Rajat Sharma

दो गाड़ियां और जिलेटिन विस्फोटक: आखिर सचिन वाज़े का मक़सद क्या था?

क्या ये सब महज इत्तेफाक है? सारे बयान और सबूत देखने के बाद इसमें तो कोई शक नहीं है कि सचिन वाजे इस केस में सीधे तौर पर शामिल है। उसके वकील कह सकते हैं कि ये इत्तेफाक है। पर इत्तेफाक बहुत सारे हैं, इतने इतेफाक एक साथ और एक ही पुलिस वाले सचिन वाज़े को लेकर… इस पर आसानी से विश्वास करना मुश्किल है।

AKB30 मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर गाड़ी में विस्फोटक रखने के मामले ने एक अलग मोड़ ले लिया है। इस पूरे प्लान में दो गाड़ियों का इस्तेमाल किया गया था। एक गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें (विस्फोटक पदार्थ) रखी गईं और उसे मुकेश अंबानी के घर के बाहर पार्क किया गया जबकि दूसरी गाड़ी में पहली गाड़ी को पार्क करनेवाला शख्स बैठकर फरार हो गया। इत्तेफाक देखिए कि विस्फोटकों वाली गाड़ी मुकेश अंबानी के घर के पास पार्क किए जाने से पहले हफ्ते भर तक मुंबई पुलिस के असिस्टेंट इंस्पेक्टर सचिन वाज़े के घर के पास खड़ी रही और दूसरी वाजे़ के ऑफिस (क्राइम इंवेस्टीगेशन यूनिट) की गाड़ी निकली। मजेदार बात ये है कि इन दोनों गाड़ियों को पुलिस ढूंढ रही थी। एक को घटना से पहले और दूसरी को हादसे के बाद से पुलिस तलाश रही थी।

इस पूरे मामले में हैरानी की बात ये है कि क्या एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर को इतना साहस हो सकता है कि वह देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी रखने की हिमाक़त करे? और इतना ही नहीं वो इस मामले को अंजाम देने के लिए अपनी ही ऑफिस की इनोवा गाड़ी का इस्तेमाल कर रहा था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तफतीश के दौरान वाजे के खिलाफ सोमवार को जो नए तथ्य उभरकर सामने आए उसके बाद अब सवाल ये उठता है कि इस साजिश के पीछे सचिन वाज़े का मकसद क्या था?

अब तक जो भी सबूत और गवाहों की बातें सामने आई हैं उससे ये तो साबित हो गया है कि मुकेश अंबानी के 27 मंजिला घर एंटीलिया के पास बारूद से भरी स्कॉर्पियो पार्क करने में सचिन वाज़े का रोल था। उसने इसके लिए अपने व्यापारी दोस्त मनसुख हिरेन की गाड़ी का इस्तेमाल किया। मनसुख हिरेन का शव बाद में एक खाड़ी में पाया गया था।

क्या ये संभव है कि एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर 4 महीने तक अपने दोस्त की गाड़ी अपने पास रख ले और वापस लौटाने के कुछ ही दिन बाद गाड़ी चोरी हो जाए? चोरी के 10 दिन बाद गाड़ी मुकेश अंबानी के घर के पास मिले और उसमें बारूद भरा हो? इस बारूद से भरी गाड़ी के साथ जो इनोवा गाड़ी इस्तेमाल हुई हो वो क्राइम ब्रांच की हो जहां सचिन वाज़े तैनात हो?

सीसीटीवी फुटेज में भी इनोवा गाड़ी की पूरी तस्वीर कैद हुई है। गाड़ी मिलने के बाद सचिन वाज़े ने गाड़ी के मालिक मनसुख हिरेन से कहा कि वो जुर्म कबूल कर ले और वो उसे छुड़ा लेगा? ये आरोप मनसुख की पत्नी ने लगाया है। इतना ही नहीं, पूछताछ के दौरान ही वाज़े ने अपने वकील से मनसुख हिरेन की तरफ से चिट्ठी ड्राफ्ट करवाई और उसे पुलिस कमिश्नर, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा जिसमें ये लिखा था कि उसकी जान को खतरा है। और इसके दो दिन के बाद मनसुख हिरेन की मौत हो गई?
क्या ये सब कुछ महज़ इत्तेफाक हो सकता है? बिल्कुल नहीं। सारे सबूत और गवाह, सचिन वाज़े की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद बड़ा सवाल ये उठा है कि एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर इतने बड़े और नाज़ुक मामले में शामिल होने का खतरा क्यों उठाएगा? क्या इतने सारे इत्तेफाक एक साथ हो सकते हैं?

