Rajat Sharma

धार्मिक स्थलों को पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित करना चाहते हैं मोदी

AKBशुक्रवार को टीवी पर लाखों लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हुए देखा। माथे पर चंदन का लेप लगाए हुए मोदी ‘नमामि शंभो’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का जाप करते हुए दिखाई दिए।

बद्रीनाथ के प्रसिद्ध मंदिर में मोदी ने सैकड़ों भक्तों के सामने ‘जय बद्री विशाल’ का जयकारा लगाया। दोनों मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि कैसे बीते 7 दशकों के दौरान पिछली सरकारों ने भारत के सदियों पुराने गौरवशाली विरासत की अनदेखी और उपेक्षा की।

वह उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-चीन सीमा पर स्थित आखिरी गांव माणा में एक सभा को संबोधित कर रहे थे। मोदी ने केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे प्रोजेक्ट और बद्रीनाथ के विकास के लिए एक मेगा प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी, जिसकी लागत 3,400 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है।

मोदी ने कहा, ‘आज बाबा केदार और बद्री विशाल जी के दर्शन करके, उनके आशीर्वाद प्राप्त करके जीवन धन्य हो गया, मन प्रसन्न हो गया, और ये पल मेरे लिए चिरंजीव हो गए। माणा गांव, भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है। लेकिन जैसे हमारे मुख्यमंत्री जी ने इच्छा प्रकट की अब तो मेरे लिए भी सीमा पर बसा हर गांव देश का पहला गांव ही है। सीमा पर बसे आप जैसे सभी मेरे साथी देश के सशक्त प्रहरी हैं।’

मोदी ने बताया कि किस तरह पिछली सरकारों ने ‘गुलामी की मानसिकता’ के कारण भारत के ऐतिहासिक मंदिरों की अनदेखी की। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर मैंने लाल किले से एक आह्वान किया है। ये आह्वान है, गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति का। आजादी के इतने वर्षों के बाद, आखिरकार मुझे ये क्यों कहना पड़ा? क्या जरूरत पड़ी यह कहने की? ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे देश को गुलामी की मानसिकता ने ऐसा जकड़ा हुआ है कि प्रगति का हर कार्य कुछ लोगों को अपराध की तरह लगता है। यहां तो गुलामी के तराजू से प्रगति के काम को तोला जाता है। इसलिए लंबे समय तक हमारे यहां, अपने आस्था स्थलों के विकास को लेकर एक नफरत का भाव रहा।’

पीएम ने कहा, ‘विदेशों में वहां की संस्कृति से जुड़े स्थानों की ये लोग तारीफ करते-करते नहीं थकते, लेकिन भारत में इस प्रकार के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता था। इसकी वजह एक ही थी- अपनी संस्कृति को लेकर हीन भावना, अपने आस्था स्थलों पर अविश्वास, अपनी विरासत से विद्वेष। और ये हमारे समाज में आज बढ़ा हो, ऐसा नहीं है। आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण के समय क्या हुआ था, वो हम सब जानते हैं। इसके बाद राम मंदिर के निर्माण के समय के इतिहास से भी हम भली-भांति परिचित हैं। गुलामी की ऐसी मानसिकता ने हमारे पूजनीय पवित्र आस्था स्थलों को जर्जर स्थिति में ला दिया था।’

मोदी ने कहा, ‘सैकड़ों वर्षों से मौसम की मार सहते आ रहे पत्थर, मंदिर स्थल, पूजा स्थल के जाने के मार्ग, वहां पर पानी की व्यवस्था हो तो उसकी तबाही, सब कुछ तबाह होकर के रख दिया गया था। आप याद करिए साथियों, दशकों तक हमारे आध्यात्मिक केंद्रों की स्थिति ऐसी रही वहां की यात्रा जीवन की सबसे कठिन यात्रा बन जाती थी। जिसके प्रति कोटि-कोटि लोगों की श्रद्धा हो, हजारों साल से श्रद्धा हो, जीवन का एक सपना हो कि उस धाम में जाकर के मत्था टेककर आएंगे, लेकिन सरकारें ऐसी रहीं कि अपने ही नागरिकों को वहां तक जाने की सुविधा देना उनको जरूरी नहीं लगा। पता नहीं कौन से गुलामी की मानसिकता ने उनको जकड़कर रखा था। ये अन्याय था कि नहीं था भाइयों? ये अन्याय था कि नहीं था? ये जवाब आपका नहीं है, ये जवाब 130 करोड़ देशवासियों का है और आपके इन सवालों का जवाब देने के लिए ईश्वर ने मुझे ये काम दिया है।’

