Rajat Sharma

My Opinion

‘आप की अदालत’ में सलमान खान

akb ‘आप की अदालत’ में इस बार मेरे मेहमान हैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सुपर स्टार सलमान खान। वे भारी सुरक्षा के घेरे में रहते क्योंकि उनकी जान को खतरा है। उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं। सलमान ने बताया कि भारी सुरक्षा की वजह से काम करने में कितनी परेशानी होती है। फिर भी वे पूरी सावधानी बरतते हैं। सलमान खान के साथ ‘आप की अदालत’ का यह स्पेशल शो मैंने दुबई में रिकॉर्ड किया था। सलमान खान के बारे में सबसे ज्यादा चर्चा उनकी शादी को लेकर होती है। मैंने सलमान से पूछा कि वो दूसरों को शादी करने और घर बसाने की सलाह देते हैं लेकिन खुद इसपर अमल क्यों नहीं करते? इसपर सलमान ने कहा कि उन्हें शादी से डर लगता है पर वो बच्चों से बहुत प्यार करते हैं।वो चाहते हैं कि उनके पास ढेर सारे बच्चे हों पर उनकी समस्या ये है कि देश में गोद लेने का कानून इसकी इजाजत नहीं देता। सलमान खान ने अपने अफेयर्स के बारे में और शादी को लेकर उनपर परिवार के दबाव के बारे में बहुत सारी बातें बताईं। जब आप आज रात यह शो देखेंगे तो आपको उनके जवाब पता चल जाएंगे। सलमान से मैंने कहा कि वो दोस्ती निभाने के लिए कुछ भी कर देते हैं, फिल्म इंडस्ट्री में वो लोगों को सपोर्ट करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। आज कल उनके फैंस दावा करते हैं कि शाहरुख खान की फिल्म पठान सलमान की वजह से इतनी बड़ी हिट हुई क्योंकि इस फिल्म में सलमान का स्पेशल अपीयरेंस था। इसके जवाब में सलमान ने कहा कि पठान की सफलता का पूरा क्रेडिट शाहरुख खान को और फिल्म के प्रोड्यूसर आदित्य चोपड़ा को मिलना चाहिए।

‘आप की अदालत’ का यह शो स्पेशल है। पहली बार सलमान ने कई अभिनेताओं के किस्से सुनाए। कैसे एक बार उन्होंने शाहरुख खान पर गोली चला दी थी। सुल्तान फिल्म में जब उन्हें लंगोट पहनने को कहा गया तो कैसे सलमान के पसीने छूट गए। साउथ अफ्रीका में एक स्टेज शो के दौरान जब आमिर खान ने ऑडियंस से कहा कि सलमान बहुत अच्छे सिंगर हैं और लोग गाने की डिमांड करने लगे तो सलमान ने हालात को कैसे संभाला। ये सारी अनकही कहानियां आप आज रात 10 बजे ‘आप की अदालत’ में सुन पाएंगे। ‘आप की अदालत’ का ये स्पेशल शो दुबई में रिकॉर्ड हुआ। आज रात जब ये शो टेलिकॉस्ट होगा उसके साथ ही इंडिया टीवी यूएई में लॉन्च हो जाएगा। दुबई, शारजाह, अबू धाबी में रहने वाले लोग इंडिया टीवी, एटिसलाट और डीयू (यूएई टेलीकॉम ऑपरेटर) के जरिए देख पाएंगे। इस वजह से भी सलमान खान के साथ ‘आप की अदालत’ का ये शो एतिहासिक है। आज रात 10 बजे ‘आप की अदालत में सलमान खान’ शो जरूर देखें।

कुश्ती महासंघ अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज

दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार रात देश की कुछ महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायतों के संबंध में भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की। लेकिन मामला एफआईआर दर्ज करने से खत्म नहीं हो जाता। पहलवान इस बात पर अड़े हुए हैं कि जब तक बृजभूषण सिंह के खिलाफ एक्शन नहीं लिया जाता तब तक उनका धरना जारी रहेगा। पहलवान मांग कर रहे हैं कि उन्हें कुश्ती संघ के अध्यक्ष के पद से हटाया जाए और उनकी संसद की सदस्यता भी खत्म की जाए। लेकिन बृजभूषण शरण सिंह का मामला सिर्फ कुश्ती और पहलवानों से जुड़ा नहीं है। यह मामला सीधे-सीधे राजनीति से जुड़ा है। बृजभूषण शरण सिंह एक बाहुबली नेता हैं और यूपी के गोंडा से बीजेपी के सांसद हैं। उनके खिलाफ एक्शन लेना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है। वो 6 बार के सांसद हैं और उनके खिलाफ गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट की धाराओं समेत हत्या का भी मामला दर्ज है। उनपर कुल 40 मुकदमे दर्ज हैं। बृजभूषण का अपने इलाके में अच्छा खासा दबदबा है। वे 54 स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं। वे खुद कैसरगंज सीट से सांसद हैं। उनका बेटा गोंडा से बीजेपी का विधायक है। इसके अलावा गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच की सीट पर भी उनका अच्छा खासा असर है। अगर बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई करती है तो 2024 में इन चार सीटों पर चुनाव जीतना बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा यूपी में निकाय चुनाव के लिए चार और ग्यारह मई को वोटिंग है। अगर अभी बृजभूषण को हटाया गया तो निकाय चुनाव में भी परेशानी होगी। विरोधी दल बीजेपी की इस मजबूरी को बखूबी समझते हैं और दबाव बना रहे हैं। ऐसे में बीजेपी की कोशिश है कि कम से कम 15 दिन के लिए यह मामला ठंडा पड़ जाए। पहले पहलवानों का विरोध पूरी तरह गैर राजनीतिक था लेकिन अब बीजेपी का विरोध करने वाले कई नेता इस आंदोलन को हवा देने में लगे हैं। शनिवार सुबह प्रियंका गांधी जंतर-मंतर पर गईं और महिला पहलवानों से मुलाकात की। कपिल सिब्बल पहलवानों के वकील हैं। यह मसला काफी गंभीर है। मुझे लगता है कि अगर खेल मंत्रालय इस मामले को ठीक से हैंडल करता तो मुसीबत इतनी नहीं बढ़ती।

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SALMAN IN ‘AAP KI ADALAT’

AKBSuper star Salman Khan is my guest this weekend in ‘Aap Ki Adalat’ show (to be telecast tonight on India TV). Nowadays, Salman moves around with heavy security because of serious threats to his life. Salman told me it has become difficult for him to work because of heavy security and he takes full precautions. We recorded this ‘Aap Ki Adalat’ show with Salman in Dubai. Normally, Salman frequently faces questions about his marriage (he is 57). I asked Salman why he is not following the advice that he gives to others to marry soon. His reply was: ‘I am afraid of marriage, but I love kids very much. I want to have lots of kids, but the problem is our country’s adoption laws do not allow this’. Salman spoke about his past affairs, his family’s pressure for marriage. You will know his replies when you watch the show on Saturday night. Salman also told me, he’s always ready to go to any extent to help his friends. When I pointed out that some people in film industry say that Shahrukh’s film ‘Pathan’ became a superhit only because of his special appearance, Salman replied: ‘Full credit for Pathan’s success goes to Shahrukh Khan and producer Aditya Chopra’. This ‘Aap Ki Adalat’ show is somewhat different. For the first time, Salman revealed some interesting anecdotes about other actors. He revealed why he once fired a bullet at Shahrukh Khan, why he objected to wearing a ‘langot’ (an Indian wrestler’s inner wear) in the movie ‘Sultan’, how at a show in South Africa, Aamir Khan suddenly announced from stage that Salman will sing, and how the latter managed to ‘sing’. You can watch all these hitherto unknown anecdotes in ‘Aap Ki Adalat’ show on Saturday night.
A footnote: With the telecast of this show on Saturday night, India TV will be launched in UAE. Viewers in Dubai, Sharjah, Abu Dhabi can watch this show on India TV via Etisalat and du (UAE telecom operator). In that sense, Salman Khan’s show will be historic. Do watch ‘Aap Ki Adalat’ with Salman Khan on Saturday night.

FIRs FILED AGAINST WRESTLING FEDERATION CHIEF

Delhi Police on Friday night filed two FIRs against Wrestling Federation of India chief Brij Bhushan Sharan Singh relating to sexual harassment complaints levelled by some top female wrestlers of India. The matter does not end with the filing of FIRs. The female wrestlers said, the dharna will continue so long as Singh is not arrested, removed from WFI chief post, and his Lok Sabha membership terminated. The matter is not only related to wrestlers. It is directly related to politics. Brij Bhushan Sharan Singh is a ‘bahubali’ BJP MP from UP, and it will not be easy for his party to take action against him. He has been elected MP six times. There are nearly 40 cases filed against him under goonda act, gangsters act, etc. He commands a sizeable influence in his region and is the owner of 54 schools and colleges. Elected as MP from Kaiserganj, his son is a BJP MLA from Gonda. He commands influence in Gonda, Shravasti and Shravasti LS constituencies. If BJP takes action against him, it can cause problems for the party in next year’s LS elections. Moreover, local bodies polls in UP are going to be held on May 4 and 11. Any action against Singh can cause adverse repercussions. Opposition parties have realized BJP’s compulsion, and are, therefore, piling upon pressure. BJP wants the matter to cool down for at least 15 days. Earlier, the dharna by wrestlers was non-political, but now politicians have jumped in. They are going to Jantar Mantar to express solidarity. On Saturday morning, Priyanka Gandhi went to Jantar Mantar and met the female wrestlers. Kapil Sibal, Congress leader, is the lawyer for the female wrestlers. The matter has already become serious. I feel, if the Sports Ministry had handled the issue properly, the crisis could not have become bigger.

