सफाई मांगी गई. DMK के टी.आर. बालू ने मीटिंग में बताया कि मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने अपनी पार्टी के सभी नेताओं को हिदायत दे दी है कि अब सनातन के बारे में कोई उल्टी सीधी बात नहीं करेगा. इसके बाद विरोधी दलों के गठबंधन की सभी पार्टियों ने मान लिया कि अब ये मुद्दा खत्म हो गया. हालांकि इसके बारे में न तो एम. के. स्टालिन का कोई बयान आया, न कोई प्रेस नोट आया जिससे ये पता लगे कि वाकई में एम. के. स्टालिन ने अपनी पार्टी के नेताओं को सनातन के खिलाफ बोलने से रोका है. लेकिन मीटिंग के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता गुरदीप सप्पल ने कह दिया कि अब सनातन का मुद्दा खत्म, हालांकि आज ही सप्पल की बात गलत साबित हो गई. DMK के नेता डिंडीगुल लियोनी ने फिर सनातन पर सवाल खड़े किए. उन्होंने भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाया, कहा कौन कहता है कि अयोध्या में राम का जन्म हुआ था. लियोनी ने कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराकर अब राम मंदिर बनाया जा रहा है, ये सनातन को मानने वाली ताकतों का सबसे बड़ा धोखा है. हैरानी की बात ये है महाराष्ट्र NCP के नेता जितेन्द्र अव्हाड ने भी कहा, कि वो हिन्दू थे, हिन्दू हैं और हिन्दू ही मरेंगे, लेकिन वो सनातनी नहीं हैं. जितेन्द्र अव्हाड ने कहा कि कौन कहता है कि भगवान राम सनातनी थे. जितेंद्र अव्हाड़ जैसे लोगों को, भगवान राम पर सवाल उठाने वालों को योगी आदित्यनाथ ने जवाब दिया. योगी ने बताया कि प्रभु राम सनातनियों के लिए क्या हैं, कृष्ण का सनातन परंपरा में कैसा स्थान हैं और सनातन में कितनी शक्ति है. ये बात तो बच्चा बच्चा जानता है कि कांग्रेस ने कोर्ट में भगवान राम को काल्पनिक बताया था, किस्से कहानियों का पात्र बताया था. बाद में कांग्रेस का जो नुकसान हुआ, वो सब ने देखा, इसलिए अब कांग्रेस के नेता हिन्दुत्व की लाइन पर आने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे लेकिन लगता है मोदी विरोध के चक्कर में, मोदी को हराने के लिए.. सभी विरोधियों को एक साथ लाने के चक्कर में अब विरोधी दलों के नेता डिरेल हो गए हैं, कन्फ्यूज़. हो गए हैं. राहुल गांधी कहते हैं कि वो सनातनी हैं, हिन्दू कोई धर्म नहीं है, हिन्दुत्व नाम की कोई चीज नहीं है और जितेन्द्र अव्हाड कह रहे हैं कि वो हिन्दू हैं, हिन्दुत्व को मानते हैं. DMK के नेता कह रहे हैं कि सनातन का समूल नाश कर देंगे और अब विरोधी दलों को नेता ये कहने पर मजबूर हैं कि सनातन अजर, अमर है, कोई इसे खत्म नहीं कर सकता. इसीलिए मैंने कहा कि उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को गाली देकर मोदी के हाथ में एक हथियार दे दिया है. अब मोदी और योगी के जवाबी वार ने इंडिया alliance के नेताओं को बैकफुट पर पहुंचा दिया. ‘ राम चरित मानस’ में लिखा है -” जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही”, राष्ट्रकवि दिनकर ने ‘रश्मिरथी’ में भी लिखा है – ” जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है”. लगता है कि DMK के नेताओं के साथ यही हो रहा है. उन के साथ alliance पार्टनर्स भी मुसीबत में हैं पर DMK का कहना है ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले कर डूबेंगे’.

