अग्निवीर : सेना युद्ध सक्षम बनना चाहती है
कारगिल विजय को 25 साल हो गये. जंग के मैदान में तोपों की गूंज अभी तक याद है. पाकिस्तान का धोखे से किया गया एक-एक वार याद है. और याद है हमारे बहादुर योद्धा जो वीरगति को प्राप्त हुए. उनका अमर बलिदान हमें हमेशा प्रेरणा देता रहगा, हमारे अमर शहीदों को, वीर जवानों को नमन. मोदी ने सरहद पर खड़े होकर कड़े लहजे में, साफ लफ्ज़ों में संदेश दिया कि अगर पाकिस्तान नहीं सुधरा, अगर उसने घुसपैठ और आतंकवाद की हरकतें बंद नहीं की, तो उसे सबक सिखाया जाएगा. मोदी ने कहा कि पाकिस्तान इससे पहले कई बार मुंह की खा चुका है, हमारे जवानों ने पाकिस्तान की फौज को धूल चटाई है लेकिन पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं सीखा. इसलिए अब पाकिस्तान कान खोलकर सुन ले, पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के आका समझ लें कि भारत छोड़ेगा नहीं. प्रधानमंत्री ने अग्निपथ स्कीम को लेकर राजनीति कर रहे, अफवाहें फैला रहे राजनीतिक दलों को भी जवाब दिया. मोदी ने कहा कि अग्निपथ स्कीम सेना की मांग पर लागू की गई, ताकि सेना के जवानों की औसत आयु को कम रखा जा सके. दो बातों पर मोदी का संदेश स्पष्ट है. पहला, सीमा पर अब आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कार्रवाई होगी, दूसरा – अग्निपथ स्कीम जारी रहेगी. पाकिस्तान को ऐसे सख्त संदेश की बहुत जरूरत थी. पिछले पांच सालों में अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर घाटी में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है, ज्यादातर दहशतगर्द मारे जा चुके हैं. इससे परेशान पाकिस्तानी फौज अब जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमले करवा रही है. LOC पर घुसपैठ की कम से कम पांच कोशिशों को नाकाम किया गया है. करीब एक दर्जन घुसपैठिए मारे गए हैं .पिछले एक महीने में जम्मू के डोडा में सेना के काफिलों पर हमले भी हुए हैं. अब डोडा के जंगलों में पिछले एक हफ्ते से ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया जा रहा है. थल सेना, वायु सेना, CRPF और जम्मू कश्मीर पुलिस के करीब सात हजार जवान जंगल में चप्पे चप्पे को छान रहे हैं. सुरक्षा बलों से कहा गया है कि एक भी दहशतगर्द बचना नहीं चाहिए और हो सकता है अगले कुछ दिनों में डोडा से बड़ी तादाद में आतंकवादियों की सफाये की खबर आए. खुफिया एजेंसियों का कहना है कि डोडा के जंगलों का फायदा उठाकर सौ से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकवादी इस इलाके में छुपे हुए हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान अपनी पुरानी गलतियों से सीखना नहीं चाहता, लेकिन भारत उसे सबक सिखाकर रहेगा. इसके अलावा मोदी ने पहली बार अग्निवीर योजना पर खुलकर बात की. मोदी ने कहा कि अग्निपथ योजना का लक्ष्य सेना में जवानों की औसतन आयु को कम करना है. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में सेना ये मांग पिछले पचास साल से कर रही है, पिछली सरकारों की तमाम कमेटियों ने इस योजना पर विचार किया लेकिन इसे लागू करने की इच्छा शक्ति नहीं दिखा पाईं. प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके लिए दल से बड़ा देश है, इसलिए उन्होंने सेना की मांग पर सेना को युद्ध के लिए हमेशा सक्षम बनाए रखने की नियत से अग्निपथ योजना लागू की है. अग्निपथ योजना को लेकर विपक्ष का सबसे बड़ा इल्जाम ये है कि जो अग्निवीर चार साल बाद रिटायर हो जाएंगे, उनका क्या होगा. इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि सेना से रिटायर होने वाले अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों और राज्यों की पुलिस की भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी. लगभग सभी बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने अग्निवीरों के लिए पुलिस की भर्ती में आरक्षण देने और आयु सीमा में छूट देने का फैसला किया है. विपक्ष का दूसरा आरोप ये है कि सेना के जवानों को पेंशन न देनी पड़े, इसलिए सरकार अग्निपथ स्कीम लाई है, जिसमें जवान चार साल बाद रिटायर हो जाएंगे, उन्हें कोई पेंशन नहीं देनी पड़ेगी. इस पर मोदी ने कहा कि जो सैनिक आज भर्ती होगा, उसे पेंशन देने की बात तीस साल बाद आएगी. मोदी ने कहा कि जो मुद्दा तीस साल के बाद आना है,उस पर मोदी अभी गाली क्यों खाता है. इसलिए उन्हें तो इस तरह की बातें करने वाले विरोधी दलों के नेताओं की समझ पर हैरानी होती है. मोदी की ये बात विरोधी दलों के नेताओं को बुरी लगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री को कारगिल विजय दिवस के मौके पर इस तरह की राजनीतिक बात नहीं करनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री की य़े बात गलत है कि अग्निवीर योजना की मांग सेना ने की थी, ये सरकार का फैसला था. इसे सेना की इच्छा के खिलाफ मोदी सरकार ने लागू किया. कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की झूठ बोलने की आदत है, मोदी पहले गलत फैसले लेते हैं औऱ फिर उसे सही ठहराने के लिए बेबुनियाद दलील देते हैं. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री को ये बताना चाहिए क्या कारगिल में पाकिस्तानी फौज को मार भगाने वाले सैनिक युवा नहीं थे? क्या वो बहादुर नहीं थे? विपक्ष की तरफ से इस तरह के तमाम बयानों की लाइन लैंथ और टोन एक जैसी ही थी. प्रमोद तिवारी हों या संजय सिंह, दोनों ने मुद्दे को घुमाने की कोशिश की. मोदी ने कहा कि अग्निपथ स्कीम सेना के जवानों की औसत आयु कम करने की कोशिश है लेकिन विरोधी दलों ने इसे कारगिल के शहीदों और सेना के जवानों की बहादुर और साहस से जोड़ने की कोशिश की. ये ठीक नहीं है. हकीकत ये है कि 1977 से लेकर सेना के जवानों की औसत आयु को लेकर तमाम कमेटियां चिंता जााहिर कर चुकी हैं. कारगिल युद्ध के बाद जो सुब्रहमण्यम कमेटी बनी थी, उसने भी अपनी रिपोर्ट में ये बात कही थी. इस वक्त हमारी सेना के जवानों की औसतन आयु 32 साल है, जबकि अमेरिका में फौज की औसतन आयु 29 साल है. Israel में जवानों की औसतन आयु 21 साल है, ब्रिटेन के सैनिकों की औसतन आयु 30 साल है. इन देशों में भी सेना में काम करने के कुछ साल के बाद जवानों को रिटायर दिया जाता है. दुनिया में सभी देशों की सेनाओं की औसतन आयु की बात की जाए तो ये 26 साल है., और सभी देशों का मकसद अपनी फौज को युवा और चुस्त रखना है. इसीलिए हमारी सेना की मांग पर सरकार ने अग्निपथ स्कीम लागू की. स्कीम लागू करने से पहले 135 देशों की फौज की स्टडी की गई. इसमें गलत क्या है? जहां तक सेना से चार साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीरों के भविष्य और उनके रोजगार का सवाल है तो BSF, CRPF, CISF, असम राइफल्स, RPF जैसे सुरक्षा बलों में अग्निवीरों को आरक्षण देने और आयु सीमा में छूट देने का पहले ही एलान कर दिया. तमाम राज्य सरकारों ने अपनी पुलिस फोर्स में अग्निवीरों को आरक्षण देने का फैसला किया है. अग्निवीर को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या उनकी सर्विस सिर्फ 4 साल की होगी? जो अग्निवीर फौज में ऱखे नहीं जा सकेंगे, क्या वो 4 साल बाद बेरोजगार हो जाएंगे? आज इन सवालों का जवाब मिला. अब तक करीब करीब सारे बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें ये एलान कर चुकी हैं कि वो अपने यहां पुलिस फोर्स में अग्निवीरों को आरक्षण देंगी. हर साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होगी जिसमें से 25 परसेंट को सेना अपनी सेवा में रखेगी, यानि हर साल 34 हजार 500 अग्निवीर रिटायर होंगे और जब राज्यों की पुलिस फोर्स और केंद्रीय अर्धसैनित बलों में अग्निवीरों को आरक्षण मिलेगा तो इतने 34 हजार 500 अग्निवीरों को आसानी से पुलिस फोर्स में लिया जा सकेगा. सेना से रिटायर होने तक फंड मिलाकर अग्निवीरों को करीब 23 लाख रूपए मिलेंगे और नौकरी भी करीब करीब पक्की होगी. इसलिए ये कहना कि सरकार ने अग्निवीरों के भविष्य की चिन्ता नहीं की है, ये गलत लगता है. विपक्ष अग्निवीरों को लेकर बेवजह एक गलत नरेटिव पैदा करने की कोशिश कर रहा है.