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खरगे ने किया सेल्फ-गोल

akbकांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘ज़हरीला सांप’ कह दिया, लेकिन बाद में इससे मुकरते हुए कहा कि उन्होंने मोदी की नहीं बल्कि बीजेपी की विचारधारा की तुलना ‘ज़हरीले सांप’ से की थी। उन्होंने कहा कि मोदी के खिलाफ व्यक्तिगत हमला करने की उनकी कोई मंशा नहीं थी । खरगे कर्नाटक में चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन जब तक उनका स्पष्टीकरण आया, नुकसान हो चुका था। स्मृति ईरानी, धर्मेंद्र प्रधान और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई जैसे बीजेपी नेताओं ने खरगे के बयान को निशाने पर ले लिया। हैरानी की बात है कि जब-जब कहीं चुनाव हो रहे होते हैं, कर्नाटक हो या गुजरात, उत्तर प्रदेश हो या बिहार, कांग्रेस का कोई न कोई बड़ा नेता नरेंद्र मोदी को लेकर ऐसी अपमानजनक बात कह देता है कि पार्टी को लेने के देने पड़ जाते हैं। बीजेपी को बैठे बिठाए एक बड़ा मुद्दा मिल जाता है। कर्नाटक में भी यही हुआ है। मल्लिकार्जुन खरगे ने जैसे ही मोदी को ज़हरीला सांप कहा, बीजेपी के नेताओं को ये याद दिलाने का मौका मिल गया कि कांग्रेस के नेता मोदी को कभी ‘मौत का सौदागर’ और ‘चौकीदार चोर है’ कहकर अपमानित करते हैं तो कभी उनके लिए रावण, भस्मासुर और ‘नाली का कीड़ा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। नोट करने वाली बात यह है कि ऐसी गालियों से कांग्रेस को कभी फायदा नहीं हुआ, उल्टा बीजेपी ने इसका शोर मचा कर कांग्रेस को बार-बार नुकसान पहुंचाया। कर्नाटक में कांग्रेस का कैंपेन ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे ने बीजेपी के हाथ में बारूद थमा दिया है। अब बीजेपी चुनाव में इसका भरपूर इस्तेमाल करेगी।

क्या महाराष्ट्र में कोई बड़ा सियासी बदलाव होने वाला है?

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने एक अजीबोगरीब बयान देते हुए कहा है कि ‘ अब रोटी पलटने का वक्त आ गया है।’ उन्होंने यह बात अपनी पार्टी की युवा शाखा को संबोधित करते हुए कही। वैसे यह बयान युवा पीढ़ी को ज्यादा पद देने को लेकर दिया गया था। लेकिन पवार के इस बयान को दूसरी पार्टियों के नेता अलग लग अर्थों में ले रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है, और इसके संकेत लगातार मिल रहे हैं। लेकिन क्या होगा, इसको लेकर कोई अभी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता। वैसे ज्यादातर लोग मानते हैं कि एकनाथ शिंदे अब ज्यादा दिन मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। उनका कहना है कि बीजेपी को इस बात का अहसास हो गया है कि शिंदे के मुख्यमंत्री रहते चुनाव हुए तो जीतना मुश्किल हो जाएगा। बीजेपी के बड़े नेताओं का मानना है कि अगर महाराष्ट्र में फिर से जीतना है तो देवेंद्र फडणवीस को ही मुख्यमंत्री बनाना होगा। सूत्रों के मुताबिक, यह संदेश शिंदे को दे दिया गया है। लेकिन इससे भी बड़ी अटकलें इस बात को लेकर हैं कि अजित पवार NCP को साथ लेकर BJP के साथ आ सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र में दोनों पार्टियां मजबूत हो जाएंगी। फिलहला, इन सारी बातों की कमान शरद पवार के हाथों में है। शरद पवार कब किसकी ‘रोटी’ पलट दें, कोई नहीं कह सकता।

45 करोड़ रुपये में हुआ केजरीवाल के घर का रेनोवेशन

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सरकारी आवास के रेनोवेशन पर खर्च किए गए 45 करोड़ रुपये को लेकर दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा बवाल खड़ा हो गया है। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सीएम आवास का घेराव किया, और आरोप लगाया कि खुद को ‘आम आदमी’ बताने वाले केजरीवाल ने राजाओं के रहने लायक घर बनवाया है। बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि घर के लिए 8 लाख रुपये के पर्दे, इंपोर्टेड डियोर मार्बल्स और बड़े टीवी सेट खरीदे गए हैं। केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। वह अच्छे घर में रहें, बड़े घर में रहें, इससे किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सारे मुख्यमंत्री बड़े घरों में रहते हैं। इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होती। दिक्कत होती है केजरीवाल के एटीट्यूड की वजह से, उनके हाई मॉरल ग्राउंड की वजह से, दूसरों को नीचा दिखाने की फितरत की वजह से। केजरीवाल खुद ही कहते थे कि जो बड़े घरों में रहते हैं, वे बेईमान हैं और जनता का पैसा बर्बाद करते हैं। उन्होंने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आए तो आम आदमी की तरह रहेंगे। झुग्गी-झोपड़ी में लोगों के बीच रहेंगे। केजरीवाल ने ही पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के घर को लेकर, बिजली के बिल को लेकर सवाल उठाए थे। वह कहते थे कि यह सब जनता के पैसे की बर्बादी है। ऐसे कितने सारे बयान हैं जहां केजरीवाल ने सरकारी घरों पर किए गए खर्चों का मजाक उड़ाया। इसे मुद्दा बनाकर दूसरे नेताओं की ईमानदारी पर सवाल उठाए। इसलिए जब उनके खुद के सरकारी आवास के रेनोवेशन पर 45 करोड़ रुपये खर्च हुए तो ये इतना बड़ा मुद्दा बन गया। केजरीवाल और उनकी पार्टी के दूसरे नेता जानते हैं कि इस मामले से जनता के बीच उनकी छवि बिगड़ी है। केजरीवाल लोगों के बीच मजाक बन गए हैं। इसलिए वह इस सवाल पर कुछ नहीं बोलते और यही उनकी प्रॉब्लम है। वह दूसरों के लिए जो मापदंड तय करते हैं, उसे अपने ऊपर लागू नहीं करते। किसी और सरकार के 2-2 मंत्री जेल गए होते तो केजरीवाल आसमान सिर पर उठा लेते। दिल्ली में किसी और मुख्यमंत्री ने अपने घर के रेनोवेशन पर 45 करोड़ रुपये खर्च किए होते तो केजरीवाल उनके घर के सामने धरना दे देते, सड़क पर लेट जाते। इसलिए कहावत है: ‘जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।’

जेल से रिहा हुए आनंद मोहन सिंह

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को गुरुवार तड़के सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया ताकि ‘ट्रैफिक की समस्या और मीडिया की नजरों’ से बचा जा सके। 1994 में आईएएस अधिकारी गोपालगंज के जिला मजिस्ट्रेट जी. कृष्णैया की हत्या करने वाली भीड़ को उकसाने के लिए उन्हें 2007 में फांसी की सजा दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने 2008 में उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। इस महीने बिहार सरकार ने अपने जेल नियमावली में संशोधन कर उन दोषियों को छूट दे दी, जिन्होंने 20 साल के पहले के प्रावधान के बजाय अपनी सजा के 14 साल पूरे कर लिए हैं। बिहार के कानून विभाग ने 24 अप्रैल को उनकी रिहाई का आदेश दिया, जिससे सियासी विवाद पैदा हो गया। आनंद मोहन सिंह की रिहाई बिहार की जाति पर आधारित राजनीति का सबसे ताजा उदाहरण है। उन्हें राजपूतों का नेता माना जाता है, और सूबे में इस जाति के 5 फीसदी वोट हैं। बिहार में सभी पार्टियों को उनका सपोर्ट चाहिए, इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें जेल से निकालने के लिए कानून बदल दिया। जाति का असर ऐसा है कि बीजेपी में भी जो अगड़ी जातियों के नेता हैं, वे आनंद मोहन का सपोर्ट कर रहे हैं। बीजेपी के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि आनंद मोहन को जेल भेजा जाना ज्यादती थी। जब बात जाति की होती है, तो इस बात का कोई असर नहीं होता कि अपने आप को नेता कहने वाला हत्यारा है, और अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा दी थी। इसे राजनीति का दुर्भाग्य न कहा जाए तो और क्या कहा जाए?

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KHARGE SCORES A SELF-GOAL

AKBCongress President Mallikarjun Kharge on Thursday fired a barb comparing Prime Minister Narendra Modi with a ‘poisonous snake’, but later retracted saying that he was comparing BJP’s ideology and not Modi with that of a treacherous snake. He clarified that he had no intention of making a personal attack on Modi. Kharge was campaigning in Karnataka, but by the time his clarification came, the damage was already done. BJP leaders like Smriti Irani, Dharmendra Pradhan and CM Basavaraj Bommai condemned Kharge’s remark. The surprising part is that whenever elections take place, whether in Karnataka, Gujarat, UP or Bihar, some or the other Congress leaders make insulting remarks against Modi, and the party has to bear the brunt. BJP finds an issue out of nowhere. This is what happened in Karnataka. BJP leaders have been pointing out that, in the past, Modi has been named ‘maut ke saudagar’(merchant of death), ‘chowkidar chor hai’ (chowkidar is a thief), Ravana, Bhasmasur, ‘naali ka keeda’ (insect in the gutter). One thing to note is that this never gave Congress any electoral advantage. On the other hand, BJP leaders, by making an issue out of it, caused big electoral damage to the prospects of Congress. The Congress campaign, till now, in Karnataka was going on the right track, but Kharge’s remark has provided BJP with the ammunition it needed. BJP is going to go all out to reap the advantage.

