Rajat Sharma

लोकतंत्र का मतलब तुम क्या जानो, मोदी बाबू !

akbराहुल गांधी ने ठीक तो कहा, हमारे देश में लोकतन्त्र मर चुका है। लोकतन्त्र का मतलब होता है वो शासन जिसमें पता ही न चले कि सरकार कौन चला रहा है। दस साल तक लोग सोचते रहे मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री है पर मनमोहन सिंह को कभी नहीं लगा कि वो प्रधानमंत्री हैं, हमने लगने ही नहीं दिया। ये मोदी भी कोई प्रधानमंत्री हैं जो अपने बलबूते पर सरकार चलाता है। ये कैसा लोकतन्त्र है, जिसमें मोदी की पार्टी के नेता उनका अपमान तक नहीं कर सकते। लोकतन्त्र तो उन दस सालों में था, जब कांग्रेस की सरकार थी, राहुल गांधी ने आर्डिनेंस फाड़ कर कूड़े के डिब्बे में डाल दिया था। सरेआम प्रधानमंत्री का अपमान किया था और मनमोहन सिंह ने चूं तक नहीं की। ये होता है लोकतन्त्र !
जैसे आजकल पाकिस्तान में लोकतन्त्र है। इमरान खान को वज़ीरे आज़म कहा जाता है लेकिन सब जानते हैं कि सरकार कौन चलाता है। चुनाव भी फौज कराती है, किसे जिताना. किसे हराना है, ये भी फौज तय करती है। इसे कहते हैं जम्हूरियत-ए-फौज। यहां फौज सरकार और विरोधी दलों, दोनों का बड़ा ख्याल रखती है। लोग इसे ख्वामख्वाह तानाशाही कहते हैं।

हमारे मुल्क में हमने इसी तरह की जम्हूरियत देखी है। इमरजेंसी के ज़माने में राहुल की दादी की सरकार ने विरोधी दलों का पूरा ख्याल ऱखा। सारे नेताओं के लिए 19 महीने मुफ्त में रहने और खाने का इंतजाम किया, किसी का गला खराब न हो, इसलिए बोलने से मना कर दिया। लेकिन आजकल न जाने क्यों कुछ लोग इंदिरा जी की इस दरियादिली के लिए माफी मांगते हैं। उस ज़माने में सारी दुनिया ने देखा था कि जो अखबार वाले खबरों के लिए दिन-रात दौड़ते थे, उन्हें आराम दिया गया। लोकतन्त्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि बनी-बनाई खबरें, लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट अखबारों तक पहुंचा दी जाती थी। अखबार वाले बड़े नाशुक्रे हैं कि अहसान तक नहीं मानते ।
इमरजेंसी के उस ज़माने में ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ सिर्फ नारा नहीं था, सरकार की योजनाओं का लाभ सबको बराबर मिलता था। जैसे जब जबरन नसबंदी हुई तो हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की हुई। अब ये बीजेपी वाले क्या जानें, ये तो जेलों में मुफ्त का खाना उड़ा रहे थे। लोकतन्त्र की ज़डें उस ज़माने में कैसे मजबूत हुई इन्हें क्या पता ? जिनकी नसबंदी हुई उन से पूछ कर देख लो ।
राहुल जी ठीक कहते हैं कि आजकल उन्हें छोड़कर सब मोदी से डरते हैं। जब दादी का राज था तो कोई मोदी से नहीं डरता था बल्कि मोदी डरते थे, वो तो सिख का भेष बनाकर इधर उधऱ भागते फिरते थे, इसीलिए राहुल को पांच साल की उम्र से पता है कि मोदी डरपोक है।

राहुल गांधी ठीक कहते हैं कि पिछले छह साल में लोकतन्त्र मर गया है । अगर लोकतन्त्र जिंदा होता तो उन्हे चुप रहने के लिए मजबूर न होना पड़ता। वो सारी बातें कह पाते जो उऩके दिल में है। वो कह पाते कि मोदी कायर है, चोर है, उद्योगपतियों के इशारे पर चलता है, गरीबों का दुश्मन है, किसानों का शत्रु है लेकिन लोकतन्त्र नहीं है तो राहुल मन मसोस कर रह जाते हैं। राहुल और उनकी कांग्रेस मोदी को कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं, हिटलर, खून का सौदागर भस्मासुर, वायरस, नाली का कीड़ा और न जाने क्या-क्या, लेकिन क्या करें, बोलने की आजादी नहीं है। कभी कह ही नहीं पाए। आज़ादी होती तो कहते मोदी ने राफेल डील में तीस हजार करोड़ अंबानी की जेब में डाल दिए, आजादी होती तो एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते, आजादी होती तो कह पाते कि मोदी ने भारत की ज़मीन चीन को दे दी, लेकिन क्या करें, कोई बोलने ही नहीं देता। दस मिनट बोलने देते तो भूकंप आ जाता पर मोदी की तानाशाही ने भूकंप पर भी पाबंदी लगी दी, आया ही नहीं।

