Rajat Sharma

चीन ने भारत के खिलाफ कैसे शुरू किया प्रोपेगेंडा वार

चीन की जब कोई चालाकी काम नहीं आई और पीएलए का प्रोपेगेंडा वार फेल हो गया तो चीन ने मॉस्को में बातचीत का ड्रामा किया। मैं जानबूझकर ड्रामा शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। इसकी वजह आपको बताता हूं। दरअसल रूस में SCO समिट के साइडलाइन एलएसी विवाद को लेकर पहली बार भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वॉन्ग यी के बीच वन-टू-वन मीटिंग हुई। दोनों नेताओं के बीच विस्तार से बॉर्डर के मुद्दे पर चर्चा हुई। तय हुआ कि टेंशन को कम किया जाएगा। इसके लिए पांच सूत्रीय एजेंडा तय हुआ। लेकिन यह कागजों पर ही अच्छा लग रहा था, जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।

akb1209 पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना के साथ पिछले चार महीने से जारी गतिरोध के बीच चीन की सेना (पीएलए) अब एक ऐसे संकट में घिर गई है जिसकी नींव खुद उसी ने रखी थी। ऐसी हालत में अब भारत को डराने के लिए चीन की सेना ने प्रोपेगेंडा वॉर शुरू कर दिया है। उधर, एलएसी पर तैनात भारत के जवान पूरी मुस्तैदी के साथ सरहद की हिफाजत में डटे हुए हैं।

शुक्रवार को अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने चीन के आधिकारिक मीडिया की तरफ से जारी किए गए वीडियो दिखाए। इन वीडियो में चीन के टैंक और आर्टिलरी गन दिखाए गए हैं। पिछले तीन दिन से चीन के सरकारी टेलीविजन पर लगातार युद्धाभ्यास के वीडियो जारी किए जा रहे हैं और दावा किया जा रहा है कि भारत के सैनिक अगर पीछे नहीं हटे या भारत ने सरहद पर टेंशन कम करने की कोशिश नहीं की तो उसे युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। चीन की सेना तिब्बत में लगातार युद्धाभ्यास कर रही है। चीन की मीडिया का दावा है कि ये वीडियो तिब्बत स्थित पीएलए के वेस्टर्न मिलिट्री कमांड की ओर से जारी किया गया है।

इसी तरह दो दिन पहले भी चाइनीज टीवी ने एयरबोर्न ट्रूप्स की मॉक ड्रिल को एंकर्स के साथ दिखाया था और यह कहा गया कि यह युद्धाभ्यास लद्दाख में एलएसी पर मौजूदा हालात को देखकर ही किया जा रहा है। हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद ने बताया कि ये बात तो सही है कि चीन सरहद पर भारत को उकसाने, डराने और धमकाने की हर संभव कोशिश कर रहा है। ये भी सही है कि बीच-बीच में चाइनीज फौज मिलिट्री ड्रिल भी करती है और चीनी सौनिकों की तैनाती भी बढ़ी है। लेकिन चीन की तरफ से जो वीडियो जारी किए जा रहे हैं, वो सिर्फ प्रोपेगेंडा वॉर का हिस्सा हैं। चीन के ये वीडियो कब के हैं, कहां के हैं, कोई नहीं जानता। लेकिन कई दिनों से लेह में मौजूद मनीष प्रसाद ने बताया कि भारतीय जवान लद्दाख में पूरी तरह मुस्तैद हैं। हथियारों का जमावड़ा हमारी तरफ भी कम नहीं हैं।सैनिकों की तैनाती हमारी तरफ भी चीन से कम नहीं हैं और जहां तक एक्सरसाइज का सवाल है तो आसमान में हमारे फाइटर जेट और जमीन पर हमारे टैंक्स भी हर वक्त तैयार हैं।

अपने दावे को सही साबित करने के लिए चीन की सेना अपने जवानों के अजीबो-गरीब वीडियो भी जारी कर रहा है। वीडियो भी ऐसा, जिसे देखकर आप हंसे बिना नहीं रह सकते। एक वीडियो में चीन के सैनिकों को ड्रोन के जरिए ‘गर्म’ नूडल्स पहुंचाने की तस्वीरें दिखाई गई हैं। पूरी दुनिया जानती है कि हाई एल्टीट्यूड वॉर (पहाड़ों पर युद्ध) में हिन्दुस्तान की फौज का कोई मुकाबला नहीं है। ऊंचे और बर्फीले इलाकों में सर्वाइव करने और दुश्मन को धूल चटाने में हमारे जवानों को महारत हासिल है और पूरी दुनिया ये भी जानती है कि चीन के फौजी ऊंचे और बर्फीले इलाकों में लंबे वक्त तक नहीं टिक सकते। गलवान घाटी में जो हुआ था वो इसका सबूत है। हमारे जवानों ने दुश्मन को बड़ा नुकसान पहुंचाते हुए चीनी सैनिकों के हमले को नाकाम कर दिया, उसे पूरी दुनिया ने देखा है।

