महाराष्ट्र चुनाव: बड़े परिवार, नई तकरार
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नामांकन भरने के अंतिम क्षण तक महा विकास आघाड़ी और महायुति में सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी थी. कांग्रेस को 105 से ज्यादा सीटों की उम्मीद है, हालांकि पार्टी ने 102 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है. शिव सेना (उद्धव) की तरफ से 84, और एनसीपी(शरद) की तरफ से 82 उम्मीदवार घोषित हुए हैं. 18 सीटों पर मामला अटका हुआ है. यही हाल महायुति में भी है. महायुति से कुल 260 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान हो चुका है, इनमें बीजेपी ने 146, शिंदे की शिवसेना ने 65 और अजित पवार की पार्टी ने 49 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. 28 सीटों को लेकर अभी भी सस्पेंस है.
सोमवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे, उपमुख्यमंत्री अजित पवार, पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण. पूर्व सीएम अशोक चव्हाण की बेटी श्रीजया चव्हाण, राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे, नवाब मलिक की बेटी सना मलिक, बाबा सिद्दीकी के बेटे ज़ीशान सिद्दीकी, समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी जैसे तमाम नेताओं ने पर्चे भरे. अजित पवार के खिलाफ अपने पोते युगेन्द्र पवार का नामांकन जमा कराने खुद शरद पवार पहुंचे. इस दौरान पार्टियों में बगावत की खबरें भी आईं.
इस बार चुनाव की सबसे रोचक लड़ाई बारामती में होगी. शरद पवार का परिवार आमने सामने हैं. महायुति की तरफ से शरद पवार के भतीजे अजित पवार हैं और महाविकास अघाड़ी की तरफ से शरद पवार के पोते और अजीत पवार के भतीजे युगेन्द्र पवार हैं. इस सीट पर अजित पवार 1991 से, यानि 33 साल से लगातार विधायक हैं. सात बार चुनाव जीत चुके हैं लेकिन इस बार पहली बार शरद पवार से अलग होकर अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं.
सोमवार को अजित पवार ने रोड शो किया. नामांकन जमा करने के बाद अजित पवार ने कहा कि घर के झगड़े चार दीवारी के बीच सुलझने चाहिए और ये जिम्मेदारी घर के बुजुर्गों की होती है. अजित पवार ने कहा कि उन्होंने जो गलती लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को मैदान में उतार कर की थी, इस बार वही गलती शरद पवार ने युगेन्द्र को उतार कर की है. अजित पवार ने कहा कि लोकसभा चुनाव में उन्हें गलती की सजा मिली थी, अब विधानसभा चुनाव में बारामती की जनता शरद पवार को सजा देगी. पर्चा भरने के बाद युगेंद्र ने अजित पवार को लेकर कुछ नहीं कहा. उन्होंने कहा कि शरद पवार उनके गुरू हैं, मार्गदर्शक हैं और वो उनके ही बताए रास्ते पर चलने की कोशिश करेंगे.
सुप्रिया सुले ने कहा कि बारामती में परिवार की नहीं विचारधारा की लड़ाई है. लेकिन हकीकत यही है कि झगड़ा तो परिवार का है और टक्कर कांटे की है क्योंकि अजित पवार 33 साल से इस सीट पर जीत रहे हैं. बारामती में NCP का काडर उन्होंने तैयार किया. इस बार बीजेपी और एकनाथ शिन्दे की शिवसेना का समर्थन भी है. इसलिए अजित पवार आतम्विश्वास से भरे नज़र आ रहे हैं. लेकिन अजित पवार जानते हैं कि शरद पवार 1965 से, यानि 59 साल से बारामती में राजनीति कर रहे हैं, वो बुजुर्ग जरूर हैं लेकिन सियासत में उनके उस्ताद हैं. वो लोकसभा चुनाव में ये साबित कर चुके हैं और विधानसभा चुनाव में युगेन्द्र की उम्मीदवारी तो शरद पवार की चुनावी शतरंज की पहली चाल है. आगे शरद पवार क्या गुल खिलाएंगे, ये सिर्फ वही जानते हैं.
बारामती के नतीजा अजीत पवार के राजनीतिक करियर के लिए गेमचेंजर साबित होगा जबकि शरद पवार के लिए बारामती प्रतिष्ठा का सवाल है. बारामती के फैसले से ही तय होगा कि असली NCP किसकी है. इसीलिए इस बार बारामती का चुनाव रोचक होगा. बारामती की तरह महाविकास आघाड़ी ने ठाणे में एकनाथ शिन्दे को घेरने की कोशिश की है. ठाणे की कोपरी पाचपाखड़ी सीट पर एकनाथ शिन्दे ने नामांकन दाखिल किया. इस सीट पर उद्धव शिवसेना ने एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरू आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को मैदान में उतारा है. एकनाथ शिन्दे ने दावा किया कि सिर्फ नाम से कुछ नहीं होता, जनता काम देखती है. ठाणे में शिंदे ने रोड शो करके अपनी ताकत दिखाई. इस जुलूस में डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस मौजूद थे.
देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सिर्फ खून का रिश्ता होने से कोई वारिस नहीं बन जाता, वारिस वो होता है जो उनके विचार को आगे लेकर जाता है और आनंद दिघे के विचार को आगे ले जाने का काम एकनाथ शिंदे ने किया है. कोपरी पाचपाखड़ी सीट पर एकनाथ शिन्दे 2009 से लगातर जीत रहे हैं. तीन चुनाव में उनकी जीत का अंतर हर बार बढ़ा है. पिछले चुनाव में उन्हें पैंसठ प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे. ठाणे को एकनाथ शिन्दे का गढ़ माना जाता है.
इस बार मुंबई की माहिम सीट पर भी मुकाबला रोचक होगा. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चीफ राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे पहली बार लड़ रहे हैं. राज ठाकरे के बेटे के खिलाफ उद्धव ठाकरे ने महेश सावंत को टिकट दिय़ा है. अमित ठाकरे वर्ली से चुनाव लड़ रहे उद्धव ठाकरे के बेटे और अपने cousin आदित्य ठाकरे को भी शुभकामनाएं दी लेकिन राज ठाकरे का परिवार इस बात से नाराज है कि उद्धव ने अपने भतीजे के खिलाफ उम्मीदवार उतारा है. असल में आदित्य ठाकरे जब 2019 में चुनाव लड़े तो राज ठाकरे ने वर्ली सीट से उम्मीदवार नहीं उतारा था लेकिन उद्धव ने ऐसा नहीं किया. इसलिए राज ठाकरे की पत्नी शर्मिला ने कहा कि ये उनका संस्कार है कि उन्होंने आदित्य को वॉकओवर दिया था, अब उद्धव ने उस परंपरा को नहीं निभाया तो MNS ने भी इस बार वर्ली से आदित्य के खिलाफ उम्मीदवार उतारा है.
