सुप्रीम कोर्ट ने आज सभी अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों जैसे तमाम स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के नियम तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया. इसमे देश के कई top doctors और कैबिनेट और गृह सचिव भी होंगे. ये टास्क फोर्स तीन हफ्ते के अंदर अन्तरिम रिपोर्ट और दो महीने के अंदर अंतिम रिपोर्ट देगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश कोलकाता के अस्पताल में हुई जघन्य रेप-हत्या जैसी एक और वीभत्स घटना का इंतज़ार नहीं कर सकता, और महिला डॉक्टरों की सुरक्षा राष्ट्रहित का सवाल है. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की जमकर खिंचाई की, और वही सवाल किये जो तमाम डॉक्टरों और आम जनता के मन में है. कोलकाता की बेकसूर, होनहार, ट्रेनी डॉक्टर की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देख कर रौंगटे खड़े हो गये.कोई इतना बर्बर,इतना क्रूर,इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता है?कोई एक मासूम पर इतना ज़ुल्म कैसे कर सकता है ? उस बच्ची ने कितना दर्द सहा होगा ये सोच कर दिल दहल जाता है. वो आखिरी सांस तक लड़ी. अब कुछ लोग पूछ रहे हैं कि इस केस पर लोगों में इतना गुस्सा क्यों है? डॉक्टर सड़कों पर क्यों उतरे हैं ? असल में डॉक्टर और पब्लिक को लगता है पहले इस केस को ढंकने छुपाने की कोशिश हुई,फिर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को बचाने की कोशिश की गई और फिर सबूत मिटाने की कोशिश की गई.ऐसी एक एक हरकत ने शक पैदा किया. क्या ये किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है? क्या ये किसी बड़े आदमी को बचाने की कोशिश है? सबके मन में सवाल हैं:वो कौन था जिसने डॉक्टर बेटी के मां-बाप से कहा कि उसने आत्महत्य़ा की ? वो कौन था जिसने दरिंदगी की शिकार बेटी के मां बाप को चार घंटे तक उसका चेहरा देखने नहीं दिया? क्या उन चार घंटों मे सबूत मिटाए गए? डॉक्टर संदीप घोष को बचाने की कोशिश किसकी शह पर हुई? वो भीड़ जो अचानक आधी रात को हॉस्पिटल में बचे हुए सबूत मिटाने आई थी उसे किसने भेजा था? लोगों के मन में जो शक हैं उसमें सही गलत नहीं ढूँढना चाहिए. ना तो किसी को प्रोटेस्ट करने से रोकना चाहिए, ना सवाल उठाने से.केंद्र सरकार और राज्य सरकार को टकराने की बजाय,एक दूसरे पर आरोप लगाने की बजाय लोगों को विश्वास दिलाना चाहिए अब फिर किसी बेटी के साथ ऐसा ना हो वाकई में इसकी चिंता की जा रही है.