Rajat Sharma

गुजरात : तबाही से सामना

AKBइस वक्त गुजरात पर तूफान की तबाही का खतरा मंडरा रहा है. ये तूफान अरब सागर से गुजरात तट की तरफ बढ़ रहा है और गुरुवार शाम तक तट से होकर गुज़रेगा. इसके कारण पूरे गुजरात के समुद्री तट, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक से लेकर केरल तक सभी राज्यों में तैयारियां ज़ोरों पर है. सरकार इस खतरे से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है. स्थानीय प्रसासन के साथ साथ NDRF, SDRF, नौसेना, वायु सेना , तटरक्षक दल, थल सेना को भी सतर्क रखा गया है. गुजरात के तटवर्ती इलाकों में सागर से 10 किलोमीटर तक के इलाके को खाली करवा लिया गया है. 34 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजा गया है. कांडला, मुंद्रा, ओखा, जखुआ बंदरगाहों पर हजारों कंटेनर्स को फिक्स कर दिया गया है, जिससे तूफानी हवाओं के कारण उन्हें कोई नुकसान न हो. इसी तरह जो बड़े जहाज तट पर थे, उन्हें समुद्र में भेजा गया है जिससे तूफान की वजह से जहाजों को तट से टकराने का खतरा न हो. मौसम विभाग का कहना है कि बिपरजॉय नाम का तूफान जब तट तक पहुंचेगा, तो 125 से 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलेगी. गुजरात के तटवर्ती जिलों में अभी से तेज बारिश शुरु हो गई है. पच्चीस साल पहले 1998 में गुजरात के इसी इलाके में भयानक तूफान आया था, सौ से ज्यादा लोगों की जानें गई थी, भारी तबाही हुई थी, और अब जिस बिपरजॉय तूफान का डर है, जो 25 साल पहले आए तूफान से ज्यादा खतरनाक है. गृह मंत्री अमित शाह ने भविष्य की तरफ जो इशारा किया, वो वाकई डराने वाला है. अब प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है, और उसकी तीव्रता भी बढ़ रही है. अब से पहले तक जितने तूफान आते थे, उनका असर दो से पांच दिन तक रहता था. बिपरजॉय तूफान अरब सागर से 6 दिन पहले उठा था और इसका असर 10 दिनों तक रह सकता है. ये सबसे लंबे समय तक रहने वाला तूफान है. IIT मद्रास की स्टडी में ये सामने आया है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में अरब सागर के ऊपर चक्रवाती तूफान लगातार और गंभीर होते जा रहे हैं। पिछले चार दशकों में अरब सागर में तूफान के ड्यूरेशन में 260% का इजाफा देखा गया. सिर्फ तूफान के मामलों में नहीं, बेमौसम बारिश, बेमौसम बर्फबारी, तेज़ गर्मी, सूखा , इस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं. आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि विशाखापट्टनम में सौ साल में पहली बार तापमान 43 डिग्री से ऊपर रिकॉर्ड किया गया. हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में इस बार बर्फ की चादर 45 फीट तक जम चुकी है, जबकि जून के महीने में आम तौर पर सिर्फ तीस फीट तक बर्फ रहती थी. तीसरी बात, जब तटवर्ती इलाकों में तूफान की आशंका है, उसी वक्त दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, आन्ध्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ और उड़ीसा में हीटवेव का एलर्ट जारी किया गया है, जबकि हिमाचल और उत्तरखंड के कई इलाकों में बर्फबारी की चेतावनी दी गई है. यानी जून के महीने में देश में बारिश, बर्फवारी और हीटवेव सब साथ साथ हो रहे हैं. ये ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है. इसीलिए वैज्ञानिक बार बार प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी दे रहे हैं और सरकार उसी के हिसाब से रणनीति बना रही है.

