Rajat Sharma

हिजाब के बहाने कट्टरपंथी कैसे मोदी को निशाना बना रहे हैं

rajat-sir कर्नाटक में पिछले एक महीने से ज्यादा समय से हिजाब विवाद जोरों पर है लेकिन अभी-भी कुछ कट्टरपंथी संगठनों द्वारा इस मुद्दे को भड़काने की साजिश से लोग अनजान हैं । मैंने इससे पहले के अपने ब्लॉग में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और इसकी छात्र शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) का उल्लेख किया था जो कि इस विवाद को उकसाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। गुरुवार को राजस्थान के कोटा में पीएफआई और उसकी छात्र शाखा ने एकता मार्च का आयोजन किया। ठीक इसी तरह के मार्च का आयोजन केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी किया गया। इन आयोजनों में एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) और पीएफआई समर्थकों ने हिस्सा लिया।

इस दौरान पीएफआई और अन्य नेताओं ने जो भाषण दिए उससे उनका एजेंडा बिल्कुल क्लियर होता गया। ऐसा लगता है कि यह एक सियासत, एक डिजाइन, एक एजेंडा है और इसी वजह से हिजाब विवाद जोर पकड़ रहा है। इनका लक्ष्य साफ है: चूंकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम किया जाए।

राजस्थान के कोटा में पीएफआई की मीटिंग ‘लोकतंत्र बचाओ’ बैनर तले आयोजित की गई। लेकिन यहां जो भी भाषण दिए गए वो हिजाब और मुस्लिम लड़कियों के धार्मिक अधिकारों के मुद्दे पर केंद्रित थे। हिजाब मुद्दे के साथ ही आरएसएस, राम मंदिर, सीएए- एनआरसी के नाम पर मुसलमानों को एक बार फिर डराया गया। मजहब और हिजाब के नाम पर मासूम बहनों-बेटियों को गुमराह किया गया। साथ ही हिजाब को कंधा बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर भी हमला किया गया।

कोटा में पीएफआई की मीटिंग को राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने इजाजत दी थी। कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद ओबैदुल्लाह खान आजमी ने भी इस मीटिंग में भाषण दिया। ‘एकता मार्च’ के बाद तकरीरों का दौर शुरू हुआ। एकता मार्च में शामिल लोगों को पीएफआई, एसडीपीआई और अन्य मुस्लिम नेताओं ने संबोधित किया। पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल अनीस अहमद ने भाषणों की थीम तय कर दी थी। उन्होंने इस कार्यक्रम में सबसे पहले हिजाब का मुद्दा उठाया और कहा-‘आज वे हमारी लड़कियों से हिजाब उतारने को कहते हैं… कल कुछ और मांग करेंगे।’ अनीस अहमद ने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर मुद्दा उठाया। आरएसएस और मोदी-योगी पर निशाना साधा। अनीस ने आरएसस की तुलना आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) की। उन्होंने कहा-‘आरएसएस और आईएसआईएस दोनों की विचाधाराएं कट्टरपंथी हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर बैन अल्पसंख्यकों की व्यक्तिगत पंसद में दखल है।

इस कार्यक्रम में पीएफआई की महिला शाखा, नेशनल वुमेन फ्रंट (एनडब्ल्यूएफ) ने भी हिस्सा लिया था। एनडब्ल्यूएफ की राजस्थान की अध्यक्ष वाजिदा परवीन ने भी तीखी तकरीर की। उन्होंने कहा कि 2014 में जब से मोदी सरकार आई है, तब से मुसलमानों का जीना दुश्वार हो गया है। अजमेर दरगाह के ख़ादिम सैयद सरवर चिश्ती भी इस मीटिंग में थे। सरवर चिश्ती ने अपने भाषण में कर्नाटक के हिजाब विवाद का भी ज़िक्र छेड़ा और कहा- ‘अल्लाहु अकबर के नारे में बहुत ताक़त है, इसकी मिसाल कर्नाटक में भी देखने को मिली जब मांड्या की छात्रा मुस्कान ख़ान ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया तो भगवा गमछे वाले भाग खड़े हुए। अगर वे जय श्री राम का नारा लगाते हैं, तो हमारा नारा अल्लाहु अकबर होना चाहिए।’ सरवर चिश्ती ने पीएम मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने भाषण में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल को भी नहीं बख़्शा।

एसडीपीआई के उपाध्यक्ष मोहम्मद शफ़ी ने अपने भाषण में सबसे पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया और कहा कि योगी गर्मी उतारने की धमकी देते हैं तो हमारे अंदर सूरज से भी ज़्यादा गर्मी है। योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी भाषण के दौरान कहा था कि उनकी सरकार चुनाव के बाद गडबडडी रने वालों की गर्मी उतार देगी। मोहम्मद शफ़ी ने अपने भाषण में हरिद्वार और छत्तीसगढ़ में हुई धर्म संसद का मुद्दा भी उठाया और कहा-‘अगर धर्म संसद से ऐसी ही धमकियां मिलती रहीं तो हम भी जवाब देना जानते हैं।’

