चीन सीमा पर भारत ने बनायी सड़कें, सुरंगें, पुल, एयरफील्ड
लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारत-चीन सरहद के पास बनायी गयी सड़कों, सुरंगों और एयरफील्ड्स का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को उदघाटन किया. ऐसे कुल 90 प्रोजेक्ट्स हैं, जिनका एक साथ उदघाटन हुआ. भारत ने दिखाया कि चीन की हरकतों का जबाव देने के लिए सरहदी इलाकों में हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर को किस कदर मजबूत किया जा रहा है. राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत-चीन सीमा पर सड़कें, सुरंग बनाने का जितना काम साठ साल में नहीं हुआ, उससे कई गुना ज्यादा काम नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सिर्फ दस साल में कर दिया है. सरहदी इलाकों में सड़क, पुल, सुरंग, एयरफील्ड बनाने वाले बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन के चीफ ने कहा कि पहले की सरकारों में न इच्छाशक्ति थी और न सरकारें पैसा देती थी, इसलिए चीन से सटे ऊंचाई वाले इलाकों में सेना, सीमा सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के आने जाने में बहुत दिक्कतें होती थी. लेकिन अब वक्त बदल गया है. तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हो रहा है. BRO के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब हिमालय क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा. सड़कों के साथ साथ हमारी सेनाओं के लिए दुनिया की सबसे ऊंची एयर फील्ड भी तैयार हो जाएगी. ये खबर इसलिए बड़ी हो जाती है क्योंकि कांग्रेस के नेता, खासतौर पर राहुल गांधी, रोज़ रोज़ ये इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने हमारी सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है, हमारी सेना को पीछे हटना पड़ा क्योंकि सरकार चीन से डरती है. राहुल गांधी इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने सरहद के बिल्कुल करीब सड़कों का जाल बिछा दिया है, सुरंगे बना ली हैं, तमाम पुल बना दिए हैं जबकि हमारी सरकार इस इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है लेकिन आज BRO के चीफ ने बताया कि भारत-चीन सरहद के आसपास तेजी से काम हो रहा. जिन 90 प्रोजेक्ट्स का उदघाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया, उनमें सबसे ज़्यादा प्रोजेक्ट लद्दाख में तैयार किए गए हैं. इनमें आठ सड़कें शामिल हैं, जो सरहदी इलाकों में जवान और हथियार पहुंचाने में काम आयेगी. लद्दाख में पहाड़ी रास्तों के गैप ख़त्म करने के लिए 17 पुल भी बनाए गए हैं. इनमें से कई पुल सामरिक रूप से महत्वपूर्ण डारबुक, श्योक, दौलत बेग ओल्डी रोड है जो Line of Actual Control की लाइफ लाइन कही जाती है. इस रोड से थल और वायु सेना भारत के सबसे उत्तरी सैनिक अड्डे, दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचती हैं. ये रोड हर मौसम में खुली रहे, इसके लिए इस पर नए पुल बनाए गए हैं. लद्दाख के ससोमा में एक हेलीपैड भी बनाया गया है. इस हेलिपैड के तैयार होने से LAC के क़रीब हेलीकॉप्टर से सामान और सैनिकों को कम वक्त में पहुंचाया जा सकेगा. लद्दाख के अलावा अरुणाचल प्रदेश के सरहदी इलाके में बने 35 प्रोजेक्ट्स का भी उदघाटन किया गया. इनमें सीमा तक पहुंचने के लिए अरुणाचल प्रदेश में बनाई गई आठ सड़कें और 27 पुल शामिल हैं. अरुणाचल प्रदेश के नेचिफू में बनाए गए एक टनल का भी राजनाथ सिंह ने उदघाटन किया. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन ने पश्चिम बंगाल के बागडोगरा और बैरकपुर एयरपोर्ट्स पर नए रनवे बनाए हैं. उनका भी उदघाटन हुआ. 529 करोड़ की लागत से बनाए गए नए रनवे वायु सेना के फॉरवर्ड बेस को और मज़बूती देंगे. अब भारत लद्दाख में अपनी चौकसी मज़बूत करने के लिए दुनिया की सबसे ऊंची एयरस्ट्रिप को रिडेवलप करने जा रहा है. ये एयरस्ट्रिप लद्दाख के न्यौमा में बनाई जा रही है. इस हवाई पट्टी पर काम शुरू हो गया है. न्यौमा में पहले भी एयरस्ट्रिप थी लेकिन 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया था. 2009 से वायु सेना यहां पर ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतारने लगी थी. 2020 में जब चीन के साथ तनाव बढ़ा, तो वायु सेना ने यहां C-130J ट्रांसपोर्टर प्लेन और हेलीकॉप्टर उतारे थे ताकि LAC पर सैनिकों और हथियारों को पहुंचाया जा सके. अब BRO को इस हवाई पट्टी को रिडेवेलप करने की ज़िम्मेदारी दी गई है. जब ये एयरस्ट्रिप तैयार हो जाएगी, तो भारत अपने फाइटर जेट्स और कारगो प्लेन यहां उतार सकेगा.आपातकालीन स्थिति में यहां टैंक, तोपें और सैनिकों को कुछ ही घंटों में सीमा तक पहुंचाया जा सकेगा. BRO को दुनिया की सबसे ऊंची टनल बनाने के प्रोजेक्ट को भी हरी झंडी दे दी गई है. ये सुरंग हिमाचल प्रदेश को लद्दाख से जोड़ेगी जिससे हर मौसम में लद्दाख तक रसद, और साज़-ओ-सामान पहुंचाया जा सकेगा. राजनाथ सिंह ने जो बातें कहीं उसकी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन के चीफ़ ने पुष्टि की. लेफ्टीनेंट जनरल राजीव चौधरी ने हमारे संवाददाता को बताया कि न्यौमा में नई एयरस्ट्रिप 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगी, जिसके बाद न्यौमा एयरफ़ोर्स के फाइटर प्लेन्स के बेस का काम करेगा. न्यौमा के प्रोजेक्ट की अगुवाई BRO के महिला ऑफ़िसर्स की एक टीम करेगी. भारत-चीन सीमा पर 90 प्रोजेक्ट का उदघाटन हो गया. इसके अलावा 60 और प्रोजेक्ट पर तेज़ी से काम चल रहा है. ये प्रोजेक्ट इस साल के अंत तक पूरे हो जाएंगे. इनमें अरुणाचल प्रदेश में बन रही सेला टनल भी शामिल है. ये दुनिया की सबसे ऊंची डबल लेन टनल है जिसको 13 हज़ार फुट की ऊंचाई पर बनाया गया है. इस टनल के बनने से तवांग सेक्टर के फॉरवर्ड एरिया में सैनिकों की मूवमेंट बहुत आसान और तेज़ हो जाएगी. असल में चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है. लद्दाख के अलावा अरुणाचल प्रदेश से लगने वाली अपनी सीमा पर चीन तेज़ी से एय़रबेस, मिसाइल रखने के ठिकाने, सड़कें, पुल और अंडरग्राउंड बंकर बना रहा है. इसके अलावा चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सरहद के पास सैनिकों के रहने के लिए कॉलोनी और हथियारों के डिपो भी बना रही है.भारत अभी तक बॉर्डर एरिया के डेवेलपमेंट में चीन से बहुत पीछे था लेकिन अब मोदी सरकार, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तक पहुंचने के लिए टनल्स, रोड, ब्रिज और बेस बनाने पर ज़ोर दे रही है. हालांकि इतनी ऊंचाई पर टनल बनाना आसान काम नहीं होता. इतनी ऊंचाई पर मशीनें भी ठीक से काम नहीं करतीं. BRO के चीफ ने बताया कि अब ऊंचे पहाड़ों पर टनल बनाने के लिए लेटेस्ट टेक्नोल़जी का इस्तेमाल किया जा रहा है. विपक्ष आरोप लगाता है कि सरकार चीन को ठीक से जवाब नहीं दे रही है. चीन से निपटने के लिए कुछ नहीं कर रही है लेकिन आज BRO की तरफ से कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे गए. बताया गया कि 2008 से 2015 के दौरान BRO सीमा पर हर साल 632 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाता था, लेकिन 2015 के बाद से BRO हर साल 934 किलोमीटर रोड बना रहा है. 2008 से 2015 के बीच BRO सीमा पर हर साल 1224 मीटर पुल बनाता था, अब ये रेट 3652 मीटर per year हो गया है. काम की स्पीड बढ़ी है, तो ख़र्च भी बढ़ा है. इसलिए सरकार ने BRO का बजट भी बढ़ा दिया है. 2008 से 2017 के बीच बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट 3,305 करोड़ रुपए से लेकर चार हज़ार 670 करोड़ रुपए के बीच रहा करता था लेकिन 2023-24 के लिए BRO का बजट 15 हज़ार करोड़ रुपए है. वहीं, 2022-23 में BRO ने सीमा पर इन्फ्रा विकास के लिए 12 हज़ार 340 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे. 2021 में ये रक़म नौ हज़ार तीन सौ 75 करोड़ रुपए, 2020 में क़रीब नौ हज़ार करोड़ रुपए और 2019 में सात हज़ार 737 करोड़ रुपए थी. यानी चार साल के भीतर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट दो गुने से भी ज़्यादा हो गया है… इसका ट्रिगर प्वाइंट गलवान वैली में PLA और इंडियन आर्मी के बीच ख़ूनी संघर्ष था… उसके बाद से ही मोदी सरकार ने सरहदी इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेजी से विकसित करने पर फोकस किया है. BRO के चीफ़ ने बताया कि आज़ादी के बाद के 60 साल में BRO ने केवल दो टनल बनाई थीं, लेकिन पिछले तीन साल में बॉर्डर एरिया में चार टनल का काम पूरा हो चुका है, 10 टनल पर काम पूरा होने वाला है और फॉरवर्ड लोकेशन्स पर सात टनल का प्लान भी तैयार है. लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने माना कि बॉर्डर एरिया के डेवेलपमेंट में अभी चीन भारत से काफ़ी आगे है. उसने LAC पर कई एयरस्ट्रिप बना ली हैं, फॉरवर्ड बेस बना लिए हैं, लेकिन BRO चीफ का कहना है कि अगले दो तीन साल में भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा. भारत ने चीन की सीमा पर जो इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया है , इसकी बहुत जरूरत थी. आज सरहद पर चीन और भारत की सेनाएं आमने सामने हैं. चीन पिछले कई साल से यहां इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता रहा लेकिन दुख की बात ये है कि पहले ही हमारी सरकारों ने भारत-चीन सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया ये सोचकर कि कहीं चीन नाराज न हो जाये. उस सरकार की सोच ऐसी थी कि हम चीन का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार में रक्षी मंत्री रहे ए के एंटोनी ने 6 सितंबर 2013 को लोकसभा में कहा था कि सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के मामले में चीन हमसे बहुत आगे है, हम उसका सामना नहीं कर सकते. उस समय की सरकार ने सीमा के आस-पास सड़क, टनल, और एयरफील्ड्स बनाए ही नहीं क्योंकि उस समय हमारी सरकार की नीति रही है कि ‘non-developed border is more secure than developed border’. यही वजह थी कि चीन हमको आंख दिखाता था लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस नीति को बदल दिया, रक्षात्मक होने की बजाय आक्रामक नीति बनाई. चीन को उसी की भाषा में जबाव दिया और अब हमारी सेनाएं हर मौसम में चीन का मुकाबला करने को तैयार है. आज जिस विशाल पैमाने पर सड़कों, पुलों, टनल और एयरस्ट्रिप का उदघाटन हुआ, वो एक बड़ी बात है. अब हमारे सैनिकों को टैंक और तोपों को सरहद तक पहुंचाने में देर नहीं लगेगी. लेकिन राहुल गांधी को ये सब दिखाई नहीं देता. क्योंकि उन्हें हर हाल में नरेन्द्र मोदी का विरोध करना है. भले ही उसके लिए चीन का परोक्ष रूप से समर्थन क्यों न करना पड़े. हकीकत कुछ भी हो, लेकिन विरोधी दलों के नेताओं का एक ही लक्ष्य है, नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाना, मोदी का विरोध करना.