चीन की सेना बार-बार ये दावा करती है कि उसकी फौज ने सर्दियों की पूरी तैयारी कर ली है लेकिन सर्दियों में भारत के जवान लद्दाख के पहाड़ों पर इतनी ऊंचाई में टिक नहीं पाएंगे। सैनिकों को गर्म नूडल्स परोसते हुए वीडियो में दावा किया गया कि ड्रोन्स के जरिए चीन के अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिक, सर्द मौसम में भी गरमागर्म खाने का लुत्फ उठाएंगे। इसके बाद चीन की सरकारी मीडिया में ये भी कहा गया कि ऐसे मौसम में भारतीय जवानों को ठंडा कैन्ड फूड खाना पड़ेगा और भारी ठंड का सामना करना पड़ेगा। वैसे ये बात तो सही है कि ठंड बढ़ेगी तो चुनौतियां भी बढ़ेंगी। लेकिन इसके लिए हमारी सेना पूरी तरह तैयार है। भारतीय सेना के जवान इस वक्त भी 16 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद हैं और उनके लिए खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि अब ऊंचाई वाले इलाकों में बेस कैंप के पास ही छोटे-छोटे किचन बनाए गए हैं। इनमें जवानों के लिए गर्म खाना बनता है। किचन हर वक्त चलती रहे और इसके लिए ईंधन की कमी न हो, इसलिए लगातार डीजल की सप्लाई हो रही है। सिर्फ खाने-पीने के सामान ही नहीं बल्कि हथियारों की सप्लाई भी लगातार जारी है।

चीन की जब कोई चालाकी काम नहीं आई और पीएलए का प्रोपेगेंडा वार फेल हो गया तो चीन ने मॉस्को में बातचीत का ड्रामा किया। मैं जानबूझकर ड्रामा शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। इसकी वजह आपको बताता हूं। दरअसल रूस में SCO समिट के साइडलाइन एलएसी विवाद को लेकर पहली बार भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वॉन्ग यी के बीच वन-टू-वन मीटिंग हुई। दोनों नेताओं के बीच विस्तार से बॉर्डर के मुद्दे पर चर्चा हुई। तय हुआ कि टेंशन को कम किया जाएगा। इसके लिए पांच सूत्रीय एजेंडा तय हुआ। लेकिन यह कागजों पर ही अच्छा लग रहा था, जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।

पांच सूत्रीय फॉर्मूले में दोनों देश इस बात पर राजी हुए हैं कि (1) मतभेदों को विवाद नहीं बनने दें। (2) सैन्य स्तर पर बातचीत जारी रखनी चाहिए, विवादित जगहों पर दोनों देशों के सैनिकों को पीछे हटना चाहिए और सैनिक प्रॉपर डिस्टेंस मेंटेन करें जिससे तनाव कम हो सके। (3) बॉर्डर को लेकर दोनों देशों के बीच जो भी समझौते हुए हैं, दोनों सेनाएं उसका पालन करेंगी। (4) दोनों देश स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव मैकेनिज्म के जरिए कम्यूनिकेशन बनाए रखेंगे। (5) हालात सामान्य होने पर दोनों देशों को विश्वास बहाली के उपायों पर काम में तेजी लाना होगा।

जब ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी हुआ तो लगा कि चीन अब रास्ते पर आ रहा है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि मास्को में ज्वाइंट स्टेटमेंट के जारी होने के कछ ही देर के बाद चीन ने अपनी लाइन बदल दी। चीन ने लद्दाख सेक्टर में एलएसी के पास 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात कर दिया है, और उसके वायु सेना के विमान और एयर डिफेंस सिस्टम लगातार एक्सरसाइज कर रहे हैं। चीन के आर्मी जनरल इतने चिंतित और घबराए हुए क्यों हैं? ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारे स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवान, जो तिब्बती निर्वासित हैं, ने एलएसी के पास कई ऊंचाई वाली चोटियों पर कब्जा कर लिया है, जहां से वे चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं।

