Rajat Sharma

भगवान के लिए सेना को सियासत से दूर रखें

vlcsnap-error47416 दिसंबर हमारे बहादुर और जांबाज शहीदों के शौर्य को याद करने का दिन है। इसे विजय दिवस के रूप मनाया जाता है। 50 साल पहले इसी दिन पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए थे। भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के प्रयासों से बांग्लादेश बना था। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने हिन्दुस्तानी फौज के सामने घुटने टेक दिए थे। वो गजब का पल था और मैं उन तस्वीरों का गवाह हूं। सेना के पराक्रम की वो तस्वीर 50 साल बाद भी मेरी आंखों में ताजा है। लेकिन दुख की बात यह है कि विजय दिवस के दिन भी सेना को सियासत का हिस्सा बना दिया गया। वोट के लिए शहीदों को मोहरा बना दिया गया।

दरअसल, कांग्रेस ने देहरादून में विजय सम्मान दिवस रैली का आयोजन किया। सोच समझ कर विजय दिवस के दिन देहरादून में राहुल गांधी की रैली रखी गई क्योंकि उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं। इस राज्य में हर तीसरे परिवार का कोई न कोई सदस्य फौज में है इसलिए विजय दिवस के दिन ही कांग्रेस ने उत्तराखंड में अपने चुनावी कैंपेन को लॉन्च कर दिया। इस मौके पर सीडीएस जनरल बिपिन रावत की शहादत को भुनाने की कोशिश की गई। देहरादून के पूरे परेड ग्राउंड में जनरल बिपिन रावत के विशालकाय कटआउट लगाए गए थे। एक तरफ राहुल गांधी, दूसरी तरफ इंदिरा गांधी और बीच में शहीद सीडीएस जनरल बिपिन रावत के कटआउट थे। जनरल रावत उत्तराखंड के ही मूल निवासी थे और हाल में तमिलनाडु के कुन्नूर के पास हेलिकॉप्टर हादसे में अन्य अफसरों और सैनिकों के साथ देश सेवा के दौरान शहीद हो गए। पूरा देश उनके निधन पर अभी-भी शोक में डूबा हुआ है।

स्पष्ट तौर पर कांग्रेस पार्टी अपनी राजनीतिक बिसात पर सेना को मेहरे की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही थी। राहुल गांधी ने सेना को लेकर ऐसी बचकानी बातें की जिसे सुनकर दुख और हैरानी हुई। राहुल ने कहा-‘देश राफेल आने से मजबूत नहीं होता, फाइटर जेट, सबमरीन, एयरक्राफ्ट कैरियर, आधुनिक तोपें और बंदूकें मिलने से देश मजबूत नहीं होता।’

एक सीनियर नेता की ऐसी बातें सुनकर फौज के अधिकारी भी अचरज में हैं कि इस बात का क्या मतलब। लेकिन राहुल गांधी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ ये बातें कहीं। इससे भी ज्यादा हैरानी यह सुनकर हुई जब राहुल गांधी ने अपने परिवार के लोगों के निधन को ‘शहादत’ औऱ सैनिकों की शहादत को ‘मृत्यु’ बताया। उन्होंने कहा कि जनरल बिपिन रावत की मौत हुई और अपने परिवार का जिक्र करते हुए कहा कि उनके पिता राजीव गांधी और उनकी दादी इंदिरा गांधी शहीद हुए थे। राहुल ने अपने भाषण में कहा- ‘देश के सम्मान के लिए लड़ते हुए उत्तराखंड के हजारों परिवारों ने अपने परिजनों को खो दिया, मेरे परिवार ने भी बलिदान दिया है। यही उत्तराखंड के साथ मेरा रिश्ता है।’

राहुल की इन बातों पर बीजेपी ने आपत्ति जताई। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दौरान जनरल बिपिन रावत को आर्मी चीफ बनने से रोकने की तमाम कोशिशें हुई। उन्होंने कहा ‘राहुल एक अपरिपक्व और पार्ट टाइम राजनीतिज्ञ हैं, कब क्या कहते हैं उन्हें खुद मालूम नहीं होता। देश इसके लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगा’।