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Modi, INDIA alliance and Sanatana Dharma

AKB30 In a hard-hitting attack on the INDIA opposition bloc on Thursday, Prime Minister Narendra Modi alleged that the only aim of the alliance was to divide and destroy the several thousand years old Sanatan Dharma. Addressing a public meeting in Bina, Madhya Pradesh, after inaugurating plus laying the foundation of Rs 50,000 crore worth projects, including a petrochemical complex, Modi described INDIA alliance as a ‘ghamandia’ (arrogant) alliance. He said, this alliance has no leader, no policies, nor any issues. It has a hidden agenda, to destroy our ancient Sanatan culture. He said, it’s the call of time to save our Sanatan culture by mobilizing ourselves otherwise, he cautioned, that India could go back to its 1000-years-old past of slavery under foreign rulers. He alleged that opposition leaders, who met in Mumbai recently, have ” only one aim – to attack, defame, divide and destroy our Sanatan culture.” Modi’s attack was triggered by recent remarks made against Sanatan Dharma by DMK ministers, including Chief Minister M K Stalin’s son Udhayanidhi. These remarks have not been strongly criticized by other INDIA alliance parties. Nor did any of the top opposition leaders asked DMK ministers to keep their mouth shut. These attacks on Sanatan Dharma have been made during the last two weeks. Modi was keeping note of all these remarks, and, on Thursday, he hit out. Modi described how social leaders from Ahilyabai Holkar, to Swami Vivekananda and Mahatma Gandhi considered Sanatana Dharma as the fountain source of their movements against social evils and foreign rule. “We will not tolerate those who are out to uproot Sanatan Dharma. There will be resistance and response”, he said. DMK and other INDIA alliance leaders have been explaining that their fight was against social evils prevalent in Sanatana Dharma, and against casteism and caste based exploitation of Dalits and Adivasis. Modi replied to their remarks by mentioning how Maharshi Valmiki, Mata Shabri and Sant Ravidas fought against social evils. Mata Shabri was a tribal living in forest, and it was Lord Ram who went to her hut and ate the leftover fruit. Modi said, Maharshi Valmiki who wrote the epic Ramayana was a Dalit and an ardent devotee of Lord Ram. Sant Ravidas was a Dalit saint and he is worshipped in temples. Reacting to Modi’s remarks, opposition leaders softened their stand. Congress President Mallikarjun Kharge’s MLA son Priyank Kharge said, Sanatan Dharma does not need a Prime Minister to protect itself, it can protect the faith on its own. Shiv Sena(UBT) leader Arvind Sawant said, it does not behove the Prime Minister to make a big issue about some remarks made by one or two leaders of a party and spoil the atmosphere. Aam Aadmi Party leader Sanjay Singh said, his party opposes the remarks of DMK leaders, but in the same vein, he said, Modi and BJP have no right to speak about Sanatan Dharma, because they have caused harm to the religion. I think, opposition leaders have realized that it will be politically harmful if Sanatan Dharma is made a target, but they took time in realizing their mistake. After Modi’s counter-attack, INDIA alliance leaders have now started to obfuscate issues. It’s a political compulsion for all INDIA alliance parties to remain united, and DMK is the second biggest party in the alliance. They cannot afford to alienate DMK. At the INDIA coordination committee meet on Wednesday in Delhi, a way out was found. The alliance parties sought clarification from DMK leader T R Balu, who was present. Balu told them that Chief Minister M K Stalin has directed all his party leaders not to make any controversial remark about Sanatan Dharma in public. The other alliance parties accepted Balu’s version and the matter was kept at rest. But M K Stalin is yet to issue a formal press statement on this issue. On Thursday itself, another DMK leader Dindigul Leoni questioned the existence of Lord Rama. Leoni asked, “who says Lord Rama was born in Ayodhya? A Ram temple is being built after destroying Babri mosque. This is a big deception on part of pro-Sanatan forces.” In Maharashtra, NCP leader Jitendra Ahwad said, “I was a Hindu, I am a Hindu and I will die a Hindu. But I am not a Sanatani. Who says, Lord Ram was Sanatani?” UP chief minister Yogi Adityanath hit back saying, “it is unfortunate that even today many people living in Bharat are insulting Sanatan Dharma. They are attacking Indian values, ideals and principles. Sanatan is the Rashtra Dharma (national religion) of India. Even the demon king Ravana tried to question the existence of God, and what was the result? Ravana was destroyed by his own ego.” Even a child in India knows that during UPA rule, the Congress had told the Supreme Court that Lord Rama is a mythical character in stories. The Congress had to face severe electoral reverses. Congress leaders in MP, Chhattisgarh and Rajasthan are now trying their best to tow the Hindutva line. But in their zest to defeat Modi, most of the opposition leaders have now been derailed. They are confused. Rahul Gandhi says, he is a Sanatani, Hinduism is not any religion, nor is there anything called Hindutva. On the other hand, Jitendra Ahwad is saying he is a Hindu, but not a Sanatani. DMK leaders are saying they want to “uproot Sanatan Dharma”. And now, opposition leaders are openly saying that Sanatan Dharma is perennial and immortal. Nobody can finish it off. In this context, I had earlier said that Udhayanidhi Stalin, by abusing Sanatana, has given a weapon in the hands of Narendra Modi. Both Modi and Yogi, in their strong counter-attacks, have brought the opposition on the defensive. The great poet and saint Tulsidas wrote in Ramcharitamanas: जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही.. (When the time comes for God to pile up woes on anybody, He first takes away the person’s intelligence). The noted Hindi poet Ramdhari Singh Dinkar wrote in ‘Rashmi Rathi’, जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है, (Whom the god wish to destroy, He first makes him mad). But DMK leaders appear to be reciting that Urdu couplet, हम तो डूबेंगे सनम, पर तुम्हें ले कर डूबेंगे… (I will sink, and I’ll also make you sink with me).

