Rajat Sharma

किसान नेताओं ने कैसे देशवासियों का भरोसा खो दिया

राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित शाहजहांपुर में भी स्थानीय ग्रामीणों ने सड़कों पर कब्जा जमाए आंदोलनकारियों का विरोध शुरू कर दिया है। गांववालों ने आंदोलनकारियों से साफ कहा कि वे वहां से चले जाएं या कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहें। उनके इस धरने के कारण पिछले दो महीने से स्थानीय ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लाल किले में तिरंगे के अपमान और हिंसा के बाद शाहजहांपुर बॉर्डर के आसपास के गांववाले गुस्से में हैं। दिल्ली-आगरा हाईवे पर पलवल के अतोहा में भी प्रदर्शनकारियों ने अपना सामान समेट लिया है। वहीं दिल्ली के टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर भी प्रदर्शनकारियों की संख्या कम होने लगी है।

AKB4 दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 52 दिनों से चल रहा किसानों का आंदोलन तेजी से अपनी अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। किसानों ने शाहजहांपुर, सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से धरना स्थलों को छोड़ना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही नेतृत्वहीन और दिशाहीन वह आंदोलन कमजोर पड़ने लगा है जिस पर तिरंगे को अपमानित करनेवाले राष्ट्र-विरोधी तत्वों का कब्जा हो गया था। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के केवल कुछ समर्थक धरना स्थल पर बैठे हैं, जबकि उनके भाई नरेश टिकैत आंदोलन से हट गए हैं। गाजियाबाद के एडीएम ने टिकैत को आईपीसी की धारा 133 के तहत तुरंत धरना स्थल छोड़ने के लिए नोटिस जारी किया था लेकिन टिकैत अभी भी अड़े हुए हैं।

पूरे गाजीपुर बॉर्डर इलाके को यूपी पुलिस द्वारा सील कर दिया गया है, पानी और बिजली की सप्लाई रोक दी गई है और अस्थायी शौचालयों को हटा दिया गया है। फ्री में चलने वाले ‘लंगर’ बंद हैं। दिल्ली पुलिस और यूपी पुलिस दोनों तरफ से बॉर्डर पर तैनात है, और मौके पर रैपिड ऐक्शन फोर्स भी मौजूद है।

गुरुवार की शाम भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कैमरों के सामने खूब ड्रामा किया। उन्होंने पहले तो धमकी दी कि अगर उनके समर्थकों को जबरन बाहर निकाला गया तो गोली चल जाएगी। राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि वह किसी कीमत पर सरेंडर नहीं करेंगे, और पुलिस ने जबर्दस्ती उन्हें हटाने की कोशिश की तो फांसी लगा लेंगे। समर्थकों को संबोधित करने के तुरंत बाद टिकैत मंच से नीचे उतरे, जमीन पर बैठे और रोना शुरू कर दिया। उन्हें ऐसा करते देख वहां मौजूद मीडियाकर्मी और पुलिस अधिकारी भौंचक्के रह गए। दरअसल, राकेश टिकैत और उनके साथियों को ये पता लग गया था कि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के धरने को खत्म करने का ऐलान कर दिया है।

जिस वक्त राकेश टिकैत और उनके साथी गाजीपुर में लोगों को भड़का रहे थे, उसी वक्त भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत धरने पर बैठे किसानों से वापस आने की अपील कर रहे थे। चूंकि राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन की तरफ से ऐक्टिव रहते हैं, बयान देते रहते हैं, इसलिए लोग उन्हें किसान आंदोलन का बड़ा नेता समझते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि राकेश टिकैत तो भारतीय किसान यूनियन के सिर्फ प्रवक्ता हैं जबकि नरेश टिकैत, जो राकेश टिकैत के भाई हैं, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं। वेस्टर्न यूपी में पंचायतों की बड़ी ताकत है और खाप बहुत मायने रखती है। इस इलाके में नरेश टिकैत का काफी प्रभाव है।

उधर, दिल्ली पुलिस ने पहले ही 26 जनवरी को हुए उपद्रव और हिंसा के लिए 35 से ज्यादा किसान नेताओं के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर रखा है। ऐसे में किसान नेताओं की गिरफ्तारी तय है, और उन्हें शुक्रवार को पुलिस द्वारा समन जारी किया गया है। पुलिस का ऐक्शन बुधवार की रात ही शुरू हो गया जब यूपी पुलिस ने मेरठ के पास बागपत में किसानों के तंबू उखाड़ दिए और पिछले 40 दिनों से दिल्ली-सहारनपुर हाईवे पर जाम लगा रहे किसानों को वहां से हटा दिया।

राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित शाहजहांपुर में भी स्थानीय ग्रामीणों ने सड़कों पर कब्जा जमाए आंदोलनकारियों का विरोध शुरू कर दिया है। गांववालों ने आंदोलनकारियों से साफ कहा कि वे वहां से चले जाएं या कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहें। उनके इस धरने के कारण पिछले दो महीने से स्थानीय ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लाल किले में तिरंगे के अपमान और हिंसा के बाद शाहजहांपुर बॉर्डर के आसपास के गांववाले गुस्से में हैं। दिल्ली-आगरा हाईवे पर पलवल के अतोहा में भी प्रदर्शनकारियों ने अपना सामान समेट लिया है। वहीं दिल्ली के टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर भी प्रदर्शनकारियों की संख्या कम होने लगी है।

ज्यादातर बुजुर्ग और अनुभवी किसान, जो इन आंदोलनों का हिस्सा थे, टकराव नहीं चाहते हैं और लाल किले पर तिरंगे के अपमान से वे काफी आहत हैं। वे इस बात से सहमत हैं कि अब इस आंदोलन को स्थगित कर देना चाहिए। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्रामीण लाल किले की घटना से नाराज़ हैं और इस घटना के लिए नेतृत्व में बिखराव को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

सिंघु बॉर्डर पर, जो कि किसान आंदोलन का सेंट्रल प्वाइंट है, स्थानीय गांववाले जो कि अब तक किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे थे, गुरुवार को हाथों में तिरंगा लेकर प्रदर्शनकारियों के बिल्कुल सामने पहुंच गए और मांग करने लगे कि किसान अब सड़क खाली कर दें। उन्होने मांग की कि दिल्ल-हरियाणा बॉर्डर को फिर से खोल दिया जाए और नेशनल हाईवे पर गाड़ियों की आवाजाही की इजाजत दे दी जाए। ज्यादातर गांववालों ने इंडिया टीवी को बताया कि उन्होंने शुरुआत में किसानों का समर्थन किया था, लेकिन इस तरह के आंदोलन में हिंसा और राष्ट्रीय गौरव के अपमान के लिए कोई जगह नहीं है।

संयुक्त किसान मोर्चा, जो कि सभी किसान संगठनों का संयुक्त मोर्चा है, ने गुरुवार को कहा कि चाहे जो हो जाए, धरना जारी रहेगा। लेकिन किसान नेताओं के हावभाल से अब साफ जाहिर हो रहा है कि भीड़ के कम होते जाने से वे निराश हो रहे हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इकट्ठा हुए हजारों ट्रैक्टरों की तुलना में सिंघू बॉर्डर पर कुछ ही ट्रैक्टर नजर आ रहे थे।

हरियाणा के रेवाड़ी में मसानी बैराज के पास धरने पर बैठे हजारों प्रदर्शनकारियों ने जगह खाली कर दी है और धरनास्थल से उठ कर चले गए हैं। लाल किले और दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हिंसा से नाराज़ गांववालों ने आंदोलनकारियों को तुरंत जगह खाली करने के लिए कहा था। आसपास के 20 गावों के लोग एक पंचायत में इकट्ठा हुए और उन्होंने किसानों को धरना स्थल से जाने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया। इंडिया टीवी के रिपोर्टर जब मसानी बैराज पहुंचे तो उन्होंने पाया कि वहां से सारे टेंट, बैरिकेड्स और लंगर हट चुके हैं।

इस पूरी कहानी का सार यही है। किसान नेताओं और उनके समर्थकों को अब यह महसूस हो रहा है कि 26 जनवरी को हुए बवाल के बाद वे जनता की सहानुभूति खो चुके हैं। टिकरी और सिंघू बॉर्डर्स पर छंट रही भीड़ से साफ है कि किसान और उनके रिश्तेदार पहले ही अपने घरों की तरफ रवाना हो चुके हैं, उनका विभाजित और दिशाहीन नेतृत्व से मोहभंग हो चुका है।

