Rajat Sharma

My Opinion

सिसोदिया की गिरफ्तारी : इसका राजनीतिक असर

AKB30 दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। तिहाड़ जेल में क़ैद एक अन्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने फौरन दोनों इस्तीफों को मंज़ूर कर लिया।

मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी रविवार की रात को हुई । दिल्ली की सीबीआई कोर्ट ने उन्हें 4 मार्च तक सीबीआई की हिरासत में भेज दिया। सीबीआई की विशेष अदालत के जज एमके नागपाल ने अपने देश में कहा, 2021-22 की दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं की सही और निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई हिरासत में भेजने की इजाजत दी जाती है।

अदालत ने कहा, ‘हालांकि आरोपी पहले दो मौकों पर जांच में शामिल हुआ लेकिन वह पूछताछ के दौरान ज्यादातर सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। अब तक की गई जांच में अपने खिलाफ सामने आए आपत्तिजनक सबूतों के बारे में आरोपी कानूनन सही जवाब देने में विफल रहा ।

जज ने कहा, ये सही है कि सिसोदिया से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती जिसमें वह खुद अपनी गलती मान लें, लेकिन न्याय के हित में और निष्पक्ष जांच के हित में ये जरूरी है कि उन्हें जांच अधिकारी के उन सवालों के सही जवाब देने चाहिए जो उनसे पूछे गये ।

जज नागपाल ने कहा, सिसोदिया के अधीनस्थ काम करनेवालों ने कुछ तथ्यों का खुलासा किया है जिसके आधार पर उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है, साथ ही उनके खिलाफ कुछ दस्तावेज भी बतौर सबूत सामने आ चुके हैं। कोर्ट ने कहा, इस मामले में अब तक की गई जांच से पता चला है कि सिसोदिया ने ‘कथित अपराधों को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका’ निभाई। अपने आदेश में जज ने कहा कि ऐसा लगता है कि सिसोदिया ने ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के सदस्य और एक्साइज मंत्री होने के नाते एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के साथ पेश की गई ड्राफ्ट पॉलिसी पर कैबिनेट नोट में कुछ बदलाव करके हेराफेरी की।

सीबीआई की ओर से विशेष लोक अभियोजक पंकज गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि सिसोदिया जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और इस साजिश से जुड़े सही तथ्यों का खुलासा नहीं कर रहे हैं। गुप्ता ने कोर्ट के बताया कि सिसोदिया सरकारी अफसरों और कई अन्य आरोपियों की भूमिका और हवाला के ज़रिये मिले धन के स्रोतों के बारे में सही-सही जानकारी नहीं दे रहे हैं।

सिसोदिया की ओर से तीन सीनियर वकीलों, दयान कृष्णन, सिद्धार्थ अग्रवाल और मोहित माथुर ने कोर्ट में कहा कि आबकारी नीति में हेराफेरी करने के आरोप पूरी तरह से गलत हैं, क्योंकि आबकारी नीति को बाद में उपराज्यपाल ने मंजूरी दी थी। मंत्रिपरिषद और सरकार का निर्णय होने के कारण इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

सिसोदिया को पांच दिन की सीबीआई हिरासत में भेजते हुए कोर्ट ने कुछ शर्तें रखीं। पूछताछ ऐसी जगह पर होगी जहां सीसीटीवी कैमरे लगे हों। उस फुटेज को सीबीआई के अधिकारी संभाल कर रखेंगे, हर 48 घंटे में एक बार सिसोदिया की मेडिकल जांच करानी होगी और रोज शाम 6 बजे से 7 बजे के बीच आधे घंटे के लिए अपने वकीलों से मिलने की इजाजत होगी। मुलाकात के दौरान सीबीआई के कर्मचारी उनकी बातचीत न सुनें । कोर्ट ने सिसोदिया को अपनी पत्नी से मुलाकात के लिए हर रोज 15 मिनट की मोहलत दी ।

आम आदमी पार्टी के ज्यादातर नेता सिसोदिया की गिरफ्तारी के विरोध में देश के कई शहरों में सड़कों पर उतरे लेकिन पार्टी के नेता शराब नीति के घोटाले पर बात नहीं कर रहे हैं । सारे नेता एक ही इल्जाम लगा रहे हैं कि सिसोदिया को राजनीतिक बदले की भावना से गिरफ्तार किया गया है। लेकिन कोई ये नहीं बता रहा है कि सीबीआई ने जो केस दर्ज किया है उसमें क्या गड़बड़ी है, क्या कमियां हैं? केस की मेरिट पर आम आदमी पार्टी के किसी नेता ने बात नहीं की। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि पॉलिसी बनाने के दौरान मनीष सिसोदिया शराब कारोबारियों के संपर्क में थे। दिल्ली के एक होटल में दक्षिण भारत के एक कंसोर्टियम ने आबकारी नीति तैयार की। सीबीआई पहले ही आरोप लगा चुकी है कि जांच शुरू होते ही सिसोदिया समेत 36 आरोपियों ने अपने सेलफोन से सभी डेटा डिलीट कर दिए और अपने हैंडसेट को नष्ट कर दिया या बदल दिया।

सीबीआई का आरोप है कि मनीष सिसोदिया के खिलाफ पिछले साल 19 अगस्त को केस दर्ज हुआ और उन्होंने अगले 24 घंटे में तीन फोन और एक सिम बदला। 20 अगस्त को मनीष सिसोदिया ने तीन फोन का इस्तेमाल किया। सिसोदिया ने अगस्त से सितंबर 2022 के बीच 18 फोन बदले। वहीं शराब घोटाले के कुल 36 आरोपियों ने 170 फोन बदले जिनकी क़ीमत करीब एक करोड़ 38 लाख रुपये आंकी गई है। सीबीआई यह जानना चाहती है कि आखिर इतने फोन क्यों बदले गए और उन फोन्स के डेटा कहां हैं? सीबीआई का कहना है कि पूछताछ के दौरान मनीष सिसोदिया ने सहयोग नहीं किया। सिसोदिया सवालों के सीधे-सीधे जवाब नहीं दे रहे हैं इसलिए उनके रिमांड की जरूरत है ताकि दूसरे आरोपियों के साथ आमने-सामने बैठाकर पूछताछ की जा सके।

आम आदमी पार्टी सिसोदिया की गिरफ़्तारी पर इतनी आक्रामक क्यों है? इसकी वजह बिल्कुल साफ़ है। शराब घोटाले की आंच अब सीधे अरविंद केजरीवाल तक पहुंच सकती है। क्योंकि इस मामले की जांच ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) भी कर रही है। 4 दिन पहले ईडी ने इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक विभव कुमार से पूछताछ की थी।

इस पूरे केस की मोटी-मोटी बात यह है कि दिल्ली में जो शराब नीति बनाई गई वह शराब कारोबारियों को बेहिसाब फायदा पहुंचाने वाली नीति थी। कौन मानेगा कि इस पॉलिसी को लागू करने के लिए उन्होंने आम आदमी पार्टी को करोड़ों रुपए नहीं पहुंचाए। दूसरी बात ये कि अगर मनीष सिसोदिया ने वाकई में कुछ गलत नहीं किया तो बार-बार क्यों फोन बदलते रहे, सिम कार्ड नष्ट करके और कंप्यूटर से डेटा डिलीट करके सबूत मिटाने की कोशिश क्यों की गई?

सीबीआई का आरोप है कि गुरुग्राम के एक शराब कारोबारी दिनेश अरोड़ा से मनीष सिसोदिया सीधे डील करते थे। दिनेश अरोड़ा अब सरकारी गवाह बन गया है। आबकारी विभाग (एक्साइज डिपार्टमेंट) के अफसरों ने भी सीबीआई को काफी कुछ बताया है। इसलिए मनीष सिसोदिया की मुसीबतें बढ़ेंगी। जब सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ेंगी तो उसकी आंच केजरीवाल तक भी पहुंच सकती हैं। केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं लेकिन एक भी मंत्रालय उनके पास नहीं है। उन्होंने 33 में से 18 मंत्रालय मनीष सिसोदिया को दिए हुए थे।

सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया केजरीवाल की सरकार के स्तम्भ हैं और दोनों सलाखों के पीछे हैं। राजनैतिक तौर पर केजरीवाल के लिए फायदे की चीज़ ये है कि उन्हें एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसके आधार पर वो देश भर में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सकते हैं।

सिसोदिया की गिरफ्तारी का एक और सियासी फायदा ये हुआ है कि केजरीवाल को कई सारे राजनैतिक दलों का समर्थन मिला है। तृणमूल कांग्रेस, अखिलेश यादव और शिवसेना (उद्धव) नेताओं ने पहले ही गिरफ्तारी की निंदा की है, लेकिन कांग्रेस इस पर चुप्पी साधे हुए है। कांग्रेस नेता असमंजस में हैं कि गिरफ्तारी का समर्थन करें या विरोध। पिछले हफ्ते जब कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया तो आप नेता खामोश रहे। सोमवार को अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर कहा कि गिरफ्तारी के पीछे कोई कारण नहीं है, लेकिन इसके तुरंत बाद, उन्होंने फिर से स्पष्ट करने के लिए ट्वीट किया कि वह एक वकील के रूप में टिप्पणी कर रहे थे, न कि पार्टी प्रवक्ता के रूप में।

विरोधी दलों के नेताओं की बात सही है कि पिछले सात-आठ साल में विरोधी पार्टी के नेताओं पर बड़ी तादाद में ईडी और सीबीआई ने छापे मारे, गिरफ्तारियां की और केस दर्ज किए। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली में तो ये साफ-साफ देखने को मिला है। लेकिन बीजेपी का तर्क यह है कि अगर किसी ने भ्रष्टाचार किया है तो क्या उसे क्या सिर्फ इसलिए छोड़ दिया जाए कि वो एक राजनीतिक दल का नेता है?

अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और आम आदमी पार्टी के कई नेता ऐसे मामलों में संलग्न हैं। कई जेल में हैं औऱ कई बेल पर हैं। लेकिन दिल्ली के शराब घोटाले का केस अकेला ऐसा केस है जहां एक साथ दो राज्यों, दो सरकारों और दो राजनीतिक दलों के नेताओं के नेक्सस का आरोप है। सीबीआई के मुताबिक तेलंगाना के व्यापारियों ने पॉलिसी बनाई, दिल्ली की सरकार ने उसे लागू किया औऱ दोनों राज्यों के नेताओं के बीच पैसे का लेनदेन हुआ। इसीलिए केसीआर ने सबसे पुरजोर तरीके से मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का विरोध किया।

अब सीबीआई के सामने बड़ी चुनौती ये है कि वह इस केस को कोर्ट में साबित करे, वरना सरकार की बहुत फजीहत होगी। फिर विरोधियों को ये कहने का मौका मिलेगा कि बीजेपी ने विपक्ष के नेताओं को झूठे मामले में फंसाया। आजकल तो हालत ये है कि अगर किसी को जमानत मिल जाती है तो वो विजय जुलूस निकालता है और ये इंप्रेशन क्रिएट किया जाता है जैसे केस खत्म हो गया हो।

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Sisodia’s Arrest: The Political Fallout

AKB30 The arrest of Delhi deputy chief minister Manish Sisodia by CBI has led to protests by Aam Aadmi Party workers in different parts of the country. The arrest took place on Sunday night and on Monday afternoon, a CBI court in Delhi sent him to CBI custody till March 4. Special CBI court judge M K Nagpal said, this was to allow the CBI “to get genuine and legitimate” answers to questions being put to him about alleged irregularities in the liquor excise policy of 2021-22 for “a proper and fair investigation”.

The court said, “Though it has been observed that the accused joined the investigation on two earlier occasions, it has also been observed that he has failed to provide satisfactory answers to most of the questions put to him during his examination and has thus failed to legitimately explain the incriminating evidence which has allegedly surfaced against him in the investigation conducted so far.”