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बिहार में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा

AKB30 बिहार में सरकारी स्कूलों की बदहाली अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है. इन छात्र-छात्राओं का दर्द, उनका गुस्सा, उनकी पीड़ा, उनकी तड़प देखकर आप चौंक जाएंगे. बिहार के स्कूलों में बेहोश होकर गिरतीं छात्राओं को देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. स्कूलों का हाल इतना बुरा है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते. जहां स्कूल है, वहां क्लासरूम नहीं है. अगर कहीं क्लासरूम है, तो वहां शिक्षक नहीं है. क्या आप सोच सकते हैं कि एक-एक क्लास रूम में 200 बच्चों को भर दिया जाए? गणित, विज्ञान, गृह विज्ञान, इतिहास, भूगोल, हिन्दी, उर्दू, सारे विषयों के छात्र एक ही क्लासरूम में एक साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं और स्कूल में एकमात्र शिक्षक सिर्फ जीवविज्ञान का है. क्या आप यकीन करेंगे कि किसी स्कूल में बच्चों को आने से सिर्फ इसलिए रोक दिया जाए क्योंकि स्कूल में जगह नहीं हैं? और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात कि स्कूल में शिक्षक नहीं है, क्लासरूम में जगह नहीं है, बच्चों को स्कूल आने से रोक जा रहा है, लेकिन सबको इम्तिहान देना लाज़िमी है. और फरमान ये कि इम्तहान का एडमिट कार्ड तभी मिलेगा जब स्कूल में उपस्थिति 75 प्रतिशत से ज्यादा हो. इससे बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है? ये जानकर आप का खून खौल उठेगा कि क्लासरूम में ज्यादा संख्या के कारण रोज़ आठ- दस लड़कियां बेहोश होकर अस्पताल पहुंचतीं हैं. अगर बिहार के सरकारी स्कूलों की ये बेहाली, ये बेबसी हमारी तहक़ीक़ात में सामने आई. बात सिर्फ एक दो जिले की नहीं है, वैशाली, जहानाबाद, गोपालगंज, हाजीपुर और औरंगाबाद जैसे कई जिलों में हमारे संवाददाता सरकारी स्कूलों में गए और जो कड़वा सच सामने आया, वो रोंगटे खड़े करने वाला है. आप बिहार की बेटियों की बात सुनेंगे तो आपको गुस्सा भी आएगा और दुख भी होगा. विडंबना ये है कि बिहार के स्कूलों की हालत की सच्चाई एक सरकारी आदेश के कारण ही सामने आई. बिहार के शिक्षा विभाग के अवर प्रमुख सचिव के. के. पाठक ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य होगी. जिन बच्चों की अटेंडेंस 75 परसेंट से कम होगी, उन्हें इम्तेहान में बैठने की अनुमति नहीं मिलेगी, वे अनुत्तीर्ण माने जाएंगे. वैशाली जिले में मंगलवार को सरकारी गाड़ी पर छात्राओं ने पत्थर बरसाये. ये लड़कियां वैशाली के महनार इलाके के सरकारी गर्ल्स स्कूल की छात्राएं हैं. स्कूल की लड़कियों ने वैशाली में रोड जाम कर दिया. उनका कहना था कि स्कूल में बैठने की जगह नहीं हैं, पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं. एक ही क्लासरूम में कई कक्षाओं की लड़कियों को एक साथ बैठा दिया जाता है. उमस और गर्मी के कारण लड़कियां बेहोश हो रही है, अस्पताल पहुंच रही है. स्कूल में पानी नहीं है, टॉयलेट नहीं हैं लेकिन लड़कियों की परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है. परेशान