INDIA BUILDS ROADS, BRIDGES, TUNNELS ON CHINA BORDER
Defence Minister Rajnath Singh on Tuesday dedicated to the nation 90 infrastructure projects, worth over Rs 2,900 crore, built by Border Roads Organisation and spread over 11 states and union territories. Among the projects that were opened are the Nechiphu tunnel in Arunachal Pradesh, two airfields in West Bengal, two helipads, 22 roads and 63 bridges. Out of the 90 projects, 36 are in Arunachal Pradesh, 26 in Ladakh, 11 in Jammi and Kashmir, three in Himachal Pradesh and two each in Sikkim, Uttarakhand and West Bengal, all along the Line of Actual Control facing China. Five projects were inaugurated in Mizoram and one each in Rajasthan, Nagaland and Andaman and Nicobar Islands. These projects are strategically vital and they were completed by BRO in record time using state-of-the-art technology. The half a kilometre long Nechiphu tunnel in Arunachal Pradesh, along with under-construction Sela tunnel, will provide all-weather connectivity for the Indian armed forces to reach the strategic Tawang area. Similarly, two airfields have been built in Bagdogra and Barrackpore in West Bengal. Rajnath Singh laid the foundation stone for Nyoma airfield in eastern Ladakh to augment IAF’s capability. This will be one of the world’s highest airfield and can be a gamechanger for Indian army. Similarly, Shinkun La tunnel, the world’s highest tunnel at an altitude of 15,855 feet is being built to connect Lahaul-Spiti in Himachal Pradesh to Zanskar valley in Ladakh, which will provide all-weather connectivity. In the last two years, BRO has built 295 infrastructure projects at a cost of nearly Rs 8,000 crore. Rajnath Singh said, India-China border infrastructure has been developed on a large scale during nine years of Modi’s rule. In comparison, no work on such a scale took place in the preceding sixty years, he said. Earlier, Indian army, BSF and ITBP used to face problems in moving to border areas near China at high altitudes due to lack of roads, bridges and tunnels. There was lack of political will at the top and meagre funds used to be allocated for border infrastructure. BRO chief Lt Gen Rajeev Chaudhry said, the day is not far off when India will leave China behind in Himalayan border region infrastructure. He gave some details which were astonishing. From 2008 till 2015, BRO was building 632 km border roads every year, but since 2015, this has jumped to 934 km per year. From 2008 till 2015, BRO was building 1,224 metre bridges every year, but now it has risen to 3,652 km annually. The speed and scale of work has increased along with allocation of funds. From 2008 till 2017, annual BRO budget used to be between Rs 3305 crore and Rs 4670 crore, but for 2023-24, BRO budget is Rs 15,000 crore. BRO spent Rs 12,340 crore on border infra development in 2022-23. In the last four years, BRO budget has almost doubled and the trigger point was the bloody clash between Indian army and Chinese PLA soldiers in Galwan valley of Ladakh. Lt Gen Chaudhry said, since independence, BRO built only two tunnels during 60 years, but in the last three years, BRO has completed work on four tunnels, and ten more tunnels are approaching completion. Plans for building seven more tunnels at forward locations are ready. At a time, when Congress leader Rahul Gandhi has been alleging that Chinese army has occupied a large part of Indian territory that was being used by shepherds and locals in Ladakh, these achievements of BRO are indeed a welcome step. Ladakh’s Lt. Gov Retd Brigadier B D Mishra has replied to Rahul’s charge and said that he personally visited forward areas and found that not a single inch of land has been occupied by the enemy. The border infrastructure that has been built near LAC is strategically essential, particularly at a time when the armies of both countries are facing each other. China had been developing its border infrastructure continuously, but sadly our previous governments did not develop infrastructure on our side fearing that China may object. The previous government had presumed that India will not be able to match China in building border infra. A. K. Antony, who was defence minister in Manmohan Singh government had told the Lok Sabha on September 6, 2013 that China is far ahead in border infra development, and India cannot match it. The then government did not build roads, tunnels and airfields near the border because its policy was that ‘non-developed border is more secure than developed border’. This, precisely, was the reason why China had been aggressive towards India, but Prime Minister Narendra Modi has now changed the entire lexicon. He has now adopted an aggressive policy replacing the earlier defensive posturing. Modi has replied to China in its own language and today our armed forces are ready to face China in any weather. The building of roads, bridges, tunnels and airstrips on our border is a notable achievement. Our tanks and guns will be able to move towards forward positions at a faster pace, but Rahul Gandhi does not find this exciting. He continues to adopt a posture against Narendra Modi, even if it amounts to indirectly supporting China. Opposition leaders have been trying day in and day out to tarnish Modi’s image.
HOW INDIA WILL BENEFIT FROM SAUDI FRIENDSHIP?
The state visit of Saudi Arabian Crown Prince Mohammed bin Salman, close on the heels of the successful G-20 Delhi Summit, has underlined the deep strategic friendship between both countries. It augurs well for future bilateral trade and cooperation. India and Saudi Arabia have started negotiating about the possibility of trading in rupee and riyal, and speeding up negotiations for a free trade agreement between India and Gulf Cooperation Council. On Monday, both countries signed eight agreements, including one to upgrade hydrocarbon energy partnership to a comprehensive energy partnership for renewables, petroleum and strategic reserves. A task force will be set up for $100 billion Saudi investment, half of which will be invested in India’s west coast refinery. The new India-Middle East-Europe corridor that will pass through Saudi Arabia will include ports, railways, roads and also power, gas grids and optical fibre network. Saudi Arabia is India’s fourth largest trading partner and India imports 18 per cent of crude from Saudi Arabia. Since Narendra Modi became Prime Minister, he has visited Saudi Arabia twice, while this is Mohammad bin Salman’s second India visit. Both have a wonderful personal chemistry. The Saudi Crown Prince said at Monday night banquet that Indians constitute seven per cent of the country’s population and they have been contributing majorly in his country’s progress. Both countries are expected to start a joint exercise of air force and army soon. Talks are on for joint manufacturing of defence products. India has the second large Muslim population in the world after Indonesia. The most sacred pilgrimage sites of Islam are in Mecca and Medina in Saudi Arabia. Both countries have a natural relationship that spans several centuries. Both Modi and Mohammad bin Salman have a similar work style and matching thought process. While MBS has prepared Vision 2030 for Gulf countries to concentrate more on manufacturing and digital technology, Modi has prepared Vision 2047, and he plans to make India the world’s third largest economy by 2030. Since both objectives almost converge, the two leaders have decided to work jointly for mutual benefit. Saudi Arabia dominates Organization of Petroleum Exporting Countries (OPEC). After Ukraine war, Russia had been exporting crude to India at a discount, but now Russia has reduced that discount by 80 per cent. The Russian oil discount has decreased from $30 per barrel to only $4 per barrel now. Due to western sanctions, India is now paying in Chinese currency yuan for Russian oil. It is, in this context, that India is now focussing on rupee-riyal trade for ensuring easier crude imports from Saudi Arabia. If achieved, this will be a big diplomatic victory, because India will not have to depend much on Russian crude. At the same time, China will get the right answer.
G20 : WORLD APPLAUDS INDIA, OPPOSITION CRITICIZES MODI
The Group of 20 Delhi summit is over and most of the esteemed guests have left, but domestic politics over this event is still on the boil. Because of G20 summit, opposition unity seems to be in danger. Trinamool Congress chief Mamata Banerjee attended the President’s G20 dinner, but on Monday, Congress leader Adhir Ranjan Chowdhury questioned why Mamata was in a hurry to attend and she shared the same table with Amit Shah and Yogi Adityanath. ‘What message is Mamata going to convey’, he asked. The Congress leader described Mamata as ‘agnikanya’ (firebrand lady) and said nobody would have caught her neck if she had skipped the dinner. Mamata Banerjee did not respond to Choudhury’s taunt, but she questioned why the entire G20 summit had a preponderance of ‘lotus’ flowers, the BJP’s poll symbol. Congress President Mallikarjun Kharge is sulking over not being invited to the dinner. On Monday, Kharge said, now that the summit is over, Modi government should concentrate on tackling problems of inflation, unemployment, corruption, Manipur violence and Himachal natural disaster. Congress leader Sachin Pilot wanted to know why Mallikarjun Kharge, the Leader of Opposition in Rajya Sabha, was not invited to G20 dinner. Another Congress leader Shashi Tharoor described the Delhi Declaration as a great success. Tharoor understands the nuances of international diplomacy because he was Under Secretary General at the United Nations. His praise carries weight. BJP leader Ravi Shankar Prasad said, other Congress leaders should learn from Tharoor. Union Minister Jyotiraditya Scindia said, the opposition seems to be worried because the world has accepted Narendra Modi as a leading statesman. ‘Those criticising the government for G20 are jealous and this reflects their narrow thinking’, Scindia said. Opposition parties agree, G20 summit was a success, but some of these parties are now trying to corner credit. Janata Dal(U) leader Lallan Singh claimed that Modi should be grateful to Bihar CM Nitish Kumar, who brought the life back to Nalanda University, which provided the backdrop during the G20 dinner reflecting India’s rich heritage. RJD founder Lalu Prasad Yadav said, since G20 summit is held every year on rotational basis, there was no need to spend several thousand crores on the Delhi summit. “There was no benefit for the common man”, Lalu said. Aam Aadmi Party ministers Atishi and Saurabh Bhardwaj claimed that it was Delhi’s Kejriwal government which beautified the capital from its own funds during G20 summit. I have mentioned these remarks here, so that you can understand how our leaders never see anything beyond their own gains or losses, whatever may be the occasion and whether it is a question of nation’s prestige or not. It is right that other countries too have hosted G20 summits, but no other summit was able to attract similar global interest. In no other country, did any opposition party criticize its own government for hosting G20 summit. This can happen only in India. I think our leaders should go through the headlines put out by western media. American Broadcasting Corporation (ABC News) write, ‘India forges compromise among divided world powers at G20 summit in a diplomatic win for Modi’. Another US media organisation Bloomberg wrote, ‘India’s G20 win shows US learning how to counter China’s rise’. The British newspaper Financial Times reported on how India dominated G20 summit, while The Guardian wrote ‘Modi boosted his image’. Another website on diplomatic issues Politico wrote, India’s time has come and Modi has shown that he can play a big role on world level. News agency Reuters attributed G20 summit’s success to Modi’s magical leadership. I think, at a time when the world is praising the Indian leadership, opposition leaders should avoid playing political games on issues which are connected to the nation’s prestige.
