Rajat Sharma

ज्ञानवापी आस्था का मुद्दा है, प्यार-मुहब्बत से सुलझ जाए तो बेहतर

akb full_frame_74900ज्ञानवापी मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल देते हुए वाराणसी की निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह इस मामले में तब तक कार्यवाही को आगे न बढ़ाए, जब तक इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में नहीं हो जाती है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने ज्ञानवापी मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगने वाली हिंदू पक्ष की अर्जी के बाद यह आदेश दिया।

आदेश में कहा गया है: ‘हम निचली अदालत को निर्देश देते हैं कि वह उपरोक्त व्यवस्था के संदर्भ में सख्ती से कार्रवाई करें और पक्षों के बीच बनी सहमति के मद्देनजर मुकदमे में आगे की कार्यवाही करने से बचें।’ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शुक्रवार की सुनवाई के लिए तीन बजे का समय तय किया है । कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा कि वह भारत के मुख्य न्यायाधीश से पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक निर्देश लें।

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बेंच से कहा कि हिंदू पक्ष के मुख्य वकील हरिशंकर जैन अस्वस्थ हैं, उन्हें बुधवार को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया है। उन्होने सुनवाई को शुक्रवार तक स्थगित करने का अनुरोध किया। अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने बेंच को बताया कि विभिन्न मस्जिदों को सील करने के लिए देश भर में कई अर्जियां दाखिल की गई हैं और ज्ञानवापी मामले में वज़ूखाना के चारों ओर की दीवार को गिराने के लिए भी एक अर्जी दी गई है। अहमदी ने कहा कि इस संबंध में हिन्दू पक्ष के वकील एक हलफनामा दें कि वे निचली अदालत की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाएंगे।

उधर गुरुवार को वाराणसी के सिविल कोर्ट में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा नियुक्त कमिश्नर ने ज्ञानवापी परिसर में किए गए सर्वे के दस्तावेज, वीडियो और फोटो के साथ अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी। स्पेशल एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने सर्वे रिपोर्ट का खुलासा करने से इनकार कर दिया। विशाल सिंह ने कहा-‘मेरी तरफ से, यह अंतिम रिपोर्ट है। अगर अदालत को लगता है कि यह पर्याप्त है, तो ठीक है, अन्यथा हम अदालत के निर्देशों का पालन करेंगे।’

इस बीच, हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से अपनी-अपनी बात रखी और अपने-अपने तर्क दिए। हिंदू पक्ष के वकीलों ने दावा किया कि जो काला पत्थर मिला है वह एक पुराना शिवलिंग है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह शिवलिंग नहीं एक फव्वारा है। इस पर हिन्दू पक्ष का कहना है कि अगर फव्वारा है तो फिर चला कर दिखाओ। फव्वारे के साथ कोई पाइप, कहीं कोई कनेक्शन हो तो दिखाओ। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अगर औरंगजेब इतना बड़ा काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त कर सकता था तो फिर शिवलिंग कैसे बचा रह गया। वह शिवलिंग को भी नहीं छोड़ता। इसके जबाव में हिन्दू पक्ष शिव महापुराण का हवाला देकर बता रहा है कि कई मामलों में जब मंदिरों को नष्ट कर दिया गया फिर भी शिवलिंग बरकरार रहा।

इस बीच बुधवार को वजूखाने का एक नया वीडियो सामने आया। इस वीडियो में सबसे पहले नंदी दिखाई दे रहे हैं। यह ज्ञानवापी की पूर्वी दीवार के ठीक सामने की तस्वीर है। ग्रिल के पीछे बाहर की तरफ नंदी की मूर्ति है जिसका मुंह ज्ञानवापी की तरफ है। नंदी के ठीक सामने 83 फीट की दूरी पर वजूखाना है। तस्वीर में दिख रहा है कि वजूखाने के चारों तरफ जालियां लगी हैं और इस वजूखाने के बीचों-बीच शिवलिंग है। वीडियो में शिवलिंग को चारों ओर से एक गोल ईंट की दीवार से ढका हुआ दिखाया गया है जिसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है।