होकर ये लडकियां अपने स्कूल बैग के साथ सड़क पर बैठ गई, ट्रैफिक जाम कर दिया, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगी. खबर फैली तो वैशाली की प्रखंड शिक्षा अधिकारी वहां पहुंची. उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया, लड़कियों को चुपचाप स्कूल जाने या घर जाने को कहा गया. जब इससे बात नहीं बनी तो सरकारी और पुलिसिया रौब दिखाया गया, लेकिन ये बेटियां डरी नहीं. उन्होंने शिक्षा अधिकारी से कह दिया कि वो अपना हक़ मांग रही है. स्कूल में सुविधाएं माग रही है, ये कौन सा गुनाह है? वो खामोश नहीं रहेंगी. जब प्रखंड शिक्षा अधिकारी अहिल्या कुमारी ने लड़कियों से सख्ती से बात की तो लड़कियों का सब्र जवाब दे गया. उन्होंने अफसर साहिबा का गाडी पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. जब हंगामा बढ़ा तो शिक्षा विभाग के दूसरे अफसर भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस भी पहुंच गई. सबने मिलकर लड़कियों को समझाया, बताया कि उनके प्रोटेस्ट से वो कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगी. उनके अभिभावकों को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे, इसलिए वो प्रोटेस्ट खत्म करें, घर जाएं. कुछ देर में एसडीओ भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लड़कियों को समझाने की तमाम कोशिश की. इसके बाद लड़कियों ने प्रदर्शन खत्म कर दिया. छात्राओं का गुस्सा इस बात पर था कि जब स्कूल में बैठ कर पढने की कोई सुविधा ही नहीं है तो छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति क्यों अनिवार्य कर दी गयी? जो छात्र स्कूल नहीं जाते थे, वो कोचिंग में पढ़कर सिर्फ परीक्षा देने स्कूल जाते थे. वे बच्चे भी स्कूल पहुंचने लगे और स्कूल में इतने बच्चों को न तो बैठाने की जगह थी, न क्लासरूम्स थे, न शिक्षक थे. हालत ये हो गई कि गर्मी से परेशान लड़कियां स्कूल में बेहोश होकर गिरने लगीं. इसके बाद ये लड़कियां स्कूल से बाहर निकल कर सड़क पर आ गईं, प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगीं और रोड जाम कर दिया. लड़कियों ने इल्जाम लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शन से नाराज होकर उनकी पिटाई की. स्कूल की लड़कियों के इतने उग्र प्रदर्शन के बाद बिहार के स्कूलों की हालत पर चर्चा शुरू हो गई, लेकिन सवाल ये उठा कि लड़कियों ने सिर्फ प्रोटेस्ट किया. क्या वाकई में स्कूल की हालत ऐसी है कि लड़कियों को पथराव करना पड़ा? इसकी हकीकत जानने के लिए मैंने अपने संवाददाता नीतीश चन्द्र को वैशाली के महनार इलाके के उसी स्कूल में भेजा जहां की छात्राओं ने प्रोटेस्ट किया था. जिस वक्त हमारे संवाददाता इस स्कूल में पहुंचे, उस वक्त भी कई लड़कियां चक्कर खाकर गिरीं. स्कूल के शिक्षक उन्हें इलैक्ट्राल पिलाने की कोशिश कर रहे थे. स्कूल में अफरातफरी का माहौल था. जिस क्लास में पचास लड़कियों के बैठने का इंतजाम था, उस क्लास में दो सौ से ज्यादा लड़कियां बैठी थी.. जिस डेस्क पर तीन लड़कियों के बैठने की जगह होती है., उसमें छह से सात लड़कियों को बैठाया गया था. क्लासरूम में जबरदस्त गर्मी और उमस थी.. पंखे चल रहे थे, लेकिन लड़कियों के कपड़े पसीने से भीगे हुए थे. ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि जितनी लड़कियां क्लासरूम में थी, उतनी ही लड़कियां क्लासरूम के बाहर थीं क्योंकि क्लास में बैठने की जगह ही नहीं थी. लड़कियों ने बताया कि वो सिर्फ अटेंडेस लगाने के लिए स्कूल आ रही हैं. स्कूल में न पढ़ाई होती है, न कोई सुविधा है और स्कूल से कई लड़कियां रोज अस्पताल पहुंच रही हैं. स्कूल के शिक्षक ने बताया कि आज ही छह लड़कियां गर्मी के कारण बेहोश चुकी हैं. वैशाली के इस सरकारी गर्ल्स स्कूल में 2083 स्टूडेंट्स के नाम हैं. लेकिन इतनी लड़कियों के बैठने का इंतजाम कभी किया ही नहीं गया. अब लड़कियों की अटेंडेंस बढ़ गई तो स्कूल के प्रिसींपल ने लड़कियों को बैठाने का एक नया तरीका निकाला. एक ही क्लासरूम को दो हिस्से में बांटकर.. दो अलग-अलग क्लास के स्टूडेंट्स को एकसाथ बैठा दिया. आप सोचिए जिस क्लास में एक तरफ नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों को गणित पढ़ाई जा रही हो, उसी क्लास में दूसरी तरफ ग्यारहवीं में पढ़ने वाली लड़कियां जीवविज्ञान की पढ़ाई कर रही हों, तो पढ़ाई कैसे होती होगी? लेकिन बच्चियों के हाथ में कुछ नहीं है, वो मजबूर हैं क्योंकि अटेंडेंस जरूरी है और इम्तेहान देकर पास भी होना है. स्कूल के शिक्षकों ने भी माना कि स्कूल की हालत खराब है, बच्चों की संख्या ज्यादा है, गर्मी बढ़ती है तो कोई न कोई बच्ची बेहोश हो जाती है. इस स्कूल में सिर्फ क्लासरूम में ही नहीं, कॉरिडोर में भी कक्षाएं चल रही थी और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि अर्थशास्त्र की कक्षा में इतिहास, राजनीति विज्ञान, और दूसरे विषय की लड़कियां भी बैठी हैं, क्योंकि उनके बैठने के लिए कोई और जगह नहीं है. ग्यारहवीं की जिस कक्षा में सिर्फ पांच लड़कियां अर्थशास्त्र की हैं., वहीं उससे दस गुना लड़कियां दूसरे विषयों की बैठी हैं. शिक्षक का कहना है कि वो क्या करें, मजबूर हैं. जब प्रशासन को ये पता लगा कि इंडिया टीवी की टीम महनार के सरकारी स्कूल में पहुंची है, इंडिया टीवी की टीम के सामने कई लड़कियां बेहोश हो गईं, तो शिक्षा विभाग के अफसर दौड़ते भागते स्कूल पहुंचे, हालात का जायजा लिया, फिर ये तय किया गया कि स्कूल को दो शिफ्ट में चलाया जाएगा. कुछ क्लास की छात्राओं को सुबह की शिफ्ट में बुलाया जाएगा, कुछ को दोपहर की शिफ्ट में, लेकिन इस फैसले पर लड़कियों ने आपत्ति जताई. कहा, वो दूर दूर से पैदल चल कर या साइकिल से स्कूल आती हैं, इतनी गर्मी में, उमस में, दोपहर के वक्त साइकिल से स्कूल आना मुश्किल है. जब तमाम लड़कियों ने दो शिफ्ट का विरोध किया तो ये तय हुआ कि फिलहाल नौवीं की क्लास को सस्पेंड रखा जाए. कुछ दिनों तक नौवीं की क्लास नहीं होगी. नौवीं के तीन सेक्शंस के बच्चों को छुट्टी दे दी गई लेकिन लड़कियों ने इसका भी विरोध किया. कहा, कि अगर स्कूल में छात्राएं ज्यादा हैं, क्लासरूम में बैठने की जगह नहीं है, तो ये उनकी गलती नहीं है. उन्हें इसकी सज़ा क्यों दी जा रही है?