The judge however said, Sisodia could not be expected to make self-incriminating statements, but “in the interests of justice and of a fair investigation, require that he should come up with legitimate answers to the questions that are being put up to him by the investigation officer.”

Judge Nagpal said: “Some of Sisodia’s subordinates are found to have disclosed certain facts that can be taken as incriminating him and some documentary evidence against him has also already surfaced”. The court said, the investigation conducted in this case so far has revealed Sisodia played “an active role in commission of the alleged offences”. In his order, the judge felt that Sisodia, being member of the group of ministers as well as being the excise minister, manipulated certain changes in the cabinet note on the draft policy that was put up along with the expert committee report.

Special Public Prosecutor on behalf of CBI Pankaj Gupta told the court that Sisodia was not cooperating in the investigation and that he did not disclose true facts related to above conspiracy, the role of other accused, including public servants, as well as the trail of ill-gotten money received through hawala channels.

Three senior advocates, Dayan Krishnan, Siddharth Aggarwal and Mohit Mathur, appearing for Sisodia, told the court that the allegations of manipulation in excise policy were totally While false as the excise policy had subsequently received the approval of the Lt. Governor and the same, being an act of the council of ministers and the government, cannot be challenged in court.

While sending Sisodia to five days’ CBI custody, the court put certain conditions. Interrogation shall be conducted in a place which should have CCTV coverage, the footage of the same must be preserved by CBI, Sisodia must be medically examined once every 48 hours and he should allow to meet his lawyers daily for half an hour between 6 pm and 7 pm in a manner that CBI personnel must not be able to hear their conversations. The court also allowed Sisodia to meet his wife day for 15 minutes.

While AAP leaders are staging protests throughout the country alleging “political vendetta”, none of them are going through the nitty-gritties of the excise case. CBI has alleged that Manish Sisodia was in contact with liquor trades during the formulation of policy, a consortium from the South formulate the excise policy at a Delhi hotel. CBI has already alleged that as soon as it started the probe, 36 accused including Sisodia, deleted all data from their cellphones and destroyed or changed their handsets.

CBI alleged that when the case was filed against Manish Sisodia on August 19 last year, the deputy CM changed three cellphones within a span of 24 hours, changed one SIM card, and started using three new cellphones on August 20. Between August and September, 2022, Sisodia changed 18 cellphones. A total of 170 cellphones, costing Rs 1.38 crore, were changed by all the 36 accused. CBi investigators want to know why these cellphones were changed, and where are the data that were deleted. CBI investigators now want to interrogate Sisodia in the presence of other accused.

Why is AAP so much aggressive over Sisodia’s arrest? The reasons are simple. The investigation into the liquor scam can now reach Chief Minister Arvind Kejriwal. Already, the Enforcement Directorate is working on this angle. Four days ago, ED had interrogated Vibhav Kumar, personal assistant of Kejriwal.

In a nutshell, the new excise policy that was formulated by the Delhi AAP government was meant to ensure huge profits for liquor traders, that the policy was drafted by liquor traders, and nobody will believe that crores of rupees did not exchange hands. Secondly, if Sisodia has not committed any irregularities, why did he change his cellphones frequently and destroyed the SIM cards? Why were date completely deleted from computer servers?

CBI alleged that a Gurugram-based liquor trader Dinesh Arora, who is the accused in this case, dealt directly with Sisodia. Arora is now a prosecution witness. Excise department officials also revealed several facts to CBI investigators. Sisodia’s troubles are bound to increase and the flames of this scam can reach Arvind Kejriwal, sooner or later. Kejriwal is Chief Minister of Delhi, but he does not have a single portfolio with him. He has entrusted 18 out of 33 departments to Sisodia.

Health Minister Satyendar Jain, who has been spending time in Tihar jail, has not yet been removed from cabinet. Both Jain and Sisodia are the pillars of Kejriwal government, and both of them are now in custody. Politically, Kejriwal may make it a major issue about ruling party’s vendetta. Already, Trinamool Congress, Akhilesh Yadav and Shiv Sena (Uddhav) leaders have condemned the arrest, but the Congress is maintaining a discreet silence. Congress leaders are confused, whether to support or oppose the arrest. Last week, when Congress spokesperson Pawan Khera was arrested from Delhi airport, AAP leaders remained silent. On Monday, Abhishek Manu Singhvi tweeted saying there was no reason behind the arrest, but soon after, he again tweeted to clarify that he was commenting as a lawyer, not as party spokesperson.

Opposition leaders are right in remarking that a large number of raids and arrests of leaders from opposition were made by ED and CBI during the last eight years, whether in West Bengal, Maharashtra, Karnataka, and now in Delhi. But BJP leaders say that if any leader has been found involved in corruption, should he or she be absolved, only because they belonged to a political party?

Congress, TMC, NCP and AAP leaders have been found involved in several cases in different states. Many of them are in jail and some of them are out on bail, but the Delhi excise case in an exception. It involves two states, two governments and two parties from Delhi and Telangana – Aam Aadmi Party and Bharat Rashtra Samiti (earlier TRS). There appears to be a nexus between the two.

CBI investigators say, Delhi excise policy was drafted by liquor traders from Telangana and it was implemented by Delhi government. Money exchanged hands between leaders from both the states. Telangana CM K. Chandrasekhar Rao’s BRS leaders are quite vocal in condemning Sisodia’s arrest. The CBI now faces a big challenge: it has to prove the accused guilty in court, otherwise the Centre may have to face embarrassment. Opposition leaders will then get a handle to allege that their leaders have been arrested in false cases. Nowadays the situation is such that when leaders come out on bail, they head victory processions as if to show that they have been acquitted.

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मोदी को गाली देने से पहले कांग्रेस नेताओं को सोचना चाहिए

AKB30प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को शिलॉन्ग में एक चुनावी सभा में कांग्रेस पर तीखा जवाबी हमला बोला। मोदी ने कांग्रेस के उन नेताओं की जमकर आलोचना की जो कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए दिल्ली एयरपोर्ट पर बैठकर ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ का नारा लगा रहे थे।

नरेंद्र मोदी ने कहा, “जिनको देश ने नकार दिया है, जिन्हें देश अब स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जो निराशा की गर्त में डूब चुके हैं वो आजकल माला जपते हुए कहते है मोदी तेरी कब्र खुदेगी। जबकि देश कह रहा है, हिंदुस्तान का हर कोना कह रहा है- मोदी तेरा कमल खिलेगा। देश की जनता इस प्रकार के विकृत सोच वाले, विकृत भाषा बोलने वाले लोगों को करारा जवाब देग।”

मोदी ने आगे कहा: “लंबे समय तक मेघालय सहित इस पूरे रीजन को कुछ लोगों ने अपने परिवार और स्वार्थ की पॉलिटिक्स के लिए प्रयोग किया। इन लोगों ने नॉर्थ ईस्ट के हर स्टेट को, मेघालय को ATM बना दिया है। यहां के लोगों को छोटे-छोटे मुद्दों पर बांटा गया। मेघालय के हितों को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई। उन्होंने इस राज्य का बहुत नुकसान किया है, यहां के युवाओं का नुकसान किया है। लेकिन मुझे खुशी है कि इस प्रदेश के साथ ही पूरे नॉर्थ ईस्ट की जनता अब भाजपा के साथ है। कमल के साथ है। मेघालय एक मजबूत पार्टी के नेतृत्व में स्थिर और मजबूत सरकार चाहता है। मेघालय आज फैमिली फर्स्ट के बजाय… पीपल फर्स्ट वाली सरकार चाहता है।”

यह हाल के महीनों में कांग्रेस के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी की सबसे कड़ी प्रतिक्रियाओं में से एक थी। कांग्रेस के नेता ये जानते हैं कि मोदी को गाली देने से नुकसान ही होता है। कई चुनावों में इसका नतीजा देख चुके हैं। इसके बाद भी पता नहीं क्यों चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के नेता सेल्फ गोल कर देते हैं।

पहले पवन खेड़ा ने पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में नरेंद्र मोदी के पिता के लिए अपमानजनक बातें कहीं बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगी, तब उन्हें जमानत मिली। लेकिन पवन खेड़ा की गिरफ्तारी के वक्त एयरपोर्ट पर धरना दे रहे कांग्रेस के नेताओं ने ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे नारे लगा दिए।

अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर खामोश हैं। लेकिन मोदी ने इस बात को पकड़ लिया है और अब वो जब-जब कांग्रेस की गालियों का जिक्र करेंगे तो उसमें यह नारा भी सुनने को मिलेगा।

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Congress leaders must think twice before abusing Modi

AKBIn a scathing counter-attack at an election meeting in Shillong on Friday, Prime Minister Narendra Modi lambasted Congress leaders who sat on the tarmac of Delhi airport and chanted “Modi Teri Qabr Khudegi”(Modi, your grave will be dug) slogan, while protesting the arrest of Congress spokesperson Pawan Khera.

Narendra Modi said, “Some people, who have been rejected by the people of this country, are now so frustrated that they are now praying with beads (maala), saying, ‘Modi your grave will be dug’, but the people of the country are saying, ‘Modi, your lotus will bloom’. The people of India will give a befitting reply to such people for using such language and having such a mindset…Every corner of the country is saying, ‘Modi, your lotus will bloom’. The blessings of the people of India are making some people so much frustrated that they feel things will not work out for them so long as Modi is alive. So, they are digging Modi’s grave. How long will you dig my grave? Do some social work…”

Modi went on: “When Congress ruled north-east states, its central leaders used these states as ATMs to fill their pockets. But BJP used technology to ensure that the money reached the bank accounts of poor people, without any cut or commission. The people of Meghalaya want a ‘people-first’ government, not a ‘family-first’ government.”

This was one of the strongest reactions from Prime Minister Modi against the Congress in recent months. Congress leaders know it very well that abusing Modi can harm them during elections. The results of several elections in the past are witness to this. Yet, there are some Congress leaders who excel in scoring self-goals.

First, Pawan Khera used insulting words about Modi’s father Damodardas Modi at his party’s press conference. He later tendered apology before Supreme Court through his lawyer and got interim bail. But while staging sit-in on Delhi airport tarmac to protest his arrest, some Congress leaders chanted slogan ‘Modi Teri Qabr Khudegi’.

Senior party leaders are now maintaining a silence over this signal, but Modi has caught on to their mistake. Whenever he will recount the abuses hurled by Congress, this slogan is sure to crop up in the list.

