Rajat Sharma

कोटा कोचिंग : कामयाबी या मौत की फैक्ट्री ?

AKB राजस्थान के कोटा में पिछले चौबीस घंटे में फिर दो बच्चों ने अपनी जान दे दी. इस साल आठ महीनों में अब तक कुल 23 बच्चे मौत को गले लगा चुके हैं. जिन बच्चों ने आत्महत्या की, वो सब इंजीनियर, डॉक्टर बनने NEET और JEE की परीक्षा की तैयारी करने कोटा आए थे. माता-पिता ने बच्चों को बड़े बड़े सपनों के साथ कोटा भेजा था, लाखों रूपए की फीस भरी थी लेकिन सवाल ये है कि कोटा जाकर ऐसा क्या हो जाता है? बच्चों के सामने ऐसी कौन सी मुश्किल खड़ी हो जाती है जिसके कारण बच्चे जिंदगी से नाउम्मीद हो जाते हैं? खुदकुशी करने के लिया मजबूर हो जाते हैं? ये बहुत बड़ा सवाल है. पुलिस कानूनी तौर पर अपना एक्शन ले रही है, सरकार बच्चों की लगातार आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए मनोवैज्ञानिकों की मदद ले रही है. कोचिंग इंस्टीट्यूट्स पर लगाम कस रही है लेकिन इससे न माता पिता का डर कम हो रहा है, न बच्चों की मुश्किलें कम हो रही हैं. चूंकि सवाल बच्चों के भविष्य का है, मुद्दा बच्चों की जिंदगी का है, इसलिए इस मामले को पूरी संवेदना के साथ, विस्तार से समझने की जरूरत है. हमारे संवाददाताओं ने कोटा में कोचिंग चलाने वालों से बात की, बच्चों से बात की, दूसरे शहरों से कोटा आकर बच्चे जिन घरों में किराए पर रहते हैं, उन घरों में जाकर देखा, बच्चों के हॉस्टल में जाकर हालात को समझने का प्रयास किया, मनोचिकित्सकों से, पुलिस के अफसरों से बात की, इन लोगों की बात सुनकर आपको हकीकत का पता लगेगा कि बच्चे माता पिता के सपने पूरे करने के लिए किस कदर घुटन महसूस करते हैं, कितने दबाव मे जीते हैं, और पैसा कमाने के चक्कर में कोचिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाले कैसे बच्चों को नोटों का ATM समझते हैं.
पिछले 24 घंटों मे कोटा में दो छात्रों ने आत्महत्या की, एक ने पंखे से लटककर खुदकुशी की तो दूसरा कोचिंग इंस्टीट्यूट की छठी मंजिल से कूद गया. दोनों की उम्र सत्रह साल से कम थी. दोनों कोटा में एलेन इंस्टीट्यूट के छात्र थे. एक का नाम आदर्श है, दूसरे का नाम आविष्कार. आदर्श बिहार के रोहतास जिले का रहने वाला था. हाईस्कूल का इम्तेहान पास करके पांच महीने पहले ही रोहतास से डॉक्टर बनने के सपने के साथ कोटा आया था. आदर्श की बहन और उसके मामा के बेटा भी कोटा में कोचिंग करने आए थे. तीनों किराए पर फ्लैट लेकर साथ में रहते थे. आदर्श के कोचिंग इ्स्टीट्यूट में होने वाले इंटरनल टेस्ट में कुल सात सौ में ढाई सौ से भी कम नंबर आये, इसलिए आदर्श टेंशन में था. कोचिंग से लौट कर तीनों भाई बहन ने साथ मिलकर खाना बनाया, साथ बैठकर खाया, फिर अपने अपने कमरे में चले गए. रात में ही आदर्श ने अपने कमरे में पंखे से लटक कर जान दे दी. आदर्श की मौत के बाद अब उसकी बहन और ममेरे भाई कोटा से वापस घर जा रहे हैं. कोटा को भारत की कोचिंग कैपिटल माना जाता है. डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लेकर हर साल 3 लाख से ज्यादा छात्र कोटा आते हैं. इन लाखों छात्रों में से कई हजार छात्र डॉक्टर औऱ इंजीनियर बनते भी हैं, जिसकी सब जगह चर्चा होती है. यहां के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में दिन रात पढाई होती है. हर हफ्ते औऱ हर पखवाड़े परीक्षा. बिल्कुल