उनकी पढ़ाई का नुकसान क्यों किया जा रहा है? अगर अटैंडेंस कम होगी तो परीक्षा देने से रोंकेंगे. अगर अटैंडेंस में छूट भी दे दी तो बिना पढ़े वो परीक्षा कैसे देंगी? इंडिया टीवी की टीम वैशाली के एक और सरकारी स्कूल में गई. .देसरी इलाके के मिडिल स्कूल में 580 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए एक भी बेंच नहीं हैं. बच्चे जमीन पर टाट की बोरी पर बैठकर पढ़ते हैं. टाट की बोरी भी खुद घर से लाते हैं. जिस क्लास रूम में बच्चे बैठते हैं, .उसकी दीवारों का प्लास्टर उखड़ गया है, क्लासरूम में जबरदस्त सीलन है और सीलन भरे क्लासरूम में एक पंखा भी नहीं है. सिर्फ वैशाली नहीं, दूसरे जिलों के सरकारी स्कूलों का भी यही हाल था. वैशाली से करीब 80 किलोमीटर दूर जहानाबाद जिले के सरकारी स्कूलों में भी हमारी टीम गयी. यहां गांव की बात तो छोड़िए, शहर के सरकारी स्कूलों का भी हाल वैशाली के स्कूल से अलग नहीं था. जहानाबाद के महर्षि पतंजलि मिडिल स्कूल में पहली से लेकर आठवीं क्लास तक के बच्चे पढ़ते हैं लेकिन पूरे स्कूल में सिर्फ एक क्लासरूम है. ये स्कूल दो शिफ्ट में चल रहा है. छठवीं से आठवीं कक्षा तक के बच्चे सुबह की शिफ्ट में पढ़ते हैं और पहली से पांचवीं तक के बच्चों को दोपहर की शिफ्ट में पढ़ाया जाता है. चूंकि क्लासरूम एक ही है इसलिए ज्यादातर बच्चों की क्लास स्कूल के बरामदे में लगती है. ये स्कूल 1970 से चल रहा है. लेकिन स्कूल में क्लासरूम का इंतजाम नहीं हो पाया. स्कूल की जो जमीन है, उस पर भी लोगों ने कब्जा कर लिया है. स्कूल के शिक्षक ने कहा कि वो प्रशासन से कह कर थक गए, कोई सुनता ही नहीं है, इसलिए जो है, उसी में काम चला रहे हैं, जैसे तैसे बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. अब बारी थी प्राइमरी स्कूलों की. प्राइमरी स्कूल तक पहुंचने के लिए पहले आपको कच्ची पगडंडी से गुजरना होगा, वो भी दूसरे के खेत से होकर जाती है. चारों तरफ बड़ी बड़ी घास है. बारिश हो जाए तो स्कूल तक पहुंचना किसी जंग लड़ने से कम नहीं होता. सांप बिच्छू का डर अलग. ये स्कूल जिला मुख्यालय से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर चंदौली गांव में हैं. स्कूल की हालत जर्जर है, क्लासरूम की फर्श टूटी है, दीवार खराब है. यहां भी स्कूल के नाम पर सिर्फ दो तीन कमरे हैं और दो शिक्षक हैं. न बेंच हैं, न पीने का पानी है. एक टॉयलेट जरूर है जिस पर हमेशा ताला लटका रहता है. औरंगाबाद में स्कूल के आसपास घास उग आई थी लेकिन गोपाल गंज में तो स्कूल की बिल्डिंग पर घास उग आई है. स्कूल की छत कब गिर जाए, इसका कोई भरोसा नहीं हैं. इसलिए स्कूल के शिक्षक छोटे बच्चों की जिंदगी खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठाना चाहते. पांचवी क्लास तक के बच्चों को स्कूल के दर्शन कराते हैं और उन्हें मैदान में पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. बच्चों की क्लास खुले आसमान के नीचे होती है. अगर बारिश हो जाए तो स्कूल में बिना कहे छुट्टी हो जाती है. स्कूल के तीन कमरों की हालत ठीक है, इसलिए छठवीं, सातवीं और आठवीं के बच्चों की क्लास उन्ही कमरों में होती है, लेकिन इन बच्चों की