Rajat Sharma

हमारे युवा क्रिकेटरों ने ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर यूं रचा इतिहास

जसप्रीत बुमराह, रविचंद्रन अश्विन, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, रवींद्र जडेजा और हनुमा विहारी जैसे खिलाड़ी घायल होकर पविलियन में बैठे थे, जबकि कप्तान विराट कोहली अपने घर आए हुए थे। हार्दिक पांड्या भी टीम में नहीं थे। ऑस्ट्रेलिया का सामना करने वाले कई खिलाड़ी ऐसे थे जो अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे, कई बॉलर्स तो वे थे जो नेट्स में बॉलिंग करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में रोके गए थे। इन खिलाड़ियों को प्लेइंग इलेवन में चुने जाने की उम्मीद न के बराबर थी। यह युवा टीम मैदान में न तो मैच बचाने के लिए उतरी, और न ही ड्रॉ करने के लिए बल्कि जीत हासिल करने के लिए आगे बढ़ती रही।

AKB30 नए साल की नई-नई शुरुआत में नए इंडिया की नई टीम ने ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर एक नया इतिहास रच दिया है। गाबा में हो रहे टेस्ट मैच के आखिरी दिन मंगलवार को टीम इंडिया ने स्टार क्रिकेटरों से भरी ऑस्ट्रेलियाई टीम को मात देकर टेस्ट सीरीज पर कब्जा किया और इसके साथ ही कामयाबी की एक नई इबारत लिख दी। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में यह दूसरी टेस्ट सीरीज जीती है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का अभेद्य किला माने जाने वाले गाबा के मैदान पर कंगारू पिछले 32 सालों में एक भी मैच नहीं हारे थे।

युवा भारतीय टीम ने इतिहास बदलकर रख दिया और अविश्वसनीय धैर्य एवं दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करते हुए नए कीर्तिमान स्थापित किए। शुभमन गिल के 91, क्लासिक चेतेश्वर पुजारा के 56 और डायनैमिक ऋषभ पंत के 89 रनों की बदौलत भारत ने टेस्ट मैच में ऐतिहासिक जीत हासिल की। टेस्ट मैच के आखिरी दिन टीम इंडिया के सामने 328 रनों का पहाड़ जैसा टारगेट था। आमतौर पर टेस्ट मैच के अंतिम दिन इतने रन बनाना आसान नहीं होता, क्योंकि पिच वियर एंड टियर हो चुकी होती है, बड़े क्रैक्स पड जाते हैं और गेंद में अनइवेन बाउंस रहता है।

इसके अलावा, ऐसे कम ही लोग होंगे जो ऐसी पिच पर ऑस्ट्रेलिया के विश्व स्तरीय तेज गेंदबाजों के सामने जीतने की कल्पना भी कर सकते हैं। लेकिन भारत के युवा और बहादुर क्रिकेटरों ने न सिर्फ इस चुनौती का मुकाबला किया, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई टीम पर पूरी तरह हावी भी रहे। कमेंटेटर्स भारतीय टीम के लिए डिटरमिनेशन, फियरलेस क्रिकेट, इंटेंट और रेजलियंस जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे। वह भी उस टीम के लिए जो अपने सीनियर और अनुभवी क्रिकेटरों के बिना खेल रही थी।

जसप्रीत बुमराह, रविचंद्रन अश्विन, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, रवींद्र जडेजा और हनुमा विहारी जैसे खिलाड़ी घायल होकर पविलियन में बैठे थे, जबकि कप्तान विराट कोहली अपने घर आए हुए थे। हार्दिक पांड्या भी टीम में नहीं थे। ऑस्ट्रेलिया का सामना करने वाले कई खिलाड़ी ऐसे थे जो अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे, कई बॉलर्स तो वे थे जो नेट्स में बॉलिंग करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में रोके गए थे। इन खिलाड़ियों को प्लेइंग इलेवन में चुने जाने की उम्मीद न के बराबर थी। यह युवा टीम मैदान में न तो मैच बचाने के लिए उतरी, और न ही ड्रॉ करने के लिए बल्कि जीत हासिल करने के लिए आगे बढ़ती रही।

