Rajat Sharma

पाकिस्तान में ‘माल-ए-गनीमत’ बताकर क्यों बेचे जा रहे हैं अमेरिकी हथियार

rajat-sir पिछले महीने अफगानिस्तान पर हुए तालिबान के कब्जे का असर दिखने लगा है। अमेरिका ने अफगानिस्तान से जाते वक्त जो अत्याधुनिक हथियार और उपकरण वहां छोड़ दिए थे, अब वे पाकिस्तान के बाजारों में पहुंचने लगे हैं। अमेरिकी फौज के सामान अब पाकिस्तान के लाहौर, कराची, पेशावर और गुजरांवाला जैसे शहरों के बाजारों में सजे हुए हैं। पाकिस्तान में इन हथियारों को बेचनेवाले दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर बाकायदा बोर्ड टांग रखे हैं जिन पर ‘अमेरिकी फौज का माल-ए-गनीमत’ लिखा हुआ है। युद्ध में जीते जाने वाले सामानों का जब विजेता सैनिकों के बीच बंटवारा होता है, उसे माल-ए-गनीमत कहा जाता है।

अस्सी के दशक में अमेरिका ने अफगान मुजाहिदीन को सोवियत सेना से लड़ने के लिए भारी मात्रा में हथियार दिए थे। उस समय पेशावर दुनिया में अवैध हथियारों की राजधानी बन गया था। अब अमेरिकी फौज के बड़े बेआबरू होकर अफगानिस्तान से निकले के बाद जो हथियार और सैन्य उपकरण छोड दिए गए थे, वे सब अब पाकिस्तान के हथियार बाजारों की रौनक बढ़ा रहे हैं। ये हथियार काबुल, कंधार और मजार-ए-शरीफ से चोरी और स्मगलिंग के जरिए लाए गए हैं। इन शहरों में अमेरिकी सेना ने भारी संख्या में अपने हथियारों को अफगान सेना के लिए छोड़ा था लेकिन अब इन्हें तस्करी के जरिए पाकिस्तान पहुंचाया गया है।

पाकिस्तानी दुकानदारों ने कैमरे पर कबूल किया कि ये ‘लूट का माल’ है जिसे तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया था, और ‘चूंकि तालिबान हमारे भाई हैं, इसलिए हर पाकिस्तानी इन सामानों को खरीदने पर फख्र महसूस करता है।’ दुकानों में M16 अमेरिकी राइफल और M4 कार्बाइन भी बिक रहे हैं, लेकिन चोरी-छिपे। लेकिन अमेरिकी सेना के बुलेटप्रूफ जैकेट, नाइट विजन गॉगल्स, स्पाईकैम, नॉर्मल टेजर गन, टेजर स्टिक और असॉल्ट हथियारों के सामान खुलेआम बेचे जा रहे हैं।

अगस्त में जब अफगान सेना और तालिबान के बीच घमासान जंग छिड़ी हुई थी, उस वक्त पाक-अफगान सरहद पर तालिबान के लड़ाकों ने अमेरिकी और NATO सैनिकों के 30 से 35 हजार कंटेनर्स लूट लिए थे। इन सारे कंटेनर्स को तोरखम और चमन बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान भेज दिया गया था। इनमें से ज्यादातर कंटेनर्स में अमेरिकी फौजियों की यूनिफॉर्म, उनके फेस मास्क के साथ दूसरे सामान और हथियार भी मौजूद थे। पाकिस्तानी दुकानदारों ने दावा किया कि उनके पास कलाशनिकोव और M 16 राइफल्स के अलावा उनकी एक्सेसरीज भी हैं। पाकिस्तानी टीवी रिपोर्टर अमेरिकी फौजियों का यूनिफॉर्म पहनकर और एयर गन हाथ में उठाकर इन दुकानों से अपने न्यूज चैनलों के लिए रिपोर्टिंग करने लगे हैं।

ये तो हुई उन अमेरिकी हथियारों और साजो-सामान की बात जिन्हें ‘माल-ए-गनीमत’ कहकर बेचा जा रहा है, लेकिन अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में छोड़े गए विमानों और हेलीकॉप्टरों का क्या हुआ? गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे तालिबान के लड़ाके एक अमेरिकी सुपर टुकानो लड़ाकू विमान के एक जेट इंडिन के पंखे से दूसरे पंखे तक रस्सियां बांधकर मस्ती में झूला झूल रहे हैं। अमेरिकी सैनिकों ने काबुल छोड़ने से पहले इन लड़ाकू विमानों के सारे सिस्टम डिसेबल कर दिए थे और अब वे किसी काम के नहीं हैं।

इन तस्वीरों में कम से कम 4 अमेरिकी सुपर टुकानो लड़ाकू विमान दिख रहे हैं जिन्हें अमेरिका की सेना ने नाकारा बनाकर अफगानिस्तान में ही छोड़ दिया। इनमें से प्रत्येक सुपर टुकानो लड़ाकू विमान की कीमत अन्तरराष्ट्रीय बाजार में 2,000 करोड़ रुपये है। अकेले काबुल में ही 73 अमेरिकी विमान हैं जिनमें से अधिकांश इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका के 200 से ज्यादा प्लेन और हेलीकॉप्टर अफगानिस्तान में ही रह गए है।

सवाल उठता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने सैनिकों की वापसी पर इतनी जल्दबाजी में फैसला क्यों लिया? अमेरिकी सैनिक अपने हथियार तो छोड़िए, अपने विमान और हेलीकॉप्टर तक साथ नहीं ले जा पाए। इनका इस्तेमाल अमेरिकी फौज कहीं और कर सकती थी। आखिर अफगानिस्तान से निकलने की ऐसी क्या जल्दी थी? सैकड़ों अमेरिकी नागरिक अभी भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं और वहां से निकलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।