मुश्किल ये है कि सभी विषयों के शिक्षक नहीं हैं. जो हैं, उन्हीं से सारे विषय पढ़ लेते हैं. बिहार के स्कूलों की ये दुर्दशा देखकर इंडिया टीवी ने नीतीश कुमार की सरकार के मंत्रियों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई मंत्री बात करने को तैयार नहीं हुआ. बिहार में इस वक्त जेडीयू और आरजेडी की सरकार है इसलिए इन दोनों पार्टियों के नेताओं ने स्कूलों की दुर्दशा पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिय़ा. जेडीयू के नेता के.सी. त्यागी ने कहा, ऐसा मामला दूसरे राज्यों में भी है. RJD के मनोज झा ने बच्चियों के प्रदर्शन को ही गलत ठहरा दिया, कहा, स्कूल में जो गड़बड़ी सामने आई है, उस पर एक्शन ज़रूर होगा. मुझे जेडी-यू नेता ललन सिंह का बयान याद आ रहा है. वो दो दिन पहले कह रहे थे, नीतीश कुमार ने नालंदा यूनीवर्सिटी को पुनर्जीवित कर दिया, नरेन्द्र मोदी को नीतीश कुमार के सामने नतमस्तक होना चाहिए. ललन सिंह कह रहे थे कि नीतीश ने शिक्षा के क्षेत्र में इतना बड़ा काम किया है, जिसे दिखा कर मोदी दुनिया भर की वाहवाही लूट रहे हैं. अब कोई ललन सिंह से पूछे कि बिहार में 18 साल से नीतीश कुमार राज कर रहे हैं. 18 साल में स्कूलों में शिक्षक नहीं रख पाए, .कुर्सी टेबल नहीं बनवा पाए, सरकारी स्कूलों में लड़कियों बेहोश होकर गिर रही है. इतना महान काम करने के बाद क्या बेटियों को नीतीश कुमार के सामने नतमस्तक होना चाहिए? हो सकता है कल कुछ बेशर्म नेता ये भी कह दें कि बेटियों ने सड़क पर प्रदर्शन विपक्ष के उकसावे पर किया. हो सकता है कि ये भी कहा जाए कि ये लड़कियां झूठ बोल रही हैं. शिक्षक सरकार को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं. लड़कियां बेहोश होने का नाटक कर रही है और अगर वैशाली में प्रदर्शन करने वाली लड़कियों के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने, अफसर की गाड़ी पर पथराव करने, पुलिस वालों को घायल करने के इल्जाम में मुकदमा दर्ज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि ये खबर भी आ गई है कि लड़कियों के प्रदर्शन में एक एसआई पूनम कुमारी घायल हुई है, उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. इसका मतलब है कि अपनी पढ़ाई के लिए प्रोटेस्ट करने वाली, अपना हक़ मांगने वाली लड़कियों के खिलाफ मुकदमे की पृष्ठभूमि बन चुकी है. जो सरकार स्कूलों में लड़कियों के बैठने का इंतजाम न करे, और पचहत्तर परसेंट अटेंडेश कम्पल्सरी होने का फरमान जारी कर दे, वो सरकार कुछ भी कर सकती है. सोचिए, जिस देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की मुहिम चल रही हो, जिस देश की बेटियां दुनिया में नाम रौशन कर रही हों, जिस देश की बेटियां फाइटर जेट उड़ा रही हों, जिस देश की महिला वैज्ञानिक चन्द्रयान को चांद पर पहुंचा रही हों, उस देश में अगर बेटियों को अपनी पढ़ाई के लिए सड़क पर आना पड़े, तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है? लेकिन नीतीश कुमार को फिलहाल स्कूल की टेंशन नहीं हैं क्योंकि वह आजकल विरोधी दलों को एकता का पाठ पढ़ा रहे हैं. उनका ध्यान विपक्षी एकता पर लगा हुआ है.