महाराष्ट्र के चुनाव में इस बार परिवारों के झगड़ों की बड़ी रोचक तस्वीरें देखने को मिली है. जिन अजित पवार को शरद पवार ने बारामती में 33 साल पहले चुनाव जिता कर अपना उत्तराधिकारी बनाया था, अब वही शरद पवार उन्हीं अजित दादा को अपने पोते से हरवाना चाहते हैं. वो बताना चाहते हैं कि पवार परिवार का असली दादा कौन है. जिन एकनाथ शिंदे को ठाणे में आनंद दिघे ने अपना उत्तराधिकारी बनाया, उन्ही आनंद दीघे के भतीजे शिंदे को चुनौती दे रहे हैं. जो राज ठाकरे अपने आप को बाला साहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी मान बैठे थे, उनका बेटा चुनाव के मैदान में है और बड़े भाई उद्धव भतीजे को पटकने की फिराक में हैं.
राज ठाकरे ने भी भतीजे आदित्य ठाकरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर दिया है. यहां दोनों जगह भाई-भाई की लड़ाई देखने को मिलेगी. बाबा सिद्दीकी के बेटे ज़ीशान को अपने पिता की विरासत और उनके प्रति हमदर्दी का फायदा मिलेगा. सना मलिक के लिए अपने पिता के केस मुसीबत पेश करेंगे. अनिल देशमुख अपने खिलाफ केस की दुहाई देकर अपने बेटे के लिए वोट मांग रहे हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी, पोता-पोती सब मैदान में हैं और ये दोनों तरफ है. इसीलिए शायद इस बार के चुनाव में राजनीति में परिवारवाद की बात यहां कोई नहीं करेगा.
Maharashtra Elections: First Families At War
There was a flurry of nominations by close kin of top political leaders of Maharashtra, as filing of nominations for assembly polls closed on Tuesday. Congress-led Maha Vikas Aghadi and BJP-led Mahayuti were still locked in consultations to iron out differences over the remaining seats.
On Monday, Chief Minister Eknath Shinde, Deputy CM Ajit Pawar, former CM Prithviraj Chavan, former CM Ashok Chavan’s daughter Srijaya Chavan, MNS chief Raj Thackeray’s son Amit Thackeray, Nawab Malik’s daughter Sana Malik, Late Baba Siddiqui’s son Zeeshan Siddiqui, Samajwadi Party leader Abu Asim Azmi and several others filed nominations. NCP patriarch Sharad Pawar himself accompanied his grandson Yugendra Pawar in Baramati, who is contesting against his grand uncle Ajit Pawar. There were reports of local rebellion in several parties.
As of now, Congress expects to field more than 105 candidates, though it has announced names of 102 candidates, while Shiv Sena (UBT) has announced 84 and NCP(Sharad Pawar) 82 candidates. 18 seats are still left undecided in MVA.
The most spectacular contest will be in Baramati, where Ajit ‘Dada’ Pawar will be facing Sharad Pawar’s grandson Yugendra Pawar. Ajit Pawar has been consistently winning this seat since 1991, and he has been an MLA for 33 years. Ajit Pawar admitted that he made a mistake by fielding his wife Sunetra to contest against Supriya Sule during the Lok Sabha elections, but this time people will ‘punish’ Sharad Pawar for committing the same mistake.
Yugendra Pawar is contesting elections for the first time in his life. After filing nomination, Yugendra described his grandpa Sharad Pawar as his ‘guru’ and ‘markdarshak’. Sharad Pawar’s daughter Supriya Sule said, the fight in Baramati is between ideologies and not between members of a family.
But the real fact is: the fight is in the family and it could be a tough and close contest. It was Ajit Pawar who trained the NCP cadre in Baramati for 33 years, and this time, he has the support of BJP and Eknath Shinde’s Shiv Sena. That is why Ajit Pawar looks confident, but he also understands that his uncle Sharad Pawar has been doing politics in Baramati since 59 years and he has proved his mettle during the Lok Sabha elections.
The Baramati result will prove to be a gamechanger for Ajit Pawar’s political career, and as far as Sharad Pawar is concerned, the result from Baramati will decide to which camp the real NCP belongs.
The second most interesting battle will be in Kopri Pachpakhri seat of Thane, where Chief Minister Eknath Shinde will be facing Kedar Dighe, the nephew of his political guru Anand Dighe. Kedar Dighe has been fielded by Uddhav Thackeray’s Shiv Sena. Deputy CM and BJP leader Devendra Fadnavis, who accompanied Eknath Shinde on his roadshow on Monday, said, “mere blood relation does not make anybody a successor. A successor emerges only by dint of his work and thoughts and Eknath Shinde is the real successor of Anand Dighe”.
Eknath Shinde has been consistently winning this seat since 2009 and in the last election, he got more than 65 per cent votes. Thane is considered the citadel of Eknath Shinde, and his party candidate Naresh Mhaske had won this year’s Lok Sabha elections.
The third interesting battle is in Mahim, Mumbai, where Raj Thackeray’s son Amit will be testing the electoral waters for the first time. He is facing Mahesh Sawant of Shiv Sena (UBT). Uddhav’s son Aaditya Thackeray is contesting from Worli, where MNS has fielded a candidate in a tit-for-tat action.
Overall, people will be witnessing interesting intra-dynasty battles this time. It was Ajit Pawar who was fielded by his uncle Sharad Pawar from Baramati 33 years ago, and now the tide has turned. Sharad Pawar has fielded his grandson to defeat his nephew Ajit this time. Sharad Pawar wants to tell the people of Maharashtra, who is the real ‘Dada’ of Pawar dynasty.
Similarly, Anand Dighe had anointed Eknath Shinde as his successor in Shiv Sena, but now Anand Dighe’s nephew will be challenging Eknath Shinde. Raj Thackeray used to consider himself the real successor of Shiv Sena founder Balasaheb Thackeray, but now he has fielded his son to defeat his cousin Udhav Thackeray’s candidate. So, one would be watching a battle between brothers in Mahim.
Baba Siddiqui’s son Zeeshan is going to get the sympathy vote after the murder of his father, and he is going to claim his father’s legacy. For Sana Malik, his father Nawab Malik’s cases can pose problems. On the other hand, Anil Deshmukh is seeking votes for his son by telling voters about the cases filed against him. In Maharashtra politics, sons, daughters, nephews, nieces, grand sons and grand daughters are all in the fray. It is a situation where nobody will be raising the issue of dynastic politics this time.
