किसान आंदोलन को लेकर पॉप गायक रिहाना, क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग और अन्य विदेशी सेलिब्रिटिज द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट को लेकर अबतक जो सबूत मिले हैं उससे पता चलता है कि ये ट्वीट स्वत:स्फूर्त नहीं थे। दरअसल, यह भारत को बदनाम करने की एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा था। भारतीय मूल के कनाडा के सांसद जगमीत सिंह ने यह माना है कि वे रिहाना के साथ चैट करते थे। जगमीत सिंह और रिहाना ट्वीटर पर एक दूसरे को फॉलो करते हैं, दोनों एक-दूसरे को डायरेक्ट मैसेज भी करते हैं और लगातार संपर्क में रहते हैं। हालांकि जगमीत सिंह ने इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया कि रिहाना से साथ उनकी क्या बात हुई। लेकिन वो क्या बात करते होंगे, इस पर क़यास लगाने की ज़रूरत नहीं।
कड़वा सच ये है कि जगमीत सिंह खालिस्तान की मांग के समर्थक हैं। खालिस्तान आंदोलन के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं। 2013 में भारत सरकार ने जगमीत सिंह को भारत आने का वीज़ा नहीं दिया था। किसान आंदोलन के मुद्दे पर भी वो कनाडा में लगातार प्रोटेस्ट करते रहे हैं। ऐसे में जब रिहाना ने किसान आंदोलन को लेकर ट्वीट किया तो इसके पीछे जगमीत सिंह का हाथ होने की बात सामने आई। इस दावे को तब और हवा मिली जब जगमीत सिंह ने रिहाना के इस कमेंट को रिट्वीट करते हुए किसान आंदोलन का मुद्दा उठाने के लिए उन्हें शुक्रिया कहा। जगमीत यह दावा करते हैं कि रिहाना उनकी दोस्त है।
दिल्ली पुलिस इस पूरी पहेली को सुलझाने में जुटी है। पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि ट्विटर पर ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा पोस्ट किए गए टूल किट को किसने तौयार किया था। इस टूल किट में जनवरी और फरवरी में किसानों के मुद्दे पर भारत में हंगामा खड़ा करने की योजनाओं को विस्तार से बताया गया था। 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) के बाद होने वाले विरोध प्रदर्शन की योजनाओं का जिक्र भी टूल किट में किया गया है। दिल्ली पुलिस की तरफ से दर्ज की गई एफआईआर में देशद्रोह, आपराधिक साजिश रचने और समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने से संबंधित धाराएं लगाई गई हैं। यह एक खुला एफआईआर है और जांच के बाद ही पता चलेगा कि साजिशकर्ता कौन थे। पुलिस का कहना है कि एफआईआर में ग्रेटा थुनबर्ग या किसी अन्य शख्स का नाम नहीं है।
जब मैंने टूल किट को देखा तो चकित रह गया। जिस टूल किट को ग्रेटा थुनबर्ग ने गलती से ट्वीट किया उसमें 4 और 5 फरवरी का यह प्लान था कि शाम साढ़े चार बजे से साढ़े सात बजे के बीच ट्वीटर पर किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट स्ट्रॉम चलाना है, यानी किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने हैं। इसका मकसद ये था कि 6 फरवरी को किसान एकता मोर्चे की चक्काजाम की कॉल को बड़ा बनाया जाए। दुनिया भर में इसकी चर्चा हो और दुनिया को ये दिखाया जाए कि भारत में सारे किसान सड़क पर हैं। सरकार किसानों का दमन कर रही है। जो टूल किट नंबर 2 है, उसमें 4 और 5 फरवरी को ट्विटर पर ट्रैंड करने के लिए जो लाइन तय की गई थी वो है अर्जेंट एक्शन हेडलाइन। अर्जेंट टूल किट में दो तरीके से सपोर्ट करने को कहा गया है। एक तो सोशल मीडिया के जरिए और दूसरा फिजिकल प्रजेंश के जरिए। टूल किट में बताया गया कि