Rajat Sharma

कोरोना वायरस की तरह संक्रामक नहीं है ब्लैक फंगस!

AKBब्लैक फंगस भारत के अलग-अलग राज्यों में तेजी से फैल रहा है। शुक्रवार को अहमदाबाद में 15 साल के एक लड़के के ब्लैक फंगस से संक्रमित होने का पहला मामला सामने आया। बीमारी के चलते लड़के के दांत और ऊपरी जबड़े के हिस्सों को निकालना पड़ा। सबसे अजीब बात यह है कि यह लड़का न तो डायबिटिज से पीड़ित था और न ही उसे कोई गंभीर बीमारी थी, लेकिन फिर भी वह ब्लैक फंगस की चपेट में आ गया।

अहमदाबाद में पीडियाट्रिक म्यूकोर्मिकोसिस का यह पहला मामला सामने आया है। बच्चे को पिछले महीने कोविड-19 के इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन बाद में जांच के दौरान पता चला कि वह म्यूकोर्मिकोसिस से पीड़ित है। ब्लैक फंगस के मामले ज्यादातर उन मरीजों में पाए जा रहे हैं जो हाल ही में कोविड-19 से ठीक हुए हैं। फंगल संक्रमण ज्यादा जानलेवा होता है, इसके लक्षण जल्दी नजर नहीं आते और यह उन लोगों पर ज्यादा हमला करता है जो डायबिटिज या कैंसर से पीड़ित हैं।

अहमदाबाद वाले केस में कोरोना ने पहले बच्चे की मां छीन ली, लेकिन वह खुद संक्रमण से पूरी तरह उबर गया था। कोरोना से ठीक होने के कुछ समय बाद उसके दांतों में दर्द होने लगा और आंख में सूजन आ गई। उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसके ऊपरी दांतों और ऊपरी जबड़े के हिस्से को हटाने के लिए सर्जरी करनी पड़ी। हमारे रिपोर्टर निर्णय कपूर को पता चला कि लड़के को पिछले महीने ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था और कोविड-19 के इलाज के दौरान उसे कुछ स्टेरॉयड दिए गए थे। चेहरे की सर्जरी के बाद लड़के की हालत अब स्थिर है।

गुरुवार की रात मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में एम्स में एंडोक्रिनोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर निखिल टंडन ने मुझे बताया था कि पिछले साल उनके अस्पताल में कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान ब्लैक फंगस के लगभग 20 केस पाए गए थे, लेकिन उनमें कोई बच्चा नहीं था। उनमें से ज्यादातर को या तो डायबिटिज था या उनकी इम्युनिटी कम थी। शुक्रवार को हमारे रिपोर्टर निर्णय कपूर ने बताया कि जो लोग कभी ऑक्सीजन सपोर्ट पर नहीं थे या जिन्होंने कोविड के इलाज के दौरान कभी स्टेरॉयड नहीं लिया, और जिनकी डायबिटिज की कोई हिस्ट्री नहीं थी, वे भी अब ब्लैक फंगस से पीड़ित हैं। यह सबसे ज्यादा परेशान करने वाला ट्रेंड है और इसकी प्रॉपर स्टडी की जानी चाहिए। इनमें से कुछ मरीजों के रिश्तेदारों ने कहा कि ब्लैक फंगस के लक्षण कोविड-19 के जैसे ही थे, इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें शुरू में ही स्टेरॉयड दे दिया। उन्होंने कहा कि हो सकता है इससे मरीजों की इम्युनिटी कम हो गई हो और ब्लैक फंगस को उनके शरीर में दाखिल होने का मौका मिल गया।

इस समय गुजरात में ब्लैक फंगस के 2,000 से ज्यादा केस हैं। अकेले अहमदाबाद के अस्पतालों में ब्लैक फंगस के 850 से ज्यादा मरीजों का इलाज चल रहा है। सूरत में 23 साल के एक नौजवान की मौत हो गई, लेकिन उसकी मौत के 7 दिन बाद पता चला कि उसे ब्लैक फंगस ने मारा था। इस केस में न तो मरीज की आंखें लाल हुई थीं, न चेहरे पर सूजन थी, और न ही दांतों में दर्द था लेकिन ब्लैक फंगस उसके ब्रेन में पहुंच चुका था। 28 अप्रैल को उसकी कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। सांस में तकलीफ के चलते उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, उसका इलाज चला और 4 मई को वह कोरोना निगेटिव होकर डिस्चार्ज हो गया। इसके बाद 8 मई को उसे अचानक मिर्गी का दौरा पड़ा, तबीयत बिगड़ी और वह बेहोशी की हालत में 10 मई को अस्पताल में भर्ती हुआ। अस्पताल में इलाज के दौरान 12 मई को उसकी मौत हो गई। इसके पहले डॉक्टरों ने उसके ब्रेन का MRI करवाया था, लेकिन उसमें भी पूरे ब्रेन में ब्लैक फंगस के फैलने का पता नहीं चल पाया था। डॉक्टरों ने फिर ब्रेन की सर्जरी प्लान की, ब्रेन के टिश्यूज को बायोप्सी के लिए भेजा, इसी बीच लड़के की मौत हो गई। उसकी मौत के 7 दिन के बाद रिपोर्ट आई जिसमें पता चला कि ब्लैक फंगस के कारण की लड़के को मिर्गी जैसे दौरे आए थे और इसी के चलते उसकी मौत हो गई।

