Rajat Sharma

राहुल का मोदी को ‘कायर’ कहना न सिर्फ अपमानजनक है बल्कि शर्मनाक भी है

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया तो वह डरपोक हैं? और राहुल गांधी चीन की हिमायत करने के चक्कर में चुपके-चुपके चीनी राजदूत से मिले तो वह बहुत बड़े सूरमा है? जिन नरेंद्र मोदी ने चीन पर इकोनॉमिक प्रैशर डाला, दुनिया भर के मुल्कों से दबाव डलवाया, झुकने को मजबूर कर दिया, वह कमजोर नेता हैं? और जो नेता लद्दाख गतिरोध के मुद्दे को लेकर मोदी पर सवाल उठा रहे हैं वे बहादुर हो गए? जिन नरेंद्र मोदी ने अपनी फौज को चीन को मुंहतोड़ जबाव देने का आदेश दिया, सीमा पर फैसले लेने का अधिकार दिया, उनके लिए राहुल कहते हैं कि वह चीन से डर गए। और जो आधा सच आधा झूठ बोलकर अपनी फौज के शौर्य को कम और चीन की सेना की ताकत को ज्यादा बताएं, वह बड़े हिम्मत वाले हो गए? ये कैसे हो सकता है?

AKB30 आज मैं आपसे बड़े दुखी मन से राहुल गांधी के बारे में कुछ कहना चाहता हूं। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में शालीनता की हद पार कर दी। उन्होंने लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटने के मुद्दे पर मोदी के बारे में जिन शब्दों का प्रयोग किया, वे अशोभनीय और अपमानजनक हैं। जिसने भी शुक्रवार को राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी होगी, उसे तब बहुत बुरा लगा होगा जब उन्होंने हमारे प्रधानमंत्री के लिए ‘गद्दार’ और ‘कायर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।

अपने गुस्से को जाहिर करते हुए राहुल गांधी यह भूल गए कि नरेंद्र मोदी एक व्यक्ति नहीं है बल्कि देश के प्रधानमंत्री हैं। वह पूरी दुनिया के सामने भारत के प्रतिनिधि हैं, हमारे देश के सबसे बड़े नेता हैं और उन्हें देश की जनता ने ये जिम्मेदारी सौंपी है। नरेंद्र मोदी किसी एक पार्टी के नेता नहीं हैं, देश की सरकार के मुखिया हैं और 135 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि हैं। चीन की तरफदारी करना और अपने प्रधानमंत्री को कायर कहना स्वीकर नहीं किया जा सकता। चीन की फौज को शातिर और अपनी फौज को कमजोर कहना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ये कहना कि नरेंद्र मोदी चीन के सामने खड़े नहीं हो सकते, वह चीन से डरते हैं, सत्य से परे है।

राहुल आखिर कहना क्या चाहते हैं? जिन नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की, वह कायर हो गए? जिन नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा, एयर स्ट्राइक की, वह गद्दार हो गए? और जिन राहुल गांधी ने एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे, वह महान देशभक्त हो गए? क्या राजनीतिक बहस की भाषा ऐसी ही होनी चाहिए?

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया तो वह डरपोक हैं? और राहुल गांधी चीन की हिमायत करने के चक्कर में चुपके-चुपके चीनी राजदूत से मिले तो वह बहुत बड़े सूरमा है? जिन नरेंद्र मोदी ने चीन पर इकोनॉमिक प्रैशर डाला, दुनिया भर के मुल्कों से दबाव डलवाया, झुकने को मजबूर कर दिया, वह कमजोर नेता हैं? और जो नेता लद्दाख गतिरोध के मुद्दे को लेकर मोदी पर सवाल उठा रहे हैं वे बहादुर हो गए? जिन नरेंद्र मोदी ने अपनी फौज को चीन को मुंहतोड़ जबाव देने का आदेश दिया, सीमा पर फैसले लेने का अधिकार दिया, उनके लिए राहुल कहते हैं कि वह चीन से डर गए। और जो आधा सच आधा झूठ बोलकर अपनी फौज के शौर्य को कम और चीन की सेना की ताकत को ज्यादा बताएं, वह बड़े हिम्मत वाले हो गए? ये कैसे हो सकता है?