कहां-कहां विरोध-प्रदर्शन करना है। अपील की गई कि अगर हो सके तो किसानों का समर्थन करने दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचें। अगर हिन्दुस्तान से बाहर हैं तो जहां हैं उस देश में, भारत के दूतावास के बाहर इकट्ठा होकर भारत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करें। जहां-जहां भारत सरकार के दफ्तर हैं, वहां भी प्रदर्शन किए जाएं। एक खास बात और है कि इस अर्जेंट टूल किट में बार-बार अडानी और अंबानी का नाम भी आया है। कहा गया है कि अंबानी और अडानी की कंपनियों के दफ्तरों के बाहर भी प्रदर्शन हों और इनका बहिष्कार किया जाए। 6 फरवरी के साथ-साथ 13 और 14 फरवरी को भी भारत के दूतावासों और सरकारी दफ्तरों के सामने धरना-प्रदर्शन का आह्वान किया गया।
चाहे रिहाना हों या ग्रेटा, ये सब एक बड़े प्लान का हिस्सा हैं। वो शायद जानती भी नहीं होंगी कि ये प्लान भारत की संप्रभुता और भारत की लोकतंत्र पर हमला करने का प्लान है। भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा वॉर शुरू करने का प्लान है। अब मैं आपको बताता हूं कि जो एक-एक बात दुनिया में फैलाने का प्लान था। वो कितना बड़ा झूठ है। ये कहा गया कि मोदी सरकार ने किसानों पर गोली चलवाई। पिछले 71 दिनों के किसानों के धरना-प्रदर्शन के दौरान एक भी गोली नहीं चली है। सच तो ये है कि पुलिस पर तलवार, फरसा, रॉड से हमला हुआ। तीन सौ पुलिस वाले घायल हुए, लेकिन उन्होंने गोली नहीं चलाई।
कहा ये गया कि सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई है और किसानों की खबरें बाहर नहीं आती, लेकिन ये सारा का सारा प्रोपेगंडा तो सोशल मीडिया के माध्यम से ही हो रहा है। किसानों के विरोध प्रदर्शन की खबरें सोशल मीडिया पर रोज आती हैं। 26 जनवरी को दंगा करने वाले लाल किले से फेसबुक लाइव करते रहे और ये कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई है।
यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने किसानों का खाना-पानी बंद कर दिया है। किसान परेशानी में हैं और भूख से मर जाएंगे। लेकिन पूरे देश ने देखा कि कैसे किसानों के बीच 2 महीने से लंगर लगा। आसपास के गांवों के किसानों ने दूध और फल भेजे। कोई मिठाई लेकर आता हैं तो कोई पिज्जा का इंतज़ाम करता है। वहीं किसान भाइयों ने भी अपने खाने-पीने का इंतजाम भी अच्छे से किया है। किसानों के खाने-पीने की कोई कमी नहीं है,लेकिन अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यह झूठ फैलाया जा रहा है।
यह आरोप लगाया जा रहा है कि भारत सरकार कॉरपोरेट्स की मदद के लिए कृषि कानून ला रही है। ये कहा गया कि अंबानी-अडानी की सरकार है। अब आपको ये बताने की जरूरत नहीं कि ये लाइनें कौन कहता है? ‘अडानी-अंबानी की सरकार है’ ये किसका डायलॉग है? लेकिन यहां ये बताना जरूरी है कि ग्रेटा थुनबर्ग ने जो टूल किट 3 फरवरी को गलती से ट्वीट की थी उस डाक्यूमेंट का कुछ हिस्सा कांग्रेस पार्टी के ट्वीटर हैंडल से 18 जनवरी को ही पोस्ट किया गया था। यानी इस टूल किट की जानकारी कांग्रेस पार्टी को पहले से थी और इसके आधार पर कांग्रेस के कई नेताओं ने उसी प्लान के तहत ट्वीट किए जो इस टूल किट में बताए गए थे। अब ये संयोग है या प्रयोग है इसका जबाव तो कांग्रेस देगी।
विदेशी ताकतों ने ये फैलाने के लिए कहा कि मानवाधिकार खत्म हो गए हैं, पत्रकारों को डराया जा रहा है। लेकिन ये बताने की भी जरूरत नहीं कि भारत में सबको अपनी बात कहने की आजादी है। यहां किसी पर कोई पाबंदी नहीं है, न कोई किसी को डराता है और न कोई किसी से डरता है। ये भारत की लोकतंत्र की ताकत है।
