Rajat Sharma

कैसे नेता और बिचौलिए किसानों को कर रहे हैं गुमराह

किसानों की शिकायत है कि मक्का, कपास और दालें एमएसपी से कम दाम पर खरीदी जा रही हैं। सरकार का दावा है कि अगर कोई एमएसपी से कम दाम पर फसल खरीदता है तो कानून के तहत ये अपराध है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चैलेंज करते हुए कहा कि किसी किसान को एमएसपी से कम दाम मिला तो वे राजनीति छोड़ देंगे। असल में एमएसपी और मंडियों के सारे मु्ददों में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका हल बातचीत से नहीं निकल सके। लेकिन इसके लिए सरकार और किसान दोनों की नीयत साफ होनी चाहिए।

akb2711 केंद्र द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पंजाब के हजारों आंदोलनकारी किसान गुरुवार को हरियाणा बॉर्डर क्रॉस कर गए और अब दिल्ली बॉर्डर पार करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब से आए इन किसानों के जत्थे में हरियाणा के किसान भी शामिल हो गए। अंबाला के पास हरियाणा-पंजाब सीमा पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार (वॉटर कैनन) और आंसू गैस का इस्तेमाल किया लेकिन दिल्ली मार्च कर रहे इन प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के इन हल्के बल प्रयोगों का खास असर नहीं हुआ और इन लोगों ने पुलिस की तरफ से लगाए गए तमाम बैरियर्स को ध्वस्त कर दिया। लोहे के बैरिकेड्स, सीमेंट के बैरियर, रेत को बोरियां और ट्रक के टायरों को भी अपने रास्ते से हटाते चले गए।

हरियाणा के भिवानी में शुक्रवार को सड़क हादसे में एक किसान की मौत हो गई। यह किसान प्रदर्शनकारियों के जत्थे के साथ दिल्ली की ओर रहा था तभी तेज रफ्तार ट्रक किसान की ट्रैक्टर ट्रॉली में जा घुसा। किसान की मौके पर ही मौत हो गई। नाराज किसानों ने हाईवे को जाम कर दिया। वे शव को हाईवे पर रखकर विरोध जताने लगे। इन नाराज किसानों को जाम खत्म करने के लिए समझाना पुलिस के लिए बेहद मुश्किल था। दिल्ली में किसानों के लिए अस्थायी जेल बनाने की कोशिश के तहत कई स्टेडियमों को अस्थायी जेलों में बदलने की तैयारी की जा रही है वहीं हरियाणा और यूपी से दिल्ली जानेवाली मेट्रो सेवाओं को रद्द कर दिया गया है।

पंजाब से लेकर हरियाणा और दिल्ली तक लोग किसानों के प्रदर्शन की वजह से जाम में फंसे। पूरी यातायात व्यवस्था चरमरा गई। इतना ही नहीं सड़क पर उतरे किसानों को भी दिक्कत हुई और पुलिस को भी मुसीबत हुई। ये सब हुआ किसानों की नाराजगी को लेकर। किसानों का गुस्सा कानून को लेकर है और उनके अपने कारण और तर्क भी हैं। लेकिन इस नाराजगी को कृषि मंत्रालय के साथ बातचीत कर दूर किया जा सकता था। हालांकि किसानों के गुस्से की वजह कानून को लेकर फैलाई गई गलतफहमियां ज्यादा हैं। सरकार की तरफ से किसानों के नेताओं को 3 दिसंबर को मीटिंग के लिए बुलाया गया है। इस मीटिंग में बातचीत से रास्ता निकल भी सकता है। लेकिन इसी बीच किसानों के दिल्ली मार्च की कॉल दे दी गई। किसानों के सामने सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी) का है। किसान चाहते हैं कि एमएसपी कानून का हिस्सा बने। सरकार का तर्क ये है कि एमएसपी हमेशा से प्रशासनिक फैसला रहा है और ये कभी कृषि कानून का हिस्सा नहीं रहा।

किसानों की शिकायत है कि मक्का, कपास और दालें एमएसपी से कम दाम पर खरीदी जा रही हैं। सरकार का दावा है कि अगर कोई एमएसपी से कम दाम पर फसल खरीदता है तो कानून के तहत ये अपराध है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चैलेंज करते हुए कहा कि किसी किसान को एमएसपी से कम दाम मिला तो वे राजनीति छोड़ देंगे। असल में एमएसपी और मंडियों के सारे मु्ददों में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका हल बातचीत से नहीं निकल सके। लेकिन इसके लिए सरकार और किसान दोनों की नीयत साफ होनी चाहिए।

मुझे लगता है कि इस मामले में दोनों की नीयत साफ है। फिर आप कहेंगे कि दिक्कत क्या है? दरअसल दिक्कत बिचैलियों की है…बीच में पैसा खाने वालों की है। ये लोग सदियों से किसानों का हक खा रहे हैं।मोदी सरकार इसी दिक्कत को दूर करने की कोशिश कर रही है और किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के लिए कानून लाई। अब सरकार और किसानों के बीच बिचौलिए आ गए जो ये नहीं चाहते कि मामला खत्म हो। ये बिचौलिए सरकार और किसानों के बीच टकराव देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि यह कानून वापस लिया जाए जिससे उनके पैसे बनें। इसलिए ये लोग कृषि कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं और किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। असल में ये लोग ऐसे हालत बनाना चाहते हैं कि किसान सड़कों पर उतरें और पुलिस से टकराव हो ताकि वो कह सकें कि ये सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है, किसानों को लाठी मार रही है, आंसू गैस चला रही है और पानी की बौछार कर रही है।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रियंका गांधी, रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस के दूसरे नेताओ के ट्वीट देख लीजिए, उनके बयान सुन लीजिए तो आपको आसानी से पता चल जाएगा कि इस मामले में किस स्तर पर राजनीति हो रही है। ये लोग किसानों के गुस्से को भड़काने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे किसानों को समझना चाहिए और उन नेताओं और बिचौलियों की पहचान करनी चाहिए जो अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।

किसानों और किसान संगठनों को ये बात समझनी चाहिए और बिचौलियों से दूर रहना चाहिए।उन्हें सीधे सरकार से बात करके और टकराव से दूर रह कर सबके भले का रास्ता निकालना चाहिए। वैसे भी यह कोरोना महामारी का वक्त है। इस समय सड़क पर निकलना ठीक नहीं है। कोरोना ऐसी बीमारी है जो एक से हजारों में फैल सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो किसानों के परिवारों में दिक्कत आ सकती है।

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