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पंजाब हिंसा: भगवंत मान समय रहते कट्टरपंथ को जड़ से खत्म करें

AKB30 गुरुवार को पंजाब से चिंता में डालने वाली तस्वीरें आईं। अमृतसर में हिंसक भीड़ ने बंदूक और तलवारें लहराते हुए खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए और अजनाला थाने का घेराव किया। ये लोग अपने एक सहयोगी लवप्रीत सिंह तूफ़ान की रिहाई की मांग कर रहे थे। इस भीड़ का नेतृत्व कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह ने किया। वहां के एसपी ने जब 24 घंटे के अंदर लवप्रीत तूफान को रिहा करने का वादा किया तब थाने पर घेराव को खत्म किया गया। शुक्रवार को अजनाला की अदालत ने तूफान को रिहा कर दिया।

ये कट्टरपंथी दिवंगत पंजाबी अभिनेता दीप सिंह सिद्धू द्वारा स्थापित संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ से जुड़े हुए थे। दीप सिद्धू खालिस्तान के समर्थक थे और कनाडा में छिपकर रह रहे अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू के संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ के प्रति निष्ठा रखते थे।

लवप्रीत सिंह ऊर्फ तूफान अपहरण के एक मामले में आरोपी है, लेकिन गुरुवार को एसएसपी सतिंदर सिंह ने कट्टरपंथियों के दबाव में आकर ऐलान किया कि ‘अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर हम लवप्रीत को रिहा कर देंगे। एसपी तेजबीर सिंह के नेतृत्व वाली एसआईटी अमृतपाल सिंह के खिलाफ दर्ज अपहरण और मारपीट के मामले की जांच करेगी।’

गुरुवार की रात प्रसारित अपने ‘आज की बात’ शो में हमने सैकड़ों की तादाद में हथियारबंद खालिस्तान समर्थकों का वीडियो दिखाया जो बंदूक और तलवार लेकर बैरिकेड्स तोड़ते हुए अजनाला थाने पर हमला बोल रहे थे। इससे घंटों पहले भीड़ ने कपूरथला जिले में ढिलवां टोल प्लाजा के पास दिल्ली-अमृतसर हाईवे को जाम कर दिया। अमृतपाल सिंह ने खुले तौर पर खालिस्तान की मांग की और गुरुवार को हिंसक भीड़ का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वह गुरु को धन्यवाद देने के लिए तूफ़ान की रिहाई के बाद दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) जाएंगे।

अमृतसर में खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वाली भीड़ के दृश्य वास्तव में परेशान करने वाले हैं। कट्टरपंथियों और पुलिस के बीच हुई झड़प में एक दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गये। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि पंजाब पुलिस के सीनियर अधिकारियों ने अमृतपाल सिंह की धमकी के आगे घुटने टेक दिए। अमृतपाल सिंह ने धमकी दी थी कि अगर उनके सहयोगी तूफान को रिहा नहीं किया गया तो वे घेराव जारी रखेंगे। हिंसक भीड़ के आगे सैकड़ों पुलिसकर्मियों को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा।

अमृतपाल सिंह जून, 1984 में भारतीय सेना के ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान मारे गए आतंकवादी और मास्टरमाइंड जरनैल सिंह भिंडरावाले का कट्टर अनुयायी होने का दावा करता है। अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों द्वारा एक शख्स वरिंदर सिंह की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ था। आरोपों के मुताबिक 15 फरवरी को अमृतपाल के समर्थकों ने उसका अपहरण कर लिया था। पुलिस ने वरिंदर सिंह की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की थी। इस मामले में पुलिस ने अमृतपाल सिंह के क़रीबी लवप्रीत सिंह तूफान को गिरफ्तार किया था। जिसके बाद अमृतपाल ने समर्थकों के साथ गुरुवार को थाने का घेराव किया था।

सवाल यह उठता है कि जब पुलिस ने एफआईआर वापस लेने का फैसला किया तो घटना की जांच के लिए एसआईटी क्यों गठित की गई? शिरोमणि अकाली दल के नेता हरपाल सिंह बलेर (सिमरनजीत सिंह मान) ने मामले को सुलझाने के लिए अमृतपाल सिंह की ओर से सीनियर पुलिस अधिकारियों से बात की।

अमृतपाल सिंह खालिस्तान का कट्टर समर्थक है और उसका जन्म अमृतसर में ही हुआ था। 2012 में वह दुबई चला गया था। दुबई में वह क़रीब दस साल रहा। ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस किया। दुबई में ही वह खालिस्तानियों के संपर्क में आया। 2022 में जब वह भारत लौटा तो ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का प्रमुख बन गया है। कहने को ‘वारिस पंजाब दे’ सामाजिक संगठन है लेकिन हकीकत में यह अलगाव की आग लगाने का काम कर रहा है।

यह संगठन दीप सिंद सिद्धू ने बनाया था। आपको बता दें कि ये दीप सिंह सिद्धू वही है जिस पर किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी 2021 को लाल क़िले पर हिंसा करने का आरोप था। पिछले साल 15 फ़रवरी को एक सड़क हादसे में दीप सिंह सिद्धू की मौत हो गई थी। उसके बाद, पिछले साल सितंबर में अमृतपाल सिंह ‘वारिस पंजाब दे’ का चीफ बन गया। अमृतपाल सिंह की ताजपोशी का प्रोग्राम, मोगा ज़िले में जरनैल सिंह भिंडरावाले के गांव रोड़े में हुआ था। संगठन की कमान संभालते ही अमृतपाल सिंह काफ़ी एक्टिव हो गया। वह अपने समर्थकों के साथ गांवों में घूम-घूम कर कट्टरपंथियों को अपने साथ जोड़ रहा है।

अमृतपाल सिंह ने खालिस्तान को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को भी चेतावनी दी थी। अपने एक भाषण में उसने कहा कि अमित शाह खालिस्तान की बात करने वालों को कुचलने की बात करते हैं तो उन्हें याद रखना चाहिए कि इंदिरा गांधी का हाल क्या हुआ था। लेकिन बाद में अमृतपाल ने कहा कि उसने अमित शाह को धमकी नहीं दी थी बल्कि उसके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।

अहम बात ये है कि हिंसक भीड़ द्वारा थाने को घेरकर बंदूक, तलवार और लाठियों से पुलिस पर हमला करना , ये कोई छोटी बात नहीं हैं। इस मामले में सख्ती होनी चाहिए। हिंसक भीड़ अलगाववादी नारे भी लगा रही थी। हैरानी की बात ये है कि पंजाब की भगवंत मान की सरकार इस तरह के देशद्रोहियों को सख्ती से कुचलने की जगह उनके सामने हाथ बांधे खड़ी है। दबाव में आकर खालिस्तान के नारे लगाने वालों को रिहा कर रही है। ये ठीक नहीं हैं।

अमृतपाल सिंह अकेला नहीं है। उसे कनाडा में बैठे और भारत के कट्टर भारत विरोधी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू का समर्थन मिल रहा है। पन्नू नियमित रूप से भारतीय तिरंगे का अपमान करने वाले वीडियो पोस्ट करता है और उसके समर्थक कनाडा और ब्रिटेन में विरोध प्रदर्शन करते रहते हैं।

अमृतपाल सिंह पन्नू को अपना आदर्श बताता है। अमृतपाल सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह को धमकी दी थी और इंदिरा गांधी जैसा हाल करने की बात कही थी। उसके खिलाफ पंजाब सरकार ने कुछ नहीं किया। फिर अमृतपाल सिंह ने जालंधर के गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की, बुजुर्गों और विकलांगों के लिए लगाई गई कुर्सियों को सड़क पर लाकर जलाया। उसके बाद भी अमृतपाल के खिलाफ एक्शन नहीं हुआ तो उसकी हिम्मत बढ़ गई, पंजाब में खालिस्तानी कट्टरपंथियों के हौसले बुलंद हो गए।

थाने को इस तरह से घेर लेना गंभीर घटना है। ये कट्टरपंथी सिख बिरादरी को भड़का कर सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियों ने भले ही अजनाला थाने में हालात को शांत करने में अपनी परिपक्वता दिखाई लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी सरकार को यह समझना चाहिए कि कट्टरपंथियों के खिलाफ नरमी बरतने से काम नहीं चलेगा।

मुझे याद है कि एक साल पहले कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने यह बात कही थी कि पाकिस्तान की शह पर पंजाब में एक बार फिर माहौल को खराब करने की कोशिश हो रही है। पाकिस्तान से नशे की खेप और हथियार भेजे जा रहे हैं और लोगों को भड़काया जा रहा है।

कैप्टन अमरिंदर की उस बात पर पंजाब सरकार को गौर करना चाहिए और वक्त रहते अमृतपाल सिंह जैसे लोगों को सबक सिखाना चाहिए। इस वक्त राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार को केंद्र सरकार के साथ मिलकर बड़ी सावधानी से हालात से निपटना चाहिए। सबसे जरुरी बात यह है कि इस मामले को लेकर कोई पॉलिटिकल प्वाइंट स्कोर करने की कोशिश ना करे।

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Punjab violence: Bhagwant Mann must nip radicalism in the bud

AKB30 A violent mob, chanting pro-Khalistan slogans and brandishing swords and guns, was led by a radical preacher Amritpal Singh, who laid siege to Ajnala police station of Amritsar on Thursday demanding release of his close aide Lovepreet Singh Toofan. The siege was lifted after the local SSP promised release of Toofan within 24 hours. Toofan was released by a court in Ajnala on Friday.

The radicals belonged to the outfit ‘Waaris Punjab De’ set up by late Punjabi actor Deep Singh Sidhu, a pro-Khalistani, who owed allegiance to Canada-based separatist Gurpatwant Singh Pannu’s ‘Sikhs For Justice’ outfit.

Lovepreet Singh alias Toofan is an accused in a kidnapping case, but on Thursday, SSP Satinder Singh, after succumbing to pressure from the radicals announced that “on the basis of evidence furnished by Amritpal Singh and his supporters, we will release Lovepreet, while an SIT led by SP Tejbir Singh will probe the kidnapping and assault case filed against Amritpal Singh.”

In my ‘Aaj Ki Baat’ show on Thursday night, we showed videos of several hundred armed pro-Khalistani supporters, wielding guns and swords, storming the Ajnala police station, by breaking barricades. Hours earlier, the mob blocked traffic on Delhi-Amritsar highway near Dhilwan toll plaza in Kapurthala district. Amritpal Singh has been openly demanding Khalistan, and on Thursday, while leading the violent mob, he told his supporters that he would move to Darbar Sahib (Golden Temple) after securing release of Toofan, to thank the Guru.

Visuals of the mob shouting pro-Khalistan slogans in Amritsar are really disturbing. More than a dozen policemen were injured in the clash between the radicals and police. The most surprising part is that senior Punjab Police officials succumbed to the threat from Amritpal Singh of continuing with the siege if his aide Toofan was not released. Scores of policemen had to run to save themselves in the face of the marauding violent mob.

Amritpal Singh claims to be a staunch follower of Jarnail Singh Bhindranwale, the terror mastermind who was killed during Indian Army’s Operation Bluestar in June, 1984. Thursday’s siege took place after video appeared of a man Varinder Singh being thrashed by Amritpal Singh and his supporters on February 15. Amritpal’s supporters had kidnapped him, and police had filed an FIR on the basis of Varinder Singh’s complaint.

The question that arises is, when police decided to withdraw the FIR, why was an SIT set up to investigate the incident? Harpal Singh Baler, a leader of Shiromani Akali Dal (Simranjit Singh Mann) spoke to senior police officials on behalf of Amritpal Singh to sort out the matter.

Amritpal Singh, born in Amritsar, left for Dubai in 2012, where he stayed for nearly ten years. He was involved in transport business. He then came in contact with pro-Khalistan supporters in Dubai, returned to India last year, and took over as the chief of ‘Waaris Punjab De’ outfit. He claims this outfit is a social organization, but, in reality, it is trying to spread radicalism and helping separatist forces.

Deep Singh Sidhu is the man, who led a violent mob to Red Fort in Delhi on January 26, 2021 during farmers’ agitation, where a pro-Khalistan flag was hoisted. Deep Sidhu died in a road accident on February 15 last year. Amritpal Singh was anointed the head of ‘Waaris Punjab De’ at Jarnail Singh Bhindranwale’s ancestral village Rode in Moga district. Since then, Amritpal Singh has become very much active, and he is moving around villages with his supporters to induct radicals.

In one of his speeches, Amritpal Singh is shown saying, “Home Minister Amit Shah, who is saying pro-Khalistani forces will be crushed, must remember what happened to Indira Gandhi”. On Thursday, Amritpal Singh said, he did not give any threat to Amit Shah. He says, his comment was torn out of context by media.

The moot point is: a violent mob carrying guns, swords and lathis attacking a police station cannot be taken lightly. Moreover, the mob was shouting separatist slogans. The most worrying part was, the local police, instead of facing the mob, meekly surrendered to the radical preacher, by agreeing to release his close aide. It is surprising to find Chief Minister Bhagwant Mann’s government meekly surrendering to the radicals and releasing separatists from jail.

Amritpal Singh is not alone. He is getting support from rabid anti-India separatist Gurpatwant Singh Pannu, sitting in Canada. Pannu regularly posts video insulting the Indian tricolour and his supporters have been staging protests in Canada and Britain.