India-China Understanding: Much to learn for the West
This year’s Diwali will be a different one for our brave jawans and officers deployed near the Line of Actual Control in eastern Ladakh. Nearly 50 per cent of troop disengagement has been completed in Depsang and Demchok by Friday evening, and the Indian Army plans to begin patrolling in coordination with the Chinese army in the two areas by October-end. Talks are going on over issues like ‘buffer zones’ which had been created earlier in the region with high altitude.
The disengagement in Depsang and Demchok will be over by October 28 or 29, and the patrolling from both sides, with prior intimation to avoid face-offs, will begin after mutual verification. Dismantling of temporary posts, sheds, tents and other structures and pullback of troops in Depsang and Demchok to pre-April 2020 position is going on and is being closely monitored both on the ground and from the air by using drones.
In Demchok, Indian troops are moving back towards the west from Charding Nullah, while Chinese army has withdrawn some of its vehicles after dismantling nearly a dozen temporary structures.
Two days ago, Prime Minister Narendra Modi and Chinese President Xi Jinping had discussed the border issue and it was decided to resume Special Representative level talks on solving the vexed India-China border dispute. Till last week, nobody could have imagined that troops of both sides would resume patrolling near the friction points in Ladakh so soon, and a tension-free Diwali would be celebrated by our brave jawans.
Prime Minister Modi had been roundly criticized by our opposition leaders for the last two years over the Ladakh border tension issue. Opposition leaders had been alleging that China has occupied a large part of our territory in Ladakh and Modi has “surrendered” before the Chinese. Modi never replied, nor got provoked over these allegations.
Modi preferred to work silently, used diplomatic techniques and displayed military power. He was neither in awe of the Chinese, nor did he bow down. I think Modi might have used the good offices of his friend Russian President Vladimir Putin for improving relations with China. It suits Putin if India and China join hands, and appear to stand with Russia.
Putin can then claim before the West that Russia is now a major power that is not isolated from the rest of the world. Those who have been making fun of Modi and asking questions on when he would show his “red eyes” at China, will now have red eyes.
If India-China relations improve, it will be a pain in the neck for Rahul Gandhi. Rahul will then realize that he made a mistake in trusting the Chinese more rather than believing in Modi’s claim.
The world is today abuzz with talks about the rapprochment between India and China and how the border issue in Ladakh was resolved through bilateral talks. This can be shown as an example to the European Union and other Western powers on how to bring an end to the ongoing conflicts in Ukraine and Middle East.
भारत-चीन की सहमति: दुनिया सीख ले इनसे
इस साल दीवाली के दिन भारत-चीन सीमा पर माहौल थोड़ा बदला हुआ होगा. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर साढ़े चार साल बाद दोनों देशों की पेट्रोलिंग फिर से शुरू होगी. सीमा पर सैनिकों का जमावड़ा भी कम होगा क्योंकि सीमा पर शान्ति का समाझौता होने के बाद LAC पर भारत और चीन की सेना पीछे हटने लगी है.
मंगलवार को भारत और चीन के लोकल सेना कमांडरों की मीटिंग हुई जिसके बाद 23 अक्टूबर से दोनों तरफ की सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया शुरु हो गई. सबसे पहले दोनों सेनाओं ने डेपसांग और डेमचोक में अपने एक -एक टेंट हटाए, LAC पर जो अस्थायी ढांचे बनाए गए थे, उन्हें गुरुवार को तोड़ा गया. शुक्रवार सुबह से भारत और चीन के सैनिक LAC से पीछे हटने शुरू हो गए.
डेमचोक में भारतीय सेना के जवान चार्डिंग नाले से पश्चिम की तरफ़ पीछे हटे, वहीं चीन की सेना इस नाले से पूरब की तरफ़ पीछे हट रही है. डेमचोक में दोनों देशों ने अपने सैनिकों के लिए करीब एक दर्जन अस्थायी ढांचे बनाए थे, उन्हें तोड़ा जा रहा है.
डेपसांग में चीनी सेना ने गाड़ियों के बीच तिरपाल लगाकर अपने सैनिकों को तैनात किया था चीनी सेना ने अपनी कुछ गाड़ियां पीछे हटाईं हैं. दोनों देशों ने डेपसांग और डेमचोक में सैनिकों की तैनाती में करीब 50 प्रतिशत की कमी की है. पीछे हटने की प्रक्रिया 28-29 अक्टूबर तक पूरी होने की उम्मीद है.
इसके बाद, भारत और चीन के सैनिक अपने अपने इलाक़ों में पैट्रोलिंग करेंगे. इससे पहले भारत और चीन दोनों ही एक दूसरे के सैनिकों के पीछे हटने का ज़मीनी स्तर पर सत्यापन करेंगे. यानी मौक़े पर जाकर देखेंगे कि सच में सैनिक पीछे हटें हैं या नहीं, गाड़ियां हटाई गई हैं या नहीं, और अस्थायी ढांचे तोड़े गए हैं या नहीं. ड्रोन से भी डिसएंगेजमेंट का वीडियो बनाया जाएगा ताकि दोनों देशों के कमांडर पूरी प्रक्रिया की समीक्षा कर सकें. दोनों सेनाओं के लोकल कमांडर्स दिन में दो बार एक दूसरे से बात करेंगे. फिर कोर कमांडर स्तर की बातचीत होगी.
दो दिन पहले रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत हुई थी और दोनों नेताओं ने 62 साल पुराने सीमा विवाद के हल के लिए अपने अपने देश के विशेष प्रतिनिधियों को जल्द मुलाक़ात करके बातचीत करने को कहा था.
भारत के विशेष प्रतिनिधि अजित डोभाल हैं, जबकि चीन के विशेष प्रतिनिधि वहां के विदेश मंत्री वांग यी हैं. पिछले हफ्ते तक कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस बार दिवाली पर हमारे जवान और अफसर चीन की सीमा पर पहले की तरह गश्त लगाएंगे. हमारे बहादुर जवान चीन की सीमा पर बिना किसी तनाव के दिवाली मनाएंगे.
पिछले दो साल में चीन के सवाल पर नरेंद्र मोदी की खूब आलोचना की गई. कहा गया कि मोदी चीन से डरते हैं, चीन ने हमारी ज़मीन पर कब्जा कर लिया, मोदी ने चीन के सामने सरेंडर कर दिया. मोदी ने ऐसी किसी बात का जवाब नहीं दिया. वो उत्तेजित नहीं हुए. मोदी चुपचाप काम करते रहे, डिप्लोमेसी का इस्तेमाल किया, सैन्य ताकत भी दिखाई. न चीन से डरे, न चीन के आगे झुके.
