Rajat Sharma

क्या ज्ञानवापी मस्जिद बनने से पहले मंदिर था ?

AKBसुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ज्ञानवापी का मामला सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर कर दिया। अपने अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वाराणसी के जिला जज सबसे पहले इस मुद्दे पर फैसला सुनाएंगे कि मस्जिद में श्रृंगार गौरी की पूजा करने के लिए पांच हिन्दू महिलाओं ने जो याचिका दी थी, क्या वह ग्रहणयोग्य है या नहीं। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा के लिए 17 मई का उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा।

जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी.एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा-‘इस मामले की सुनवाई कुछ ज्यादा अनुभवी और परिपक्व हाथों से होनी चाहिए’। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम ट्रायल जज को कोई दोष नहीं दे रहे हैं, लेकिन यदि एक अधिक अनुभवी और परिपक्व हाथ इस केस को संभालता है तो इससे सभी पक्षों को फायदा होगा।’

उच्चतम न्यायालय ने जिलाधिकारी को नमाजियों के लिए वजू का इंतजाम कराने और नमाज को जारी रखने की इजाजत देने का आदेश दिया। इसके साथ ही जिला अदालत को मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर तेजी से सुनवाई करने का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा बल वजूखाना में पाए गए शिवलिंग जैसे काले पत्थर की सुरक्षा करते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश अगले आठ सप्ताह तक प्रभावी रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, यह उसके लिए ‘देश में एकता की भावना को बनाए रखने का एक साझा मिशन है। एक बार आयोग की रिपोर्ट आ जाने के बाद उससे कुछ गिनी-चुनी चीजें लीक नहीं हो सकती। प्रेस को ये चीजें लीक न करें। केवल जज ही रिपोर्ट को खोल कर पढें।’ पीठ ने यह भी कहा, ‘हम एक जिला जज को गाइड नहीं कर सकते। यह मामला उन्हें संभालने दें। उनके पास पर्याप्त अनुभव है। हम उन्हें यह आदेश नहीं दे सकते कि वे इस केस को इस तरह या उस तरह सुनें। ‘ सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद समिति के वकील हुजैफा अहमदी ने अदालत को बताया कि शुरू से (सिविल कोर्ट द्वारा) पारित सभी आदेशों से समाज को एक बड़ा नुकसान हो सकता है। यह संसद द्वारा पारित कानून के बावजूद हो रहा है।’

हिंदू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कहा, ‘आज की विशेष अनुमति याचिका निष्प्रभावी है क्योंकि तीनों आदेशों का पहले ही पालन किया जा चुका है। अब ज्ञानवापी मस्जिद का धार्मिक चरित्र तय करना होगा। आयोग की रिपोर्ट अदालत को देखना होगा।’ बेंच ने उनके इस तर्क का जवाब देते हुए कहाः ‘हमने आपकी बात मान ली, इसलिए हम इसे जिला जज को सौंप रहे हैं।‘

ज्ञानवापी मस्जिद में शुक्रवार को जुमे की नमाज शांतिपूर्वक अदा की गई। बड़ी संख्या में नमाजी ज्ञानवापी मस्जिद पहुंचे। अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी ने कुछ प्रतिबंधों की वजह से सीमित संख्या में लोगों से आने की अपील की थी लेकिन नमाजियों की एक बड़ी भीड़ मस्जिद में जमा हो गई। विश्वनाथ धाम के गेट नंबर 4 के बंद होने के कारण कई नमाजियों को वापस लौटना पड़ा। बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई थी। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी अपील में कहा था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुरक्षा बलों ने वजूखाना सील कर दिया है, इसलिए नमाजियों से बहुत कम संख्या में आने की अपील की जाएगी। जिला प्रशासन द्वारा वजूखाना और शौचालय दोनों को सील कर दिया गया है।

वहीं निचली अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों द्वारा गुरुवार को सर्वे रिपोर्ट पेश की गई जो इंगित करती है कि जहां ज्ञानवापी मस्जिद है वहां एक शिव मंदिर हो सकता है। हिंदू पक्ष का दावा है कि उस जगह पर 450 साल पुराना बाबा विश्वनाथ मंदिर मौजूद था।

हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर के कुछ हिस्से ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर छिपे हुए हैं। इस परिसर में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं को दर्शाने वाले कई धार्मिक चिन्ह पाए गए हैं। सर्वे टीम को ज्ञानवापी परिसर जो आकृतियां मिलीं उनमें त्रिशूल, डमरू, कमल के फूल, के साथ ही दीवारों पर शंख और स्वास्तिक, घंटियां और पान के पत्ते के निशान हैं। अनुष्ठान के लिए मंडप प्राचीन मंदिर के अस्तित्व की तरफ इशारा करते हैं।

