Rajat Sharma

नासिक के अस्पताल में घोर लापरवाही से गई 24 कोरोना मरीजों की जान

अगर कोरोना जंग जीतनी है तो राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार को मिलकर काम करना होगा। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का ही उदाहरण लें, जिन्होंने मंगलवार को ऑक्सीजन की कमी की शिकायत की थी। केंद्र ने तुरंत उनकी मांगों पर एक्शन लिया और केजरीवाल ने इसके लिए केंद्र को धन्यवाद दिया। भारत में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। जितनी ऑक्सीजन का उत्पादन होता है आज भी जरुरत उससे कम है। लेकिन अस्पतालों के अलावा अन्य उद्योगों को भी ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। इन उद्योगों में फार्मा क्षेत्र भी शामिल है। यहां समस्या ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन में है। हम अब मेडिकल ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन के लिए टैंकर्स और ट्रेनों के साथ-साथ बेहद गंभीर हालात में विमानों और हेलीकॉप्टर्स का भी उपयोग कर रहे हैं।

AKB30 कोरोना महामारी अपनी गंभीर अवस्था में पहुंच चुकी है और ये कोई नहीं जानता कि देश में इस घातक संक्रमण के नए मामलों में आ रहा उछाल कब थमेगा। बुधवार को भारत में कोरोना के 3,14,835 नए मामले सामने आए और इसने अमेरिका में एक दिन में सबसे ज्यादा नए मामलों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। इसी साल जनवरी में अमेरिका में कोरोना के 2,97,430 नए मामले सामने आए थे। बुधवार को देशभर में इस घातक संक्रमण से 2,140 लोगों की मौत हो गई। इसके साथ ही देशभर में कोरोना से मरनेवालों का आंकड़ा बढ़कर 1,85,657 हो गया है।

इस संक्रमण की रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कोरोना के नए मामले तीन गुना होने में केवल 17 दिनों का समय लगा। 4 अप्रैल को देशभर में कोरोना के मामले एक लाख से ऊपर हो गए थे। कई परिवारों के अधिकांश सदस्य इस संक्रमण से ग्रस्त हैं। उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। देश के 146 जिलों में पॉजिटिविटी रेट 15 प्रतिशत है। उधर, वैज्ञानिकों ने पहले से ही इस वायरस के ट्रिपल म्यूटेंट बंगाल स्ट्रेन को लेकर अगाह कर दिया है, हाेलांकि अभी इसकी पूरी स्टडी बाकी है।

मेडिकल ऑक्सीजन कंटेनर, सिलेंडर, वेंटिलेटर, दवाओं और हेल्थ केयर वर्कर्स के लिए भारतीय वायु सेना के विमानों का उपयोग किया जा रहा है। दिल्ली में डीआरडीओ द्वारा बनाए जा रहे एक बड़े अस्थायी कोविड अस्पताल में कोच्चि, विशाखापत्तनम, बेंगलुरु और मुंबई से नर्सिंग स्टाफ को लाने के लिए वायुसेना के विमानों का उपयोग किया जा रहा है। 250 बेड के इस DRDO अस्पताल की क्षमता 500 बेड तक बढ़ाई जा रही है। DRDO ने पटना के ESIC अस्पताल में भी 500-बेड का कोविड सेंटर शुरू किया है, जबकि लखनऊ में 450-बेड और लखनऊ में 750-बेड के अस्पताल पर काम चल रहा है। अहमदाबाद में 900 बेड का अस्पताल DRDO बना रहा है।

एक और अच्छी खबर ये है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने बुधवार को कहा कि भारत बायोटेक द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित कोवैक्सिन को डबल-म्यूटेंट स्ट्रेन के साथ ही अन्य वेरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी पाया गया है। आईसीएमआर ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण के हल्के, मध्यम, और गंभीर लक्षण वाले मामलों में इस 78 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। जबकि कोरोना के चलते होनेवाली गंभीर बीमारियों में इसकी एफिकैसी 100 प्रतिशत पाई गई है।