सउदी अरब के साथ दोस्ती से भारत को फायदा पहुंचेगा
सउदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की एक दिन की भारत यात्रा जी-20 शिखर सम्मेलन के तत्काल बाद हुई है, और इस यात्रा से दोनों मुल्कों की आपसी दोस्ती और मजबूत हुई है. दोनों देशों के बीच जल्दी ही रूपए-रियाल में कारोबार शुरू होगा. अभी आयात-निर्य़ात का भुगतान डॉलर में होता है. दोनों देशों की थल सेना और वायु सेना के साझा य़ुद्धाभ्य़ास के लिए भी बातचीत चल रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मोहम्मद बिन सलमान की औपचारिक बैठक में ये तय हुआ कि भारत में 100 अरब डॉलर के सउदी पूंजीनिवेश को पूरी कराने के लिए एक टास्क फोर्स बनेगा. इसमें से आधी रकम भारत के पश्चिमी तट पर तेल रिफायनरी लगाने पर खर्च होगी, जो कि काफी समय से लम्बित है. भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा एनर्जी पार्टनर है. वहीं सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी पार्टनर है. भारत अपने कच्चे तेल के आयात का 18 परसेंट सऊदी अरब से ख़रीदता है. G20 सम्मेलन में मोदी ने भारत से यूरोप तक इकॉनॉमिक कॉरिडोर बनाने का एलान किया था. चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के जवाब में बनाए जाने वाले इस कॉरिडोर में सऊदी अरब भी पार्टनर होगा क्योंकि रेल कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा सऊदी अरब से होकर गुज़रेगा. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी दो बार सऊदी अरब का दौरा कर चुके हैं. प्रिंस सलमान भी दूसरी बार भारत की यात्रा पर आए हैं. प्रिंस सलमान और प्रधानमंत्री मोदी की पर्सनल केमिस्ट्री ने भी सबसे पावरफुल मुस्लिम देश से भारत के रिश्ते बेहतर बनाए हैं. मोदी सरकार की कोशिशों से सऊदी अरब ने भारत का हज कोटा बढ़ाकर दो लाख कर दिया है. भारत और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं, जो दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद साबित हुए हैं. दोनों देशों के बीच कभी भी मतभेद नहीं रहे हैं. अब दोनों देश मिलकर बेहतर भविष्य बनाने के लिए काम कर रहे हैं. हम दोनों देश मिलकर इस स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप काउंसिल के ज़रिए भविष्य में प्रगति के तमाम अवसरों पर काम कर रहे हैं. जब से यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, तब से भारत अपने ऑयल इम्पोर्ट का बोझ घटाने के लिए डॉलर के बजाय रूपये में कारोबार पर ज़ोर दे रहा है. सऊदी अरब के साथ भी भारत ने रूपये में कारोबार करने की बातचीत शुरू की है. अगर बात बन गई तो भारत को इससे काफ़ी फ़ायदा होगा. इंडोनेशिया के बाद दुनिया में मुस्लिम्स की सबसे ज्यादा आबादी भारत में हैं. मुसलमानों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थल मक्का और मदीना सऊदी अरब में ही हैं. इसलिए भारत और सऊदी अरब के रिश्ते सैकड़ों साल पुराने और सहज हैं. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच और काम का स्टाइल भी काफी मिलता जुलता है. मोहम्मद बिन सलमान ने विजन 2030 बनाया है जिसके तहत वो चाहते हैं, खाड़ी के मुल्क तेल उत्पादन पर निर्भरता को कम करके मैन्युफैक्चरिंग और डिजिटल टैक्नोलॉजी पर ध्यान दें. मोदी ने विजन 2047 दिया है. मोदी 2030 तक बारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्य़वस्था बनाना चाहते हैं. चूंकि सऊदी अरब और भारत के सपने और लक्ष्य एक जैसे हैं इसलिए दोनों देश मिलकर काम करें तो दोनों का फायदा होगा. एक और बड़ी बात पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग देशों के संगठन OPEC में भी सऊदी अरब का दबदबा है. यूक्रेन युद्ध के बाद, रूस ने भारत को तेल पर जो डिस्काउंट देना शुरू किया था, वो अब रूस ने 80 परसेंट तक कम कर दिया है. रूस का डिस्काउंट 30 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 4 डॉलर ही रह गया है. वहीं पश्चिमी देशों की पाबंदी की वजह से तेल के बदले में भारत को चीन की करेंसी युआन में भुगतान करना पड़ रहा है. इसी वजह से, भारत ने अपने तेल आयात को फिर से अरब देशों पर फोकस कर दिया है. खाड़ी में सऊदी अरब ही भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. अब अगर सऊदी भारत को ज्यादा तेल सप्लाई करने और रूपए में पेमेंट लेने को तैयार हो जाता है तो ये बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी क्योंकि इससे रूस पर तेल के मामले में निर्भरता खत्म होगी और चीन को भी जवाब मिलेगा.
जी-20 : दुनिया में मोदी की तारीफ, यहां विपक्ष ने की आलोचना
हालांकि G-20 शिखर बैठक खत्म हो चुकी है, ज्यादातर मेहमान लौट गए हैं लेकिन इस पर सियासत जारी है. बड़ी बात ये है कि G-20 के कारण विरोधी दलों की एकता भी खतरे में पड़ गई हैं. ममता बनर्जी G-20 के दौरान राष्ट्रपति की तरफ से दिए गए भोज में शामिल हुई थी. ये बात कांग्रेस के नेताओं को अच्छी नहीं लगी. अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार ने विपक्ष का अपमान किया, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को आमंत्रित नहीं किया. इसके बाद भी ममता बनर्जी राष्ट्रपति के डिनर में दौड़कर पहुंच गईं और वहां भी अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के साथ एक ही टेबल पर बैठीं. अधीर रंजन ने कहा कि ममता क्या संदेश देना चाहती हैं. अधीर रंजन ने ममता को अग्निकन्या कहा, कहा कि अगर अग्निकन्या डिनर में न जातीं तो क्या कोई उनकी गर्दन पकड़ लेता. हालांकि ममता बनर्जी ने अधीर रंजन के इस इल्ज़ाम का तो कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उन्होंने G20 को लेकर एक अलग ही सवाल उठा दिया. ममता ने कहा कि पूरे G20 सम्मेलन में कमल के फूल को दिखाया गया था, ये तो बीजेपी का चुनाव निशान है, ऐसा नहीं करना चाहिए था. राष्ट्रपति के डिनर में न बुलाए जाने से मल्लिकार्जुन खरगे भी खफा हैं. खर्गे ने सरकार पर जोरदार हमला किया. कहा, अब तो G-20 भी खत्म हो गया, अब मोदी सरकार महंगाई, बेरोज़गारी, करप्शन, मणिपुर की हिंसा और हिमाचल प्रदेश में आपदा से निपटने पर ध्यान दे. लेकिन कांग्रेस के दूसरे नेता इसी बात को मुद्दा बनाकर सरकार को कोस रहे हैं कि राष्ट्रपति के डिनर से विपक्ष के नेताओं को दूर क्यों रखा गया. सचिन पायलट ने कहा कि G20 के डिनर में सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को आमंत्रित नहीं किया, ये काम बहुत ग़लत कदम था. हालांकि कूटनीति को समझने वाले कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा कि G20 के बाद सर्वसम्मति से घोषणपत्र जारी हुआ, ये बड़ी बात है, ये नरेन्द्र मोदी की सरकार की बड़ी कामयाबी है. शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र में अवर महासचिव रह चुके हैं. उनके शब्दों में वजन है, क्य़ोंकि वह अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति के माहिर हैं. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने थरूर की तारीफ की. कहा, कांग्रेस के दूसरे नेताओं को थरूर से सीखना चाहिए. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि विरोधी दलों इसलिए बेचैन हैं क्योंकि मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया में सफलता के झंडे गाड़ रहा है. कहा, जो लोग G-20 को लेकर भारत सरकार की आलोचना कर रहे हैं, ये उनकी संकुचित सोच और जलन का सबूत है. दिलचस्प बात ये है कि विरोधी दलों के नेता भी ये मान रहे हैं कि G-20 बैठक सफल रही. कुछ पार्टियां तो सफलता का श्रेय भी ले रही हैं. जनता दल-यू के नेता लल्लन सिंह ने दावा किया कि G-20 में नीतीश कुमार के कामों की वजह से भारत को दुनिया के सामने गौरवान्वित होने का मौक़ा मिला. असल में G20 डिनर के समय नालंदा विश्वविद्यालय का जो बैकड्रॉप रखा गया था वह भारत की समृद्ध विरासत का परिचायक था. ललन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को नीतीश कुमार के आगे नतमस्तक होना चाहिए क्योंकि हज़ारों साल पुरानी नालंदा यूनिवर्सिटी को नीतीश कुमार ने ही फिर से ज़िंदा किया था. अब मोदी, नीतीश के किए काम को दुनिया को दिखाकर श्रेय ले रहे हैं. आरडेजी के संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने कहा कि G-20 बैठक तो हर साल होती है, सभी सदस्य देश इसकी मेजबानी करते हैं, लेकिन कोई इतना पैसा खर्च नहीं करता, जितना मोदी सरकार ने कर दिया. लालू यादव ने कहा कि सरकार ने हज़ारों करोड़ रुपए ख़र्च करके विदेशी मेहमानों की आवभगत की लेकिन इससे देश की आम जनता को कोई फ़ायदा नहीं हुआ. उधर, आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दावा किया कि G-20 के समय दिल्ली को सजाने संवारने के लिए केन्द्र सरकार ने कोई पैसा नहीं दिया, सारा पैसा दिल्ली सरकार का लगा. दिल्ली सरकार की मेहनत से दिल्ली का कायकल्प हुआ. अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट के दो मंत्रियों आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने कहा कि G20 को दिल्ली वालों ने अपने पैसे से कामयाब बनाया. मैंने आपको ललन सिंह, लालू यादव, अधीर रंजन चौधरी और आतिशी की बात इसलिए बताई, जिससे आप समझ सकें कि मौका कोई भी हो, मंच कितना भी बड़ा हो, भले ही देश की प्रतिष्ठा का सवाल हो, लेकिन हमारे यहां नेता सियासी नफे नुकसान से ऊपर उठकर नहीं सोच पाते. ये सही है कि इससे पहले दूसरे देशों ने भी G-20 की मेजबानी की. लेकिन न तो कभी किसी समिट की दुनिया में इतनी चर्चा हुई और न किसी देश के विरोधी दलों ने इससे पहले G-20 सम्मिट के लिए अपनी सरकार की आलोचना की. ये हमारे देश में ही हो सकता है. मुझे लगता है कि हमारे देश के नेताओं को कम से कम G-20 को लेकर इंटरनेशल मीडिया में जो खबरें छपी हैं, उन पर गौर करना चाहिए. अमेरिका के ABC न्यूज़ ने लिखा कि G20 समिट में भारत ने बंटी हुई दुनिया की ताक़तों को एकजुट किया, ये मोदी की कूटनीतिक जीत है. एक और अमेरिकी मीडिया ऑर्गेनाइज़ेशन ब्लूमबर्ग ने लिखा कि G20 में भारत की जीत अमेरिका को सबक़ सिखाती है कि आक्रामक होते चीन को कैसे काउंटर किया जाता है. ब्रिटेन के फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा कि G20 समिट में भारत छा गया. डिप्लोमैटिक इश्यूज़ पर लिखने वाली पॉलिटिको ने लिखा कि, भारत का टाइम आ गया है. मोदी ने दिखा दिया कि वो विश्व स्तर पर बड़े रोल निभा सकते हैं. ब्रिटिश अख़बार द गार्जियन ने लिखा कि G20 सम्मेलन भारत के बढ़ते दबदबे को दिखाता है. न्यूज़ एजेंसी रायटर्स ने भी भारत में G20 समिट की कामयाबी को मोदी की लीडरशिप का कमाल बताया. मुझे लगता है कि आज जब दुनिया भारतीय नेतृत्व की तारीफ़ कर रही है तो विपक्षी नेताओं को भी देश के सम्मान के मुद्दों पर राजनीति करने से बचना चाहिए .