Amritpal Singh considers Pannu as his ideal and he has threatened India’s Home Minister of dire consequences. He and his supporters damaged special seating enclosures created for senior citizens and disabled persons in the gurdwaras of Jalandhar. No action was taken against Amritpal and his supporters. Pro-Khalistani radicals in Punjab have gained courage after committing such acts.

The siege of a police station is a serious incident. These radicals are trying to spread communal disharmony by instigating Sikh fraternity. Police officials may have shown maturity in defusing the situation at Ajnala police station, but Chief Minister Bhagwant Mann and his government must understand that toeing a soft line against radicals will not help.

I remember what former Punjab CM Capt Amarinder Singh had said a year ago. He had said that radicals, taking cues from Pakistan, are trying to disturb peace in Punjab. He had said, weapons and narcotics are being pumped from across the border by radicals.

Punjab government must take Capt Amarinder Singh’s advice seriously and radical preachers like Amritpal Singh must be taught a timely lesson. It would be better if the AAP government in Punjab coordinates with the Centre to handle the evolving situation carefully. Nobody should try to score political points on this sensitive issue.

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पवार पॉलिटिक्स: एक राज़ का खुलासा

AKBआज मैं आपके साथ सियासत की दुनिया का एक बड़ा राज़ शेयर करना चाहता हूं। मैं आपको बताऊंगा कि 2019 की उस रात को क्या हुआ था जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद एनसीपी नेता अजीत पवार ने गठबंधन सरकार बनाने के लिए अचानक बीजेपी से हाथ मिला लिया था। यह सरकार सिर्फ तीन दिन चल पाई थी।

मैं आपको बताऊंगा कि शरद पवार के बीजेपी के साथ रिश्ते खराब क्यों हुए, क्या शरद पवार ने बीजेपी को धोखा दिया, कब दिया और कैसे दिया? शरद पवार ने इशारों में इशारों में माना कि वह बीजेपी से वादा करके मुकर गए थे। उन्होंने खुद ही संकेत दिया राजभवन में अपने भतीजे अजीत पवार के साथ शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस की पीठ में उन्होंने छुरा घोंपा था।

पहली बार यह बात सामने आई है कि उस दिन आधी रात और उसके बाद जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, उसकी स्क्रिप्ट किसी और ने नहीं, बल्कि सियासत के दिग्गज खिलाड़ी शरद पवार ने लिखी थी। शरद पवार की इस पूरी स्क्रिप्ट की हकीकत बेहद दिलचस्प है। बुधवार को पिंपरी-चिंचवड में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार ने जो 2 बयान दिए, उनसे सारा मामला ही खुल गया।

पवार ने कहा कि बीजेपी द्वारा उनके भतीजे और NCP नेता अजित पवार के साथ सरकार बनाने की कोशिश का एक फायदा यह हुआ कि इससे 2019 में महाराष्ट्र में ‘राष्ट्रपति शासन का खात्मा हो गया।’

एक पत्रकार ने जब बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के इस दावे के बारे में पूछा कि अजीत पवार के साथ तीन दिन की सरकार के गठन को NCP सुप्रीमो का समर्थन प्राप्त था, शरद पवार ने जवाब दिया: ‘सरकार बनाने का प्रयास किया गया था। उस कवायद का एक फायदा यह हुआ कि इससे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने में मदद मिली। इसके बाद जो हुआ, वह सभी ने देखा है।’

जब रिपोर्टर ने पूछा कि क्या उन्हें इस तरह की सरकार के गठन के बारे में पता था, शरद पवार ने कहा, ‘क्या इस बारे में बोलने की जरूरत है? मैंने अभी कहा कि अगर इस तरह की कवायद नहीं होती तो क्या राष्ट्रपति शासन हटा लिया जाता? अगर राष्ट्रपति शासन नहीं हटा होता तो क्या उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते? यह पूछे जाने पर कि क्या उनका इशारा है कि उन्हें इस बात का पता था कि अजीत पवार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं, पवार ने कहा, ‘एक शख्स ने हाल ही में कहा है कि महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसके लिए एक ही व्यक्ति (शरद पवार) जिम्मेदार है।’

निश्चित तौर पर पवार के बयान बेहद दिलचस्प हैं। पवार ने बस यह नहीं कहा कि उन्होंने ही अपने भतीजे अजीत पवार को NCP में ‘बगावत’ का झूठा नाटक करके देवेंद्र फडणवीस के पास भेजा था, और तीन दिन बाद सरकार गिरवा दी थी। पवार ने यह बताने की कोशिश की कि उके खेल से बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। महा विकास आघाड़ी के रूप में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का एक नया गठबंधन बना और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। पवार ने यह मैसेज देने की कोशिश की कि उन्होंने सियासी खेल में बीजेपी को मात दे दी।

24 अक्टूबर 2019 से लेकर 23 नवंबर 2019 के बीच क्या-क्या हुआ, इसकी पूरी हकीकत मैं आपको बताऊंगा। फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि शरद पवार 3 साल तक खामोश क्यों रहे और उन्होंने अब इसका खुलासा क्यों किया। इस खुलासे के पीछे क्या पवार का कोई नया गेम प्लान है? प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए अपने बयान में पवार हालांकि सीधे तौर पर यह नहीं मानते कि उन्हें इस कवायद के बारे में पता था, लेकिन इसके कई सियासी मायने हैं।

पवार 23 नवंबर, 2019 की रात को हुए नाटकीय घटनाक्रम का जिक्र कर रहे थे जब केंद्र सरकार ने आधी रात को राष्ट्रपति शासन हटा लिया था, और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राजभवन में तड़के फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, और अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बने थे। यह सरकार 3 दिन के बाद गिर गई थी और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाद में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में महा विकास आघाड़ी के नेता के रूप में शपथ ली। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी की राहें इस मुद्दे पर जुटा हो गई थीं कि मुख्यमंत्री कौन होगा।

शरद पवार के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई में पत्रकारों से कहा, ‘अच्छा है कि उन्होंने इस बात का खुलासा किया है। मेरी अपेक्षा है कि राष्ट्रपति शासन महाराष्ट्र में लगा क्यों? किसके कहने पर लगा? उसके पीछे क्या राजनीति थी? वह ये भी बताएं, क्योंकि फिर उससे आगे की सब कड़ियां जुड़ेंगी और सब बातें आपके सामने आएंगी। इसलिए इस बात का जवाब वही दें, मेरी यही उम्मीद है।’

शरद पवार ने जो कहा वह पूरा सच नहीं है। उनका दावा है कि वह चाहते थे कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता साफ करने के लिए राष्ट्रपति शासन को हटा दिया जाए, लेकिन यह सच नहीं है। अंदर की कहानी थोड़ी अलग है।

23 अक्टूबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए, और बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। अगले दिन यानी कि 24 अक्टूबर को उद्धव ठाकरे ने 2.5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने की मांग रख दी। बीजेपी ने उद्धव की बात नहीं मानी। शरद पवार को लगा महाराष्ट्र में उनकी पार्टी एनसीपी और बीजेपी साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। उन्हें यकीन था कि कांग्रेस कभी भी उद्धव ठाकरे को सपोर्ट नहीं करेगी, और बिना कांग्रेस और शिवसेना के समर्थन के गैर-बीजेपी सरकार बनाना मुमकिन नहीं है। पवार ने देवेंद्र फडणवीस समर्थन देने का प्रस्ताव भेजा और बाकी की बातचीत की जिम्मेदारी अजीत पवार को सौंप दी।

एनसीपी सुप्रीमो का कहना था कि वह सीधे-सीधे खुलकर बीजोपी को सपोर्ट करने की बात नहीं कह सकते, इसीलिए पहले राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। इस दौरान वह पूरे महाराष्ट्र का दौरा करेंगे, माहौल तैयार करेंगे और महाराष्ट्र को स्थिर सरकार की जरूरत की बात कहकर बीजेपी की सरकार को सपोर्ट करने की बात कहेंगे। 2 हफ्ते के बाद राष्ट्रपति शासन खत्म होगा और फिर महाराष्ट्र में एनसीपी के सपोर्ट से देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनेगी और इस सरकार में अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बनेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो शरद पवार उस वक्त अपनी पार्टी को सत्ता में लाने के लिए बीजेपी के साथ आने को तैयार थे। वहीं, दूसरी तरफ उन्होंने उद्धव ठाकरे को मुगालते में रखा हुआ था।

अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जब अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बन गए तो शरद पवार ने पलटी मार दी? उन्होंने बीजेपी का विरोध क्यों किया और उद्धव के सपोर्ट में क्यों खड़े हो गए? लेकिन पहले मैं आपको शिवसेना नेता संजय राउत के एक बयान के बारे में बताता हूं। संजय राउत ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था, और उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी कि महाविकास आघाड़ी की सरकार न आए। राष्ट्रपति शासन हटेगा या नहीं, सबको इसकी चिंता थी। अगर हमने बहुमत साबित कर भी दिया होता, जिस तरह के राज्यपाल राजभवन में थे, उन्होंने बहुमत सिद्ध करने के लिए 5 साल का समय निकल दिया होता। लेकिन सुबह की शपथ की वजह से राष्ट्रपति शासन हटा, और केवल 24 मिनट में राज्यपाल शासन हट गया। इसी वजह से महाविकास आघाड़ी का रास्ता साफ हुआ। यह जो पवार साहब ने बोला है, सत्य है। शरद पवार को समझने के लिए 100 जन्म लेने पड़ेंगे। ऐसा मैंने पहले भी बोला था, जिसकी वजह से मेरे ऊपर कमेंट भी हुआ था।’

संजय राउत की यह बात सही है कि शरद पवार की सियासी चालों को समझने के लिए 100 जन्म भी कम पड़ेंगे। बीजेपी भी पवार के खेल में फंस गई, और उद्धव ठाकरे भी। किसी को समझ नहीं आया कि पवार ने क्या खेल कर दिया। पवार ने जो खुलासा किया वह उनकी अगली चाल है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसकी वजह आपको बताऊंगा।

जब हम 2019 के उन दिनों की टाइमलाइन समझेंगे तो सारी कहानी साफ हो जाएगी। 30 अक्टूबर को संजय राउत ने दावा किया कि अगर बीजेपी, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री नहीं बनाती तो शिवसेना अपने दम पर सरकार बनाएगी। इसके बाद 2 नंवबर 2019 को शरद पवार ने उद्धव ठाकरे से बात की। 4 नवंबर को पवार ने कहा कि जनता ने बीजेपी और शिवसेना को बहुमत दिया है, वे सरकार बनाएं और NCP विपक्ष में बैठेगी। उस वक्त तक महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार थी क्योंकि 9 नबंवर तक विधानसभा का कार्यकाल था।

8 नबंवर तक अजीत पवार की देवेंद्र फडणवीस से सारी बात हो चुकी थी, और इसके बाद फडणवीस ने उसी दिन इस्तीफा दे दिया।

11 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने NDA से अलग होने का ऐलान कर दिया। मेरी जानकारी यह है कि देवेंद्र फडणवीस अगले ही दिन अजीत पवार के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन शरद पवार ने कहा कि वह सीधे बीजेपी को सपोर्ट की बात नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि वह पहले 15 दिन महाराष्ट्र में घूमेंगे, फिर जनता की राय को बहाना बनाकर बीजेपी को सपोर्ट का ऐलान करेंगे। शरद पवार चाहते थे कि तब तक राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।

12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन का ऐलान किया गया, लेकिन अगले 12 दिनों में कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद पवार को नहीं थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शिवसेना को सपोर्ट करने के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया। पवार को तब लगा कि बीजेपी के साथ जाने के बजाय कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने में ज्यादा फायदा है। इससे सरकार पर उनका नियन्त्रण ज्यादा होगा। इसीलिए पवार ने महाविकास आघाड़ी बनाने पर काम शुरू कर दिया।

अब सवाल यह है कि अगर शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था, तो फिर अजीत पवार को देवेंद्र फडणवीस के साथ सुबह-सुबह शपथ लेने क्यों भेजा? क्या वाकई में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति को शासन को हटवाने के लिए यह एक चाल थी, जैसा कि पवार ने दावा किया?

