महाराष्ट्र का बॉस कौन?
महाराष्ट्र में सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया. आखिरी स्पीड ब्रेकर भी खत्म हो गया. एकनाथ शिन्दे ने कहा “सब चांगला आहे” (सब ठीकठाक है). शिन्दे ठीक हो गए, उनकी सेहत भी ठीक है, और मूड भी. देवेन्द्र फडणवीस ने ‘वर्षा’ बंगले पर जाकर एकनाथ शिन्दे से मुलाकात की. सारी बातें तय हो गईं. गुरुवार को फडणवीस का शपथग्रहण होगा. एकनाथ शिन्दे और अजित पवार डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ लेंगे. आजाद मैदान में शपथ ग्रहण की तैयारियां हो रही हैं.
अभी तक जो तय हुआ है उसके मुताबिक, बीजेपी अपने पास गृह, राजस्व विभाग रखेगी. एकनाथ शिन्दे की शिवसेना को शहरी विकास विभाग मिलेगा और अजित पवार के पास वित्त रहेगा. जो फॉर्मूला अभी तक तय है, उसमें बीजेपी के पास 21 से 22, शिवसेना को 12 और अजीत पवार की एनसीपी को 9 से 10 विभाग मिलेंगे.
5 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह समेत केंद्र सरकार के कई मंत्री, एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री समेत कुल 70 नेता शामिल होंगे. इसके अलावा 400 से ज्यादा साधु संतों को भी न्योता भेजा गया है.
महाराष्ट्र में जितनी जबरदस्त जीत हुई थी, सरकार बनाने में देरी ने उसकी चमक उतनी ही कम कर दी. शिंदे ने जो नखरे दिखाए, उसकी वजह से जो हारकर हताश बैठ गए थे, उन्हें कमेंट करने का मौका मिला. किसी ने कहा, दिल्ली वाले डमरु बजा रहे हैं और महायुति वाले नाच रहे हैं, किसी ने कहा, बारात आ चुकी है. पर दूल्हा कौन है अभी तक पता नहीं. लेकिन आज ये सारी बातें बेमानी हो गईं. दूल्हा कौन हैं, ये भी पता चल गया. बारात में कौन कौन आएगा, इसका ऐलान भी हो गया और नाराज़ फूफाजी भी मिलने के लिए मान गए.
राजनीति के दांवपेंच के लिहाज से देखें तो अजित पवार दिल्ली आकर बैठ गए थे, शिंदे भी अमित शाह के फोन का इंतजार कर रहे थे. इसे समझने की जरूरत है. शिंदे और अजित दादा सीधे दिल्ली से बात करना चाहते थे. वो फडणवीस को बायपास करने के चक्कर में थे लेकिन उन्हें समझा दिया गया कि महाराष्ट्र की सरकार बनाने और चलाने का जिम्मा देवेंद्र फडणवीस को सौंप दिया जाएगा. तीनों पार्टियों में से किसके कितने मंत्री बनेंगे, ये फडणवीस से बात करके तय करना होगा. शिवसेना और NCP में से कौन-कौन मंत्री बनेगा, ये शिंदे और अजित पवार को तय करना होगा. लेकिन किसको कौन सा मंत्रालय दिया जाएगा, इसके लिए उन्हें फडणवीस से बात करनी होगी. मोटा भाई का मोटा सा मैसेज ये है कि अब महाराष्ट्र की सरकार दिल्ली से नहीं चलेगी. फैसले मुंबई में लिए जाएंगे. और देवेंद्र फडणवीस को फ्री हैंड दिया जाएगा. सब कहेंगे, जय महाराष्ट्र!
Maharashtra : Who is the Boss ?
The last speed-breaker in the path of Devendra Fadnavis taking over as Chief Minister of Maharashtra was removed on Tuesday after the outgoing caretaker CM Eknath Shinde met him at his residence. Shinde along with NCP leader Ajit Pawar will be sworn in as Deputy CM on Thursday at Azad Maidan, where preparations for the ceremony are under way.
Shinde, who had been sulking for the last few days and was citing health reasons for not attending meetings with alliance partners, at last, agreed to meet Fadnavis to sort out the issue. It was decided that BJP would keep Home and Revenue portfolios, while Urban Affairs portfolio will be given to Shinde’s Shiv Sena and Finance to Ajit Pawar. Nearly 21 to 22 portfolios will be handled by BJP, 12 portfolios will go to Shiv Sena and 9 to 10 portfolios will be given to NCP, reports said.