WILL THERE BE A BIG POLITICAL CHANGE IN MAHARASHTRA?

Nationalist Congress Party supremo Sharad Pawar has made a cryptic remark saying “time has come to turn the ‘roti’” . He was addressing his party’s youth wing, and the remark was made in the context of giving more posts to younger generation. But Pawar’s remark was being interpreted differently by leaders in other parties. Something big may soon happen in Maharashtra politics, and already there are several indications. Nobody can say with clarity what is going to happen in the near future. Most of the people in Maharashtra politics feel that Eknath Shinde may not continue as chief minister for long, because there is a thinking among top BJP leadership that with Shinde as CM, it will be difficult for BJP to win the assembly polls. There is also a feeling among BJP leaders that if the party aims to win assembly polls, it should install Devendra Fadnavis as the chief minister. This message has been conveyed to Eknath Shinde, sources say. There are speculations that Ajit Pawar may break away from NCP with his band of supporter MLAs and may join hands with BJP. If such an alliance takes place, both BJP and NCP may emerge stronger. At the moment, the baton is in the hands of Sharad Pawar. Nobody can predict whose ‘roti’ Pawar may turn ultimately.

KEJRIWAL SPENDS RS 45 CRORE ON HIS RESIDENCE

A big row has erupted in Delhi politics over Rs 45 crore spent on renovation of Chief Minister Arvind Kejriwal’s official residence. BJP workers gheraoed the CM’s residence. They alleged that Kejriwal, who professes to be a ‘common man’ (aam aadmi), has built a residence fit for kings. Curtains worth Rs 8 lakh each, imported Dior marbles, and huge TV sets have been purchased, allege BJP and Congress leaders. Kejriwal is Delhi’s chief minister. Nobody should have any objection if he stays in a big residence. Almost all chief ministers in India stay in big residences. There is no problem on that score. But the question arises about Kejriwal’s attitude when he tries to take a high moral ground and try to show other leaders in a bad light. Kejriwal himself used to say, those living in big houses are corrupt and they squander public money. He promised he would stay like a common man if he came to power. He even promised to stay with poor people in slums. Kejriwal had raised questions about former CM Sheila Dixit’s residence and her electricity bills, saying this was wastage of public money. There are umpteen such remarks by Kejriwal when he questioned why public money was being squandered on official residences. He questioned the honesty of other leaders. This time, the cost of Rs 45 crores on renovation of his official residence has become a big issue. Kejriwal and his party leaders know that this has dented his carefully cultivated simple image among the public. He has become the butt of ridicule among common people. Kejriwal is unwilling to speak on this issue and there lies his problem. He is unwilling to apply on himself, the standards that he applies on others. Had two ministers in any government gone to jail, Kejriwal would have brought the skies down. Had any other Delhi CM spent Rs 45 crore on official residence, Kejriwal would have staged dharna in front of that house, and would have slept outside on the pavement. There is this proverb: “People who live in glass houses should not throw stones (Jinke ghar sheeshey ke hotey hain, unhen doosron par patthar nahin phenkne chahiye)”.

ANAND MOHAN SINGH RELEASED FROM JAIL

Bihar’s gangster-turned-politician former MP Anand Mohan Singh walked out of Saharsa jail on early Thursday morning to avoid ‘traffic chaos and unwanted media attention’. He was given death sentence in 2007 for inciting a mob that murdered IAS officer Gopalganj district magistrate G. Krishnaiah in 1994. Patna High Court commuted his sentence to life imprisonment in 2008. This month, Bihar government amended its jail manual to allow remission to convicts who have completed 14 years instead of earlier provision of 20 years. The state law department ordered his release on April 24, triggering a political row. Anand Mohan Singh’s release is the latest example of Bihar’s caste-based politics. He is considered a leader of Rajput caste, which accounts for 5 per cent vote. Most of the political parties in Bihar seek support from Rajput caste, and Chief Minister Nitish Kumar amended the jail manual to ensure his release. The caste impact is so strong that even some BJP upper caste leaders have come out in support of Anand Mohan’s release. One BJP leader even said that sending Anand Mohan to jail was “an excess”. When caste matters, it does not matter whether a self-proclaimed leader is a killer of not. This is nothing but a misfortune for Indian politics.

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ओवैसी को मुसलमानों के बीच नफरत के बीज बोने से बचना चाहिए

akbहैदराबाद की मक्का मस्जिद में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जुम्मातुल विदा के मुबारक मौके का इस्तेमाल भावनाओं को भड़काने के लिए किया। उन्होंने माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या पर सवाल उठाया। ओवैसी ने कहा कि अतीक और अशरफ के तीनों हत्यारे नौसिखिए नहीं हैं। वे एक टेरर सैल का हिस्सा हैं जो युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दे रहा है।

ओवैसी ने आरोप लगाया कि इस टेरर सैल में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है और कहा जा रहा है कि तुम्हें गोडसे का ख़्वाब पूरा करना है। उन्होंने सवाल उठाया कि इन तीनों के खिलाफ UAPA कानून क्यों नहीं लगाया गया। आम तौर पर ओवैसी का भाषण उग्र होता है, वे तथ्यों का हवाला देते हैं और तीखा बोलते हैं। इसलिए उनकी बात पर लोग यक़ीन भी कर लेते हैं। लेकिन शुक्रवार को ओवैसी ने जो कहा उसमें तथ्य कम और सियासी मसाला ज्यादा था। अतीक और अशरफ की हत्या के केस को उन्होंने हिन्दू-मुसलमान का रंग देने की कोशिश की। लेकिन हकीकत यह है कि अतीक और अशरफ कोई संत नहीं थे। वो गुंडे और माफिया थे। उनकी हत्या किसी तरह से जायज़ नहीं है लेकिन अतीक और अशरफ की हत्या का हवाला देकर ये कहना कि ज़ंजीरों में बंधे मुसलमानों को मारा जा रहा है, ये ठीक नहीं है।

अतीक के हत्यारों का बैकग्राउंड ऐसा नहीं, जिसे देखकर कहा जा सके कि उनकी अतीक से कोई रंजिश थी। पुलिस को यही शक है कि अतीक की हत्या का मास्टरमाइंड कोई और है। गोलियां बरसाने वाले तो सिर्फ मोहरे हैं। जांच भी इसी सवाल का जवाब खोजने के लिए हो रही है। लेकिन अतीक और अशरफ की हत्या को लेकर ये कह देना कि मुसलमानों को मारने के लिए देश में टेरर सेल बनाए जा रहे हैं, ये जायज़ नहीं है।

ये सही है कि मक्का मस्जिद ब्लास्ट के आरोपियों को सज़ा नहीं हुई, अजमेर शरीफ़ ब्लास्ट के आरोपी छूट गए, नरोदा गाम केस के आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया, मलियाना (मेरठ) नरसंहार के आरोपी भी छूट गए, लेकिन ये सारे फैसले अदालतों के हैं। इन फैसलों को ऊपर की अदालतों में चैलेंज किया जा सकता है। लेकिन कोर्ट के फैसलों को आधार बनाकर ये ऐलान कर देना कि मुल्क में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं,ओवैसी जैसे बड़े और समझादर नेता को शोभा नहीं देता।

जहां तक अतीक और अशरफ की हत्या का सवाल है तो उसकी अभी जांच चल रही है। पुलिस अतीक की हत्या का सच जानने के लिए हत्यारों का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर रही है। उमेश पाल के मर्डर केस में फरार अतीक गैंग के दूसरे आरोपियों को पकड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन ओवैसी को इन बातों से मतलब नहीं हैं। क्योंकि ये सब ओवैसी की सियासत को सूट नहीं करता। इस तरह के भाषणों का असर क्या होता है ये पटना में दिखा जहां अलविदा जुमे की नमाज के बाद पटना में मस्जिद के बाहर लोगों ने अतीक अहमद के समर्थन में नारे लगाए। समाजवादी पार्टी के कुछ नेता भी मारे गए डॉन का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। ये सही है कि अतीक और अशरफ को लेकर लोगों के मन में बहुत सारे सवाल हैं। उन्हें मारने वाले हत्यारे कहां से आए ? हथियार कहां से लाए गए ? उनको ट्रेनिंग किसने दी ? ये सवाल इसलिए उठे हैं क्योंकि अतीक और अशरफ की हत्या पुलिस हिरासत में कैमरों के सामने हुई। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी, शफीकुर्रहमान बर्क, तौकीर रजा, मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे लोग अपने सियासी फायदे के लिए इस घटना का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे पुलिस, सिस्टम और सरकार के प्रति मुसलमानों के दिलों में नफरत पैदा करने के लिए इस घटना का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह देश के लिए अच्छा नहीं है। इसका एक ही इलाज है कि पुलिस जल्दी से जल्दी उन सवालों के जवाब दे जो लोगों के मन है। पुलिस इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड का पता लगाए।

सत्यपाल मलिक को सीबीआई का समन

सिविल सेवा दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नौकरशाहों से कहा कि ये देखना उनकी जिम्मेदारी है कि टैक्स का पैसा जनता की भलाई के कामों में ही खर्च हो। मोदी ने कहा कि अफसरों को इस बात पर पैनी नजर रखनी होगी कि कहीं कोई राजनीतिक दल या नेता जनता का पैसा पार्टी के प्रचार या अपने विज्ञापन पर तो खर्च नहीं कर रहा है। मोदी ने कहा कि बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण के कारण भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदल रही है, क्योंकि हमारे देश में मोबाइल डेटा दुनिया में सबसे सस्ता है। उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण की मदद से लाखों फर्जी राशन कार्ड धारकों, अवैध आधार कार्ड धारकों और कल्याणकारी योजनाओं के फर्जी लाभार्थियों को हटा दिया गया है। मोदी के इस भाषण के थोड़ी ही देर के बाद ये खबर आई कि सीबीआई ने पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को पूछताछ के लिए बुलाया है।

