प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष की तरफ से उठाए गए ज्यादातर सवालों के जवाब दिए। मोदी ने उन सारे सवालों के जवाब दिए जो उनके विरोधी कई दिनों से पूछ रहे थे। आज मोदी ने उस झूठ का पर्दाफाश किया जो किसान आंदोलन के नाम पर कई दिनों से फैलाया जा रहा था।
उनके आलोचकों ने कई सवाल उठाए। क्या MSP खत्म हो जाएगी? क्या मंडियां बंद हो जाएंगी? क्या किसानों की जमीन उनसे छीन ली जाएगी? क्या कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के जरिए उद्योगपति किसानों पर हावी हो जाएंगे? क्या नए कानून आने के बाद किसान व्यापारियों के गुलाम हो जाएंगे? क्या मोदी सरकार छोटे किसानों को खत्म कर देगी, सिर्फ बड़े किसान बचेंगे? क्या मोदी किसानों की कीमत पर उद्योगपतियों का फायदा चाहते हैं?
सवाल यह भी उठ रहे थे कि अगर ये कानून किसानों के फायदे के लिए हैं तो किसान 75 दिन से धरने पर क्यों बैठे हैं? वो कौन सी ताकतें हैं जो किसानों और सरकार के बीच समझौता नहीं होने देना चाहतीं? क्या किसानों के बीच ऐसे लोग घुस गए हैं जो आंदोलन को खत्म नहीं होने देना चाहते? अगर सबकुछ ठीक-ठाक है तो फिर दुनियाभर में किसान आंदोलन को लेकर भारत की बदनामी क्यों हो रही है? सवाल तो ये भी था कि सिख और जाट किसान पीएम से नाराज क्यों हैं? क्या किसानों को लेकर सरकार का रवैया तानाशाही से भरा है।
पीएम मोदी ने सबकुछ सुना, देखा और सोमवार को राज्यसभा में एक साथ सारे जबाव दे दिए। उन्होंने सारे हिसाब बराबर कर दिए। जो लोग जवाब मांग रहे थे, उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले एमएसपी और मंडियों की बात की। उन्होंने कहा, 1.एमएसपी थी, एमएसपी है और एमएसपी रहेगी। 2. राशन की दुकानों से गरीबों को अनाज देने का काम जारी रहेगा। सरकारी मंडिया जारी रहेंगी और आधुनिक होंगी। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो मंडियों में सुधार होगा। 3. इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे किसानों की जमीन पर कब्जा होने की आशंका हो। उन्होंने कहा कि यह झूठ फैलाया जा रहा है कि औद्योगिक घराने किसानों की जमीन हड़प लेंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि किसानों की जमीन पर कोई कब्जा कैसे कर सकता है? उन्होंने उदाहरण देकर फिर समझाया और बताया कि दूध का व्यापार किसान ही करते हैं। कृषि क्षेत्र के व्यापार में डेयरी प्रोडक्ट्स की भागीदारी 28 प्रतिशत है। किसान जहां चाहें, जिसे चाहें दूध बेच सकते हैं। किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है, तो क्या कोई कंपनी वाला किसान की भैंस जबरन खोल ले गया? इसी तरह अगर किसान कंपनियों के साथ सीधे व्यापार (कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग) करेंगे तो उनकी जमीन को भी कोई खतरा नहीं होगा।
पीएम मोदी ने कहा उनकी सरकार जो कर रही है वह छोटे किसानों के हित में हैं। इससे छोटे और सीमांत किसानों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि अब तक किसानों के नाम पर जो कुछ किया गया उसका फायदा बड़े किसानों को मिला है, जबकि देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान ऐसे हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। ये वे किसान है जिनके लिए अब तक कुछ नहीं किया गया। मोदी ने सवाल किया, क्या इन किसानों का ख्याल रखना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?