भारतीय लोकतंत्र को जैक डोर्सी से प्रमाणपत्र नहीं चाहिए

ट्विटर के पूर्व CEO जैक डोर्सी के एक बयान को लेकर विरोधी दलों ने सरकार के ख़िलाफ़ हल्ला बोल दिया. एक इंटरव्यू में जैक डोर्सी ने दावा किया था कि जब वो ट्विटर के CEO थे, तो भारत सरकार ने उन पर बहुत दबाव डाला था. सरकार की आलोचना करने वालों के ट्विटर एकाउंट्स बंद करने को कहा था, किसान आंदोलन की ख़बरें रोकने को कहा था. जैक डोर्सी का ये बयान जैसे ही ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा, वैसे ही विपक्षी दल मैदान में आ गए. किसी ने प्रधानमंत्री को कायर कहा. किसी ने नरेन्द्र मोदी को डरपोक कहा, किसी ने मोदी को तानाशाह बताया, लेकिन सरकार ने जैक डोर्सी के बयान को सिरे से खारिज कर दिया, इसे सफेद झूठ बताया. हालांकि जैक डोर्सी अब टिवटर के साथ नहीं हैं, वो फिलहाल BLOCK नाम से अपना फिनांशियल एप चला रहे हैं, जिसका शायद लोग नाम भी न जानते हों, लेकिन जैक ने अब ये बयान क्यों दिया, इसकी वजह तो जैक डोर्सी ही जानते होंगे. जैक डोर्सी के बयान पर दुनिया के किसी देश में कोई चर्चा भी नहीं हुई, लेकिन हमारे देश में उनके बयान को हाथों-हाथ लिया गया. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिव सेना, NCP जैसे तमाम दलों ने जैक डोर्सी के बयान का हवाला देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला किया. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत तो हिटलर और मोदी की फोटो लेकर आईं, दोनों तस्वीरें साथ साथ दिखा और कहा, तानाशाह डरपोक है, मोदी कायर है. पहली बात तो ये कि जिन जैक डोर्सी की बात को लेकर इतनी हाय-तौबा मचाई जा रही है, वो कोई दूध के धुले नहीं हैं. 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी भूमिका पक्षपातपूर्ण रही थी. इसको लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी. दूसरी बात, हमारे देश में लोकतान्त्रिक मूल्य जीवित हैं, या उनकी हत्या कर दी गई, ये बताने के लिए हमें किसी अमेरिकन कंपनी के फॉर्मर सीईओ की जरूरत नहीं. अगर किसी की जिद है कि किसी अमेरिकन से ही सर्टिफिकेट लेना है तो जो बाइडेन की बात सुननी चाहिए. बाइडेन ने मोदी को फेमिली डिनर पर बुलाया है. तीसरी बात, ये कमेंट ऐसे वक्त में आए हैं, जब भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाने वाले हैं. ये कोई सीक्रेट नहीं है कि मोदी की ये अमेरिका यात्रा ऐतिहासिक है. व्हाइट हाउस में भारत के प्रधानमंत्री के सम्मान में डिनर, वॉशिंगटन में हमारे प्रधानमंत्री का अमेरिकी संसद की संयुक्त बैठक में दूसरी बार संबोधन, अमेरिका के साथ रक्षा सौदों की तैयारी, ये सब किसी व्यक्ति से नहीं, हमारे देश के मान सम्मान से जुड़ी बात है. इसलिए ट्विटर के फॉर्मर सीईओ की बातों की परछाईं इस पर न पड़े, ये हम सबको सोचना है. चुनाव के साल में बहुत से लोग बहुत सी बाते कहेंगे, लेकिन अपने झगड़े, अपने मतभेद, हम अपने यहां सुलाझाएं तो बेहतर होगा. भारत की राजनीति को किसी भी तरह से विदेशी ताकतों के हाथ की कठपुतली न बनने दें, ये सबको सुनिश्चित करना होगा. वैसे हमारी आदत है कि कोई अमेरिकन या ब्रिटिश कुछ कह दे तो उसे परम सत्य मान लेते हैं.

हरियाणा : किसान हित कम, राजनीति चमकाने का मौका

हरियाणा के कुरक्षेत्र में किसानों द्वारा 33 घंटे से लगाया गया हाईवे जाम मंगलवार शाम को खत्म हो गया. मुद्दा था सूरजमुखी के दामों का, किसान धरने पर बैठे थे. कई दौर की बातचीत के बाद सरकार ने किसान संगठनों की मांगे मान लीं. जिला प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि सरकार किसानों से समुचित दाम पर सूरजमुखी की फसल खरीदेगी और किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी और आठ अन्य लोगों को जेल से रिहा करेगी. प्रशासन ने किसानों के खिलाफ दायर मामलों को वापस लेने का आश्वसन भी दे दिया है. ये अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने किसानों की बात मान ली. लेकिन किसानों का आंदोलन खत्म नहीं होगा. इसका इशारा राकेश टिकैत की बात से मिल गया. राकेश टिकैत जानते हैं कि अगले साले लोकसभा चुनाव है. हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होंगे. इसलिए सरकार पर दबाव बनाने का ये अच्छा मौका है. गुरनाम सिंह चढूनी ने पिछले आंदोलन के वक्त ही पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था, उस वक्त उनकी तमन्ना पूरी नहीं हो पाई. हो सकता है, इस बार हो जाए, और इसके लिए फिर से आंदोलन की भूमिका बन रही है. कुल मिलाकर मामला किसानों के हित का कम, अपनी राजनीति चमकाने का ज्यादा है.

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