असली बात ये है कि नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने और दुनिया में भारत की छवि को खराब करने के लिए झूठ का सहारा लिया गया। झूठ भी ऐसा जिसका कोई सिर-पैर नहीं है। लेकिन दो अच्छी बातें हुईं। एक तो इस झूठ का वक्त रहते पर्दाफाश हो गया और दूसरा भारत की जनता ने उस बात पर यकीन किया जो वो अपनी आंखों से देखती हैं। हमारे देश के लोग किसी तरह के बहकावे में नहीं आए। यहां तक कि किसान संगठनों के जो नेता आंदोलन में एक्टिव हैं उन्होंने भी कहा कि वे इन अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को नहीं जानते हैं। और इन लोगों के बयानों का किसान संगठनों के इन नेताओं से कोई मतलब नहीं है।
दरअसल, देश के दुश्मन किसान आंदोलन को मौके के रूप में देख रहे हैं। नाम किसानों का है और साजिश देश को दुनिया में बदनाम करने की हो रही है। जो लोग किसानों के हमदर्द बन रहे हैं और किसानों की तस्वीरें लगाकर भारत की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, वे लोग इस आंदोलन के नाम पर भड़ी मात्रा में फंड भी इक्कठा कर रहे हैं। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी जैसे तमाम मुल्कों में कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं किसानों के नाम पर फंड इकट्ठा किया जा रहा है।
मुझे पूरा यकीन है कि दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 71 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों को इन सब बातों की भनक भी नहीं होगी। उन्हें पता भी नहीं होगा कि किसानों के नाम पर क्या-क्या हो रहा है। उन्हें इन संगठनों और साजिशकर्ताओं के नाम भी नहीं पता हैं। लेकिन ये भी सही है कि दिल्ली के बॉर्डर पर किसान नेताओं के बीच देश के दुश्मनों के कुछ एजेंट भी घुसे हैं और ये बात टूल किट में लिखी कुछ हिदायतों से साफ होती है। इस टूल किट में विरोध-प्रदर्शन की जो प्लानिंग की गई थी, उसमें साफ-साफ लिखा था कि किसान आंदोलन के समर्थन में जो भी तस्वीरें और वीडियो भेजे जाएंगे, उसकी सिंघु बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर पर पहले किसान नेताओं द्वारा ‘स्क्रीनिंग’ की जाएगी उसके बाद सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर शेयर किया जाएगा।
दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का नाम लिया है। अब मैं आपको इसके बारे में बताता हूं। ये पॉएटिक जस्टिस फाउंडेशन है क्या? कौन इसे चलाता है, किसान आंदोलन में इसका क्या रोल है? विदेश से ऑपरेट होने वाला ये पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन किस तरह भारत के खिलाफ साजिश रच रहा है। असल में ये फाउंडेशन कनाडा में काम करता है। कनाडा में रहकर इस फाउंडेशन के लोग किसान आंदोलन के नाम पर भारत को बदनाम करने और यहां का माहौल बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। यही नहीं पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने कनाडा में भी किसान आंदोलन के नाम पर कई प्रोटेस्ट मार्च और रैलियां की हैं।
पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट में लिखा है कि उसका मकसद मोदी सरकार की फासिस्ट मानसिकता को एक्सपोज़ करना और भारत में बड़े औद्योगिक घरानों के भ्रष्टाचार उजागर करना है। भारत की योग और चाय वाली इमेज को खराब करना और 26 जनवरी को दुनियाभर में गड़बड़ी कराना है। सोचिए, जो फाउंडेशन खुलेआम ये कह रहा है कि वो भारत के गणतंत्र दिवस के दिन यूनिफाइड ग्लोबल डिसरप्शन प्रोग्राम चलाना चाहता है वह फाउंडेशन छुप-छुपकर क्या-क्या करता होगा? पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने उन देशों को भी चुन कर रखा था, जहां किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा प्रदर्शन करना है। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका का नाम है। इसके अलावा केन्या, डेनमार्क, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, नीदरलैंड और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में भी ये फाउंडेशन एक्टिव है।
किसान आंदोलन को लेकर जो संगठन और जो लोग विदेश में बैठकर साजिश रच रहे हैं। उसमें बार-बार मो ढालीवाल नाम के शख्स का नाम सामने आ रहा है। मो ढालीवाल पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है और कनाडा में रहकर खालिस्तान का एजेंडा चलाता है। सेमिनार ऑर्गनाइज कराता है, खालिस्तान के समर्थन में लगातार प्रोटेस्ट मार्च और रैलियों का आयोजन करता है। यह शख्स सोशल मीडिया पर खुले तौर पर इस बात को कबूल भी करता है कि वो खालिस्तानी है और खालिस्तान के लिए आंदोलन चला रहा है।
जो दस्तावेज लीक हुआ अगर वो सामने न आता तो शायद ये कभी पता ही नहीं चलता कि कितने बड़े पैमाने पर मोदी को बदनाम करने के लिए प्रोपेगंडा किया जा रहा है। भारत के लोकतंत्र पर किस तरह से हमला करके हमारे देश को एक फासिस्ट मुल्क बताने की कोशिश की जा रही है। ये उन्हीं ताकतों का काम है जिन्होंने ट्रंप की भारत यात्रा के समय दंगे करवाए थे।
ये उन्ही ताकतों का काम है जिन्होंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में चीफ गेस्ट बनकर न जाएं। ये वही लोग हैं जिनके कहने पर ब्रिटेन की लेबर पार्टी के सांसदों ने किसान आंदलोन के बारे में इसी तरह की बातें कही थी। इन्हीं के उकसावे में आकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन के शुरूआत के दिनों में भारत के खिलाफ बयान दिया था।
अब तो ये बिल्कुल साफ है कि खालिस्तानी संगठनों ने ये प्लान तैयार करवाया और लोगों को भड़काया। किसानों को तो पता ही नहीं चल पाया कि कुछ लोग किसान आंदोलन में घुसकर उन्हें बदनाम करने में लगे थे। देश के दुश्मनों की साजिश को आगे बढ़ाने के लिए किसानों के धरने का सहारा ले रहे थे। इस के सबूत दिल्ली पुलिस की जांच में सामने आ रहे हैं। गूगल इंडिया को उन लोगों को ट्रेस करने में सहयोग करने के लिए कहा गया है जिन्होंने भारत में अराजक माहौल करने के लिए टूल किट बनाई थी। स्वाभाविक तौर पर अब जांच के बाद इन सबूतों को अदालतों के सामने पेश किया जाएगा।
मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि साजिश करने वाले चाहे देश के अंदर हों या विदेश में, उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। यह भारत की एकता और अखंडता पर हमला है। देश में रहने वाले कुछ लोग विदेश में बैठे षड्यंत्रकारियों का मोहरा बन गए। अब जबकि दिल्ली पुलिस ने लाल किले पर हमले के पीछे के अहम किरदारों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया है, मुझे भरोसा है कि साजिश करने वाले किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। मुझे भरोसा है कि इस मामले कोई भी निर्दोष किसान, जिसका इसमें कोई हाथ नहीं रहा है, उसे पुलिस परेशान नहीं करेगी।