किसानों के इस आंदोलन में ज्यादातर किसान पंजाब से हैं और आंदोलन की तस्वीरें फैलाकर ये कहा गया कि सिखों के साथ अन्याय हो रहा है। सरकार सिखों पर जुल्म कर रही है और मोदी सिखों का सम्मान नहीं करते। इसीलिए मोदी ने अपने भाषण में खासतौर पर सिखों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिखों ने देश के लिए जो किया उस पर देश को नाज है। देश सिखों का सम्मान करता है। इसलिए किसान आंदोलन को लेकर जो लोग सिखों के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं वो ठीक नहीं हैं, क्योंकि सिखों ने सेवा और बहादुरी की मिसाल पेश की है।
किसान संगठनों के इस आंदोलन के पीछे कांग्रेस और लेफ्ट की ताकत है। कांग्रेस पर्दे के पीछे है लेकिन वामपंथी दल खुलकर साथ दे रहे हैं। इसीलिए पीएम मोदी ने कम्युनिस्टों की बात की और लाल बहादुर शास्त्री के जमाने का उदाहरण दिया। मोदी ने कहा कि देश में हरित क्रांति ऐसे ही नहीं हुई। शास्त्री जी को भारी विरोध झेलना पड़ा। उस वक्त कोई कृषि मंत्री बनने को तैयार नहीं होता था लेकिन शास्त्री जी ने हिम्मत नहीं हारी। उस वक्त वामपंथी शास्त्री जी को ‘अमेरिका का एजेंट’ बताते थे। अब वही कम्युनिस्ट फिर कह रहे हैं कि मोदी ने अमेरिका के इशारे पर कृषि कानून बनाया है।
इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि किसान आंदोलन में कम्युनिस्ट पूरी तरह ऐक्टिव हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान के वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ता किसान आंदोलन में सक्रिय हैं। इसीलिए पीएम मोदी ने वाम दलों का जिक्र किया। इसके अलावा आपने देखा होगा कि टुकड़े-टुकडे़ गैंग के सदस्य़, कभी शाहीन बाग के धरनेबाज, कभी जेएनयू में आजादी के नारे लगाने वाले तो कभी जामिया मिलिया का गैंग किसान आंदोलन में दिखाई दिया। हालांकि किसान संगठनों के नेताओं ने बार-बार खुद को इन लोगों से अलग किया लेकिन फिर भी ये लोग बार-बार वहां पहुंचे। पीएम मोदी ने इन लोगों से सावधान रहने को कहा और इस तरह के आंदोलनकारियों को एक नया नाम दिया-‘आंदोलनजीवी’। पीएम मोदी ने कहा कि दो चीजों से सावधान रहना है-एक, आंदोलनजीवियों से और दूसरा एफडीआई यानि फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी से।
लाल किले पर हुई हिंसा और तिरंगे के अपमान के बाद दिल्ली के बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस ने एहतियाती कदम उठाते हुए बैरीकेडिंग को मजबूत किया, कंक्रीट की दीवारें बनाईं। ट्रैक्टर फिर से दिल्ली में घुसकर उत्पात न मचा सकें, इसलिए सड़क पर टायर पंचर करने वाली कीलें लगाईं, कंटीले तार लगाए। भारत को बदनाम करने के लिए इन बैरिकेड्स की तस्वीरों को दुनियाभर में फैलाया गया। इस आरोप के साथ कि मोदी भारत में लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं, ऐसा परसेप्शन बनाने की कोशिश की गई कि किसानों का दमन किया जा रहा है किसी को अपनी बात कहने का हक नहीं है।
अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने सुभाष चंद्र बोस की बात याद दिलाई। उन्होंने कहा, भारत सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं है, बल्कि यह ‘लोकतंत्र की जननी’ है। मोदी ने कहा कि हिंदुस्तान में लोकतंत्र एक व्यवस्था नहीं, बल्कि भारतीयों की जीवनशैली है, संस्कृति का हिस्सा है।