बुधवार को एक बेहद बुरी खबर नासिक से आई जहां के एक अस्पताल में अचानक ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा के चलते 24 कोरोना रोगियों की मौत हो गई। यह हादसा 150 बेड वाले डॉ. ज़ाकिर हुसैन हॉस्पिटल में हुआ। इस अस्पताल का संचालन नासिक नगर निगम द्वारा किया जाता है। जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त अस्पताल में 157 मरीज थे। मरने वालों में 33 साल से लेकर 74 साल तक की उम्र की 10 महिलाएं भी शामिल हैं। यह दावा किया गया कि अस्पताल के मुख्य ऑक्सीजन भंडारण में कुछ खराबी थी, लेकिन इंडिया टीवी के रिपोर्टर राजेश कुमार ने यह पाया कि अस्पताल में ऑक्सीजन टैंकर आने पर वहां तकनीकी टीम का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था। ऑक्सीजन के रिसाव को एक फार्मासिस्ट ने सबसे पहले देखा। लेकिन रिसाव को रोकने के लिए वहां कोई तकनीकी कर्मचारी मौजूद नहीं था और आखिरकार एक बड़ी घटना हो गई।

इस अस्पताल के दृश्य बेहद डरावने थे। ये सारी मौतें घोर लापरवाही के कारण हुईं। ये मरीज ठीक हो रहे थे। इनकी मौत कोरोना वायरस से नहीं हुई। हमारी सिस्टम की खामियों के कारण इनकी मौत हुई। हालांकि स्थानीय पुलिस ने ‘अज्ञात लोगों’ के खिलाफ देर शाम एफआईआर दर्ज की, लेकिन तथ्य कुछ और है। ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। डॉक्टर और नर्स इन मरीजों को सीपीआर देने की पूरी कोशिश कर रहे थे। ये दिल दहलानेवाला दृश्य था। रिश्तेदार चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे और मरीज एक-एक कर मरते जा रहा थे। कुछ लोगों ने अगर लापरवाही नहीं की होती तो ये लोग आज जिंदा होते।

ऑक्सीजन का रिसाव कैसे हुआ? जब टैंकर के जरिए अस्पताल के मुख्य टैंक में ऑक्सीजन भरा जा रहा था तो उसी समय ऑक्सीजन टैंक का एक सॉकेट टूट गया और चारों तरफ तेजी से कन्सन्ट्रेट ऑक्सीजन गैस का गुबार उठने लगा। अस्पताल ने ऑक्सीजन टैंक के रखरखाव की जिम्मेदारी एक प्राइवेट कंपनी को दे रखी है और कंपनी का कोई कर्मचारी वहां मौजूद नहीं था। रिसाव को रोकने के लिए वहां मौजूद लोगों ने वैपोराइजिंग पाइप को बंद कर दिया इसके कारण अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो गई। इसकाअसर ये हुआ कि वार्ड में जो मरीज ऑक्सीजन के सहारे जिंदा थे उनकी सांसें अटकने लगीं। क्योंकि ऑक्सीजन का प्रैशऱ कम हो गया था। ऑक्सीजन की कमी से मरीज तड़पने लगे। फायर ब्रिगेड की टीम मौके पर पहुंची। सेफ्टी गियर के साथ लीक हो रही ऑक्सीजन को रोकने की कोशिश की गई और एक घंटे के बाद गड़बड़ी को ठीक किया गया। इस बीच डॉक्टर्स ने बहुत कोशिश की मरीजों को बचाने की लेकिन जब ऑक्सीजन की सप्लाई में ही समस्या थी तो डॉक्टर क्या करते। देखते-देखते 24 मरीजों की सांसे थम गई।

ये बात सही है कि हादसा कभी भी हो सकता है,कहीं भी हो सकता है। लेकिन सवाल ये है कि जब देश में हालात गंभीर हैं। लोग एक-एक लीटर ऑक्सीजन के लिए जूझ रहे हैं, उस वक्त तो हर स्तर पर सावधानी की जरूरत होती है। ऐसे वक्त में भी नासिक के अस्पताल में इतनी बड़ी लापरवाही हुई। इसीलिए बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ मैंने कहा कि 24 लोगों की मौत नहीं हुई,..उनकी तो हत्या हुई है।

आश्चर्य की बात तो ये है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री कह रहे थे कि अस्पताल नगर पालिका के अधीन है। नगर पालिका शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है और नासिक का गार्जियन मिनिस्टर कोई और है। ऐसे लोगों से क्या उम्मीद करें? इस वक्त देश में साढ़े सात हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता है इसमें से 6 हज़ार 600 मीट्रिक टन ऑक्सीजन अस्पतालों को लगातार सप्लाई की जा रही है। बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन के नए प्लांट लगाने के आदेश दे दिए गए हैं। ऐसी हालत में ऑक्सीजन टैंक का पाइप फट जाए, लोग मर जाएं, ये कैसे हो सकता है? ऐसे हालात में हम कोरोना से जंग कैसे जीत सकते हैं?