सर्वे टीम के पूर्व सदस्य आर.पी. सिंह को पूरा यकीन है कि ये शिवलिंग ही है। लेकिन मुस्लिम पक्ष का दावा है कि अगर शिवलिंग है तो ये जमीन पर होना चाहिए। जिसे हिन्दू पक्ष शिवलिंग कह रहे हैं वो तो तहखाने की छत पर है, वजूखाना तहखाने की छत पर बनाया गया है। इसके बीच में शिवलिंग कैसे हो सकता है ? इसके जबाव में हिन्दू पक्ष का कहना है कि शिवलिंग तो अपनी जगह पर है लेकिन इसका बाकी हिस्सा तहखाने में जमीन तक गया है इसीलिए वजूखाने के नीचे तहखाने को खोलकर सर्वे कराने की मांग अदालत से की गई है। आर. पी. सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर की नींव दिखाने के लिए एक पुराना नक्शा भी दिखाया।

इस मामले के एक और वादी सोहन लाल आर्य ने कहा कि सिर्फ वजूखाने के तहखाने की ही नहीं बल्कि श्रृंगार-गौरी के सामने पश्चिमी दीवार के पास जो मलबा पड़ा है, उसे हटाकर उसके नीचे भी खुदाई होनी चाहिए। एतिहासिक और पौराणिक मंदिर के सारे जवाब मिल जाएंगे। सोहनलाल आर्य ने कहा कि 72 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 15 फीट ऊंचे मलबे को हटाने से जो सबूत मिलेंगे, वही सबूत बाबा विश्वनाथ के उद्धार की वजह बनेंगे। इसे लेकर वह पहले ही सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर चुके हैं।

इस बीच ज्ञानवापी मामले में एक नया मोड़ आया। अब ज्ञानवापी का केस अंजुमन इंताजमिया मसाजिद अकेले नहीं लड़ेगी। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इस मामले को अपने हाथ में लेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कानूनी टीम भी वाराणसी की निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले की पैरवी करेगी। इस बात की जानकारी दारुल उलूम फिरंगी महल के प्रवक्ता सुफियान निजामी ने दी।

उधर, असद्दुदीन ओवैसी ने इंडिया टीवी से कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद केस में अपना फैसला सुनाया तो कई लोगों ने कहा कि मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए और अदालत के फैसले को मानना चाहिए। उन्होंने कहा-‘लेकिन अब वे ज्ञानवापी मस्जिद और अन्य मस्जिदों पर कब्जा करना चाहते हैं। हम अपना दिल कितना बड़ा दिखा सकते हैं?’ ओवैसी ने कहा,’अगर आप 450 साल पुरानी मस्जिदों की खुदाई करना चाहते हैं, तो 1,000 से 2,000 साल पुराने मंदिरों की खुदाई क्यों नहीं करते? आपको पुराने जैन मंदिरों और बौद्ध स्तूपों के पुराने अवशेष मिल सकते हैं?”

ज्ञानवापी मुद्दे पर अदालत दोनों तरफ के दावों को सुनकर, सबूत और तथ्य देखकर फैसला करेगी। लेकिन यह मामला ऐसा है जिस पर बहस को नहीं रोका जा सकता। दोनों तरफ से अपने-अपने जो तर्क दिए जा रहे हैं, उन्हें नहीं रोका जा सकता। जैसे मुस्लिम नेता और उलेमा बार-बार कह रहे हैं कि जब मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिर ध्वस्त कर दिया तो शिवलिंग को क्यों नहीं तोड़ा? शिवलिंग को इस जगह से क्यों नहीं हटाया ?