उन लोगों के गुस्से का अंदाजा लगाएं जो पिछले दो महीनों से धरने पर बैठे किसानों को दूध, फल, सब्जियां, अनाज और पानी मुहैया करा रहे थे, और अब वे उन्हें पानी तक पिलाने को तैयार नहीं हैं। आखिरकार वे देशभक्त हैं जो कभी भी तिरंगे के अपमान को सहन नहीं करेंगे। यहां तक कि जो किसान धरने पर बैठे हैं, वे भी 26 जनवरी को हुई घटनाओं से नाराज़ हैं। यही वजह है कि वे अपने घर चले गए हैं। हालांकि, कुछ नेता अभी भी मानने को तैयार नहीं हैं। मैंने पहले ही कहा था कि इन नेताओं को देश से माफी मांगनी चाहिए, अपना आंदोलन स्थगित करना चाहिए, जैसा कि महात्मा गांधी ने चौरी चौरा की घटना के बाद किया था।

एक बात तो बिल्कुल साफ है कि किसान आंदोलन के नेताओं ने देश की जनता का विश्वास खो दिया है। देश के अधिकांश लोग आहत हैं। लोग इसलिए नाराज़ हैं कि किसानों का आंदोलन रास्ते से भटक गया, तिरंगे का अपमान हुआ, लाल किले की अस्मिता पर प्रहार हुआ। लोग इसलिए नाराज़ हैं कि किसानों के रूप में उपद्रवियों ने पुलिसकर्मियों पर लाठी-डंडे बरसाए, उन्हें चोट पहुंचाने की नीयत से तलवारों से हमला किया। लोग इसलिए नाराज़ हैं कि आंदोलन जिन कानूनों के खिलाफ था, उनपर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी , सरकार इन्हें डेढ़ साल तक रोकने के लिए तैयार है, लेकिन किसानों के नेता तो अपनी ताकत दिखाना चाहते थे। लाख मना करने के बावजूद गणतंत्र दिवस के दिन, जब पूरा देश जश्न मनाता है, उन्होंने ट्रैक्टर रैली निकाली।

लोग नाराज़ हैं कि किसानों ने यह सब जानबूझ कर किया, क्योंकि वे अपनी ट्रैक्टर परेड को बढ़ाना चाहते थे, और फिर संसद को घेरना चाहते थे, सरकार को झुकाना चाहते थे। लोग इसलिए नाराज़ हैं कि जो लोग अपने आपको इस आंदोलन का नेता बता रहे थे, वे हिंसा को रोकने के लिए आगे नहीं आए। जब लाठियां चलीं, डंडे चले, पुलिस को मारा गया, तो वे गायब हो गए। बैरीकेट्स तोड़े गए तो उन्होंने आंखें बंद कर ली। अब ये नेता कह रहे हैं कि गड़बड़ करने वाले किसान नहीं थे।

जब तक दीप सिद्धू, सतनाम सिंह पन्नू, सरवन सिंह पंढेर उनके साथ धरने पर बैठे थे, उनको ताकत दे रहे थे, तब तक वे किसान थे, और अब जबकि उन्होंने राष्ट्रीय गौरव का अपमान किया है, उन्हें उपद्रवी बताया जा रहा है।

लोग नाराज़ हैं क्योंकि जो नेता दावा करते थे कि वे देश के अधिकांश लोगों के लीडर हैं, अब कह रहे हैं कि जो लोग धरने पर बैठे थे वे भी उनके साथ नहीं हैं, उनकी नहीं सुनते। कड़वा सच यह है कि देश जान गया है कि दंगा करने वाले, असामाजिक तत्व इन्हीं किसानों के साथी थे। ये उनका इस्तेमाल सरकार पर दबाव बनाने के लिए कर रहे थे।

अब जबकि ये नेता एक्सपोज हो गए हैं, तो अब ये उन गुंडों और दंगाइयों से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसा करना संभव है, क्योंकि जो लोग कृषि कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण धरना कर रहे थे, जो इन नेताओं को अपना लीडर मानकर उनके साथ बैठे थे, अब 26 जनवरी की हिंसा के बाद उनका विश्वास भी किसान नेताओं से उठ गया है। इसलिए अब किसान नेताओं को चाहिए कि वे अपने किए का प्रायश्चित करें, और अपनी जमीन खो चुके आंदोलन को वापस ले लें।

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