इस रैली में शामिल करीब-करीब सभी वक्ताओं ने हिजाब, सीएए, एनआरसी के मुद्दे को उठाया और मोदी-योगी पर निशाना साधा। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: उत्तर प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी के पक्ष में वोट करने से रोकना। मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपने एक चुनावी भाषण में कहा था कि कैसे तीन तलाक को खत्म करने के बाद से उन्हें उन मुस्लिम महिलाओं का आशीर्वाद मिल रहा है जो अब अपना जीवन सुकून से जी रही हैं। इसके बाद से ही पीएफआई, सीएफआई और एसडीपीआई जैसे संगठन मुस्लिम महिलाओं के मन में मोदी को लेकर एक डर बिठाने की कोशिश के लिए सक्रिय हो गए। सीएए के खिलाफ शाहीनबाग आंदोलन के दौरान भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला था।

कर्नाटक में हिजाब का मुद्दा अभी थमा भी नहीं है कि अब यह आंध्र प्रदेश में भी फैलने लगा है। गुरुवार को विजयवाड़ा में दो छात्राओं ने आरोप लगाया कि बुर्क़ा पहनकर आने पर उन्हें कॉलेज में एंट्री नहीं मिली। यह घटना विजयवाड़ा के लोयला कॉलेज में हुई । दरअसल, कॉलेज मैनेजमेंट ने इन छात्राओं से कहा कि हिजाब पहनकर कॉलेज परिसर में दाखिल हुआ जा सकता है लेकिन क्लास में छात्राओं को बुर्का उतारकर बैठना होगा। जब इन दोनों छात्राओं ने बुर्क़ा हटाने से मना कर दिया तो इन्हें एंट्री नहीं मिली जबकि बाक़ी छात्राएं अपना बुर्क़ा उतारकर क्लास में गईं और उन्होंने पढ़ाई की।

कर्नाटक सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने गुरुवार को एक सर्कुलर जारी कर कहा कि विभाग की तरफ से चलाए जा रहे सभी स्कूल-कॉलेज में हिजाब, नक़ाब, दुपट्टा या भगवा शॉल पहनने की इजाज़त नहीं होगी। साथ ही सभी स्कूल-कॉलेजों से कहा गया है कि वह हाईकोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन कराएं। यह आदेश विभाग द्वारा चलाए जा रहे सभी रेजिडेंसियल स्कूलों, कॉलेजों और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों पर लागू है।

कर्नाटक के बेलगावी में विजया पैरा मेडिकल कॉलेज की छात्राएं हिजाब पहनकर पढ़ाई करने आईं तो मैनेजमेंट ने इन्हें एक अलग कमरे में बैठने को कहा। छात्राओं ने इसका विरोध किया। इसी बीच, कुछ मुस्लिम युवक भी कॉलेज के बाहर इकट्ठे होकर इस विरोध में शामिल हो गए। जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने पुलिस को बुला लिया। यह युवक पुलिसवालों से भी उलझ गए। जब युवक शांत नहीं हुए तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।

मुझे लगता है कि हिजाब जैसे एक स्थानीय मुद्दे को जानबूझकर राष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे लोग अलग-अलग तरह के तर्क देते हैं। कभी कहते हैं कि ये लड़कियां अपनी मर्जी से हिजाब पहनती हैं, हिजाब पर पाबंदी लगाना उनकी आजादी पर रोक लगाना है। कुछ लोगों का कहना है कि कुरान में ऐसा आदेश दिया गया है। जबकि कुरान में हिजाब का कोई उल्लेख नहीं हैं। हालांकि बड़ी संख्या में ऐसी लड़कियां हैं जो कोर्ट का आदेश मानते हुए हिजाब उतारकर कॉलेज आ रही हैं और परीक्षाएं दे रही हैं।

इस बीच एक तर्क यह भी आया कि हिंदू महिलाएं भी घूंघट निकालती हैं और अगर उस पर रोक नहीं है तो हिजाब पहनने पर पाबंदी क्यों? लेकिन ये असली मुद्दे से गुमराह करने की कोशिश है, क्योंकि बात स्कूल और कॉलेजों की है। कौन सी लड़की है जो घूंघट पहनकर स्कूल या कॉलेज जाती है? कौन सा ऐसा स्कूल या कॉलेज है जो किसी लड़की को घूंघट में क्लास अटैंड करने की इजाजत देता हैं? स्कूल-कॉलेज के जो नियम हैं उनका पालन सबको करना पड़ता है। नियम कानून न तो हिजाब के साथ भेदभाव करते हैं और न ही घूंघट को कोई छूट देते हैं। वैसे भी अभी पूरा मामला अदालत के सामने है। अदालत को सबके तर्क सुनकर फैसला देना है इसलिए थोड़ा सा धैर्य रखकर उसका इंतजार करना चाहिए।

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