इसकी हकीकत भी आपको बताता हूं। असल में अजीत पवार को शरद पवार ने देवेंद्र फडणवीस के पास नहीं भेजा था, अजीत पवार ने बगावत ही की थी। अजीत पवार तो फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनाने की सारी बात कर चुके थे। लेकिन जब उन्हें यह पता लगा कि शरद पवार का मूड बदल चुका है, और अब वह चुपके से शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं, तो अजीत पवार नाराज हो गए। उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ लेकर फडणवीस के साथ सरकार बनाने का फैसला कर लिया।

रात में ही राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया गया, और 23 नवंबर की सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हट गया, और नई सरकार बन गई। शिवसेना ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 24 नवंबर को रविवार का दिन होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, और 26 नवंबर को फैसला सुनाया। इस बीच शरद पवार ने अजीत पवार के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।

पवार 25 नवंबर को ताज होटल में उद्धव ठाकरे, कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण और तमाम नेताओं से मिले, और महाविकास अघाड़ी का ऐलान कर दिया। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने 26 नबंवर को देवेंद्र फडणवीस को 30 घंटे के अंदर बहुमत साबित करने को कहा था, इसलिए उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं था। फडणवीस ने इस्तीफा दिया। 28 नबंवर को NCP और कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

फडणवीस ने 3 दिन पहले कह दिया था कि शरद पवार की जानकारी में सबकुछ हुआ था। उन्हें पता था कि अजीत पवार उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। जाहिर सी बात है कि शरद पवार कभी भी इस तथ्य को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने पर पार्टी का खेल खराब हो सकता है। इसलिए उन्होंने बुधवार को एक अलग ही ट्रैक पकड़ लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी अब ‘विरोधियों को खत्म करने में लगी है।’ पवार ने शिंदे गुट को असली शिवसेना की मान्यता देने और पार्टी का चुनाव चिह्न देने के चुनाव आयोग के फैसले का जिक्र किया। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने है।

पवार ने कहा, ‘राजनीति में मतभेद आम बात है लेकिन देश में ऐसा कभी नहीं हुआ जब पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न शक्ति का दुरुपयोग करने वालों ने छीन लिया हो। जब कांग्रेस में विभाजन हुआ, तो कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (एस) नाम के दो संगठन सामने आये। मैं कांग्रेस (एस) का अध्यक्ष था और इंदिरा गांधी कांग्रेस (आई) की प्रमुख थीं। उस वक्त मेरे पास कांग्रेस के नाम का इस्तेमाल करने का अधिकार था। आज के परिदृश्य में पार्टी का नाम और उसका चिह्न दूसरों को दे दिया गया है। भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।’

पवार ने कहा, ‘जब भी सत्ता का बहुत ज्यादा दुरुपयोग होता है और किसी दल को दबाने की कोशिश की जाती है तो जनता उस दल के साथ खड़ी हो जाती है। मैंने हाल ही में कई जिलों का दौरा किया और पाया कि हालांकि नेताओं ने शिवसेना छोड़ दी है, लेकिन कट्टर शिव सैनिक अब भी उद्धव ठाकरे के साथ हैं और यह चुनाव में साबित हो जाएगा।’

चुनाव आयोग के आदेश के बारे में पूछे जाने पर पवार ने कहा, ‘निर्णय किसने लिया? क्या यह आयोग था, या कोई और है जो आयोग का मार्गदर्शन कर रहा है? इस तरह के फैसले पहले कभी नहीं किए गए थे। इसके पीछे किसी बड़ी ताकत की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।’ पवार ने सभी विपक्षी दलों से ‘लोकतंत्र को बचाने और बीजेपी से लड़ने’ के लिए हाथ मिलाने की अपील की।

शरद पवार ने ये सारी बातें बुधवार को कांग्रेस के लिए कैंपेन करते हुए कहीं। उनका मैसेज साफ है कि बीजेपी से अब उनका कोई रिश्ता-नाता नहीं बचा। वह बताना चाह रहे हैं कि वह पूरी तरह सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे के साथ हैं। पवार कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी दूसरे सियासी दलों को जिंदा रहने नहीं देंगे, इसलिए सबको साथ आने की जरुरत है। पवार साहब ने यह भी बता दिया कि आज जिनकी हुकूमत है वे चुनाव आयोग समेत सारी संस्थाओं का इस्तेमाल अपने लिए करते हैं।

ये सारी बातें कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों को सुनने में अच्छी लग सकती हैं। यह भी सही है कि आज के जमाने में शरद पवार सबसे अनुभवी और सबसे चतुर नेता हैं। वह चार कदम आगे की सोचकर चलते हैं, और विरोधी दलों के नेता भी उनकी इंटेलिजेंस पर भरोसा करते हैं, उनकी रणनीति का लोहा मानते हैं। पर दिक्कत यह है शरद पवार पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, और विरोधी दलों के नेता इस बात को अच्छी तरह समझते हैं।

इन नेताओं को अंदर ही अंदर लगता है कि वह कब किसके साथ चले जाएंगे, कब किसका साथ छोड़ देंगे, निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। हालांकि शरद पवार फिलहाल दावा कर रहे हैं कि वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं का कहना है कि जब उद्धव के पास न पार्टी रहेगी, न सिंबल रहेगा, तो शरद पवार का साथ भी नहीं रहेगा। शरद पवार का रुख शिवसेना के चुनाव निशान के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के बाद साफ होगा।

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Pawar Politics: An Inside Story

AKBToday I want to share with you the secret about what happened on that fateful night in 2019, when in a midnight drama, BJP and NCP leader Ajit Pawar suddenly joined hands to form a coalition government, after the Maharashtra assembly elections. The government lasted only for three days.

I will try to unravel why Pawar’s relations with BJP soured, whether Pawar ditched the BJP at the last moment and why. On Wednesday, Pawar gave broad indications about those mysterious developments. He indirectly admitted why he backed out from his deal with the BJP. His remarks clearly indicate it was he who ditched Devendra Fadnavis after he was sworn in with his nephew in Raj Bhavan.

For the first time, it has come to light that the political developments that took place that midnight and afterwards, were carefully scripted, by none other than the old, political veteran Sharad Pawar. It was Pawar who wrote this interesting script. Two sentences that Pawar said at a press conference in Pimpri-Chinchwad on Wednesday, have set the cat out of the bag.

Pawar, in his cryptic remarks, said, BJP’s attempt to form a post-midnight government with his nephew and NCP leader Ajit Pawar in 2019 had one benefit, as “it ended President’s Rule in the state”.

Asked by a reporter about BJP leader Devendra Fadnavis’s claim that the formation of the three-day old government with Ajit Pawar had the backing of the NCP supremo, Sharad Pawar replied: “there was an attempt to form a government. One benefit of that exercise was that it helped lift President’s rule in Maharashtra. Everyone saw what happened after that.”

When the reporter pointedly asked whether he was aware about the formation of that government, Sharad Pawar replied: “There is no need to speak about it. I just said, had this sort of exercise not taken place, would President’s Rule have been lifted? And, had the President’s Rule not been lifted, could Uddhav Thackeray take oath as chief minister?” Asked if he was hinting that he knew that Ajit Pawar was going to form a government with BJP, Sharad Pawar replied: “Somebody recently said that only one person (meaning, Sharad Pawar) is responsible for anything that happens in Maharashtra.”

Interesting remarks, surely. Pawar only stopped short of saying that it was he who sent his nephew Ajit Pawar to meet Fadnavis to stage a false drama of ‘revolt’ in NCP, and three days later, it was Pawar who caused the fall of the government. Pawar wanted to indirectly say that it was because of his well-coordinated gambit that BJP government fell, and a new alliance between Shiv Sena, Congress and NCP emerged as Maha Vikas Aghadi. Uddhav Thackeray became chief minister. Pawar was clearly giving a message that he beat BJP in the political game.

I would like to unravel the inside story about developments that took place from October 24 till November 23, 2019. The only missing link is why Sharad Pawar maintained silence for three years and why did he reveal this now. Is there a new game plan at work behind Pawar’s disclosure? Pawar’s remarks at the press conference, though not directly admitting that he was aware of the exercise, were loaded with political meanings.

Pawar was referring to the dramatic events that took place on the intervening night of November 23, 2019, when the Centre lifted President’s Rule at midnight, and Governor Bhagat Singh Koshiyari, at an early dawn ceremony in Raj Bhavan, sworn in Fadnavis as chief minister and Ajit Pawar as deputy chief minister. The government fell after three days and Shiv Sena chief Uddhav Thackeray was later sworn in as chief minister with the backing of NCP and Congress, as leader of Maha Vikas Aghadi. After the 2019 assembly elections, Shiv Sena and BJP fell apart over the issue of who should become the chief minister.

Reacting to Sharad Pawar’s remarks, Devendra Fadnavis told reporters in Mumbai, “If Pawar Saheb has explained about lifting of President’s Rule, he should also explain on whose insistence was it imposed in the first place. Who wanted President’s rule to be imposed, and why was it imposed, are question he must also answer. If he can clarify these points, then all links can be connected and people will come to know the exact timeline of events. Pawar Saheb should reveal more details.”

What Pawar revealed is not the whole truth. His claim that he wanted President’s Rule to be lifted to clear the way for Uddhav Thackeray to be made CM is not true. The inside story is slightly different.

On October 23, 2019, the final results came in Maharashtra assembly elections, and the BJP-Shiv Sena alliance scored a thumping majority. The next day, Uddhav Thackeray staked his claim for chief ministership for a period of two and a half years. BJP did not agree. Pawar felt that his party NCP could ally with BJP and form a government. He was confident that Congress would never support Uddhav Thackeray, and any non-BJP government was impossible without a grouping of three parties, Shiv Sena, Congress and NCP coming together. Pawar sent an offer to Fadnavis, and entrusted negotiations to his nephew Ajit Pawar.

The NCP supremo said, he could not publicly speak about allying with BJP, hence President’s Rule be imposed first. He said, he would tour the entire state and create an atmosphere by telling people that a stable coalition government with BJP was necessary. His proposal was that President’s Rule could be lifted after two weeks, and a coalition government between BJP and NCP could be formed. The deal was that Fadnavis would become CM and Ajit Pawar would be the Deputy CM. In other words, Sharad Pawar was quite willing for a coalition government between both parties. On the other hand, Pawar kept Uddhav Thackeray in suspense.

The question now arises: When Ajit Pawar was made Deputy CM, why did Sharad Pawar make a U-turn? Why did he oppose BJP and opted for Uddhav Thackeray? But, first let me tell what Shiv Sena leader Sanjay Raut said on Wednesday. Sanjay Raut said, “ Centre had imposed President’s Rule, and the rulers in Delhi did not want a Maha Vikas Aghadi government to take shape. Their arrangement was solid. So long as there was President’s Rule, no coalition government could be formed. We were worried. Even if we had proved our majority on the floor, the governor sitting in Raj Bhavan at that time (Bhagat Singh Koshyari) could have dragged on the majority test issue for five years. It was because of the early morning swearing-in that President’s Rule was lifted and the Governor’s rule was removed within 24 minutes. That paved the way for Maha Vikas Aghadi government. Whatever Pawar Saheb has said is true. It will take one hundred births to understand Sharad Pawar’s mind. I said it earlier too, and there were several comments against me at that time.”

Sanjay Raut is right. It will take one hundred births to understand Sharad Pawar’s political games. BJP was caught in Pawar’s game, and Uddhav Thackeray too. Nobody could realize that it was Pawar who had scripted the game. What Pawar revealed on Wednesday could be a step for his next political gambit. In order to understand this, we require a brief flashback.