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PATHETIC CONDITIONS OF GOVT SCHOOLS IN BIHAR

AKB30 The conditions of government-run schools in Bihar is really sad and pathetic. Some of the scenes inside these schools are really frightening. Nearly 200 girl students were found sitting inside a single classroom. Eight girls fell unconscious when India TV correspondent Nitish Chandra visited the school in Mahnar of Vaishali district for an on-the-spot check. A day before, on Tuesday, angry girl students from this school, had pelted stones at the official vehicle of the local Block Education Officer, and the local SDO had to intervene to calm the students. The local SDO admitted that more students have been admitted compared to the capacity of school classrooms, and the girls, who did not find a place to sit inside the classroom, came out on the road to block traffic. The girls described the horrible conditions inside the school in Mahnar. Students of different classes studying various subjects like Maths, Science, Home Science, History, Geography, Hindu and Urdu are asked to sit inside a single classroom, and the school has only one teacher, in Biology. To top it all, despite these pathetic conditions, the students have been told to ensure at least 75 per cent attendance for getting an admit card for exams. The situation is the same in Jehanabad, Gopalganj, Hajipur and Aurangabad, where our correspondent visited some of the government-run schools. Let me examine the conditions of these schools, one by one. In the Govt Girls Higher Secondary School in Mahnar, Vaishali, there is no drinking water or toilet, and all classes are taken inside a single room! The stoning incident was provoked by a recent government circular sent by K K Pathak, Additional Principal Secretary of Education, in which it was said that 75 per cent attendance is compulsory for sitting in annual examination. Girl students who were not attending school, because of lack of proper facilities, were taking private tuitions, but after the circular was issued, they had to attend school. There was simply no place for them to sit. There were no teachers. A classroom that can accommodate a maximum of 50 students, was packed with more than 200 girls. Six to seven girls were sitting at a single desk meant for three. Due to heat and humidity, the girls were sweating and some of them collapsed. They were given Electral solution. There were many girls standing outside the classroom. This school in Vaishali has enrolled 2,083 students, but there was no place for them to sit. Inside a single room, Class 9 students were being taught Maths, while Class 11 students were being taught Biology. Even the teachers admitted that the conditions were pathetic. Classes were going on in the school corridors. In an Economics class for five girls, students pursuing History, Political Science and other subjects were also sitting. Education department officers rushed to the school after they came to know about India TV team’s visit, and it was decided to run the school in two shifts. When most of the girls objected, it was decided to temporarily suspend Class 9, and students of this class, divided into three sections, were sent on holiday. This led to the main issue about attendance. India TV team went to another government school in Desri, Vaishali district, where 580 middle level students are enrolled. They were found sitting on jute bags brought from their homes, since there was no desk or bench. Plaster was peeling from the walls of classroom, and there was no ceiling fan. Eighty km away from Vaishali, in government schools of Jehanabad district, the situation was more pathetic. At the Maharshi Patanjali Middle School in Jehanabad, there is one single classroom for students from Class One to Eighth. The school runs on two shifts. Students of Class 6 to 8 study in morning shift, while those of Class 1 to 5 study in the second shift. Most of the classes are held in the verandah. This school building was built in 1970, and most of its land has been forcibly grabbed by locals. The teachers admitted that the local administration was not listening to their pleas for improving teaching conditions. Six km away from the district headquarter of Aurangabad, students walk through fields to reach their dilapidated school building. The floor of the classroom is badly broken and the walls are in pitiable conditions. There are only three rooms, two teachers, no bench or desk, no drinking water and a toilet which remains locked. In a school in Gopalganj, the building is so dilapidated that its roof can collapse any time. Teachers take classes in the open, under a tree. During monsoon, classes are cancelled when it rains. Only students of Class 6, 7 and 8 study inside the three classrooms, but there are no teachers for all subjects. Bihar ministers, both from JD(U) and RJD, refused to speak about the conditions of schools. A few days ago, JD(U) leader Lallan Singh was claiming that Chief Minister Nitish Kumar has given a new lease of life to the ancient Nalanda University and Narendra Modi should be grateful to the Bihar CM. Lallan Singh was claiming that Nitish Kumar’s government has done good work in education sector. Nitish Kumar has been chief minister of Bihar for the last 18 years, and yet, there are no teachers, desks or classrooms for students. Girls studying inside packed classrooms are falling unconscious due to heat and humidity. The conditions of schools pose a serious question for Nitish Kumar. Maybe in a few days from now, some ruling party leader may allege that the girls staged protest at the behest of opposition parties. Some may also say that the girls are lying and some teachers are trying to defame the government. One should not be surprised if the police is asked to file FIRs against the girl students for obstructing government staff from performing duty, stoning an official’s car and injuring policemen. Already, an ASI Poonam Kumari was reported to be injured and admitted to hospital. The ground is being prepared to file a case against the school girls who were demanding basic facilities of education. A government that cannot make arrangements for girl students to sit in schools and then issue a circular on 75 per cent compulsory attendance, can go to any length. At a time when the slogan ‘Beti Bachao, Beti Padhao’ is being popularized across India, when our women players are getting laurels in sports, our women pilots are flying IAF fighter planes, and our women scientists are sending Chandrayaan to the Moon, the visuals of girls coming out of schools and staging protests on roads demanding their basic right to education is shameful. Chief minister Nitish Kumar is unfazed. He is nowadays busy uniting opposition parties, with his eyes on next year’s general elections.

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