Agniveer: Army wants to keep it combat-ready
Addressing a meeting on Kargil Vijay Diwas in Drass on Friday to mark the 25th anniverary of India’s victory in the Kargil conflict, Prime Minister Narendra Modi warned Pakistan that its nefarious designs in fuelling cross-border terrorism will be crushed with full force. The Prime Minister said, “Pakistan has not learnt any lessons from its past defeats and has continued to wage war in the garb of terrorism and proxy war to stay relevant….Today I am speaking from a place where the patrons of terrorism can hear my voice. I want to tell them that their nefarious aims will never succeed. Our brave soldiers will crush them with full force. The enemy will get a befitting reply.” Modi saluted the brave jawans and officers who made the supreme sacrifice to protect the motherland. The Prime Minister justified the Agnipath scheme saying that short-term recruitment of young soldiers as Agniveers was necessary for keeping the armed forces young and combat ready at all times. He rubbished the allegations made by opposition leaders that the Agnipath scheme was rolled out in June 2022 to save money being spent on pension for retired armed forces personnel. This was Modi’s first public response on the issue of Agniveer. He alleged that the opposition was misguiding youth about the Agnipath scheme. Modi’s speech in Drass has made two points quite clear: One, there will be all-out action against terrorists, and Two, Agnipath scheme will stay. During the last five years, the backbone of terrorist groups has been broken in Kashmir Valley and many terrorists have been eliminated. Pakistan is desperate and is trying to carry out attacks in Jammu region by infiltrating terrorists. Attacks have been made by terrorists in Doda, Rajouri and other places. Nearly a dozen terrorists have been eliminated. “Operation Sarp Vinash” is being carried out by armed forces in the forests of Doda to flush out terrorists hiding in the jungle. Nearly 7,000 jawans of Army, Air Force, CRPF and state police are carrying out this operation. Intelligence reports say more than 100 infiltrators pushed by Pakistan are hiding in the forest. It was in this context that the Prime Minister said that Pakistan has not learnt any lesson from the mistakes it committed in the past. On the Agnipath issue, Modi made the Centre’s position quite clear. On the other hand, Congress President Mallikarjun Kharge alleged that it was Modi government which had pushed the scheme despite what he called, objections from Army officials. Kharge alleged that Modi was misleading by making the remark that it was the Army which wanted the Agnipath scheme. AAP MP Sanjay Singh said, Modi must clarify whether Army jawans who won the Kargil conflict were not brave or young enough. The line and length of the remarks of Opposition leaders are almsot the same. They are trying to dilute the issue. What Modi said was that the government wanted to reduce the average age of Army soldiers by introducing the Agnipath scheme, and make it younger, but the Opposition tried to link it with the bravery and courage of Kargil martyrs. Several committees since 1977 had expressed concern over the ageing army. The Subramanian committee set up after Kargil conflict, had also recommended that the average age of army jawans should be reduced. Presently, the average age of our army is 32 years, while in the United States, it is 29, in Israel it is 21, and in Britain, it is 30 years. Soldiers working in the armies of these countries are retired at a young age. The average age of the armies across the world is 26 years. Most of the countries of the world want their armies to be lean and young. It was in this context, that the government introduced the Agnipath scheme at the request of the army. The decision was taken after making a study of armies of 135 countries. There is nothing wrong in this. As far as giving jobs to Agniveers after four years of Army service is concerned, most of the BJP-ruled states like UP, MP, Odisha, have already announced that they would reserve police jobs for Agniveers, and relax their maximum age limit. Central paramilitary forces like CRPF and CISF have also announced reservation for Agniveers. Every year, nearly 46,000 Agniveers will be absorbed in state police forces, while Army will retain 25 per cent of the Agniveers in regular service. In other words, 34,500 Agniveers will retire every year and they can be easily given jobs in police forces. Agniveers retired from armed forces will get Rs 23 lakh each. So, to say that Agniveers retiring from army will have an uncertain future is incorrect. Opposition is trying to create a fake narrative on the Agniveer issue.
एक खालिस्तान समर्थक पर चन्नी की टिप्पणी कभी स्वीकार्य नहीं
संसद में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और जालंधर से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह का समर्थन करके अपनी पार्टी को खासी परेशानी में डाल दिया, सबको चौंका दिया. चन्नी ने कहा कि अमृतपाल सिंह को जेल में रखना, उसके बोलने पर पांबदी लगाने की कोशिश करना, संविधान के खिलाफ है. चन्नी ने कहा कि देश में अघोषित इमरजेंसी जैसे हालात हैं, लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी अमृतपाल सिंह को जेल में रखा जा रहा है, उसे संसद में आने से रोका जा रहा है, ये जनादेश का अपमान है. अमृतपाल सिंह पिछले एक साल से असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं क्योंकि उसने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश की, अजनाला थाने पर हमला किया, अलग खालिस्तान की मांग उठाई, हथियारों के साथ पुलिस फोर्स पर हमला बोला. अमृतपाल सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) समेत तमाम संगीन धाराओं में 12 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. वो खुलेआम खालिस्तान की बात करता है, लोगों को भड़काता है. इसके बाद भी चन्नी ने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की संसद में खड़े होकर हिमायत की. इस पर बीजेपी ने कांग्रेस से सवाल पूछे और इसपर कांग्रेस के नेताओं का जवाब देना मुश्किल हो गया. शाम को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक वाक्य का ये बयान जारी किया कि चन्नी ने अमृतपाल सिंह के बारे में जो कुछ कहा है, वो उनकी निजी राय है और ये कांग्रेस पार्टी का स्टैंड नहीं है. चन्नी ने आज एक नहीं बल्कि कई विवाद खड़े किए. उन्होंने इल्जाम लगा दिया कि सरकार ने किसानों के खिलाफ NSA लगा उन्हें जेल में डाल दिया, लेकिन जब उनसे किसानों के नाम बताने को कहा गया तो चन्नी के पास जवाब नहीं था. इसके बाद चन्नी की केन्द्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू से तीखी झड़प हो गई. दरअसल लोकसभा में बजट पर चर्चा हो रही थी. चन्नी बजट को गरीब विरोधी, किसान विरोधी, पंजाब विरोधी बता रहे थे. यहां तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद चन्नी बहक गए. पहले उन्होंने कहा कि सरकार ने एजेंसियों को विरोधी दलों के नेताओं के पीछे लगा दिया, देश में अघोषित इमरजेंसी जैसे हालात हैं और अपनी बात को साबित करने के लिए चन्नी ने अमृतपाल सिंह का जिक्र कर दिया. चन्नी ने कहा कि ये भी तो इमरजेंसी है कि जिस व्यक्ति को चार लाख लोगों ने चुना, उसको NSA लगाकर जेल में रखा गया, उसके बोलने की आजादी छीनी गई . जैसे ही चन्नी ने खालिस्तानी अमृतपाल सिंह का समर्थन किया, तो कांग्रेस के नेता उनका मुंह ताकते रह गए लेकिन चन्नी रुके नहीं. चन्नी ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को लेकर गलत कमेंट किया. बेअंत सिंह की हत्या खालिस्तानी आतंकवादियों ने 1995 में उस वक्त की थी, जब वो पंजाब के मुख्यमंत्री थे. .बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू पहले कांग्रेस में थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गये , चुनाव हार गए, लेकिन अब केन्द्र सरकार में मंत्री हैं. जब चन्नी ने मोदी सरकार की तुलना अंग्रेजों की हुकूमत से की, तो बिट्टू ने इसका विरोध किया. इससे नाराज चन्नी ने बिट्टू पर उनके दादा बेअंत सिंह की शहादत को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की, इसके बाद सदन में हंगामा हो गया और कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. बिट्टू ने जबाव देने में देर नहीं की. बिट्टू ने भी चन्नी को पंजाब का सबसे भ्रष्ट नेता बताया. बीजेपी ने खालिस्तानी अमृतपाल के समर्थन को बड़ा मुद्दा बना दिया. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पूछा, क्या कांग्रेस के नेता ये भूल गए कि इंदिरा गांधी की हत्या खालिस्तानियों ने की थी? क्या खालिस्तानियों को लेकर अब कांग्रेस का स्टैंड बदल गया है? कांग्रेस के नेता चरणजीत सिंह चन्नी के बयान से कन्नी काट रहे हैं, कोई उनके बयान को उनकी निजी राय बताकर किनारा कर रहे हैं, तो कोई कह रहा है कि उन्होंने चन्नी का बात सुनी ही नहीं. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि चन्नी को जो बोलना था, बोल दिया, लेकिन सवाल ये है कि क्या कांग्रेस का यही स्टैंड है? ये बात कांग्रेस पार्टी को साफ करनी चाहिए.