असल में सत्यपाल मलिक ने मामलों में भ्रष्टाचार की शिकायत की थी। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब वो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे तो हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट और ग्रुप इंश्योरेंस स्कीम के मामले में उन्हें 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। अब तक सीबीआई ने इस पर कुछ नहीं कहा है। ये सारी जानकारी खुद सत्यपाल मलिक ने दी है। सीबीआई का समन मिलने के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि ‘जब से मैंने सच बोला है, मुझे समन भेजा गया है, लेकिन मैं किसान का बेटा हूं, मैं नहीं डरूंगा’। ऐसा नहीं है कि उन्हें पूछताछ के लिए पहली बार बुलाया गया है। पिछले साल सितंबर में भी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के केस में सीबीआई ने उनसे पूछताछ की थी। सत्यपाल मलिक की मुश्किल ये है कि उन्होंने इल्जाम तो लगा दिए अब सीबीआई के सवालों का जबाव भी उन्हें देना पड़ेगा। लेकिन सत्यपाल मलिक जनता को इस सवाल का क्या जवाब देंगे कि वो इतने साल के बाद क्यों बोल रहे हैं ? जब पद पर थे और जब उनपर कंपनियों को लाभ दिलाने का दबाव डाला गया, उसी वक्त उन्होंने सारा सच जनता के सामने क्यों नहीं रखा?

OWAISI MUST AVOID SOWING SEEDS OF HATRED AMONG MUSLIMS

AKBIn a hard-hitting speech on the occasion of Jumatul Vida, the last Friday prayer of Ramzan at Mecca Masjid in Hyderabad, AIMIM chief Asaduddin Owaisi alleged that the three killers of mafia don Atiq Ahmed and his brother Ashraf, were part of a ‘terror cell’ which has been training youths in firing weapons. Owaisi alleged, ‘these killers of terror cell are trying to fulfill Nathuram Godse’s dream’. He questioned why Unlawful Activities Prevention Act (UAPA) has not been used against these killers. Owaisi normally gives fiery speeches, backed by facts, and most of his followers believe in what he says. But the manner in which Owaisi spoke on Friday was political rather than factual. He tried to give a Hindu-Muslim angle to the killings of Atiq and Ashraf, but tthe fact is that neither Atiq nor his brother were saints. They were mafia gangsters. Of course, their murders can never be justified, but to allege that Muslims are being killed in India, while being tied in chains, is not correct. Atiq’s killers had no past background of enmity towards the mafia don, and police still suspects that the mastermind is someone else, and the killers were mere pawns. The entire probe is towards finding answers to the question about motive. To project the killings of Atiq and Ashraf as the work of some ‘terror cells’ is not justified. Owaisi was right when he said, the perpetrators of Mecca Masjid blast have not been punished, the accused in Ajmer Sharif blast went scot-free, all the accused in Naroda Gam massacre in Gujarat were acquitted, and all accused in Maliana (Meerut) massacre of 1987 were also acquitted. But one must note: all the accused were acquitted by law courts and the verdicts can be challenged in higher courts. Levelling charges that Muslims are not safe in India, on the basis of court verdicts, does not behove an experienced barrister and shrewd leader like Owaisi. As far as the murders of Atiq and Ashraf are concerned, the probe is on, and police is going to carry out narco-analysis tests of the killers. Police is looking out for other criminals of Atiq gang, who have gone underground after Umesh Pal’s murder. For Owaisi, such facts do not matter because they do not suit his style of politics. Owaisi brand of politics leads to situations like the one in Patna, where some Muslims, after Friday prayers, shouted slogans in support of Atiq Ahmed. Some Samajwadi Party leaders are also openly supporting the slain don. It’s true there are many questions in the minds of common people about the killings of Atiq and Ashraf. They want to know the real mastermind behind the killings, who trained the killers and gave them costly pistols. UP police is still trying to unravel the mystery. But leaders like Owaisi, Shafiqur Rahman Burq, Maulana Tauqeer Raza and Maulana Sajjad Nomani are using this incident to grind their political axe. They are trying to sow seeds of hatred in the minds of Muslims towards police, the system and the government. This is not good for our country. The only solution is that UP police must swiftly find out who the mastermind was behind Atiq and Ashraf’s killings.

CBI SUMMONS SATYAPAL MALIK

On Civil Services Day, Prime Minister Narendra Modi asked civil bureaucrats to take a strong stand against corruption and misuse of public money. He said, India’s rural economy is transforming because of mass digitalization, as mobile data in our country is the cheapest in the world. Millions of fake ration card holders, illegal Aadhar card holders and fake beneficiaries of welfare schemes have been weeded out with the help of digitalization, he said. Soon after Modi’s speech, came news of CBI summoning former J&K Governor Satyapal Malik for questioning in connection with some corruption related cases. Malik had told an interviewer that he was offered Rs 300 crore bribe money in connection with a hydro power project and a group insurance scheme. Most of the disclosures have been made by Malik himself. After getting CBI summons, he tweeted that ‘since I have spoken the truth, I have been summoned, but I am a farmer’s son, and I will not be scared’. This is not the first time Malik has been questioned. In September last year, he was questioned by CBI in connection with a hydro power project. The problem with Malik is that, it was he who first levelled the charge of corruption in public, and now he is caught in a quandary as to what facts to reveal to the CBI during questioning. The point is, why was he revealing all this now, though he demitted office in October, 2019 as J&K Governor, when, he says, pressure was put on him to grant favours to some companies. Why didn’t Malik disclose all this to public at that time?

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क्या यूपी पुलिस अतीक की हत्या के मक़सद का खुलासा कर पाएगी?

akbबहुत से लोग सोच सकते हैं कि माफिया अतीक अहमद और अशरफ की हत्या दर्जनों कैमरों के सामने हुई, पूरी घटना का लाइव टेलिकास्ट हुआ, ऐसे में गुरुवार को यूपी पुलिस ने प्रयागराज में क्राइम सीन को नाटकीय ढंग से दोबारा रीक्रिएट क्यों किया। दर्जनों कैमरों में तीनों आरोपियों द्वारा अतीक और अशरफ पर फायरिंग से लेकर सरेंडर तक की तमाम तस्वीरें कैद हैं। तीनों पुलिस की गिरफ्त में हैं। सबकी कुंडली पुलिस के पास है। इसके बाद भी सीन को रीक्रिएट करने, इतना सारा ड्रामा करने की जरूरत क्या है? जब सारे सबूत सामने हैं, सब कुछ ऑरिजनल है तो फिर क्राइम सीन को दोबारा शूट करने से क्या मिलेगा? दरअसल, हमारे क्रिमिनल लॉ में एक तय प्रक्रिया है, जिसका पालन प्रॉसिक्यूशन को करना होता है। न्यायिक जांच आयोग और SIT ने भी इसी प्रोटोकॉल का पालन किया। इसकी रिपोर्ट अदालत में काम आएगी। क्राइम सीन रीक्रिएट करने से यह समझ में आता है कि उस वक्त क्या हुआ होगा। पुलिस ने कस्टडी में मौजूद गैंगस्टरों की सुरक्षा व्यवस्था में कोई लापरवाही तो नहीं की थी? क्या पुलिस वालों के पास इतना वक्त था कि वे हत्यारों को रोक सकते थे? और सबसे बड़ी बात यह कि हत्यारों ने पूछताछ में जो बताया, उसको मौके पर जाकर देखा जाता है कि हत्यारे जो कह रहे हैं वह वाकई में मुमकिन था या नहीं, वैसा हुआ या नहीं। आमतर पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने से जांच में तो बहुत मदद नहीं मिलती है, लेकिन अदालत में आरोपों को साबित करने में इसकी रिपोर्ट मदद करती है। ये तो सबको पता है कि हत्या किसने की, और किस हथियार से की। पुलिस के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि वह इन सवालों के जवाब खोजे कि हत्या के पीछे मकसद क्या था। हत्यारों की अतीक से क्या दुश्मनी थी? अतीक की हत्या से उन्हें क्या फायदा हुआ? क्या हत्यारे सिर्फ मोहरे या कॉन्ट्रैक्ट किलर हैं? अगर यह सही है तो फिर अतीक और अशरफ की सुपारी देने वाला कौन है? अब पुलिस इन्ही सवालों के जवाब खोजने में ताकत लगा रही है। पिछले 24 घंटों में हत्यारों ने पूछताछ में कुछ खुलासे किए भी हैं, लेकिन अभी और खुलासों की उम्मीद है। अतीक की हत्या करने वाले तीनों शूटर्स रटा-रटाया जवाब दे रहे हैं। इससे यह पता नहीं लग रहा कि अतीक की हत्या का मसकद क्या था, उन्हें इससे क्या हासिल हुआ। तीनों शूटर्स की अतीक से कोई पुरानी दुश्मनी नहीं है, उनका कोई लंबा-चौड़ा आपराधिक इतिहास नहीं है जिसके जरिए पुलिस उनके बारे में कुछ पता लगा सके। अतीक की हत्या से शूटर्स को कोई फायदा हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन इससे पुलिस का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। अतीक और अशरफ जिंदा रहते तो काले कारनामे करने वाले तमाम सफेद लोगों का चेहरा उजागर होता, क्राइम के पूरे सिंडिकेट का खुलासा होता। अतीक ने अपने धंधों में किन किन लोगों की काली कमाई लगाई है, यह पता लगता। अतीक और अशरफ की हत्या के बाद वे सारे राज दफन हो गए।

