Rajat Sharma

महिला कल्याण के मामले में मोदी का अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है

AKB30 लोकसभा ने नारी शक्ति वंदन विधेयक को लगभग सर्वसम्मति से पारित किया. राज्य सभा में भी आज दिन भर बहस के बाद ये बिल लगभग सर्वसम्मति से पास हो जाएगा. मैं राजनीतिक दलों की प्रशंसा करूंगा कि सारे मतभेद भुलाकर उन्होने लगभग सर्वसम्मति से इस बिल को पास किया. लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण तो मिलेगा लेकिन संवैधानिक आवश्यकताओं को देखते हुए ये तभी लागू हो पाएगा जब देश भर में जनगणना पूरी होगी और उसके बाद परिसीमन आयोग आपना काम पूरा करेगा. बिल तो पास हो गया, लेकिन अब इसे मुद्दा बनाकर जातिगत जनगणना और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक की सियासत शुरू हो गई. लोकसभा में सोनिया गांधी, डिंपल यादव, सुप्रिया सुले, कनीमोली जैसे विपक्ष की सभी नेताओं के भाषण की शुरूआत इसी लाइन से हुई कि वो महिला आरक्षण का समर्थन तो करती हैं, लेकिन इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए और ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाय. राहुल गांधी ने भी यही बात की और साथ में जातिगत जनगणना की भी मांग की. सिर्फ एक सांसद असद्दुदीन ओवैसी ऐसे थे जिन्होंने कहा कि वो बिल के खिलाफ खड़े हैं. लोकसभा में कुल 454 मत पक्ष में पड़े और सिर्फ दो वाट विरोध में पड़े. ये दोनों वोट ओवैसी की पार्टी AIMIM के थे. ऐसा नहीं है कि विरोधी दलों के सांसदों ने पूरे मन से, बिना किसी शक शुबहे के, महिलाओं को उनका हक देने वाले विधेयक का समर्थन किया. तमाम तरह के सवाल उठाए गए, राजनीतिक दांव खेले गए, किसी ने सरकार की मंशा पर शक जाहिर किया, पूछा, महिला आरक्षण तुरंत लागू क्यों नहीं हो सकता? सरकार जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराती? किसी ने पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की. किसी ने मुस्लिम महिलाओं को आऱक्षण देने की वकालत की. किसी ने कहा कि ये सिर्फ चुनावी शिगूफा है, होगा कुछ नहीं, लेकिन आखिर में अमित शाह ने सारे सवालों के, सारी आशंकाओं के जवाब दिए और जो सियासी चालें थी, उनको भी बेनकाब कर दिया. लोकसभा में नेताओं के बयान सुनेंगे, तो साफ हो जाएगा कि महिला आरक्षण लागू करना कितना मुश्किल काम था, ये मामला 27 साल से क्यों लटका था. मोदी सरकार ने जो बिल पेश किया है, उसमें कहा गया है कि नारी शक्ति वंदन बिल संसद में पास होने के बाद जनगणना होगी, फिर परिसीमन आयोग बनेगा. वही आयोग तय करेगा कि लोकसभा और विधानसभाओं की कौन-कौन सी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. बिल के इसी प्रावधान को विरोधी दलों के नेताओं ने पकड़ा, सरकार की नीयत पर सवाल उठाए. कहा कि अगर सरकार की मंशा साफ है तो महिलाओं को तुरंत आरक्षण क्यों नहीं देती, इसमें देर करने की क्या जरूरत है. परिसीमन आयोग के नाम पर इस मामले को 2029 तक लटकाने की क्या जरूरत है? बिल पास होते ही महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता? जवाब में अमित शाह ने साफ शब्दों में कहा कि परिसीमन और सीटों का आरक्षण एक संवैधानिक प्रक्रिया है, और सरकार इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती. अमित शाह ने ये लेकिन जरूर कहा कि मोदी सरकार किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होने देगी. विरोधी दल भी अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि कोई भी सरकार होती, महिला आरक्षण बिल को संसद से पास करवाकर तुरंत लागू करना संभव नहीं था. विपक्ष सरकार की मजबूरियां समझता है. संविधान के मुताबिक, परिसीमन 2026 से पहले नहीं हो सकता. संविधान में ये भी कहा गया है कि परिसीमन जनगणना के बाद ही होगा. परिसीमन आयोग ही लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की नई संख्या तय करेगा और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें तय करना भी परिसीमन आयोग की जिम्मेदारी होगी. इसलिए ये सरकार की मजबूरी है कि 2026 से पहले कुछ नहीं कर सकती. अब तक तीन बार सीटों का परिसीमन हुआ है. तीनों बार कांग्रेस की सरकारें थी. इसलिए कांग्रेस के नेता ये बात अच्छी तरह जानते हैं. इसके बाद भी सोनिया गांधी समेत सभी विरोधी दलों के नेता कह रहे हैं कि सरकार की मंशा साफ नहीं है. ये समझने की जरूरत है कि आखिर आज सभी विरोधी दलों के नेता पिछड़े