सवाल है कि चरणजीत सिंह चन्नी ने अमृतपाल का समर्थन क्यों किया? ये समझने के लिए इन दोनों की पृष्ठभूमि समझना जरूरी है.पिछला लोकसभा चुनाव अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से करीब दो लाख मतों के अन्तर से जीता. कांग्रेस को हराया और आम आदमी पार्टी और अकाली उम्मीदवारों के तीसरे और चौथे स्थान पर पहुंचा दिया. इस जीत ने पंजाब के लोगों को चौंका दिया क्योंकि वो साल भर पहले विदेश से भारत आया था और अचानक उसने पंजाब में हथियार उठा लिए. पूरे देश ने टीवी पर देखा कि पिछले साल 18 मार्च को अमृतपाल ने सरेआम हथियारों से लैस होकर अपने समर्थकों के साथ अजनाला थाने पर हमला किया. अमृतपाल पर पंजाब में आर्म्स एक्ट की धाराओं में 7 मामले दर्ज हुए थे. फिर उसने खुलकर खालिस्तान की मांग का समर्थन किया. उस पर देशद्रोह के आरोप लगे, पंजाब की पूरी पुलिस फोर्स उसे ढूंढती रही, एक महीने की तलाशी के बाद वो पकड़ा गया. उस वक्त उसका विदेशों में बैठे खालिस्तानियों ने समर्थन किया, भारत सरकार के खिलाफ धमकियों भरे वीडियो जारी किए. अमृतपाल पिछले एक साल से असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद है. उसके खिलाफ NSA लगाया गया है. इस पृष्ठभूमि की वजह से पंजाब में मुख्कोयधारा वाली कोई राजनीतिक पार्टी अमृतपाल का समर्थन नहीं करतीना, ही उसकी गिरफ्तारी पर किसी ने सवाल उठाए. इसीलिए जब चन्नी ने संसद में अमृतपाल के प्रति सहानुभूति जाहिर की तो सब चौंक गए. अब चन्नी की पृष्ठभूमि को समझें. चन्नी कांग्रेस में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के विश्वासपात्र हैं. सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिन्दर सिंह को हटाकर चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था. चन्नी की अगुआई में कांग्रेस विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी. इसके बाद भी राहुल गांधी ने चन्नी को पार्टी के नेताओं के विरोध के बाद भी जालंधर से टिकट दिया. वो पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने. इसीलिए अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या खालिस्तानियों को लेकर कांग्रेस का स्टेंड बदल गया है? पंजाब में मैंने आंतकवादियों के तांडव देखा है. पंजाब के आंतकवाद को मैंने एक रिपोर्टर के तौर पर कवर किया है. इसीलिए मुझे हैरानी हुई कि चन्नी आतंकवाद के उस दौर को कैसे भूल गए? वो कैसे भूल गए कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पंजाब के आतंकवाद का नतीजा थी. सरदार बेअंत सिंह को भी आतंकवादियों ने मारा था. पंजाब को आतंकवाद के दौर से निकालने के लिए हमारी सशस्त्र सेनाओं के हजारों जवानों ने कुर्बानियां दीं. इसीलिए कोई भी अगर पंजाब को उस खतरनाक दौर में ले जाने की कोशिश करेगा तो पूरा देश मिलकर उसका विरोध करेगा. मुझे लगता है चन्नी ने जो कहा, उससे कांग्रेस सहमत नहीं होगी. ये कांग्रेस की सोच नहीं हो सकती. हालांकि आज ऐसा लगा कि चन्नी ये तय करके आए थे कि उन्हें किसी भी कीमत पर, कुछ भी कहकर सिर्फ सरकार को कोसना है. इसीलिए उन्होंने खालिस्तान का नाम लेकर किसानों के मुद्दे पर भी ऐसी बात कह दी जो बिल्कुल गलत थी.
Channi’s remarks on ‘Khalistan supporter’ not acceptable
Former Punjab Chief Minister and Congress MP from Jalandhar Charanjit Singh Channi on Thursday caused a huge embarassment for his party, when he came out in support of pro-Khalistan Sikh preacher Amritpal Singh, who is presently in Assam’s Dibrugarh jail. Amritpal Singh was recently elected to Lok Sabha from Khadoor Sahib. Speaking on the Union Budget in Lok Sabha, Channi alleged that that there was “undeclared emergency” in the country. He did not name Amritpal Singh, but made clear mention about his election. Channi said, “They (BJP) speak about 1975 Emergency every day, but what about undeclared emergency today? This too is Emergency, where a man who was elected MP by 20 lakh voters in Punjab is behind bars under National Security Act. He is unable to voice the views of the people of his constituency in this House. This is Emergency.” Channi alleged that Amritpal Singh, head of ‘ Waris Punjab De’, was not being allowed to come to Parliament and speak. “This is a curb on his freedom of speech”, he said. It may be mentioned here that Amritpal Singh was arrested under NSA on April 23 last year and kept in Dibrugarh jail along with some of his associates. He was raising a private militia called Anandpur Khalsa Fauj, with help from Pakistan’s spy agency ISI, and was openly speaking in favour of Khalistan. In February last year, Amritpal Singh, with his supporters armed with automatic weapons, stormed the Ajnala police station and injured several policemen and burnt police vehicles, forcing police to free his accomplice Loepreet Singh Toofan. In March last year, in a major crackdown, Amritpal’s associates were arrested on charges of attempted murder and other serious crimes. Amritpal Singh, after going into hiding, was arrested after 35 days, and he was whisked to Dibrugarh jail. Amritpal Singh contested Lok Sabha elections from Khadoor Sahib, won and took oath as MP on July 5, under strict security. Since the court had granted him a brief parole, he was taken back to prison. On Thursday, Congress leaders were put in a tight spot after Channi raised Amritpal’s detention issue. In the evening, Congress leader Jairam Ramesh issued a terse statement on X saying, “The views expressed by Charanjit Singh Channi, MP, on Amritpal Singh are his own, and do not reflect in any way the position of the Indian National Congress.” Channi also made an objectionable remark about former Punjab CM Beant Singh, who was assassinated by Khalistani terrorists in a suicide bombing in 1995. Seventeen persons, including 3 commandos, were killed in that blast. Beant Singh’s grandson Ravneet Singh Bittu, who was in Congress joined BJP before the Lok Sabha elections, lost from Ludhiana and is now a Union Minister of State. Bittu was listening to Channi’s speech, and a verbal duel began, when Channi made an objectionable remark about Beant Singh. Bittu responded by alleging that Channi was the”most corrupt leader of Punjab and has amassed several thousand crores worth properties.” The proceedings of the House had to be adjourned. BJP strongly objected to Channi’s remarks. Union Minister Giriraj Singh asked whether Congress leaders have forgotten that Indira Gandhi was assassinated by Khalistanis. Congress leader Sukhjinder Singh Randhawa said, what Channi said was his personal opinion. Punjab chief minister Bhagwant Mann demanded that the Congress party must clarify its position about Amritpal Singh. The moot question is, why a former chief minister like Channi supported a Khalistan supporter like Amritpal Singh? One must understand the margin of victory secured by Amritpal Singh. People of Punjab were surprised to find a Sikh youth returning from abroad and defeating his nearest Congress rival by a margin of nearly 2 lakh votes, while AAP and Akali candidates trailed in third and fourth positions. The entire country watched on TV how Amritpal Singh with his associates, brandishing automatic rifles, attacked Ajnala police station. Seven cases under Arms Act were filed against him, and he was charged with sedition. Amritpal Singh was openly supported by pro-Khalistan outfits based in Canada, USA and UK. Because of his radical background, no mainstream political party is supporting Amritpal Singh, nor any party is questioning his detention. When Channi expressed sympathy for Amritpal Singh, leaders from different parties sitting inside the House were surprised. Charanjit Singh Channi was made the Chief Minister by Sonia Gandhi, after removing Capt Amarinder Singh. The Congress party lost badly in the assembly polls that took place when Channi was CM. Rahul Gandhi, instead of ignoring Channi, gave him the party ticket from Jalandhar to contest the LS polls. The question now is, whether Congress has changed its stand about Khalistan sympathizers. As a reporter, I have myself seen the mayhem created by terrorists during the Eighties in Punjab. How can Congress leaders forget that terrorists had killed Prime Minister Indira Gandhi and Chief Minister Beant Singh? Thousands of our men in the armed forces gave their supreme sacrifice while fighting terrorists. If anyone wants to take Punjab back to those dark days, the entire nation will stand as one to oppose him. I know Congress will never agree with what Channi spoke about Amritpal Singh. This can never by part of Congress party’s ideology. It was Channi who had come to the House to lash out at the government on Thursday. He also made factual errors when he alleged that farmer leaders were arrested under NSA, but when his contention was challenged inside the House, he had no answer.
Union Budget : Is it for two states, made by two persons?