The grand swearing-in ceremony will be attended by Prime Minister Narendra Modi, several NDA chief ministers and top BJP leaders. Needless to say that with Shinde sulking for several days resulting in delay in government formation, the shine was taken off from the sweeping victory of Mahayuti in Maharashtra. Shinde displayed tantrums and it was because of this that those leaders who were defeated at the hustings, got the chance to make snide remarks like, “People sitting in Delhi are playing ‘damru’ (pellet drum) and Mahayuti leaders are dancing to their tune”. Some remarked that the “wedding procession is ready, but nobody knows who will be the bridegroom”.
All these snide comments have now stopped after it was decided who will lead the “wedding procession”. The unhappy, sulking “Phoopha Ji” (uncle), alluding to Shinde, has at last agreed to join the procession. The political suspense on Maharashtra was palpable. Ajit Pawar stayed put in Delhi, while Shinde was waiting for Amit Shah’s phone call. One must understand the political nuances. Both Ajit Dada and Shinde wanted to negotiate directly with Delhi and wanted to bypass Fadnavis. Both were clearly told that the task of forming and running the government has been given completely to Devendra Fadnavis and there shall be no outside interference. Both the leaders were told to talk with Fadnavis and decide who will become ministers from Shiv Sena and NCP in the new government. Fadnavis will have the discretion to decide about portfolios of all ministers and both the leaders should speak to him only.
The message was clear from Mota Bhai: the government in Maharashtra will not run from Delhi. All the decisions will be taken in Mumbai and Devendra Fadnavis will be given a free hand. Everybody must stand up and say, Jai Maharashtra!
फड़णवीस का राज तिलक : शिंदे बने नाराज़ ‘फूफाजी’
महाराष्ट्र में 5 दिसंबर को नई सरकार का गठन होगा. देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. 4 दिसंबर को बीजेपी विधायक दल फड़णवीस को अपना नेता चुनेगा. लेकिन नई सरकार में एकनाथ शिन्दे किस रोल में होंगे, ये फिलहाल तय नहीं है क्योंकि शिन्दे नाराज़ बताए जा रहे हैं. उन्होंने सेहत ठीक न होने को वजह बता कर सोमवार को सारी मीटिंग्स रद्द कर दी, इसीलिए चर्चाओं का दौर शुरू हुआ.
एकनाथ शिन्दे के बेटे श्रीकांत शिन्दे ने अपने बारे में साफ किया कि वो न डिप्टी सीएम बनने जा रहे हैं और न ही उन्होंने केन्द्र सरकार में कोई पद मांगा है. उन्होंने अपने पिता के नाराज़ होने की खबरों को निराधार बताया.
विभागों के बंटवारे पर फैसला करने के लिए अमित शाह ने देवेन्द्र फडनवीस, अजित पवार और एकनाथ शिन्दे को दिल्ली बुलाया था लेकिन शिन्दे ने तबियत खराब होने की बात कहकर दिल्ली आने से इंकार कर दिया. खबर है के शिंदे डिप्टी सीएम बनने के साथ साथ गृह विभाग चाहते हैं, पर इसके लिए बीजेपी नेतृत्व तैयार नहीं है. उन्हें शहरी विकास विभाग देने की पेशकश की गई है.
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ट्रेंड सा हो गया है. जब भी मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले, वर्षा, के लिए कोई बारात निकलती है तो एक न एक फूफाजी नाराज़ जरूर हो जाते हैं. पिछली बार उद्धव मुंह फुलाकर बैठ गए थे.सारे रिश्ते नाते तोड़कर फडणवीस की घोड़ी भगाकर ले गए थे और फिर दूसरी बारात में शामिल हो गए.
इस बार शिंदे नाराज फूफा जी बनकर बैठे हैं. बस से नीचे उतरने को तैयार नहीं हैं. उन्हें दुल्हा नहीं बनाया, घोड़ी पर नहीं चढ़ाया, इसीलिए नाराज हैं. लेकिन इस बार फडणवीस का कवच अभेद्य है. उनकी सेना भी बड़ी है. इसीलिए शिंदे थोड़े बहुत नखरे कर सकते हैं पर अन्ततोगत्वा उन्हें मानना ही पड़ेगा. इस बार जनता का आदेश ऐसा है. इसके आगे शिंदे को झुकना ही पड़ेगा. इस बात को वे जितनी जल्दी समझ जाएं, उतना बेहतर होगा.
Sulking Shinde : Against People’s Will
A new government led by Devendra Fadnavis will be sworn in on December 5 with NCP leader Ajit Pawar as Deputy CM. Prime Minister Narendra Modi is expected to be present at the oath taking ceremony. On December 4, BJP legislative party is expected to elect Fadnavis as its leader in the presence of central observers, Nirmala Sitharaman and Vijay Rupani.
The role of outgoing CM Eknath Shinde in the new government is not yet clear. Shinde has cancelled all his meetings citing health reasons, while his son Shrikant Shinde has described reports about his joining as Deputy CM as ‘baseless’. Shrikant Shinde clarified, he had neither sought any portfolio at the Centre, nor was he going to become the Deputy CM.