कर्नाटक चुनावों में उछला अतीक का नाम

बीजेपी गुरुवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के एक पुराने वीडियो को लेकर सामने आई, जिसमें वह कई साल पहले प्रयागराज के एक ‘मुशायरे’ में अतीक अहमद की तारीफ करते नजर आ रहे हैं। कर्नाटक से बीजेपी की सांसद शोभा करंदलाजे ने इस पर कांग्रेस से स्पष्टीकरण की मांग की। इसके जवाब में कांग्रेस ने भी एक कई साल पुराना वीडियो जारी किया जिसमें यूपी के मंत्री नंदगोपाल नंदी अतीक अहमद के साथ बैठकर हंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। वक्त-वक्त की बात है। एक वक्त वह था जब समाजवादी पार्टी हो, बहुजन समाज पार्टी हो या कांग्रेस हो, इसके नेता चुनाव में अतीक अहमद को राजनीतिक समर्थन देते थे और बदले में प्रयागराज के इलाके में अतीक से सपोर्ट लेते थे। लेकिन आज वक्त बदल गया है। अब अतीक अहमद मारा जा चुका है, उसका साम्राज्य मिट्टी में मिल चुका है। अब उसका नाम किसी के काम का नहीं, इसलिए यही पार्टियां अतीक का नाम लेने से भी बच रही हैं। सारे नेता अतीक के नाम से दूरी बना रहे हैं। स्वच्छ राजनीति के लिए यह बदलाव अच्छा है। बस जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक दलों का इस तरह का रवैया सिर्फ अतीक अहमद के लिए नहीं, बल्कि सभी अपराधियों के लिए होना चाहिए। कर्नाटक में अतीक अहमद का नाम इसलिए आया क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव है, और गुरुवार को नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन था।

राहुल की अर्जी हुई खारिज

गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उस समय झटका लगा, जब सूरत की एक डिस्ट्रिक्ट सेशन कोर्ट ने मानहानि के एक मामले में 2 साल कैद की सजा पर रोक लगाने की उनकी अर्जी को खारिज कर दिया। अगर सूरत की कोर्ट से राहुल को राहत मिल जाती, उनकी सजा पर रोक लग जाती तो कांग्रेस इसे अपने नेता की एक बड़ी जीत के रूप में प्रोजेक्ट करती। कर्नाटक के चुनाव में इसे मोदी की हार बताया जाता। हालांकि गुरुवार को जो हुआ वह कोर्ट का फैसला है, इसका राजनीति से कोई सीधा कनेक्शन नहीं है, लेकिन दोनों तरफ से इसका सियासी इस्तेमाल किया गया। बीजेपी ने कहा कि देश का पिछड़ा वर्ग खुशी मना रहा है क्योंकि राहुल को पिछड़े वर्ग को अपमानित करने का दोषी पाया गया है, और JKPDP सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए काला दिन है। बीजेपी ने कहा कि यह गांधी परिवार के अहंकार पर चोट है तो कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी खामोश नहीं होंगे। इसलिए मेरा कहना है कि फैसला चाहे जो भी हो, इसका इस्तेमाल सियासी मकसद के लिए होगा और दोनों तरफ से होगा।

2002 नरोडा गाम हत्याकांड पर आया फैसला

अहमदाबाद में एक विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 के नरोदा गाम हत्याकांड मामले में पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी और वीएचपी नेता जयदीप पटेल सहित सभी 68 आरोपियों को बरी कर दिया। हिंसा की इस घटना के दौरान 11 लोग मारे गए थे। 2017 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह गवाह के तौर पर कोर्ट के सामने पेश हुए थे। यह नौवां मामला था जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त SIT ने की थी। इस केस में कुल 86 अभियुक्त थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। यह मामला 2002 का है, 21 साल हो चुके, केस सुप्रीम कोर्ट तक गया था। सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया था। SIT ने जांच की, केस की सुनवाई 2009 में शुरू हुई और 14 साल के बाद अब कोर्ट का फैसला आया है। अब इसे हायर कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा, और जब तक केस चलेगा तब तक इस पर सियासत होती रहेगी, और जब-जब बयानबाजी होगी, तब-तब दंगा पीड़ितों के घाव हरे होंगे।

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WILL UP POLICE UNRAVEL THE MOTIVE BEHIND ATIQ’S MURDER?

akbMany people might be wondering why UP police dramatically recreated the crime scene in Prayagraj on Thursday, particularly when the murders of mafia don Atiq Ahmed and Ashraf took place in full view of TV cameras and live telecast was going on. The visuals of the three killers firing at the two gangsters and then being overpowered by police have been recorded in dozens of TV cameras. All the three killers are now in police custody. Police have full details about their background. Then what is the need for such a drama for recreating the crime scene? All evidences of the killings are there, in original, then what is the need for shooting the crime recreation scene again? Actually, there is a set procedure in our criminal law which has to be followed by the prosecution. The judicial inquiry commission and SIT followed the same protocol. Their reports will be useful before a law court. Recreating a crime scene will help in understanding what exactly took place at the time and scene of crime. Was there a serious lapse on part of police in providing security for the gangsters who were in custody? Did police have enough time to respond and protect both of them? Above all, do the statements of killers match with the probabilities about the crime committed? Normally recreating a crime scene is not of much help, but it helps in proving the guilt of accused in court. All of us know who killed Atiq and Ashraf, and with what weapons. The biggest challenge presently before UP police is to establish the exact motive of the crime. Whether the killers had past enmity with the gangsters? What benefit accrued to them by killing Atiq and Ashraf? Whether the killers were just pawns, or contract killers? If so, who gave them the supari (contract) to kill? Police is trying to find answers to these questions. Some disclosures have been made by the killers during the last 24 hours and more are expected. All the three killers are giving tutored replies. It is difficult to assess the exact motive of murder and the advantage that was gained by killing the two gangsters. All the three killers do not have much of a past criminal history. They had no enmity with Atiq Ahmed’s gang. Whether the conspirators benefited or not, police had to face losses. Had Atiq and his brother been alive, the names of all those who benefited from the gang could have been revealed. The entire crime syndicate could have been exposed. The companies and individuals in which Atiq invested his gang’s ill-gotten money could have been revealed. With the murders of Atiq and Ashraf, all those secrets now lie buried.

ATIQ’S NAME CROPS UP IN KARNATAKA POLLS

On Thursday, BJP came out with an old video of Congress MP Imran Pratapgarhi praising Atiq Ahmed at a ‘mushaira’ in Prayagraj several years ago. BJP MP from Karnataka Shobha Karandlaje demanded explanation from Congress. To counter this, Congress came out with a video of UP minister Nandgopal Nandi sitting and laughing with Atiq Ahmed several years ago. There was a time when Samajwadi Party, BSP or Congress leaders used to provide political support to Atiq Ahmed, and in return, get support from Atiq Ahmed during elections. Times have now changed. Atiq Ahmed is dead and his mafia empire lies in ruins. Political parties publicly avoid associating their names with the mafia don. Every leader wants to shun his name. Such a change is good for clean politics. The only thing required is, political parties should not only keep a distance from Atiq Ahmed’s gang, but also from all other gangsters. Since Karnataka is going for assembly elections, and Thursday was the last day for filing nominations, Atiq Ahmed’s name cropped up there too.

RAHUL’S PLEA DISMISSED

On Thursday, Congress leader Rahul Gandhi got a jolt when a district sessions court in Surat dismissed his plea to suspend the two year imprisonment sentence in a defamation case. Had Rahul got relief from court, the Congress would have projected it as a big victory for its leader. It could have projected it a big loss for Modi during Karantaka elections. What happened on Thursday was a court verdict and it had no direct connection with politics, but both camps used it for scoring political brownie points. BJP leaders said, OBC (other backward classes) are happy because Rahul has been proved guilty for insulting a backward class, but JKPDP chief Mehbooba Mufti described it as a ‘black day for democracy’. BJP said, the court verdict is a blow to the ‘ahankaar’ (ego) of Gandhi-Nehru dynasty, while Congress said, Rahul’s voice cannot be muzzled. My view: whatever may be the verdict, it was used and will continue to be used for political gains, by both sides.

VERDICT ON 2002 NARODA GAM KILLINGS

A special court in Ahmedabad on Thursday acquitted all 68 accused, including former minister Maya Kodnani, Bajrang Dal leader Babu Bajrangi and VHP leader Jaydeep Patel, in the 2002 Naroda Gam massacre case. Eleven people were killed during the massacre. In 2017, Amit Shah, then BJP president, deposed before the court as a witness. This was the ninth case that was probed by a Supreme Court-appointed special investigation team. There were 86 accused, out of which 18 died during the trial. Since the massacre took place in 2002, 21 years have passed, the matter went to Supreme Court, an SIT investigated, trial began in 2009, and the verdict has come after 14 years, naturally it will be challenged in higher courts. Political sabre-rattling will continue and whenever political allegations and counter-allegations are made, the wounds of the victims will always reopen.