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस उपेक्षा में लाखों-करोड़ों जनभावनाओं के अपमान का भाव छिपा था। इसके पीछे पिछली सरकारों का निहित स्वार्थ था। लेकिन भाइयों और बहनों, ये लोग हजारों वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति की शक्ति को समझ नहीं पाए। वो ये भूल गए कि आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि हमारे लिए ये प्राणशक्ति है, प्राणवायु की तरह हैं। वो हमारे लिए ऐसे शक्तिपुंज हैं, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें जीवंत बनाए रखते हैं।’

मोदी ने कहा, ‘उनकी घोर उपेक्षा के बावजूद ना तो हमारे आध्यात्मिक केंद्रों का महत्व कम हुआ, ना ही उन्हें लेकर हमारे समर्पण भाव में कोई कमी आई। और आज देखिए, काशी, उज्जैन, अयोध्या अनगिनत ऐसे श्रद्धा के केंद्र अपने गौरव को पुन: प्राप्त कर रहे हैं। केदारनाथ, बद्रीनाथ, हेमकुंड साहेब को भी श्रद्धा को संभालते हुए आधुनिकता के साथ सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। अयोध्या में इतना भव्य राममंदिर बन रहा है। गुजरात के पावागढ़ में मां कालिका के मंदिर से लेकर देवी विंध्यांचल के कॉरिडोर तक, भारत अपने सांस्कृतिक उत्थान का आह्वान कर रहा है। आस्था के इन केंद्रों तक पहुंचना अब हर श्रद्धालु के लिए सुगम और सरल हो रहा है।’

मैं आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी करीब-करीब हर साल केदारनाथ गए। 2013 में गुजरात के सीएम के तौर पर केदारनाथ की त्रासदी के बाद वह वहां गए और उन्होंने केदारनाथ धाम के पुनर्निमाण का संकल्प लिया, और अब वह संकल्प पूरा हो चुका है। मोदी ने केदारनाथ की पूरी तस्वीर बदल दी।

मोदी केदारनाथ में हो रहे कामों पर खुद नजर रखते हैं। मोदी ने खुद ही ये बात बताई थी कि केदारनाथा में चल रहे काम की प्रगति पर ड्रोन के जरिए नजर रखते हैं। शुक्रवार को भी मोदी ने केदारनाथ में इंजीनियरों और कर्मचारियों से मुलाकात की। पिछले साल मोदी ने केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पर उनकी 12 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था।

शुक्रवार को बाबा केदारनाथ का दर्शन करने के बाद मोदी शंकराचार्य को प्रणाम करने पहुंचे। आदि शंकराचार्य की प्रतिमा भी अब केदारनाथ धाम का एक बड़ा आकर्षण बन चुकी है। 2017 में मोदी ने ही केदारनाथ में आदिशंकर की प्रतिमा की स्थापना का संकल्प लिया था और 2021 में इसे पूरा कर दिया। 2013 में आई आपदा के बाद केदारनाथ पूरी तरह बिखर गया था। आसपास के सैंकड़ों गांव प्रभावित हुए थे, गांव के गांव गायब हो गए थे, सड़कों का नामो-निशान मिट गया था। सिर्फ बाबा केदारनाथ का मंदिर खड़ा रहा, जिसे मंदिर के बाहर की एक चट्टान ने नदी की लहरों के उफान को रोककर चमत्कारिक रूप से बचा लिया। मोदी ने न सिर्फ केदारनाथ थाम को उसकी भव्यता प्रदान की, बल्कि इस पूरे इलाके का कायाकल्प कर दिया।