राहुल गांधी ने देश के प्रधानमंत्री के बारे में जिस हल्के अंदाज में बात की, जिन अल्फाजों का इस्तेमाल किया, वह बहुत ही शर्मनाक हरकत है। शुक्रवार को राहुल ने कहा, ‘चीन के सामने नरेंद्र मोदी ने अपना सिर झुका दिया, मत्था टेक दिया’, ‘नरेंद्र मोदी ने हिंदुस्तान की पवित्र जमीन चीन को दे दी है’, ‘प्रधानमंत्री डरपोक हैं जो चीन के सामने खड़े नहीं हो सकते’, ‘नरेंद्र मोदी हमारे जवानों की शहादत पर थूक रहे हैं’, ‘मोदी सेना के बलिदान के साथ धोखा कर रहे हैं’, ‘नरेंद्र मोदी ने भारत माता का एक टुकड़ा चीन को दे दिया है।’ उन्होंने ऐसी ही तमाम बातें कीं।

यह कैसी भाषा है? ये कौन सी मर्यादा है? मोदी के खिलाफ आप सैकड़ों आरोप लगा सकते हैं, लेकिन कोई भी उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठा सकता। जिस शख्स ने पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा, उसे दुनिया के सामने बेनकाब कर दिया, जिसने आतंकवादियों के सीने में खौफ भर दिया, वह कभी भी भारत की संप्रभुता के साथ समझौता नहीं कर सकता, गद्दारी की तो बात ही छोड़ दीजिए।

क्या राहुल गांधी को याद है कि उनकी पार्टी के रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने 2013 में संसद में क्या कहा था? एंटनी ने कहा था, ‘चीन इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के मामले में भारत से बहुत आगे है। आजादी के बाद से भारत की नीति थी कि अविकसित सीमावर्ती इलाके विकसित सीमावर्ती इलाकों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित रहे हैं।’ तो हम यह मान लें कि राहुल की नजर में उनके रक्षा मंत्री एंटनी बहादुर थे, और मोदी कायर हैं क्योंकि उन्होंने लद्दाख में सरहद पर जवानों के बीच जाकर चीन को ललकारा और ड्रैगन की आंखों में आंखें डालकर कहा कि वह अपनी हद में रहे। क्या राहुल को ये भी याद दिलाने कि जरूरत है कि जब चीन ने भारत की हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया था तब देश के प्रधानमंत्री उनके परनाना थे?

आज मैं राहुल गांधी को यह याद दिलाना चाहता हूं कि देश के प्रधानमंत्री पर कोई दुश्मन भी हमला करे तो कैसे उनके सम्मान की रक्षा की जाती है।

29 अगस्त 2013 को दिल्ली में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को ‘देहाती औरत’ कहने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर जमकर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि नवाज शरीफ ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर हमारे प्रधानमंत्री का अपमान किया है। यह स्टेट्समैनशिप का एक शानदार उदाहरण है। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनकी पार्टी बीजेपी विपक्ष में थी। इसे कहते हैं देशप्रेम, और देशभक्त होना बहुत हिम्मत का काम है।

राहुल गांधी को कम से कम उन जवानों के बारे में सोचना चाहिए जो जान पर खेल कर देश की सीमा की सुरक्षा में लगे हैं। आज भी हमारे जवान लद्दाख की जिन ऊंची ऊंची चोटियों पर बैठे हैं, वहां का तापमान माइनस 40 डिग्री है। हड्डियां जमा देने वाली इस सर्दी में हमारे बहादुर जवान चीन की फौज के सामने डटे हैं, और राहुल गांधी कह रहे हैं कि हमारी सरकार ने चीन के सामने सरेंडर कर दिया। ऐसा कहकर राहुल गांधी हमारी फौज की बहादुरी पर सवाल उठा रहे हैं, जिसके कमांडरों ने चीन के साथ सैनिकों की वापसी को लेकर एक समझौता किया है।

अपनी 13 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कई बार कहा कि हमारी जमीन चीन को दे दी गई है। रक्षा मंत्रालय ने इस आरोप का कड़े शब्दों में खंडन किया। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ये ‘गलत और भ्रामक टिप्पणियां हैं। भारतीय क्षेत्र फिंगर 4 तक होने का दावा स्पष्ट रूप से गलत है। भारत का क्षेत्र भारत के नक्शे द्वारा दर्शाया गया है और इसमें 1962 से चीन के अवैध कब्जे में वर्तमान में 43,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र शामिल है।’

रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘यहां तक कि भारतीय धारणा के अनुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) भी फिंगर 8 पर है, फिंगर 4 पर नहीं। यही कारण है कि भारत ने चीन के साथ मौजूदा समझ सहित फिंगर 8 तक गश्त करने का अधिकार लगातार बनाए रखा है। गलत ढंग से समझी गई सूचना के कुछ दृष्टांतों को देखते हुए उनका खंडन करना एवं उनके बारे में स्थिति स्पष्ट करना आवश्यक है जिनको मीडिया एवं सोशल मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। जो लोग हमारे सैन्य कर्मियों द्वारा बलिदान देकर अर्जित की गई उपलब्धियों पर संदेह करते हैं, वे वास्तव में उनका अनादर कर रहे हैं।’