G20 summit : Modi’s vision
The G20 summit got off to a dazzling start on Saturday at the newly built Bharat Mandapam Convention Centre in Delhi, with Prime Minister Narendra Modi presiding. African Union was added as a new member of the group. But the talking point was about the placard displaying the name ‘Bharat’ instead of ‘India’, when Modi addressed the august gathering. G20 summit has been held previously in 18 countries, but this is being held in India for the first time, on a scale so huge, which no other host country could do. Some may raise questions about the benefits that would accrue to Bharat. They should understand that if Bharat wants to be a global leader, G-20 is the route. This group consists of countries which command a total of 80 per cent in world GDP, which has a 75 pc share of international trade, and comprises more than two-thirds of the world population. G-20 covers 60 per cent of world’s geographical area. Consider the big scale of this platform. Modi realized the importance of G-20, coordinated with its member countries and strove to make it the world’s biggest forum. G20 summits used to be held earlier in many countries, leaders used to deliver speeches, resolutions used to be passed before the summits ended, but Modi tried to link it with the people. Popular participation was encouraged. G20 held nearly 200 meetings in 60 cities and towns of India. All the states and union territories arranged nearly 300 cultural programs involving 18,000 artistes for the world to see. More than a lakh delegates took part in those meetings. Nearly 1.5 crore Indians were part of these programmes in one way or the other. Instead of continuing with the tradition of holding only a summit of head of states, he made it a public-to-public contact platform for member countries. There lies the significance. It is surely going to give a boost to business, tourism, employment and trade. The theme ‘One Earth, One Family, One Future’ outlined by Modi will help achieve its aims. Even former Prime Minister Dr Manmohan Singh praised the G20 summit on Friday. He said, “I am very glad that India’s rotational chance for the Presidency of the G20 came during my lifetime and I am witness to India hosting world leaders for the G20 summit…I am more optimistic about India’s future than worried.” Dr Manmohan Singh is regarded as the most experienced and veteran leader of Congress and his words carry meaning. But Congress leader Rahul Gandhi is not happy. He was in Brussels, Belgium on Friday, where, while addressing a press conference, he levelled several allegations on Modi government and repeated that democracy was in danger in India. He even praised China’s manufacturing model by becoming a world production center, but added that India should explore an alternative democracy-based model. Rahul said, India’s government has no proper future vision, but if anybody questions Rahul about his vision and thoughts, he may take it amiss. Was it proper to make such remarks at a time when the world’s attention was focused on G20 summit in India? Was it proper for the leader of India’s biggest opposition party to sit in Europe and point out weaknesses? This cannot be a coincidence. It was a well thought-out exercise. Was this strategy right and in the national interest? Rahul Gandhi will neither think about it nor try to understand. At least senior Congress leaders should think.
G-20 शिखर सम्मेलन : मोदी का विज़न
G-20 शिखर सम्मेलन आज दिल्ली के भारत मंडपम कन्वेन्शन सेंटर में शुरु हो गया. सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीकन यूनियन को G-20 में बतौर सदस्य शामिल करने की घोषणा की. आज जब प्रधानमंत्री भाषण दे रहे थे, उस समय मंच पर इंडिया की बजाय भारत लिखा हुआ था. इससे पहले G-20 शिखर सम्मेलन 18 देशों में हो चुका है लेकिन भारत में पहली बार हो रहा है और किसी भी देश ने इसको इतने बड़े पैमाने का आयोजन नहीं बनाया जितना बड़े स्केल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे पहुंचा दिया. कुछ लोग ये पूछ सकते हैं , इससे क्या फायदा? भारत को इससे क्या मिलेगा? उन लोगों को समझना चाहिए कि अगर भारत को ग्लोबल लीडर बनना है, तो G-20 बड़ा ज़रिया हो सकता है क्योंकि दुनिया की GDP में 80 परसेंट भागीदारी G-20 में शामिल देशों की है, दुनिया का 75 परसेंटअन्तरराष्ट्रीय व्यापार G-20 देशों के बीच होता है. दुनिया की दो तिहाई आबादी G-20 देशों में रहती है और दुनिया का 60 परसेंट भौगोलिक क्षेत्र G-20 का देशों का है. सोचिए, ये कितना बड़ा मंच है. इसीलिए मोदी ने G-20 के महत्व को समझा, इसके सदस्य देशों को समझाया और इस मंच को दुनिया का सबसे बड़ा मंच बनाने की दिशा में आगे बढ़े. इससे पहले G-20 की बैठकें जिन देशों में होती थी, वहां नेताओं के भाषण होते थे, कुछ प्रस्ताव पास होते थे और बैठक खत्म होती थी, लेकिन मोदी ने इसे जनता से जोड़ा, आम लोगों की भागीदारी इसमें बढ़ाई. पिछले साल दिसंबर में G-20 की अध्यक्षता भारत को मिली, तब से लेकर अब तक हमारे देश में G20 की अलग अलग 220 बैठकें हो चुकीं. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में तीन सौ सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, इनमें पूरे देश के 18 हजार कलाकारों ने हिस्सा लिया. दुनिया भर के एक लाख से ज्यादा प्रतिनिधि इनमें शामिल हुए. हमारे देश के डेढ़ करोड़ लोग किसी ने किसी रूप में इन कार्यक्रमों का हिस्सा बने. मतलब मोदी ने उस मंच को,जो पहले सिर्फ राष्ट्राध्यक्षों का मंच था, उसे सदस्यों देशों के लिए पब्लिक टू पब्लिक कॉन्टैक्ट का मंच बना दिया. ये बड़ी बात है, इससे बिजनेस बढ़ेगा, टूरिज्म बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा और मोदी ने G-20 की जो थीम रखी है – वन अर्थ, वन फेमिली, वन फ्यूचर, उसके लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी. पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भी इसकी तारीफ की है. मनमोहन सिंह ने कहा है कि उन्हें अपने जीवन में G20 सम्मिट भारत में होते देखकर तसल्ली है और उन्हें भारत के सुनहरे भविष्य को लेकर पूरा भरोसा है. डॉक्टर मनमोहन सिंह कांग्रेस के नेता सबसे बुजुर्ग, सबसे अनुभवी नेता हैं, इसलिए मनमोहन के लफ्ज़ मायने रखते हैं, लेकिन राहुल गांधी इस सबसे बहुत ख़ुश नहीं हैं. राहुल इस वक्त बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हैं. उन्होंने वहां प्रेस कॉन्फ्रेंस की, मोदी सरकार पर तमाम आरोप लगाए. कहा, भारत में लोकतन्त्र खतरे में हैं.अल्पसंख्यकों और छोटी जातियों के लोग सुरक्षित नहीं हैं. बेरोजगारी चरम पर है. राहुल जो यहां कहते हैं वही ब्रसेल्स में कहा, लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जब भारत में G-20 शिखर बैठक हो रही है, स वक्त राहुल ने ब्रसेल्स में चीन की तारीफ की. कहा, चीन दुनिया में मैन्युफैक्चरिग का लीडर बना हुआ है, चीन ने BRI का कॉन्सैप्ट दिया, ये सब भारत में भी होना चाहिए लेकिन भारत के पास अभी उस तरह का विज़न नहीं है. राहुल गांधी यूरोप में जाकर कर ये कह रहे हैं कि भारत के पास फ्यूचर का विजन नहीं है. चीन की प्लानिंग और विजन राहुल को अच्छा लग रहा है लेकिन अब अगर कोई राहुल के विजन , उनकी सोच पर सवाल उठाए तो उन्हें बुरा लगेगा. क्या ये सोच ठीक है कि जिस वक्त पूरी दुनिया की निगाह भारत पर हो, जिस वक्त दुनिया के बड़े बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली में हों, जिस वक्त पूरी दुनिया में G-20 सम्मिट की चर्चा हो, उस वक्त भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का सबसे प्रभावशाली नेता यूरोप में बैठकर भारत की कमियां गिनाए? भारत को कोसे? भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करे? क्या ये ठीक सोच है? जब दिल्ली में G-20 सम्मिट हो रही है, ठीक उसी वक्त राहुल का यूरोप जाना, ये इत्तेफाक तो नहीं हो कता. ये तो सोच समझ कर, रणनीति के तहत तय किया गया होगा. क्या ये रणनीति सही है? देश के हित में है? ये सब राहुल गांधी तो न सोचेंगे और न समझेंगे लेकिन कम से कम कांग्रेस के नेताओं को तो सोचना चाहिए.