मोदी शुक्रवार को प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मजदूरों के बीच एक कुर्सी पर बैठ गए और उनमें से हर एक से बात की। उन्होंने उनसे पूछा कि कौन किस राज्य से आया है, किसी की कोई समस्या तो नहीं है। सब जानने-समझने के बाद उन्होंने मजदूरों को हिदायतें भी दीं कि सेहत का ख्याल रखना, गुनगुना पानी पीना और गर्म कपड़े पहनना क्योंकि मौसम कठिन परीक्षा लेता है। मोदी जब मजदूरों से बात कर रहे थे तो वहां मौजूद लोग एकटक मोदी को देख रहे थे। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि देश का प्रधानमंत्री इस तरह टेंट में कुर्सी पर मजदूरों के साथ बैठकर उनका हाल-चाल लेगा।

यह मोदी का स्टाइल है। वह जहां जाते हैं, वहां काम करने वाले मजदूरों से जरूर मिलते हैं। उन्होंने कोविड महामारी के दौरान भी ऐसा किया था जब वह विदेश यात्रा से लौटने के तुरंत बाद दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मजदूरों से रात में मिले थे। यही खासियत मोदी को दूसरों से अलग करती है। मोदी इन मजदूरों से कर्तव्य पथ (पुराना राजपथ) का उद्घाटन करने के बाद भी मिले थे। तब उन्होंने मजदूरों को 26 जनवरी के कार्यक्रम में बतौर मेहमान आने का न्योता भी दिया था।

शुक्रवार को मोदी ने बद्रीनाथ मास्टर प्लान का जायजा लिया, जिसके तहत काशी विश्वनाथ जैसा कॉरिडोर बनाया जाएगा। इसके लिए जमीन का अधिग्रहण भी किया जा रहा है। बद्रीनाथ थाम के पुनर्निर्माण के लिए पहले चरण पर 280 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसमें श्रद्धालुओं के लिए अराइवल प्लाजा का भी निर्माण होना है जहां एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। आसपास की खूबसूरती बढ़ाने के लिए अलकनंदा नदी के किनारे एक खूबसूरत रिवरफ्रंट तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा एक अंतरराज्यीय बस टर्मिनल भी बनाया जाएगा।

कई लोग मंदिरों और मठों पर मोदी की यात्राओं की आलोचना करते हैं। कई लोगों ने कहा कि हिमाचल और गुजरात में चुनाव है, इसलिए मोदी अपना भक्ति का स्वरूप दिखा रहे हैं। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी करीब-करीब हर साल बाबा केदारनाथ का दर्शन करने गए। शिवभक्त का उनका ये रूप कोई पहली बार नहीं दिखाई दिया। काशी विश्वनाथ में, उज्जैन के महाकालेश्वर में, देवघर में मोदी को महादेव की अराधना करते सबने देखा है।

दूसरी बात यह कही गई कि मोदी, हिंदू वोटों के लिए केदारनाथ, बद्रीनाथ और अन्य मंदिरों के विकास की बात कर रहे हैं। सच तो यह है कि मोदी ने तब भी इन धर्मस्थलों के विकास की बात कही थी जब वह चुनाव नहीं लड़ते थे।

मैंने 2001 का एक वीडियो देखा, जब मोदी न मुख्यमंत्री थे, न प्रधानमंत्री थे, बल्कि बीजेपी के एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे। इस वीडियो में मोदी को राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड में धार्मिक स्थलों के विकास पर जोर देते हुए देखा जा सकता है। मोदी ने शुक्रवार को भी लगभग वही बात कही जो उन्होंने 21 साल पहले 2001 में कही थी, जब वह PM नहीं थे। वक्त बदला, मोदी के पद बदले लेकिन आस्था के केंद्रों के प्रति उनका दृष्टिकोण नहीं बदला।

मैं दो बातें कहना चाहता हूं। एक तो ये कि अगर मोदी भगवान शंकर के दर्शन करने गए, तो यह उनकी आस्था का सवाल है। दो, जिन लोगों को यह अच्छा नहीं लगता, वे इस यात्रा को विकास से जोड़कर देख सकते हैं। मोदी के वहां जाने से बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों का विकास हुआ है। वहां अब ज्यादा टूरिस्ट जाने लगे हैं जिससे लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं, और ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है। और अगर इसका क्रेडिट मोदी को मिले तो उसमें भी कोई बुराई नहीं है।

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