Rajat Sharma

द कश्मीर फाइल्स: लैपिड की टिप्पणी भद्दी है, फिल्म नहीं

AKBफिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बारे में एक इज़रायली फिल्म निर्माता नेदाव लैपिड द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणी पर भारत में कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली । इज़रायल के राजदूत को माफी मांगनी पड़ी। इस घटना ने एक बार फिर उन कश्मीरी पंडितों के ज़ख्मों को कुरेद दिया जिन्हें नब्बे के दशक में घाटी से पलायन का शिकार होना पड़ा था।

गोवा में हाल ही में समाप्त हुए अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में लैपिड ने जूरी प्रमुख के तौर पर समापन समारोह में कहा, ‘ इस अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में 15 फिल्में थीं। इनमें 14 फिल्मों में सिनेमाई गुण थे और उनपर ज्वलंत चर्चाएं हुईं । 15 वीं फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को देखकर सदमा लगा। हम परेशान हो गए। हमें ये महसूस हुआ कि ये एक भद्दी और प्रोपेगैंडा फिल्म है और इसे ऐसे प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल में मुक़ाबला करने के लिए नहीं भेजा जाना चाहिए था।’

इस फिल्म के प्रमुख अभिनेता अनुपम खेर, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और कई शीर्ष हस्तियों ने इस टिप्पणी के लिए नेदाव लैपिड की आलोचना की। भारत में इज़रायल के राजदूत नौर गिलोन को एक बयान जारी करना पड़ा जो एक माफीनामा जैसा था।

इज़रायल के राजदूत ने कहा, ‘मैं कोई फिल्म विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन मुझे पता है कि ऐतिहासिक घटनाओं का गहराई से अध्ययन करने से पहले उनके बारे में बात करना असंवेदनशीलता और ढीठता को दर्शाता है। यह घटना भारत के लिए एक जख्म है, इसके पीड़ित लोग अभी-भी आसपास हैं। वे आज भी इसकी कीमत चुका रहे हैं।’ इज़रायल के राजदूत ने कहा, ‘लैपिड को ‘शर्मिंदा’ होना चाहिए क्योंकि उन्होंने फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में जज के पैनल की अध्यक्षता करने के भारत के निमंत्रण का सबसे अधिक दुरुपयोग किया।’ राजदूत ने कहा-‘भारत और इज़रायल के बीच दोस्ती बहुत मजबूत है और लैपिड की टिप्पणी उन रिश्तों पर कोई असर नहीं डालेगी।’

मंगलवार को दिल्‍ली में अनुपम खेर के साथ एक संयुक्‍त संवाददाता सम्‍मेलन में इज़रायल के महावाणिज्‍यदूत कोब्‍बी शोशानी ने कहा, ‘फिल्‍म में कश्‍मीरी पंडितों के बारे में बहुत कड़ा संदेश दिया गया है और यह प्रोपेगंडा फिल्‍म नहीं है।’ द कश्मीर फाइल्स’ के मुख्य अभिनेता अनुपम खेर ने कहा, यह ‘एक बीमार दिमाग और मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति’ का बयान प्रतीत होता है।’ महावाणिज्यदूत के माफी मांगने के बाद अनुपम खेर ने कहा, ‘मेरा ग़ुस्सा अब शांत हो गया है। लैपिड ने जिस तरह से यह आपत्तिजनक बयान दिया वह भारत को बदनाम करने और आईएफएफआई की कामयाबी पर कालिख मलने की सोची-समझी साज़िश है।’

आईएफएफआई जूरी के सदस्य और भारतीय फिल्म निर्माता सुदीप्तो सेन ने ट्विटर पर एक बयान जारी किया: ‘जूरी के अध्यक्ष नेदाव लैपिड ने फिल्म द कश्मीर फाइल्स के बारे में जो कुछ भी कहा है … पूरी तरह से उनकी निजी राय थी।’

फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने कहा, ‘लैपिड ने घाटी में अमानवीय प्रताड़ना झेलने वाले सात लाख कश्मीरी पंडितों की भावनाओं का मजाक उड़ाया है।‘ पटकथा लेखक और गीतकार मनोज मुंतशिर ने कहा, ‘इस तरह की टिप्पणी इज़रायली फिल्म निर्माता की मूर्खता को प्रदर्शित करती है।’

वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने ट्वीट किया-‘( जो भी लैपिड ने कहा) ज़ाहिर तौर पर यह पूरी दुनिया के लिए साफ है…. बात यह है कि आप फिल्म समारोह में फिल्मों को जज करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। ..जब वे फिल्मों को जज करते हैं तो अब आप पागल हो रहे हैं।’

शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट किया, ‘कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय जैसे संवेदनशील मुद्दे को प्रचार की वेदी पर कुर्बान कर दिया गया। … उन्होंने (नेदाव लैपिड) जो टिप्पणियां कीं वे इस बारे में थीं कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ में दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के विषय को जिस तरह से दिखाया गया उसने इसे एक प्रोपेगेंडा फिल्म बना दिया है, उन्होंने जूरी के अन्य सदस्यों की असहजता का भी जिक्र किया।’ शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि फिल्म निर्माता ने इस फिल्म को बनाकर पैसा कमाया लेकिन कश्मीरी पंडितों की पीड़ा अभी खत्म नहीं हुई है।

‘द कश्मीर फाइल्स’ के फिल्म निर्देशक हैं विवेक अग्निहोत्री । इस फिल्म में 1990 में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी है, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद अपने चरम पर था। अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती ने इसमें मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं।

अनुपम खेर ने गुस्से में लैपिड के बारे में कहा, ‘कुछ लोग हैं जो सच सुनना या देखना नहीं चाहते । वे इस फिल्म को केवल इसलिए निशाना बना रहे हैं क्योंकि यह कश्मीर घाटी की कड़वी सच्चाई को दिखाती है।

नेदाव लैपिड के बयान पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्देश विवेक अग्निहोत्री ने भी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा कि नेदाव लैपिड तो आतंकवादियों के नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे हैं। कश्मीर फाइल्स का एक-एक फ्रेम सच्चा है। अग्निहोत्री ने कहा कि अगर कोई भी व्यक्ति इस फिल्म की एक भी बात को झूठ साबित कर दे, तो वो फिल्में बनाना छोड़ देंगे।

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा, ‘नेदाव लैपिड ने फिल्म समारोह में अपना एजेंडा चलाने की कोशिश की, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था।’ असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा, “लैपिड को ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बारे में इस तरह की टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। उनकी टिप्पणी को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। जूरी के सदस्य भगवान नहीं होते।’

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कश्मीर फाइल्स एक प्रोपेगैंडा फिल्म है ? मैं उन कश्मीरी पंडितों के परिवारों से मिला हूं जिन्होंने अपने करीबियों को खून में लथपथ देखा है। जिन्हें आतंकवादियों की गोलियों ने अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जिन कश्मीरी पंडितों ने दहशत का वो मंजर देखा है वो कहते हैं कि कश्मीर फाइल्स ने उनके दर्द को, उनपर हुए जुल्म को, एकदम सही रूप में दिखाया है। मैंने उन परिवारों को फिल्म देखने के बाद अपने पुराने दिन याद करके रोते-बिलखते देखा है। तो फिर ये फिल्म प्रोपेगैंडा कैसे हो सकती है ? ये फिल्म भद्दी कैसे हो सकती है?

इसलिए ये बात सही है कि लैपिड ने कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनपर हुए अत्याचार का मजाक उड़ाया है।असल में तो जो लैपिड ने कहा वो भद्दा और प्रोपेगैंडा है। वो एक बेहूदा मजाक है।

अब सवाल ये है कि लैपिड जैसे शख्स को फिल्म समारोह जूरी का अध्यक्ष किसने बनाया ? क्या जूरी का हेड तय करने से पहले लैपिड के बैकग्राउंड को चेक नहीं किया गया था? ये इज़रायली फिल्म निर्माता पहले भी इस तरह के बयान दे चुके हैं। उनका करियर काफी विवादास्पद रहा है।

मैंने इज़रायल के कुछ लोगों से लैपिड के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमारे मुल्क में इस आदमी (लैपिड) को कोई कुछ नहीं समझता। उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई और कहा कि पता नहीं आप लोग उसे इतनी अहमियत क्यों दे रहे हैं।

मुझे लगता है कि ‘द कश्मीरी फाइल्स’ ने एक कड़वा सच सामने रखा है, कश्मीरी पंडितों के दर्द की सच्ची तस्वीर लोगों के सामने रखी है। कोई कुछ भी कहे, ये फिल्म याद दिलाती है कि कश्मीरी पंडितों ने कितनी तकलीफों का सामना किया है।

मैं कश्मीरी पंडितों का बहुत सम्मान करता हूं। बेघर होने और अत्याचारों का सामना करने के बाद भी उन्होंने कभी दूसरों के आगे हाथ नहीं फैलाया। वे खुद्दारी से सिर उठाकर जीते हैं। वे वापस अपने घरों को लौटना चाहते हैं, कश्मीर की मिट्टी को माथे से लगाना चाहते हैं।ये फिल्म याद दिलाती है कि कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में वापस भेजना, वहां बसाना और उन्हें एक सुरक्षित ज़िंदगी देना, इस देश की जिम्मेदारी है। हमें इसे पूरा करना चाहिए।

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