सनातन विरोधी ज़हर मध्य प्रदेश, राजस्थान में कांग्रेस की संभावनाओं पर असर डाल सकता है
विरोधी दलों की तरफ से एक बार फिर सनातन धर्म पर हमला हुआ. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि के बाद अब उनकी पार्टी के बड़े नेता ए. राजा ने कह दिया कि सनातन डेंगू मलेरिया जैसी नहीं, कोढ़ और एड्स जैसी बीमारी है. ए. राजा ने कहा कि स्टालिन ने तो सनातन के प्रति थोड़ी नरमी बरती, उसकी तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से की. राजा ने कहा कि सनातन की तुलना तो कोढ़ और एड्स से होनी चाहिए जिनके मरीजों से समाज दूरी बना लेता है. यही सनातन के साथ होना चाहिए. हैरानी की बात ये है कि उदयनिधि स्टालिन के बयान के समर्थन में पूरी DMK पार्टी खड़ी है. पार्टी के नेता सिर्फ समर्थन नहीं कर रहे हैं, उदयनिधि से दो कदम आगे जाकर बोल रहे हैं. उदयनिधि के पिता और तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर एम के स्टालिन ने भी बेटे के बयान का समर्थन किया. कहा, उदयनिधि ने कोई नई बात नहीं की, जो पेरियार और अंबेडकर बहुत पहले कह गए, वही उदयनिधि ने कहा है, बस शब्द अलग हैं और शब्दों को पकड़ कर बीजेपी के नेता मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे जनता का ध्यान दूसरे जरूरी मुद्दों से हट जाए. .ए राजा अलाव मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे ने फिर कहा कि ये कहना क्या गलत है कि जो धर्म इंसानों में भेदभाव करे., जो लोगों को ऊंच-नीच सिखाए, उसे खत्म हो जाना चाहिए. खरगे ने कहा कि उन्होंने किसी धर्म का नाम नहीं लिया, इसलिए जो लोग उनके खिलाफ केस दर्ज करवा रहे हैं, उसकी उन्हें कोई परवाह नहीं. ए राजा और प्रियांक खरगे के बाद बिहार में RJD के अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कह दिया कि टीका लगाकर घूमने वालों के कारण ही देश गुलाम हुआ था. चूंकि सनातन धर्म के बारे में कहने वाले छोटे मोटे नेता नहीं हैं, उदयनिधि स्टालिन DMK प्रमुख के बेटे हैं, प्रियंक खरगे कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे हैं, दोनों विरोधी दलों के गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टियां हैं, जगदानंद सिंह RJD के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं, लालू यादव के करीबी हैं, इसीलिए कहा जा रहा है कि दक्षिण से लेकर उत्तर तक सनातन पर ये हमला बिना सोचे समझे कैसे हो सकता है? अगर ऐसा होता तो ये पार्टियां या फिर गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता इस तरह के बयानों का विरोध करते, लेकिन नहीं किया. क्यों नहीं किया? बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद संविधान की मूल कॉपी लेकर आए, दिखाया कि संविधान में राम दरबार है, बजरंग बली की तस्वीर है, संविधान में भी सनातन समाहित है. रविशंकर ने कहा कि DMK के नेता भी इसी संविधान की कसम खाते हैं, लेकिन वे इस संविधान का अपमान कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल इस पर ख़ामोश है. कुछ लोग ये कह सकते हैं कि DMK के नेता इस तरह की बातें पहली बार नहीं कर रहे. वे हिन्दुत्व को नहीं मानते, हिन्दू धर्म का विरोध करते हैं, इसलिए अगर वो सनातन का विरोध कर रहे है तो कौन सी बड़ी बात है? लेकिन यहां बात टाइमिंग की है. जो शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनकी है. इससे पहले DMK के नेताओं ने जात-पात, भेदभाव के खिलाफ बयान दिए थे, सनातन में पैदा हुई खामियों की बात की थी लेकिन कभी ये नहीं कहा था कि सनातन एक बीमारी है, सनातन का समूल नाश होना चाहिए. ये एक खतरनाक प्रवृत्ति है, इसे सहन नहीं किया जा सकता क्योंकि ये देश के करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला है. ये बयानबाजी मुंबई में हुई विरोधी दलों के गठबंधन की बैठक के बाद शुरू हुई हैं. उस बैठक में एम के स्टालिन मौजूद थे. बैठक के चार दिन के बाद उनके बेटे उदयनिधि ने सनातन के खिलाफ जंग का एलान कर दिया. एम के स्टालिन ने दो दिन तक चुप्पी साधे रखी और उसके बाद उदयनिधि के बयान को सही बता दिया. तो क्या ये सब अनायास हो रहा है? कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि जब पार्टी के एक नेता ने बयान दे दिया, मुख्यमंत्री ने उसका समर्थन कर दिया तो फिर बाकी नेता भी उसी लाइन पर चल रहे हैं. इसलिए ये ए राजा की मजबूरी है. तो मैं आपको बता दूं कि ए राजा ने पार्टी की एक मीटिंग में पिछले साल अलग राष्ट्र बनाने की मांग कर दी थी. जुलाई 2022 में कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री तमिलनाडु को स्वायत्तता नहीं दे रहे हैं. वे तमिल जनता को अलग राष्ट्र की मांग उठाने पर मजबूर कर रहे हैं. इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई, तो अगले दिन एम के स्टालिन ने ए. राजा के बयान से किनारा कर लिया था. DMK की तरफ से कहा गया था कि ए राजा के बयान से पार्टी इत्तेफाक नहीं रखती. तो अब स्टालिन को ये बताना पड़ेगा कि क्या सनातन को कोढ़ और एड्स बताना, सनातन को जड़ से खत्म करने की बात कहना, क्या देश में अलगाव की आग लगाने जैसा नहीं है? या फिर जब ए. राजा का विरोध होगा तो स्टालिन ये कहकर बचने की कोशिश करेंगे कि ए. राजा दलित हैं, इसलिए उनका विरोध हो रहा है. कांग्रेस को भी ये बताना पड़ेगा कि अगर वो उदयनिधि के बयान से सहमत नही है तो उसने उस बयान का समर्थन करने वाले मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे के बयान पर चुप्पी क्यों साध रखी है? प्रियांक के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया? वैसे सनातन धर्म पर हो रहे इस विवाद से सबसे ज़्यादा ख़ुश वामपंथी दिख रहे हैं. कम्युनिस्ट विचारधारा में धर्म को अफ़ीम कहा जाता है, वामपंथी ख़ुद को नास्तिक कहते हैं, किसी धर्म को नहीं मानते इसलिए सनातन धर्म के ख़िलाफ़ बयान देने पर वामपंथी नेता बढ़-चढ़कर उदयनिधि का बचाव कर रहे हैं. CPI के नेता डी. राजा ने कहा कि वो उदयनिधि को अपनी बात रखने का पूरा हक़ है लेकिन बीजेपी तो लोगों को बांटने का काम कर रही है. उधर उद्धव ठाकरे की शिवसेना डिफेंसिव पर आ गई. संजय राउत ने DMK के नेताओं को चेतावनी दी. कहा, वो सनातन धर्म के बारे में अनाप-शनाप बयान न दें. कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि किसी भी धर्म के बारे में अपमानजनक बात कहना ठीक नहीं है, कांग्रेस ऐसे बयानों से बिल्कुल सहमत नहीं है, सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए. सनातन धर्म के सर्वनाश की बात करने वाले DMK नेताओं की बयानबाजी सोच समझकर की गई है. ये तमिलनाडु में उनकी सियासत को सूट करती है, पर हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस इस पर खामोश है. सनातन को HIV जैसा कहना, क्या नफरत फैलाने का काम नहीं है? ये राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान का सामान कैसे हो सकता है? ये भी नोट करने की जरूरत है कि कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक सनातन धर्म पर किए गए हमलों का समर्थन कर रहे हैं. सवाल ये है कि क्या इसका संबंध मल्लिकार्जुन खरगे की भविष्य की राजनीति से है? ये भी सुनने में आया है कि खरगे अब मोदी विरोधी मोर्चे का चेहरा बनना चाहते हैं. विरोधी दलों के गठबंध में शामिल कई गैर-कांग्रेसी नेताओं ने भी कहा है कि अगर किसी दलित को प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाए, तो इसका फायदा हो सकता है. क्या इसीलिए प्रियांक खरगे खुलकर उदयनिधि की बातों का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि प्रियांक कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे हैं, इसीलिए अब तक किसी ने उनकी बात का विरोध भी नहीं किया? प्रश्न ये भी है कि क्या जो रणनीति मल्लिकार्जुन खरगे का सपोर्ट बेस बढ़ा सकती है, जो रणनीति उनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की दिशा में बढ़ा सकती है, क्या वो कमलनाथ और अशोक गहलोत के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है? क्योंकि उत्तर भारत में सनातन के सर्वनाश की बात कहना और सुनना दोनों हीं आत्मघाती साबित हो सकते हैं. जो कमलनाथ और अशोक गहलोत दिन-रात रामकथा कर रहे हैं, हनुमान चालीसा का पाठ करवा रहे हैं, वो सनातन धर्म पर हमला करने वालों पर चुप कैसे रहेंगे? अशोक गहलोत और कमलनाथ की रणनीति बिल्कुल साफ है. कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में अपने कैंपेन को अबतक लोकल मुद्दों तक सीमित रखा है. वो ना राहुल गांधी की तारीफ करते हैं, ना मोदी पर सीधा हमला करते हैं. उनका फोकस सिर्फ शिवराज सिंह चौहान पर है. वो नहीं चाहते कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का बोझ उनका नुकसान करे. इसी तरह राजस्थान में अशोक गहलोत भी केंद्र की राजनीति से नपी-तुली दूरी बनाए हुए हैं. वो कभी कभी मोदी पर हमला करते हैं लेकिन उनका भी ज्यादा फोकस राजस्थान के स्थानीय मुद्दे पर है. वो अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बल पर चुनाव लड़ रहे है. दोनों जानते हैं कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की छवि अल्पसंख्यकों का समर्थन करने वाली पार्टी की रही है. अब बदली हुई परिस्थितियों में ये दोनों नेता हिंदू भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते, वो तो अपने आप को ज्यादा प्रतिबद्ध हिन्दू दिखान चाहते हैं. श्रीराम की कथा और श्रीकृष्ण का गुनगान और बजरंगबली इन के कैम्पेन का ही हिस्सा है. लेकिन पिछले दो-तीन दिन से सनातन धर्म को लेकर जिस तरह का ज़हर उगला गया उससे बच पाना इनके लिए मुश्किल होगा. इसकी सिर्फ उपेक्षा करके काम नहीं चलेगा. लोग पूछेंगे कि सनातन धर्म का सर्वनाश चाहने वालों पर उनकी राय क्या है ? क्या काँग्रेस हिन्दू समाज के खिलाफ नफरत फैलाने वाली डीएमके के साथ गठबंधन जारी रखेगी? इसपर जवाब देना मुश्किल हो जाएगा और इन्हें मोदी की लोकप्रियता का सामना भी करना पड़ेगा. अशोक गहलोत को इसका एहसास भी हो गया है.
