Rajat Sharma

दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं

आयशा का अंतिम वीडियो ‘आज की बात’ में दिखाया गया। इस वीडियो में आयशा अपने पिता से कह रही है: ‘हैलो, अस्सलाम वालेकुम, मेरा नाम है आयशाआरिफ खान..और मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं,अपनी मर्जी से करने जा रही हूं। इसमें किसी का जोर या दबाव नहीं है। अब बस..क्या कहें… ये समझ लीजिए कि खुदा की दी जिंदगी इतनी ही होती है और मुझे इतनी ही जिंदगी बहुत सुकून वाली मिली। और डैड, कब तक लड़ेंगे अपनों से? केस विड्रॉल कर दो। नहीं करना। आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी है। और प्यार करते हैं आरिफ से, उसे परेशान थोड़ी न करेंगे। अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे। चलो अपनी जिंदगी तो यहीं तक है। मैं खुश हूं कि मैं अब अल्लाह से मिलूंगी और उन्हें कहूंगी कि मेरे से गलती कहां रह गई?’

AKB30 इंडिया टीवी पर अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में गुरुवार की रात हमने एक वीडियो क्लिप दिखाया जिसमें एक शादीशुदा मुस्लिम महिला आयशा बानू अपने पिता को अपना ख्याल रखने की बात कहने के कुछ मिनटों बाद अहमदाबाद के साबरमती नदी में कूदकर जान दे देती है। आयशा की खुदकुशी के इस वीडियो से दहेज और घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भारतीय मुसलमानों में जबरदस्त गुस्सा है। देश के अधिकांश मस्जिदों में शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद होनेवाली तकरीर में मौलानाओं ने लोगों से दहेज के खिलाफ, बेटियों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ अपील की। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी इसी तरह की एक तकरीर में शामिल हुए।

सबसे पहले आपको आयशा की खुदकुशी से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में बता दूं। आयशा अहमदाबाद के वातवा स्थितअलमीना पार्क में रहती थी और प्राइवेट सेक्टर के एक बड़े बैंक में काम करती थी। वह एमए इकोनॉमिक्स फाइनल ईयर की स्टूडेंट थी। आयशा ने वर्ष 2018 के जुलाई महीने में माइनिंग सुपवाइजर आरिफ खान से प्रेम विवाह किया था। शादी के कुछ दिनों बाद ही उसके पति और ससुरालवालों ने दहेज की मांग शुरू कर दी और उसे परेशान करना शुरू कर दिया। रोज-रोज की प्रताड़ना से तंग आकर आयशा ने साबरमती नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। आयशा के पति आरिफ को गुजरात पुलिस ने राजस्थान के पाली से एक मार्च को पकड़ लिया। आरिफ को खुदकुशी के लिए उकसाने और दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

25 फरवरी की दोपहर आयशा ने नदी में कूदने से पहले अपने पति आरिफ से बात की। उस बेदर्द इंसान से आयशा ने कहा कि वो मरने जा रही है। लेकिन आरिफ ने उसे रोका नहीं और उल्टा ये कहा कि अगर तुझे सुसाइड करना है तो कर ले, लेकिन नदी में कूदने से पहले एक वीडियो जरूर बना देना। उस वीडियो में ये कह देना कि तुम अपनी मर्जी से ये कदम उठा रही हो, किसी ने तुम पर खुदकुशी के लिए दबाव नहीं बनाया है। आयशा ने खुदकुशी से पहले दो मिनट का वीडियो बनाया जिसमें उसने अपने पिता लियाकत अली मकरानी से बेहद भावनात्मक अपील की। आयशा ने अपने पिता से कहा कि वे आरिफ के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस नहीं करें। नदी में कूदने से पहले वीडियो में उसने कहा कि वह ‘आरिफ को आजाद कर रही है। आयशा ने कहा-‘अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे।’ जब आयशा का शव बरामद किया गया तो शुरू में पुलिस ने हादसे में मौत की रिपोर्ट दर्ज की लेकिन जब वीडियो वायरल हुआ और सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा भड़का तो आरिफ खान पर आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत मामला दर्ज किया गया।