तीन सीलबंद बक्सों में 15 पेज की रिपोर्ट के साथ 32 जीबी की वीडियो फुटेज, नक्शों का पुलिंदा और तस्वीरें सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर को सौंपी गई हैं। सोमवार (23 मई) को जब अदालत इस मामले की सुनवाई करेगी तब आधिकारिक तौर पर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा।

हिंदू पक्ष का दावा है कि तीन दिनों के सर्वे के दौरान मस्जिद के आंतरिक हिस्से में कई ऐसी चीजें पाई गईं जो पुराने हिंदू मंदिर के वास्तुकला के कुछ हिस्सों को दर्शाती हैं। हिंदू पक्ष ने वजूखाने में मिले काले पत्थर को एक पुराना शिवलिंग होने का दावा किया । यह बेलनाकार संरचना वजूखाने के बीच में मिली है। वहीं मस्जिद प्रबंधन का दावा है कि यह शिवलिंग नहीं बल्कि फव्वारा है। जब वजूखाने का पानी निकला गया तो यह शिवलिंग जैसी संचरना नजर आ रही थी। सूत्रों के मुताबिक सर्वे टीम में शामिल ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन के मुंशी एजाज मोहम्मद से जब स्पेशल कमिश्नर ने इस तथाकथित फव्वारे के बारे में पूछा, तब उन्होंने जवाब दिया कि फव्वारा लंबे समय से काम नहीं कर रहा है, लेकिन उन्हें यह याद नहीं है कि किस वर्ष इसने काम करना बंद कर दिया। फिर कहा 20 साल से बंद है और बाद में बोले कि 12 साल से बंद है। सूत्रों के मुताबिक जब हिंदू पक्ष के वकीलों ने मस्जिद कमेटी के मुंशी से कहा कि वो इस फव्वारे को चलाकर दिखाएं तो उन्होंने इंकार कर दिया।

दोनों पक्ष भले ही अपने-अपने दावे कर रहे हों, लेकिन अब तक जो हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों के प्रमाण मिले हैं, उनसे साफ पता चलता है कि जहां मस्जिद है, वहां 450 साल पुराना बाबा विश्वनाथ मंदिर था।

जिस समय सर्वे चल रहा था उस समय ज्ञानवापी परिसर के अंदर कुल 52 लोग थे, जिनमें दोनों पक्षों के वकील भी शामिल थे। इस सर्वे रिपोर्ट को एकतरफा नहीं कहा जा सकता। उत्तरी भारत के अधिकांश मंदिरों में शंख के आकार के शिखर हैं। इस वक्त जो काशी विश्वनाथ मंदिर बना है उसका शिखर भी शंकुआकार के ही है। सबसे अहम बात यह है कि शंख के आकार की संरचना न केवल उत्तरी गुंबद के अंदर बल्कि तीनों गुंबदों में है। इतना ही नहीं इस शिखरनुमा आकृति में फूल, पान के पत्ते और कमल के फूल की आकृतियां भी मिली हैं।

इंडिया टीवी संवाददाता भास्कर मिश्रा ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एस.एम. यासीन से ज्ञानवापी परिसर में मिले स्वास्तिक, कमल, श्लोक जैसे हिंदू प्रतीकों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा ज्ञानवापी में मस्जिद वहां उपलब्ध स्थानीय मैटेरियल से बनाई गई थी और कारीगर भी स्थानीय थे। उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि जब मस्जिद बन रही होगी तब हिंदू प्रतीकों को जोड़ा गया होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वास्तिक के निशान से कोई मस्जिद, मंदिर नहीं बन जाती’।

अब सवाल यह है कि दुनिया की किस मस्जिद में स्वास्तिक के निशान हैं ? किस मस्जिद में कमल के फूल, त्रिशूल और घंटियां खुदी हैं। किस मुस्लिम घर की दीवारों पर राम का नाम खुदा है ? अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के वकील कह रहे हैं कि चूंकि कारीगर हिन्दुस्तान के थे इसलिए औरंगजेब के उस जमाने में मस्जिद की दीवारों पर त्रिशूल, कमल, स्वास्तिक और घंटियां बना दी। मुझे तो हैरानी इस बात की है कि उन्होंने ये नहीं कहा कि गुंबदों से बारिश का पानी नीचे न टपके इसलिए गुंबदों के नीचे मंदिर के शिखर बना दिए।

जब सर्वे रिपोर्ट का विवरण मीडिया के माध्यम से सामने आया तो एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक अलग तर्क के साथ सामने आए। उन्होंने सर्वे रिपोर्ट तैयार करने वाली अदालत द्वारा नियुक्त कमिश्नरों पर सवाल उठा दिया। ओवैसी ने कि कहा रिपोर्ट बनाने वाले ही निष्पक्ष नहीं थे। मुस्लिम पक्ष ने जिन्हें कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने पर आपत्ति जताई थी और जिनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे, लोअर कोर्ट ने उन्हीं को मुंसिफ बना दिया तो ऐसी ही रिपोर्ट आएगी। आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं?