Let us go through the timeline of those fateful days of 2019. The picture will become clear.

On October 30, Sanjay Raut claimed that if BJP did not agree to make Uddhav the CM, Shiv Sena will form a government on its own.
On November 2, Sharad Pawar spoke to Uddhav Thackery.
On November 4, Pawar said, people have given majority to BJP and Shiv Sena, they should form government, and NCP will sit in the opposition. At that time, the acting government of Fadnavis was there as the outgoing assembly’s tenure was till November 9.
By November 8, all secret negotiations between Fadnavis and Ajit Pawar were complete, and the same day, Fadnavis resigned.
On November 11, Uddhav Thackeray announced Shiv Sena was walking out of BJP-led National Democratic Alliance. According to information that I have, Fadnavis wanted to form a government the next day with Ajit Pawar, but Sharad Pawar put his foot down. He said, he could not publicly support any alliance with BJP, and that he needed 15 days’ time to tour Maharashtra, and after putting up a façade of popular opinion, he would announce that NCP will support BJP. Sharad Pawar wanted imposition of President’s Rule till that time.
On November 12, President’s Rule was imposed, but during twelve days, developments occurred which Pawar did not expect. Congress President Sonia Gandhi gave her green signal for support to Shiv Sena. Pawar then realized that it would be more advantageous for NCP to ally with Shiv Sena and Congress, rather than with BJP. This would give him greater control over the coalition government. Pawar started work on Maha Vikas Aghadi.

The question now arises: If Pawar had made up his mind to accept Uddhav as CM, why did he send his nephew Ajit to be sworn in with Fadnavis early that morning? Was it to ensure removal of President’s Rule, as Pawar claimed on Wednesday?

Let me reveal what happened. Sharad Pawar did not send his nephew to meet Fadnavis. That night, Ajit Pawar had revolted. He had completed all negotiations with Fadnavis on how to run a coalition government. But Ajit Pawar realized that his uncle had now changed his mind, and he wanted a coalition government with Shiv Sena. Ajit Pawar became angry and decided to split NCP and take his camp of legislators to support Fadnavis government.

The claim to form the government was submitted to the Governor at night, and early on November 23 morning, Fadnavis and Ajit Pawar were sworn in as CM and Deputy CM respectively. Hours before that, the Centre revoked President’s Rule in Maharashtra. Shiv Sena rushed to the Supreme Court. Despite November 24 being Sunday, the apex court heard the petition and gave its order on November 26. In the meantime, Sharad Pawar did not take any action against his nephew.

On November 25, Pawar met Uddhav Thackeray, Congress leader Ashok Chavan and other leaders at Taj Hotel and announced the launch of Maha Vikas Aghadi. Since Supreme Court had given 30 hours’ time to Chief Minister Fadnavis to prove his majority (by November 26), there was no way out. Fadnavis resigned. On November 28, Uddhav Thackeray was sworn in as chief minister as head of a coalition government of Shiv Sena, NCP and Congress.

It was Fadnavis who said three days ago that Sharad Pawar knew everything about efforts to form a BJP-NCP government with Ajit Pawar as Deputy CM. Naturally, a seasoned politician like Pawar will never accept this fact in public because it could damage his party’s image. On Wednesday, Pawar took a completely different track. He charged the BJP of “trying to finish off its political rivals”. Pawar mentioned the Shiv Sena recognition and symbol order of Election Commission, now lying before the Supreme Court.

Pawar said: “Difference are common in politics, but it has never happened in India that a party’s name and symbol was snatched away by misusing power. When I broke away from Congress, I was the Congress(S) president and Indira Gandhi was the president of Congress(I). That time, I had the right to use the name of Congress. In today’s scenario, the party’s name and its symbol have been given to others. Such a thing never happened in the history of India…..”

“Whenever there is excessive misuse of power and attempts are made to suppress a party, the public stands by that party…I recently travelled to many districts and found that though leaders have left the Shiv Sena, staunch Shiv Sainiks are still with Uddhav Thackeray and it will be proved in the elections.”

Asked about the Election Commission order, Pawar said: “Who took the decision? Was it the Commission, or someone who is guiding the Commission? Such decisions were never made in the past. The role of a big power behind this cannot be ruled out.” Pawar appealed to all opposition parties to join hands to “save democracy and fight the BJP.”

It is pertinent to note that Sharad Pawar said this while campaigning for a Congress candidate in the byelection. His message is clear: he has no connections now with BJP. He is conveying that he is now with Sonia Gandhi and Uddhav Thackeray. Pawar is alleging that Narendra Modi will not allow other parties to survive, hence the need for opposition unity. Pawar also said, parties in power are misusing all institutions including the Election Commission.

These remarks could sound as sweet music for the ears of Congress and other opposition leaders. It is also a fact that Sharad Pawar is the most experienced and clever political leader today. He always takes four steps ahead of others. Other opposition leaders depend on his intelligence and strategy. But the problem is that Pawar Saheb cannot be fully trusted, and the opposition leaders realize this very well.

These leaders know in their heart of hearts that Pawar Saheb cannot be trusted. Nobody can predict when he will align with or ditch anybody. Pawar Saheb may claim that he is now with Uddhav Thackeray, but those in Eknath Shinde camp say, if Uddhav loses both the party organisation and symbol, even Pawar could ditch him. Pawar’s stand will become clear after the Supreme Court takes a final decision on the Shiv Sena symbol issue.

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शिवसेना: उद्धव, शिंदे को बालासाहेब से सीखना चाहिए

AKB30 एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के खेमों के बीच शिवसेना की प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट्स को लेकर चल रही खींचतान अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। उद्धव खेमा ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था, लेकिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिंदे खेमा को नोटिस भेजा है और दो हफ्ते बाद इस मसले पर आगे सुनवाई होगी।

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते शिंदे खेमा को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी थी और पार्टी का पुराना चुनाव निशान ‘तीर और कमान’ उसे आवंटित किया था। उद्धव खेमा को अब डर है कि चुनाव आयोग के आदेश के तहत शिंदे गुट शिवसेना की प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट्स पर भी कब्जा कर लेगा।

उद्धव ठाकरे को जितनी चिंता पार्टी का नाम और चुनाव निशान जाने की है, उससे कहीं ज्यादा चिंता शिवसेना की प्रॉपर्टी को लेकर है। मंगलवार को उद्धव खेमा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव आयोग के आदेश पर यदि रोक नहीं लगाई जाती है, तो वे शिवसेना की संपत्ति और बैंक खातों समेत सब कुछ अपने कब्जे में ले लेंगे। सिब्बल ने चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस P S नरसिम्हा की बेंच से कहा, ‘वे पहले ही विधानसभा में पार्टी के दफ्तर पर कब्जा कर चुके हैं।’

मंगलवार को संसद परिसर के अंदर शिवसेना के संसदीय कार्यालय पर शिंदे गुट को कब्जा मिल गया। अविभाजित शिवसेना के 19 लोकसभा सांसदों में से 13 शिंदे गुट में चले गए हैं, जबकि ठाकरे गुट के साथ 6 लोकसभा सांसद और 3 राज्यसभा सांसद रह गए हैं।

शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने मंगलवार को मुंबई में हुई एक बैठक में पार्टी से जुड़े फैसले लेने के लिए सभी अधिकार मुख्यमंत्री को दे दिए। शिंदे ने स्पष्ट किया कि पार्टी संपत्ति या फंड पर दावा नहीं करेगी, लेकिन उद्धव खेमा अब पूरी तरह सतर्क हो गया है।

मंगलवार को उद्धव खेमा के नेता संजय राउत ने शिंदे गुट पर बड़ा आरोप लगाया। राउत ने कहा कि शिंदे ने सांसद, विधायक और शाखा प्रमुख खरीदने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। राउत का कहना है कि इसके लिए बाकायदा एक ‘रेट कार्ड’ तैयार किया गया है और पार्टी के नेताओं की ‘खरीद-फरोख्त’ के लिए एजेंट भी नियुक्त किए गए हैं। उनका दावा है कि सांसद को खरीदने के लिए 75 करोड़, विधायक को खरीदने के लिए 50 करोड़, कॉरपोरेटर को खरीदने के लिए 2 करोड़ और शाखा प्रमुख को खरीदने के लिए 50 लाख रुपये की पेशकश की गई थी। राउत का कहना है कि पिछले 5 महीने में नेताओं को खरीदने के लिए 2000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। शिंदे गुट के नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि राउत के आरोपों का कोई मतलब नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘संजय राउत परेशान हैं, हताश हैं, निराश हैं।’

शिवसेना के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के पास फिलहाल 382 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है, जिसमें जनरल फंड 186 करोड़ 84 लाख रुपये है, इन्वेस्टमेंट करीब 172 करोड़ रुपये का है और 3 करोड़ रुपये का फिक्सड डिपॉजिट है।

लेकिन उद्धव ठाकरे के मन में डर है कि चुनाव आयोग के फैसले के बाद अब पार्टी के साथ-साथ पार्टी की प्रॉपर्टी और इसका फंड भी शिंदे गुट के हाथ में चला जाएगा। उद्धव को डर शिवसेना भवन और मातोश्री के जाने का भी है। हालांकि संजय राउत का कहना है कि शिवसेना भवन पार्टी का नहीं है, ट्रस्ट की संपत्ति है। यह बात सही भी है। मुंबई के दादर इलाके में बना आलीशान शिवसेना भवन शिवाय सेवा ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है। बालासाहेब ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी। सेना भवन 1974 में बनना शुरू हुआ और 1977 में बनकर तैयार हुआ। जिस जमीन पर सेना भवन बना है, उसे एक मुस्लिम शख्स उमर भाई ने शिवाय सेवा ट्रस्ट को दी थी।

बालासाहेब ठाकरे कभी इस ट्रस्ट के मेंबर नहीं रहे। इसमें बालासाहेब की पत्नी मीनाताई ठाकरे के अलावा हेमचंद्र गुप्ता, वामन महाडिक, माधव देशपांडे, सुधीर जोशी, लीलाधर डाके, श्याम देशमुख, कुसुम शिर्के और भालचंद्र देसाई जैसे शिवसेना के संस्थापक सदस्य मेंबर थे। इनमें से कुसुम शिर्के, श्याम देशमुख, भालचंद्र देसाई ने इस्तीफा दे दिया जबकि मीनाताई ठाकरे, वामन महाडिक और हेमचंद्र गुप्ता का निधन हो गया।

बाद में शिवाय सेवा ट्रस्ट में उद्धव ठाकरे के करीबी अरविंद सावंत, रविन्द्र मिरलेकर, विशाखा राउत, सुभाष देसाई और दिवाकर राउते को ट्रस्टी बनाया गया। डेढ़ साल पहले तक इस ट्रस्ट में उद्धव ठाकरे का नाम नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका नाम बतौर ट्रस्टी जोड़ दिया गया। इस बीच मुंबई की एक लीगल फर्म ने चैरिटी कमिश्नर को नोटिस भेजा है कि अगर शिवसेना भवन, ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है तो फिर राजनीतिक कार्यों के लिए उसका इस्तेमाल कैसे हो सकता है।

उद्धव को खतरा अब अपने घर पर भी दिख रहा है। उनको लग रहा है कि ‘मातोश्री’ को लेकर भी विवाद हो सकता है, और एकनाथ शिंदे का गुट इस पर भी दावा कर सकता है। बालासाहेब ठाकरे ने 5 मंजिला ‘मातोश्री’ में सिर्फ 2 फ्लोर परिवार के लिए रखे थे। यह बात उन्होंने अपनी वसीयत में भी स्पष्ट की है। ‘मातोश्री’ का ग्राउंड फ्लोर शिवसेना के लिए रखा गया था, जहां एक हॉल है जिसमें शिवसेना के नेताओं की बैठकें होती हैं। दूसरी मंजिल पर भी एक हॉल है, तीसरी मंजिल पर अम्बा माता का मंदिर है, चौथी मंजिल पर आदित्य ठाकरे के युवा सेना का दफ्तर है और पांचवीं मंजिल पर उद्धव ठाकरे का ऑफिस है।

मंगलवार को संजय राउत ने डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और मुंबई पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे ने हाल ही में जेल से छूटे एक गैंगस्टर राजा ठाकुर को उनकी हत्या की सुपारी दी है। फडणवीस ने राउत के बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें नहीं पता कि राउत ने चिट्ठी सुरक्षा पाने के लिए लिखी है या सनसनी फैलाने के लिए। उन्होंने मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया।

सारी लड़ाई शिवसेना पर कब्जे की है, और शिवसेना न तो उद्धव ठाकरे ने बनाई, न एकनाथ शिंदे ने। शिवसेना की प्रॉपर्टी, शिवसेना भवन या मातोश्री न उद्धव ने बनाया, न एकनाथ शिंदे ने। ये सब बालासाहेब ठाकरे ने बनाया। शिवसेना का संगठन, इसकी सारी संपत्ति बालासाहेब ठाकरे के प्रभाव से और शिवसेना के लाखों कार्यकर्ताओं के योगदान से बनी थी।

उद्धव ठाकरे का दावा बालासाहेब की विरासत पर है, और एकनाथ शिंदे का दावा बालासाहेब के विचारों पर, लेकिन तथ्य यही है कि: शिंदे ने उस उद्धव को धोखा दिया जिसे बालासाहेब ने सेना प्रमुख बनाया था, और उद्धव ने कांग्रेस के साथ समझौता करके अपने पिता की विरासत को धोखा दिया। तो ये दोनों बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी कैसे हो सकते हैं?

