Rajat Sharma

ज्ञानवापी विवाद : हिन्दू, मुसलिम दोनों पक्ष संयम बरतें

AKBकाशी के ज्ञानवापी परिसर में मौजूद व्यास जी के तहखाने में 31 साल बाद पूजा अर्चना और दर्शन शुरू हो गया. बुधवार को वाराणसी के जिला जज ने प्रशासन को सात दिन के भीतर तहखाने में पूजा अर्चना के इंतजाम कराने और रास्ते में लगी बैरिकेडिंग को हटाने का आदेश दिया. प्रशासन ने कुछ ही घंटों के भीतर आदेश का पालन कर दिया. रात बारह बजे तहखाना खुल गया, आसपास लगी बैरिकेडिंग हट गईं, जो लोहे की जाली लगी थी, उसे काट दिया गया, गंगा जल से तहखाने की सफाई हुई, शुद्धिकरण हुआ, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की तरफ से तहखाने में पुजारी के तौर पर गणेश्वर शास्त्री की नियुक्ति भी हुई और साढ़े तीन बजे वाराणसी के कमिश्नर, डीएम, पुलिस की मौजूदगी में पांच पुजारियों ने विग्रहों की पूजा की. 31 साल बाद व्यास जी के तहखाने में घंटा, घडियाल और शंख बजे. करीब डेढ़ घंटे तक चली पूजा के वक्त इस तहखाने में पीढ़ियों से पूजा कर रहे व्यास परिवार के जीतेंद्र व्यास और उनके बेटे भी मौजूद थे. हांलाकि रात साढ़े तीन बजे व्यास जी के तहखाने में मंगला आरती हुई, उस वक्त चुनिंदा लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति थी लेकिन जैसे ही लोगों को खबर मिली कि व्यास जी के तहखाने में पूजा हो रही है तो बड़ी संख्या में लोग रात में ही वहां पहुंच गए. इन लोगों को अंदर तो नहीं जाने दिया गया लेकिन भक्तों ने काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में खड़े होकर ही व्यास तहखाने के दर्शन किए. मुस्लिम पक्ष के लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि रात में ही तहखाना खुल जाएगा लेकिन जैसे ही ज्ञानवापी मस्जिद इंतजामिया कमेटी के लोगों को इसकी खबर लगी तो तुरंत हरकत में आए. वाराणसी से लेकर दिल्ली तक खलबली मची. मुस्लिम पक्ष के वकील रात तीन बजे सुप्रीम कोर्ट की तरफ दौड़े, कोर्ट के रजिस्ट्रार को बताया कि मामला गंभीर है, इसलिए इसी वक्त अपील करनी है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड ने सुबह साढ़े 4 बजे सुनवाई की और मुस्लिम पक्ष को हाईकोर्ट में अपील करने का निर्देश दिया. शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तहखाने के पूजा पर स्टे देने से इंकार कर दिया. इस मसले पर अब सोमवार को फिर सुनवाई होगी. मुस्लिम पक्षकार मुख्तार ने कहा कि इस केस में इंसाफ नहीं किया गया. उन्होंने सवाल किया कि ज्ञानवापी से जुड़े मुस्लिम पक्ष के केस लटकाए जा रहे हैं और हिन्दू पक्ष के मामलों में तुरंत फैसला सुना दिया जा रहा है और प्रशासन भी इतनी जल्दीबाजी दिखा रहा है कि उन्हें अपील का भी मौका नहीं मिल रहा. दिल्ली में गुरुवार को जमीयत उलेमा ए हिंद के दफ्तर मे तमाम मुस्लिम संगठनों के मौलानाओं और नेताओं की इमरजेंसी मीटिंग हुई. बैठक में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, महमूद मदनी के अलावा जमात-ए-इस्लामी हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-अहले हदीस के प्रतिनिधि मौजूद थे. AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी मीटिंग में पहुंचे. तय हुआ कि मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया जाएगा. उधर, मौलाना तौकीर रज़ा ने तीखी बात कह दी. उन्होंने इल्जाम लगाया कि अदालतें सरकार के दवाब में फैसले दे रही हैं. तौकीर रज़ा ने कहा कि अब उन्हें डर है कि कहीं मुस्लिम नौजवान उलेमाओं के कन्ट्रोल से बाहर न हो जाएं, उसके बाद देश में जो हालात होंगे, वो भयानक होंगे और वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते. ज्ञानवापी का मामला बहुत नाज़ुक है. ये सही है कि व्यास जी के तहखाने में 1993 तक पूजा होती थी. ये भी सही है कि कोर्ट ने उसी परंपरा को बहाल किया है. ये फैसला अदालत का है. ये किसी राजनीतिक दल या सरकार का फैसला नहीं है. पूजा शुरू हुई, उसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन ये सब ठीक होते हुए भी इस मामले को बहुत समझदारी से डील करना जरूरी है. क्योंकि मुस्लिम समाज के लोग इसे शक की निगाह से देखेंगे. बहुत सारे ऐसे तत्व हैं जो कहेंगे, पहले बाबरी मस्जिद ले ली, अब ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा करेंगे. बहुत सारे ऐसे तत्व हैं जो कोर्ट के फैसले को मोदी और य़ोगी का फैसला बताएंगे. बार बार लोगों से कहेंगे कि जिला जज का आखिरी कार्य दिवस था, वो अगले दिन रिटायर होने वाले थे, इसलिए गलत फैसला दिया गया. कोई मुस्लिम नौजवानों को भड़काने की कोशिश करेगा. और हमने देख लिया है कि कुछ लोगों ने ये कहना शुरू भी कर दिया कि अब मुस्लिम नोजवानों को रोकना मुश्किल होगा. मुझे लगता है कि इस तरह के बयानों से बचना चाहिए और किसी भी हालत में सामाजिक सौहार्द बिगड़ने से रोकना चाहिए. हिन्दू पक्ष के लोगों को, साधू संतों को, समाज के प्रबुद्ध लोगों को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कहा था, उसे याद रखना चाहिए. मोदी ने कहा था कि ये विजय का नहीं, विनय का समय है. हिन्दू समाज को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की बात भी याद रखनी चाहिए. मोहन भागवत ने पिछले साल दशहरा रैली में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढना ठीक नहीं है. क्योंकि आपका दावा कितना भी सही हो, कितना भी न्याय संगत हो, कितनी भी भावनाएं उससे जुड़ी हों, लेकिन मुस्लिम समाज की संवेदनाओं को भी समझने की भी जरूरत है. और मुस्लिम संगठनों के नेताओं को भी बोलने से पहले सामाजिक सौहार्द का ध्यान रखना चाहिए.

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