DMK’S ANTI-SANATAN VITRIOL CAN HAMPER CONGRESS PROSPECTS IN MP, RAJASTHAN
Opposition leaders continue to make derisive remarks about Sanatan Dharma. Senior DMK leader and former Union Minister A. Raja said, the chief minister’s son “Udhayanidhi was soft in comparing Sanatan Dharma with dengue, malaria and corona. These diseases do not have a social stigma. To be honest, Sanatan Dharma is a social stigma like leprosy and HIV…I am prepared to give replies to all cabinet ministers if the PM convenes a meeting and allow me to speak. Bring anybody. I am ready to debate on Sanatan Dharma. I don’t mind if there are 10 lakh or 1 crore people. Let them carry weapons. I will bring Periyar’s and Ambedkar’s books to Delhi for the debate.” The strangest part is that DMK stands solidly behind leaders making such offensive remarks. DMK supremo and Tamil Nadu chief minister M K Stalin issued a statement defending his son Udhayanidhi’s remarks and said, “pro-BJP forces are spreading a false narrative that Udhayanidhi has called for a genocide of people who support Sanatan Dharma. Even after Udhayanidhi’s denial, some of these ministers including Amit Shah, Rajnath Singh and others, have not retracted their statements.” The chief minister said, his son had only made remarks which have already been made by Periyar and Ambedkar in the past and “only the words are different”. Congress President Mallikarjun Kharge’s minister son Priyank Kharge said, there is nothing wrong in questioning social differences which need to be eradicated. He claimed that he did not name any religion, and he was not bothered about FIRs filed against him. In Patna, Bihar RJD chief Jagadanand Singh stoked another controversy by saying that “India was enslaved because of people who sported ‘tikka’ and ‘tilak’ on their foreheads”. Since the leaders who are making such outrageous comments are senior figures in their own parties, there are speculations that it could be part of some orchestrated strategy behind such attacks. BJP leader Ravi Shankar Prasad showed a copy of Constitution to say that it includes pictures of Ram Durbar and Bajrangbali. “The Sanatan feeling has been there in the Constitution since the beginning. DMK leaders take oath on this Constitution and yet they are insulting. Why are Congress and other parties silent?”, Prasad asked. Some experts may say that this is not the first time DMK leaders have criticised Sanatan Dharma or Hindutva, but it is all a question of timing. The words being used are theirs. In the past, DMK leaders had criticized caste inequalities and other social evils, but they never used words like malaria, dengue, HIV and leprosy. They are now saying Sanatan must be uprooted. This is a dangerous trend. It cannot be tolerated. It has hurt the feelings of more than a billion Hindus. These vicious attacks have surfaced after the INDIA opposition bloc meeting in Mumbai, which was attended by M.K. Stalin and his son Udhayanidhi. After maintaining silence for two days, the chief minister came out defending his son’s remarks. Are the remarks spontaneous? Some leaders say, after Udhayanidhi made his remark, his father supported him and other DMK leaders fell in line. A. Raja was no exception. It could be his compulsion, to support Udhayanidhi. Let me mention here that in July last year, A. Raja, at a meeting, had demanded a separate nation. He had then alleged that PM Modi and the Home Minister are not granting autonomy to Tamil Nadu. After Raja’s remark created a storm, M K Stalin distanced himself and his party from his statement. Chief Minister Stalin must now clarify whether branding a religion as leprosy and HIV is not akin to fanning flames of separatism in India? Congress must also clarify that if it does not agree with Udhayanidhi’s statement, then why did it maintain silence on Kharge’s son Priyank who had supported Stalin’s son. Left parties are happy over the controversy since they consider religion as “opium of the masses” in Communist ideology and they project themselves as atheists. CPI leader D. Raja said, Udhayanidhi has the right in expressing his opinion and BJP is only trying to divide people. In Mumbai, Shiv Sena (UBT) is in a quandary. Uddhav Sena leader Sanjay Raut cautioned DMK leaders not to make objectionable remarks about Sanatan Dharma and keep their personal opinion to themselves. Congress spokesperson Pawan Khera said, nobody must insult any religion and his party does not agree with such comments. “All religions must be given due respect”, he said. I feel that DMK leaders have deliberately made remarks about ‘uprooting’ Sanatan Dharma. There is a strategy behind this and it suits their brand of politics in Tamil Nadu. The strangest part is the silence on part of Congress party. Is it not hate that is being spread by comparing Sanatan Dharma with HIV and leprosy? How can this be part of ‘mohabbat ki dukaan’ (love shop) in Rahul Gandhi’s words? One must also note that the Congress President’s son Priyank Kharge is supporting those who are attacking Sanatan Dharma. The question is: Is there any connection between his son’s remark and his father’s future political path? Already there are speculations that Kharge wants to become the ‘face’ of anti-Modi front. Several non-Congress leaders in opposition alliance have floated the idea of projecting a Dalit leader as PM candidate to gain political advantage. Is this the reason why Kharge’s son is supporting Udhayanidhi’s remarks? Since Priyank is the party president’s son, none in the Congress has so far opposed his remark. This begs another big question. Will the strategy to spread Kharge’s support base and project him as PM candidate, prove to be politically suicidal for both Kamal Nath and Ashok Gehlot? In North India, to speak and hear about “uprooting Sanatan Dharma” could prove politically suicidal. Already Kamal Nath has been organizing Shiv Puran Katha in his home constituency Chhindwara and the Rajasthan CM is attending Sri Krishna Katha in Bhilwara, Rajasthan. The Congress has been organizing Hanuman Chalisa and Ram Katha in both these states. Gehlot’s and Kamal Nath’s strategy for assembly polls is quite clear. They want to confine themselves to local issues. Kamal Nath never attacks Narendra Modi directly nor does he praise Rahul in his meetings. All his attacks are focussed on the current incumbent Shivraj Singh Chouhan. He does not want Congress’ national liabilities to hamper his poll plans. Ashok Gehlot, on his part, is maintaining a studied distance from central politics. Gehlot also refrains from attacking Modi and his speeches are focussed on local issues of Rajasthan. He is fighting the poll battle on the basis of his government’s performance on welfare schemes. Both Kamal Nath and Gehlot know that Congress image in both these states had been a pro-minority one. In the changed circumstances, both these leaders do not want to hurt Hindu sentiments and are projecting themselves as ‘committed Hindus’. Ram Katha, Shiv Puran Katha, Shri Krishna Katha, Bajrangbali, Hanuman Chalise are part of their campaign tools. Looking at the anti-Sanatan vitriol that have emanated in the last 2-3 days, it could be difficult for both these leaders to shield their party from any further disadvantage. Merely ignoring such remarks will not do. People are going to definitely ask their opinion about those calling to “eradicate Sanatan Dharma”. Will the Congress continue its alliance with DMK, which is openly spreading hate against Hindu society? It could prove difficult for the Congress to give a cogent reply. They are going to face the challenge of Narendra Modi’s popularity at the hustings, and Gehlot is already realizing this.