बीजेपी नेताओं ने यह भी बताया कि कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने जनरल बिपिन रावत की तुलना गली के गुंडे से की थी। कन्हैया कुमार ने इल्जाम लगाया था कि सेना के जवान कश्मीर में महिलाओं से रेप करते हैं। इन बयानों से तो कांग्रेस भी इंकार नहीं कर सकती। इसलिए जिस समय राहुल गांधी जनरल बिपिन रावत के पोस्टर और कटआउट लगाकर रैली कर रहे थे उस समय बीजेपी ने पूरे देहरादून में कांग्रेस के नेताओं के आर्मी और जनरल रावत के बारे में दिए गए बयानों के पोस्टर लगा दिए।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी कहा कि जिन लोगों ने सेना को फाइटर जेट के लिए, हथियारों के लिए, रिटायर्ड सैनिकों को पेंशन के लिए तरसाया वो लोग अब चुनाव के वक्त सेना को सैल्यूट कर रहे हैं, उत्तराखंड के लोग बहुत समझदार हैं, सबकी हकीकत जानते हैं।

बीजेपी भी उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों, सैन्य अधिकारियों और जवानों के परिवारों का वोट पाने के लिए उन्हें रिझाने में पीछे नहीं है, लेकिन तरीका अलग है। राज्य की बीजेपी सरकार शहीदों के सम्मान में सैनिक धाम बनाएगी। इस स्मारक में उत्तराखंड के रहने वाले उन सभी सैनिकों का नाम होगा जो देश की खातिर शहीद हो गए। इस सैनिक धाम का शिलान्यास रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया है। उन्होंने ऐलान किया कि सैनिक धाम के प्रवेश द्वार का नाम जनरल बिपिन रावत के नाम पर रखा जाएगा। हालांकि पुष्कर धामी का कहना है कि यह वोट की सियासत नहीं है बल्कि शहीदों का सम्मान है।

सैनिक किसी पार्टी का नहीं होता। सैनिक पूरे देश का होता है। उसकी शहादत को सियासत का मोहरा बनाना ठीक नहीं है। जनरल रावत की शहादत को अभी सिर्फ आठ दिन हुए हैं। अभी तेरहवीं भी नहीं हुई लेकिन उससे पहले ही राजनीतिक रैली में उनके कटआउट और पोस्टर लगाकर वोट मांगना…इसे कैसे जस्टीफाई किया जा सकता है। राहुल गांधी तो यह भी नहीं मानते कि जनरल बिपिन रावत शहीद हुए हैं। हजारों लोगों के सामने, शहीद सैनिकों के परिवारों की मौजूदगी में शहादत को सामान्य मौत बताना हिम्मत का काम है।

राहुल की टोन देखकर दूसरे कांग्रेसी भी उत्साहित हो जाते हैं। राहुल ने जनरल बिपिन रावत की शहादत को मौत बताया तो राजस्थान के एक कांग्रेसी विधायक ने इससे दो कदम आगे की बात कह दी। राजस्थान के दांता रामगढ़ से विधायक वीरेंद्र सिंह ने हेलिकॉप्टर हादसे को ‘चुनावी साजिश’ बताया। वीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘हमारा फौजी राजनीतिक साजिश के फायदे के लिए शहीद होता है तो मन में टीस होती है’। कांग्रेस विधायक ने पुलवामा अटैक को 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़ा। गलवान घाटी में 20 जवानों की शहादत को बिहार विधानसभा के चुनाव से जोड़ा और फिर सीडीएस जनरल बिपिन रावत की शहादत को उत्तराखंड चुनाव से जोड़ने की कोशिश की।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी एमपी राज्यवर्धन राठौर ने कहा कि उन्हें इस बयान से हैरानी नहीं हुई क्योंकि कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी के नेता से आप इस तरह के बयान की उम्मीद कर ही नहीं सकते। राज्यवर्धन राठौर सेना में अधिकारी रह चुके हैं।