अंत में मैं कहना चाहूंगा की पूर्वी लद्दाख में बीते 9 महीनों में जो कुछ हुआ वह देश के वीर जवानों के लिए गौरव का विषय है। जब मुद्दा देश का हो, जब बात राष्ट्र की सम्मान की हो, तो राजनीतिक मतभेद भूलकर एक साथ खड़े होकर दुश्मन को जबाव देना चाहिए। आज कांग्रेस के एक बड़े नेता ने मुझसे कहा कि राहुल गांधी को जरा याद दिलाइए कि जब 2008 में आतंकवादियों ने मुबई में हमला किया था तब तो किसी ने मनमोहन सिंह से सवाल नहीं पूछे थे। उस वक्त तो पूरा देश, सारे विरोधी दल, सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़े थे।

अब चूंकि राहुल गांधी ने सवाल उठा ही दिए हैं, तो मैं भी एक राज की बात बताता हूं। 26\11 को मुंबई हमले के तुरंत बाद आर्मी, नेवी और एयरफोर्स, तीनों सेनाओं के चीफ ने तय किया कि पाकिस्तान में घुसकर आंतकवादी अड्डों को खत्म करेंगे। तीनों चीफ उस समय के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के पास गए और उनसे साफ-साफ कहा कि एयरस्ट्राइक का प्लान तैयार है, फाइटर जेट तैयार हैं, उनमें लेजर गाइडेड बम और मिसाइलें लगाई जा चुकी हैं, हमारे पास चौबीस घंटे का वक्त है, सरकार परमिशन दे तो पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर मारेंगे। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने परमिशन नहीं दी। 26/11 के हमले के 9 साल बीतने पर यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि उस वक्त के एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने रिटायर होने के बाद एक इंटरव्यू में किया था।

मीटिंग के दौरान वायुसेना प्रमुख ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को बताया कि रसद से लेकर हथियारों और लड़ाकू विमानों तक, सब कुछ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आतंकियों के ट्रिंग सेंटर पर हमला करने के लिए तैयार है। लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं मिली। एयर चीफ मार्शल (रिटायर्ड) फली होमी मेजर ने कहा था, ‘26/11 जैसे हमलों के मामले में जवाबी हमला बोलने का मौका सिर्फ 24 घंटे के अंदर तक ही रहता है।’ उन्होंने कहा था कि एयरफोर्स द्वारा की गई एक छोटे से टैक्टिकल ऐक्शन का भी रणनीतिक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा था, ‘सर्जिकल स्ट्राइक एक बड़ा मौका था जो खो गया और हम इसका इस्तेमाल ही नहीं कर पाए।’

इस बात की पुष्टि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में जारी हुए अपने संस्मरण ‘अ प्रॉमिस्ड लैंड’ में की है। अपने संस्मरण में उन्होंने 2010 की अपनी भारत यात्रा का जिक्र करते हुए लिखा है कि कैसे मनमोहन सिंह ने 26/11 हमलों के बाद पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने की मांग का विरोध किया था।

ओबामा ने लिखा, ‘लेकिन उनका यह विरोध सियासी तौर पर महंगा पड़ गया।’ सिंह ने ओबामा से आशंका व्यक्त की थी कि मुस्लिम विरोधी भावना भड़कने से बीजेपी मजबूत हो सकती है।

ओबामा ने इस बातचीत के बारे में लिखा है कि, ‘उन्होंने कहा कि मुस्लिम विरोधी भावना के बढ़ने से भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी, हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रभाव मजबूत हुआ है।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मिस्टर प्रेजिडेंट, धार्मिक और जातीय एकजुटता का आह्वान एक नशे की तरह हो सकता है। और नेताओं के लिए इसका फायदा उठाना इतना मुश्किल नहीं है, चाहे वह भारत हो या कोई और जगह।’

उस समय राहुल गांधी भारत के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक थे, वह सांसद थे। डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरपरस्ती वाली सरकार राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी के इशारे पर चलती थी। राहुल ने तब अपने प्रधानमंत्री से क्यों नहीं कहा कि ‘घर में घुस के मारो?’ अगर उस समय कोई डॉक्टर मनमोहन सिंह को ‘कायर’ कहता तो उन्हें कैसा लगता?

एक बहुत ही मशहूर कहावत है, ‘जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते।’ राहुल गांधी को यह बात समझनी चाहिए।

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