जैसा कि आजकल सोशल मीडिया पर लोग काफी ज्यादा ऐक्टिव हैं, इसलिए ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लैटफॉर्म्स पर आज उन लोगों को सबसे ज्यादा आलोचना झेलनी पड़ी, जिन्होंने एडिलेड में ’36 रन पर आउट’ हो जाने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम पर सवाल उठाए थे। कमेंटेटरों और पूर्व क्रिकेटरों में से कइयों ने, जिनमें ज्यादातर विदेशी थे, भारतीय टीम को दूसरे दर्जे का कहा था। कुछ ने तो यह भी भविष्यवाणी की थी कि भारतीय टीम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीत ही नहीं सकती। एडिलेड टेस्ट हारने के बाद विराट कोहली वापस भारत लौट आए थे।

इंग्लैंड की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया इस सीरीज में भारत को 4-0 से हराएगी। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज मार्क वॉ ने भी इसी तरह की बातें की थीं। ऑस्ट्रेलिया के एक और पूर्व क्रिकेटर माइकल क्लार्क ने कहा था कि विराट कोहली के बिना टीम इंडिया की बैटिंग लाइनअप काफी कमजोर दिखती है। अब जबकि भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर धूल चटा दी है, तो इनके जैसे अन्य पूर्व क्रिकेटर्स जैसे कि रिकी पॉन्टिंग को अब अपने बयानों पर शर्मिंदा होना पड़ रहा है। भारत ने 2018-19 में भी ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर मात दी थी और अब 2021 में एक बार फिर से वही कारनामा दोहराया है।

मंगलवार की सुबह अंतिम दिन के खेल को देखते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी बॉलीवुड थ्रिलर को पर्दे पर उतरता हुआ देख रहा हूं। लोग एक-एक रन, एक-एक बाउंड्री के लिए टीम इंडिया का हौसला बढ़ा रहे थे। और जब मैच जीतकर टीम इंडिया के युवा खिलाड़ियों ने ट्रॉफी उठाई, तिरंगे को लहराया और मैदान का चक्कर लगाया, तब जाकर यकीन आया कि ऑस्ट्रेलिया में वाकई चमत्कार हो गया। हमारी टीम ने कंगारुओं को जोर का झटका दे दिया।

इस मैच के हीरो विकेटकीपर बैट्समैन ऋषभ पंत थे। इस खिलाड़ी के बारे में हाल के दिनों में कई लोगों ने तमाम तरह की कड़ी बातें कही थीं। कई लोग कहते थे कि ऋषभ पंत में पोटेंशियल की कमी नहीं है, बस उन्हें थोड़ा डिसिप्लिंड होने की जरूरत है। लेकिन 23 साल के इस नौजवान खिलाड़ी ने सिडनी और ब्रिसबेन में अपने प्रदर्शन से दिखाया कि वह अपने दम पर किसी भी समय मैच पलटने का माद्दा रखता है।

जब चेतेश्वर पुजारा 56 रन बनाकर आउट हुए, तो लगा कि जैसे टीम इंडिया यह मैच अब ड्रॉ करने के लिए खेलेगी। इसके बाद जब मयंक अग्रवाल भी जल्दी आउट हो गए, तो फिर लगा कि इस मैच में तीनों रिजल्ट जीत, ड्रॉ और हार, कुछ भी मुमकिन है। लेकिन ऋषभ पंत के इरादे तो कुछ और ही थे। वह ठानकर आए थे कि जब तक क्रीज पर मौजूद हैं, जीतने के लिए ही खेलेंगे। इसीलिए उन्होंने अपना अटैकिंग गेम जारी रखा और वॉशिंगटन सुंदर के साथ 53 रनों की साझेदारी की। इसके बाद तो जीत के लिए सिर्फ औपचारिकताएं रह गई थीं। लेकिन जब वॉशिंगटन सुंदर और शार्दुल ठाकुर एक के बाद एक आउट हो गए तो प्रेशर एक बार फिर ऋषभ पंत पर आ गया। सुंदर और शार्दुल वही खिलाड़ी थे, जिन्होंने पहली इनिंग्स में 123 रनों की जबर्दस्त पार्टनरशिप करके भारत की मैच में वापसी करवाई थी। ऋषभ पंत आखिर तक टिके रहे, टीम को जीत दिलाकर ही दम लिया, और नाबाद 89 रन बनाने के लिए उन्हें ‘मैन ऑफ द मैच’ का अवॉर्ड भी मिला।

टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री ने बाद में बताया कि कैसे टीम इंडिया इस अग्निपरीक्षा से पार पाने में सफल रही। उन्होंने कहा, ऑस्ट्रलिया का उसी की जमीन पर सामना करना काफी मुश्किल काम है, भारतीय खिलाड़ियों को क्वॉरन्टीन में जाना पड़ा, कई घायल हुए, एडिलेड में इतिहास के अपने न्यूनतम स्कोर 36 रन पर आउट हो गए, और फिर वहां से वापसी की और चैंपियंस की तरह खेले। शास्त्री ने कहा कि यह बेहद अविश्वसनीय था।

ब्रिसबेन के क्रिकेट इतिहास में इससे पहले किसी भी टीम ने 300 रन से ऊपर के स्कोर का पीछा करते हुए जीत दर्ज नहीं की थी। लेकिन हमारी टीम ने एक दिन में ही 300 रन से ज्यादा के स्कोर का कामयाबी से पीछा किया। इस मैच को जीतने में शार्दुल ठाकुर और मोहम्मद सिराज का काफी बड़ा रोल रहा। सिराज अभी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर आए ही थे कि तभी खबर आई कि उनके पिता का देहांत हो गया है। लेकिन अच्छे गेंदबाजों की कमी को देखते हुए सिराज ने ऑस्ट्रेलिया में ही रुकने का फैसला किया। सिडनी और ब्रिस्बेन में उन्हें कुछ ऑस्ट्रेलियाई फैन्स की नस्लीय टिप्पणियों से भी गुजरना पड़ा। सिराज ने इन सभी लोगों को अपनी शानदार परफॉर्मेंस से जवाब दिया।

मंगलवार की सुबह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि टीम इंडिया यह मैच जीतेगी। रोहित शर्मा 7 रन बनाकर आउट हो चुके थे, दुनिया के नंबर एक बल्लेबाज विराट कोहली, जिन्हें रन मशीन कहा जाता है, टीम में ही नहीं थे, लेकिन जब सलामी बल्लेबाज शुभमन गिल ने अच्छे शॉट्स लगाते हुए शानदार 91 रन बनाए, तो ऐसा लगा कि टीम जीत सकती है। चेतेश्वर पुजारा विकेट के सामने दीवार बनकर खड़े थे। उन्होंने कभी छाती पर तो कभी अंगूठे पर, कुल 6 बार बॉल से चोट खाई। जब मैंने उन्हें दर्द से कराहते हुए और मैदान में लेटे हुए देखा तो मुझे लगा कि हम यह मैच लगभग हार गए हैं। लेकिन वह फिर खड़े हुए, 211 गेंदों का सामना करते हुए 56 रन बनाए और ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को जमकर छकाया।

जब मयंक अग्रवाल भी नहीं चले तो जीत की उम्मीद काफी कम हो गई थी। इसके बाद ऋषभ पंत खेलने आए और एक छोर संभाले रखा। वह इस पूरी सीरीज़ में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए थे, और सिर्फ एक ही अच्छी इनिंग्स खेली थी। लेकिन इस बार उन्होंने कमाल कर दिया। जिस अंदाज में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के स्पिनर्स की पिटाई की, उससे लग गया था कि अब जीत तो पक्की है।

पंत ने साबित कर दिया कि वह वाकई में हार को जीत में बदलने वाले बैट्समैन हैं। वह जैसे-जैसे बाउंड्री मार रहे थे, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के चेहरे उतरते जा रहे थे। वॉर्नर और स्मिथ जैसे वर्ल्ड क्लास प्लेयर्स के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि नए खिलाड़ियों ने उनकी टीम को इस अंदाज में मात दी। भारतीय टीम के कई खिलाड़ी अपना पहला ही मैच खेल रहे थे।

भारत की इस युवा टीम की कामयाबी को लफ्जों में बयान नहीं किया जा सकता। गाबा की पिच पर यह भी साबित हो गया कि भारतीय क्रिकेट टीम का भविष्य भी काफी उज्ज्वल है। बस इन युवा खिलाड़ियों को इस सफलता को बड़े संयम से अपनी यादों में संजो कर रखना होगा। हमारे युवा क्रिकेटरों ने जो हिम्मत और दृढ़ संकल्प दिखाया है, उसकी मिसाल आने वाले खिलाड़ियों को हमेशा दी जाएगी।

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