The Opposition was in full gear on Tuesday, as the debate on Union Budget began in both Houses of Parliament. Outside the House, opposition leaders led by Sonia Gandhi, Mallikarjun Kharge, Rahul Gandhi, Akhilesh Yadav and other alliance leaders, raised slogans alleging that the budget was “discriminatory against non-BJP-ruled states” and “it violated the spirit of federalism”. They objected to the special assistance given to Bihar and Andhra Pradesh, ruled by NDA allies, ignoring the demands of other states. Leader of Opposition in Rajya Sabha Mallikarjun Kharge alleged that the budget was prepared with a view to “save Modi government”. He said, even BJP-ruled states were ignored in the Budget, and this was against the federal structure envisaged in the Constitution. As Finance Minister Nirmala Sitharaman rose to intervene, the entire Opposition staged a walkout. Sitharaman said, not naming a state in the Budget does not mean that government schemes and other financial assistance were not being given to the states. She pointed out that the Union Cabinet has already approved Rs 76,000 crore for Vadhavan deep sea transhipment port in Palghar, Maharashtra. She alleged that it was a deliberate attempt by the opposition to convey the impression to the people that nothing has been given to other states, and all assistance have been given to only two states. Sitharaman challenged the Congress to show past budget speeches of Congress Finance Ministers and prove that all their ministers named every state of the country in each of their budget speeches. “It is an outrageous allegation which is not acceptable”, she said. Sitharaman pointed out that for the last 10 years, the Trinamool government in West Bengal was not implementing several centrally-sponsored schemes and yet the party was alleging discrimination. Trinamool party’s stand was effectively projected in Lok Sabha when Abhishek Banerjee, Mamata’s nephew, spoke for 55 minutes amidst constant interruptions. He alleged that the “Budget does not project the slogan Sabka Saath, Sabka Vikas. Instead it projects the slogan, Jo Hamare Saath, Hum Uske Saath”. This Budget, Banerjee said, “has been prepared by two persons tto satisfy two states.” There was pandemonium when Banerjee made certain remarks about BJP MP Saumitra Khan’s wife Sujata Mondal, who had contested on TMC ticket and lost. Banerjee was engaged in a verbal duel with Speaker Om Birla on this issue. There was another pandemonium when SP MP Dharmendra Yadav made personal remarks against BJP MP Satish Gautam. While RLP MP from Rajasthan Hanuman Beniwal alleged that his state was ignored in the Budget, Aam Aadmi Party leaders alleged that Delhi and Punjab were ignored. Parliamentary Affairs Minister Kiren Rijiju said it was regrettable that the Opposition was spreading confusion about the Budget. Rijiju said, massive allocations have been made for infrastructure development, housing for poor, welfare of scheduled tribes, farmers and jobs and internships for youth, and all these schemes are going to benefit all the states. He said, it was not possible for any finance minister to name all the states in the budget speech. In Tuesday’s debate, Abhishek Banerjee spoke well and he had strong arguments to support his statements. His arguments had substance and the ruling party had no cogent answer to that. Akhilesh Yadav’s focus was on caste equations in UP, and he allowed members from all castes to speak. Kharge’s speech was less focussed on Budget, and more on scoring political brownie points. Kharge harped on the theme that states where BJP lost, were ignored in the Budget. Normally, a Budget is not analysed on the basis of which state is named by the Finance Minister in the budget speech, and which states have been left out. It is true that Sitharaman did focus on Bihar and AP in her speech and made people of both these states happy. Had she not done that, Congress leaders could have instigated Nitish Kumar and N. Chandrababu Naidu and said that their states were being ignored. Their objective would have been to try a wedge in the ruling alliance. This plan was nipped in the bud.
बजट का सच: क्या इसे दो लोगों ने, दो राज्यों के लिए बनाया?
अब बजट को लेकर ज़बरदस्त राजनीति शुरू हो गई है. विरोधी दलों के सांसदों ने बजट को भेदभाव पूर्ण बताकर संसद के बाहर प्रोटेस्ट किया, फिर संसद के भीतर ये मुद्दा उठाया. सबको इस बात की तकलीफ है कि बजट में बिहार और आन्ध्र प्रदेश को ज्यादा तवज्जो क्यों दी गई. राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खरगे ने इल्जाम लगाया कि ये बजट देश के विकास के लिए नहीं, मोदी सरकार को बचाने के लिए बनाया गया है, विरोधी दलों के शासन वाले राज्यों को तो छोडिए, बीजेपी शासित राज्यों को भी बजट में कुछ नहीं मिला. लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के भाषण के दौरान खूब हंगामा हुआ. अभिषेक बनर्जी ने कहा कि इस बजट को दो लोगों ने, दो लोगों की खुशी के लिए बनाया है, इसमें 140 करोड़ लोगों के लिए कुछ नहीं है. असल में विरोधी दलों ने पहले से रणनीति तय की थी. सुबह विरोधी दलों के ज्यादातर सांसद हाथों में तख्तियां और बैनर लेकर संसद परिसर में पहुंच गए और नारेबाज़ी शुरू हो गई. इस प्रोटैस्ट में मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, कल्याण बनर्जी, राघव चड्डा, अरविन्द सावंत, संजय राउत, एम. तंबीदुरै, हनुमान बेनीवाल, डोला सेन जैसे INDIA गठबंधन के नेता मौजूद थे. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि बजट में निर्मला सीतारमण ने सिर्फ़ दो राज्यों पर फ़ोकस किया है, बाक़ी सभी राज्यों की अनदेखी की है. खरगे ने कहा कि जहां- जहां बीजेपी हारी है, उन राज्यों की उपेक्षा की गई है. ये तो देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है. अगर ऐसा अन्याय हुआ, तो देश आगे कैसे बढ़ेगा. जैसे ही निर्मला सीतारमण खड़ी हुई, तो खरगे ने वॉकआउट का इशारा किया और विपक्ष के सारे सांसद नारेबाजी करते हुए सदन के बाहर चले गए. वित्त मंत्री ने कहा कि कांग्रेस इतने साल राज कर चुकी है, उसे अच्छी तरह पता है कि बजट भाषण में कुछ सीमाएं होती है. इसलिए, सभी राज्यों के नाम लेना मुमकिन नहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि किसी राज्य के साथ नाइंसाफ़ी की गई है. सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस के नेता बताएं कि क्या कांग्रेस के जमाने में हर बजट में सभी राज्यों के नाम लिए जाते थे. सीतारमण ने कहा कि बंगाल सरकार पिछले दस साल से केन्द्र सरकार की कई योजनाओं को लागू नहीं कर रही और यहां बंगाल के साथ नाइंसाफी का आरोप लगाते हैं, ये ठीक नहीं है. हालांकि बंगाल के मसले पर राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस का कोई नेता उतने असरदार तरीके से नहीं बोला, लेकिन लोकसभा में अभिषेक बनर्जी ने करीब 55 मिनट के भाषण में केन्द्र सरकार पर जमकर हमले किए. अभिषेक के भाषण के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कई बार नोंक-झोंक भी हुई. अभिषेक बनर्जी ने बजट को दो पंक्तियों में समझाया. कहा कि ये ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाला नहीं, ‘जो हमारे साथ, हम उसके साथ’ के नारे वाला बजट है. ये बजट सिर्फ दो लोगों को खुश करने के लिए बनाया गया है, बाकी किसी के लिए बजट में कुछ नहीं है. अभिषेक बनर्जी ने कहा कि चूंकि बीजेपी बंगाल में हारी है,इसलिए बंगाल के लोगों के साथ दुश्मनी निकली गई है, ये बजट संतुष्टिकरण वाला नहीं,दो लोगों के तुष्टिकरण वाला बजट है. अभिषेक बनर्जी ने जिस तरह के तेवर दिखाए, उसी अंदाज में समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव भी बोले. जब धर्मेद्र यादव बोल रहे थे, तो बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने टोका-टाकी की. इस पर धर्मेंद्र यादव नाराज़ हो गए और सतीश गौतम पर एक टिप्पणी की, जिसको लेकर शोरगुल हुआ. संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्ष, बजट को लेकर भ्रम फैला रहा है. इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण, ग़रीबों के लिए मकान, और आदिवासियों के लिए योजना किसी एक राज्य के लिए तो है नहीं, इसलिए बजट की इस आधार पर आलोचना करना ठीक नहीं कि किसी राज्य का नाम लिया. आज बजट पर जितने लोगों ने भाषण दिए, उनमें अभिषेक बनर्जी का भाषण सबसे अच्छा रहा. अभिषेक बनर्जी के तर्क जोरदार थे. उनकी बातों में दम था. उनकी कई बातों का सरकार के पास कोई जवाब नहीं था. अखिलेश यादव का फोकस यूपी के जातिगत समीकरण साधने पर था. इसीलिए उन्होंने सभी जातियों के सासंदों को बोलने का मौका दिया. ये उनकी स्वाभाविक राजनीति है. लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे का भाषण बजट पर कम सियासत पर ज्यादा था. वो यही बताते रहे कि जहां बीजेपी हारी, उन राज्यों को दरकिनार किया गया. आम तौर पर बजट का विश्लेषण इस बात पर नहीं होता कि वित्त मंत्री ने किस राज्य का नाम लिया और किसे छोड़ दिया. हालांकि ये बात सही है कि निर्मला सीतारमण ने बिहार और आंध्र प्रदेश पर फोकस किया, इन दोनों राज्यों को खुश किया. अगर नहीं करते तो कांग्रेस के ही नेता नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडु को भड़काते, उनसे कहते, देखो तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया, तुम्हें कुछ नहीं दिया.