Eknath Shinde has not yet reacted to the ongoing political developments. There are reports that he is unhappy because his demand for Home portfolio was not accepted by the BJP leadership. Instead, he was offered Urban Development portfolio.
Home Minister Amit Shah had requested Fadnavis, Ajit Pawar and Eknath Shinde to come to Delhi for talks, but Shinde, citing health reasons, did not go.
In recent years, it has almost become a trend in Maharashtra politics, for any one of the top leaders in the ruling combination, sulking when a new government is formed. In North India, there is a popular saying about “the uncle (phoopha) who always sulks at the wedding”.
Five years ago, when BJP-Shiv Sena alliance won, Shiv Sena chief Uddhav Thackeray started sulking. He called off his alliance with BJP and joined hands with Congress and Sharad Pawar to become the CM. He ditched Fadnavis’ ‘baaraat’ to head another ‘baaraat’ (bridegroom procession).
This time, too, Eknath Shinde has become the sulking “phoopha”. He is unwilling to leave the bridegroom procession bus, only because he was not made the bridegroom.
But, this time Devendra Fadnavis’ ‘kavach’ (armour) is invincible. Shinde may indulge in tantrums, but ultimately he will have to accept. The people’s mandate for BJP is quite clear and he has to bow before the people’s will. The sooner he realizes this, the better.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर ज़ुल्म : क्या यूनुस सरकार जिहादियों से डरती है ?
जुमे की नमाज़ के बाद शुक्रवार को बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जम कर हिंसा हुई. बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े शहर चटगांव में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने ख़ूब उत्पात मचाया. जुमे की नमाज़ के बाद हिज़्बुत तहरीर, हिफ़ाज़ते इस्लाम और जमाते इस्लामी के कार्यकर्ता चटगांव के हिन्दू बहुल ठाकुरगांव, कोतवाली और टाइगर पास मुहल्लों में घुस गए.
कट्टरपंथियों ने पहले इस्कॉन के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की, इसके बाद इस्लामिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हिंदुओं की दुकानों और घरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. हिंदुओं के साथ मार-पीट शुरू कर दी. तीन बड़े मंदिरों में तोड़फोड़ की. मौक़े पर पुलिस मौजूद थी लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया. पुलिस तमाशा देखती रही. इसके बाद जब हालात बेक़ाबू हो गए तो, चटगांव में फौज को तैनात कर दिया गया.
राजधानी ढाका में इस्कॉन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. ढाका की बैतुल मुकर्रम मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद, हिफ़ाज़ते इस्लाम संगठन के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने इस्कॉन के ख़िलाफ़ मार्च किया. इस्कॉन पर पाबंदी लगाने की मांग की. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इस्कॉन एक आतंकवादी हिंदू संगठन है, उस पर बैन लगना चाहिए और इस्कॉन के कार्यकर्ताओं को जेल में डाल देना चाहिए.
बांग्लादेश सरकार ने इस्कॉन के 17 सदस्यों के बैंक खाते 30 दिन तक फ्रीज़ कर दिए हैं. इनमें इस्कॉन के गिरफ़्तार चिन्मय दास का भी बैंक खाता है. कोलकाता में इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने कहा कि खाते फ्रीज़ होने से इस्कॉन के सदस्यों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ कोलकाता में प्रदर्शन हुए. इंडियन सेक्यूलर फ्रंट के वर्कर्स ने बांग्लादेश के डिप्टी हाई कमिशन के बाहर प्रोटेस्ट किया. इंडियन सेक्यूलर फ्रंट, फुरफुरा शरीफ़ के मौलाना अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी है. विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने भी बंगाल में प्रदर्शन किया.
ब्रिटेन की संसद में कंज़रवेटिव पार्टी के सांसद, बॉब ब्लैकमैन ने सरकार से इस मामले में दख़ल देने की मांग की. बॉब ब्लैकमैन ने कहा कि इस्कॉन जैसे शांतिप्रिय संगठन को आतंकवादी संगठन बताकर लोगों को मारा जा रहा है, हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है, उनकी जायदाद लूटी जा रही हैं.
लोक सभा में में विदेश मंत्री जयशंकर ने एक लिखित उत्तर में बताया कि भारत सरकार ने हिन्दुओं की स्थिति पर बांग्लादेश की सरकार से बात की है और हिंदुओं को पूरी सुरक्षा देने को कहा है. जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के जान-माल की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी वहां की अंतरिम सरकार की है और सरकार को उम्मीद है कि बांग्लादेश की सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाएगी.
शनिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक बयान में भारत सरकार से अपील की कि वह बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए विश्व जनमत बनाना शुरु कर दे. होसबाले ने इस्कॉन के गिरफ्तार साधू चिन्मय दास को जेल से तुरंत रिहा करने की मांग की.
ये बात सही है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर भारत सरकार चिंतित है. गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बैठक हुई. लेकिन मामला पड़ोसी मुल्क का है. इसलिए सिर्फ डिप्लोमेटिक चैनल्स का सहारा लिया जा सकता है.सिर्फ बांग्लादेश की सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है.
समस्या यह है कि बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार कट्टरपंथियों के दबाव में है, उनसे डरती है. जिस तरह से हिंसा पर उतारू भीड़ ने शेख हसीना को हटाया, उसके बाद सब भीड़ से डरते हैं.
अब सरकार पर नियंत्रण होने के बाद जमात-ए-इस्लामी और हिफाज़त-ए-इस्लाम जैसे संगठन हिंसा पर उतारू हैं. उन्हें न पुलिस का डर है, न फौज का, न ही उन्हें बांग्लादेश की छवि की परवाह है. इसलिए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म को रोकने में वक्त लगेगा.
Atrocities on Bangladesh Hindus : Does Yunus govt fear fundamentalists ?
Islamic fundamentalist groups, chanting anti-Hindu slogans, vandalized and threw brickbats at three Hindu temples, Santaneshwari Matri Temple, Shani Temple and Santaneshwari Kali Temple, in Chattogram city of Bangladesh on Friday. They broke the gates and structures of the temples. Islamic jihadists then attacked shops and homes of Hindus in Thakurgaon, Kotwali and Tiger Pass localities of Chattogram. They beat up Hindus, but policemen remained mute spectators. Later army was deployed to maintain peace.
In Dhaka, thousands of jihadists came out on the streets demanding ban on ISKCON. The rally was organized by Hefazat-e-Islam, Hizbut Tahrir and Jamaat-e-Islami. The rally began from Baitul Muqarram, the largest mosque, after Jumma prayers.
Meanwhile, Bangladesh government’s Financial Intelligence Unit has frozen bank accounts of 17 people for 30 days. These include jailed monk Chinmoy Krishna Das, all linked to ISKCON. In Kolkata, ISKCON vice-president Radha Raman Das said, their outfit members are having problems in looking after their daily needs.
The developments had their effects in neighbouring West Bengal. In Kolkata, Indian Secular Front workers staged a protest outside Bangladesh Deputy High Commission demanding a stop to atrocities on Hindus. Indian Secular Front is led by Maulana Abbas Siddiqui of Furfura Sharif shrine. Vishwa Hindu Parishad supporters all staged protests in Kolkata.
In the House of Commons, British Conservative Party MP Bob Blackman demanded that the UK government should intervene. He alleged that innocent peaceloving members of ISKCON are being targeted by Islamic jihadists and Hindus are being subjected to atrocities. Their properties are being looted and this must end, he added.
In Indian Parliament, External Affairs Minister S. Jaishankar, in a written reply, said Indian government has spoken to Bangladesh authorities to ensure protection for Hindus and other minorities. MEA spokesperson Randhir Jaiswal said, Indian government was worried about the developments in Bangladesh since the ouster of PM Sheikh Hasina. He expressed hope that Bangladesh courts will ensure justice for jailed ISKCON monk Chinmoy Das.
RSS Sarkaryavah Dattatreya Hosabale in a statement on Saturday demanded immediate halt to atrocities on Hindus in Bangladesh and release of ISKCON monk Chinmoy Das from jail. Hosabale appealed to Indian government to rouse world opinion in order to pressurise Bangladesh government to ensure protection for Hindus.
It is a fact that the government of India is very much concerned about the conditions of Hindus living in Bangladesh. A top-level meeting between Home Minister Amit Shah, External Affairs Minister S. Jaishankar and National Security Adviser Ajit Doval took place on Thursday to decide about measures to be taken. Since the issue relates to a neighbouring country, diplomatic channels are being used to put pressure on the Bangladesh interim government.
The problem is: Mohammad Yunus, who heads the interim government, is under intense pressure from Islamic fundamentalists and fears them. After mobs indulged in violence to unseat Sheikh Hasina from power, other parties and leaders have started fearing mobs. Jamaat-e-Islami and Hefazat-e-Islam, after gaining control on the interim government, are now resorting to violence. Their workers fear neither the police, nor the army. They do not bother about Bangladesh’s world image. It seems that putting a stop to atrocities on Hindus in Bangladesh may take time.
उद्धव से हाथ का साथ छोड़ने को किसने कहा?
