Rajat Sharma

हॉकी में ब्रॉन्ज से चूकने वाली बेटियों को पीएम मोदी ने कैसे दिया दिलासा

AKBइलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर लोगों ने शुक्रवार को पीएम मोदी का एक ऐसा जेस्चर देखा जिसकी उम्मीद एक स्टेटसमैन से की जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस जेस्चर से पता चलता है कि वह वास्तव में बाकी लोगों से अलग हैं। टोक्यो ओलंपिक में भारत और ब्रिटेन के बीच महिला हॉकी में ब्रॉन्ज मेडल के लिए मुकाबला हो रहा था। पूरे देश को लड़कियों से ब्रॉन्ज मेडल जीतने की उम्मीद थी। हमारी टीम ने आखिरी मिनट तक बहुत बढ़िया खेला लेकिन वह 3-4 के अंतर से ब्रॉन्ज मेडल से चूक गई। हमारी टीम भले ही यह मुकाबला नहीं जीत सकी और मेडल हासिल नहीं कर पाई, लेकिन इस टीम ने पूरे देश का दिल जीत लिया।

मैच खत्म होने के बाद हार से निराश होकर वे टर्फ पर ही बैठकर रोने लगीं। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन आ गया। यह वीडियो कॉल थी और सामने पीएम मोदी थे। इन लड़कियों के पास शब्द नहीं थे। प्रधानमंत्री मोदी जब फोन पर उनके प्रदर्शन की तारीफ कर उनका हौंसला बढ़ा रहे थे, उस वक्त भी ज्यादतर लड़कियां रो रही थीं। प्रधानमंत्री ने कहा, आप सब निराश क्यों हैं? आपलोग रोना बंद कीजिए। पूरे देश को आप पर गर्व है। इतने वर्षों के बाद भारत के खेलों की पहचान हॉकी का पुनर्जन्म हुआ है।’

प्रधानमंत्री मोदी इन बेटियों के साथ बिल्कुल एक पिता की तरह बात कर रहे थे। प्रधानमंत्री का ये रुख देखकर इन खिलाड़ियों की आंखों में आंसू आ गए और गला रूंधने लगा। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘चिंता मत करिए, पूरा देश आपके साथ खड़ा है। आपने जो मेहनत की है, जो पसीना बहाया है, भले ही मेडल ना ला सका हो.. लेकिन ये मेहनत और आपका जज्बा देश की करोड़ों बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।’ देखते ही देखते ये वीडियो पूरे देश में वायरल हो गया।

मैं चाहूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी और महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों की ये पूरी बातचीत पूरे देश को सुननी चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नजीर बनेगा। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि हमारी लड़कियां क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी विश्वस्तरीय टीम को हरा देंगी, लेकिन इन लड़कियों ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। ओलंपिक इतिहास में पहली बार भारत की महिला हॉकी टीम सेमीफाइनल में पहुंची। भले ही इन्हें मेडल जीतने में कामयाबी नहीं मिली लेकिन इनकी यह कोशिश आनेवाले समय में हमारे युवाओं को प्रेरित करती रहेंगी।

टीम की खिलाड़ियों से बात करते हुए पीएम मोदी ने नवनीत की आंख के ऊपर चोट के बारे में पूछा। उन्होंने पूछा कि नवनीत को ज्यादा चोट तो नहीं लगी। किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि कोई प्रधानमंत्री खिलाड़ियों की इतनी परवाह करेगा। मोदी ने यह भी नोट किया कि कैसे सलीमा टेटे मैच के दौरान गेंद लेकर तेजी से दौड़ रही थीं। वंदना ने कितनी मेहनत की, ये भी उन्हें पता था। सबसे बड़ी बात ये है कि हारी हुई टीम से कौन बात करता है? ये बदले हुए भारत की तस्वीर है जहां हार जीत का नहीं, प्रतिभा का सम्मान किया जाता है। एथलीटों के परिश्रम का सम्मान किया जाता है। मोदी ने एक मिसाल कायम की है। सिर्फ मोदी ने नहीं बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी महिला हॉकी टीम से बात की। ओडिशा सरकार ने पुरुष और महिला दोनों हॉकी टीमों को स्पॉन्सर किया था और सभी खिलाड़ियों के भोजन, प्रशिक्षण और अन्य खर्चे उठाए। इसलिए जब नवीन पटनायक ने फोन किया तो सभी खिलाड़ियों ने उन्हें धन्यवाद कहा।