अपने पूरे राजनीतिक जीवन में बालासाहेब ने कभी मुख्यमंत्री बनने की कोशिश नहीं की। बालासाहेब ठाकरे ने कभी किसी प्रॉपर्टी पर, किसी ट्रस्ट पर अपना अधिकार नहीं जताया। अगर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे बालासाहेब के विचारों पर चलते, बालासाहेब के आदर्शों को मानते तो शिवसेना के 2 टुकड़े होने की नौबत ही न आती। संकट तो शिवसेना के लाखों कार्यकर्ताओं के मन में है, जो बालासाहेब ठाकरे को अपना सुप्रीम लीडर मानते थे। आज वे इस परेशानी में हैं कि जाएं तो कहां जाएं।

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Shiv Sena: Uddhav, Shinde must learn from Balasaheb

AKB30 The ongoing tussle over Shiv Sena properties and acccounts between Eknath Shinde and Uddhav Thackeray factions has reached the Supreme Court, with the Thackeray faction urging the apex court to stay the Election Commission order. The Election Commission had granted recognition to the Shinde faction as the real Shiv Sena and allotted the official party symbol ‘bow and arrow’. The Thackeray faction now fears that the Shinde faction will take over Shiv Sena properties and bank accounts in pursuance of the EC order.

Uddhav Thackeray is more worried about the party properties, after having lost recognition and official election symbol. Uddhav’s senior advocate Kapil Sibal told the apex court on Tuesday that unless the “erroneous” EC order is stayed forthwith, the Shinde faction will take over everything, including the assets of Shiv Sena and its bank accounts. “They have already taken over the Sena political party office in the assembly”, Sibal told the bench of Chief Justice D Y Chandrachud, Justice Krishna Murari and Justice P S Narasimha.

On Tuesday, the Shinde faction took possession of the Shiv Sena parliamentary office inside the Parliament complex. Out of 19 Lok Sabha MPs that the undivided Shiv Sena had, 13 have switched to the Shinde camp, while six LS MPs and three Rajya Sabha MPs are now left with the Thackeray group.

The Shinde-led Shiv Sena national executive, in a meeting in Mumbai on Tuesday, gave all powers to the chief minister to take decisions relating to the party. Shinde clarified that the party would not stake claim to anyone’s property or funds, but the Thackeray faction is now on full alert.

On Tuesday, Thackeray camp leader Sanjay Raut brought a ‘rate card’ alleging that “rates” have been fixed to induct MLA, MPs, corporators and Shakha Pramukhs by the rival camp. He alleged that Shinde has appointed agents for “purchasing” party leaders. Raut said, Rs 75 crore is being offered to each MP, Rs 50 crore to each MLA, Rs two crore to purchase each corporator and Rs 50 lakhs is being offered to buy each Shakha Pramukh. He alleged that nearly Rs 2,000 crore has been spent for buying leaders during the last five months. State minister and Shinde camp leader Deepak Kesarkar rubbished the allegation as baseless. He said, ‘Sanjay Raut appears to be desperate and frustrated’.

Sources in Shiv Sena say, the party has presently nearly Rs 382 crore worth properties, out of which Rs 186.83 crore is in the general fund, Rs 172 crore has been locked in investments and Rs 3 crore in fixed deposits.

Uddhav Thackeray fears all these funds may be taken over by the rival camp. He is also apprehensive about the party headquarters Shiv Sena Bhavan and Matoshri bungalow. Sanjay Raut claims that Shiv Sena Bhavan is a trust property and it does not belong to the party. He is right. Shiv Sena Bhavan, built in Dadar, Mumbai, is the property of Shivaya Seva Trust set up by party founder Balasaheb Thackeray in 1966. Work on the Sena Bhavan began in 1974 and was completed in 1977. The original owner of the plot was a Muslim, Umar Bhai, who donated it to Shivaya Seva Trust.

Balasaheb Thackeray was never a member of this trust. The trust has Balasaheb’s wife Meenatai Thackeray, Hemchandra Gupta, Vaman Mahadik, Madhav Deshpande, Sudhir Joshi, Liladhar Dake, Shyam Deshmukh, Kusum Shirke and Bhalchandra Desai, all founding members of Shiv Sena. Later Kusum Shirke, Shyam Deshmukh and Bhalchandra Desai resigned, Meenatai Thackeray, Vaman Mahadik and Hemchandra Gupta passed away.

Later Uddhav’s close confidantes Arvind Sawant, Ravindra Mirlekar, Visakha Raut, Subhash Desai and Diwakar Raute were made trustees. Till 18 months ago, Uddhav Thackeray was not part of the trust, but after he became the Chief Minister, his name was added as a trustee. Meanwhile, a legal firm in Mumbai has sent a notice to the Commissioner of Charities questioning how a trust property can be used for political purposes.

‘Matoshri’, the five-storeyed building built by Balasaheb Thackeray, may also be embroiled in controversy. Shinde camp may stake claim to ‘Matoshri’. The late Balasaheb Thackeray had kept two out of the five floors of the building for his family. He had made this clear in his will. The ground floor, which includes a hall, has been kept for Shiv Sena meetings, there is a hall on second floor, Ambey Mata temple on third floor, Aditya Thackeray’s Yuva Sena office is on the fourth floor, and on the fifth floor is Uddhav Thackeray’s office.

On Tuesday, Sanjay Raut wrote a letter to Deputy CM Devendra Fadnavis and Mumbai police chief alleging that Eknath Shinde’s son Shrikant Shinde has given a ‘supari’ to murder him to a gangster named Raja Thakur, who has recently come out of jail. Fadnavis immediately reacted saying he did not know whether Raut has written this letter seeking security or to create unnecessary sensation. He promised to get the matter investigated.

The entire issue revolves around who will ultimately take over the Shiv Sena, the party that was neither built by Uddhav Thackeray nor by Eknath Shinde. The properties of Shiv Sena, like Shiv Sena Bhavan and Matoshri, were neither built by Uddhav Thackeray nor by Eknath Shinde. All these properties were created by the late Balasaheb Thackeray. It was he, who over the years, built the organisation, the party and its properties, brick by brick, with the help and contribution of millions of Shiv Sena workers.

Uddhav Thackeray is staking claim on Balasaheb’s legacy, Eknath Shinde is laying claim on Balasaheb’s ideology, but the fact is: it was Shinde who cheated Uddhav Thackeray, who was made Shiv Sena Pramukh by Balasaheb. But Uddhav, on his part, by entering into alliance with Congress, cheated his father’s legacy. How can they claim to be successors of Balasaheb Thackeray?

Throughout his active political life, Balasaheb Thackeray never aspired to become chief minister. He never staked his claim on any property or trust, when he was alive. Had Uddhav and Shinde followed Balasaheb’s principles and ideals, Shiv Sena would not have split. The flames of the current crisis are now raging in the minds of millions of Shiv Sena ‘karyakartas’, who revered Balasaheb as their Supreme Leader. They are now at a loss: Where to go?

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लिव-इन रिलेशनशिप में हों तो अपने माता-पिता को जरूर बताएं

akb full_frame_74900हाल ही में दिल्ली और मुंबई में दो लड़कियों की उनके लिव-इन पार्टनर द्वारा निर्मम हत्या एक नई बुराई को उजागर करती है जिसने हमारे समाज को, और विशेष रूप से हमारी युवा पीढ़ी को अपना शिकार बनाया है। दोनों ही मामलों में हत्यारे उनके बॉयफ्रेंड थे। दोनों लड़कियां लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थीं।

दिल्ली में लड़के ने सुबह एक लड़की के साथ सगाई की, और फिर रात में 5 साल से लिव-इन में रह रही अपने पार्टनर की मोबाइल फोन के डेटा केबल से गला घोंटकर हत्या कर दी। अगली सुबह उसने पहले लड़की की लाश को फ्रिज में डाला, और शाम को दूसरी लड़की के घर बारात लेकर पहुंच गया, और शादी कर ली।

मुंबई में 3 साल से लिव-इन में रह रही लड़की की हत्या भी उसके साथी ने कर दी। हत्यारे ने पहले उसकी हत्या की और फिर लाश को बेड के बॉक्स में छिपा दिया। उसने घर का बाकी सामान बेचा और दूसरे राज्य में भाग गया। दोनों मामलों में हत्या की वजह सिर्फ इतनी थी कि लड़की ने लड़के पर शादी के लिए दबाव बनाया था। दोनों मामलों में लड़की के परिवार वाले रिश्ते से अनजान थे, उन्हें पता ही नहीं था उनकी बेटी किसी लड़के साथ लिव-इन में रह रही है।

दोनों मामलों में लड़कों ने यह सोचकर हत्या की कि पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाएगी। कत्ल के बाद ये लड़के जिस बेफिक्री के साथ अपनी जिंदगी जी रहे थे, वह हैरान करने वाला है।

भरोसे का यह कत्ल समाज की आंखें खोलने वाला है। ये खबरें उन पैरेन्ट्स के लिए दिल दहलाने वाली हैं, जिनकी बेटियां उनसे दूर किसी दूसरे शहर में पढ़ती हैं, दूसरे शहर में नौकरी करती हैं। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में आजकल लिव-इन रिलेशनशिप्स का चलन बढ़ गया है, लेकिन जिस तरह से ऐसे मामलों में बेटियों की जिंदगी खतरे में पड़ रही है, जिस तरह से हत्याएं हो रही हैं, वह सावधान करने वाला है।

निक्की यादव
निक्की यादव हरियाणा के झज्जर की रहने वाली थी। उसके पिता गुरुग्राम में मोटर गैराज चलाते हैं। उसके माता-पिता बच्चों को खूब पढ़ाना लिखाना चाहते थे, और उन्हें एक अच्छी जिंदगी देना चाहते थे, इसलिए निक्की दिल्ली आ गई। सिविल सर्विसेज के लिए कोचिंग करने के दौरान दिल्ली में ही उसकी मुलाकात साहिल से हुई। दोनों ने ग्रेटर नोएडा की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। निक्की इंग्लिश ऑनर्स से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी, जबकि साहिल पढ़ाई बीच में छोड़कर उत्तम नगर में रहने लगा, और निक्की भी उसके साथ लिव-इन में रहने लगी। कमरा किराए पर लेने के लिए साहिल और निक्की ने खुद को पति और पत्नी बताया था। साहिल के घरवाले इस रिश्ते के खिलाफ थे, और उन्होंने 10 फरवरी को उसकी शादी तय कर दी थी।

