Rajat Sharma

कृषि कानूनों को वापस लेकर मोदी ने कैसे एक झटके में विपक्ष के हमलों की हवा निकाल दी

AKB

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव जयंती के दिन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया। इन कानूनों को पिछले साल लागू किया गया था। अचानक हुए इस ऐलान ने नरेंद्र मोदी के कद को और बड़ा बना दिया है।

नरेंद्र मोदी ने सिर्फ कानून वापस लेने का ऐलान ही नहीं किया बल्कि हाथ जोड़कर देश से माफी मांगी। उन्होंने किसी गलती के लिए नहीं बल्कि ये कहकर माफी मांगी कि वो अच्छे कानूनों पर भी कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। नरेन्द्र मोदी को देश के लोगों को समर्थन हासिल है। उनकी सरकार के पास संसद में सवा तीन सौ से ज्यादा सांसदों का समर्थन है और उनकी सरकार को किसी तरह का खतरा नहीं है। किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। इसके बावजूद मोदी ने कहा कि वह तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने जा रहे हैं क्योंकि उनकी सरकार किसानों के एक वर्ग को नए कानून के लाभ समझा पाने में विफल रही।

उन्होंने कहा-‘ऐसा लगता है कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई, क्योंकि हमारे कुछ किसान भाई इन कानूनों को मानने को तैयार नहीं हैं इसलिए हमलागों ने उन तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।’ पीएम मोदी ने करीब एक साल से धरने पर बैठे आंदोलनकारी किसानों से घर लौटने की अपील की।

मैंने 40 साल की पत्रकारिता में इंदिरा गांधी से लेकर अब तक की सारी सरकारें देखी है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री ने बिना किसी लाग लपेट के देश के सामने आकर बिना गलती के माफी मांगी हो, सिर्फ इसलिए माफी मांगी हो कि वह सभी लोगों को कृषि कानून पर सहमत नहीं कर पाए। नरेंद्र मोदी ने यह दिखा दिया कि उन्हें स्टेट्समैन क्यों कहा जाता है। वो दुनिया के सबसे लोकप्रिय राजनेता क्यों हैं। पीएम मोदी को जो कहना था वो उन्होंने 17 मिनट में कहा और फिर से अपने काम में लग गए। लेकिन उनकी इस घोषणा से राजनीतिक जगत में खलबली मच गई।

गांधी परिवार से लेकर शरद पवार, लालू यादव, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू समेत लगभग सभी राजनीतिक नेताओं ने अपने रिएक्शन दिए। देर शाम किसान मोर्चा संयुक्त मोर्चा ने भी एक बयान जारी कर पीएम की घोषणा का स्वागत किया लेकिन कहा कि जबतक संसद में इन कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता है तब तक आंदोलन जारी रहेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में राकेश टिकैत, शिव कुमार शर्मा कक्काजी, दर्शन सिंह, गुरनाम सिंह चढ़ूनी और बलबीर सिंह राजेवाल जैसे किसान नेता क्या कदम उठाते हैं। साथ ही इस फैसले का असर यूपी, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य राज्यों में होनेवाले चुनावों पर क्या पड़ता है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।

अब इससे बड़ी बात क्या होगी कि देश का प्रधानमंत्री जनता के सामने आकर ये कहे कि उसने नेक नीयत और पवित्र हृदय और पूरी ईमानदारी से किसानों के हित के लिए कानून बनाया लेकिन कुछ किसान इससे सहमत नहीं हैं और उनकी सरकार इन्हें नहीं समझा पाई है, इसलिए कानूनों को वापस ले रहा हूं। ये उनके बड़े दिल को दर्शाता है। मुझे याद है,बहुत पुरानी बात नहीं है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने सहयोगी दलों के विरोध के बावजूद अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील साइन की थी। वामपंथी दल तो संसद में मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ले आए थे लेकिन मनमोहन सिंह ना पीछे हटे और ना माफी मांगी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों के ऐसे कई उदाहरण हैं।

लेकिन नरेंद्र मोदी ने ऐसा नहीं किया। उनकी सरकार ने किसान नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की। उनकी जरूरतों के मुताबिक कानून में संशोधन की पेशकश भी की, यहां तक कि कानूनों को लागू होने से भी रोके रखा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी द्वारा इस कानून की समीक्षा को लेकर भी सहमति जताई और अंत में यह कहकर इन कानूनों को वापस लेने का फैसला किया कि सरकार किसानों के एक वर्ग को समझा नहीं पाई। पीएम मोदी ने कहा कि उन्हें जिस दिन से जिम्मेदारी मिली उस दिन से पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ किसानों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए कानून इसलिए बनाए क्योंकि वर्षों से कृषि विशेषज्ञों और किसानों की ओर से जरूरी सुधार लाने की मांग की जा रही थी।

