Rajat Sharma

क्या लद्दाख सीमा पर तनाव खत्म करने पर भारत, चीन सहमत होंगे?

rajat-sirइस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि लद्दाख सीमा पर भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जारी 2 साल पुराना गतिरोध जल्द ही समाप्त हो सकता है। दोनों पक्ष सीमा विवाद को हल करने के काफी करीब पहुंच गए हैं और जल्द ही इसका औपचारिक ऐलान हो सकता है। इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद के मुताबिक, उनके सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जल्द ही लद्दाख सीमा पर शांति बहाल होने और दोनों सेनाओं के बीच तनाव खत्म होने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है, तो यह निश्चित रूप से भारत के लिए बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी।

गुरुवार की रात को अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने बताया कि पिछले 2 सालों के दौरान क्या-क्या हुआ, कहां-कहां बात की गई, अब बातचीत किस स्टेज पर है, LAC पर किन-किन जगहों पर डिसएंगेजमेंट का प्रोसेस शुरू हो चुका है और इस समय क्या हालात हैं। भारत और चीन के बीच जितनी खामोशी से, जितनी शान्ति से, बातचीत के जरिए सीमा विवाद को सुलाझाने की कामयाब कोशिश हुई, ये जब सामने आएगा तो पूरी दुनिया हैरान हो जाएगी।

भारत-चीन का सीमा विवाद लगभग 60 साल पुराना है और इसके उतार-चढ़ाव का लंबा इतिहास रहा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉक्टर मनमोहन सिंह तक, कोई प्रधानमंत्री इस मसले को सुलझा नहीं पाया। उन पुरानी गांठों को नरेंद्र मोदी ने कैसे खोला, ये पूरी दुनिया जानना चाहती है क्योंकि यह कोई छोटा-मोटा विवाद नहीं था।

2 साल पहले हमारे 20 बहादुर जवान गालवान घाटी में शहीद हो गए थे। दोनों तरफ की सेनाएं आमने-सामने थीं, साथ ही बख्तरबंद रेजिमेंट और फाइटर जेट्स भी तैनात कर दिए गए थे और टकराव के हालात बन रहे थे। दोनों तरफ से 60 हजार फौजी मोर्चा संभाले हुए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गतिरोध के दौरान कहा था कि भारत एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगा और चीन ने भी कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था। इन सबके बावजूद न एक भी गोली चली, न जुबानी जंग हुई, बल्कि दोनों देशों की सेनाओं और राजनयिकों ने नक्शे की लकीरों को ठीक करने के लिए बातचीत का सहारा लिया।

हमारे डिफेंस एडिटर ने बताया कि सीमा विवाद के हल होने का औपचारिक ऐलान चीन के विदेश मंत्री वांग यी के भारत दौरे के वक्त हो सकता है। चीन के विदेश मंत्री के इसी महीने भारत आने की खबर है। हालांकि सरकार ने अभी तक उनके दौरे की तारीखों की पुष्टि नहीं की है।

लद्दाख में अभी क्या हालात हैं? वहां कई फ्रिक्शन पॉइंट तो ऐसे थे जहां भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने हैं और दोनों के बीच बस कुछ सौ मीटर का फासला था। दोनों देशों के बीच अभी तक 15 दौर की बातचीत हो चुकी है। आखिरी दौर की बातचीत 11 मार्च को हुई थी, और उसी वक्त चीनी अधिकारियों के रुख में बदलाव के साफ संकेत मिले थे। ऐसा लगता है कि अब दोनों पक्ष विवाद को खत्म करने पर सहमत हो गए हैं। भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी, जो स्थिति पर कड़ी नजर रख रहे थे, अब इस गतिरोध के जल्द खत्म होने की उम्मीद जता रहे हैं।

डेपसांग, डेमचोक, चुमार, हॉट स्प्रिंग्स, पैंगॉन्ग सो, गलवान घाटी और गोगरा, इनमें से टकराव के 3 बड़े पॉइंट पर तनाव अभी भी बरकरार है। हॉट स्प्रिंग्स, जिसे पट्रोलिंग पॉइंट 15 भी कहते हैं, यहां विवाद कम है। जुलाई 2020 में दोनों देश हॉट स्प्रिंग्स से अपनी सेनाएं पीछे हटाने को तैयार हो गए थे, लेकिन बाद में चीन ने वापसी की प्रक्रिया को रोक दिया था। अब हॉट स्प्रिंग्स से सैनिकों की वापसी शुरू हो सकती है।

भारत-चीन के बीच लद्दाख में तनाव का दूसरा बड़ा इलाका है डेमचोक। इस जगह पर तो तनाव 1990 से है। समझौते की कई कोशिशें भी हुईं, मगर अब लगता है कि 32 साल के बाद तनाव खत्म करने में कामयाबी मिल सकती है। भारत और चीन के बीच सबसे बड़ा फ्रिक्शन पॉइंट डेपसांग में है। चीन ने इस इलाके में हमारे सैनिकों को गश्त करने से रोक दिया था, जिसके जबाव में हमारी सेना ने चीन के कुछ पट्रोलिंग पॉइंट बंद कर दिए।