मोदी देंगे करोड़ों को रोज़गार : क्या ये कुर्सी बचाओ बजट है ?
नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार का पहला बजट आया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के इस बजट में लोकसभा चुनाव के नतीजों के असर दिखाई दिए. नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू के समर्थन का फायदा बिहार और आन्ध्र प्रदेश को मिला. बजट में इन दोनों राज्यों के लिए दिल खोलकर पैसा दिया गया. हालांकि बिहार या आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला लेकिन बजट के जरिए दोनों राज्यों को करीब पचहत्तर हज़ार करोड़ की योजनाएं दी गईं. इसके अलावा जिन मुद्दों पर विपक्ष नरेन्द्र मोदी की सरकार को घेर रहा था, उन मुद्दों को भी चतुराई से निपटाया गया. रोजगार के नए मौके पैदा करने के लिए MSME सैक्टर को मजबूती दी गई है, पांच साल में चार करोड़ नौजवानों को नौकरी देने, पहली सैलरी सरकार की तरफ से दिए जाने का एलान हुआ, पीएफ में पहला अंशदान सरकारी खजाने से दिया जाएगा. सरकार एक करोड़ नौजवानों को देश की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में एक साल तक इंटर्नशिप कराएगी, युवाओं के रोजगार के लिए सरकार ने दो लाख करोड़ रु. का बजट रखा गया, गरीबों के लिए सरकार तीन करोड़ नए घर बनाएगी, 48.2 लाख करोड़ रुपए के इस बजट में ग़रीब, किसान, मिडिल क्लास, MSME और उद्योग क्षेत्र, यानी देश की अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख अंगों के लिए बड़े एलान किए गए हैं. विपक्ष ने निर्मला सीतारण के इस बजट को कुर्सी बचाओ बजट करार दिया. कल ही सरकार ने साफ कर दिया था कि मौजूदा नियमों के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता लेकिन निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में बिहार के लिए कई बड़ी घोषणाएं करके विशेष दर्जा की कमी को पूरा कर दिया. बिहार में सड़क निर्माण के लिए 26 हज़ार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस रक़म से पटना-पूर्णिया एक्सप्रेस-वे, बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेस-वे, बोधगया-राजगीर-वैशाली और दरभंगा स्पर्श प्रोजेक्ट बनाए जाएंगे. बिहार को बाढ़ नियंत्रण के लिए 11 हज़ार 500 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसके अलावा भागलपुर में बिजली घर लगाने के लिए 21 हज़ार 400 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में हैं. बक्सर में गंगा नदी पर दो लेन का नया पुल बनाया जाएगा. निर्मला सीतारमण ने बताया कि गया में विष्णुपद कॉरिडोर बनाया जाएगा, नए मेडिकल कॉलेज और एयरपोर्ट बनाने और पर्यटन के विकास के लिए बजट में प्रावधान किए गए हैं. बजट में बिहार और आन्ध्र प्रदेश को महत्व दिए जाने से विपक्ष के नेता परेशान हैं. राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने इस बजट को कुर्सी बचाओ बजट क़रार दिया. मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि मोदी ने कुर्सी के लिए अपने दो दोस्तों को खुश किया लेकिन बाकी सभी राज्यों को भूल गए. यहां तक कि बीजेपी शासित राज्यों को भी बजट में पैसा नहीं मिला.
वित्त मंत्री ने कहा कि जो लोग बजट को कुर्सी बचाने वाला बता रहे हैं, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि उनका 37 पार्टियों का गठबंधन 230 सीटें ही जीत पाया जबकि अकेले बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं. बजट से सबसे ज्यादा खुश चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार नजर आए. नायडू ने आन्ध्र प्रदेश की जनता का ख्याल रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद कहा जबकि नीतीश कुमार ने कहा कि वो तो बिहार के विशेष दर्जा के लिए बीस साल से लड़ रहे हैं लेकिन जब सरकार ने बता दिया कि विशेष दर्जा नहीं मिल सकता तो उन्होंने केन्द्र सरकार से बिहार को विसेष आर्थिक मदद की मांग की थी जिसे सरकार ने माना और बजट में अपना वादा पूरा किया. इससे बिहार को निश्चित तौर पर फायदा होगा. इसमें कोई शक नहीं कि बजट में बिहार की समस्याओं का हल निकालने का प्रयास किया गया है और बिहार की राजनीति को भी साधने का काम हुआ है . बिहार को विशेष दर्जा मिलने से जो कुछ प्राप्त हो सकता था, उससे कहीं ज्यादा बजट में दे दिया गया. बिहार को सबसे ज्यादा मिला. उदाहरण के तौर पर, बिहार में सड़कों की बुरी हालत है, बिहार में एयरपोर्ट्स का हाल भी बुरा है. नए आधुनिक एयरपोर्ट की सौगात आज मिल गई. बिहार में बिजली उत्पादन कम है तो पीरपैंती में पावर प्लांट दे दिया गया. बिहार में उद्योग नहीं पनप पाए, इसका समाधान इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के जरिए निकाला गया. बिहार में शिक्षा का हाल खस्ता है, नए कालेजों का प्रावधान किया गया, डॉक्टर्स की कमी है, तो नए मेडिकल कॉलेज बनाए जाएंगे. बजट में जो प्रावाधान किए गए हैं उनसे बिहार की जनता का लाभ होगा और राजनीति के लिहाज JDU और BJP दोनों फायदे में रहेंगे. आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती के विकास के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपए का स्पेशल पैकेज घोषित किया गया. आंध्र प्रदेश की पोलावरम सिंचाई परियोजना को पूरा करने में पूरा सहयोग करने का वादा किया गया. विशाखापत्तनम और चेन्नई के बीच इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने के लिए भी स्पेशल पैकेज का ऐलान हुआ. विपक्ष ने जब आंध्र और बिहार के स्पेशल पैकेज को कुर्सी बचाओ मुहिम कहा तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जो लोग इसे कुर्सी बचाओ बजट कह रहे हैं, वो सब मिलकर भी इतनी सीटें नहीं ले आए, जितनी अकेले बीजेपी के पास हैं, ऐसे लोग किस मुंह से इसे कुर्सी बचाओ बजट कह रहे हैं. आंध्र प्रदेश को बजट में तरजीह मिलने से तेलंगाना, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल के मुख्यमंत्री खफा हैं. तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है इसलिए मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को अपना विरोध दर्ज कराने का पूरा हक है लेकिन जहां तक आन्ध्र प्रदेश का सवाल है, यूपीए के शासन के समय जब आन्ध्र प्रदेश का बंटवारा करके तेलंगाना बना था, उस वक्त आन्ध्र प्रदेश को स्पेशल पैकेज देने का वादा किया गया था, नई राजधानी अमरावती के विकास के लिए केंद्र की तरफ से मदद का भरोसा दिया गया था. मोदी सरकार ने वही वादा पूरा किया है. ये अच्छी बात है. ये सही है कि बजट में बिहार और आन्ध्र प्रदेश के लिए विशेष प्रावधान रखे गए हैं. उसकी वजह नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू का समर्थन भी है. अगर मोदी ने अपनी सरकार को समर्थन देने वालों को खुश किया तो इसमें बुराई क्या है? क्या कोई अपनी सरकार को समर्थन देने वालों को नाराज करने का प्रयास करेगा ? क्योंकि जहां तक विरोधी दलों का सवाल है,उनसे तो ये अपेक्षा नहीं की जा सकती की वो इस बजट का समर्थन करेंगे. असल में केंद्र सरकार के बजट को राज्यो के हिसाब से बांटकर देखना ठीक नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं उनका लाभ तो सबको मिलता है. लेकिन ममता बनर्जी हों, रेवंत रेड्डी हों, भगवन्त मान हों, सिद्धा रमैया हों., सुखविन्दर सिंह सुक्खू, एमके स्टालिन, या हेमंत सोरेन हों, इन सबसे इस बात की उम्मीद करना बेकार है कि वो ये कहेंगे कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उनके राज्य के लिए बहुत कुछ दिया. ये विरोधी दलों के नेता हैं. जहां जहां विरोधी दलों की सरकारें हैं, वहां वे मोदी सरकार के खिलाफ ही बोलेंगे .इससे पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी तो बीजेपी के नेता यही करते थे. इसमें कोई नई बात नहीं हैं. वैसे भी केन्द्र में जो भी सरकार होती है, वो बजट के जरिए अपने राजनीतिक हितों का भी ध्यान रखती है. नरेन्द्र मोदी ने बिहार और आन्ध्र प्रदेश का ख्याल रखकर वही किया लेकिन ये देखना भी जरूरी है कि नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ सहयोगियों को खुश नहीं किया बल्कि लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी जैसे मुद्दों का नुकसान बीजेपी को हुआ था, उनको सुधारने की कोशिश भी बजट में की गई है. युवाओं को बड़ी कंपनियों में रोजगार देने की योजनाएं बनी है. सरकार इसके लिए नये कर्मचारियों और उनके मालिकों को सहायता देगी. कांग्रेस को सरकार का ये एलान भी पसंद नहीं आया. मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार के बजट को कांग्रेस के घोषणपत्र का कॉपी पेस्ट बता दिया. खरगे ने कहा कि मोदी सरकार के पास न अपनी कोई सोच न है, न दृष्टि है, सरकार ने कांग्रेस के घोषणापत्र की बातें चुरा कर बजट में पेश कर दी. इस बात को समझना जरूरी है कि भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है. स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में एक बड़ा एलान किया. छोटी कंपनियों के पूंजी जुटाने पर लगने वाले एंजेल टैक्स को खत्म कर दिया गया है. सरकार 12 नए इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगी. 14 बड़े शहरों के लिए ट्रांज़िट प्लान बनेंगे. इन सबसे देश में आर्थिक विकास के नए केंद्र बनेंगे. सरकार ने इस बार इनकम टैक्स के स्लैब में थोड़ा बदलाव किया है और स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ा दी है. लेकिन इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव का फ़ायदा सिर्फ उन लोगों को ही मिलेगा जिन्होंने नई इनकम टैक्स प्रणाली को चुना है. जो पुरानी टैक्स प्रणाली के हिसाब से टैक्स दे रहे हैं, उनके लिए इस बजट में कोई एलान नहीं किया गया है. बजट में किसानों के लिए भी बड़े एलान किए गए. कृषि और उससे जुड़े सेक्टर्स के लिए बजट में डेढ़ लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का प्रावधान है. सरकार का ज़ोर पैदावार बढ़ाने, प्रकृचिक खेती को बढ़ावा देने और दलहन तिलहन उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर है. इसके अलावा सब्ज़ियों की क़ीमतों पर क़ाबू पाने के लिए देश में जगह जगह सब्ज़ियां उगाने के क्लस्टर डेवेलप किए जाएंग. अगले दो सालों में एक करोड़ किसानों को नेचुरल फार्मिंग सिखाई जाएगी. लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसानों के लिए जो स्कीम्स लाई गई हैं उससे किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट को फायदा होगा. राकेश टिकैत ने जो बात कही वो किसानों की कम, राजनीति की ज्यादा है. जहां तक बजट को लेकर राजनीति का सवाल है. कांग्रेस एक तरफ तो कह रही है कि निर्मला सीतारमण ने उनके घोषणापत्र को कॉपी पेस्ट कर लिया . अगर बजट में उनके घोषणापत्र की बातों को शामिल कर लिया गया तो फिर आप ये कैसे कह सकते हैं कि बजट में कुछ नहीं है? ये बजट बेकार का है? एक बात ये कही गई कि ये बजट कुर्सी बचाने का बजट है, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जो लिखा था, राहुल गांधी ने चुनाव के दौरान जो खटाखट कैश ट्रांसफर के वादे किए थे, वो भी तो कुर्सी पाने के लिए थे या नहीं ? अगर बीजेपी ने जनता की भलाई के साथ साथ अपने राजनीतिक हितों का ख्याल रखा, तो इसमें गलत क्या है?