महाविकास अघाड़ी में हार के असर खुल कर दिखने लगे हैं. उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी के नेताओं ने महाविकास अघाड़ी से बाहर आने का सुझाव दिया है. पता ये लगा है कि उद्धव ने कल जब पार्टीेेे के उम्मीदवारों के साथ मीटिंग की थी, जिसमें पार्टी के नेताओं, विधायकों और हारे हुए उम्मीदवारों ने उद्धव को ये सलाह दी कि दूसरों के भरोसे चुनाव लड़ना ठीक नहीं है, जो होना था हो गया, अब BMC के साथ साथ महाराष्ट्र के कुल चौदह नगर निगमों के चुनाव होने हैं, स्थानीय निकाय चुनाव उद्धव के गुट को अपने दम पर लड़ना चाहिए, कांग्रेस और शरद पवार की NCP का साथ छोड़ना चाहिए..
उद्धव की शिवसेना के सीनियर लीडर अंबादास दानवे भी इस मीटिंग में मौजूद थे. दानवे ने कहा कि पार्टी के नेताओं को लगता है कि अगर महाराष्ट्र की 288 सीटों पर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उनकी सीटें ज्यादा आतीं. दानवे ये बोलने से बचते रहे कि उद्धव MVA से अलग होकर लड़ेंगे लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि अगर पूरे महाराष्ट्र में पार्टी अपना संगठन मजबूत करने के लिए ऐसा फैसला लेती है तो इसमें क्या गलत है.
MVA से अलग होने का फैसला उद्धव ठाकरे को लेना है लेकिन अंबादास दानवे ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ मंहगा पड़ गया. दानवे ने खुलकर कहा कि लोकसभा चुनाव में मिली जीत का अतिविश्वास हरियाणा में कांग्रेस को ले डूबा, यही अतिविश्वास महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की हार की वजह बना.
दानवे के बयान को बीजेपी ने मुद्दा बना दिया तो डैमेज कंट्रोल के लिए संजय राउत सामने आए. संजय राउत ने कहा कि मीटिंग में उद्धव ठाकरे को कुछ नेताओं ने अकेले लड़ने की सलाह जरूर दी,लेकिन ये उनकी निजी राय है, पार्टी ऐसा नहीं सोचती, इस चुनाव में हार की वजह EVM है.
उद्धव ठाकरे की पार्टी में कांग्रेस से पीछा छुड़ाने की बात उठना स्वभाविक है. शिवसेना और कांग्रेस का DNA अलग है.
बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना को हिंदुत्व के लिए लड़ने वाली शक्ति के तौर पर खड़ा किया था, इसीलिए शिवसेना बीजेपी की natural ally थी. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में रास्ता बदल लिया. इसका नुकसान हुआ.
शिंदे ने शिवसैनिकों की भावना को समझा, अपनी लाइन नहीं बदली. विधानसभा चुनाव में उन्होंने खुलकर बाला साहेब के हिंदुत्व की बात की. नरेंद्र मोदी ने चुनाव में उद्धव को ये कहकर छेड़ा कि वो राहुल गांधी से एक बार हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब कहलवाकर दिखाएं.
उद्धव इस बात का बचाव नहीं कर पाए कि वह उस कांग्रेस के साथ खड़े हैं, जो वीर सावरकर की देशभक्ति पर सवाल उठाती है. इसीलिए उद्धव के साथी अब उन्हें समझा रहे हैं. अगर राजनीति में अस्तित्व बरकरार रखना है तो बाला साहेब ठाकरे के रास्ते पर चलना पड़ेगा और उसकी पहली शर्त ये है कि कांग्रेस से दूर रहना होगा.
Who is pressuring Uddhav to break off ties with Congress?
The after-effects of Maha Vikas Aghadi’s disastrous electoral defeat in Maharashtra assembly elections are showing. Senior leaders of Shiv Sena (UBT) have advised their party chief Uddhav Thackeray to come out of the Aghadi (alliance).
Reports say, when Uddhav was in a meeting with all MLAs and defeated candidates on Wednesday, several of them told him that it would not be wise to contest elections relying on alliance partners. They said, the party should now go alone in the Brihanmumbai Municipal Corporation elections and in polls to 14 other city corporations and local bodies.
These leaders told Uddhav Thackeray to cut off ties with Sharad Pawar’s NCP and Congress. They told him that had the party contested the assembly polls alone, it would have won more seats. The most vocal among these leaders was Ambadas Danve. He said, the alliance with the two other parties has proved costly and the alliance lost because of “too much overconfidence” after the Lok Sabha elections.
Shiv Sena (UBT) spokesperson Sanjay Raut tried to control the damage caused by Danve’s remarks, and said the defeat was due to EVM tampering. He said, the three parties would remain united in the local body polls too.