सनातन विरोधी बयान : मोदी ने मंत्रियों से कहा, इसका उचित जवाब दें
सनातन धर्म के लेकर दिए जा रहे आपत्तिजनक बयानों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नाराज़गी ज़ाहिर की है. मोदी ने पार्टी के नेताओं और मंत्रियों से कहा है कि सनातन धर्म, वैदिक परंपराओं और विरासत का अपमान बर्दाश्त न किया जा सकता है, न किया जाना चाहिए. जो लोग सनातन धर्म के समूल नाश की बात कह रहे हैं, जो हिन्दुत्व की पैदाइश पूछ रहे हैं, उन्हें लोकतान्त्रिक तरीके से सख्त जवाब देना चाहिए. दो दिन पहले तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा था कि सनातन धर्म का सर्वनाश जरूरी है, सनातन डेंगू, मलेरिया और कोरोना जैसी बीमारी है, जिससे लड़ने की नहीं, बल्कि इसे जड़ से खत्म करने की जरूरत है. फिर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे ने उदयनिधि का समर्थन किया, और बुधवार को कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री जी.परमेश्वर ने कहा कि जैन, बौद्ध, ईसाई और इस्लाम के बारे में तो ये पता है कि वो कहां पैदा हुए, कब पैदा हुए, लेकिन हिन्दू धर्म के बारे में कोई नहीं बता सकता है कि ये धर्म कब आया, कहां से आया, तो जिसकी पैदाइश का न पता हो, उसके बारे में क्या बात करना? सनातन पर हो रहे लगातार हमलों के बाद मोदी ने मंत्रिमंडल की बैठक में मौजूद नेताओं से कहा कि इस मुद्दे पर खामोश रहना ठीक नहीं है, इस तरह की बातें करने वालों को जवाब देना चाहिए. अब सवाल ये है कि कांग्रेस के नेता हों या डीएमके के नेता, क्या ये नहीं जानते कि भारत में सनातन के खिलाफ ज़हर उगलने का क्या मतलब है? क्या कांग्रेस के नेता नहीं समझते कि सनातन की पैदाइश पूछने वालों का जनता क्या हाल करेगी? लेकिन इसके बाद भी अगर विरोधी दलों के गठबंधन के नेता इस तरह के बयान दे रहे हैं. भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि अब तो इसमें कोई शक नहीं कि विरोधी दल हिन्दुओं से, हिन्दुत्व से, सनातन से नफरत करते हैं, ये अब उजागर हो रही है. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि विरोधी दल समझ गए हैं कि अब देश का हिन्दू जाग रहा है और अगर हिन्दुओं को अपना ताकत का अहसास हो गया तो आसुरी शक्तियों का अन्त निश्चित है. इसीलिए हिन्दू, हिन्दुत्व और सनातन पर हमले हो रहे हैं. वैसे तो उदयनिधि स्टालिन के बयान से विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल ज्यादातर पार्टियों के नेताओं ने किनारा कर लिया था, उसका समर्थन नहीं किया था. प्रियांक खरगे के सुर भी बदल गए, इसलिए लग रहा था कि विपक्ष को गलती समझ आ गई है, अब ये विवाद खत्म हो जाएगा लेकिन बुधवार को जी. परमेश्वर ने फिर इस मुद्दे को हवा दे दी. उन्होंने जैन, बौद्ध, ईसाई और इस्लाम के शुरू होने की तारीख का हवाला देकर पूछ लिया कि सनातन कब पैदा हुआ? इसी चक्कर में ये मामला फिर चर्चा में आ गया. केन्द्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने कहा कि सनातन के बारे में जो लगातार बयानबाजी हो रही है, वो राजनीतिक साजिश है, हिन्दुत्व को खत्म करने की कोशिश है और ये कांग्रेस हाईकमान की सहमति से हो रहा है. इसीलिए इस तरह के बयानों पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने चुप्पी साध रखी है. राजीव चन्द्रशेखर ने कहा कि देश में नफरत पैदा करने की कोशिश संविधान के खिलाफ है, इसलिए जो लोग इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि मुगल आए, चले गए, अग्रेज आए और चले गए, जब वो सनातन को खत्म नहीं कर पाए तो उदयनिधि स्टालिन और जी. परमेश्वर जैसे नेता सनातन धर्म को क्या खत्म करेंगे? उन्होंने कहा कि हैरानी इस बात की है कि ऐसे नफरत भरे बयान उन लोगों ने दिए हैं जिन्होंने संविधान की शपथ ली है, सभी धर्मो का बराबरी से सम्मान करने की शपथ ली है, ये अपराध है और इन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. हो सकता है सियासी बयानबाजी कुछ दिन में बंद हो जाए लेकिन ये मुद्दा खत्म नहीं होगा क्योंकि घाव गहरा है. विश्व हिन्दू परिषद इसे देशभर में ले जाएगी. VHP के कार्यकर्ता अब देशभर में अलग अलग जिलों में उदयनिधि स्टालिन, प्रियांक खरगे और जी. परमेश्वर के खिलाफ FIR दर्ज करवाएंगे. विश्व हिन्दू परिषद सनातन पर हो रहे हमलों का मुकाबला करने की रणनीति बनाने के लिए 2 से 6 नंबवर तक काशी में बैठक आयोजित करेगी जिसमें साधू, संत, शंकराचार्य, धर्माचार्य और देश के सभी जिलों से साधु संतों को बुलाया जाएगा. काशी की बैठक में विश्व हिन्दू परिषद देशव्यापी आंदोलन की रूपरेखा तय करेगी. विरोधी दलों के सारे नेता ये जानते हैं कि हिन्दुस्तान में रहकर हिन्दुत्व का विरोध करना आत्मघाती है, इसलिए इस पर कोई नहीं बोलेगा. लेकिन ये देश की 82 प्रतिशत आबादी यानि 110 करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं का सवाल है, इसलिए इस पर खामोश रहने से काम नहीं चलेगा. नरेन्द्र मोदी खुलकर हिन्दुत्व की बात करते हैं, सनातन परंपरा में विश्वास करते हैं, अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करते हैं. मोदी ने बार बार कहा है कि उनका एक ही मंत्र है, सबका साथ, सबका विकास, सबकी तरक्की, किसी का तुष्टिकरण नहीं. चूंकि मोदी की नीयत में खोट नहीं है, इसलिए वह अपनी बात खुलकर कहते हैं. लेकिन विरोधी दलों के साथ ऐसा नहीं है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, JDU, आम आदमी पार्टी – ये वक्त और मौके के हिसाब से चाल बदलते हैं. इसलिए इन पार्टियों के नेता न तो खुलकर सनातन का समर्थन कर सकते हैं, न खुलकर विरोध कर सकते हैं. जब चुनाव आता है तो हिन्दुत्व का चोला ओढ़ लेते हैं. जब जरूरत पड़ती है, सनातन परंपराओं की बात करने लगते हैं. अब मोदी इसको बेनकाब करेंगे और मुद्दा विरोधी दलों के नेताओं के सनातन विरोधी बयानों को ही बनाएंगे. इसकी शुरूआत आज हो गई है. वैसे आज हिन्दुत्व के मुद्दे पर विपक्ष को एक और झटका लगा. जिस दिन सरकार ने संसद के विशेष सत्र का एलान किया था, उस दिन मुंबई में विरोधी दलों के गठबंधन के नेताओं की बैठक चल रही थी. उस वक्त संजय राउत, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे शिव सेना (उद्धव) के नेताओं ने कहा था कि 19 सितंबर से गणेश उत्सव शुरू होगा और मोदी ने उसी दौरान संसद का विशेष सत्र बुला लिया, मोदी हिन्दुत्व विरोधी हैं, मोदी को हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल नहीं है. लेकिन बुधवार को खबर आई कि गणेश उतस्वक के दिन ही नये संसद भवन में विषेष सत्र की बैठक होगी. उसके बाद विरोधियों को समझ नहीं रहा है कि अब क्या कहें, सरकार को कैसे जवाब दें.
Anti-Sanatan remarks : Modi asks ministers to give a proper response
Prime Minister Narendra Modi has expressed unhappiness over some objectionable remarks made by a few politicians from the opposition on Sanatan Dharma. In an informal conversation with central ministers, he has reportedly said that there was a need to give a “proper response” to those who have been calling for ‘uprooting’ Sanatan Dharma or questioning its very origin. Modi told his ministers to reply to such people in a democratic manner. Two days ago, Udhayanidhi Stalin, son of Tamil Nadu chief minister M K Stalin, had called for “eradicating Sanatan Dharma” and compared it with diseases like dengue, malaria and Covid. Congress President’s son Priyank Kharge supported Udhayanidhi Stalin. On Wednesday, Karnataka Home Minister G. Parameshwara questioned the very origin of Sanatan Dharma. He said, ‘the world knows the origins of Jainism, Buddhish, Christianity and Islam, but nobody can tell when Hindu Dharma originated’. Modi told his cabinet ministers not to remain silent and give proper response to such anti-Hindutva remarks. The question is: Do the leaders of Congress and DMK know the consequences of making such venomous remarks? Do Congress leaders know what people will make of those who question the origin of their faith? BJP spokesperson Sudhanshu Trivedi said, ‘there is no doubt that opposition parties hate Hindus, Hindutva and Sanatan dharma’. He said, ‘there is now much awareness among Hindus and the end of “evil forces” will surely take place.’ Minister of State Rajeev Chandrashekhar described this as a “political conspiracy to finish off Hindutva”. He alleged that this was being done with the assent of Congress high command and this is the reason why both Sonia Gandhi and Rahul are silent. He called for strict legal action against such leaders who are spreading hate. Priyank Kharge defended himself saying he did not name any religion nor did he insult any faith. Minister of State Prahlad Singh Patel said even Mughals and British could not uproot Sanatan dharma. “The surprising part is that such remarks are being made by leaders holding Constitutional posts”, he said. Such ministers must face legal action. Meanwhile, Vishwa Hindu Parishad has asked its supporters to file FIRs against Udhayanidhi Stalin, Priyank Kharge and G. Parameshwara throughout India. A meeting has been called in Kashi from November 2 to 6, in which all the shankaracharyas and other Hindu pontiffs have been invited. The plan is to launch a nationwide movement on this issue. VHP leaders have demanded that both Sonia and Rahul Gandhi must clarify the party’s stand on Sanatan Dharma. VHP has said, Congress must remove Priyank Kharge and G. Parameshwara from Karnataka ministry and remove DMK from the opposition alliance. Opposition leaders know, it would be suicidal for their parties if they oppose Hindutva and this is the reason why they have maintained a stony silence. Nearly 110 crore Hindus constitute 82 per cent of India’s population. Modi has been consistently saying “Sabka Saath Sabka Vikas” and “Upliftment of all, appeasement of none”. Since Modi has no malafide intent, he makes his remarks openly. This is not the case with the opposition, whether it is Congress, Samajwadi Party, Janata Dal(U) or Aam Aadmi Party. These parties change their tunes in accordance with time and convenience. Leaders of these parties can neither openly oppose or support Sanatan Dharma. Of course, when elections are near, they wear the cloak of Hindutva whenever it suits them and start speaking about Sanatan traditions. Prime Minister Narendra Modi is going to unmask these leaders. He is going to make a big issue about anti-Sanatan remarks made by opposition leaders. The beginning has already been made. The second day of special session of Parliament will start from the new building from September 19, the day of Ganesh Chaturthi that heralds the season of Hindu festivals this autumn.
‘BHARAT’, NOT ‘INDIA’, WILL BE IN TUNE WITH OUR TRADITION, CULTURE
The debate is on over whether our country should be officially named ‘Bharat’ or the present name ‘India’ should remain. Our Constitution clearly says, “India, that is Bharat”. A presidential invitation to G20 delegates for the official dinner used the words “President of Bharat”. Earlier, the External Affairs Ministry had been using the words “Prime Minister of Bharat” in its visit protocol documents during Modi’s visit to South Africa, Greece and Indonesia. This has fuelled speculations whether the government is going to remove the word ‘India’ from the Constitution, and whether our country will, henceforth, have only one name “Bharat”. There has been no official statement from the government yet, but soon after the President’s invite for dinner reached the leaders, speculations became rife. Most of the ministers in Modi’s government went on social platform ‘X’ with remarks ‘Bharat Mata Ki Jai’ and ‘Bharat Bhagya Vidhata’. Opposition leaders reacted saying “BJP is rattled by the INDIA alliance and is trying to erase the word ‘India’ from the Constitution and all official documents”. Congress leader Jairam Ramesh tweeted, “Mr Modi can continue to distort history and divide India, that is Bharat, that is a Union of States. But we will not be deterred.” Leader of Congress in Lok Sabha Adhir Ranjan Chowdhury alleged that Modi government has begun to dismantle the Constitution by trying to remove the word ‘India’. Chowdhury said, “if Modi hates relics of slavery, then he should first blow up the Rashtrapati Bhavan, North Block and South Block with cannons, because they were built by the British”. NCP chief Sharad Pawar, TMC chief Mamata Banerjee, DMK supremo M K Stalin, AAP chief Arvind Kejriwal, RJD leader Tejashwi Yadav alleged that Modi appears to be afraid of the INDIA alliance and he has embarked on changing the name of the country. Their allegations were countered by BJP president J P Nadda who said, “on one hand, Congress takes out Bharat Jodo Yatra, and on the other hand, it objects to the use of the words ‘President of Bharat’.. Why is the Congress hating the words ‘Bharat Mata Ki Jai’?” Assam chief minister Himanta Biswa Sarma said, the word ‘Bharat’ instils a feeling of pride at a time when the nation is passing through ‘Amrit Kaal’. The move was welcomed by film stars and players. Amitabh Bachchan tweeted: “Bharat Mata Ki Jai”, while ex-cricketers Sunil Gavaskar and Virendra Sehwag welcomed the move. Sehwag went to the extent of demanding that Team India in the forthcoming ODI World Cup should be named Team Bharat. Let me explain how the controversy started. Two days ago, RSS chief Mohan Bhagwat had said in Guwahati that our country has been Bharat since ages, and we should name our country as Bharat and not India. It is a fact that for the last 300 years, people across the world had been knowing our country as India. This was because the British had used the word ‘India’. It is also true that 300 years later, the word ‘Bharat’ resides in the heart of every Indian. Bharat is part of our centuries-old legacy. In Hindu homes, whenever a pooja or havan is conducted, the ‘shloka’ mentions ‘Jambudwipey Bharat Khandey’. Ancient scriptures like Vishnu Puran, Skanda Puran, Vayu Puran, Agni Puran, Brahmanda Puran and Markendeya Puran describe the land from Indian Ocean up to the Himalayan ranges as ‘Bharat’. How can anybody object to naming our country as ‘Bharat’? Secondly, this issue was raised by Rahul Gandhi in a different context. It was he who said, ‘Modi has divided the nation into two parts – one is India, and the other is Bharat’. Now, if Modi wants to merge both India and Bharat, then what’s the problem with the Congress? If the government initiates a move, Bharat will not be the first country to do so. The British rulers had named Sri Lanka as Ceylon. After independence, the neighbouring country renamed itself as Sri Lanka. Botswana in Africa was named as Bechuanaland. After independence, the government renamed itself as Botswana. The British rulers had named Jordan as Trans-Jordan, but after independence, it reverted to its old name Jordan. Our neighbouring country was named Burma by the British, but the military regime has named it as Myanmar. So, if Modi removes the word ‘India’ and used the word ‘Bharat’ as the official name of our country, it will be in accordance with our culture and tradition. Opposition parties are opposing only because they had named their alliance as INDIA a few weeks ago. They had then described it as a ‘masterstroke’ and had given the slogan “Jeetega INDIA”. But the licence for masterstroke does not lie with the opposition alone. Modi is an old hand in this game. The interesting part is that those who are speaking about “uprooting” Sanatan Dharma, are now opposing the naming of our country as ‘Bharat’. DMK supremo M K Stalin said, BJP had promised to “transform” India, but in the last nine years it has managed to only “transform the name”. The reality is that on the issue of ‘uprooting’ Sanatan Dharma, other opposition parties are unwilling to support the DMK.