डेपसांग प्लेन का इलाका रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से होकर भारत की डारबुक-श्योक और दौलत बेग ओल्डी की सड़क जाती है। इसे DS-DBO रोड कहा जाता है। ये दौलत बेग ओल्डी में भारत की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप तक जाने का रास्ता है। चीन को डर है कि दौलत बेग ओल्डी से भारत CPEC (चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर) और तिब्बत से शिंजियांग जाने वाले हाइवे को काट सकता है। लेकिन अगर इस इलाके में चीन मजबूत स्थिति में रहता है तो हमारे लिए सियाचिन ग्लेशियर तक पहुंचने में दिक्कत हो सकती है। डेपसांग के अलावा चुमार भी भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण रणनीतिक इलाका है, जहां विवाद का हल होना जरूरी है।

भारत ने चीन की आक्रामकता के खिलाफ बहुत ही सख़्त रवैया अपनाया हुआ है और अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं पूरी सैन्य शक्ति के साथ चीन को जवाब दिया है। भारत ने बार-बार कहा है कि सीमा के इस विवाद का हल निष्पक्ष और बराबरी का होना चाहिए। गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद, सबसे पहले दोनों देशों के सैनिकों की गलवान के मोर्चे से वापसी हुई थी। इसके बाद फरवरी 2021 में दोनों देशों ने पैंगॉन्ग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से अपनी सेनाएं पीछे हटाई थीं। आखिरी बार पिछले साल 4 और 5 अगस्त को गोगरा में दोनों देशों ने अपने-अपने सैनिक पीछे हटाए थे।

लद्दाख में इस वक्त जमीनी हालात कैसे हैं? हमारे डिफेंस एडिटर ने बताया, पट्रोल प्वाइंट 14 पर चीन की सेना डेढ़ किलोमीटर पीछे गई है, और भारत भी इतना ही पीछे हटा है। इस वक्त दोनों देशों के सैनिकों के बीच 3 किलोमीटर का फासला है। पट्रोलिंग पॉइंट 15 पर दोनों ही देशों ने छोटी बटालियन तैनात कर रखी हैं। ये हॉट स्प्रिंग्स का इलाका है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि दोनों देश डिसएंगेजमेंट पर राजी हो गए हैं। इसी तरह पट्रोलिंग पॉइंट 17A पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं, और वापसी की प्रक्रिया पूरी हो गई है। इस समय सबसे ज्यादा टेंशन डेपसांग में है, जहां हमारी सेना पट्रोलिंग नहीं कर पा रही है और भारतीय जवानों ने भी चीनी सैनिकों के गश्त के रास्ते को रोक रखा है।

चूंकि बातचीत अंतिम दौर में है, औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है, इसलिए ये एक संवदेशनशील समय है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस वक्त राजनीतिक बयानबाजी, अफवाहों और अटकलों से बचना चाहिए क्योंकि इसका बातचीत पर बुरा असर हो सकता है। लेकिन हमारे यहां AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता हैं, जो अटकलबाजी कर रहे हैं।

ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘चीन दावा कर रहा है कि लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स में भारत के साथ सब कुछ पहले ही सुलझा लिया गया है। क्या सरकार कृपया पुष्टि करेगी कि यह सच है? यदि ऐसा है, तो अंतिम 2 दौर की सीमा वार्ता किस बारे में थी?’

ज्यादातर एक्सपर्ट्स ने इस बात की उम्मीद छोड़ दी थी कि भारत और चीन के बीच बातचीत से रास्ता निकल आएगा। तमाम एक्सपर्ट्स तो ये भी मान रहे थे कि यूक्रेन-रूस जंग का फायदा उठाकर चीन, भारत के साथ और तनाव पैदा करने, और जिन इलाकों पर विवाद है, वहां कब्जा करने की कोशिश कर सकता है। लेकिन मुश्किल के इस वक्त में नरेन्द्र मोदी की रणनीति, स्वतंत्र विदेश नीति और दृढ़ इच्छाशक्ति काम आई।

चीन के साथ तनाव का एक मुख्य कारण भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में सुधार था। चीन को लग रहा था कि भारत अमेरिका से हथियार खरीदकर उसके खेमे में जा रहा है, और क्वॉड का सदस्य बनकर, जो कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रेलिया का एक समूह है, एक नई विश्व व्यवस्था में शामिल हो रहा है। चीनी नेतृत्व को डर था कि भारत समेत ये चारों देश उनके देश के खिलाफ गैंग बना रहे हैं। लेकिन जब रूस की सेना ने यूक्रेन पर हमला किया और बमबारी की, तो भारत ने एक स्वतंत्र रुख अपनाया, और चीन की तरह ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ मतदान से परहेज किया।

चीन ने इस बात पर गौर किया कि भारत अमेरिका के दबाव के आगे नहीं झुका। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह भी देखा कि भारत ने अमेरिका के दबाव में रूस के साथ अपना एस-400 मिसाइल सौदा रद्द नहीं किया। चीन की सरकार ने यह बात भी नोट की कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूस से 35 लाख टन कच्चा तेल खरीदने का विकल्प चुना। इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी के फैसलों ने चीन की सरकार को स्पष्ट संकेत दिया कि भारत एक स्वतंत्र नीति अपनाएगा, और न तो वह अमेरिकी दबाव के आगे झुकेगा और न ही आंख मूंदकर रूस के साथ जाएगा। इसी का नतीजा है कि चीन ने लद्दाख सीमा विवाद के मुद्दे पर अपना रुख नरम करने का फैसला किया। अब हमें खुशखबरी का इंतजार करना चाहिए।

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