Modi to give jobs to millions : Is it Kursi Bachao Budget?
The first budget of Narendra Modi 3.0 government presented in Parliament on Tuesday by Finance Minister Nirmala Sitharaman clearly reflects the after-effects of Lok Sabha elections, with Nitish Kumar’s Bihar and N. Chandrababu Naidu’s Andhra Pradesh getting financial bonanza. Though both these chief ministers were demanding Special Status for their states, it was not granted. Both the states got nearly Rs 75,000 crore worth projects in the budget. Narendra Modi cleverly addressed the core issue of jobs that the Opposition had been raising. The Centre will implement five schemes under ‘Employment-Linked Incentive’ as part of Prime Minister’s package. In the first scheme, one-month wage to all first-time employees, in all formal sectors, registered in EPFO, will be given through direct benefit transfer up to Rs 15,000, in three instalments. Centre will provide one-month wage to all persons newly entering the workforce in all formal sectors. The direct benefit transfer of one-month salary in 3 instalments to first-time employees, as registered in the EPFO, will be up to Rs 15,000. The eligibility limit will be a salary of upto Rs 1 lakh per month. The scheme is expected to benefit 2.1 crore youth. The second scheme will provide incentive, at specified scales, directly to employee and employer with respect to their EPFO contribution in the first four years of employment, and this scheme is expected to benefit 30 lakh youth entering employment. In the third scheme, the Centre will reimburse to employers up to Rs 3,000 per month for two years towards their EPFO contribution for each additional employee, and this is expected to incentivize additional employment of 50 lakh persons. In the fourth scheme under PM’s package, 20 lakh youth will be skilled over a 5-year period, and 1,000 Industrial Training Institutes will be upgraded. In MSMEs, the limit of Mudra loans will be raised from Rs 10 lakh currently to Rs 20 lakh for entrepreneurs who have successfully repaid previous loans under ‘Tarun’ category. In the fifth scheme under PM’s package, an internship allowance of Rs 5,000 per month along with a a one-time assistance of Rs 6,000 will be given to those who will get internship opportunities in 500 top companies. The aim is to provide internship to one crore youth in five years, and it will provide exposure for one year to youth in real-life business environment in varied professions. Companies will bear the training cost and 10 per cent of intership cost from their CSR funds. While announcing special assistance for Bihar and AP, Sitharaman said, Centre will formulate Purvodaya plan for development of eastern region covering Bihar, Jharkhand, West Bengal, Odisha and AP. This will cover human resource development, infra projects and generation of economic opportunities. For Bihar, Centre will support development of an industrial note in Gaya on the Amritsar-Kolkata Industrial Corridor, and also support road connectivity projects, namely Patna-Purnea Expressway, Buxar-Bhagalpur Expressway, Bodhgaya, Rajgir, Vaishali and Darbhanga spurs, and addition bridge over Ganga at Buxar, at a total cost of Rs 26,000 crore. A new 2400 MW power plant at a cost of Rs 21,400 crore will be set up in Pirpainti, Bihar. For Andhra Pradesh, Sitharaman announced special financial support for the new capital, Amravati, through foreign development agencies. Rs 15,000 crore will be arranged in the current financial year. The Centre will also provide finance for early completion of Polavaram irrigation project, apart from providing funds for water, power, railways and roads on Vishakhapatnam-Chennai Industrial Corridor and Bangalore-Hyderabad Industrial Corridor. Additional grants for backward regions of Rayalaseema, Prakasam and North Coast Andhra will also be provided. Soon after the Budget was presented, opposition leaders including Rahul Gandhi, Mamata Banerjee, Akhilesh Yadav and Uddhav Thackeray described as ‘Kursi Bachao Budget’, since JD(U) and TDP are the major allies in NDA government. Welcoming the Budget, Prime Minister Modi said, “This budget empowers every segment of society..It provides new strength to the middle class…By focusing on manufacturing and infrastructure, the budget will invigorate economic development and sustain its momentum…Employment Linked Incentive scheme will create crores of new jobs across the country.. this will enable young people from villages and impoverished backgrounds to work in top companies, opening new doors of possibility for them.” Responding to criticism from Opposition, Nirmala Sitharaman said, those who are describing this as ‘Kursi Bachao Budget’ must not forget that their 37-party-alliance managed to win only 230 Lok Sabha seats, whereas BJP alone has won 240 LS seats. Chandrababu Naidu and Nitish Kumar thanked Modi for providing special assistance to their states. It cannot be denied that the Budget seeks to find solutions to Bihar’s economic problems, though Special Status was not granted. Bihar got more assistance than it could have got if Special Status had been granted. Bihar suffers from road and air connectivity, power shortage and lack of big industries. The Budget addresses all these concerns of the people of Bihar. BIhar’s education sector is in a mess and the Budget has provided for new medical colleges and educational institutions. I hope, the people of Bihar will benefit from these projects, and from political point of view, both BJP and its ally JD-U may get advantage too. With Andhra getting special assistance, four southern states, Kerala, Tamil Nadu, Karnataka and Telangana, ruled by opposition parties, are unhappy. Telangana’s Congress CM Revanth Reddy has the right to register his protest, but he cannot disagree that it was his party, Congress, which had promised a special package for AP, when the state was being bifurcated. The Centre had promised assistance for setting up its new capital in Amravati. It is the Modi government which is now fulfilling that promise. It is true that AP and Bihar have got special budgetary assistance because Modi government has got support to his NDA from Nitish Kumar and Chandrababu Naidu. If Modi tries to help his allies, what is wrong about that? Will any government try to keep its allies unhappy? It will not be correct to analyze the Centre’s budget on the basis of allocation to states. All states get the benefit of Centrally-sponsored schemes, whether they are ruled by Mamata Banerjee or Revanth Reddy or Bhagwant Mann or Siddaramaiah or Sukhwinder Singh Sukhu or M K Stalin or Hemant Soren. It will be of no use to expect these leaders to say that Modi government has given them adequate assistance. They belong to the opposition and they will naturally oppose the Budget. When BJP was in the opposition, their leaders use to say the same about UPA government’s budgets. There is nothing new in this. Any government at the Centre always keeps