मुझे तो ये भी लगता है कि मोदी ने चीन से संबंध सुधारने के लिए पुतिन से भी अपनी दोस्ती का थोड़ा बहुत फायदा उठाया होगा. पुतिन को भी सूट करता है कि भारत और चीन दोनों साथ रहें और रूस के साथ खड़े दिखाई दें, तभी वो अमेरिका के सामने एक बड़ी ताकत होने का दावा कर सकते हैं.
अब हमारे यहां चीन की लाल आंख की बात करने वालों की आंखें लाल हो जाएंगी. चीन और भारत के रिश्ते सुधरे, तो राहुल को काफी मुश्किल होगी. उन्हें इस बात का अहसास होगा कि उन्होंने मोदी की बात मानने की बजाय चीन के दावों पर विश्वास किया.
चीन के साथ समझौते की आज पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है कि किस तरह एशिया की दो बड़ी ताकतों ने आपसी विवाद को बातचीत से हल किया. यह यूरोप और मध्य पूर्व में चल रहे युद्धों को ख़त्म करने की दिशा में उदाहरण बन सकता है.
Maharashtra: Seat-sharing is a facade, the real fight is for the CM’s chair
The BJP-led ruling Mahayuti alliance on Thursday ironed out its differences over seat sharing in the presence of Home Minister Amit Shah in Delhi. BJP has agreed to leave some more seats for NCP (Ajit), and all the three allies have made a joint pledge to prevent party rebels from contesting.
BJP leaders Devendra Fadnavis and Chandrashekhar Bawankule, NCP(Ajit) leaders Praful Patel and Ajit Pawar, and Chief Minister Eknath Shinde had a marathon meeting at Amit Shah’s residence, where the Home Minister asked all three allies to ensure that rebels do not enter the election fray.
Shah said, it will be the responsibility of party leaders to convince their rebels not to contest. Most of the differences between the three allies are over seats in the Greater Mumbai region.
Ajit Pawar’s problem is that he has several heavyweight leaders in his party who want ticket for their kin, and if his party fails to get those seats, they may contest as rebels. It will be difficult for Eknath Shinde and Ajit Pawar to stem rebellion in their parties, but they have a good advantage as far as the election symbols are concerned. Both Shinde’s Shiv Sena and Ajit’s NCP have the original party symbols with them.
Maha Vikas Aghadi is yet to iron out its seat sharing problem. Uddhav Thackeray’s son Aditya Thackeray told India TV’s daylong conclave ‘Chunav Manch’ that the decision about the chief ministerial face will be taken only after the seat sharing arrangement is finalized. At the same time, he reminded that the people of Maharashtra still remember Uddhav Thackeray’s rule.
Priyanka Chaturvedi, SS(UBT) spokesperson said at the conclave that Uddhav Thackeray leads in popularity ranks compared to other leaders, but NCP supremo Sharad Pawar has consistently said that the question of CM’s face be kept on hold till the elections are over.
Already, BJP-led Mahayuti alliance has decided to bombard the state with election rallies. Prime Minister Narendra Modi will be addressing election rallies in Maharashtra from November 5 till 14, for eight days. He will be seeking votes not only for BJP, but also for alliance partners.
On the other hand, the Maha Vikas Aghadi is yet to come out of the woods as far as seat sharing is concerned. Seat sharing is not the sole issue. The main issue is who will become the Chief Minister if Aghadi comes to power.
For now, Uddhav Thackeray is the first claimant for the CM’s chair in Aghadi and there are others waiting in the wings. In Mahayuti, there are three claimants for the chief minister’s post. Eknath Shinde continues to be the CM, but if BJP wins more seats than Shiv Sena (Shinde), then Devendra Fadnavis will surely say that he is going to make a comeback. Ajit Dada Pawar is also dreaming to become the CM.
महाराष्ट्र: बहाना सीटों का, निशाना कुर्सी का
महाराष्ट्र में महायुति के बीच सीटों का झगड़ा दिल्ली में सुलझ गया. फैसला ये हुआ है कि बीजेपी अजीत पवार की NCP के लिए कुछ और सीटें छोड़ेगी. लेकिन महाविकास अघाड़ी में सीटों का फाइनल बंटवारा अभी तक नहीं हो पाया है. महायुति में सीट बंटवारे पर अन्तिम बात करने के लिए देवेन्द्र फडणवीस, अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल बुधवार रात ही दिल्ली पहुंच गए थे.
अमित शाह के साथ बैठक करीब तीन घंटे तक चली. चूंकि 288 में 182 सीटों पर फैसला पहले हो चुका है, इन पर तीनों पार्टियों ने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं. जो 106 सीटें बची हैं, उनमें से ज्यादातर सीटों का बंटवारा बीजेपी और शिंदे की पार्टी में होना था. इससे अजित पवार नाखुश थे. वो NCP के लिए ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे. अमित शाह ने मीटिंग में तीनों पार्टियों के नेताओं से कहा कि सीटों का फैसला तो हो जाएगा लेकिन पहले ये तय कर लीजिए कि उम्मीदवारों का एलान होने के बाद किसी पार्टी का कोई बागी उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतरेगा, अपने नाराज नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी पार्टी की होगी क्योंकि सबसे ज्यादा नुकसान बागी उम्मीदवार करते हैं.
इसपर अजित पवार और एकनाथ शिन्दे ने सहमति जताई. 106 में से 83 सीटों पर भी तीनों पार्टियों में सहमति बन गई, लेकिन 23 सीटों पर मामला उलझा हुआ था. इनमें ज्यादा विवाद मुंबई की सीटों को लेकर था. तय हुआ कि अजित पवार को पहले से ज्यादा सीटें मिलेंगी और दूसरी मुंबई की बीस सीटों पर बीजेपी लड़ेगी और 13 सीटों एकनाथ शिन्दे की शिवसेना लड़ेगी.
अजित पवार की समस्या ये है कि उनकी NCP में कई भारी भरकम नेता हैं, सब अपने बेटे-बेटियों, भाई-भतीजों को टिकट दिलाना चाहते हैं . अगर सीट अजित दादा के हिस्से में नहीं आई तो यही नेता तुरंत अपने उम्मीदवार मैदान में उतार देंगे और फिर शरद पवार की NCP से टिकट मांग लेंगे.