For Uddhav Thackeray’s party leaders seeking to cut off ties with Congress is natural. The DNAs of Shiv Sena and Congress are quite different. Late Balasaheb Thackeray had forged his party, Shiv Sena, as a big Hindutva force, and it was because of this that Shiv Sena was the natural ally of BJP for several decades. In his quest to become the Chief Minister, Uddhav Thackeray changed direction and this has hurt the party badly.
On the other hand, Eknath Shinde gauged the feelings of Shiv Sainiks correctly and did not change his ideological line. He spoke of Balasaheb’s Hindutva ideology openly during the recent assembly polls. Prime Minister Narendra Modi took a dig at Uddhav Thackeray during his campaign and challenged him to make Rahul Gandhi described Balasaheb Thackeray as “Hindu Hriday Samrat”.
Uddhav Thackeray could not explain to Shiv Sainiks why Shiv Sena joined hands with Congress, a party that questions Veer Savarkar’s patriotism. Uddhav’s colleagues are now trying to persuade him to go back to the Hindutva line. They are bluntly telling Uddhav that if Shiv Sena has to continue its existence in Maharashtra politics, it has to carry on with Balasaheb’s ideology. The first condition for this is to break off its relationship with the Congress.
“Right if we win, Wrong if we lose!”
Maha Vikas Aghadi parties are not ready to accept the recent electoral mandate in Maharashtra. MVA leaders are now planning anti-EVM protests to demand replacing Electronic Voting Machines (EVMs) with ballots. NCP founder Sharad Pawar and Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray met all defeated candidates on Wednesday and instructed them to file election petitions for matching EVM results with those of VVPATs. Plans are afoot to set up legal teams in the state and in Delhi.
Congress President Mallikarjun Kharge has already demanded that all EVMs should be replaced with ballots, with BJP leaders accusing that the Congress is now desperate and should rather replace Rahul Gandhi as its leader. Congress leaders argue that in June this year, MVA had won 30 out of 48 Lok Sabha seats in Maharashtra, but five months later, MVA won only 48 out of 288 assembly seats. How can this be possible, they ask.
Probably Congress leaders forgot that in June, 2019, BJP had won all 7 Lok Sabha seats in Delhi, but eight months later, BJP could win only eight out of a total 70 assembly seats in Delhi. If we go backwards, in 2014, BJP had won all seven Lok Sabha seats in Delhi by a huge margin, but a few months later, when assembly elections were held, Arvind Kejriwal’s Aam Aadmi Party registered a historic landslide win (67 out of 70 seats).
How voters can change their minds after such a short time gap can be illustrated from this year’s Lok Sabha results. BJP’s tally was 240 in this year’s Lok Sabha election. At that time, for the Congress, EVM was a boon. Nobody questioned about EVM battery, nor demanded matching with VVPAT results. Had BJP crossed the 300-mark, Congress would then have blamed its defeat on EVMs. Rahul Gandhi would, by now, have started his ‘Bring Ballots’ Padyatra.
Questions began to be raised after BJP’s victory in this year’s Haryana assembly election. Questions were raised about EVM batteries that were displaying 99 per cent charging. The Election Commission responded with a 1,500-page long reply. When questions were raised about VVPATs, EC replied that nearly 4 crore votes were matched with VVPAT results, and not a single result was found incorrect.
One interesting point to note is that, when the first complaints were raised about EVMs, Election Commission organized a Hackathon challenging anybody to come forward and hack an EVM. None came forward.
The issue was raised several times in the Supreme Court and every time, the apex court dismissed every petition. Anybody having any concrete proof or genuine grounds, can file petitions. Those who went to courts without any solid proof and put forth arguments based on surmises, had to return empty-handed.
To argue that EVMs worked correctly in Jharkhand and were fudged in Maharashtra is not a good thing for democracy. Seeding baseless doubts in the minds of people about the electoral process can create a situation as is being witnessed in neighbouring Pakistan.
“हम जीते तो सही, हारे तो ग़लत”
महाराष्ट्र में कांग्रेस, उद्धव की शिवसेना और शरद पवार की NCP अभी भी अपनी हार स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. महाविकास अघाड़ी के नेता अब EVM के खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं.
उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के हारे हुए उम्मीदवारों के साथ बैठक की, उन्हें निर्देश दिया है कि जहां जहां EVM पर शक है, उन विधानसभा क्षेत्रों में 5 परसेंट EVMs का VVPAT से मिलान कराने की पिटीशन फाइल करें.चूंकि ये नियम है कि काउंटिंग के पांच दिन बाद तक किसी भी असैंबली सेगमेंट में कोई उम्मीदवार वोटिंग मशीनों के रिजल्ट को VVPAT से मैच कराने की गुजारिश कर सकता है.