कुल मिलाकर मोदी ने अपने अंदाज में विपक्ष और किसान नेताओं द्वारा हाल के हफ्तों में उठाए गए अधिकांश सवालों के ठोस और कन्विंसिंग जवाब दिए। लेकिन जो लोग सुनना नहीं चाहते, मानना नहीं चाहते, उन्हें कोई नहीं समझा सकता।
मुझे हैरानी होती है जब लोग कहते हैं कि मोदी ने किसानों के आंदोलन को सही तरीके से हैंडल नहीं किया। इनमें से कई मोदी समर्थक भी हैं जो कहते हैं कि इस मुद्दे को बेहतर तरीके से हैंडल किया जा सकता था।
सवाल ये है कि क्या किसान नेताओं से इस मुद्दे पर 11 बार बात करना मिसहैंडलिंग है? सोमवार को भी प्रधानमंत्री ने कहा कि बातचीत के रास्ते खुले हैं, क्या ये मिसहैंडलिंग है? क्या किसानों से ये कहना कि MSP नहीं हटेगी, मंडियां बनी रहेंगी, किसानों को ज्यादा दाम मिलेंगे, मिसहैंडलिंग है? किसानों से ये कहना कि वे जो भी संशोधन करना चाहते हैं, उस पर विचार हो सकता है, ये मिसहैंडलिंग है? किसानों को ये ऑफर देना कि 18 महीनों के लिए तीनों कानूनों को होल्ड पर रखा जा सकता है, क्या ये मिसहैंडलिंग है? प्रधानमंत्री ने बार-बार किसानों को समझाया, उनसे कहा कि सुनी-सुनाई बातों पर मत जाइए, इन कानूनों को एक मौका दीजिए, क्या इसे मिसहैंडलिंग कहा जाएगा?
क्या पुलिस को ये कहना कि किसानों पर लाठी गोली नहीं चलानी है, मिसहैंडलिंग है? लाल किले पर तिंरगे का अपमान हुआ, लेकिन पुलिस खामोश रही, 300 से ज्यादा पुलिसवाले घायल हुए फिर भी पुलिस ने गोली नहीं चलाई, क्या ये मिसहैंडलिंग है? जब लगा कि सरकार को सिख विरोधी बताकर कुछ लोग सिखों की भावनाओं को भड़का रहे हैं तो प्रधानमंत्री ने साफ-साफ कहा कि सिख गुरुओं के महान बलिदानों का वे सम्मान करते हैं, क्या ये मिसहैंडलिंग है?
मैंने अपनी आंखों के सामने इतिहास को घटित होते हुए देखा है। मिसहैंडलिंग तो तब हुई थी, जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ था। मिसहैंडलिंग तो तब हुई थी, जब 5 जून 2011 को रामलीला मैदान में स्वामी रामदेव के सोते हुए समर्थकों पर पुलिस ने लाठियां बरसाई थीं, और निर्दोष लोगों का खून बहाया गया था।
हैरानी की बात तो ये है कि किसान आंदोलन में किसानों से जुड़ी बातों को छोड़कर हर तरह की नाराजगी जाहिर की जा रही है। कोई कहता है कि हाईवे को ब्लॉक करने के लिए कांटों की तार क्यों लगा दी, कीलें क्यों गाड़ दीं। कोई कहता है कि किसानों को खालिस्तानी क्यों बताया जा रहा है। कोई कहता है कि मुट्ठी भर लोगों को क्यों लाल किले में घुसने और तिरंगे का अपमान करने दिया गया। कोई कह रहा है कि मोदी ने किसानों के लिए ‘जमात’ शब्द का इस्तेमाल क्यों किया।
हैरानी की बात ये भी है कि किसान खुद इन सवालों को नहीं उठा रहे हैं। ये सारी बातें इसलिए उठती हैं क्योंकि कुछ लोग साजिश के तहत किसान आंदोलन का इस्तेमाल दुनियाभर में देश को बदनाम करने के लिए कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो ये निराधार आरोप लगा रहे हैं कि मोदी के शासन में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है, और असंतोष की आवाज को दबाया जा रहा है। यह भारत के लोगों को तय करना है कि कौन सच बोल रहा है।