Rajat Sharma

शिवसेना: उद्धव, शिंदे को बालासाहेब से सीखना चाहिए

AKB30 एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के खेमों के बीच शिवसेना की प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट्स को लेकर चल रही खींचतान अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। उद्धव खेमा ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया था, लेकिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शिंदे खेमा को नोटिस भेजा है और दो हफ्ते बाद इस मसले पर आगे सुनवाई होगी।

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते शिंदे खेमा को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी थी और पार्टी का पुराना चुनाव निशान ‘तीर और कमान’ उसे आवंटित किया था। उद्धव खेमा को अब डर है कि चुनाव आयोग के आदेश के तहत शिंदे गुट शिवसेना की प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट्स पर भी कब्जा कर लेगा।

उद्धव ठाकरे को जितनी चिंता पार्टी का नाम और चुनाव निशान जाने की है, उससे कहीं ज्यादा चिंता शिवसेना की प्रॉपर्टी को लेकर है। मंगलवार को उद्धव खेमा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव आयोग के आदेश पर यदि रोक नहीं लगाई जाती है, तो वे शिवसेना की संपत्ति और बैंक खातों समेत सब कुछ अपने कब्जे में ले लेंगे। सिब्बल ने चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस P S नरसिम्हा की बेंच से कहा, ‘वे पहले ही विधानसभा में पार्टी के दफ्तर पर कब्जा कर चुके हैं।’

मंगलवार को संसद परिसर के अंदर शिवसेना के संसदीय कार्यालय पर शिंदे गुट को कब्जा मिल गया। अविभाजित शिवसेना के 19 लोकसभा सांसदों में से 13 शिंदे गुट में चले गए हैं, जबकि ठाकरे गुट के साथ 6 लोकसभा सांसद और 3 राज्यसभा सांसद रह गए हैं।

शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने मंगलवार को मुंबई में हुई एक बैठक में पार्टी से जुड़े फैसले लेने के लिए सभी अधिकार मुख्यमंत्री को दे दिए। शिंदे ने स्पष्ट किया कि पार्टी संपत्ति या फंड पर दावा नहीं करेगी, लेकिन उद्धव खेमा अब पूरी तरह सतर्क हो गया है।

मंगलवार को उद्धव खेमा के नेता संजय राउत ने शिंदे गुट पर बड़ा आरोप लगाया। राउत ने कहा कि शिंदे ने सांसद, विधायक और शाखा प्रमुख खरीदने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। राउत का कहना है कि इसके लिए बाकायदा एक ‘रेट कार्ड’ तैयार किया गया है और पार्टी के नेताओं की ‘खरीद-फरोख्त’ के लिए एजेंट भी नियुक्त किए गए हैं। उनका दावा है कि सांसद को खरीदने के लिए 75 करोड़, विधायक को खरीदने के लिए 50 करोड़, कॉरपोरेटर को खरीदने के लिए 2 करोड़ और शाखा प्रमुख को खरीदने के लिए 50 लाख रुपये की पेशकश की गई थी। राउत का कहना है कि पिछले 5 महीने में नेताओं को खरीदने के लिए 2000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। शिंदे गुट के नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि राउत के आरोपों का कोई मतलब नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘संजय राउत परेशान हैं, हताश हैं, निराश हैं।’

शिवसेना के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के पास फिलहाल 382 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है, जिसमें जनरल फंड 186 करोड़ 84 लाख रुपये है, इन्वेस्टमेंट करीब 172 करोड़ रुपये का है और 3 करोड़ रुपये का फिक्सड डिपॉजिट है।

लेकिन उद्धव ठाकरे के मन में डर है कि चुनाव आयोग के फैसले के बाद अब पार्टी के साथ-साथ पार्टी की प्रॉपर्टी और इसका फंड भी शिंदे गुट के हाथ में चला जाएगा। उद्धव को डर शिवसेना भवन और मातोश्री के जाने का भी है। हालांकि संजय राउत का कहना है कि शिवसेना भवन पार्टी का नहीं है, ट्रस्ट की संपत्ति है। यह बात सही भी है। मुंबई के दादर इलाके में बना आलीशान शिवसेना भवन शिवाय सेवा ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है। बालासाहेब ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी। सेना भवन 1974 में बनना शुरू हुआ और 1977 में बनकर तैयार हुआ। जिस जमीन पर सेना भवन बना है, उसे एक मुस्लिम शख्स उमर भाई ने शिवाय सेवा ट्रस्ट को दी थी।