हालांकि, राजस्थान के दो कांग्रेस मंत्रियों राजेंद्र गुढ़ा और पीएल मीणा ने साफ-साफ कहा कि इस तरह की बात नहीं बोलनी चाहिए। लेकिन पार्टी के नेताओं का भी वीरेन्द्र सिंह पर कोई असर नहीं हुआ। वे अपनी बात पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि अभी तो वो अपनी पूरी बात नहीं कह पाए हैं। आगे जब भी मौका मिलेगा तब वे इसके बारे में विस्तार से बात करेंगे। वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि आखिर इस तरह के हादसों का संयोग हर बार चुनाव से पहले ही क्यों बनता है?

भारत की सेना का पूरी दुनिया में सम्मान होता है क्योंकि हमारी बहादुर फौज प्रोफेशनल है और इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। सेना का पराक्रम, उसकी रणनीति और बहादुर सैनिकों के बलिदान ने हमारी सैन्य शक्ति को अजेय बनाया है। लेकिन यह बात सेना के अधिकारी भी मानते हैं कि एक मजबूत फौज के लिए सरकार की इच्छाशक्ति भी महत्वपूर्ण होती है।

देश के प्रधानमंत्री की हिम्मत औऱ निर्णय लेने की क्षमता फौज की सफलता के लिए जरूरी होती है। 1971 में इंदिरा गांधी ने और 2019 में नरेन्द्र मोदी ने इसी इच्छाशक्ति और हिम्मत का परिचय दिया।

फौज के अफसर और रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सेना का आधुनिकीकरण हुआ है। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के प्रयास से देश की सेना को आधुनिक हथियार, नयी पीढ़ी के फाइटर जेट्स, पनडुब्बियों, टैंकों और उच्च तकनीक वाले उपकरणों से लैस किया जा रहा है। इससे सेना की क्षमता में कई गुना वृद्धि हुई है। इसलिए राहुल गांधी का यह कहना कि राफेल जैसे फाइटर जेट्स, टैंकों, पनडुब्बियों और अत्याधुनिक हथियारों से कुछ नहीं होता, बचकानी बात है। दुनिया में हर फौज को ताकतवर बनने और दुश्मन का मुकाबला करने के लिए बहादुरी के साथ-साथ बेहतर हथियारों की जरूरत होती है। यह बात तो इंदिरा गांधी भी कहती थीं और मानती थीं।

1962 में चीन के साथ युद्ध में हमारी फौज का हौसला बहुत मज़बूत था। उनमें हिम्मत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन तब चीन के आधुनिक बंदूकों के मुकाबले हमारे सैनिकों के पास काफी पुरानी बंदूकें और हथियार थे। हमारी सेना बर्फीली सीमाओं पर लड़ने के लिए जरूरी बुनियादी सैन्य साजो-सामान नहीं थे। इस युद्ध के बाद सेना के तीनों अंगों को आधुनिक बनाने का काम शुरू हुआ। इसके लिए दुनिया भर से सैन्य साजो-सामान, फाइटर जेट्स, पनडुब्बी, टैंक खरीदने का काम शुरू हुआ। 1965 और 1971 में ऐसे ही हथियारों की मदद से हमारी सेना ने जीत हासिल की।

नोट करने की बात यह भी है पिछले 7 साल में इस दिशा में तेजी से काम हुआ है। नए फाइटर जेट्स, पनडुब्बी, असॉल्ट राइफल, टैंक समेत अन्य उच्च तकनीक वाले वाले सैन्य साजो-सामान खरीदने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए गए हैं। देश की सैन्य शक्ति को और सक्षम बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी ने सेना को आत्मनिर्भर बनाने की जो नीति बनाई है उसे भी फौज के अफसर एक बड़ा और पॉजिटिव कदम मानते हैं, हमारी सेना आज किसी भी मोर्चे पर दुश्मन का मुकाबला करने के लिए तैयार है। समय आ गया है कि हमारे राजनेता इस बात को समझें और सेना को राजनीति से दूर रखें।

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