इसके जवाब में काशी के विद्वान शिवमहापुराण के श्लोकों का हवाला देते हैं। विद्वानों का कहना है कि शिवमहापुराण के 22वें अध्याय का 21वां श्लोक है, ‘अविमुक्तं स्वयं लिंग स्थापितं परमात्मना। न कदाचित्वया त्याज्यामिंद क्षेत्रं ममांशकम्…’ इसका मतलब है ये स्वंयम्भू शिवलिंग काशी से बाहर की दुनिया में कहीं नहीं जा सकता क्योंकि स्वयं शिव ने अविमुक्त नामक शिवलिंग की स्थापना की। शिव ने आदेश दिया कि मेरे अंश वाले ज्योतिर्लिंग तुम इस क्षेत्र को कभी मत छोड़ना।

काशी के लोगों की मान्यता है कि काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। बाबा के भक्तों का कहना है कि आक्रांता मंदिर तोड़ सकते हैं लेकिन बाबा को काशी से दूर कोई नहीं कर सकता। कुतुबुद्दीन ऐबक, रजिया सुल्तान, सिंकदर लोदी और औरंगजेब जैसे तमाम शासकों ने काशी को अपवित्र करने की कोशिश की, बाबा विश्वनाथ के मंदिर को उजाड़ने की कोशिश की और शिवलिंग को काशी से दूर ले जाने की कोशिश की लेकिन सब नाकाम हुए। लोगों का कहना है कि ये आस्था का मसला है और हिन्दू पक्ष मस्जिद नहीं मांग रहा। वो सिर्फ भजन-पूजन का अधिकार मांग रहा है। लेकिन मेरा कहना ये है कि यह मामला लोगों के विश्वास से जुड़ा है इसलिए प्यार-मुहब्बत से सुलझ जाए तो बेहतर होगा।

दिलचस्प बात ये है कि कुछ मुस्लिम लोग भी कह रहे हैं कि अगर शिवलिंग मिला है, अगर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी है तो फिर मुसलमानों को यह स्थान तुरंत हिन्दुओं के सुपुर्द कर देना चाहिए। समाजवादी पार्टी की नेता रूबीना खान का कहना है कि किसी दूसरे की जगह पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की इजाजत इस्लाम नहीं देता। उन्होंने कहा-‘अगर ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर को तोड़कर बनाई गई है तो वहां पढ़ी गई नमाज कबूल ही नहीं होगी, इसलिए जिद करने का क्या फायदा। मुस्लिम धर्मगुरुओं को खुद ही ये मस्जिद हिंदू समाज को सौंप देनी चाहिए।’

हमारे देश में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर रूबीना खान जैसी बात कहने वाले लोग बहुत कम हैं । ज्यादातर मौलाना कह रहे हैं कि चाहे जमीन कब्जा करके मस्जिद बनाई गई हो, चाहे मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हो, अगर मस्जिद है तो मस्जिद ही रहेगी। अब मुसलमान एक भी मस्जिद नहीं छोड़ेंगे।

लेकिन हैरत की बात है कि पाकिस्तान में ऐसे कई मौलाना मुस्लिम नेता और विद्वान हैं जो ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में कह रहे हैं कि इस्लाम किसी दूसरे की जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनने की इजाजत नहीं देता। पाकिस्तान में मौलाना कहते हैं कि जिस जगह पर मंदिर हो, जहां पूजा हो रही हो, अगर उस जगह को तोड़कर मस्जिद बनाई जाए और नमाज पढ़ी जाए तो नमाज कबूल नहीं होती है। इसलिए इस तरह की विवादित जगह मुसलमानों को छोड़ देनी चाहिए और हिंदुओं को सौंप देनी चाहिए।

मैंने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनलों पर कई टीवी डिबेट देखे हैं जहां इन विद्वानों ने ऐसा कहा है। हालांकि ये सिर्फ कहने की बातें हैं। न कोई मस्जिद मांग रहा है और न कोई मंदिर बनाकर दे रहा है।

एक लड़ाई अदालत में चलेगी और दूसरी जंग सियासी मैदान में होगी। दोनों लड़ाई लंबी चलेगी। क्योंकि अब तक ज्ञानवापी का मसला पांच महिलाओं और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के बीच का कानूनी झगड़ा था। लेकिन अब ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस ममले में दखल देकर इसे हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बना दिया है।

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