अमित शाह ने कहा कि बगावत नहीं होनी चाहिए और इसकी जिम्मेदारी अजित पवार और एकनाथ शिंदे के कंधों पर डाल दी लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि अजित पवार की NCP और शिंदे की शिवसेना दोनों के नेताओं के पास अन्य विकल्प उपलब्ध हैं.
कुछ हद तक ये बीजेपी में भी होगा लेकिन संगठन और RSS के लोग कोशिश करेंगे तो बगावत करने वालों को मना लेंगे. एकनाथ शिंदे और अजित पवार के पास एक बड़ा फायदा है. शिवसेना का ओरिजनल निशान तीर कमान शिंदे की सेना के पास है और NCP का ओरिजनल निशान घड़ी अजित पवार के पास है.
उधर, महाविकास अघाड़ी के सामने झगड़ा सिर्फ सीटों के बंटवारे का नहीं है. बात इससे कहीं बड़ी है. सीटों की झगड़े की जड़ इस बात में है कि अगर अघाड़ी चुनाव जीती तो सीएम की कुर्सी पर कौन बैठेगा.
मुंबई में ‘इंडिया टीवी’ के ‘चुनाव मंच’ में आदित्य ठाकरे ने कहा कि महाविकास अघाड़ी का चेहरा सीटों के बंटवारे के बाद किया जाएगा. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कह दिया कि महाराष्ट्र के लोग आज भी उद्धव ठाकरे के शासन को याद करते हैं..
‘चुनाव मंच’ में उद्धव की पार्टी के एक और नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने दावा किया कि पॉपुलैरिटी रैंकिग्स में उद्धव ठाकरे सबसे आगे हैं. उनका कहना था कि मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान ना करना, रणनीति का हिस्सा है. मेरा ये मानना है कि महाविकास अघाड़ी के सामने झगड़ा सिर्फ सीटों के बंटवारे का नहीं है. सीटों के झगड़े की जड़ इस बात में है कि अगर अघाड़ी चुनाव जीती तो सीएम की कुर्सी पर कौन बैठेगा. उद्धव सबसे बड़े दावेदार हैं.
लेकिन ये समस्य़ा महायुति की भी है. यहाँ तो मुख्यमंत्री पद के तीन-तीन दावेदार हैं. शिन्दे आज हैं, पर चुनाव जीते तो BJP की सीटें ज़्यादा होंगी और फड़नवीस कहेंगे, मैं लौट के आऊंगा. सपना अजित दादा का भी है.
Determined India, China’s compulsion : Deal done
Prime Minister Narendra Modi and Chinese President Xi Jinping on Wednesday put their seal of approval on the agreement between India and China on resuming patrolling near the friction points in eastern Ladakh. The two leaders also decided to resume Special Representative level talks to iron the vexed India-China boundary dispute. These talks have not taken place since 2019, when tension flared up in Dokalam and Ladakh. Both the leaders decided to take relations forward from a “strategic and long-term perspective, enhance strategic communication and explore cooperation to address developmental challenges.”
The immediate outcome of the bilateral meeting could be that India would soon reopen its doors for Chinese investment, which Xi Jinping needs badly. But the pace of reopening investment shall depend on what happens on the ground in Ladakh and whether Chinese army implements the agreement sincerely. It was also decided in Wednesday’s summit meeting that India and China’s special representatives will discuss resuming Mansarovar pilgrim yatra.
External Affairs Minister S. Jaishankar, National Security Adviser Ajit Doval, Foreign Secretary Vikram Misri and India’s Sherpa at BRICS Dammu Ravi were present with PM Modi at the meeting, while the Chinese President was assisted by Foreign Minister Wang Yi and Chinese Communist Party secretary Cai Qi.
Before the meeting began, Prime Minister Modi said, “mutual respect, mutual trust and mutual sensitivities” were essential for moving forward in bilateral relations. President Xi said, both India and China were two big economic powers and they should present an example of friendship to the rest of the world. Jinping said, both India and China want a multi-polar world and end Western hegemony.
The meeting between Prime Minister Modi and President Xi is an important one and it has ended five years of tense deadlock. One needs to revisit the background in which India-China friendly relations went on a downward spiral because of tension near LAC.
In Dokalam near the Bhutan border, when Chinese troops confronted the Indian army, our brave jawans stood their ground for 72 days and did not allow the Chinese troops to move an inch forward. China again broke mutual trust, when its army ignited tension in Ladakh. It built big infrastructures on its side of the border which posed a security risk for India. India became active on a war footing, built roads, bridges and tunnels near the border at breakneck speed and under PM Modi’s instructions, made mirror deployment of its troops to match Chinese buildup. It was then that the Chinese strategists realized that this was a new India, which was not going to be browbeaten.
In the last three years, Chinese army did not make any big transgression, and instead, sent feelers for resumption of trade and investment, even as talks on reducing border tension was going on. The downslide in investment and trade also affected Indian industrial sectors like electronics, pharma and chemicals, which were dependent on China for procuring raw materials.
Despite facing losses, India stood its ground saying that until and unless there is agreement on the border standoff, talks on other issues cannot be reopened. India did not bow despite economic losses. Ultimately, China understood and Indian diplomacy succeeded.
After several months of talks, China agreed for patrolling deal to be followed by disengagement. By reaching a deal, India and China have told the rest of the world that they were moving forward to normalize relations. Prime Minister Modi’s personal friendship with Russian President Vladimir Putin helped in bringing about agreement.
Though such intervention are never admitted officially, one point is clear: India has told the world that it shall never compromise with its self-respect in any situation. This was underlined by PM Modi at Wednesday’s bilateral, when he said that peace and stability on the border was a top priority for both countries, but, in the next sentence, he said, that “mutual trust, mutual respect and mutual sensibilities” were of essence for improving relations. Modi’s message is clear: India wants good relations with its neighbours, but it will never compromise on the issue of self-respect.
भारत की दृढ़ता, चीन की विवशता : रास्ता मिल गया
पांच साल बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग की रूस में बैठक हुई. मोदी ने शी जिनपिंग की आंखों में आंख डाल कर कहा कि सीमा पर शान्ति के लिए, भारत और चीन के बीच जो सहमति बनी है, वो उसका स्वागत करते हैं.
मोदी ने कहा कि आज वो शी जिनपिंग से दोनों देशों के रिश्तों के बारे में खुले मन से सकारात्मक बात करना चाहते हैं. पचास मिनट चली इस बैठक में तय हुआ कि भारत और चीन सीमा विवाद को स्थाई तौर पर सुलझाने के साथ साथ आर्थिक मोर्चे पर भी मिलकर काम करेंगे.