‘भारत’ नाम रखना हमारी संस्कृति, मान्यता के अनुरूप होगा
पूरे देश में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है कि क्या हमारे देश का औपचारिक नाम सिर्फ भारत होना चाहिए? क्या इंडिया नाम को अब भूल जाना चाहिए? अभी संविधान में हमारे देश के दो नाम हैं – इंडिया और भारत लेकिन मंगलवार को राष्ट्रपति भवन के आमंत्रण में पहली बार ‘ प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया. इसके कारण पूरे देश में ये बहस शुरू हो गई कि नरेन्द्र मोदी की सरकार अब संविधान से इंडिया शब्द हटा देगी, अब हमारे देश का एक ही नाम होगा- भारत, हालांकि सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन जैसे ही राष्ट्रपति भवन की तरफ से भेजे गए इन्विटेशन नेताओं को मिले तो मोदी सरकार के तमाम मंत्रियों ने इसे ट्विटर पर पोस्ट कर दिया. G-20 की मीटिंग के दौरान राष्ट्राध्यक्षों के सम्मान में आयोजित डिनर के लिए राष्ट्रपति भवन के इन्विटेशन में सबसे ऊपर लिखा है – ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत’, जबकि इससे पहले लिखा जाता था ‘प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया’. तमाम मंत्रियों ने इसी इन्विटेशन को ‘भारत माता की जय’ के कमेंट के साथ पोस्ट किया तो विरोधी दलों ने हंगामा खड़ा कर दिया. कांग्रेस ने यहां तक कह दिया कि इस तरह की कोशिश एक डरे और सहमे हुए तानाशाह की सनक है. शरद पवार, ममता बनर्जी, एम के स्टालिन, जयराम रमेश, अधीर रंजन चौधरी, अरविन्द केजरीवाल, तेजस्वी यादव से लेकर मनोझ झा तक सभी ने कहा मोदी इंडिया एलायन्स से डर गए हैं, इसलिए अब देश का नाम ही बदलना चाहते हैं. किसी ने कहा, मोदी संविधान को खत्म करना चाहते हैं और आर्टिकल 1 में बदलाव से इसकी शुरूआत होगी. कोई कह रहा है कि संसद का विशेष सत्र इसीलिए बुलाया गया है ताकि संविधान से ‘इंडिया’ शब्द को हटाया जा सके. इस तरह की तमाम बातें कही गई, तमाम तर्क दिए गए. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि चूंकि विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया है और ये नरेंद्र मोदी को बर्दाश्त नहीं है, इसीलिए वो अब देश का नाम बदलने पर आमादा हैं. केजरीवाल ने पूछा कि अगर कल को विपक्ष ने गठबंधन का नाम भारत रख दिया, तो क्या मोदी सरकार को भारत से भी नफ़रत हो जाएगी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए. लिखा कि आख़िर वो आशंका सच साबित हुई, मोदी सरकार देश का नाम बदलने की तैयारी कर रही है, ये एक सनकी तानाशाह का डर है. शशि थरूर ने कहा कि प्रेसिडेंट ऑफ भारत कहना ग़लत नहीं है लेकिन परंपरा तो प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया लिखने की रही है, आख़िर सरकार उस परंपरा को क्यों तोड़ रही है? लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि अगर मोदी को गुलामी के प्रतीकों से इतनी ही नफरत है तो सबसे पहले राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ ब्लाक, साउथ ब्लॉक को तोपों से उड़ा दें क्योंकि ये सब अंग्रेजों ने बनाए हैं, कहा कि मोदी सरकार ने संविधान को ख़त्म करने की शुरुआत कर दी है. जवाब में बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा कहा कि कांग्रेस एक तरफ़ तो भारत जोड़ो यात्रा निकालती है, दूसरी तरफ़ प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत लिखने पर ऐतराज़ जताती है, कांग्रेस को देश के सम्मान एवं गौरव से जुड़े हर विषय से इतनी आपत्ति क्यों है? कांग्रेस को ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष से नफरत क्यों है?.असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि देश अमृतकाल की तरफ़ बढ़ रहा है, ऐसे में भारत नाम से गर्व का एहसास होता है. ममता बनर्जी ने कहा कि आख़िर सरकार सब कुछ बदलने पर क्यों आमादा है? बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि सरकार विरोधी दलों के एकता से डर कर इस तरह की हरकतें कर रही है वरना मोदी सरकार की तमाम योजनाओं के नाम में इंडिया है. तेजस्वी ने पूछा कि बीजेपी कहां कहां से इंडिया शब्द को हटाएगी. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि देश का नाम भारत भी है और इंडिया भी, इंडिया नाम को कोई हटा ही नहीं सकता. वैसे, दिलचस्प बात ये है कि इंडिया और भारत के विवाद पर सरकार की तरफ़ से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है. इस मुद्दे पर सिर्फ नेता नहीं, अभिनेता और खिलाड़ियों ने भी राय जाहिर की. मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर सिर्फ चार शब्द लिखे – भारत माता की जय. सुनील गावस्कर और वीरेन्द्र सहवाग ने स्वागत किया. सहवाग ने लिखा कि अब टीम इंडिया नहीं, टीम भारत कहा जाना चाहिए. दरअसल दो दिन पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुवाहाटी में कहा था कि हमारे देश का नाम आदिकाल से भारत ही रहा है, इसलिए अब हमें अपने देश को भारत ही कहना चाहिए, कोई इस बात को माने या न माने, लेकिन देश को भारत के नाम से ही जाना जाना चाहिए. ये सही है कि पिछले तीन सौ सालों ये दुनिया के लोग हमारे देश को इंडिया के नाम से ही जानते पहचानते हैं, क्योंकि अंग्रेजों ने हमारे देश का नाम इंडिया कर दिया था. लेकिन ये भी सही है कि तीन सौ साल बाद भी लोगों के दिलों में इंडिया की बजाय भारत ही बसता है. लोगों की जुबान पर भारत माता की जय रहता है. भारत हमारी विरासत है, आज भी जब घर में कोई पूजा या हवन होता है तो संकल्प लेते वक्त जम्बूद्वीपे..भारतखंडे ही कहा जाता है. विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मांड पुराण और मार्कण्डेय पुराण जैसे तमाम ग्रन्थों में हिन्द महासागर से लेकर हिमालय के दक्षिण तक के भू-भाग को भारत ही बताया गया है. इसलिए भारत नाम से किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है ? दूसरी बात, ये मुद्दा तो राहुल गांधी ने उठाया था. कहा था कि मोदी ने देश को दो भागों में तोड़ दिया है – एक इंडिया, दूसरा भारत. अब मोदी इंडिया और भारत को अगर एक करने जा रहे हैं तो कांग्रेस को क्या समस्या है? अगर सरकार संविधान से इंडिया शब्द हटाती भी है, तो भारत ऐसा करने वाला कोई पहला देश नहीं होगा. अंग्रेजों ने श्रीलंका का नाम सीलोन रखा था. आजादी के बाद वहां की सरकार ने सीलोन हटाकर अपने देश का नाम श्रीलंका कर लिया. बोत्सवाना को अग्रेजों ने बेचुयाना लैंड नाम दिया था. आजादी के बाद वहां की सरकार ने अपने देश का नाम बोत्सवाना कर दिया. इसी तरह अंग्रेजों ने जॉर्डन को ट्रांस जॉर्डन नाम दे दिया था, लेकिन वहां की सरकार ने फिर अपने देश का नाम जॉर्डन कर दिया. जिसको अंग्रेज़ बर्मा कहते थे , उसको वहां के लोगों ने म्यांमार कर दिया. इसलिए अगर मोदी अब इंडिया शब्द को हटाकर देश का औपचारिक नाम भारत रखते हैं तो ये भारतीय संस्कृति और मान्यता के अनुरूप होगा. विरोधी दल सिर्फ इसलिए इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि थोड़े दिन पहले उन्होंने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा था, इसे मास्टरस्ट्रोक कहा था, ‘जीतेगा इंडिया’ का नारा दिया था, पर मास्टरस्ट्रोक लगाने का लाइसेंस सिर्फ विपक्ष के पास तो नहीं है, मोदी भी इस खेल में माहिर हैं. वैसे दिलचस्प बात ये है कि जो लोग सनातन धर्म को जड़ से खत्म करने की बात कर रहे हैं, वो देश को इंडिया के बजाय भारत कहने का भी विरोध कर रहे हैं.
Get connected on Twitter, Instagram & Facebook