बालासाहेब ठाकरे कभी इस ट्रस्ट के मेंबर नहीं रहे। इसमें बालासाहेब की पत्नी मीनाताई ठाकरे के अलावा हेमचंद्र गुप्ता, वामन महाडिक, माधव देशपांडे, सुधीर जोशी, लीलाधर डाके, श्याम देशमुख, कुसुम शिर्के और भालचंद्र देसाई जैसे शिवसेना के संस्थापक सदस्य मेंबर थे। इनमें से कुसुम शिर्के, श्याम देशमुख, भालचंद्र देसाई ने इस्तीफा दे दिया जबकि मीनाताई ठाकरे, वामन महाडिक और हेमचंद्र गुप्ता का निधन हो गया।

बाद में शिवाय सेवा ट्रस्ट में उद्धव ठाकरे के करीबी अरविंद सावंत, रविन्द्र मिरलेकर, विशाखा राउत, सुभाष देसाई और दिवाकर राउते को ट्रस्टी बनाया गया। डेढ़ साल पहले तक इस ट्रस्ट में उद्धव ठाकरे का नाम नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका नाम बतौर ट्रस्टी जोड़ दिया गया। इस बीच मुंबई की एक लीगल फर्म ने चैरिटी कमिश्नर को नोटिस भेजा है कि अगर शिवसेना भवन, ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है तो फिर राजनीतिक कार्यों के लिए उसका इस्तेमाल कैसे हो सकता है।

उद्धव को खतरा अब अपने घर पर भी दिख रहा है। उनको लग रहा है कि ‘मातोश्री’ को लेकर भी विवाद हो सकता है, और एकनाथ शिंदे का गुट इस पर भी दावा कर सकता है। बालासाहेब ठाकरे ने 5 मंजिला ‘मातोश्री’ में सिर्फ 2 फ्लोर परिवार के लिए रखे थे। यह बात उन्होंने अपनी वसीयत में भी स्पष्ट की है। ‘मातोश्री’ का ग्राउंड फ्लोर शिवसेना के लिए रखा गया था, जहां एक हॉल है जिसमें शिवसेना के नेताओं की बैठकें होती हैं। दूसरी मंजिल पर भी एक हॉल है, तीसरी मंजिल पर अम्बा माता का मंदिर है, चौथी मंजिल पर आदित्य ठाकरे के युवा सेना का दफ्तर है और पांचवीं मंजिल पर उद्धव ठाकरे का ऑफिस है।

मंगलवार को संजय राउत ने डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और मुंबई पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे ने हाल ही में जेल से छूटे एक गैंगस्टर राजा ठाकुर को उनकी हत्या की सुपारी दी है। फडणवीस ने राउत के बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें नहीं पता कि राउत ने चिट्ठी सुरक्षा पाने के लिए लिखी है या सनसनी फैलाने के लिए। उन्होंने मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया।

सारी लड़ाई शिवसेना पर कब्जे की है, और शिवसेना न तो उद्धव ठाकरे ने बनाई, न एकनाथ शिंदे ने। शिवसेना की प्रॉपर्टी, शिवसेना भवन या मातोश्री न उद्धव ने बनाया, न एकनाथ शिंदे ने। ये सब बालासाहेब ठाकरे ने बनाया। शिवसेना का संगठन, इसकी सारी संपत्ति बालासाहेब ठाकरे के प्रभाव से और शिवसेना के लाखों कार्यकर्ताओं के योगदान से बनी थी।

उद्धव ठाकरे का दावा बालासाहेब की विरासत पर है, और एकनाथ शिंदे का दावा बालासाहेब के विचारों पर, लेकिन तथ्य यही है कि: शिंदे ने उस उद्धव को धोखा दिया जिसे बालासाहेब ने सेना प्रमुख बनाया था, और उद्धव ने कांग्रेस के साथ समझौता करके अपने पिता की विरासत को धोखा दिया। तो ये दोनों बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी कैसे हो सकते हैं?

अपने पूरे राजनीतिक जीवन में बालासाहेब ने कभी मुख्यमंत्री बनने की कोशिश नहीं की। बालासाहेब ठाकरे ने कभी किसी प्रॉपर्टी पर, किसी ट्रस्ट पर अपना अधिकार नहीं जताया। अगर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे बालासाहेब के विचारों पर चलते, बालासाहेब के आदर्शों को मानते तो शिवसेना के 2 टुकड़े होने की नौबत ही न आती। संकट तो शिवसेना के लाखों कार्यकर्ताओं के मन में है, जो बालासाहेब ठाकरे को अपना सुप्रीम लीडर मानते थे। आज वे इस परेशानी में हैं कि जाएं तो कहां जाएं।

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