its political interests in mind whenever a Budget is prepared. Modi did the same for Bihar and AP, but he did not stop at that. The issue of jobs, which hit BJP hard during the recent general elections, was also taken care of in the Budget. Apart from incentivizing manufacturing industry and top companies, which will hire new workers, one must remember that India has the world’s third largest startup eco-system, and Modi’s budget has abolished Angel Tax that was being levied on investors. Twelve industrial parks under National Industrial Corridor Development Programme will be sanctioned, and 14 cities having a population of more than 30 lakh people, will get transit oriented development plans. For personal Income Tax, some changes have been made in IT slabs only for new IT regime, and standard deduction limit has been raised. For agriculture and allied sectors, Rs 1.52 lakh crore have been provided, with major focus on achieving self-sufficiency in oilseeds like mustard, groundnut, sesame, soyabean and sunflower. In the next two years, one crore farmers will be initiated into natural farming. Agriculture Minister Shivraj Singh Chouhan has promised to encourage farmers to grow more cash crops, while the Centre would ensure that farmers get full remuneration for their crops. Farmer leader Rakesh Tikait disagrees. He says, the government is more interested in benefiting corporates in the farm sector. If one goes through the Budget speech, it will be clear that the Centre wants to raise farmers’ income, by carrying out full review of agri-research setup to focus on raising productivity and developing climate resilient varieties. New 109 high-yielding and climate-resilient varities of 32 field and horticulture crops will be released for cultivation by farmers. Congress leaders have claimed that Sitharaman has done a “copy paste job” by drawing job incentivization scheme from the Congress manifesto. If one accepts this argument, then how can anybody say that there is nothing new in the budget? Those who say it is a ‘Kursi Bachao Budget’ must realize that Rahul Gandhi had made promises of ‘khataakhat’ cash transfers to youth and women during the poll campaign. Was it not meant to get ‘kursi’ (power)? If BJP, keeping its political interests in mind, plans to provide jobs to millions of youth, how can anybody say that this approach is wrong?
PM की आवाज़ को दबाने की कोशिश : क्या यह लोकतांत्रिक है ?
संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को सीधा और साफ संदेश दिया. मोदी ने कहा कि आज सावन का पहला सोमवार है, शुभ दिन है, इस शुभ मौके पर मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और उन्हें उम्मीद है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सार्थक चर्चा होगी और देश की तरक़्क़ी के लिए दोनों पक्ष मिलकर काम करेंगे. मोदी ने कहा, ” पिछली बार ढाई घंटे तक देश के प्रधानमंत्री का गला घोंटने सा, उनकी आवाज़ को रोकने का, उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास किया गया, लोकतांत्रिक परम्पराओं में इसका कोई स्थान नहीं को सकता. और इन सब को लेकर (विपक्ष के मन में) पश्चाताप तक नहीं है, दिल में दर्द तक नहीं है. ” मोदी ने कहा कि पिछले छह हीनों में चुनाव के दौरान जिसको जो कहना था कह लिया, जो नैरेटिव बनाना था बना लिया, अब जनता ने अपना फैसला सुना दिया, इसलिए अब मिलकर काम करने का वक्त है. मोदी ने कहा कि चुनाव के वक्त हम सब ने अपने दलों के लिए जितनी लड़ाई लड़नी थी, लड़ली, अब आने वाले साढ़े चार साल के लिए हमें देश के लिए मिल कर लड़ना है, और देश के लिए समर्पित होकर संसद के गरिमापूर्ण मंच का हम उपयोग करें. मोदी जिस भाषण में उनकी आवाज़ दबाने का इल्ज़ाम लगा रहे थे, वह था राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान उनका जवाब. मोदी की टिप्पणी के बाद कांग्रेस के सांसदों ने कहा कि मोदी को जनता ने हराया है, मोदी विपक्ष पर इल्जाम लगाकर अपनी हार की हताशा को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं. RJD सांसद मनोज झा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने तो पूरे देश का गला घोंट दिया था, विरोध की हर आवाज़ को कुचला और अब वो इमोशनल ड्रामा कर रहे हैं. लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा, मोदी कैसे इस तरह की बातें कर सकते हैं, संसद में तो सरकार पिछले कई साल से विपक्ष की आवाज़ दबा रही है. गोगोई ने कहा कि पिछली बार विपक्षी दल नीट पेपर लीक पर चर्चा की मांग कर रहा था लेकिन सरकार ने विपक्ष की बात तक नहीं मानी और अब मोदी गला घोंटने की बात कर रहे हैं. आज मोदी की बात सुनकर पता चला कि पिछली लोकसभा में विपक्ष ने जो हंगामा किया था, उससे वो कितने आहत हैं. दो जुलाई को लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी करीब 133 मिनट तक बोले, लेकिन इस दौरान विपक्षी दलों के नेता चिल्लाते रहे. वेल में आकर शोर मचाते रहे. टीवी पर मोदी को देखने वाले हैरान थे कि वो इतने शोर शराबे में बिना रुके अपनी बात कैसे कहते रहे. आज पता चला कि मोदी डिस्टर्ब तो हुए थे, परेशान तो थे लेकिन उन्होंने अपना भाषण पूरा किया, विपक्ष की रणनीति को विफल किया और आज बजट सेशन के पहले दिन अपना दर्द जाहिर किया. ये बात सही है कि संसद चर्चा, बहस के लिए है, कभी कभी हंगामा हो सकता है, प्रोटेस्ट हो सकता है लेकिन देश की जनता के चुने हुए प्रधानमंत्री को बोलने न दिया जाए, लगातार डिस्टर्ब किया जाए, ये गला घोंटना नहीं तो और क्या है? ये आवाज को दबाने का प्रयास नहीं तो और क्या है?
Throttling the PM’s voice : Is it democratic?
On the first day of monsoon session of Parliament, Prime Minister Narendra Modi sounded a note of caution for the Opposition. Outside Parliament, Modi said, “The nation witnessed how an undemocratic effort was made to muzzle the voice of a democratically elected government inside Parliament. For over two and a half hours, an effort was made (by the Opposition) to suffocate the Prime Minister of the country and suppress his voice. This has no place in our democratic traditions. This is a negative mindset.” The Prime Minister was referring to the constant heckling and slogan-shouting by Opposition MPs during his reply to the debate on Motion of Thanks to the President in Lok Sabha. Modi said, “This House is for the whole country, it is not for furthering the interests of political parties. The House is meant to serve 140 crore people of India, and not MPs alone….I want to tell all MPs that we have already fought a full battle since January, we told the people whatever he had to tell. Some tried to show the way, some tried to mislead. But that phase is now over and the people have given their mandate. It is the duty of all elected MPs, to join hands and fight for our country. Let us rise above party lines, dedicate ourselves to the nation and use this hallowed platform of Parliament for the next four and a half years.” Modi also said, “the negative tactics of many MPs in the last session deprived many other MPs of the valuable opportunity to raise the concerns of their constituencies.” Soon after the Prime Minister’s remarks, Congress MPs said, “Modi and his party has been defeated by the people this time and he is trying to hide his frustration by levelling charges against the Opposition”. RJD MP Manoj Jha said, “it was Modi who has throttled the voice of the opposition both inside and outside Parliament, and is now enacting an emotional drama”. Deputy Leader of Congress in Lok Sabha Gaurav Gogoi alleged, “for the last several years, the government has been throttling the voice of Opposition in parliament.. We were demanding debate on NEET paper leak, but the government did not accept our demand, and now the Prime Minister is saying his voice is being throttled”. istening to what Prime Minister Modi said on Monday, one can understand his pain. The Prime Minister spoke for nearly 133 minutes, and throughout his reply, the Opposition MPs continued to shout slogans in the well. Those watching the proceedings live on television were surprised how Modi continued to speak non-stop during the bedlam. After watching his remarks, one can understand that the PM was really disturbed and worried in the face of consistent heckling and sloganeering. But he finished his speech patiently and foiled the opposition’s strategy. Parliament is meant for debates and discussions. Pandemoniums do take place occasionally. Protests also take place, but to consistently shout slogans and prevent the Prime Minister from speaking inside the House cannot be described a democratic act. If this is not throttling the Prime Minister’s voice, then what else?
