Rajat Sharma

नॉर्थ-ईस्ट के नतीजे : बीजेपी में जश्न, कांग्रेस के लिए सबक

AKB30 सत्तारूढ़ बीजेपी ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है जबकि नागालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन ने जीत हासिल की है। वहीं मेघालय में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। वहां मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है और बीजेपी के समर्थन से एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है।

इस जीत के बाद दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों राज्यों के मतदाताओं को धन्यवाद दिया और वह विपक्षी दलों पर जमकर बरसे। मोदी ने कहा, ‘जब कुछ लोग मोदी की कब्र खोदने की ख्वाहिश कर रहे हैं, मोदी तेरी कब्र खुदेगी के नारे लगा रहे हैं तब नॉर्थ-ईस्ट के लोगों ने कमल को चुना। कमल खिलता ही जा रहा है। कुछ लोग बेईमानी भी कट्टरता से करते हैं और ये कट्टर लोग कहते हैं कि मर जा मोदी, लेकिन देश कह रहा है मत जा मोदी’।

मोदी ने कहा, ‘बीजेपी ने नॉर्थ-ईस्ट के लोगों का दिल जीत लिया है। अब नॉर्थ-ईस्ट से न दिल्ली दूर है और न नॉर्थ-ईस्ट दिलों से दूर है। मुझे तो इस बात पर हैरानी है कि नॉर्थ-ईस्ट के चुनाव नतीजों के बाद अब तक ईवीएम को गाली नहीं पड़ी।‘

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अब तक यह फैलाया जाता था कि अल्पसंख्यक भाई बीजेपी को वोट नहीं देते लेकिन चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया कि देश के सभी वर्ग ‘सबका साथ सबका विकास’ मंत्र का समर्थन कर रहे हैं। मेघालय और नागालैंड में ईसाइयों ने भी हमारी पार्टी का समर्थन किया है।

पीएम मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर भी निशाना साधा जिन्होंने चुनाव परिणामों पर कहा कि नॉर्थ-ईस्ट के तीनों राज्य छोटे हैं और इनके नतीजे उतना मायने नहीं रखते। मोदी ने कहा, ‘कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कह रहे हैं कि ये तो छोटे राज्य हैं। यह नॉर्थ-ईस्ट के लोगों का अपमान है। इसी मानसिकता के कारण कांग्रेस पार्टी लगातार चुनाव हार रही है।‘

प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले बीजेपी को ‘बनिया पार्टी’ और ‘हिंदी बेल्ट की पार्टी’ कहा जाता था, लेकिन नॉर्थ-ईस्ट के लोगों ने अब बीजेपी को स्वीकार कर लिया है। पीएम मोदी ने वादा किया कि एक दिन केरल में भी भाजपा की सरकार बनेगी।

त्रिपुरा में बीजेपी ने विधानसभा की कुल 60 सीटों में से 32 सीटों पर जीत दर्ज की। नागालैंड में बीजेपी ने विधानसभा की कुल 60 सीटों में से 12 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि उसकी सहयोगी नैशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) 25 सीटें जीतने में सफल रही। इस तरह बीजेपी गठबंधन को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया। उधर, मेघालय में मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने 26 सीटों पर जीत हासिल की जबकि बीजेपी दो सीटें जीतने में कामयाब रही। 60 सीटों वाली विधानसभा में कोनराड संगमा कुछ अन्य छोटे दलों के समर्थन से सरकार बनाने जा रहे हैं।

वहीं कांग्रेस की बात करें तो वह नागालैंड में खाता भी नहीं खोल पाई जबकि मेघालय में सिर्फ पांच सीटें जीत पाई। त्रिपुरा में कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटें मिली जबकि उसकी सहयोगी पार्टी सीपीएम 11 सीटें ही जीत पाई। त्रिपुरा में एक नए क्षेत्रीय दल टिपरा मोथा पार्टी ने 13 सीटों पर जीत हासिल की। इस पार्टी की अगुवाई पूर्व त्रिपुरा रजवाड़े के शासक प्रद्योत देव बर्मन कर रहे हैं।

मौदी मौके पर चौका लगाते हैं और अपने पर हो रहे हमलों को कैसे अवसर में बदलना है, ये अच्छी तरह जानते हैं। कल मौका भी था, माहौल भी था और दस्तूर भी था। इसीलिए मोदी ने सारा हिसाब बराबर कर लिया। उन्होंने कांग्रेस को बता दिया कि जिन राज्यों को कांग्रेस छोटा समझती है आज उन्हीं राज्यों ने कांग्रेस को ‘छोटा’ बना दिया। जिस नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस की तूती बोलती थी आज वहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया।