मशीनी ज़िंदगी. कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट एक असेंबल फैक्ट्री की तरह काम करते हैं, जहां इंजीनियरिंग औऱ डॉक्टरी के लिए छात्र तैयार किए जाते हैं. कोटा के कोचिंग इंस्टीट्यूट से निकलने वाले इन इंजीनियर्स और डॉक्टर्स की चर्चा सब करते हैं और ये कोटा का खुशनुमा पक्ष है लेकिन इसी कोटा का एक अंधेरा पक्ष भी है. हर साल यहां दर्जनों छात्र पढ़ाई के दबाव और नाकामी के डर से आत्महत्या भी करते हैं. सिर्फ इसी साल की बात करें तो 8 महीने में 23 छात्र अपनी जान दे चुके हैं. कोटा में वैसे तो दर्जनों कोचिंग सेंटर हैं लेकिन 6 बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट हैं, जिनकी फीस 1 लाख से शुरू होकर 2 लाख रूपये सालाना तक है. इसके बाद बच्चे के रहने और खाना का खर्चा अलग से होता है. कोटा में कोचिंग का कारोबार हर साल 5 हज़ार करोड़ रूपये का है. मेडिकल और इंजीनियरिंग के कोर्स र्की 50 लाख किताबें यहां हर साल बिकती हैं. कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चों के लिए ढाई हज़ार रजिस्टर्ड हॉस्टल है, जिनमें करीब सवा लाख छात्र रहते हैं. इसके अलावा बच्चे किराए पर कमरा लेकर रहते हैं. कोटा में हर साल परिवहन उद्योग को सौ करोड की कमाई करती है क्योंकि कोचिंग करने वाले बच्चों से मिलने उनके माता पिता अक्सर कोटा आते हैं. कुछ इंस्टीट्यूट्स में जो नामी शिक्षक हैं, उनको कोचिंग इंस्टीट्यूट हर साल 1 से 2 करोड़ रूपए का पैकेज देते हैं. कोटा में कोचिंग सेंटर्स से सरकार को हर साल 700 करोड़ रुपये तक का टैक्स मिलता है. कोटा में राजस्थान के अलावा यूपी, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से छात्र यहां आते हैं. सवाल ये है कि कोटा में पढ़ाई का ऐसा कौन से सिस्टम है जो बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है. पता लगा कि कोचिंग इस्टीट्यूट में पढ़ने वालों का कोई टेस्ट तो होता नहीं हैं, जो चाहे वो फीस भरे और एडमीशन ले ले, कोचिंग इस्टूट्यूट चलाने वाले एडमीशन तो सबका ले लेते हैं लेकिन उन्हें अपने इंस्टीट्यूट के नाम की फिक्र होती है, इसलिए हर हफ्ते टेस्ट होते हैं. 700 अंक के इस टेस्ट में जिन बच्चों के नंबर 500 से ज्यादा आते हैं, उन्हें ए कैटगरी में रखा जाता है. उनके लिए अलग व्हाट्सएप ग्रुप बना दिया जाता है. जो बच्चे पढ़ने में तेज होते हैं, टेस्ट में अच्छा परफॉर्म कर रहे होते हैं, उनको पढ़ाने के लिए अच्छे शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती है क्योंकि कोचिंग इस्टीट्यूट वालों को लगता है कि जो बच्चे इंटरनल टेस्ट में अच्छा कर रहे हैं, वो JEE, NEET में अच्छे अंक ला सकते हैं. वो उनकी कोचिंग का नाम रौशन कर सकते हैं, इसलिए उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है, स्कॉलरशिप के नाम पर उनकी कुछ फीस भी मांफ की जाती है. इसीलिए पढ़ने में तेज बच्चों के ग्रुप मे शामिल होने के चक्कर में बहुत से बच्चे दबाव में आ जाते हैं और जब उनके नंबर इंटरनल टेस्ट में कम आते हैं तो वो डिप्रैशन में आकर आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं. राजस्थान के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि अब बहुत हो गया, अब सरकार को कानून का डंडा चलाना पड़ेगा, कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है