आज की बातचीत का एक असर ये होगा कि भारत चीनी कंपनियों के पूंजीनिवेश के लिए अपने दरवाजे फिर से खोल देगा. शी जिनपिंग को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए इसकी बहुत ज़रूरत है. लेकिन ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि जडमीनी स्तर पर क्या वाकई में शांति स्थापित हो पाती है.
मोदी और शी जिंगपिंग की बैठक में तय हुआ कि सीमा पर शान्ति होने के बाद अब मानसरोवर यात्रा को शुरू करने पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में बात होगी. बुधवार की बैठक में भारत की तरफ़ से विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल, विदेश सचिव विक्रम मिसरी और ब्रिक्स में भारत के शेरपा दम्मू रवि शामिल हुए. वहीं, जिनपिंग के साथ चीनी प्रतिनिधिमंडल चीन के विदेश मंत्री वांग यी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव काए ची भी इस बैठक में शामिल हुए.
बैठक के बाद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि दोनों नेताओं ने आपसी कारोबार बढ़ाने, सहयोग के नए रास्ते तलाशने और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की. मोदी ने ब्रिक्स देशों के फाइनेंशियल इंटीग्रेशन की कोशिशों के लिए जिनपिंग की तारीफ़ की और इसमें पूरे सहयोग का वादा किया. दोनों नेताओं ने सीमा विवाद हल करने के लिए विशेष प्रतिनिधयों को जल्द से जल्द मिलने के लिए कहा. विदेश सचिव ने बताया कि जब विशेष प्रतिनिधयों की अगली बैठक होगी, तब कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने को लेकर भी बात होगी. प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच की मुलाकात बहुत महत्वपूर्ण है, 5 साल का गतिरोध आज दूर हुआ.
भारत और चीन के अच्छे भले रिश्ते कैसे खराब हुए, इसकी पृष्ठभूमि को आज याद करने की जरूरत है. जब डोकलाम में चीन सीमा पर भारत से टकराया तो हमारे बहादुर जवान 72 दिन तक चीनी सैनिकों के सामने डटे रहे. चीन ने एक बार फिर विश्वास को तोड़ा जब गालवान घाटी में हमारे जवानों पर हमला हुआ. सरहद के दूसरी तरफ चीन बॉर्डर पर जबरदस्त इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर चुका था. ये भारत के लिए खतरा था .
भारत ने भी युद्ध स्तर पर तैयारी की. जल्दी-जल्दी सड़कें, पुल और सुरंगें सब कुछ बनाई..फौज को बराबर की ताकत में चीन के सामने खड़ा कर दिया, तब जाकर चीन को लगा कि ये नया हिंदुस्तान है, जो डरने वाला नहीं है. पिछले 3 साल से चीन ने सरहद पर कोई बड़ी हिमाकत नहीं की बल्कि चीन की तरफ से लगातार Feeler दिए जा रहे थे कि सीम विवाद पर पर बात चलती रहे, लेकिन भारत चीन के साथ कारोबार और निवेश शुरु कर सकता है, व्यापारिक रिश्ते फिर से कायम किए जा सकते हैं.
चीन से खराब रिश्तों का असर भारत पर भी पड़ रहा था. भारत बहुत सारे सेक्टर्स में कच्चे माल के लिए चीनी कंपनियों पर निर्भर है, इलेक्ट्रॉनिक, दवा, केमिकल्स के क्षेत्रों में भारत को नुकसान हो रहा था, पर इसकी परवाह किए बगैर भारत इस बात पर अड़ा रहा कि जब तक सीमा पर समझौता नहीं हो जाता, बाकी मुद्दों पर बात नहीं हो सकती.
आर्थिक नुकसान उठाने के बावजूद भारत झुका नहीं. आखिरकार चीन को ये बात समझ आई. भारत की कूटनीति रंग लाई. कई महीनों की बातचीत के बाद चीन ने सीमा पर पेट्रोलिंग और पीछे हटने पर समझौता किया.
पिछले दो दिन में ये बात भारत और चीन, दोनों की तरफ से सारी दुनिया को बता दी गई कि दोनों देश अपने रिश्ते सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की दोस्ती भी काम आई.
हालांकि ये बातें आधिकारिक तौर पर बताई नहीं जाती, लेकिन एक बात साफ है. भारत ने दुनिया को ये बता दिया कि वो किसी भी परिस्थिति में अपने आत्म सम्मान से समझौता नहीं करेगा.
आज भी शी जिनपिंग के साथ बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि सीमा पर शांति, स्थिरता, दोनों देशों की प्राथमिकता है लेकिन अगले ही वाक्य में मोदी ने कहा आपसी रिश्ते बेहतर करने के लिए परस्पर विश्वास और परस्पर सम्मान भी आवश्यक है.
मोदी का संदेश स्पष्ट है. भारत अपने पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते बनाना चाहता है लेकिन भारत का आत्म सम्मान सर्वोपरि है.
हिंदी चीनी भाई भाई: स्वागत करो, पर ज़रा ध्यान से
रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात से ठीक एक दिन पहले बीजिंग में चीन ने ऐलान कर दिया कि पूर्वी लद्दाख में तनाव खत्म होगा. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि बातचीत के कई दौर के बाद भारत के साथ सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में सहमति बन गई है. दोनों देश LAC पर अपनी अपनी सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमत हुए हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि लंबे वक्त से भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर बात हो रही थी. इन बैठकों में LAC पर जारी तनाव को खत्म करने का रोडमैप तैयार हो गया है. अब आने वाले वक्त में धीरे धीरे इसे अमली जामा पहनाया जाएगा. इसका मतलब ये हुआ कि पूर्वी लद्दाख में मई 2020 की स्थिति बहाल होगी. चीन और भारत के सैनिक बैरक में लोटेंगे. दोनों देशों की फौज अपने अपने इलाके में पहले की तरह गश्त करेंगी.
भारत और चीन ब्रिक्स के दो बड़े देश हैं. दोनों देशों ने अपनी सीमा पर जारी तनाव को खत्म करके दुनिया के उन देशों को बड़ा संदेश दिया है, जहां युद्ध की स्थिति है. हालांकि समझौते का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन पता चला है कि जो समझौता हुआ है, उसके मुताबिक, भारत और चीन की सेनाएं अब डेपसांग प्लेंस और डेमचोक के इलाक़ों में अपनी अपनी सीमा के भीतर गश्त लगा सकेंगी. LAC यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पैट्रोलिंग को लेकर जो समझौता हुआ है, उसमें दोनों देशों के सैनिक महीने में दो बार अपने अपने इलाक़ों में निगरानी के लिए गश्त लगा सकेंगे. पेट्रोलिंग के दौरान कोई टकराव न हो, इसके लिए तय हुआ है कि दोनों देशों की पैट्रोलिंग टीम्स में 15 से ज़्यादा सैनिक नहीं होंगे और दोनों देशों के सैनिक LAC से 200 से तीन सौ मीटर दूर रहकर ही गश्त करेंगे.