आयशा के पिता ने पुलिस को बताया कि उसके ससुरालवालों ने दहेज के रूप में 5 लाख रुपये की मांग की थी लेकिन वे सिर्फ 1.5 लाख रुपये का इंतजाम कर पाए थे। यह रकम 2019 में आरिफ, उसके माता-पिता और बहनों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज होने के बाद दी गई थी। घरेलू हिंसा के मामले में आयशा ने आरोप लगाया था कि उसे राजस्थान के जालोर में उसके पति के घर पर पीटा गया था।

अहमदाबाद पुलिस को कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) की कॉपी मिल गई है जिसमें ये खुलासा हुआ है कि 25 फरवरी को आयशा की खुदकुशी से पहले आरिफ और आयशा के बीच 72 मिनट की बातचीत हुई थी। आयशा ने अपने माता-पिता के साथ भी 5 मिनट तक बातचीत की। आयशा के माता-पिता ने उससे ऐसा नहीं करने की गुहार की थी। वहीं उसे पति आरिफ ने तो यहां तक कहा-‘अगर तुझे सुसाइड करना है तो कर ले, लेकिन नदी में कूदने से पहले एक वीडियो जरूर बनाकर मुझे भेज देना।’

आयशा का अंतिम वीडियो ‘आज की बात’ में दिखाया गया। इस वीडियो में आयशा अपने पिता से कह रही है: ‘हैलो, अस्सलाम वालेकुम, मेरा नाम है आयशाआरिफ खान..और मैं जो कुछ भी करने जा रही हूं,अपनी मर्जी से करने जा रही हूं। इसमें किसी का जोर या दबाव नहीं है। अब बस..क्या कहें… ये समझ लीजिए कि खुदा की दी जिंदगी इतनी ही होती है और मुझे इतनी ही जिंदगी बहुत सुकून वाली मिली। और डैड, कब तक लड़ेंगे अपनों से? केस विड्रॉल कर दो। नहीं करना। आयशा लड़ाइयों के लिए नहीं बनी है। और प्यार करते हैं आरिफ से, उसे परेशान थोड़ी न करेंगे। अगर उसे आजादी चाहिए तो ठीक है वो आजाद रहे। चलो अपनी जिंदगी तो यहीं तक है। मैं खुश हूं कि मैं अब अल्लाह से मिलूंगी और उन्हें कहूंगी कि मेरे से गलती कहां रह गई?’

‘मां-बाप बहुत अच्छे मिले, दोस्त भी बहुत अच्छे मिले। लेकिन कहीं कोई कमी रह गई, मुझमें या शायद तकदीर में। मैं खुश हूं, सुकून से जाना चाहती हूं। अल्लाह से दुआ करती हूं कि अब दोबारा इंसानों की शक्ल न दिखाए। एक चीज जरूर सीख रही हूं कि मोहब्बत करनी है तो दो तरफा करो, क्योंकि एकतरफा में कुछ हासिल नहीं है। चलो कुछ मोहब्बत तो निकाह के बाद भी अधूरी रहती है। ऐ प्यारी सी नदी, प्रे करते हैं कि मुझे अपने में समा ले। और मेरे पीठ पीछे जो भी हो, प्लीज ज्यादा बखेड़ा मत करना। मैं हवाओं की तरह हूं, बस बहना चाहती हूं और बहते रहना चाहती हूं। किसी के लिए नहीं रुकना। मैं खुश हूं आज के दिन… मुझे जो सवाल के जवाब चाहिए थे, वे मिल गए। और मुझको जिसको जो बताना था सच्चाई वो बता चुकी हूं। बस काफी है, थैंक्यू। मुझे दुआओं में याद करना। क्या पता जन्नत मिले या न मिले। चलो अलविदा।’