मोदी ने कहा, उनकी सरकार ने छोटे और सीमांत किसान जो देश के किसान वर्ग का 80 फीसदी हिस्सा हैं, के लिए कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं लागू की। देश में 10 करोड़ से ज्यादा छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। उन्होंने कहा कि इन छोटे किसानों को बीज, मार्केटिंग, फसल बीमा और आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई है।

यह एक तथ्य है कि मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में किसानों के कल्याण के लिए काफी कुछ किया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 1 लाख 62 हजार करोड़ रुपए सीधे देशभर के किसानों के खाते में ट्रांसफर किए गए। करीब1 हजार मंडियों को ई-नैम (e-NAM ) के तहत जोड़ा गया। अनाज के भंडारण के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर एक लाख करोड़ रुपए खर्च किया। क्रॉप लोन, माइक्रो-इरीगेशन, किसान क्रेडिट कार्ड, सॉइल हेल्थ कार्ड और फसल बीमा जैसी तमाम योजनाएं नरेन्द्र मोदी की सरकार ने शुरू की। उन्होंने कहा कि एमएसपी को और ज्यादा असरदार और पारदर्शी बनाने के लिए जल्द ही एक कमेटी बनाई जाएगी। ये कमेटी एमएसपी के साथ-साथ जीरो बजट खेती, नेचुरल खेती और फसल के पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने पर विचार विमर्श करेगी।

नरेन्द्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेकर बड़ा दिल दिखाया। उन्होंने किसानों से कहा कि आपकी भलाई के लिए और ज्यादा मेहनत करूंगा। अगर आप देश के सबसे बड़े नेता हैं तो आपकी सोच भी सबसे बड़ी होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी की बात को सिर्फ किसानों से जुड़े कानून की वापसी तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। मोदी ने जो किया वह एक जवाब है उन सब लोगों को जो कहते थे कि मोदी को अंहकार है। मोदी का ईगो बहुत बड़ा है। जिस प्रधानमंत्री को अहंकार हो वो टीवी पर आकर पूरे देश के सामने बिना किसी लाग लपेट और बिना किसी गलती के हाथ जोड़कर माफी नहीं मांगता।

बिना किसी कसूर के क्षमायाचना करने के लिए बहुत हिम्मत और बड़ा जिगर चाहिए। मुझे लगता है आज देश के किसी और शीर्ष नेता में ना इतनी हिम्मत है ना किसी के पास इतना बड़ा दिल है। नरेन्द्र मोदी देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। संसद में उनके पास पूर्ण बहुमत और कृषि सुधारों को लागू करने के लिए कानून बनाने की संवैधानिक शक्ति है। वह चाहते तो अपनी जिद पर अड़े रह सकते थे लेकिन मोदी ने साल भर से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसानों की भावनाओं का ख्याल किया और उनका विश्वास जीतने के लिए गुरुपर्व का दिन चुना। मोदी ने गुरू नानक देव जी के बताए रास्ते का अनुसरण किया जिन्होंने अपने अनुयायियों को शांति और भाईचारे का अर्थ सिखाया।

यह न किसी की हार है और न किसी की जीत है। पीएम मोदी ने तो बड़ा दिल दिखाया लेकिन किसान मोर्चे के नेताओं ने देश के प्रधानमंत्री की इस भावना का सम्मान नहीं किया। उन्होंने अपनी जीत का ‘जश्न’ तो मनाया लेकिन आंदोलन वापस लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे तब तक धरने पर बैठे रहेंगे जब तक संसद तीनों कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर देती और एमएसपी की गारंटी देने वाला एक नया कानून नहीं लाया जाता है। सबसे आपत्तिजनक टिप्पणी बीकेयू नेता राकेश टिकैत की ओर से आई। राकेश टिकैत ने कहा- ‘क्या वह किम जोंग-उन हैं कि जैसे ही वह टीवी पर घोषणा करेंगे, कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा?’

टिकैत की टिप्पणी पर गौर फरमाते हुए जरा सोचिए, जिस नेता के साथ 139 करोड़ लोगों का समर्थन है, जो पूर्ण बहुमत की सरकार का प्रधान और दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र का मुखिया है, वो हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ कानून वापस लेने की बात कर रहा है और राकेश टिकैत उसकी तुलना नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग से कर रहे हैं। ये लोकतन्त्र और प्रधानमंत्री की विनम्रता का अपमान है। राकेश टिकैत के रुख से साफ है कि इस तरह के किसान नेता यही चाहते हैं कि देश में माहौल खराब हो। उनकी दुकान चलती रहे। ऐसे नेता किसानों के कल्याण के बजाय क्षुद्र राजनीति में ज्यादा रुचि रखते हैं।

