Rajat Sharma

गुजरात एवं हिमाचल चुनाव : एक नज़र

AKBगुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी सहित अधिकतर वरिष्ठ नेताओं के चुनावी दौड़ से बाहर होने के बाद, भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को विधानसभा चुनावों के लिए अपने 160 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी ।

इस सूची में घाटलोडिया से मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, माजुरा से गृह मंत्री हर्ष सांघवी, वीरमगाम से पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और जामनगर उत्तर से क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा शामिल हैं। कई कैबिनेट मंत्री जैसे जीतू वघानी, रुशिकेश पटेल, जगदीश विश्वकर्मा, कनू देसाई, पूर्णेश मोदी और किरीटसिंह राणा को उम्मीदवारों की सूची में बरकरार रखा गया है।

घोषित 160 उम्मीदवारों की सूची में से 84 उम्मीदवार पहले चरण में 1 दिसंबर को चुनावी मैदान में होंगे, वहीं 76 उम्मीदवार 5 दिसंबर को दूसरे चरण में मतदान का सामना करेंगे। शेष 22 सीटों पर निर्णय बाद में भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति करेगी। इस बार 69 मौजूदा विधायकों को टिकट मिला है, जबकि 38 विधायकों की जगह नए चेहरों को शामिल किया गया है।

इन 69 मौजूदा विधायकों में से 17 वे हैं जो पिछले दस वर्षों में भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें तलाला के भगवानभाई बराड़ भी हैं, जिन्होंने बुधवार को कांग्रेस से इस्तीफा दिया और उसी दिन भाजपा में शामिल हो गए । इससे पहले मंगलवार को अपने दो बेटों के साथ बीजेपी में शामिल हुए कांग्रेसी नेता मोहनसिंह राठवा अपने बेटे राजेंद्र सिंह को छोटा उदयपुर सीट से टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं।

बीजेपी में शामिल ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को अभी टिकट नहीं मिला है। सूची में अहमदाबाद के ग्यारह मौजूदा विधायकों और राजकोट शहर के सभी चार विधायकों के टिकट काटे गये हैं। मोरवी में पुल गिरने की भयावह घटना के बाद चर्चा में आए वहां के स्थानीय भाजपा विधायक बृजेश मेरजा को इस बार टिकट नहीं दिया गया । पुल गिरने के बाद लोगों को बचाने की कोशिश में माछू नदी में छलांग लगाने वाले पूर्व विधायक कांतिलाल अमृतिया को टिकट दिया गया है।

मंगलवार की शाम जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में जा रहे थे, तभी अहमदाबाद से खबर आई कि पूर्व सीएम विजय रूपानी, पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल, पूर्व मंत्री और नौ बार के विधायक भूपेंद्रसिंह चुडासमा, प्रदीप सिंह जडेजा, आरसी फालदू, सौरभ पटेल, कौशिक पटेल और योगेश पटेल ने चुनावी दौड़ से बाहर रहने की घोषणा की और कहा कि वे अब पार्टी के लिए काम करेंगे।

इन वरिष्ठ नेताओं ने कहा, कि अब दूसरों को मौका दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, पार्टी नेतृत्व ने इन नेताओं को सम्मानजनक तरीके से विदाई देने का फैसला किया है। चुडासमा ने कहा, वह पांच बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं और वृद्धावस्था को देखते हुए उन्होंने युवा कार्यकर्ताओं को मौका देने का फैसला किया है। हालांकि उन्होंने कहा, वह राजनीति से रिटायर नहीं हुए हैं, और वह संगठन के लिए काम करेंगे। कुछ इसी प्रकार का बयान नितिन पटेल की ओर से भी आया, उन्होंने कहा, युवा नेताओं को अब मौका मिलना चाहिए।

संदेश साफ है: बीजेपी नेतृत्व अब नए और युवा चेहरों को मौका देना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, वे हर निर्वाचन क्षेत्र की पृष्ठभूमि जानते हैं। उन्हें पता है कि गुजरात में किसको मैदान में उतारना है और कैसे चुनाव जीतना है। राज्य के लोगों को मोदी पर पूरा भरोसा है, और उन्होंने इसी विश्वास के चलते भाजपा को वोट दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है। देश में आज कोई दूसरा नेता नहीं है जो वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद से हटाने और फिर उन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह देने की हिम्मत रखता हो।

कुछ लोग पूछ सकते हैं, चूंकि ये नेता कई बार चुनाव जीतते रहे हैं, और अगर वे बगावत करते हैं और बीजेपी को नुकसान पहुंचाते हैं, तब क्या होगा?