अफगानिस्तान में जंग

जिस समय प्रधानमंत्री मोदी हमारे हॉकी खिलाड़ियों से बात कर रहे थे, अफगानिस्तान से तालिबान और अफगान डिफेंस फोर्स के बीच भीषण लड़ाई की खबरें आ रही थीं। तालिबान ने ईरान की सीमा से लगे निमरोज की प्रांतीय राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। भारत के सीमा सड़क संगठन (BRO) ने 150 मिलियन डॉलर (लगभग 1117 करोड़ रुपये) की लागत से अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबे जरांज-डेलाराम हाईवे का निर्माण किया था। यह हाईवे एक ऐसे हाईवे में जाकर मिला है जो दक्षिण में कंधार, पूर्व में गजनी और काबुल, उत्तर में मजार-ए-शरीफ और पश्चिम में हेरात को जोड़ता है। रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण यह हाईवे ईरान के चाबहार बंदरगाह से भी जुड़ा है, जहां से भारत के पास एक ऐसा वैकल्पिक सड़क मार्ग था जिसके जरिए पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुए बिना अफगानिस्तान तक पहुंच सकता था। भारत ने कोविड महामारी के दौरान चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान में 75,000 टन गेहूं भेजा था।

अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ने शुक्रवार को कहा कि पिछले एक महीने के दौरान तालिबान द्वारा 1,000 से अधिक नागरिकों की हत्या के साथ ही जंग अब एक बेहद ही खतरनाक दौर में चली गई है। शुक्रवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक हाई-प्रोफाइल मर्डर हुआ। तालिबान के लड़ाकों ने अफगान सरकार के शीर्ष मीडिया प्रवक्ता दावा खान मेनापाल को काबुल के पास उनकी कार के अंदर गोली मार दी। मेनापाल उस समय नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद जा रहे थे।

शुक्रवार को इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद कैमरामैन बलराम यादव के साथ अफगान एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर से मजार-ए-शरीफ पहुंचे। उतरते ही उन्होंने देखा कि वहां फायरिंग हो रही है। मजार-ए-शरीफ, अफगानिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है और उज्बेकिस्तान बॉर्डर से केवल 55 किमी दूर है। यह ताजिकिस्तान की सीमा के भी करीब है। अफगान सेना के कमांडरों ने मनीष को बताया कि जिस जगह पर जंग हो रही है वह स्ट्रैटजिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण जगह है और अगर वहां तालिबान का कब्जा हो गया तो वह मज़ार-ए-शरीफ पर पहुंच जाएगा। मजार-ए-शरीफ पर कब्जा करने के बाद तालिबान आसानी से काबुल तक पहुंच सकता है।

जब मनीष कैमरे पर रिपोर्टिंग कर रहे थे तो दूर से फायरिंग की आवाजें भी आ रही थीं। मैं मनीष और बलराम की हिम्मत की तारीफ करना चाहता हूं, जो युद्ध क्षेत्र से पल-पल की अपडेट भेजते रहे हैं। मैं उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हूं और मैंने उनसे कहा है कि रिपोर्टिंग के दौरान अनावश्यक जोखिम न लें। तालिबान की नीति और नीयत ठीक नहीं है। उन्होंने पिछले एक महीने में कई सोशल मीडिया ऐक्टिविस्ट्स, फोटोग्राफरों और रिपोर्टरों की जान ली है और बेशर्मी ने इन हत्याओं का श्रेय लिया है। जब तक मनीष और बलराम युद्ध क्षेत्र में हैं, मैं आपको उनके द्वारा भेजे गए पल-पल के अपडेट दिखाता रहूंगा।

इस बीच हेलमंड प्रोविंस की गलियों तक में गोलियां चल रही हैं और भीषण जंग जारी है। तालिबान ने यहां के 10 में से 9 जिलों पर कब्जा कर लिया है। शहर अभी भी अफगान सेना के नियंत्रण में है और पिछले 8 दिनों से जंग जारी है। सैकड़ों महिलाएं अपने बच्चों को लेकर हेलमंड से कंधार की ओर भाग गई हैं और तालिबान के हमलों से खुद को बचाने के लिए गांवों में छिपने को मजबूर हैं। यहां चल रही जंग में अब तक तालिबान के 100 से ज्यादा लड़ाके मारे जा चुके हैं।