वर्ग की महिलाओं और जातिगत जनगणना की बात क्यों कर रहे हैं. असल में विरोधी दलों को लगता है कि विकास के नाम पर मोदी को हराना मुश्किल है, गरीब कल्याण योजनाओं के मुकाबले में भी वो नहीं ठहरेंगे, मोदी पर भ्रष्टाचार का इल्जाम भी नहीं लगा सकते. हिन्दू-मुसलमान की बात करके भी मोदी को नहीं घेर सकते. तो अब एक ही रास्ता बचता है, जाति का मुद्दा उठाया जाए. विरोधी दलों को लगता है कि वोट बैंक के लिहाज से पिछड़े वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है, इसलिए जातिगत जनगणना की बात करके पिछड़ों को भड़काया जाए. इसीलिए नीतीश कुमार ने बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा उछाला. मोदी विरोधी मोर्चे की सारी पार्टियों को पूरा गणित समझाया, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी’ का नारा दिया. अखिलेश यादव तो पहले ही PDA को जीत का फॉर्मूला बताते हैं. PDA का मतलब है, पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक. अब कांग्रेस को भी ये बात समझ आ गई. इसीलिए राहुल और सोनिया गांधी ने भी जातिगत जनगणना की मांग की. लेकिन ये नरेन्द्र मोदी की चतुराई है कि तमाम विरोध और सवालों के बाद भी उन्होंने सभी विरोधी दलों को महिला आरक्षण बिल का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया .और ये बिल लोकसभा में बिना किसी विरोध के पास हुआ. इस बिल का समर्थन 454 सांसदों ने किया. सिर्फ दो सासदों ने इस बिल का विरोध किया. एक असदुद्दीन ओबैसी और दूसरे उन्हीं की पार्टी के सांसद इम्तियाज जलील. उनका विरोध का कारण था, मुस्लिम महिलाओं को आरक्षण क्यों नहीं दिया गया. ओवैसी ने आरोप लगाया कि महिला आरक्षण बिल सिर्फ सवर्ण जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है. असल में कोई भी पार्टी देश की आधी आबादी को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती. सबने अपना सियासी फायदा देखा लेकिन सबने इल्जाम लगाया कि नरेंद्र मोदी ये कानून राजनीतिक मकसद से लाए हैं. लेकिन अमित शाह ने बताया कि मोदी का महिला कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता कोई आज का नहीं है. अमित शाह ने जो बताया उसे समझने की जरूरत है. मोदी जब बीजेपी के संगठन में थे तो उन्होंने पार्टी से ये प्रस्ताव पास करवाया था कि बीजेपी के पदाधिकारियों में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाय. गुजरात में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे, तो जो भी उपहार उन्हें मिलते थे, उनकी हर साल नीलामी होती थी और नीलामी से आने वाला पैसा गरीब लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च किया जाता. जिस दिन मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ा, उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर जितनी भी सैलरी मिली थी, वो सारी उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए दान कर दी. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के लिए शौचालय बनाने का बड़ा फैसला किया और इसका जिक्र कई बार हुआ है कि कैसे शौचालय बनने से महिलाओं की रोज़ की दिक्कतें कम हुई, उनकी सेहत और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हुई. इसी तरह मोदी ने चूल्हे की आग से होने वाले धुएं पर ध्यान दिया. इस त्रासदी से महिलाओं को बचाने के लिए उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिए. नल से जल योजना भी महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई क्योंकि गांव-देहात में महिलाओं की आधी ज़िंदगी पानी भरने में गुजर जाती थी.मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का कानून बनाया . अगर इस पृष्ठभूमि को देखें तो मोदी पर ये आरोप सही नहीं बैठता कि वह महिलाओं की चिंता सिर्फ चुनाव से पहले करते हैं. ये कहना कि महिला आरक्षण बिल सिर्फ उनके वोटों के लिए लाया गया, कमजोर तर्क है. एक बात मैं फिर कहना चाहता हूं कि कोई भी नेता, कोई भी पार्टी अगर लोक कल्याण के काम करके वोट मांगना चाहती है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. महिला आरक्षण का कानून बनने से महिलाओं को देश की सत्ता में भागीदारी मिलेगी. लोकसभा औऱ विधानसभाओं में उनकी संख्या बढ़ेगी, उनके अधिकार बढेंगे, उनका मान बढ़ेगा. ये एक ऐसा फैसला है जिसका सबको स्वागत करना चाहिए.

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