लेकिन वो बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाते. कैबिनेट मंत्री महेश जोशी ने कहा, केंद्र सरकार को कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को लेकर कोई नीति बनानी चाहिए और जब तक ये नीति नहीं बनती तब तक इन इंस्टीट्यूट्स पर बैन लगना चाहिए. कोटा के कोचिंग सेंटर्स में छात्र छात्राओं की आत्महत्या दुखदायी है, चिंता में डालने वाली है. एक भी छात्र की आत्महत्या उन सारे मां-बाप को डरा देती है जिनके बच्चे कोटा में पढ़ते हैं. मैं ये नहीं कहता कि कोटा के सारे कोचिंग सेंटर्स खराब हैं या वहां पढ़ाने वाले सारे शिक्षक संवेदनाशून्य हैं, लेकिन ये कड़वा सच है कि कोटा में कोचिंग का पूरी तरह वाणिज्य़ीकरण हो चुका है और ये इस हद तक हुआ है .कि अब छात्रों पर दबाव पैदा होने लगा है. कोटा में कोचिंग का बिजनेस 5,000 करोड़ रु. से ज्यादा का है. वहां एडमिशन पाने की योग्यता सिर्फ पैसा है. न कोई टेस्ट, न क्राइटेरिया. पैसे दो, कोचिंग लो. मां-बाप को भी लगता है कि कोचिंग सेंटर्स में जादूगर बैठे हैं जो लाखों रुपये लेकर उनके बच्चे को छुएंगे और टॉपर बना देंगे. टॉप के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजेज में एडमिशन दिलवा देंगे. इन कोचिंग सेंटर्स के विज्ञापन भी ऐसा ही इंप्रेशन देते हैं. विज्ञापन में छापने के लिए, टॉपर बनाने के चक्कर में कोचिंग इंस्टीट्यूट छात्रों के अलग ग्रुप बना देते हैं. पीछे रहने वाले छात्र छात्राओं को रोज एहसास कराया जाता है कि उनका कुछ नहीं होगा. .ये चिंता उनको दिन रात सताने लगती है और जो दबाव झेल नहीं पाते वो आत्महत्या के रास्ते पर चले जाते हैं. पैसे और प्रेशर के इस जंजाल को तोड़ने की जरूरत है. कोचिंग कॉलेज को छात्रों को ये बताने और समझाने की जरूरत है कि जिनका भी MBBS या इजीनियरिंग में एडमिशन नहीं हुआ तो दुनिया खत्म नहीं हो जाएगी. इसका मतलब एंड ऑफ द वर्ल्ड नहीं होता. जमाना बदल चुका है. आज हमारे देश में तरह तरह के अवसर हैं, हर तरह के टैलेंट के लिए, हर हुनर के लिए कुछ न कुछ संभावनाएं है. मां-बाप को भी ये मानना चाहिए कि हर कोई डॉक्टर, इंजिनीयर IAS, IPS नहीं बन सकता लेकिन अगर बच्चे को अपनी पसंद का काम मिलेगा तो वो चाहे कमाई कम करे लेकिन खुश रहेगा. इस वक्त देश में MBBS की कुल सीटें 1 लाख 7 हजार 948 हैं. अगर 23 IIT समेत सारे इंजीनियरिंग कॉलेज को मिला लिया जाए तो इंजीनियरिंग सीटों की संख्या तीन लाख से थोड़ी ज्यादा है. हर साल करीब एक करोड़ बच्चे अलग अलग बोर्ड्स से 12 वीं का इम्तेहान पास करते हैं. इसलिए ये तो संभव नहीं है कि हर कोई डॉक्टर और इंजीनियर बन जाए. इसलिए सबसे पहले तो मां-बाप को बच्चों पर इंजीनियर, डॉक्टर बनने का दबाव डालना बंद करना चाहिए. जरूरी नहीं कि बच्चा इंजीनियर डॉक्टर बनकर ही बेहतर जिंदगी जिएगा, परिवार का नाम रौशन करेगा. सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि बच्चे की दिलचस्पी किस विधा में हैं. इसे समझा जाए. मेरा मानना तो ये है कि बच्चों के लिए पाठ्यक्रम के अलावा काउंसिलिंग क्लासेज की भी व्यवस्था की जाए ताकि बच्चों से बातचीत हो सके, मनोभाव समझा जा सके. केवल rat race न हो. उन्हें मोटिवेट किया जाए, न कि दवाब बनाकर केवल रिजल्ट पर बात हो.

Comments are closed.