Rajat Sharma

अफगानिस्तान से बहुत बेआबरू होकर निकला अमेरिका!

rajat-sir काबुल एयरपोर्ट से सोमवार की आधी रात आखिरी पांच C-17 मिलिट्री कार्गो जेट के उड़ान भरने के साथ ही अमेरिका के इतिहास की सबसे लंबी जंग का खामोशी से अंत हो गया। अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान के लड़ाकों ने काबुल में रातभर जश्न मनाते हुए फायरिंग की और ये सुबह तक जारी रहा। 20 साल तक चली इस जंग में अमेरिका ने 2 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च की, 2,461 अमेरिकी सैनिकों सहित 1,70,000 से ज्यादा लोगों की जान गई, और इसके बावजूद अमेरिका तालिबान को हराने में नाकाम रहा। अरबों डॉलर के टैंक, बख्तरबंद वाहन, प्लेन, हेलिकॉप्टर, राइफल और अन्य हथियार छोड़कर अमेरिका को काबुल से निकलना पड़ा।

अमेरिकी सैन्य कमांडरों ने दावा किया कि उन्होंने काबुल एयरपोर्ट पर छोड़े गए अधिकांश बख्तरबंद वाहनों, शिनूक हेलीकॉप्टरों और अन्य विमानों को निष्क्रिय कर दिया है, और उनके सिस्टम को नष्ट कर उन्हें पूरी तरह बेकार कर दिया है, लेकिन कहा नहीं जा सकता कि उनके इस दावे में कितनी सच्चाई है। अमेरिकी फौज की वापसी के तुरंत बाद तालिबान के लड़ाकों ने पूरे काबुल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया। तालिबान के प्रवक्ता ने इस्लामी अमीरात की आज़ादी का ऐलान कर दिय़ा। 9/11 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन से दो-दो- हाथ करने के लिए अफगानिस्तान पर हमला किया था। ओसामा का काम तमाम कब का हो गया, लेकिन तालिबान के खिलाफ जंग जारी रही, और अब अमेरिका को बेआबरू होकर लौटना पड़ा। बीस साल पहले 11 सितंबर को अमेरिका में आतंकी हमले हुए थे और उसकी बरसी 11 दिन बाद होने वाली है।

पिछले 2 हफ्तों में काबुल में हुए आत्मघाती बम हमलों, ड्रोन अटैक और रॉकेट हमलों के कारण हुए खूनखराबे के बीच जल्दबाजी में अमेरिकी फौज को काबुल से निकलना पड़ा। अमेरिका ने तालिबान की खौफ से वतन छोड़ कर भागने को बेताब लाखों अफगानों को उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया। इनमें अफगान सेना के कई ऐसे पूर्व अधिकारी भी हैं जिनके पास अमेरिका में प्रवेश करने के लिए वैध वीजा तक है। इन सभी का भविष्य अब खतरे में है। सैकड़ों अमेरिकी नागरिक भी अमेरिका में रह गए हैं और उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि तालिबान ने अमेरिकियों, अफगान सहयोगियों और विदेशी नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित जाने देने का वादा किया है और उन्हें उम्मीद है कि ‘दुनिया तालिबान को उसके दिए वादे मनवा कर रहेगी ।’

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ‘इतिहास में कभी भी सेना की वापसी का अभियान इतनी बुरी तरह नहीं चलाया गया, जिस तरह से बाइडेन प्रशासन ने अफगानिस्तान में चलाया।’ उन्होंने कहा, अमेरिका को ‘अफगानिस्तान से सभी उपकरणों को तुरंत वापस करने की मांग करनी चाहिए क्योंकि उसमें हमारे देश के करीब 85 अरब डॉलर लगे हैं।’ ट्रंप प्रशासन ने ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की शांतिपूर्ण वापसी के लिए दोहा में तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उस समझौते को बाइडेन प्रशासन ने लागू तो किया, मगर बगैर सही प्लानिंग के और काफी जल्दबाजी में। इसके कारण पिछले 2 हफ्ते से लाखों अफगान और हजारों अमेरिकी नागरिकों को तकलीफें झेलनी पड़ी । उनमें से कई लोग तालिबान के क्रूर और मनमाने शासन का सामना करने के लिए अभी भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं।

सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि कैसे हजारों अफगान महिलाएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर, अफगानिस्तान-ईरान की सरहद को पार करने के लिए कठिन पहाड़ी डगरों पर सफर कर रही हैं। ये पुरुष, महिलाएं और बच्चे अपनी जिंदगी की सारी कमाई पूंजी और घर-बार छोड़कर, जो भी थोड़ा-बहुत सामान वे साथ ले सकते थे उन्हें लेकर ईरान की सरहद की तरफ चल पड़े हैं।

तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद ईरान ने अफगानिस्तान से लगती अपनी सभी सीमा चौकियों को पहले ही बंद कर दिया है। आम अफगान ईरान में घुसने के लिए हेरात और निमरोज प्रांतों के पहाड़ी इलाकों से होते हुए निकल रहे हैं। इनमें से बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने बच्चों के साथ 2 हफ्ते पहले ही उसी दिन अपना घर छोड़ दिया था, जिस दिन तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था. उसी दिन ये लोग अपने घरों से निकल पड़े थे। पिछले 2 हफ्तों में ये लोग 500 किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी तय करके ईरान बॉर्डर तक पहुंचे हैं। अफगानिस्तान की कुल आबादी तकरीबन चार करोड़ है,इस आबादी में से आधे से ज्यादा लोगों को तालिबान के शासन में रहना मंजूर नहीं है।

पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर स्पिन बोल्डक, अंगूर अदा और तोरखम चेकपोस्ट के पास हजारों अफगान जमा हो रहे हैं। ये लोग किसी भी सूरत में पाकिस्तान में दाखिल होना चाहते हैं। लेकिन दूसरी तरफ पाकिस्तान के हथियारबंद जवान मौजूद हैं जो इन्हें बॉर्डर पार करने से रोक रहे हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान का बॉर्डर 2,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबा है जिसे डूरंड लाइन कहते हैं। तालिबान ने पिछले महीने जब अफगान सेना के खिलाफ जंग शुरु की, तो उसने सबसे पहले बॉर्डर के इन्हीं इलाकों पर कब्जा किया था और उसके बाद काबुल की तरफ आगे बढ़े थे। 15 अगस्त से पहले पाकिस्तान के चमन सीमा चौकी से होकर एक दिन में 4 हजार लोग अफगानिस्तान से पाकिस्तान जाते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों ये संख्या 4 गुने से भी ज्यादा बढ़कर 18 हजार हो गई है।

तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ लगतीं अफगानिस्तान की सीमाओं से जो खबरें और तस्वीरें आई हैं, उनके मुताबिक इन सीमाओं पर भी हजारों अफगान इकट्ठा होने लगे हैं ताकि वे अपने वतन से निकल सकें। इन सीमाओं पर कुल मिलाकर 12 बॉर्डर पोस्ट है और इनमें से ज्यादातर जगहों पर अफगानिस्तान के लोगों के लिए दरवाजे बंद हैं। कुछ देशों ने तो सरहद पर दीवार तक बना दी है। बॉर्डर पर नए सिरे से फेंसिंग की जा रही है, कंटीले तार लगाए जा रहे हैं ताकि अफगान बॉर्डर पर न कर पाएं। तुर्की ने तो साफ कह दिया है कि वह और अफगानों को शरण नहीं दे सकता, और ईरान ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं।

इन तस्वीरों को देखकर मुझे बहुत दुख होता है। मन में बार-बार ये सवाल आता है कि आखिर क्यों हर अफगान अपना वतन छोड़ना चाहता है। क्या वजह है कि वे अब एक पल भी अफगानिस्तान में रुकना नहीं चाहते, अपने ही मुल्क में अपने आपको महफूज नहीं समझते? आम अफगान तालिबान के उदारवादी रुख अपनाने के वादों पर भरोसा नहीं करते हैं। वे जानते हैं कि आने वाले महीनों में जब तालिबान शरीयत के कानूनों को सख्ती से लागू करना शुरू करेंगे तो उनके साथ जुल्म की इंतेहा होगी। आज एक तस्वीर सामने आई जिसमें हेलीकॉप्टर के अंदर बैठे तालिबान के लड़ाके एक शख्स को आसमान में जंजीर से बांधकर ले जा रहे थे। इस तरह की तस्वीरों ने आम अफगानों के दिल में दहशत भर दी है।

