महाराष्ट्र में चल रहा सियासी संकट अब और गहरा गया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने मोटे तौर पर संकेत दे दिया है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार, जो अब अल्पमत में है, विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करने के बारे में विचार कर रही है। ऐसे संकेत हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे सकते हैं।
अपने लोगों को एकजुट रखने की कवायद में शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे, 40 अन्य असंतुष्ट विधायकों के साथ एक चार्टर्ड फ्लाइट में सूरत से रवाना हुए और बुधवार की सुबह गुवाहाटी पहुंच गए। ये विधायक देर रात करीब 2.15 बजे सूरत में अपने होटल से 3 बसों में सवार होकर गुजरात पुलिस की सुरक्षा में एयरपोर्ट पहुंचे। असम से बीजेपी सांसद पल्लव लोचन दास ने गुवाहाटी एयरपोर्ट पर बागी विधायकों का स्वागत किया और उन्हें एक होटल में ले गए।
शिवसेना से बगावत का नेतृत्व करने वाले एकनाथ शिंदे और अन्य निर्दलीय विधायकों ने सूरत और गुवाहाटी में पत्रकारों को बताया कि वे अभी भी शिवसेना के साथ हैं, और सभी बागी विधायक चाहते हैं कि उद्धव ठाकरे महा विकास अघाड़ी से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन करें और नई सरकार बनाएं।
मुंबई में बुधवार की सुबह हुई विधायक दल की बैठक में कांग्रेस के कई विधायकों के शामिल नहीं होने की खबरों के बीच NCP सुप्रीमो शरद पवार अपने सिपहसालारों के साथ कांग्रेस पर्यवेक्षक कमलनाथ से बातचीत कर रहे हैं। सीएम उद्धव ठाकरे ने दोपहर में अपनी कैबिनेट के साथ वर्चुअल मीटिंग की, जिसमें शिवसेना और सहयोगी दलों के 8 मंत्रियों ने हिस्सा नहीं लिया। शिवसेना ने बुधवार शाम को एक बैठक में शामिल होने के लिए पार्टी के सभी विधायकों को व्हिप जारी किया है। पार्टी ने धमकी दी है कि जो विधायक इस मीटिंग में हिस्सा नहीं लेंगे उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में सबसे पेचीदा सवाल यह है कि जब एकनाथ शिंदे 35 विधायकों के साथ सूरत गए तो मुख्यमंत्री ठाकरे और उनकी पुलिस इंटेलिजेंस को बगावत की खबर कैसे नहीं लग पाई। इस काम को बेहद सीक्रेट तरीके से अंजाम दिया गया और ठाकरे के सिपहसालारों को इसके बारे में कानों-कान खबर नहीं लगी। बुधवार को उद्धव द्वारा बुलाई गई बैठक में शिवसेना के 55 में से केवल 17 विधायक मौजूद थे। इनमें से भी 3 विधायकों को किसी तरह खींच-खांचकर उद्धव के सामने पेश किया गया। जब यह साफ हो गया कि 55 में से 35 विधायकों ने बगावत कर दी है, तो खतरे की घंटी बजी और दिल्ली में बैठे NCP सुप्रीमो शरद पवार से संपर्क किया गया।
ठाकरे ने शिंदे को मनाने के लिए अपने 2 भरोसेमंद नेताओं, मिलिंद नार्वेकर और रविंद्र फाटक को सूरत भेजा, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। इन दोनों नेताओं ने उद्धव और उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे की शिंदे से फोन पर बात करवाई, लेकिन बागी नेता टस से मस नहीं हुए। उन्होंने उद्धव के सामने एक ही शर्त रखी कि वह NCP और कांग्रेस से नाता तोड़ लें, और बीजेपी से समझौता करके उनके साथ ही सरकार चलाएं। उद्धव ने एकनाथ शिंदे से 20 मिनट तक बात की, पुराने रिश्तों की दुहाई दी, लेकिन शिंदे अपने स्टैंड पर कायम रहे।