ये याद रखना चाहिए कि देश में लोकतन्त्र को जिंदा रखने के लिए कांग्रेस ने कैसे कैसे बलिदान दिए हैं। वो कई बार जानबूझ कर चुनाव हारी ताकि कभी कभार विरोधी दल की सरकार बन सके। दुनिया को पता चले कि यहां लोकतन्त्र मजबूत है लेकिन वो सब सरकारें दो चार साल, बहुत हुआ तो पांच साल के लिए चलवाते थे। लोकतन्त्र कायम रहे इसके लिए मोदी को भी थोड़े दिन के लिए बनवाया था। मोदी को एक बार जिताने के लिए कांग्रेस ने क्या-क्या नहीं किया? अपने ऊपर 2जी और कॉमनवैल्थ गेम्स में हेराफेरी जैसे इल्जाम लगवाए, जीजा जी को भी बलि चढ़ा दिया । लेकिन नरेन्द्र मोदी बहुत एहसान फरामोश निकला । खैरात में मिली कुर्सी पर जमकर बैठ गया।
क्या ये कोई लोकतन्त्र है कि एक आदमी अठारह से बीस घंटे काम करे, कोई छुट्टी न ले। दुनिया के बड़े बड़े लोकतन्त्र देख लीजिए, कोई ऐसा नहीं करता। सब छुट्टी पर जाते हैं। सब सोते हैं और दूसरों को सोने देते हैं, सब खाते हैं और दूसरों को खाने देते है । लोकतन्त्र का तकाज़ा है कि सब वापस पहले की तरह चलना चाहिए , जिसके बाप की जो जगह है वो उसको वापस मिलनी चाहिए। ये तानाशाही नहीं तो और क्या है कि हर चुनाव में ये कांग्रेस को हरा देते हैं?
आज हाल ये हो गया है कि इस देश की जनता भी तानाशाह हो गई है। इसकी नासमझी पर गौर फरमाइए इस जनता ने विरोधी दलों को इतना कमजोर कर दिया कि वो करें तो क्या करें । अब देखिए, बंगाल में चुनाव हो रहे है और कांग्रेस को लोगों ने अभी से रेस से बाहर कर दिया। मोदी ने भी ब्रिगेड मैदान की रैली में कांग्रेस को ज़रा भी नहीं कोसा । कांग्रेस का ये अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान! ब्रिगेड परेड मैदान में मोदी के लिए इतनी भीड़ आ गई, सारे लोग ‘मोदी मोदी’ चिल्लाने लगे, क्यों? अगर सारी जनता मोदी के पीछे भागेंगी तो क्या दुनिया में भारत की बदनामी नहीं होगी ? भला कौन इसे लोकतन्त्र मानेगा ?
लोकतन्त्र का मतलब होता है, मिल-बांट कर खाना, कहीं तुम राज करो, कहीं हम राज करें। लोकतन्त्र की भलाई इसी में है कि अब बहुत हो गया। जिस के परिवार की कुर्सी ली थी उसे वापस कर दी जाए, फिर देखना ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में हमारे लोकतन्त्र की मजबूती की खबरें छपेंगी । फिर किसी एजेंसी की हिम्मत नहीं होगी कि हमारे लोकतन्त्र पर सवाल उठाए। अगर मोदी ये सोचता है वोट लेकर, चुनाव जीत कर, वो लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है तो वह बहुत गलतफहमी में है।

हे मोदी ! हमारी जायदाद वाली कुर्सी हमें लौटा दो। अब तो दाढ़ी भी बढ गई है, हिमालय पर चले जाओ और लोकतंत्र को बचाओ । अब बहुत हो गया, अब लौट जाओ।

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