इस्लामिक स्टेट (खुरासन) के आत्मघाती हमलों से काबुल एयरपोर्ट के पास हुए खूनखराबे, रविवार को काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले और सोमवार को अमेरिकी सेना पर 5 रॉकेट दागे जाने की घटनाओं के बाद से आम अफगानों में दहशत का माहौल है। लोगों को लगता है कि आने वाले महीनों में तालिबान और इस्लामिक स्टेट के बीच, और तालिबान और नॉर्दर्न एलायंस के बीच लड़ाई बढ़ सकती है। तालिबान के लड़ाके अब आम लोगों को अपनी वहशियत का शिकार बनाने वाले हैं।

‘आज की बात’ में हमने एक टेलीविजन स्टूडियो का वीडियो दिखाया था जिसमें राइफल थामे तालिबान लड़ाके एक अफगान न्यूज ऐंकर के पीछे खड़े थे। उस न्यूज ऐंकर के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा ता। ये तालिबानी लड़ाके ऐंकर द्वारा पढ़ी जा रही खबरों को गौर से सुन रहे थे। ये तस्वीरें तालिबान के आतंक राज को दिखाती हैं जो आने वाले हफ्तों और महीनों में और भी ज्यादा नजर आएगा।

इससे पहले तालिबान ने कहा था कि मीडिया में महिलओं को काम करने की इजाजत होगी, लेकिन 2 दिन के बाद ही न्यूज चैनलों में काम करने वाली महिलाओं और लड़कियों को घर बैठने को कहा गया। तालिबान ने उन्हें दफ्तर न आने का फरमान सुना दिया। काबुल से लगभग 100 किलोमीटर दूर तालिबान के लड़ाकों ने एक मशहूर अफगान लोकगायक फवाद अंद्राबी को उनके घर से बाहर निकालकर बेरहमी से मार डाला। तालिबान लड़ाके फवाद के घर गए, साथ बैठकर चाय पी, फिर उन्हें घसीटकर बाहर ले गए और सबके सामने उनके सिर में गोली मार दी।

जो लोग कहते हैं कि तालिबान के आने से अफगानिस्तान मे सब ठीक हो जाएगा, किसी को डरने या घबराने की जरूरत नहीं तो उन्हें ये तस्वीरें भी देखनी चाहिए। इस वक्त अफगानिस्तान के अलग-अलग शहरों में भुखमरी के हालात पैदा हो रहे हैं। पानी की बोतल के लिए 40 डॉलर और एक प्लेट चावल के लिए 75 डॉलर तक देने पड़ रहे हैं। लोगों के पास न काम है और न पैसा है। लोगों का जो पैसा बैंकों में जमा था, वह भी नहीं मिल रहा क्योंकि बैंक बंद हैं। बैंकों के बाहर, एटीएम के बाहर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं। सुबह से शाम तक लोग बैंकों के बाहर पैसा निकालने के लिए नजर आते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ता है। आईएमएफ और विश्व बैंक के पास जमा अफगान सेंट्रल बैंक का सारा पैसा फ्रीज हो चुका है।

अब तालिबान के राज में अल कायदा के आतंकवादी भी नजर आने लगे हैं। अफगानिस्तान के नांगरहार सूबे में अमीनउल हक नाम का आंतकवादी नजर आया। वह अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन का सिक्यॉरिटी इंचार्ज था। अमीन उल हक अफगानिस्तान के उस इलाके में नजर आया जहां इस्लामिक स्टेट के 3,000 से ज्यादा आतंकवादी मौजूद हैं। जब अमेरिका ने 2001 में तोरा बोरा की पहाड़ी गुफाओं में ओसामा के ठिकानों पर भयंकर बमबारी की थी, तब अमीनुल हक ही अल कायदा की सिक्यॉरिटी का प्रमुख था।

अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के साथ ही तालिबान के हाथों अरबों डॉलर मूल्य के अमेरिका निर्मित विमान, हेलीकॉप्टर, टैंक, बख्तरबंद वाहन, हमवीज, राइफल और अन्य हथियारों का एक बड़ा खजाना लग गया है। तालिबान के नेताओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके पास हथियारों का इतना बड़ा जखीरा होगा, जिससे कोई भी छोटा-मोटा देश एक सैन्य ताकत बन सकता है। तालिबान नेताओं ने कभी नहीं सोचा था कि अमेरिकी बलों द्वारा प्रशिक्षित 3 लाख सैनिकों वाली मजबूत अफगान सेना इतनी आसानी से सरेंडर कर देगी।

अफगानों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अमेरिका उन्हें 20 साल तक इस्तेमाल करने के बाद यूं बेसहारा और बेबस छोड़कर भाग जाएगा। तालिबान ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक निर्वाचित राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग जाएगा और काबुल बगैर जंग लड़े ही उसके कब्जे में आ जाएगा। तालिबान के नेताओं को कतई उम्मीद नहीं थी कि यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा।

यही वजह है कि तालिबान अभी तक ढंग से सरकार भी नहीं बना पाया है और न ही शासन की रूपरेखा तय हो पाई है। तालिबान को तो इस बात का भी यकीन नहीं था कि अमेरिकी फौज वाकई में 31 अगस्त की डेडलाइन को मानेगी और 20 साल की लड़ाई ऐसे खत्म हो जाएगी। उन्हें जरा भी गुमान नहीं था कि अमेरिकी फौज उन्हें इतने सारे हथियार सौगात में देकर भाग जाएगी। जिस अमेरिकी सेना ने 20 साल तक तालिबान से जंग लड़ी, उसके लड़ाकों को मौत के घाट उतारा, वही अमेरिका की फौज उन्हें तोहफे में हथियारों का जखीरा देकर जा रही है। वहीं, 20 साल तक जिन हजारों अफगानों ने अमेरिका का साथ दिया, उसके लिए जी जान से काम किया, उन्हे अमेरिकी फौज तोहफे में दहशत, खौफ और मौत का इंतजार देकर जा रही है।

एक तरफ तो तालिबान के पास बंदूकें हैं, बारुद हैं, हेलीकॉप्टर हैं, हवाई जहाज हैं, हमवीज हैं और दूसरी तरफ अमेरिका की मदद करने वाले अफगान डरे सहमे घरों में कैद हैं, खाने के लिए मोहताज हैं या फिर वे अफगानिस्तान के किसी बॉर्डर पर अपने मुल्क से भाग जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। जिन अफगान औरतों ने अमेरिका पर भरोसा करके बुर्का उतार फेंका था, पढ़ाई की थी, काम करना शुरू किया था, सपने देखे थे, वे आज सबसे ज्यादा खौफ में हैं, सबसे ज्यादा जुल्म का शिकार हो रही हैं।

जिस अमेरिका ने इन बहादुर अफगान महिलाओं को एक सख्त, कट्टर जीवनशैली छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था, और उन्हें स्वतंत्रता और उच्च शिक्षा के ख्वाब दिखाए थे, वह उन्हें बेबस और बेसहारा छोड़कर जा चुका है। दुनिया ने कभी भी भरोसे का यूं मजाक बनते हुए नहीं देखा था जैसा अमेरिका ने आम अफगानों के साथ किया है। कोई नहीं जानता कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान में क्या होने वाला है। बस इतना सब जानते है कि अफगानिस्तान की आम जनता को अभी काफी सितम, काफी तकलीफ और काफी ज्यादा जुल्म का सामना करना पड़ेगा और 20 साल से खुली हवा में सांस लेने वाले अफगान परिवारों की आजादी पर ग्रहण लग जाएगा।

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