समझौते के तहत, पैट्रोलिंग पार्टी भेजने से पहले चीन और भारत के कमांडर्स आपस में बात करेंगे, एक दूसरे से को-ऑर्डिनेट करेंगे. कुल मिलाकर कोशिश ये है कि दोबारा ऐसी स्थिति पैदा न हो जैसी 2020 में गलवान में हुई थी. चीन और भारत के बीच लद्दाख में पिछले चार साल से सीमा विवाद चल रहा है.
मई 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक भिड़ंत हुई थी जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे और चीन के काफी सैनिक मारे गए थे. उसके बाद जून-जुलाई 2020 में दोनों देशों के बीच, गलवान और हॉट स्प्रिंग्स इलाक़ों में डिस-एंगेजमेंट हुआ था. 2021 में लद्दाख के गोगरा और पैंगॉन्ग सो इलाक़ों में भी चीन और भारत ने अपने अपने सैनिक पीछे हटा लिए थे लेकिन, डेपसांग प्लेन्स और डेमचोक बॉर्डर प्वाइंट्स पर चीन और भारत के सैनिक चार साल से आमने सामने खड़े हुए हैं.
इस दौरान भारत और चीन के सैनिक कमांडर्स और राजनयिकों के बीच लगातार बातचीत हो रही थी और अब दोनों देशों के बीच डेपसांग प्लेन्स और डेमचोक में गश्त को लेकर भी समझौता हो गया है. डेपसांग में भारतीय सैनिक अब पैट्रोलिंग प्वाइंट 10 से 13 तक गश्त लगा सकेंगे, जो पिछले चार साल से बंद थी.डेपसांग से चीन अपने सैनिक पीछे हटाएगा, वहां बनाए गए ढांचों को तोड़ेगा.
इस समझौते के मुताबिक़, सर्दियों में दोनों देश अपने सैनिक LAC से पीछे हटाएंगे. बेहतर तालमेल के लिए चीन और भारत के कमांडर्स के बीच हर महीने में एक बैठक होगी.
भारत और चीन के बीच सरहद को लेकर जो समझौता हुआ है उसका मतलब समझने की जरूरत है.
पहली बात, अब चीन की फौज उन इलाक़ों से पीछे हटेगी जहां पर उसने 4 साल पहले कब्जा कर लिया था. LAC पर अप्रैल 2020 वाली स्थिति बहाल होगी. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर जो भी तनाव है, उसे दूर करने के लिए प्लैन तैयार किया गया है.
दूसरी बात, भारत और चीन के बीच रिश्ते खराब होने से दोनों देशों के आपसी कारोबार पर जो असर पड़ा था वो भी अब धीरे धीरे खत्म हो जाएगा. भारत के बहुत सारे उद्योग ऐसे हैं जो कच्चे माल के लिए चीन पर आश्रित हैं, अब उनकी मुश्किलें कम हो जाएंगी.
तीसरी बात, भारत में राहुल गांधी बार-बार चीन का मसला उठाते थे. ओवैसी भी बार-बार चीन के कब्जे की बात करते थे. अब इन नेताओं को चीन के बारे में बात करने के लिए मसाला नहीं मिलेगा.
चौथी बात, ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच तनाव कम करने में, रिश्ते सुधारने में पुतिन ने एक बड़ी भूमिका अदा की है.
India-China Bhai Bhai: Welcome, but be careful
A day before Prime Minister Narendra Modi was due to have a first bilateral meeting in five years with Chinese President Xi Jinping in Kazan(Russia), a Chinese foreign ministry spokesman in Beijing confirmed that India and China have “reached a solution on relevant matters” (in eastern Laddakh). He said, China would work with India to implement it, but declined to provide details.
Indian Foreign Secretary Vikram Misri had announced on Monday that both the countries have agreed on patrolling arrangements following negotiations to end the four-year-long standoff. Misri expressed hope that this may lead to eventual disengagement of armies deployed on both sides of Line of Actual Control and eventually a resolution of disputes that arose in 2020.
Details of the agreement that are unofficially available show that Indian and Chinese troops can now patrol within their borders in Depsang Plains and Demchok. Troops of both countries can patrol their areas twice a month. To avoid any chance of confrontation, each patrolling team on both sides will not have more than 15 soldiers. Troops of both countries can patrol by staying 200-300 metres away from LAC.
Under the agreement, Indian and Chinese army commanders will coordinate between each other before sending their patrolling parties. The objective is to avoid recurrence of confrontation that had taken place in Galwan valley in May 2020, when 20 Indian soldiers were martyred and a large number of Chinese troops were killed. In July, 2020, both armies had disengaged in Galwan and Hot Springs, and in 2021, they had withdrawn their troops in Gogra and Pangong Tso. But both troops are still locked in a close confrontation for the last four years in Depsang Plains and Demchok border points. Now, the agreement also covers both these areas.
In Depsang, Indian troops can patrol upto Point 10 and Point 13, which had come to a standstill during the last four years. Chinese army will withdraw its troops from Depsang and dismantle its sctructures.
According to the agreement, troops of both countries will withdraw from LAC during winter, and for better coordination, commanders of both sides will have meetings every month. Though official details are not available, one must understand the broad meaning behind this agreement.
One, Chinese troops will return from those areas they had occupied four years ago, and the status quo situation of April, 2020, will be restored. A plan has been prepared for resolving the border standoff that has created tension. Two, the adverse effects on India-China bilateral trade that had taken place following the border standoff, will now end in a phased manner. There are many industrial sectors in India that are dependent on raw material procurement from China. These sectors can now heave a sigh of relief. Three, Congress leader Rahul Gandhi had been frequently raising the China border issue at his public meetings, while AIMIM chief Asaduddin Owaisi had been alleging that Chinese troops have occupied Indian territory. These leaders will now lose an issue that they have been raising frequently. Four, it seems that Russian President Vladimir Putin played an important role behind the scenes to bring about a reduction in tension between Modi’s India and Jinping’s China. India and China are the founder members of BRICS group. By ending tension on the border, they have conveyed an important message to those parts of the world which are facing conflicts. For example, Ukraine and Middle East.