आयशा के शब्द बेहद भावुक थे। अपने पिता के साथ फोन पर आखिरी बातचीत में भी आयशा इसी तरह की बहुत बातें कहती हैः आयशा के पिता-बेटा कहां पर हो तुम? आयशा-‘रिवरफ्रंट पर हूं… आ रही हूं मैं…’। आयशा के पिता-‘मैं मोंटू को भेजता हूं… हैलो, सोनू…’। आयशा के पिता-‘मेरी बात सुन बेटा…’। आयशा-‘कुछ नहीं सुनना पापा…’। आयशा के पिता-‘देख गलत बात मत कर… लो अम्मी से बात करो…’। आयशा-‘मुझे कुछ नहीं सुनना… मुझे बस पानी में कूदना है…’। आयशा के माता-पिता-‘अरे बेटा… ऐसा काम मत करना…’। आयशा-‘बहुत हो गया अब…’। आयशा के माता-पिता-‘ऐसा काम करोगी तो लोग बोलेंगे कि ये खराब थी…’। आयशा-जिसे जो चाहे बोले…। आयशा के माता-पिता-‘ऐसा काम मत करना…’। आयशा-‘मुझे पानी में कूदना है…मुझे नहीं जीना है अब..थक गई हूं..’। आयशा के पिता-‘कुछ भी नहीं..अल्लाह मालिक है, माफ करेगा..’। आयशा-‘मुझे किसी से बात नहीं करनी… उसको नहीं आना मेरी जिंदगी में…आजादी चाहिए तो मैंने उसे आजादी दे दी है…बोलता है… तुम मरने जा रही है तो वीडियो बनाकर भेज देना… ताकि मुझे पुलिस ना ले जाए….मैंने बोला ठीक है… वीडियो दे दिया उसको ठीक है मैं मरने जा रही हूं… तुम्हारे ऊपर कोई नहीं आएगा…’।आयशा के माता-पिता-‘ऐसा करना भी मत कुछ भी..’।

आयशा मुस्लिम समाज की एक पढ़ी लिखी, प्रगतिशील सोच वाली नए जमाने की लड़की थी। उसने मजहबी तालीम भी ले रखी थी और वो कानून भी जानती थी। उसे ये भी पता था कि उसके ससुराल वाले जो कर रहे हैं, वो जुर्म है और इस जुर्म में उन्हें सख्त सजा हो सकती है, लेकिन इसके बाद भी आयशा हार गई।

बेटी की मौत फूट-फूटकर रोते हुए पिता और उनकी बातों ने दहेज और घरेलू हिंसा के मुद्दे पर देश के मुस्लिम समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। उलेमाओं ने मुसलमानों से अपील की है कि न मां-बाप बेटे की शादी में दहेज लेंगे और न लड़की के मां-बाप बेटी की शादी में दहेज देंगे। जो दहेज की मांग करेगा उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।

उधर, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दहेज की मांग करनेवाले और महिलाओं को दहेज के नाम पर परेशान करनेवालों को खूब लताड़ा। उन्होंने अपने भाषण में कहा-‘इस दहेज की लानत को ख़त्म करो। बीवी पर ज़ुल्म करना मर्दानगी नहीं है। बीवी को मारना मर्दानगी नहीं है। बीवी से पैसों की मांग करना मर्दानगी नहीं है। तुम मर्द कहलाने के भी लायक नहीं हो, अगर तुम ऐसी हरकत करोगे। शर्म आनी चाहिए उन घरवालों को जिन्होंने हमारी इस बेटी को मजबूर किया..मैं तो अल्लाह से दुआ करूंगा कि अल्लाह बर्बाद करे तुम लोगों को। कितनी औरतों को तुम मारोगे। कैसे तुम मर्द हो जो बच्चियों को मार रहे हो, उनकी जान ले रहे हो। क्या तुममें इंसानियत मर चुकी है और ऐसे कितने लोग हैं। जो अपनी बीवियों पर ज़ुल्म करते हैं, थप्पड़ मारते हैं। बाहर निकलकर अपने आपको फरिश्ता कहलाते हैं। याद रखो, तुम दुनिया को धोखा दे सकते हो लेकिन अल्लाह को नहीं दे सकते। याद रखो तुम अगर अपनी बीवियों को मारोगे, कल यही मार का हिसाब तुमको हश्र (कयामत के दिन) के मैदान में देना पड़ेगा। तुम कहते हो मैं मोहम्मद सल्ल्लाह-हो-अलह-ए-वसल्लम को मानने वाला हूं । अरे, शर्म से डूब मरो…तुम रसूल अल्लाह को मानने वाले हो और बच्ची को मारते हो। उस बच्ची से दहेज का मांग करते हो। अरे इस्लाम में दहेज की मांग करना हराम है…हराम है..हराम है।