जरा इन घटनाक्रमों पर ग़ौर फरमाएं।
1 मार्च को सचिन वाज़े से केस वापस ले लिया गया था। 2 मार्च को सचिन वाजे़ ने अपनी बिल्डिंग के डिजिटल वीडियो रिकॉर्डिंग (डीवीआर) हटवा दिए, उसे पुलिसवाले ले गए। 2 मार्च को ही वाज़े ने मनसुख की तरफ से चिट्ठी लिखवाई जिसमें जान का खतरा बताया गया। 3 मार्च को मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और पुलिस कमिश्नर को यह चिट्ठी भेजी गई। 4 मार्च को मनसुख हिरेन गायब हुआ और 5 मार्च को मनसुख हिरेन की लाश मिली।

क्या ये सब महज इत्तेफाक है? सारे बयान और सबूत देखने के बाद इसमें तो कोई शक नहीं है कि सचिन वाजे इस केस में सीधे तौर पर शामिल है। उसके वकील कह सकते हैं कि ये इत्तेफाक है। पर इत्तेफाक बहुत सारे हैं, इतने इतेफाक एक साथ और एक ही पुलिस वाले सचिन वाज़े को लेकर, इस पर आसानी से विश्वास करना मुश्किल है।

यह आरोप लगाना कि एक पुलिस ऑफिसर अपराध कर सकता है, साजिश रच सकता है, सबूत नष्ट कर सकता है, कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। इससे भी बड़ी बात ये है कि सचिन वाज़े ने पूरी हिमाक़त दिखाते हुए ये सब किया और इस अपराध को अंजाम देने के लिए इतनी हिम्मत उसे कहां से मिली?

जैसे ही ये सवाल आता है तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाता है। मुख्यमंत्री इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि सचिन वाजे़ को 16 साल पहले सस्पेंड किया गया था, वो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि सचिन वाजे़ ने शिवसेना की सदस्यता ली थी, सीएम इस बात को खारिज नहीं कर सकते कि 16 साल के बाद उनकी सरकार ने अचानक सचिन वाजे़ को बहाल कर दिया, और न सिर्फ बहाल किया बल्कि तमाम बड़े मामलों की जांच उसके हवाले कर दी। इसलिए अब मुकेश अंबानी से जुड़े केस में जब सचिन वाजे़ का रोल सामने आया तो शिवसेना और सहायोगी दलों, एनसीपी और कांग्रेस के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है।

ये तो साफ है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर बारूद से भरी गाड़ी मिलना, फिर गाड़ी के मालिक की मौत होना, ये सब एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। इस साजिश का सूत्रधार सचिन वाजे़ है। लेकिन इसके बाद अब सवाल ये उठता है कि सचिन वाजे़ का मकसद क्या था? ऐसा करके सचिन वाज़े क्या हासिल करना चाहता था? इसका कोई निश्चित जबाव अभी तक नहीं मिला है।

हालांकि एक राय ये है कि सचिन वाज़े भले ही मुंबई पुलिस का एक अदना पुलिस अफसर था लेकिन उसके प्लान बड़े खतरनाक थे। वो मुकेश अंबानी को डराना चाहता था इसीलिए गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें रखकर अंबानी के घर के पास खड़ी की गई और गाड़ी में चिट्ठी लिखकर रखी गई। यह चिट्ठी मुंबई इंडियंस के बैग में रखी गई और चिट्ठी में नीता अंबानी को ‘भाभी’ कह कर संबोधित किया गया। चिट्ठी में ये कहा गया कि ‘ये तो ट्रेलर है, सारी तैयारी हो चुकी है।’ मतलब साफ है, इरादा एक्सटॉर्शन (जबरन वसूली) का था, डराने का था।

जाहिर है एनआईए जांच और अदालत का फैसला आने के बाद ही कोई अन्तिम नतीजा निकल पाएगा। लेकिन इतना कहना जरूरी है कि मुंबई पुलिस का एक सहायक इंस्पेक्टर इस हद तक प्लान कर सकता है, इतनी हिमाक़त के साथ इतनी बड़ी साज़िश तैयार कर सकता है, देश के सबसे बड़े उद्योगपति के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी रख कर डराने की हिमाकत कर सकता है, ये सचमुच हैरानी की बात है।

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