अगर कोरोना जंग जीतनी है तो राज्य सरकारों को केन्द्र सरकार को मिलकर काम करना होगा। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का ही उदाहरण लें, जिन्होंने मंगलवार को ऑक्सीजन की कमी की शिकायत की थी। केंद्र ने तुरंत उनकी मांगों पर एक्शन लिया और केजरीवाल ने इसके लिए केंद्र को धन्यवाद दिया। भारत में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। जितनी ऑक्सीजन का उत्पादन होता है आज भी जरुरत उससे कम है। लेकिन अस्पतालों के अलावा अन्य उद्योगों को भी ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। इन उद्योगों में फार्मा क्षेत्र भी शामिल है। यहां समस्या ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन में है। हम अब मेडिकल ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन के लिए टैंकर्स और ट्रेनों के साथ-साथ बेहद गंभीर हालात में विमानों और हेलीकॉप्टर्स का भी उपयोग कर रहे हैं।

मुकेश अंबानी के जामनगर रिलायंस प्लांट में बनने वाली 700 टन मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की फ्री सप्लाई शुरू हो गई है। रिलायंस के इस प्लांट में अब तक 100 टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता था जिसे बढ़ाकर 7 गुना कर दिया गया है और ये गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के करीब 70 हजार मरीजों के काम आ रही है। टाटा ग्रुप ने लिक्विड ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए 24 कंटेनर इंपोर्ट करने का ऑर्डर दिया है। ये सारी कोशिशें जल्द ही बेहतर रिजल्ट देंगी। ऑक्सीजन की सप्लाई में सुधार होगा। मेरा यही आग्रह है कि राज्य सरकारें दूसरे राज्यों के टैंकर्स को रोकने का काम ना करें।

इसी तरह वैक्सीनेशन की बात करें तो इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर राजनीति बंद करें। 18 वर्ष से अधिक उम्र के हर भारतीय को वैक्सीन लगनी चाहिए। कोवैक्सिन की एफिकैसी के बारे में आईसीएमआर ने जो ऐलान किया है वह बेहद अहम और स्वागत योग्य है। वहीं केंद्र ने भारत में बायोलॉजिकल-ई कंपनी को कोरोना वैक्सीन के निर्माण की भी इजाजत दे दी है। यह कंपनी एक महीने में 7 करोड़ डोज का बना सकती है। यह पहले और दूसरे को चरण के ट्रायल को पूरा करनेवाली है और उम्मीद है कि अगस्त तक इसकी वैक्सीन लॉन्च कर दी जाएगी। कंपनी की योजना 2022 के अंत तक 100 करोड़ डोज बनाने की है। कोविशिल्ड, कोवैक्सिन और स्पुतनिक V के बाद यह भारत में कोरोना की चौथी वैक्सीन होगी।

यह जंग अभी-भी कई मोर्चे पर लड़ी जा रही है। डॉक्टर, नर्स, हेल्थ वर्कर्स अस्पतालों और कोविड केयर सेंटर्स में लाखों लोगों की जान बचाने के लिए इस समय लड़ रहे हैं। ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, रेमेडिसविर और अन्य महत्वपूर्ण दवाओं की आपूर्ति में सुधार किया जा रहा है। सेना, डीआरडीओ, भारतीय वायु सेना भी अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही है। वह सुबह निश्चित तौर पर आएगी जब कोरोन के नए मामले रोजाना तीन लाख के आंकड़े से घटकर दो अंकों तक सिमट जाएंगे। इस दानव को परास्त करने के बाद हम सभी एक मुक्त वातावरण में सांस ले सकते हैं।

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