मैं ये सारी बातें आपको पूरे भारत में अपने पैर पसार रहे ब्लैक फंगस के लक्षणों के बारे में सचेत करने के लिए बता रहा हूं। यह उन बच्चों और नौजवानों को भी संक्रमित कर सकता है, जिनकी डायबिटिज या कैंसर की हिस्ट्री नहीं रही है, या जिन्होंने कभी ऑक्सीजन सपोर्ट या स्टेरॉयड नहीं लिया है। कोई लक्षण सामने आते ही सबसे पहले किसी डॉक्टर से सलाह लेना सही होगा।

महाराष्ट्र में भी ब्लैक फंगस के अब तक 2,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 80 लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई। हमारी संवाददाता नम्रता दुबे ठाणे के वेदांत हॉस्पिटल में गईं तो उन्हें कोरोना की जंग जीतने वाले 12 ऐसे मरीजों के बारे में पता चला, जो ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस की गिरफ्त में आ गए। इसी अस्पताल में भर्ती नरेश नाम के एक मरीज की आंखों में दर्द था, उन्होंने MRI करवाई जिसके बाद ब्लैक फंगस को हटाने के लिए सर्जरी की गई। फंगस बहुत तेजी से फैलता है और जरा भी देर होने पर मामला बिगड़ जाता है। इलाज के दौरान एक मरीज को एक दिन में 6 एंटी-फंगल इंजेक्शन लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी लगाया जाता है। पुणे में ब्लैक फंगस के लगभग 300 मरीज हैं और इस एंटी-फंगल दवा की सप्लाई बहुत कम है। नागपुर और नासिक में इसके 200-200 मरीज हैं और उन्हें भी इस जरूरी दवा की आवश्यकता है। महाराष्ट्र सरकार ने इस दवा की 1.9 लाख शीशियों की सप्लाई का आदेश दिया है।

बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी ब्लैक फंगस तेजी से फैल रहा है। उत्तर प्रदेश में सामने आए ब्लैक फंगस के लगभग 500 मामलों में से अकेले लखनऊ से लगभग 100 मामले सामने आए हैं। मेरठ, अलीगढ़, कानपुर और वाराणसी में भी ब्लैक फंगस के केस मिले हैं। बिहार में ब्लैक फंगस के 100 से ज्यादा मामले सामने आए हैं।

ब्लैक फंगस कोरोना वायरस की तरह संक्रामक नहीं है। यह बीमारी लाखों में से किसी एक को होती है। इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन लक्षण सामने आने पर सावधान रहने की जरूरत है। यह बीमारी कोरोना वायरस का कहर झेलने वाले अमेरिका या यूरोप के देशों में सामने नहीं आई। भारत में यह फंगस धूल, हवा, घास-फूस और पेड़-पौधों पर मौजूद रहता है। यह फंगस कमजोर इम्युनिटी वालों पर हमला करता है। इस बीमारी के महामारी बनने से पहले भारत में 6 फार्मा कंपनियां हर साल एम्फोटेसिरिन-बी की 3.8 लाख शीशियों का उत्पादन करती थीं। अब इसकी मांग कई गुना बढ़ गई है जिसके बाद दवा कंपनियों ने उत्पादन बढ़ाना शुरू कर दिया है।

5 और फार्मा कंपनियों को एम्फोटेसिरिन बनाने की आपातकालीन मंजूरी दे दी गई है। इसके अलावा अमेरिका से भी 6 लाख वॉयल्स इम्पोर्ट करने का ऑर्डर भी दे दिया गया है। उम्मीद है कि बहुत जल्द ये इंजेक्शन अस्पतालों तक पहुंचा दिए जाएंगे, ताकि मरीजों की जान बचाई जा सके। इस घातक बीमारी के तेजी से बदलते लक्षणों से सभी को सावधान रहने की जरूरत है।

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