टिकैत ने जिस अंदाज में बात की वह उनका हल्कापन दिखाता है। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा बेतुका बयान दिया है। टी20 वर्ल्ड कप में जब भारत पाकिस्तान से हार गया तो टिकैत ने कैमरे के सामने आकर कहा कि यह मैच मोदी सरकार ने हराया जिससे देश को हिंदू-मुसलमान में बांटा जा सके। अगर किसी ने टिकैत से अफगानिस्तान के संकट के बारे में पूछ होता तो शायद वो कहते कि किसान आंदोलन की तरफ से ध्यान बंटाने के लिए तालिबान को भी मोदी ही सत्ता में लेकर आए। इसलिए ऐसी सोच का आप कुछ नहीं कर सकते। आप टिकैत और उन जैसे लोगों से बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकते।

पीएम मोदी ने जैसे ही शुक्रवार को टीवी पर कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया तब से राकेश टिकैत समेत तमाम दूसरे किसान नेता सकते में हैं। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि मोदी कृषि कानूनों को वापस लेंगे। सच तो ये है कि अगर ये आंदोलन खत्म हो गया तो इनमें से कई नेताओं की दुकान बंद हो जाएगी। इसीलिए मुझे लगता है कि अब सरकार एमएसपी का कानून ले आए, बिजली से जुड़े कानून में बदलाव कर दे और संयुक्त किसान मोर्चे की सारी मांगें मान ले तब भी संयुक्त किसान मोर्चे के नेता आंदोलन वापस नहीं लेंगे। ये किसान नेता मोदी को धन्यवाद देने के बजाए मोदी पर सवाल उठा रहे हैं, आंदोलन को आगे बढ़ाने पर अड़े हैं। वहीं दूसरी ओर प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह और शरद पवार जैसे अनुभवी विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया।

कांग्रेस, एसपी, बीएसपी और अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के पीएम मोदी के फैसले ने इन पार्टियों को झकझोर दिया है, जो आनेवाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी पर हमले शुरू करने की योजना बना रहे थे। लेकिन मोदी के इस फैसले से विपक्षी दलों को बड़ा झटका लगा है। ये नेता ये कह सकते हैं कि मोदी ने कानूनों को वापस इसलिए लिया क्योंकि उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का डर था। जबकि सच्चाई इसके विपरीत यह है कि तमाम विपक्षी दल किसी बड़े मुद्दे के अभाव में आनेवाले चुनावों में अपनी हार देख रहे हैं।

प्रियंका गांधी, मायावती, असदुद्दीन औवैसी और अखिलेश यादव कह रहे हैं कि मोदी ने यूपी के चुनाव को देखते हुए फैसला किया। अगर ऐसा है भी तो इसमें गलत क्या है? कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी भी तो जीतने के लिए मेहनत कर रहे हैं। बीजेपी भी अपनी जीत की रणनीति बनाकर उसके तहत काम करे और फैसले ले तो इसमें बुरा क्या है? पंजाब में कांग्रेस की सरकार ने चुनाव से पहले बिजली के रेट कम किए और पुराने बिल माफ कर दिए। ये फैसले भी तो चुनाव को देखकर ही लिए गए। यह भी गलत नहीं है।

दरअसल, मायावती और अखिलेश की परेशानी की असली वजह दूसरी है। इन पार्टियों को लगता था कि पश्चिम उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल में मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को जाटों का अच्छा समर्थन मिल रहा था। जाटों को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है और पिछले चुनाव में पश्चिमी यूपी की 136 में से 103 सीटें बीजेपी ने जीती थी। मायावती और अखिलेश को लग रहा था कि इस बार जाट वोट बीजेपी से दूर होगा और इसका फायदा उन्हें मिलेगा। लेकिन मोदी ने एक ही झटके में सारा खेल पलट दिया।

शुक्रवार की सुबह कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर अपने विरोधियों को टेंशन में डालकर मोदी काम में लग गए हैं। कहा ये जा रहा था कि कृषि कानूनों से सबसे ज्यादा नाराजगी पश्चिम उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में है और मोदी कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करने के बाद सीधे बुंदेलखंड पहुंच गए। यहां उन्होंने किसानों की दुर्दशा के लिए ‘परिवारवादी’ दलों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कांग्रेस, एसपी और बीएसपी का नाम लिए बगैर बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाके में पानी सप्लाई नहीं करने का आरोप लगाया। पीएम मोदी रानी लक्ष्मी बाई के जन्मदिन के मौके पर झांसी के किले भी गए। इसी किले से रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया था। इस बार मोदी ने सियासी जंग का ऐलान कर दिया।

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