इसका जवाब यह है कि पहला, गुजरात बीजेपी में मोदी के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है, और दूसरा, हर जिले में पार्टी का संगठन इतना मजबूत है कि कोई नेता बगावत करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता । यही कारण है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे चुनावी दौड़ से बाहर रहेंगे । अब यह मोदी को तय करना है कि चुनाव खत्म होने के बाद इन वरिष्ठ नेताओं को कहां समायोजित किया जाए।

इस बीच गुजरात के आदिवासी इलाकों से बीजेपी के लिए अच्छी खबर आई है। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के नेता छोटूभाई बसावा ने घोषणा की कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपने बेटे को मैदान में उतारेंगे। छोटूभाई बसावा की भरूच और नर्मदा जिलों में अच्छी पकड़ है और वह 1990 के बाद से सात बार चुनाव जीत चुके हैं। वे एक लोकप्रिय आदिवासी नेता हैं, और यहां उनकी छवि रॉबिन हुड की है।

2017 के चुनावों में, बीटीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, और वह छोटूभाई बसावा का ही अति महत्वपूर्ण वोट था जिसने कांग्रेस नेता स्वर्गीय अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव जीतने में मदद की थी। हाल ही में, बसावा ने कांग्रेस से दूरी बनाए रखी , ऐसे में यह बात अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद कर सकती है। दूसरी ओर, एक और विधायक भगवानभाई बराड के भाजपा में शामिल होने के बाद, कांग्रेस से पलायन का क्रम जारी है। मंगलवार को दस बार के कांग्रेस विधायक और आदिवासी नेता मोहनसिंह राठवा ने भी इस्तीफा दे दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए।

हिमाचल प्रदेश

बुधवार को दिल्ली में सीईसी की बैठक में भाग लेने से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और हमीरपुर में दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। दोनों ही रैलियों में, मोदी ने कांग्रेस पर जबर्दस्त हमला बोला और कहा, “कांग्रेस अस्थिरता, भ्रष्टाचार और घोटालों की गारंटी है”।

मोदी ने मतदाताओं से कहा कि कांग्रेस अब केवल दो राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) पर शासन कर रही है, जबकि तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, यूपी और गुजरात जैसे राज्यों ने बीते कई दशकों से कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है। मोदी ने कहा, “लोगों ने इतने दशकों तक कांग्रेस को इसलिए सत्ता से बाहर रखा है क्योंकि उनमें पार्टी के खिलाफ बहुत गुस्सा है।”

मोदी ने हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं से भी ऐसा ही करने और कांग्रेस को सत्ता में वापस नहीं आने देने को कहा। दोनों रैलियों में भारी भीड़ देखने को मिली थी। कांगड़ा और हमीरपुर जिले में कुल 21 सीटें हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी दो रैलियों को संबोधित किया, जहां उन्होंने पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का वादा किया। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी पार्टी की रैलियों को संबोधित किया।

गहलोत ने आरोप लगाया कि बेरोजगारी बढ़ रही है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया है। उन्होंने वादा किया कि कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी और हिमाचल में एक लाख नौकरियां दी जाएंगी।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, मोदी बेरोजगार युवाओं को दी गई नौकरियों की संख्या के बारे में कुछ नहीं बोल रहे थे। खड़गे ने कहा, “भाजपा बेरोजगारी की गारंटी है”। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे भारत में लगभग 14 लाख सरकारी पद खाली हैं , जिसमें से हिमाचल प्रदेश में लगभग 65,000 पद खाली हैं, लेकिन युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है।

हमें यह समझना चाहिए कि मोदी ने अपनी रैलियों में कांग्रेस पर इतना अधिक ध्यान क्यों दिया । कांग्रेस हिमाचल में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही है । इंडिया टीवी पर ताजा ओपिनियन पोल से साफ पता चलता है कि इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला है। इंडिया टीवी ओपिनियन पोल ने भविष्यवाणी की है कि भाजपा को 38 से 43 सीटें मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस को 24 से 29 सीटें मिल सकती हैं, वहीं अन्य पार्टियों को केवल एक से तीन सीटें मिल सकती हैं।

ओपिनियन पोल स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि आम आदमी पार्टी राज्य में कोई सेंध लगाने में विफल दिख रही है। कई अन्य ओपिनियन पोल भी हैं, जिन्होंने भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी की है। अगर कांग्रेस नेतृत्व कुछ और प्रयास करता, तो पार्टी चुनावी दौड़ में आगे बढ़ सकती थी। ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व कड़ी टक्कर देने के मूड में नहीं है।

राहुल गांधी एक स्टार प्रचारक हैं, परन्तु हिमाचल के चुनावी परिदृश्य में वह कहीं नहीं दिखाई दिये। वह दक्षिण भारत में अपनी ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा में व्यस्त थे। कांग्रेस के एक भी वरिष्ठ नेता के पास इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं है कि राहुल ने हिमाचल प्रदेश से अपनी यात्रा क्यों शुरू नहीं की।

कांग्रेस के कई शीर्ष नेता हिमाचल प्रदेश आए और रैलियों को संबोधित किया, लेकिन कुल मिलाकर कांग्रेस का पूरा अभियान नीरस और थका हुआ लग रहा था। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का अच्छा आधार है और पार्टी के पास हर ब्लॉक और जिले में अपने कार्यकर्ता हैं। अगर पार्टी कड़ी टक्कर देने में विफल रहती है तो पार्टी नेतृत्व को ढेर सारे जवाब देने पड़ेंगे। हिमाचल प्रदेश में शनिवार, 12 नवंबर को मतदान है और जनता तय करेगी कि भाजपा को एक बार फिर मौका देना है या कांग्रेस को चुनना है।

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