बगावत का ऐलान तो तभी हो गया था जब क्रॉस वोटिंग की वजह से अघाड़ी गठबंधन राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। एकनाथ शिंदे इस बात से नाखुश थे कि चुनावों के दौरान पार्टी नेतृत्व ने उनसे सलाह-मशविरा नहीं किया। चुनावों में हार के बाद जब शिवसेना नेताओं ने शिंदे और बाकी विधायकों से संपर्क की कोशिश की तो उनके फोन ‘अनरीचेबल’ थे। कुछ ही देर बाद पता चला कि शिंदे ने बगावत कर दी है और वह 35 विधायकों के साथ सूरत पहुंच गए हैं। एकनाथ शिंदे ने उद्धव और उनके दूतों से कहा कि शिवसेना एक कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में जानी जाती है, और उसकी इस पहचान के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। शिंदे ने यह भी कहा कि बीजेपी ही शिवसेना की स्वाभाविक साझेदार है।
एकनाथ शिंदे की बगावत शिवसेना के लिए दोहरा झटका है। पहला तो यह कि उद्धव ठाकरे ने कभी ये उम्मीद नहीं की होगी कि जिस एकनाथ शिंदे को उन्होंने विधायक दल का नेता बनाया, शहरी विकास जैसा अहम मंत्रालय दिया, वह इस तरह पार्टी से बगावत करेंगे। दूसरा बड़ा झटका तब लगा जब उन्हें पता चला कि पार्टी के अधिकांश विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं, और अगर ये इसी तरह शिंदे के साथ रहे तो फिर सरकार का बने रहना मुश्किल होगा।
शिवसेना के असंतुष्ट विधायकों को वापस पार्टी में लाना एक बहुत बड़ा काम है। उद्धव के नेतृत्व वाले MVA गठबंधन सरकार को बहुमत साबित करने के लिए 145 विधायकों की जरूरत है, लेकिन शिंदे के बागी होने के बाद उसके पास जरूरी आंकड़े नजर नहीं आ रहे।
बुधवार को NCP सुप्रीमो शरद पवार ने इस सियासी संकट को शिवसेना का अंदरूनी मामला बताया। शिवसेना, NCP और कांग्रेस के बीच महा विकास अघाड़ी गठबंधन बनने के वक्त से ही पवार इसके संकटमोचक की भूमिका में रहे हैं। पवार ने कहा, इस सरकार को गिराने की यह तीसरी कोशिश है। पवार इस बार उद्धव ठाकरे पर आए इस संकट को सुलझाने में दिलचस्पी लेते हुए नजर नहीं आ रहे हैं।
महा विकास अघाड़ी में जो हो रहा है, वह तो होना ही था। यह कहानी 3 साल पहले शुरू हुई थी, जब महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को धोखा दे दिया, और कांग्रेस एवं NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली। सरकार तो बन गई लेकिन शिवसैनिक हर दिन यह महसूस करते रहे कि उनकी विचारधारा कांग्रेस और NCP से मेल नहीं खाती।
तमाम शिवसैनिक खुलेआम कहते रहे हैं कि बालासाहेब ठाकरे होते तो कभी भी NCP और कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करते। इसके बाद शिवसेना के नेताओं में यह इंप्रेशन बना कि कहने को तो उद्धव मुख्यमंत्री हैं, पर सरकार शरद पवार चलाते हैं। शिवसेना के मंत्रियों को लगता था कि सरकार में NCP के मंत्रियों का ज्यादा दबदबा है।
दूसरी तरफ देवेंद्र फडणवीस कभी इस बात को बर्दाश्त ही नहीं कर पाए कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने उनके नाम पर चुनाव जीता, जबकि सूबे की सरकार शिवसेना-NCP-कांग्रेस गठबंधन चला रहा है। फडणवीस ने उम्मीद नहीं छोड़ी, वह लगे रहे और जब भी मौका मिला, उन्होंने गठबंधन सरकार पर जमकर निशाना साधा। पिछले कुछ हफ्तों में उन्होंने पहले राज्यसभा के चुनाव में और फिर विधान परिषद के चुनाव में उद्धव को मात दी। और फिर MLC चुनाव के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे 35 विधायकों लेकर सूरत पहुंच गए और उद्धव सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगी।
जितनी सफाई से इस रणनीति की योजना बनाई गई थी, उसी से पता चलता है फडणवीस और शिंदे मिलकर काम कर रहे थे। बाजी अब इन दोनों के हाथ में है, जबकि उद्धव ठाकरे अपनी डूबती नैया को बचाने में लगे हैं। उन्होंने लाख सिर पटका पर शिंदे इस बात पर अड़े हुए हैं कि शिवसेना बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाए। इस तरह देखा जाए तो बात 3 साल पहले जहां से शुरू हुई थी, अब वहीं पहुंच गई है। देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनना है, अब यह फैसला उद्धव को करना है कि यह काम करेगा कौन: वह खुद या शिंदे?