ओवैसी की ये बात सही है कि फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सबूतों के आधार पर करेगा ही फैसला होगा। लेकिन ये बात गलत है कि अगर रिपोर्ट आपके मनमाफिक नहीं है तो सर्वे करने वालों की ईमानदारी, निष्पक्षता और निष्ठा पर ही सवाल उठा दिए जाएं। ये निचली अदालत की तौहीन है। ओवैसी ने तो एक लाइन में कह दिया कि कोर्ट कमिश्नर निष्पक्ष नहीं थे लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि मुस्लिम पक्ष इसी तरह कोर्ट में हर बार कोर्ट कमिश्रर का विरोध करके मामले को लटकाता रहा है। मुस्लिम पक्ष की मांग पर पहले भी दो बार कोर्ट कमिश्नर बदले जा चुके थे। इसके बाद भी अगर कोई निचली अदालत की निष्पक्षता पर सवाल उठाए तो मुझे लगता है कि उसकी नीयत में खोट है।

दूसरी बात, ओवैसी ये कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस केस को खारिज कर दे। इसे बैलेंस करने की जरूरत नहीं है। वो कह रहे हैं कि सबको किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। लेकिन ओवैसी उन मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं को नहीं समझाते जो खुद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को तैयार नहीं है। जो अभी से धमकी दे रहे हैं। रज़ा अकेडमी के सचिव मौलाना खलील उर रहमान ने धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘मुसलमानों के सब्र का बांध टूट रहा है, उनसे एक-एक कर मस्जिदें छीनी जा रही हैं। बीजेपी एक बार में ही बता दे कि उसे कौन-कौन सी मस्जिदें चाहिए जिससे मुसलमानों को सड़कों पर उतर आने में आसानी हो।’ समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने कहा, ‘ज्ञानवापी मस्जिद को बचाने के लिए मुसलमान अपनी जान की कुर्बानी देंगे।’ एक अन्य मौलवी मुफ्ती सलमान अज़हरी ने कहा, बर्क साहब को अपना बलिदान देने के लिए पहले आना चाहिए, क्योंकि मुसलमानों ने उन्हें वोट दिया था। उन्होंने यह भी कहा, “हमने बाबरी मस्जिद खो दी है, हम किसी भी कीमत पर ज्ञानवापी मस्जिद को छीनने नहीं देंगे।”

मुझे लगता है कि मामला कोर्ट कचहरी से नहीं बिगड़ता, मामला बयानबाजी से बिगड़ता है। कोर्ट के आदेश पर सर्वे हुआ और सिर्फ कोर्ट कमिश्नर्स ने सर्वे नहीं किया। इसमें दोनों पक्षों के वकील और पैरोकार थे। पचास से ज्यादा लोगों की मौजदूगी में सर्वे हुआ। इसलिए कोई ये तो नहीं कह सकता कि सर्वे करने वाले झूठ लिख देंगे।

हैरानी की बात ये है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कह रहे हैं कि हमारे यहां तो कोई कहीं भी पत्थर रख दे, टीका लगा दे, झंडा लगा दे वहीं मंदिर हो जाता है। अगर अखिलेश यादव की यह बात मान भी ली जाए कि कहीं भी पत्थर और लाल झंडा लगा दो तो वो मंदिर हो जाता है तो उन्हें ये बताना पड़ेगा कि जहां शिवलिंग, त्रिशूल, डमरू और स्वास्तिक के निशान मिले वो शिवजी का मंदिर होगा या नहीं। अगर शफीकुर रहमान बर्क ये कहते हैं कि हम इबादतगाह की हिफाजत करेंगे तो वो हिंदुओं को ये कहने से कैसे रोक सकते हैं कि वो अपने मंदिरों की सुरक्षा करेंगे।

अगर मौलाना रहमान कहते हैं कि मुसलमानों से एक-एक करके मस्जिद छीनी जा रही है तो उन्हें ये बताना होगा किसने मस्जिद छीनी। कौन सी मस्जिद छीनी। फिर हिंदू समाज के लोग उनसे पूछेंगे कि जब कश्मीर में मंदिर तोड़े गए तो ये लोग कहां थे ? ये तो ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ा और उनकी जगह पर मस्जिदें बनाई। इसीलिए ये विवाद बार-बार खड़े होते हैं। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी इसी तरह का विवाद है।

अब जबकि मामला वाराणसी की जिला अदालत में है, सबकी निगाहें इस बात पर रहेंगी कि ज्ञानवापी मामले में जिला जज आगे क्या कदम उठाते हैं।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.