चूंकि महाराष्ट्र में 23 नवंबर को काउंटिंग हुई थी, VVPAT से मिलान कराने की पिटीशन फाइल करने का आखिरी दिन गुरुवार है. इसलिए हो सकता है ज्यादातर असेंबली सीटों पर उद्धव की पार्टी के नेता कल इस तरह की पिटीशन फाइल करें.
शरद पवार भी अपनी पार्टी के हारे हुए उम्मीदवारों को EVM के जरिए गड़बड़ी के सबूत इकट्ठा करने का निर्देश दे चुके हैं.. इसके बाद नाना पटोले ने भी एलान कर दिया कि कांग्रेस EVM के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में सिग्नेचर कैंपेन चलाएगी. पटोले ने कहा कि महाराष्ट्र में लोगों का वोट चुराया गया इसलिए कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में EVM की जगह बैलेट से वोट कराने की लड़ाई भी लडेगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे पहले की मांग कर चुके हैं कि अब ईवीएम की जगह बैलट का इस्तेमाल किया जाय.
महाराष्ट्र के चुनाव को लेकर कांग्रेस की दलील ये है..कि लोकसभा चुनाव में उनके गठबंधन ने 48 में से 30 सीटें जीतीं थीं. पांच महीने बाद विधानसभा में 288 में से सिर्फ 48 सीटें कैसे आ सकती हैं?
कांग्रेस के नेता भूल गए कि दिल्ली में जून 2019 में लोकसभा की 7 की 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी. 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए..बीजेपी को 70 में से सिर्फ 8 सीटें मिलीं.
इससे थोड़ा पहले चले जाएं. दिल्ली में 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सातों सीटें जबरदस्त मार्जिन से जीती थीं लेकिन कुछ महीने बाद जब चुनाव हुए तो केजरीवाल ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, 70 में से 67 सीटें हासिल की. तो मतदाता कुछ महीनों में अपना मन कैसे बदल लेता है?
इसका सबूत तो हमारे सामने है. लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी 240 पर अटकी तो कांग्रेस के लिए EVM महान थी, ना बैटरी पर सवाल उठाया, ना VVPAT मिलवाया. अगर उस समय बीजेपी 300 सीटें पार कर जाती तो कांग्रेस जरूर कहती कि EVM में गड़बड़ की गई. राहुल गांधी अबतक बैलेट यात्रा निकाल चुके होते.
हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस ने EVM पर सवाल उठाए. मशीनों की 99 परसेंट बैटरी का जिक्र किया. चुनाव आयोग ने 1500 पेज का जवाब भेजा. जब VVPAT के मिलान पर सवाल पूछा गया तो चुनाव आयोग ने बताया कि 4 करोड़ वोटों का VVPAT से मिलान किया गया और एक भी गलती नहीं निकली.
एक और दिलचस्प बात ये है कि जब पहली बार EVM की शिकायतें आईं तो चुनाव आयोग ने एक Hackathon आयोजित किया. कहा, जिसको भी शिकायत है आए hack करके दिखाए लेकिन कोई नहीं आया.
सुप्रीम कोर्ट में बार बार EVM को लेकर सवाल उठाए गए हैं. हर पीटिशन को कोर्ट ने खारिज किया है तो भी अगर किसी के पास कोई सबूत है, कोई genuine ग्राउंड है तो वो जरूर शिकायत कर सकता है, लेकिन बिना सबूतों के हवा-हवाई बात करना, जिन सवालों के जवाब दिए जा चुके हैं, उन्हें बार बार उठाना ठीक नहीं है.
झारखंड में EVM सही और महाराष्ट्र में गलत बताना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. क्योंकि जब चुनाव प्रक्रिया के प्रति लोगों के मन में आशंका होती है, तो हालात वैसे ही बनते हैं, जैसे हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के हो गए हैं.
पाकिस्तान, इमरान और अवाम: शरीफ की मुसीबत
इस्लामाबाद से मंगलवार को जो तस्वीरें आईं, वो दिल दहलाने वाली है. वहां की सड़कों पर खून बह रहा है. फौज आम जनता पर फायरिंग कर रही है.
इस्लामाबाद को इमरान खान के लाखों समर्थकों ने सोमवार और मंगलवार को घेरा हुआ था. पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात हैं. सुरक्षा बलों और इमरान खान के समर्थकों के बीच टकराव जारी है. पाकिस्तानी फोर्स के चार रेंजर्स मारे गए. तहरीके इंसाफ के तीन वर्कर्स की मौत हो गई, दर्जनों लोग घायल हुए हैं. इमरान खान के समर्थक उनकी रिहाई की मांग को लेकर इस्लामाबाद पहुंचे थे.