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यूपी में माफिया की जड़ें बहुत गहरी हैं

akb fullउत्तर प्रदेश की पुलिस ने ताजा घटनाक्रम में बांदा जिले से तीन लोगों को गिरफ्तार किया है जिन्होंने माफिया डॉन अतीक अहमद के कातिलों को टीवी रिपोर्टिंग के क्रैश कोर्स की ट्रेनिंग दी थी। गिरफ्तार तीनों शख्स एक स्थानीय न्यूज चैनल के लिए काम करते थे। अतीक के तीनों कातिलों लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य ने इस लाइव शूट आउट के लिए इस्तेमाल किए गए हथियार और पैसों के स्रोत के बारे में पुलिस के सामने कई खुलासे किए। इन तीनों को बुलेट प्रूफ शील्ड का उपयोग करते हुए भारी सुरक्षा के बीच बुधवार को प्रयागराज की एक अदालत में पेश किया गया। पुलिस को इस बात की आशंका है कि अतीक हत्याकांड के असली साजिशकर्ता इन कातिलों को मारने की कोशिश कर सकते हैं। पुलिस अधिकारियों का यह डर जायज है क्योंकि इतनी सख्ती के बावजूद अतीक अहमद के गैंग ने उमेश पाल को सरेआम मारने की हिम्मत की। अतीक ने जेल में बैठकर हत्या की प्लानिंग की और इसे अंजाम तक पहुंचाने तक हर चीज पर नजर रखी। हालांकि पुलिस ने बड़े पैमाने पर अपराधियों को गिरफ्तार किया, एनकाउंटर्स में अपराधियों को मार गिराया गया, उनकी प्रॉपर्टी पर बुलडोजर भी चले इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में माफिया की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। यूपी पुलिस अब एक और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कस सकती है। यूपी पुलिस ने बुधवार को मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी पर 25 हजार रुपये के इनाम का ऐलान किया। अफशां अंडरग्राउंड हो चुकी है। वहीं अतीक की विधवा शाइस्ता परवीन और बम एक्सपर्ट गुड्डू मुस्लिम भी अंडरग्राउंड हैं। जब तक शाइस्ता पुलिस की गिरफ्त में नहीं आती तब तक पुलिस को अतीक गैंग और उसकी बेनामी संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलेगी। अभी तक जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक अतीक अहमद ने शाइस्ता के नाम पर करीब दो सौ कंपनियां बना रखी थी। यूपी, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र से लेकर बंगाल तक ये कंपनियां रजिस्टर्ड हैं। इन्ही कंपनियों में अतीक अहमद की काली कमाई इन्वेस्ट होती थी। अब जांच एजेसियां पूरी कुंडली खंगाल रही हैं। यह भी पता लगा है कि अतीक जिन संपत्तियों पर कब्जा करता था उनकी रजिस्ट्री अपने नाम पर करवाने के बजाए या तो शाइस्ता के नाम पर कराता था या फिर अपनी गैंग के सदस्यों के नाम पर करवाता था। अतीक की संपत्तियां सिर्फ प्रयागराज में ही नहीं हैं। दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू, कोलकाता, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी उसके घर, मकान दुकान और बंगले हैं। अतीक की मौत के बाद अब वे लोग जो पहले उसके गैंग के सदस्य थे और संपत्तियों पर कब्जा जमाने में उसकी मदद करते थे, अब खुद को ऐसे प्रोजेक्ट कर रहे हैं जैसे वो अतीक के सताए हुए हैं। रिकॉर्ड किए गए ऑडियो और व्हाट्सएप चैट के जरिए खुद को पीड़ित जताने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला समाने आया है बिल्डर मोहम्मद मुस्लिम का। मोहम्मद मुस्लिम ने एक फोन कॉल की ऑडियो रिकॉर्डिग और कुछ व्हाटसएप चैट जारी किया जिसमें अतीक का बेटा असद, मोहम्मद मुस्लिम को धमकी देता हुआ सुनाई दे रहा है। दावा ये किया गया कि असद इस तरह के वीडियो भेजकर वसूली के लिए दबाव बनाता था। बाद में पता चला कि मोहम्मद मुस्लिम अतीक का सताया हुए नहीं हैं बल्कि वह अतीक गैंग का सक्रिय सदस्य है। अतीक ने उसके नाम पर भी कई संपत्तियों की रजिस्ट्री करवाई है। मोहम्मद मुस्लिम न पहला ऐसा शख्स है और न आखिरी, जो जिंदगी भर अतीक के गुनाहों में शरीक रहा और अब अतीक की मौत के बाद खुद को अतीक के जुल्मों का शिकार बता रहा हो। जब भी कोई अपराधी मरता है तो ऐसे बहुत सारे लोग सामने आते हैं। उनका मकसद एक ही होता है। अपराध की रकम को हजम करना और पुलिस से पीछा छुड़ाना। योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को साफ हिदायत दी है कि किसी बेगुनाह को बेवजह परेशान न किया जाए और कोई गुनाहगार बचने न पाए। सिर्फ अतीक ही नहीं बल्कि उसकी पूरी गैंग को जड़ से खत्म करना है इसलिए जिसके खिलाफ सबूत मिले, सबको पकड़ा जाए। लेकिन मुश्किल ये है कि अतीक के गैंग के खिलाफ एक्शन को कुछ लोग मजहबी रंग देने लगे हैं। महाराष्ट्र के बीड जिले के माजलगांव में अतीक के समर्थन में पोस्टर लगे, जिसमें अतीक और अशरफ को शहीद बताने की कोशिश की गई। होर्डिंग में न्यूज़ पेपर की एक कटिंग भी छापी गई, जिसमें एक कम्युनिटी को टारगेट किया गया और धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश की गई। जैसे ही पुलिस को इस तरह की होर्डिंग और पोस्टर की शिकायत मिली तो पुलिस ने इन्हें तुरंत हटवा दिया। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार भी किया है। उधर, प्रयागराज में कांग्रेस के एक स्थानीय नेता राजकुमार ने सबसे पहले खुले तौर पर अतीक को शहीद बताया और उसे भारत रत्न दिए जाने की मांग की। इसके बाद उसने अतीक की कब्र पर जाकर तिरंगा बिछा दिया। कांग्रेस ने इस शख्स को स्थानीय निकाय चुनाव में प्रयागराज के वार्ड नंबर 45 से अपना उम्मीदवार बनाया है। इस घटना के सामने आते ही कांग्रेस पार्टी ने उसे छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। पुलिस ने अतीक की कब्र से तिरंगा हटाया और राजकुमार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। बरेली में, इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के प्रमुख मौलाना तौकीर रज़ा ने अपने समर्थकों से अपील की कि वे ‘मुस्लिमों के खिलाफ अत्याचार’ के खिलाफ सड़कों पर उतरें। उनकी अपील के बाद बरेली में धारा 144 लागू कर दी गई। मैं कांग्रेस की तारीफ करूंगा कि पार्टी ने अतीक अहमद के लिए भारत रत्न मांगने वाले को तुरंत बाहर किया लेकिन तौकीर रजा को कोई पूछने वाला नहीं है। तौकीर रजा का अतीक अहमद जैसे दुर्दांत अपराधी के हक में बोलना हैरान करता है। समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने भी अतीक का समर्थन किया। क्या शफीकुर्रहमान बर्क और तौकीर रजा को अतीक की हिस्ट्री शीट नहीं मालूम, उसके गुनाहों के बारे में नहीं मालूम ? अतीक के छोटे बच्चों को सरकार ने सुरक्षा दी और उन्हें बाल सुधार गृह में रखा है। पुलिस ने कोर्ट को उनकी पूरी डिटेल दी है। पुलिस को लगता है कि अतीक के दुश्मन उसके बच्चों के लिए खतरा हो सकते हैं इसलिए बाल सुधार गृह में उनकी सुरक्षा की जा रही है। इसलिए बार-बार ये कहना कि अतीक के नाबालिग बच्चों की हत्या हो सकती है, ये ठीक नहीं है। जहां तक शाइस्ता का सवाल है तो शाइस्ता के खिलाफ सबूत हैं।अतीक की गैरमौजूदगी में वो अतीक का गैंग चला रही थी। उसके पास अतीक की गैंग और उसके काले कारनामों की पूरी जानकारी है इसलिए शाइस्ता के समर्थन में बोलना और उसकी गिरफ्तारी की कोशिशों पर सवाल उठाना ठीक नहीं है। जो लोग अतीक की मौत को मजहबी रंग दे रहे हैं उन्हें एक बार अतीक के काले कारनामों और उसके खौफ को य़ाद करना चाहिए कि अतीक किस तरह लोगों को डराता था। 2016 में अतीक भीड़ के साथ नैनी के कृषि विश्वविद्यालय में घुस गया। अतीक सीधे प्रशासनिक भवन में घुसा और घुसते ही यूनीवर्सिटी के पीआरओ रमाकांत दुबे को थप्पड़ मार दिया। बात ये थी कि अतीक के सहयोगी के एक करीबी रिश्तेदार को परीक्षा के दौरान नकल करते हुए पकड़ा गया था। अतीक द्वारा पीआरओ को थप्पड़ मारने का वीडियो बुधवार रात इंडिया टीवी पर दिखाया गया था। यह वीडियो इस बात का सबूत है कि कैसे एक जमाने में अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे माफिया डॉन को गुंडागर्दी करने की खुली छूट थी। मैंने उस जमाने के एक बड़े पुलिस अधिकारी से बात की। उन्होंने बताया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों के दौरान किसी की हिम्मत नहीं थी कि इन अपराधियों के खिलाफ एक्शन ले। यूपी में माफिया की जो 15 हजार करोड़ की संपत्ति जब्त हुई है या कब्जे से छुडाई गई है, उसे इन गुंडों ने रातों-रात हासिल नहीं की। यूपी के माफिय़ा ने यह साम्राज्य पिछले तीस-चालीस साल में खड़ा किया। इतने लंबे समय में माफिया की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। इसलिए उसे खत्म करने में भी वक्त लगेगा। पिछले छह साल में योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों के दिलों में कानून का खौफ पैदा किया। उनकी सप्लाई लाइन काटी और संपत्तियों को जब्त किया। अब गैंगस्टर्स के खिलाफ एक्शन फाइनल स्टेज में है इसलिए प्रतिरोध भी ज्यादा होगा। लेकिन मुझे लगता है कि गैंगस्टर्स को जड़ से खत्म करने की मुहिम में सभी राजनीतिक दलों को योगी आदित्यनाथ का समर्थन करना चाहिए। क्योंकि ये यूपी के लोगों की खुशहाली और सुख शान्ति के लिए बहुत जरूरी है।

ममता ने इस्तीफे की पेशकश क्यों की?

बुधवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी के आरोप को निराधार बताया और आरोप सही साबित होने पर इस्तीफे की पेशकश की। दरअसल, शुभेन्दु अधिकारी ने ये कहकर बंगाल की सियासत में गर्मी ला दी कि ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता वापस दिलाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह को चार बार फोन किया। हाल में चुनाव आयोग ने टीएमसी की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता खत्म कर दी थी। ममता ने इसे झूठ बताया और कहा कि अगर कोई ये साबित कर दे कि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की मान्यता के बारे में अमित शाह से बात की है तो वो मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगी। शुभेंदु अधिकारी अपने आरोप पर अड़े रहे और खुलासा किया कि ममता ने अमित शाह से लैंडलाइन पर बात की थी। उन्होंने सही वक्त पर इस पूरे मामले का खुलासा करने का वादा भी किया। वहीं तृणमूल कांग्रेस ने शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की धमकी भी दी। बंगाल में एक और दिलचस्प घटनाक्रम हुआ। पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय तीन दिन पहले लापता हो गए और फिर बुधवार को दिल्ली में मिले। अब मुकुल रॉय कह रहे हैं कि वो बीजेपी में वापस आना चाहते हैं इसीलिए बीजेपी के नेताओं से मिलने आए हैं। मुकुल रॉय का कहना है कि वो आधिकारिक रूप से बीजेपी के विधायक हैं इसलिए पार्टी में वापसी सिर्फ औपचारिकता है। मुकुल रॉय ने कहा कि वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा नेताओं से मिलने दिल्ली आए हैं। शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि अब मुकुल रॉय जैसे नेताओं के लिए बीजेपी में कोई जगह नहीं है। मुकुल रॉय जहां हैं, वहीं ठीक हैं। वहीं ममता बनर्जी ने कहा-‘मुकुल रॉय तो बीजेपी के विधायक हैं। वो उनके पास आए जरूर थे लेकिन उन्होंने तृणमूल कांग्रेस ज्वॉइन नहीं की थी। उनकी तबियत भी ठीक नहीं है, वो क्या कर रहे हैं और किससे मिल रहे हैं, इससे तृणमूल कांग्रेस का कोई लेना देना नहीं है।’ मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्य रहे हैं। ममता के करीबी रहे हैं। लेकिन 2017 में उन्होंने बीजेपी ज्वॉइन कर ली थी। इस वक्त वो बीजेपी के ही विधायक हैं। लेकिन ये भी सही है कि बंगाल में तृणमूल की सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद वो ममता से मिले और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन विधानसभा से इस्तीफा नहीं दिया। इसीलिए अब न बीजेपी उन्हें अपना मानती हैं और न ममता।

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ROOTS OF UP MAFIA GANGS RUN DEEP

akb0710 In fresh developments, UP police have arrested three persons in Banda district, who worked for a local news channel and gave crash course training in TV reporting to the three killers of mafia don Atiq Ahmed. The three killers Lovelesh Tiwari, Sunny Singh and Arun Maurya have made several disclosures to police about the sources of money and weapons used in the live TV killings. The three killers were produced before a Prayagraj court on Wednesday under heavy security using bulletproof shields. Police apprehend that the real conspirators may try to kill the assassins. This fear is justified, because Atiq Ahmed, despite being in Gujarat jail, planned and directed the daylight murder of key witness Umesh Pal. The roots of mafia gangs in UP are still deep despite arrests, encounters and razing of ill-gotten properties of criminals. UP police may now zero in on another mafia don Mukhtar Ansari. On Wednesday, UP police announced Rs 25,000 reward on the whereabouts of Mukhtar’s wife Afshan Ansari, who is underground. Meanwhile, Atiq’s widow Shaista Parveen and bomb expert Guddu Muslim are still underground. Police can find out details about the don’s ill-gotten properties purchased through ‘benami’ channels, only after Shaista is arrested. Atiq had floated nearly 200 companies in UP, Haryana, Rajasthan, Delhi, Maharashtra and Bengal, in which extortion money was invested. Most of the properties grabbed by Atiq were registered in the name of his wife or other gang members. The properties include residences, shops and bungalows are located in Delhi, Bengaluru, Mumbai, Kolkata, Noida and Greater Noida and are registered in different names. With the death of the don, several gang members have now started posing themselves as victims. Some of them have started sharing recorded audio and WhatsApp conversations to show that they were facing extortions from the don. Among them is one Mohammed Muslim, a builder, who alleged that Atiq used to threaten him to pay extortion money. It was later revealed that Mohd Muslim was not a victim but was part of Atiq’s gang. Atiq had got several properties registered in his name too. Normally, whenever a criminal don dies, his gang members try to grab his properties and extortion money, to protect themselves from police probe. CM Yogi Adityanath has clearly instructed officials that innocents must not be harassed, but the guilty must not be spared. The aim is to uproot mafia gangs. Already, some people have started giving communal colour to UP police operations. In Majalgaon of Beed district in Maharashtra, large hoarding have appeared describing Atiq and his brother Ashraf as martyrs. The aim is to target a particularl community and spread religious fanaticism. Police promptly removed these hoardings and arrested two persons. In Prayagraj, Raj Kumar, a Congress candidate in municipal elections, laid tricolour flag on Atiq’s grave and demanded that Bharat Ratna be given to the mafia don. He was promptly expelled by Congress party for six years. Police immediately removed the tricolour from Atiq’s grave and a case has been filed against Raj Kumar. In Bareilly, Ittehad-e-Millat Council chief Maualana Tauqeer Raza gave a call to his supporters to come out on sgtreets against what he called ‘atrocities against Muslims’. Prohibitory orders under Section 144 have been clamped in Bareilly. I congratulate Congress party for taking swift action against the man who wanted Bharat Ratna for Atiq Ahmed, but there is nobody to question Maulana Tauqeer Raza. Even Samajwadi Party MP Shafiqur Rahman Burq has also supported Atiq. The fact is UP police has provided protection to both the children of Atiq Ahmed and has kept them in a children’s home. To say that the lives of Atiq’s children are under threat is unjustified. As far as Atiq’s widow is concerned, she has full knowledge about the crimes committed by the don and his associates. Those who are trying to give a communal colour to Atiq’s case, must remember, how the don used to terrorize people. In 2016, Atiq, along with a mob carrying weapons, marched into the agricultural university in Naini, and slapped the PRO of the university Ramakant Dubey. The provocation: a close relative of his associate was caught copying during exam. The video of Atiq slapping the PRO was shown on India TV on Wednesday night. This video is proof of how mafia dons like Atiq Ahmed and Mukhtar Ansari used to strike terror in UP. I spoke to a senior police officer of that era, who revealed, nobody had the courage to take action against mafia dons during SP and BSP rule. The Rs 15,000 crore worth properties of criminals attached by the government, have not been acquired overnight. This was the result of three decades of mafia rule. The roots of mafia gangs had really gone deep, and it will take time to destroy those roots. During last six years, Yogi Adityanath brought fear of law in the minds of these criminals, he cut off their supply lines (of extortions and land grabbing), seized their properties and got many criminals killed in encounters. Political parties must lend support to Yogi in his drive against criminal mafia gangs. This is essential for peace and prosperity of UP.

WHY MAMATA OFFERED TO RESIGN?

On Wednesday, West Bengal chief minister Mamata Banerjee described BJP leader Suvendu Adhikari’s allegation as baseless and offered to resign if the charge was proved correct. Adhikari had alleged that Mamata spoke to Home Minister Amit Shah four times over telephone to protect national party status of Trinamool Congress, that was recently withdrawn by the Election Commission. Mamata said, this was a lie, and if BJP can prove that she spoke to Amit Shah, she would resign as CM. Suvendu Adhikari stuck to his allegation and revealed that Mamata spoke to Amit Shah over landline. He promised to reveal the full secret “at the right time”. Trinamool Congress threatened to take legal action against Adhikari. In another interesting development, former Union Minister Mukul Roy, who had been missing three days ago, surfaced on Wednesday and claimed that he never left BJP. Mukul Roy said he had come to Delhi to meet BJP leaders to seek work in view of next year’s Lok Sabha polls. Suvendu Adhikari said, leaders like Mukul Roy, who crossed fences, have no place in BJP now. Mamata Banerjee said, Mukul Roy is still a BJP MLA, he had come to meet her but he never rejoined Trinamool Congress. ‘Our party has nothing to do with him, his health is not good’, she said. Mukul Roy has been a founding member of Trinamool Congress. He was a close associate of Mamata Banerjee, but joined BJP in 2017. At present, he is a BJP MLA, and it is also a fact that a few months after Mamata won assembly polls, he called on her, but never resigned from assembly. The position now is: neither BJP nor Mamata want Mukul Roy.