गुरुवार को तालिबान ने अमेरिकी नागरिकों, ग्रीन कार्ड धारकों, जर्मन, हंगेरियन और कनाडा के नागरिकों सहित 200 विदेशियों को काबुल से जाने की इजाज़त दे दी। इन्हें कतर एयरलाइंस की पहली चार्टर्ड फ्लाइट में काबुल एयरपोर्ट से दोहा ले जाया गया। लेकिन मज़ार-ए-शरीफ में फिछले कई दिनों से 3 चार्टर्ड प्लेन अमेरिकियों को ले जाने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन तालिबान ने अभी तक इजाजत नहीं दी ।

किसी ने नहीं सोचा होगा कि तालिबान के सामने सुपर पावर अमेरिका इतना मजबूर साबित होगा। जिस तालिबान को खत्म करने के लिए अमेरिका ने 20 साल तक जंग लड़ी, अब वह उसी के सामने हाथ जोड़कर अपने नागरिकों को अफगानिस्तान छोड़ने की इजाजत देने के लिए गिड़गिड़ा रहा है। खुद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन तालिबान से गुजारिश कर रहे हैं कि वह उन लोगों को अफगानिस्तान छोड़ने की इजाजत दें, जो जाना चाहते हैं। जिस तरह से अमेरिकी फौज अरबों डॉलर के अपने विमान, हेलीकॉप्टर, टैंक, बख्तरबंद वाहन, हथियार और अन्य साजो-सामान छोड़कर अफगानिस्तान से भागी है, उसे अमेरिकी जनता न सिर्फ देख रही है, बल्कि राष्ट्रपति जो बायडेन की तीखी आलोचना हो रही है।

अमेरिकी खुफिया एजेंसियां तालिबान की ताकत को पहचनाने में जिस तरह नाकाम साबित हुई, उसे लेकर आम अमेरिकियों में काफी गुस्सा है। जिस तालिबान को अमेरिकी रणनीतिकार बदला हुआ बता रहे थे, और उससे मानवाधिकार और महिला अधिकारों के प्रति सम्मान की उम्मीद लगाए हुए बैठे थे, वे सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गई हैं। तालिबान के सिपाही पत्रकारों के पकड़कर उन्हें कोडे से पीट रहे हैं, साथ ही महिला प्रदर्शनकारियों को भी बेल्ट और कोडों से पीटा जा रहा है। इन घटनाओं के साथ तालिबान ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। अमेरिकी नीति निर्माताओं की सारी उम्मीदें अब धराशायी हो चुकी हैं।

अपनी फितरत के मुताबिक तालिबान ने महिलाओं के सड़कों पर प्रदर्शन को गैर इस्लामी बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। अफगान महिलाएं अपना हक मांग रही थी, सरकार में हिस्सेदारी मांग रही थी, लेकिन तालिबान से इन महिलाओं को कोड़ों से की गई पिटाई मिली। तालिबान ने अपनी नई हुकूमत में कुख्य़ात आतंकी सरगनाओं को मंत्री बना कर जगह दी है। पूरे कैबिनेट में एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया। तालिबान ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पुरुषों और महिलाओं के बीच पर्दे का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है। तालिबान के एक वरिष्ठ नेता सैयद जकरुल्ला हाशमी ने एक अफगान टीवी शो में कहा कि महिलाओं का काम केवल बच्चे पैदा करना है। उन्होंने कहा, ‘महिलाएं कभी मंत्री नहीं बन सकतीं। यह उनके कंधों पर ऐसा बोझ डालने जैसा है जिसे वे नहीं उठा सकतीं।’

ऐसे ही एक और फरमान में तालिबान के संस्कृति उप मंत्री अहमदुल्ला वसीक़ ने कहा कि अफगानिस्तान में अब लड़कियां और महिलाएं आउटडोर गेम्स नहीं खेल पाएंगी क्योंकि ऐसे खेलों के दौरान उनका चेहरा और शरीर ढका हुआ नहीं होता। वसीक़ ने कहा, ‘खेलते वक्त लड़कियों का शरीर एक्सपोज हो जाता है। इसलिए, लड़कियों को इन खेलों में भाग लेने की कोई जरूरत नहीं है।’

तालिबान सरकार के इस फैसले की दुनिया भर के देशों ने निंदा की है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने कहा कि अगर महिलाओं को खेलों में भाग लेने पर पाबंदी लगाई गई, तो अफगानिस्तान के साथ ऑस्ट्रेलिया अपनी क्रिकेट सीरीज को रद्द कर देगा। बोर्ड ने कहा, अफगान क्रिकेट टीम को ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर खेलने की इजाजत नहीं मिलेगी।

गुरुवार को ब्रिक्स वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चीन के नेताओं ने अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अफगानिस्तान को किसी भी कीमत पर आतंकी संगठनों की पनाहगाह न बनने दिया जाए वरना ये संगठन दूसरे देशों पर हमला करेंगे। नई दिल्ली घोषणापत्र में काबुल एयरपोर्ट के बाहर (ISIS-K द्वारा) 26 अगस्त को किये गये आत्मघाती हमले की निंदा की गई। घोषणापत्र में कहा गया कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम रखना जरूरी है ओर इसके लिए ‘समावेशी अंतर-अफगान वार्ता’ होनी चाहिए। शिखर सम्मेलन में सीमा पार आतंकवाद, टेरर फाइनेंसिंग नेटवर्क और आतंकवादियों के सुरक्षित पनाहगाहों के खिलाफ कदम उठाने पर भी ज़ोर दिया गया।

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