ओवैसी यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा-‘मेरे अजीज दोस्तों और बुजुर्गों इस बुराई का खात्मा हमको करना है।औरतों का साथ देना है। औरतों को कमजोर मत समझो।औरतों का साथ दो, इनको हमें समाज में आगे बढ़ाना है। अगर अल्लाह ने आपको बेटी दी तो उसे बेटे से ज्यादा काबिल बनाओ। बेटे से ज्यादा उसे इल्म दिलाओ। याद रखो, मैं भी साहेब औलाद हूं। मगर जितनी मोहब्बत मैं अपनी बेटियों में देखता हूं..अल्लाह का बहुत बड़ा करम है मुझ पर।

ओवैसी हमेशा तीखा बोलते हैं। कई बार हिंदू-मुसलमान की बात करते हैं। लेकिन ओवैसी ने बेटियों पर जुल्म के खिलाफ जो आवाज उठाई और जो बात कही, वो काबिले तारीफ है। ओवैसी की ये बात सही है कि हमारे समाज में बहू-बेटियों का जीना मुश्किल है, उन पर जुल्म की इंतेहा होती है। सिर्फ दहेज नहीं, घरेलू हिंसा, बलात्कार, गैंगरेप जैसी तमाम बुराइयां हमारे समाज में हैं। हर मिनट में एक महिला मार-पीट का शिकार होती है। देश में हर 16 मिनट में एक महिला बलात्कार का शिकार होती है। हर एक घंटे में एक गैंगरेप होता है। ये तो वो केस हैं .जो रिपोर्ट होते हैं। सोचिए कितने केस होंगे जो पता ही नहीं लगते। जिनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं होती और दबा दिए जाते हैं। दहेज और घरेलू हिंसा को खत्म करने के लिए मौलानाओं और इमामों की ये एकजुट पहल सराहनीय है।

मैं मुस्लिम उलेमा और असुदुद्दीन ओवैसी को सलाम करता हूं जिन्होंने बेटियों पर होने वाले जुल्म को दिल से महसूस किया और बड़े साफ-साफ लफ्जों में आवाज उठाई। इसी तरह मौलाना फिरंगी महली का शुक्रिया जिन्होंने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई और दूसरे मौलानाओं को जागरुक किया। मैं नमन करना चाहता हूं स्वामी रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अवधेशानंद गिरी और महंत परमहंस दास को जिन्होंने इस मुहिम को आगे बढ़ाने में साथ दिया। बेटियों पर जुल्म के खिलाफ, दहेज के खिलाफ कानून तो हैं, लेकिन कानून की सीमाएं हैं, सिस्टम की अपनी खामियां हैं। हम सब जानते हैं इन कानूनों का कितना असर हुआ है। पुलिस अपना काम करती है। कोर्ट अपना काम करते हैं। लेकिन इनकी अपनी सीमाएं हैं।

यह देश बहुत बड़ा है। हमने देखा सब कुछ होने के बावजूद बहू-बेटियों पर अन्याय कम नहीं हुआ है। दहेज का दानव आज भी आग उगलता है और सिर्फ दहेज की बात नहीं है। कितने मर्द अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए बीवियों से मारपीट करते हैं और उन्हें घर से निकाल देते हैं। बलात्कार जैसी घटनाएं भी सामने आती हैं। इसलिए मुझे लगता है कि कानून से भी ज्यादा लोगों की आत्मा को जगाने की जरूरत है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च से ये आवाज उठाने की जरुरत है। यह काम कोई एक दिन में नहीं होगा। ये नासूर है जो समाज को खा रहा है, समाज को खोखला कर रहा है। किसी भी समाज को जगाने में, जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने और लोगों को लड़ने के लिए तैयार करने में वक्त लगता है।

मेरी आप लोगों से हाथ जोड़कर अपील है कि बेटियों को जुल्म और जालिमों से बचाने के लिए इस अभियान में हमारा साथ दें। सबसे ज़रूरी बात है कि हमारे समाज में इस तरह के जालिमों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जब समाज इस तरह के दानवों का का बहिष्कार करेगा, उनकी पहचान करेगा और अपने से दूर रखेगा तब शायद ऐसे लोगों को अक्ल आएगी। तो आइए हम सब मिलकर इस जुल्म के खिलाफ आवाज उठाएं।

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