शहबाज़ शरीफ की सरकार ने इस्लामाबाद में घुसने के सारे रास्तों को कंटेनर की तीन तीन लेयर लगाकर बंद किया था. तीस फीट ऊंची बैरीकेड्स की दीवार खड़ी की गई थी. हालात बिगड़ने पर इस्लामाबाद में फौज तैनात कर दी गई. मंगलवार की रात देश भर में फौज ने इमरान के समर्थकों की व्यापक घरपकड़ की जिसके बाद इमरान की पार्टी ने प्रोटेस्ट स्थगित कर दिया है.
मंगलवार को कंटेनर के ऊपर हथियारों से लैस जवान पोजिशन लिए हुए खड़े थे. इसके बाद भी तहरीके इंसाफ के हजारों वर्कर इस्लामाबाद में दाखिल होने में कामयाब हो गए.
हालात ये है कि अब पाकिस्तानी फौज अपने ही लोगों पर हेलिकॉप्टर से गोलियां बरसा रही थी.
इस्लामाबाद में जो प्रोटेस्ट देखने को मिला, उसकी कॉल जेल में बंद इमरान खान ने दी थी. इमरान ने लोगों को 24 नवंबर की तारीख दी थी. कहा था, ये गुलामी की जंजीरें तोड़ने का दिन है. इमरान ने पाकिस्तान के लोगों से कहा कि उन्हें तय करना है कि वो बहादुर शाह जफर जैसी कैद चाहते हैं या टीपू सुल्तान की तरह आजादी का ताज चाहते हैं.
इमरान खान ने अपना संदेश लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बुशरा बीबी को दी और वही इस सारे प्रोटेस्ट को लीड कर रही थी. मांग ये है कि इमरान खान को जेल से रिहा किया जाए. लाखों लोग, जो सड़कों पर उतरे.
उनकी उम्मीद की दो वजहें हैं..एक तो पाकिस्तान की कोर्ट ने ज्यादातर मामलों में इमरान खान को बरी कर दिया है या जमानत दे दी है. दूसरी तरफ, अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद इमरान के समर्थकों को वहां से मदद मिलने की भी उम्मीद है लेकिन शहबाज शरीफ की सरकार जरा भी झुकने को तैयार नहीं है. वो फौज के बल पर इमरान के प्रोटेस्ट को कुचलना चाहती हैं.
सच बात है कि आज पाकिस्तान में ना संविधान है, ना सुरक्षा है, ना मानवाधिकार हैं, ना दो वक्त खाने के लिए रोटी है.इसीलिए लोग नाराज़ होकर फौज के सामने सीना तानकर खड़े थे. अपनी जान देने को तैयार थे.
पाकिस्तान के ये हालात भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है. जब किसी मुल्क में इस तरह की अराजकता होती है, हालात बेकाबू हो जाते हैं, तो पड़ोसी मुल्क पर आतंकवाद का खतरा बढ़ जाता है.
Public Support for Imran : Challenge to Sharif
Former Pakistan Prime Minister Imran Khan’s party Tehreek-i-Insaf on Tuesday night called off its protests in Islamabad after army launched a midnight crackdown on his supporters. Hundreds of supporters have been rounded up. On Tuesday, jailed former PM Imran Khan’s wife Bushra Bibi led a convoy of vehicles carrying thousands of supporters, who were engaged in pitched battles with security forces. Several persons were reportedly killed in violence and Army had to take over control of key installations in Islamabad.
Imran Khan, presently incarcerated in a jail in Rawalpindi, had given a call to “break the shackles of slavery” to his supporters. In a message to the people, he asked them to choose between Bahadur Shah Zafar, the last Mughal emperor who surrendered and died in Rangoon in British custody, and Tipu Sultan of Mysore, who died fighting the British. Imran Khan had entrusted his wife Bushra Bibi the responsibility of conveying his message to the people. PTI’s demand is that Imran Khan should be released from prison immediately. Since most of the courts in Pakistan have acquitted Imran Khan in several cases, his supporters have been demanding his immediate release. Secondly, after the victory of Donald Trump as President of USA, supporters of Imran Khan are hopeful of getting assistance from the US in dislodging Prime Minister Shahbaz Sharif’s government. But Shahbaz Sharif is unwilling to be cowed down. He wants to crush the protests with the help of the army.
One can say bluntly that there is no Constitution worth the name at the moment in Pakistan, nor is there any sense of security among the common people. Human rights laws have been given the go-by and people hailing from middle and lower middle classes are facing serious financial problems due to inflation and food shortage. It is in this context that people came out on the streets of Islamabad on Monday and Tuesday to face the security forces. They are ready to lay down their lives. Upheaval in Pakistan is not good news for its big neighbour India. When situation spirals out of control in a neighbouring country, terrorist forces come to the fore and the risks can spread.