शादी से एक दिन पहले साहिल ने एक लड़की के साथ सगाई की। निक्की को इसकी जानकारी हुई तो उसने साहिल पर शादी के लिए दबाव बनाया। दोनों में झगड़ा हुआ, और बाद में साहिल ने पूरी प्लानिंग के साथ निक्की को घुमाने के लिए ले जाने का बहाना बनाया। 9 फरवरी की रात दोनों गाड़ी से निकले, पहले निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन गए, और फिर कश्मीरी गेट पहुंचे। इसी दौरान साहिल ने गाड़ी में मोबाइल फोन के डेटा केबल से निक्की की गला घोंटकर हत्या कर दी। उसने निक्की की लाश को गाड़ी की को-ड्राइवर सीट पर सीट बेल्ट लगाकर बैठाया, और उसे इसी तरह 40 किलोमीटर दूर मितरवां गांव मे अपने ढाबे पर ले गया। उसने ढाबे में रखे फ्रिज में निक्की की लाश को डाला, और अपने घर चला गया। अगले दिन 10 फरवरी को वह बारात लेकर दूसरी लड़की के घर पहुंच गया, और शादी कर ली।

किसी को भी साहिल के जघन्य अपराध के बारे में भनक तक नहीं लगी। निक्की को साहिल के साथ अपने रिश्ते पर काफी भरोसा था। उसने दोनों के गोवा जाने के लिए रेल का टिकट बुक कराया था। दिल्ली पुलिस को शक है कि साहिल ने निक्की की हत्या करने के लिए सोचा-समझा प्लान तैयार किया था और बाद में उसकी लाश को ठिकाने लगाने वाला था ताकि वह अपनी पत्नी के साथ एक सामान्य जीवन जी सके।

साहिल के पूरे प्लान पर पानी तब फिरा जब निक्की के पिता ने अपनी बेटी के बारे में पूछने के लिए उसको फोन किया। साहिल ने उसे बताया कि वह देहरादून और मसूरी गई है और अगले दो-तीन दिनों में वापस आ जाएगी। निक्की के पिता को शक हुआ, और उन्होंने 14 फरवरी को दिल्ली पुलिस को बेटी की गुमशुदगी के बारे में बताया। पूछताछ के दौरान, साहिल ने पहले तो गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन तब तक पुलिस ने निक्की के मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन नोट कर ली थी। लगातार पूछताछ के बाद साहिल टूट गया, और निक्की की लाश को बरामद कर लिया गया।

बुधवार की शाम झज्जर में निक्की का अंतिम संस्कार कर दिया गया। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के स्पेशल कमिश्नर रवींद्र यादव ने कहा, अगर साहिल लाश को को ठिकाने लगाने में कामयाब हो जाता तो मामले को सुलझाना मुश्किल हो सकता था। यह मामला श्रद्धा वालकर के केस से काफी मिलता-जुलता है, जिसकी लाश को उसके लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला ने कई महीने पहले टुकड़े-टुकड़े करके दक्षिण दिल्ली के जंगल में फेंक दिया था।

मेघा
मुंबई के पास पालघर में एक हीरा व्यापारी का बेटा हार्दिक शाह पिछले तीन साल से मेघा के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था। कुछ महीने पहले हार्दिक और मेघा नालासोपारा इलाके में किराए पर फ्लैट लेकर लिव-इन में रहने लगे थे।

हार्दिक बेरोजगार था और मेघा नर्स का काम करती थी। घर का सारा खर्च मेघा की सैलरी से ही चलता था। इसी बात को लेकर मेघा का हार्दिक से झगड़ा होता था कि वह कुछ काम क्यों नहीं करता, ऐसे कब तक चलेगा। मेघा, हार्दिक से शादी करने को कहती थी, कोई नौकरी खोजने को कहती थी। इसी बात से नाराज होकर हार्दिक ने मेघा की गला घोंटकर हत्या कर दी, और उसकी लाश को बेड के बॉक्स में छिपा दिया। उसी दौरान हार्दिक ने घर में रखा कूलर, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, सब औने-पौन दामों में बेच दिया। इसके बाद वह मेघा की लाश को बेड के बॉक्स में रखकर फरार हो गया।

जब पड़ोसियों को घर से बदबू आनी शुरू हई तो पुलिस को खबर दी गई। पुलिस जब दरवाजा तोड़कर घर के अंदर घुसी तो मेघा की लाश को बेड के बॉक्स में पाया। मेघा की हत्या करने के बाद हार्दिक भागकर राजस्थान चला गया थे लेकिन फोन की लोकेशन से पुलिस ने उसे ढूंढ़ निकाला। हार्दिक शाह के लिव-इन रिलेशनशिप की जानकारी होने पर उसके माता-पिता ने उसे घर से बेदखल कर दिया था।

पहले श्रद्धा वालकर, और अब दिल्ली की निक्की और मुंबई की मेघा। तीनों अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ लिव-इन में रह रही थीं। लिव-इन रिलेशनशिप में, जहां परिवार के सदस्यों को कोई जानकारी नहीं होती, वहां पार्टनर की जान लेना आसान हो जाता है।

ऐसे कई केस सामने आए हैं जहां महिलाओं को उनके लिव-इन पार्टनर ने मार डाला, लेकिन ये मामले हाइलाइट नहीं हुए। दिल्ली के रोहिणी में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही शादीशुदा महिला पूनम की उसके साथी संजय ने हत्या कर दी थी। दिल्ली में ही तिलक नगर में मनप्रीत ने अपनी 7 साल पुरानी लिव-इन पार्टनर रेखा को मार डाला। गाजियाबाद में रमन नाम के शख्स नेअपनी लिव-इन पार्टनर दिव्या की हत्या कर दी और लाश को जंगल में ठिकाने लगा दिया। इसी तरह के और भी कई मामले हैं।

स्वाभाविक तौर पर आज हर माता पिता के मन में सवाल है कि क्या बेटी को दूसरे शहर में पढ़ने या काम करने के लिए भेजना खतरनाक तो नहीं है। सबको डर है कि उनकी बेटी कहीं किसी लिव-इन रिलेशनशिप में तो नहीं। माता-पिता की यह परेशानी गलत नहीं है, एक भी ऐसा केस होता है तो उनके रातों की नींद उड़ जाती है।

इसलिए लड़कियां हों या लड़के, अगर वे लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, तो इसकी जानकारी उनके माता-पिता को होनी ही चाहिए। अनबन हो जाए, झगड़ा हो जाए तो माता-पिता को बताना चाहिए। यह मानकर नहीं बैठ जाना चाहिए कि प्यार तो अंधा होता है। बदले हुए जमाने में सावधानी बरतने में ही समझदारी है।

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Live-in relationships: Keep your parents informed

AKBThe brutal murders of two girls in Delhi and Mumbai recently by their live-in partners highlight a new evil that has afflicted our society in general and our young generation in particular. In both the cases, the killers were their boyfriends. Both the victims were in a live-in relationship.

In Delhi, the boyfriend attended his betrothal ceremony in the morning, and in the evening, he strangulated his live-in partner to death with a cellphone data cable. By next morning, he hid the body inside a refrigerator in his dhaba, locked it, and in the evening, he led a ‘baraat’ to marry the girl he was betrothed to.

In Mumbai, the victim was living with her boyfriend in a live-in relationship for three years. Her partner killed her and hid the body inside the box of his bed. He sold off all other goods in the flat and fled to another state. In both the cases, the female partners were pressing their boyfriends for marriage. In both cases, the girls’ families did not know that their daughters were in a live-in relationship.

In both cases, the boyfriends murdered their live-in partners hoping they would not be caught by police. It is surprising how these boys were living a normal life after committing heinous murders.

Such horrendous crimes should make us all sit up and think. Both these incidents will surely worry all those parents whose daughters stay away from the family to study or work in other cities. Cases of live-in relationship among young couples is on the rise in India’s metros, and such murders should act as a caution for all of us.

NIKKI YADAV
The girl, Nikki Yadav, hailed from Jhajjar, near Rohtak, Haryana. Her father runs a car garage in Gurugram. Her parents wanted their daughter to study hard and live a good life. While attending coaching classes in Delhi five years ago, she struck a friendship with Sahil Gehlot. Nikki and Sahil joined a private university in Greater Noida. Nikki was doing post-graduation in English Honours, while Sahil left his education and stayed in Uttam Nagar. Nikki and Sahil rented a flat posing as a married couple. Sahil’s parents were against this relationship. They fixed his wedding for February 10.

A day before his wedding, Sahil attended his ring engagement ceremony. Nikki came to know about this and pressed him for marriage. Sahil took her for an outing in his car. On February 9 night, they went in his car first to Nizamuddin railway station, and from there to Kashmere Gate. While travelling, Sahil strangulated Nikki inside the car by using a cellphone cord, tied the body with the front seat belt, and took it to his dhaba in Mitraon village. He hid the body in the fridge, locked it, went home and the next day, he joined the ‘baraat’ and was married to another girl.

Nobody had a whiff about the heinous crime that Sahil had committed. Before her murder, Nikki was confident about her relationship with Sahil, because he had booked a railway ticket for both to visit Goa. Delhi Police investigators suspect that Sahil had prepared a cold-blooded plan to murder Nikki and wanted to dispose of her body later, so that he could live a normal life with his newly married wife.

His plan went awry when Nikki’s father rang up Sahil to ask about his daughter’s whereabouts. Sahil told him that she had gone to Dehradun and Mussoorie and would return in the next two or three days. His father suspected, and informed Delhi Police on February 14. During questioning, Sahil first tried to mislead, but by then, police had noted down the last location of Nikki’s cellphone. Sahil broke down after sustained interrogation, and the body was recovered.

The last rites of Nikki were performed in Jhajjar on Wednesday evening. Special Commissioner, Crime Branch of Delhi Police Ravindra Yadav said, it could have been difficult to crack the case, had Sahil managed to dispose of the body. The case is almost identical to the case of Shradha Walker, whose body was cut to pieces and thrown in a forest by her live-in partner Aftab Poonawala in south Delhi, several months ago.

MEGHA
In Palghar, near Mumbai, Hardik Shah, son of a diamond merchant was in a live-in relationship with Megha for the last three years. Both of them had rented a flat in Nalasopara a few months ago.

Hardik was unemployed while Megha worked as a nurse. This led to frequent quarrels and then Hardik decided to kill her. Megha was insisting on marriage, but Hardik was unwilling. In a fit of anger during a quarrel, Hardik strangulated Megha, hid her body inside the bed box, and started selling off all the articles including cooler, fridge and washing machine, at throwaway prices. Hardik then locked the flat and fled.

When foul odour emanated from the flat, the neighbours informed police and the body was found inside the box of the bed. Police traced Hardik in Rajasthan by checking his cellphone locations. Hardik Shah’s parents had disowned him after hearing about his live-in relationship.

First, Shradha Walker, then Nikki in Delhi, and then Megha in Mumbai. All three were live-in partners with their boyfriends. In live-in relationships, where there are no family members, it becomes easier to kill partners.

There have been several such cases where women have been killed by their live-in partners, but these cases have gone unreported. In Delhi’s Rohini, a married woman Poonam living in a live-in relationship was murdered by her partner Sanjay. In Tilak Nagar, Delhi, one Manpreet murdered his seven-year-old live-in partner Rekha. In Ghaziabad, one Raman killed his live-in partner Divya and threw the body in a forest. There are several other similar cases.

Naturally, parents are worried about their daughters who live away from them in order to pursue education or do jobs. Most of them fear whether their daughters are in a live-in relationship with men or not. It is natural for such parents to be worried.

When sons and daughters decide to opt for live-in relationship, their parents must know. If they have quarrels, they should inform their parents. Times have changed and it would be better for all to remain cautious about such relationships.

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