इस वक्त भारतीय फौज की पोजिशन चीन के मुकाबले कई गुना मजबूत है। दक्षिणी पैंगोग सो इलाके की 24 चोटियों पर हमारे जवान तैनात हैं। भारतीय फौज की इस तैनाती से चीन की फौज परेशान है। उसके जनरल घबराए हुए हैं। साउथ पैंगोंग सो में फिंगर फोर की सबसे ऊंची चोटी पर अब इंडियन पोस्ट बन चुकी है। हमारे जवानों ने प्रीएम्टिव मेजर्स के साथ, मिडनाइट ऑपरेशन करके करीब 6000 मीटर की ऊंचाई यानी करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा ली है। असल में फिंगर फोर और फिंगर फाइव को लेकर ही दोनों सेनाओं के बीच टकराव के हालात हैं। चीन ने इस इलाके में हैवी डिप्लॉयमेंट किया हुआ है इसीलिए भारतीय सेना का भी मिरर डिप्लॉयमेंट है। चूंकि पहले हम नीचे की तरफ थे,इसलिए चीन की तैनाती पर नजर रखने में दिक्कत होती थी और चीन को छुपकर, चुपके से घुसपैठ करने में आसानी होती थी। लेकिन अब इंडियन आर्मी को फायदा मिला है कि वह चीनी सैनिकों पर नजर रख सके।

जरा सोचिए, दुनिया की सबसे ऊंची पोस्ट सियाचिन ग्लेशियर 22 हजार फीट पर है और अब हमारे जवान पैंगोंग सो इलाके में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं। और यहां से हम चाइनीज डिप्लॉयमेंट पर..चाइनीज मूवमेंट पर पूरी तरह नजर रख सकते हैं। इस वक्त भारत और चीन की सेना के बीच चुशूल, हॉटस्प्रिंग्स, डेपसांग वैली और पैंगोंग सो की पोजिशन को लेकर फेसऑफ की स्थिति बनी हुई है। यहां एक स्ट्रेटजिक प्वाइंट है ‘रेचेनला पास’। इस वक्त ‘रेचेनला पास’ चीन की लाइफ लाइन है। लेकिन इसके करीब ही भारतीय सेना के जवान 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात है। यहां से चीन की हर हरकत पर नजर रखी जा रही है।

आइए, हम यह समझने की कोशिश करें कि चीनी जनरलों क्यों चिंतित हैं और घबराए हुए क्यों हैं। अप्रैल में चीनी सैनिकों की घुसपैठ नोटिस में आने के बाद जून में भारतीय जवानों के साथ उनका टकराव शुरू हुआ। अप्रैल तक भारत को चीन की दोस्ती पर भरोसा था और इसका अनुचित लाभ चीनी सेना ने उठाया। लेकिन अब, हालात बदल गए हैं। भारतीय सेना ने लगभग 24 चोटियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है जहां से वे चीन के सैनिकों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रख सकते हैं। चीन चाहता है कि भारतीय सैनिक इन चोटियों से हट जाएं।

चीन की दूसरी परेशानी ये है कि भारत ने उससे होने वाले व्यापार पर पाबंदी लगाई है। अब चीन की कोशिश ये है कि एलएसी पर बात होती रहे, मामला लटकता रहे, लेकिन भारत ने चीन के बिजनेस पर जो रोक लगाई है उसे वापस ले लिया जाए। क्योंकि बिजनेस की मार भी चीन को खूब पड़ी है। चीनी आईटी कंपनियां भारत सरकार द्वारा ऐप्स पर लगाए गए बैन से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। जब तक चीन अपने सैनिकों को नहीं हटाता और तिब्बत में अपनी सेना की तैनाती कम नहीं करता, तब तक सामान्य हालात बहाल नहीं हो सकते।

चीन की तीसरी तकलीफ ये है कि पूरी दुनिया में आज भारत की डिप्लोमेसी और नरेन्द्र मोदी की लीडरशिप का प्रभाव है। आज अमेरिका, रूस, यूके, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप से लेकर सारे बड़े-बड़े मुल्क भारत के साथ हैं। वो चीन की चालाकियों को समझते हैं,इसलिए चीन आइसोलेटेड है और किसी तरह से इस हालात से बाहर निकलना चाहता है।

और अंत में सबसे बड़ी बात ये है कि इन सारी बातों का असर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की टॉप लीडरशिप की आंतरिक ताकत पर भी पड़ रहा है, जिसे वहां की जनता की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। चीन ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ की कहावत चरितार्थ करता रहा है। लेकिन भारत ने चीन के इस गेम को अच्छी तरह से समझ लिया और चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का फैसला किया है। क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है।

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