Rajat Sharma

मोदी की छवि खराब करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का मोहरा हैं दिशा और निकिता

AKBदिल्ली पुलिस द्वारा बेंगलुरु की 22 साल की स्टूडेंट ऐक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी से कुछ खास हलकों में हलचल मच गई है। वहीं, पुलिस की टीमें बॉम्बे हाई कोर्ट की वकील निकिता जैकब और महाराष्ट्र के इंजीनियर शांतनु मुलुक की तलाश में भी जुटी हुई हैं। दोनों अंडरग्राउंड हो गए हैं और गिरफ्तारी से बचने के लिए कानूनी उपायों की तलाश कर रहे हैं। इस पूरे मामले में जो सबसे बड़ी बात निकलकर आई है वह यह है कि ये तीनों भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने की एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश में शामिल थे।

जब दिल्ली पुलिस कॉलेज स्टूडेंट दिशा रवि को गिरफ्तार करके उसे राजधानी लाई तो शुरू-शुरू में मुझे भी थोड़ी हैरानी हुई। एक बार मेरे मन में भी ये बात गई कि भला कॉलेज की एक लड़की देशद्रोह की हरकत कैसे कर सकती है? लेकिन जैसे-जैसे सबूत सामने आते गए तो पता चला कि यह बहुत बड़ी और गहरी साजिश थी, और जो हुआ वह सोच समझकर हुआ, पूरी प्लानिंग के साथ हुआ। इसमें बड़ी-बड़ी ताकतें शामिल हैं। ऐसा लगता है कि विदेशों में बैठे लोगों ने गणतंत्र दिवस पर हिंसा की एक बड़ी साजिश रची थी।

26 जनवरी को दिल्ली में आग लगाने की साजिश पिछले साल नवंबर में ही शुरू हो गई थी। 6 दिसंबर को कनाडा, पाकिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका और भारत में बैठे कुछ लोग एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाकर इस पूरी प्लानिंग को गति देने लगे। 11 जनवरी को इस सिलसिले में जूम मीटिंग हुई। यह मीटिंग 26 जनवरी के ऐक्शन को अंतिम रूप देने के लिए हुई थी। जूम मीटिंग में 26 जनवरी को ग्लोबल ऐक्शन डे का प्लान बताया था। दिल्ली पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस मीटिंग में कौन-कौन लोग शामिल थे। जांचकर्ताओं का मानना है कि इस साजिश के पीछे पाकिस्तानी और खालिस्तानी दोनों हैं। 11 जनवरी की मीटिंग में यह तय किया गया कि कैसे ‘ट्विटर स्टॉर्म’ क्रिएट किया जाए, किन-किन लोगों को ट्वीटर पर फॉलो करना है, कैसे मैसेज को फैलाना हैं, कैसे किसानों को ट्रैक्टर रैली के लिए भड़काना है। साथ ही यह भी तय हुआ था कि कैसे गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर भारत की छवि पर एक बदनुमा दाग लगाया जाए।

फिलहाल दिल्ली पुलिस की जांच की सुई खालिस्तान समर्थक मो धालीवाल और पीटर फ्रेडरिक के नाम पर अटकी है। उसकी वजह ये है कि पीटर फ्रेडरिक का रिकॉर्ड बहुत ही सनसनीखेज है और वह भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा है। पीटर फ्रेडरिक 2005-06 से ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर था। पिछले 15-16 साल से वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े लोगों के साथ काम कर रहा है। टूल किट में पीटर फ्रेडरिक का नाम रिसोर्स पर्सन के तौर पर डाला गया था। पीटर फ्रेडरिक की गिनती मोदी से नफरत करनेवालों में खालिस्तान समर्थक के तौर पर होती है। उसने 2019 में टेक्सास के ह्यूस्टन में आयोजित प्रवासी भारतीयों के एक सम्मेलन ‘हाउडी मोदी’ में लोगों को जाने से मना किया था। इस सम्मेलन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया था।

‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर इंडिया’ नाम का संगठन चलाने वाली दिशा रवि उन लोगों में शामिल है जो कनाडा में बैठे खालिस्तानी मो धालीवाल से सीधे जुड़ी थी। उसने पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के फाउंडर मो धालीवाल के साथ वर्चुअल मीटिंग की थी। किसान आंदोलन के लिए स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग ने ट्विटर पर जो टूलकिट अपलोड की थी और बाद में डिलीट कर दिया था, उसे थुनबर्ग को दिशा रवि ने ही टेलीग्राम ऐप के जरिए भेजा था। इस टूलकिट में 26 जनवरी के ‘ग्लोबल ऐक्शन डे’ की पूरी प्लानिंग थी।

जब ग्रेटा ने टूलकिट को ट्विटर पर पोस्ट किया तो दिशा घबरा गईं। तब तक मामला हाथ से निकल चुका था और पूरी दुनिया को उस साजिश के बारे में जान गई थी जिसकी प्लानिंग की गई थी। एक वॉट्सऐप चैट में दिशा ने ग्रेटा से कहा कि उनके ‘नाम इसमें (एफआईआर में) शामिल हैं, क्या हम कुछ वक्त के लिए इस पर बात ना करें? मैं वकीलों से बात करने वाली हूं। आई एम सॉरी, लेकिन इसमें हमारे नाम हैं और हमारे खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई हो सकती है।’

दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा रवि ने गूगल डॉक टूलकिट की कई लाइनों को एडिट किया और वह टूलकिट बनाने और उसे लोगों तक भेजने की ‘एक महत्वपूर्ण साजिशकर्ता’ थी। जब ग्रेटा थुनबर्ग ने अनजाने में ट्विटर पर टूलकिट को शेयर किया, तो दिशा घबरा गई। वह समझ गई कि पुलिस जल्द ही उसे पकड़ लेगी, क्योंकि गूगल डॉक उसके ही आईपी अड्रेस से शेयर किया गया था।