नार्थ-ईस्ट में बीजेपी को मिली यह चुनावी जीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी रणनीति का नतीजा है। 2014 में जब मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे उस वक्त नॉर्थ-ईस्ट के किसी राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं थी। केवल अरुणाचल प्रदेश में ही 2003 में बीजेपी ने थोड़े समय के लिए सरकार बनाई थी। उसके बाद पूर्वोत्तर में बीजेपी का ज्यादा वजूद नहीं था। मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने नॉर्थ-ईस्ट के विकास पर फोकस किया। इस इलाके को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें शुरू हुई। इसका नतीजा ये हुआ कि पहले पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में बीजेपी की सरकार बनी। यहां बीजेपी लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही। अब त्रिपुरा में भी बीजेपी ने दोबारा जीत दर्ज की है।

इस वक्त नार्थ-ईस्ट के आठ में से छह राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। ये बड़ी बात है। कुछ लोग कह सकते हैं कि नॉर्थ-ईस्ट के सारे राज्यों को मिला दें तो भी किसी बड़े राज्य का मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए पूर्वोत्तर में जीत और सरकार बनाने से क्या राजनीतिक फायदा होगा।

लेकिन मुझे लगता है कि नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी की इस जीत का राजनीतिक फायदा होगा। एक तो बीजेपी हिन्दी भाषी राज्यों की पार्टी की पुरानी छवि से बाहर निकलेगी। दूसरी बात, नॉर्थ-ईस्ट में लोकसभा की 25 सीटें हैं। अगर अगले लोकसभा चुनावों में दूसरे राज्यों में बीजेपी को थोड़ा बहुत नुकसान होता है तो नॉर्थ-ईस्ट से इसकी भरपाई हो जाएगी। इसलिए नॉर्थ-ईस्ट के इन राज्यों में बीजेपी की जीत के बड़े मायने हैं।

अब सवाल ये है कि नॉर्थ-ईस्ट में कभी जबरदस्त पकड़ रखने वाली कांग्रेस का इतना बुरा हाल क्यों हुआ ? तीनों राज्यों में कांग्रेस का सफाया क्यों हुआ? इसकी बड़ी वजह है पार्टी की कैजुअल एप्रोच। दिल्ली से बैठकर नॉर्थ ईस्ट को समझने की कोशिश करना। लोकल लीडरशिप के साथ न तो बात करना और ना ही उनकी बात सुनना। इसका ताजा उदाहरण टिपरा मोथा पार्टी के प्रमुख प्रद्योत देव बर्मन हैं जो त्रिपुरा के पूर्व शासक रहे हैं और टिपरा मोथा पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस हाईकमान ने उनकी बात नहीं सुनी। अपमानित होने के बाद उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी।

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद इंडिया टीवी पर एक इंटरव्यू में प्रद्योत देव बर्मन ने कहा, ‘अगर कांग्रेस को बीजेपी से लड़ना है तो राहुल गांधी को अपनी सोच बदलनी होगी, अपने सलाहकार बदलने होंगे। घर में बैठकर चुनाव हरवाने वाले नेताओं के बजाए जमीन पर काम करने वाले नेताओं की बात सुननी होगी, तभी कांग्रेस का भला हो सकता है। वरना , भारत जोड़ो यात्रा से कोई फायदा नहीं होगा।’

लेकिन कांग्रेस अभी भी इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में स्थानीय मुद्दों के चलते हार हुई है। त्रिपुरा में लेफ्ट फ्रंट का वोट कांग्रेस में ट्रांसफर नहीं हुआ जबकि मेघालय में ममता की टीएमसी ने कांग्रेस का वोट काटकर परोक्ष रूप से बीजेपी का समर्थन किया। इसलिए कांग्रेस की हार हुई।

गुरुवार को चुनाव नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए किसी गठबंधन में शामिल नहीं होगी। उन्होंने कहा, ‘जो लोग बीजेपी को हराना चाहते हैं, वे हमारा समर्थन करें।’

त्रिपुरा में ममता की पार्टी एक फीसदी से कम वोट हासिल करने के बावजूद खाता खोलने में नाकाम रही। उन्होंने बंगाल के सागरदीघी विधानसभा उपचुनाव के नतीजे पर कहा कि तृणमूल को हराने के लिए कांग्रेस-सीपीएम और बीजेपी ने परदे के पीछे गठबंधन कर लिया था इसलिए उनकी पार्टी चुनाव हार गई।

ममता बनर्जी ने कहा, ‘अगर आप बीजेपी के वोट गिनें तो आपको दिखेगा कि उनका 22 प्रतिशत वोट था। इस बार उन्होंने अपना वोट कांग्रेस को ट्रांसफर कर दिया। कांग्रेस को इस बार 13 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले। बीजेपी का वोट कांग्रेस को चला गया। सीपीएम-कांग्रेस साथ है और बीजेपी का वोट भी कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ।’ सागरदीघी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बायरन विश्वास ने तृणमूल के उम्मीदवार देवाशीष बनर्जी को करीब 23 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया जबकि बीजेपी उम्मीदवार दिलीप साहा तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें 25,793 वोट मिले। मुस्लिम बहुल सागरदिघी विधानसभा सीट पर मिली हार निश्चित रूप से ममता बनर्जी के लिए एक झटका है।

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