In his bilateral meeting with President Putin on Tuesday, Modi stressed on the point that “war cannot be a solution for any dispute and solution can be arrived at only through negotiations”.
भारत-पाकिस्तान: रिश्ते सुधारने हैं तो आतंकवाद रोको
जम्मू कश्मीर में नई सरकार बनने के सौ घंटे के भीतर आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करके सात बेकसूर लोगों की हत्या कर दी. दहशतगर्दों ने रात के अंधेरे में उस कैंप को निशाना बनाया, जिसमें प्रवासी मज़दूर रहते हैं. इस हमले में आतंकवादियों की गोलियों के शिकार हुए लोगों में पंजाब, मध्य प्रदेश और बिहार को लोग शामिल हैं. कश्मीर घाटी के एक डॉक्टर शाहनवाज़ डार की भी मौत हुई है जो इस कैंप में मज़दूरों की देखभाल के लिए रोज़ जाते थे. इस हमले की ज़िम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट नामक पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन ने ली है. ये लश्कर-ए -तैयबा का बदला हुआ नाम है. जो हमला हुआ उसे दो से तीन पाकिस्तानी दहशतगर्दों ने अंजाम दिया. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि हमला करने वाले ज्यादा वक्त तक ज़िंदा नहीं रहेंगे, सुरक्षा बल के जवान बेगुनाहों का खून बहाने वालों को उनके अंजाम तक पहुंचाएंगे. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि दहशतगर्दों को जम्मू कश्मीर की जनता ने चुनाव में जवाब दे दिया है, लोग विकास चाहते हैं और वो किसी कीमत पर विकास के कामों पर ब्रेक नहीं लगने देंगे. डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला ने सीधे सीधे पाकिस्तान को संदेश दिया, कहा कि पाकिस्तान को इस तरह की हरकतें नहीं करनी चाहिए वरना उसे अंजाम भुगतना पड़ेगा. अब इस मामले की जांच NIA ने शुरू कर दी है.
हमले के पीछे TRF के चीफ शेख़ सज्जाद गुल का हाथ बताया जा रहा है. सज्जाद गुल पर NIA ने 2022 में दस लाख रुपये का इनाम रखा था. सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक़ सज्जाद गुल अपने तीन साथियों, सलीम रहमानी, सैफुल्लाह साजिद जट और बसित अहमद डार के साथ मिलकर काफ़ी दिनों से गांदरबल इलाक़े की रेकी कर रहा था. वो किसी बड़े हमले को अंजाम देकर शोहरत बटोरना चाहता था और ये हमला इसी मक़, सद से किया गया. पिछले एक साल के दौरान जम्मू कश्मीर में आंतकवादियों ने छिटपुट हमले किए थेबिहार और यूपी के मजदूरों को अलग अलग घटनाओं में निशाना बनाया गया था. जून में एक बस पर हमला करके नौ लोगों की हत्या की थी, लेकिन इस तरह किसी बड़ी परियोजना में लगे प्रवासी मजदूरों के कैंप पर घात लगाकर हमला बारह साल के बाद हुआ है. इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में जम्हूरियत की जीत से बौखलाया हुआ है.. जम्मू कश्मीर में जो विकास हो रहा है, रेल, सड़क, पुल, टनल्स बनाई जा रही है, इन प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम हो रहा है. विकास की इस रफ़्तार को पाकिस्तान रोकना चाहता है. इसीलिए मजदूरों को डराने की नीयत से ये हमला किया गया. पाकिस्तान को अपनी नापाक हरकत की क़ीमत चुकानी पड़ेगी. अभी तीन दिन पहले पाकिस्तान में मियां नवाज शरीफ भारत से दोस्ती की बात कर रहे थे. वो इमरान खान की ग़लतियों की याद दिला रहे थे लेकिन नवाज़ शरीफ को ये समझना पड़ेगा जब तक पाकिस्तान की फौज भारत में दहशतगर्द भेजना बंद नहीं करती, जब तक ISI आतंकवादियों को पनाह, पैसा और ट्रेनिंग देना बंद नहीं करती, तब तक भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते.
India-Pak relations: Terrorism has to stop for normalcy
The dastardly terror attack on innocent labourers within 100 hours of a new National Conference government being sworn in Jammu & Kashmir has come as a shock to people both in the Valley and the rest of the country. Among those killed were labourers from Bihar, MP and Punjab who were gunned down by Pakistan-backed terrorists, during dinnertime at a campsite of a tunnel construction company in Ganderbal district. The Resistance Front (TRF), an offshoot of Pakistan-based Lashkar-e-Taiba claimed responsibility. Among those killed was a Kashmiri doctor Dr Shahnawaz Dar, who was supposed to return home for the post-wedding function of his daughter.
Architectural designer Shashi Bhushan Abrol also fell to the bullets of terrorists. Lt. Governor of J&K Manoj Sinha and Home Minister Amit Shah have asked security forces to track down and eliminate the perpetrators of this dastardly attack. Chief Minister Omar Abdullah said, people of J&K have given their reply to terrorists by taking part in elections in large numbers and they would never allow any halt in the pace of progress. National Conference leader Dr Farooq Adullah said, Pakistan will have to face consequences if it continues with such terror attacks. Already, National Investigation Agency has begun its probe and security has been strengthened near all infrastructure projects in the Valley. Pakistan-based Sajjad Gul, the chief of TRF, is said to be the brain behind this terror attack. During the last one year, terrorists had been carrying out sporadic attacks against labourers from Bihar and UP in J&K.
In June this year, they had killed nine persons after attacking a bus, but this was a major attack, after 12 years, when a migrant labourers’ camp at a tunnel project, which will link Srinagar with Leh, was targeted. Clearly, it shows Pakistan’s frustration over the victory of democracy in Jammu & Kashmir, where both Lok Sabha and assembly elections were held peacefully this year and a large number of voters participated. Pakistan wants to stop the pace of work that is going on railway, roads, bridges and tunnels, and in order to achieve this, it has asked the terrorists to take out soft targets like migrant labouers. Pakistan will have to pay for its pernicious act. It was hardly three days ago when Pakistan Muslim League (N) chief Mian Nawaz Sharif met Indian mediapersons and spoke about the need for burying the past and forging ffriendship with India. Nawaz Sharif was explaining how former PM Imran Khan followed anti-India policies which have brought about a stalemate in bilateral relations. Nawaz Sharif must understand one key point: Until and unless the Pakistan army stops sending terrorists to India, and its spy agency ISI discontinue giving training and funds to terrorists, relations between India and Pakistan can never become normal.