आमतौर पर 21 साल की लड़की की ऐसी हरकतों को मैं यह कहकर नजरअंदाज कर देता कि छोटी उम्र में बच्चों से गलती हो सकती है, लेकिन जब मुझे इस केस की पूरी डिटेल पता लगी तो समझ आया कि जो कुछ भी हुआ वह सोच-समझकर हुआ और पूरी प्लानिंग की साथ हुआ। दिशा को पता था कि इसके नतीजे क्या हो सकते हैं। यह उसके खुद के देश भारत के खिलाफ राजद्रोह की हरकत थी। यही वजह है कि उसने अपने कंप्यूटर से सारे सबूत डिलीट कर दिए। दिशा जानती थी कि वह देश विरोधी काम कर रही है।

अब सवाल ये है कि 22 साल की लड़की देश विरोधी काम क्यों करेगी? उसे इन सबसे क्या मतलब? बतौर क्लाइमेट ऐक्टिविस्ट, दिशा कम्युनिस्टों से प्रभावित है और पूरी तरह मोदी विरोधी है। इसीलिए इस नौजवान लड़की को बहकाना आसान था। मुझे एक वीडियो मिला है जिसमें दिशा कह रही है कि मोदी मुसलमानों के खिलाफ हैं, वह दूसरों की आवाज को दबाते हैं। इस वीडियो में दिशा यह भी कहती हुई दिख रही हैं कि उसके माता-पिता मोदी को सपोर्ट करते हैं, लेकिन वह नहीं। इसका नतीजा यह हुआ कि मोदी और भारत के खिलाफ इंटरनैशनल साजिश रचने वालों के लिए दिशा को एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल करना काफी आसान हो गया।

युवा कॉलेज स्टूडेंट दिशा रवि के प्रति लोगों की सहानुभूति हो सकती है, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई तबाही में उसका भी रोल था, जब तिरंगे को अपमानित किया गया और पुलिसवालों पर तलवारों से हमला किया गया, उनके ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की गई। वह दिशा ही थी जिसने निकिता जैकब और शांतनु जैसे अन्य साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर उस टूल किट को बनाया और सर्कुलेट किया जिसके चलते दिल्ली को हिंसा की आग में झुलसना पड़ा।

पुलिस अब एक-एक तार जोड़ रही है और हर चेहरे को बेनकाब कर रही है। उसने साजिश के सबूत जुटाए हैं और सारे सबूतों को कोर्ट में पेश किया जा रहा है। पाकिस्तान पहले ही सोशल मीडिया पर दिशा रवि की गिरफ्तारी को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। पीएम इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने ट्वीट किया किया कि कैसे मोदी और आरएसएस की सरपरस्ती में भारत सरकार 22 साल की दिशा रवि की गिरफ्तारी के साथ असंतोष की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है।

भारत में जो लोग दिशा की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस को बुरा-भला कह रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि कोर्ट ने प्राथमिक सबूतों को देखने के बाद ही उसे हिरासत में रखने का आदेश दिया है। खालिस्तानी और पाकिस्तानी समर्थक इस बात पर शोर मचाएं तो समझ में आता है, लेकिन सबसे दुखद बात यह है कि हमारे विपक्ष के नेता भी पाकिस्तान की भाषा में बात कर रहे हैं। एक वैश्विक नेता के तौर पर मोदी की छवि पर दाग लगाना ही उनका एकमात्र उद्देश्य लगता है।

राहुल गांधी शायद मानते हैं कि बीजेपी की ताकत नरेंद्र मोदी की इमेज है। नरेंद्र मोदी एक के बाद एक चुनाव इसलिए जीतते हैं क्योंकि उनकी एक छवि है। उन्हें शायद लगता है कि जब तक नरेंद्र मोदी की इस इमेज को नहीं तोड़ा जाएगा तब तक उनका या कांग्रेस पार्टी के पास बीजेपी को हराने का कोई चांस नहीं हैं।

पिछले 6 सालों से कहीं न कहीं राहुल गांधी का पूरा फोकस मोदी की इमेज खराब करने पर रहा है। कभी वह कहते हैं कि मोदी की सरकार अंबानी-अडानी की सरकार है, तो कभी वह सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए इसके सबूत मांगते हैं, या फिर जेएनयू में जाकर टुकड़े-टुकड़े गैंग को अपना खुला समर्थन देते हैं। मोदी की इमेज पर दाग लगे इसके लिए राहुल ने सैंकड़ों बार कहा कि राफेल की डील में गड़बड़ हुई है। चीन के नाम पर उन्होंने कहा कि ड्रैगन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया, मोदी चीन से डरते हैं। किसानों के नाम पर राहुल कहते हैं कि मोदी उनका भविष्य अंधकारमय कर रहे हैं।

दिक्कत यह है कि राहुल का कोई भी इल्जाम मोदी पर चिपका नहीं। चुनावों में मोदी और उनकी पार्टी की जीत होती चली गई। मोदी की लोकप्रियता बढ़ती ही चली जा रही है और जनता ने राहुल के आरोपों पर यकीन करना बंद कर दिया है। इसके उलट जनता को यह यकीन है कि नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जिनकी सोच और फैसलों को अंबानी-अडानी तो क्या, कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। अगर कोई दावा करे कि वह मोदी से कुछ करवा सकता है तो यह उसकी गलतफहमी होगी। इतिहास गवाह है कि मोदी ने कभी किसी के दबाव में फैसले नहीं लिए। पाकिस्तान हो या चीन, मोदी ने हर बार भारत के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया है।

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