गोगरा हाईट्स से पीछे हटे भारत और चीन

शुक्रवार को लद्दाख से एक अच्छी खबर आई। दोनों सेनाओं के कोर कमांडरों के बीच 12 दौर की बातचीत के बाद अंतत: भारत और चीन दोनों की फौज 4 और 5 अगस्त को गोगरा हाइट्स से शांतिपूर्वक वापस अपनी पुरानी पोजिशन पर लौट आई। इस संबंध में एक बयान जारी किया गया। असल में सेना के पीछे हटने के कारण लगभग 5 किलोमीटर लंबे नो-पेट्रोलिंग बफर जोन का निर्माण हुआ है। दोनों तरफ के अस्थायी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया है और दोनों तरफ के सैनिक अपनी पुरानी पोस्ट पर लौट आए हैं। इस बार पेट्रोलिंग प्वाइंट 17A यानी ईस्टर्न लद्दाख की गोगरा पोस्ट से चीन की सेना के जवान पीछे हटे हैं।भारत की फौज ने ग्राउंड पर इसकी पुष्टि कर ली है। फरवरी के बाद दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने की ये दूसरी घटना है। फरवरी में पैंगोंग लेक के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर दोनों देशों की सेना पीछे हटी थी।

आपको बता दूं कि इस वक्त भी गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स और डेपसांग में अभी भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। इस मुद्दे पर आगे के दौर में बातचीत होगी। ईस्टर्न लद्दाख में और LAC के वेस्टर्न सेक्टर में फिलहाल भारत और चीन के 50 हजार से 60 हजार जवान मौजूद हैं। गलवान घाटी में जहां पिछले साल हिंसक झड़प हुई थी वहां अब दोनों देशों की तरफ से केवल 30 सैनिकों को तैनात रखा गया है। वहीं दूसरी लेयर में दोनों तरफ से 50 जवान तैनात हैं।

गोगरा हाइट्स से सैनिकों को पीछे हटाना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन हमें अपनी आंखें खुली रखनी होंगी। लेकिन ये सिलसिला अभी लंबा चलेगा। चीन की हमेशा से आदत रही है कि वो अपने दोस्तों और दुश्मनों के धैर्य की परीक्षा लेता रहता है। अगर कोई डर जाए तो उसे और आंखें दिखाता है और कोई उसे आंखें दिखाए तो पीछे भी हट जाता है। पिछले दो वर्षों के दौरान चीन के साथ सीमा पर टकराव में भारत एक पल के लिए भी नहीं झुका। सरहद पर फौज की तैनाती और मजबूत की, टैंकों और लड़ाकू विमानों को तैनात किया। इस दौरान भारत ने लद्दाख में अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत किया। सरहद पर हमारी फौज की तैयारी और ताकत चीन से जरा भी कम नहीं है।

चीन गोगरा में पीछे हटने को तैयार हुआ है तो इसके लिए कई लेवल पर काम हुआ। चीन से डिप्लोमेटिक चैनल के जरिए भी बात हुई। हाल ही में ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में SCO (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक में भारत और चीन दोनों के रक्षा मंत्री मौजूद थे। इस बातचीत से इतर दोनों देशों के बीच लद्दाख पर भी चर्चा हुई। इस बातचीत का असर कोर कमांडर्स की मीटिंग में दिखाई दिया। लेकिन ये मानकर चलना चाहिए कि चीन से झगड़े आसानी से या जल्दी नहीं सुलझते हैं। चीन का भारत ही नहीं, बल्कि कई एशियाई देशों के साथ सीमा विवाद हैं और सब जगह ये झगड़े लंबे चलते हैं। भारत के साथ भी चीन का टकराव कोई नई बात नहीं है, काफी वक्त से चल रहा है। चीन से डील करते वक्त हर कदम संभालकर रखना पड़ता है। एक पुरानी कहावत है कि दूध का जला छांछ को भी फूंक-फूंककर पीता है।

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