अजमेर दरगाह का खादिम बरी : क्या पुलिस ने केस को कमज़ोर किया?
राजस्थान में इस वक्त मुद्दा उठा है, अजमेर में ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवाने वाले अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती समेत सभी छह आरोपी बरी कैसे हो गए? गौहर चिश्ती सहित छह लोगों को अजमेर की अदालत ने मंगलवार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. गौहर चिश्ती शुक्रवार को जेल से रिहा हो गए. अजमेर की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस आरोपों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाई. बरी होने के बाद गौहर चिश्ती ने कहा कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया था,लेकिन अदालत ने उनके साथ इंसाफ किया. गौहर चिश्ती के खिलाफ समाज में नफरत फैलाने, लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इल्जाम एक वीडियो के आधार पर लगा था. ये वीडियो 17 जून 2022 का है. उस दिन गोहर चिश्ती ने अजमेर शरीफ दरगाह के मुख्य द्वार पर तकरीबन 20 हजार लोगों की एक भीड़ को संबोधित किया था. इस वीडियो में गौहर चिश्ती मंच पर खड़े होकर भीड़ से ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवाते हुए साफ सुनाई दे रहे थे. ये वीडियो पुलिस वाले ने शूट किया था. आठ दिन बाद 25 जून को एक पुलिस कांस्टेबल जय नारायण की तरफ से शिकायत दर्ज करवाई गई थी. इसमें तो कोई शक नहीं है कि सिर तन से जुदा के नारे लगाए गए. पुलिस की तरफ से इस इल्जाम को साबित करने के लिए कोर्ट में 22 गवाह पेश किए गए लेकिन इनमें कोई आम व्यक्ति नहीं था. सारे के सारे पुलिस वाले थे. पुलिस ने वीडियो अदालत में पेश किया लेकिन इसकी फॉरेन्सिंक जांच नहीं करवाई. उस पुलिस कांस्टेबल का फोन भी जब्त नहीं किया जिससे ये वीडियो बनाया गया था. इसीलिए अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. चूंकि ये मामला उस वक्त का है जब राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार थी इसीलिए बीजेपी के नेताओं ने इल्जाम लगाया है कि सरकार के इशारे पर पुलिस ने जानबूझकर केस कमजोर किया. गौहर चिश्ती की रिहाई को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी नाराज हैं. मुख्यमंत्री ने जांच में ढिलाई बरतने पर अजमेर प्रशासन को फटकार लगाई है, हांलाकि सरकारी वकील जांच पर सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. सरकारी वकील वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि गौहर चिश्ती के खिलाफ सारे सबूत थे, वीडियो में वो सर तन से जुदा का नारा लगाते साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन अदालत ने उनकी दलीलों को नहीं माना. राठौड़ ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ अब वो हाईकोर्ट जाएंगे. घटना के बाद गौहर चिश्ती फरार हो गया था. पुलिस ने उसे हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था. हैदराबाद में गौहर चिश्ती को पनाह देकर छिपाने वाला नासिर भी इस मामले में आरोपी है लेकिन पुलिस उसका गुनाह भी साबित नहीं कर पाई. गौहर चिश्ती दावा कर रहा है कि वो भागा नहीं था, वो हैदराबाद घूमने गया था. दिलचस्प बात ये है कि नासिर के साथ गौहर चिश्ती की तस्वीर भी पुलिस के पास थी लेकिन कोर्ट ने उसे भी सबूत नहीं माना.इस मामले में नासिर को भी बरी कर दिया गया है. इस बात में कोई शक नहीं है कि राजस्थान पुलिस ने इस केस की जांच में लापरवाही की, जानबूझकर सबूत गायब किए, केस को कमजोर किया. पुलिस को ये बताने की जरूरत नहीं होती कि जिस मोबाइल फोन से वीडियो शूट किया गया हो उसे फॉरेन्सिक जांच के लिए जब्त किया जाता है.पुलिस ने ऐसा करने के बजाए वीडियो को CD पर ट्रांसफर लिया और फोन से वीडियो डिलीट कर दिया गया. अदालत ने जब सरकारी वकील से पूछा कि ऑरीजनल वीडियो कहां है तो बताया गया कि डिलीट हो गया. कोर्ट ने पूछा कि पुलिस वाले ने जिस फोन में वीडियो शूट किया था, वो फोन कहां है, तो कहा गया कि फोन खऱाब हो गया था, खो गया. कोर्ट ने पूछा, नारे भीड के सामने लगे थे लेकिन सारे गवाह पुलिस वाले ही क्यों है, पुलिस एक भी इंडिपेंडेंट गवाह क्यों नहीं खोज पाई, तो कोई जबाव नहीं था. इसीलिए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अब ये जानना जरूरी है कि पुलिस ने जो किया, वो स्थानीय पुलिस ने अपने स्तर पर किया या उसे ऊपर से इस केस को कमजोर करने के लिए निर्देश दिए गए. ये भी पता लगना चाहिए कि क्या ये पुलिस की नाकामी है या एक सोचा समझा राजनीतिक फैसला, जिसके लिए पुलिस के कंधे का सहारा लिया गया.
Ajmer Khadim acquitted : Did police botch up the case?
A session court on Tuesday (July 16) acquitted the ‘khadim'(servitor) of Ajmer Sharif dargah, Gauhar Chishti and five others accused of inciting a mob on June 17, 2022 at the main gate of the shrine, by raising the provocative slogan ‘Gustakh-e-Nabi Ki Ek Hi Sazaa, Sar Tan Se Juda, Sar Tan Se Juda’ slogan against suspended BJP leader Nupur Sharma. The former BJP leader had earlier made certain derogatory remarks against Prophet Mohammad. As many as 22 witnesses appeared before the court and 32 documents were placed during the trial, that went on for over two years. In his judgement, the sessions court judge pointed to critical lapses in the investigation by police, which was working under the then Congress government led by Chief Minister Ashok Gehlot. The session court said that police failed to place concrete evidence to substantiate its charges. Gauhar Chishti, who was released from jail on Friday, claimed that he was “framed as part of a conspiracy” and that he has got justice from the court. But tthe court’s judgement says otherwise. It points out several technical lapses in police investigation. The complainant, Constable Jai Narayan, who had shot the video of Gauhar Chishti giving a provocative speech on his mobile phone, kept the cell phone with him from June 17 till June 25, but did not deposit it with the invetigating officer. Jai Narayan says, he showed the video to two witnesses, Banwari Lal and Dalbir Singh. The court said that the very fact that no action was taken despite showing the video to two witnesses, “makes the prosecution’s story doubtful”. In 2023, Jai Narayan told the court that his cell phone had broken down, but a CD of the video was made on June 30, 2022. The court said, the date when the CD was created and the condition of the cell phone clearly raise questions about the reliability of the evidence. The judge pointed out that all the 22 witnesses who were heard in court, belonged to the police, and were not common citizens. The court said, the video was placed before the court, but no forensic test was carried out, nor was the policeman’s cell phone seized. In view of all these, the court acquitted all the six accused for want of concrete evidence. Since Ashok Gehlot was chief minister of Rajasthan at that time, BJP leaders have alleged that police deliberately weakened the case due to political pressures. The present BJP chief minister Bhajanlal Sharma is unhappy and he has reprimanded the Ajmer prosecution department. Prosecution lawyer Virendra Singh Rathore said, there were evidences about Gauhar Chishti’s hate speech, and in the video, he was clearly heard shouting the provocative slogan, but the court did not accept this as evidence. He promised to go into appeal before the High Court. It may be recalled that Gauhar Chishti had fled to Hyderabad after giving the hate speech. Nasir, who gave him shelter in Hyderabad, was also made an accused, but police could not prove his complicity in this case. Gauhar Chishti claimed before the court that he did not escape, but had gone to Hyderabad for a visit. The interesting part is that police had photographs of Gauhar Chishti with Nasir, but the court did not accept this as evidence. There is not an iota of doubt that Rajasthan Police displayed negligence and deliberately removed concrete evidence, thus making the prosecution case weak. There is no need for the court to tell the police that the device with which the video was recorded, is always sent for forensic test. Instead of conducting a forensic test, the mobile phone video was transferred to a CD, and the original video in the constable’s phone was deleted. When the court asked the prosecution lawyer about the original video, it was told that the video has been deleted. When the court asked where was the police constable’s phone now, it was told that the cell phone failed to work, and it was now missing. The court asked, since the slogans were chanted in front of a big crowd, why were all the witnesses in this case policemen only. The prosecution had no answer. When the court asked why police could not find a single independent witness, the prosecution side had no cogent reply. On the basis of all these circumstances, the sessions court acquitted all the six accused including Gauhar Chishti. It would now be interesting to find out whether police did all this at the local level, or whether there were instructions from above to weaken the prosecution’s case. It also needs to be probed whether it was a case of police negligence or it was a calculated political decision taking advantage of a pliable police.