योगी ने यूपी से कैसे किया माफिया युग का खात्मा

akbमाफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के तीनों कातिलों को आज प्रयागराज की एक अदालत में पेश किया गया। अदालत ने तीनों को 4 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया। इस बीच अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन और उसके करीबी गुड्डू मुस्लिम का पता लगाने के लिए पुलिस बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चला रही है। शाइस्ता और गुड्डू मुस्लिम BSP विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या के बाद पिछले 2 महीने से फरार हैं। राजू पाल की 2005 में प्रयागराज में दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई थी। न्यायिक आयोग और SIT ने अतीक और अशरफ की लाइव मर्डर की जांच शुरू कर दी है। यूपी पुलिस के पूर्व आईजी अखिलेश मेहरोत्रा ने इंडिया टीवी से बातचीत में कहा कि 2005 में जब वह प्रयागराज के डीआईजी थे तभी राजू पाल की हत्या हुई थी। उस वक्त अतीक की गिरफ्तारी के लिए के लिए उन्हें मुलायम सिंह यादव के पास जाना पड़ा था। उन्होंने मुलायम सिंह से अतीक की गिरफ्तारी का अनुरोध किया। मेहरोत्रा के मुताबिक, मुलायम अतीक की गिरफ्तारी का आदेश देने में हिचक रहे थे लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि इससे सरकार की बदनामी हो रही है, उन्होंने गिरफ्तारी की इजाजत दे दी। उन्होंने कहा कि न सिर्फ समाजवादी पार्टी, बल्कि कई अन्य सियासी दल भी अतीक के गिरोह को संरक्षण दे रहे थे। अतीक का गैंग खुलेआम लोगों की हत्या, रंगदारी में लिप्त था और कारोबारियों को गुलाबी और सफेद पर्चियां भेजकर ‘इलेक्शन टैक्स’ वसूलता था। पर्ची के रंग से तय होता था कि किसको कितना पैसा देना है। गुलाबी पर्ची का मतलब था कि 3 से 5 लाख के बीच ‘टैक्स’ देना है, जबकि 5 लाख से ज्यादा की रकम के लिए सफेद पर्ची दी जाती थी। इस बात में तो कोई शक नहीं है कि अतीक इतना बड़ा माफिया इसलिए बना क्योंकि उसे राजनीतिक संरक्षण मिला। अतीक 44 साल तक इसलिए अपराध करता रहा क्योंकि पुलिस के हाथ नेताओं ने बांध रखे थे। अब योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को खुली छूट दे दी है, इसीलिए यूपी में कानून की ताकत दिख रही है। अपराधियों में खौफ है। वे भाग रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अतीक, उसके भाई अशरफ और बेटे असद की मौत के बाद माफिया के खिलाफ एक्शन में कमी आएगी। क्योंकि मंगलवार को ही योगी ने यूपी के बड़े 61 माफियाओं की लिस्ट तैयार करवाई है। इनमें से जो जेल में हैं उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज होगी जिससे अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाई जा सके। इसके अलावा जो माफिया पुलिस की पकड़ से बाहर हैं, उनको पकड़ने के लिए पुलिस पूरी ताकत लगाएगी। योगी ने क्लीयर कर दिया है कि वो राजनीतिक हमले झेल लेंगे लेकिन अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में कोई कमी नहीं आएगी। योगी का यही रवैया, माफिया के खिलाफ यही सख्ती, उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती है। यही वजह है कि अब यूपी बदल रहा है। यूपी से अपराधी और माफिया भाग रहे हैं और बड़े-बड़े बिजनेसमैन निवेश करने के लिए यूपी में आ रहे हैं। योगी ने मंगलवार को एक टेक्सटाइल पार्क के MoU साइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘यूपी में अब कोई माफिया या अपराधी किसी उद्योगपति को डरा नहीं सकता।’

महाराष्ट्र में जारी है ‘कुर्सी का खेल’

मंगलवार को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने मीडियाकर्मियों से कहा कि वह NCP में बने रहेंगे और अपनी पार्टी द्वारा लिए गए किसी भी फैसले का पालन करेंगे। उन्होंने बीजेपी के साथ जाने की अटकलों को ‘बेकार’ बताया। लेकिन महाराष्ट्र से कुछ अलग ही संकेत आ रहे हैं। अजीत के समर्थक विधायकों का कहना है कि वे NCP सुप्रीमो के भतीजे के साथ हैं और वह जहां भी जाएंगे, वे उनके साथ होंगे। अजीत पवार एक ऐसी इफ्तार पार्टी में शामिल हुए जिसमें शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी पहुंचे हुए थे। इस मौके पर जहां NCP के बाकी नेताओं ने खड़े होकर शरद पवार को नमस्कार किया, वहीं पार्टी सुप्रीमो के अजीत उनकी तरफ पीठ करके खड़े थे। भतीजे अजीत ने चाचा शरद पवार की तरफ देखा तक नहीं। अजित पवार के खेमे में इस समय करीब 40 विधायक हैं। सुप्रिया सुले ने इशारों-इशारों में कहा कि अगले 15 दिनों में 2 सियासी भूकंप आएंगे, एक महाराष्ट्र में और दूसरा दिल्ली में। महाराष्ट्र में जो हो रहा है वह विश्वास में कमी का एक शानदार उदाहरण है। अजीत पवार बार-बार कहते हैं कि वह NCP छोड़कर नहीं जा रहे, लेकिन कोई उनकी बात का यकीन नहीं करता। महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में ED की चार्जशीट में अजीत पवार और उनकी पत्नी का नाम गायब है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके और गृह मंत्री अमित शाह के बीच एक गुप्त बैठक हुई है। वहीं, दूसरी तरफ शरद पवार कहते हैं कि महाराष्ट्र में उनका शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं टूटेगा, लेकिन कोई उनकी बात का विश्वास नहीं करता। लोग याद दिलाते हैं कि अडानी पर, सावरकर पर पवार साहब ने जो लाइन ली वह गठबंधन के जुड़ने की नहीं बल्कि टूटने की शुरुआत है। बीजेपी के नेता भी कह रहे हैं कि हमें अजीत पवार की क्या जरूरत, हमारे पास तो पहले से ही बहुमत है। ऐसे में लोग उन्हें याद दिलाते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अगर शिवसेना के विधायकों को डिस्क्वॉलिफाई कर दिया तो क्या होगा। फैसला आने वाला है, इसीलिए अजीत पवार के साथ हाथ मिलाने की तैयारी हो रही है। यह सारा अविश्वास इसलिए है क्योंकि इस वक्त महाराष्ट्र की सियासत में कौन, कब, किसको धोखा दे दे, कोई नहीं कह सकता। शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बनाई। एकनाथ शिंदे ने हमेशा उद्धव ठाकरे का साथ देने का वादा किया था लेकिन उनके नीचे से कुर्सी खींच ली। अजीत पवार भी अपना खेल दिखा चुके हैं। उन्होंने एक रात के लिए बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इसीलिए लोग कहते हैं महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कुछ भी हो सकता है। सब मानकर बैठे हैं कि आज नहीं तो कल, अजीत पवार NCP के 40 विधायकों को साथ लेकर सरकार में शामिल हो जाएंगे औऱ बाकी सब देखते रह जाएंगे।

बिहार में क्यों सक्रिय है माफिया?

बिहार के पटना जिले में रेत माफिया के गुंडों ने 2 महिला अधिकारियों सहित खनन विभाग के कर्मचारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। खनन विभाग ने पटना के बिहटा थाने के अंतर्गत आने वाले कोलीवर पुल के पास रेत से लदे 29 ट्रकों को जब्त कर लिया था। इस मामले में 45 लोगों को हिरासत में लिया गया था, लेकिन बुधवार को स्थानीय लोगों की भारी भीड़ ने उनकी रिहाई की मांग को लेकर बिहटा थाने का घेराव कर लिया। बिहार के खनन मंत्री रामानंद यादव ने वादा किया है कि बेगुनाहों पर कोई केस दर्ज नहीं होगा, लेकिन हमले में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। बीजेपी ने आरोप लगाया कि यह घटना साबित करती है कि बिहार में ‘जंगल राज’ वापस आ गया है और अब राज्य में अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश पड़ोसी राज्य हैं। एक तरफ जहां यूपी से माफिया के खौफ में जीने की खबरें आती हैं, वहीं बिहार में ठीक इसका उल्टा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सोचना चाहिए कि क्या वजह है कि अपराधी उनकी पुलिस से नहीं डरते और क्या वजह है कि राज्य मशीनरी माफिया के खिलाफ ऐक्शन नहीं ले पाती।

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HOW YOGI’S STRONG WILL HAS ENDED THE ERA OF MAFIA IN UP

AKb (1)The three killers of mafia don Atiq Ahmed and his brother Ashraf were produced before a court in Prayagraj today, which sent them to four days’ police custody. Meanwhile, a massive hunt is on to trace Atiq’s wife Shaista Parveen and close associate Guddu Muslim, who have gone underground for nearly two months now, since the murder of Umesh Pal, key witness in 2005 Raju Pal murder case. The judicial commission and Special Investigation Team have started their probe into the live TV murders of Atiq and Ashraf. Former UP Police IG Akhilesh Mehrotra revealed to India TV how as DIG of Prayagraj range, he had to go and meet the then CM Mulayam Singh Yadav and request him to order the arrest of Atiq Ahmed in Raju Pal murder case. According to him, the CM was initially hesitant, but later allowed the arrest. Mehrotra says, not only Samajwadi Party, but several other parties were providing protection to Atiq’s gang, which was openly engaged in extortions, murders and collecting ‘election tax’ from businessmen by sending pink and white slips. A pink slip meant collection of Rs 3-5 lakh, while a white slip meant Rs 5 lakh and above. Atiq Ahmed became a mafia don only because of political protection that he enjoyed for four decades. Political leaders had tied the hands of police in taking action against the mafia don. Now that UP CM Yogi Adityanath has given an open hand to state police, the majesty of law prevails in the land and criminals are running for cover. Not that after the killings of Atiq, his brother Ashraf and son Asad, the action against criminals will now abate. On Tuesday, Yogi’s government released a list of 61 top gangsters. Out of them, legal proceedings against those in prison will be speeded up so that they can be convicted, while all-out search operations will begin to nab those who are underground. Yogi has made it clear that he is ready to face political attacks, but there will be no slowing down in anti-mafia operations. It is this strong political will that sets Yogi apart from other chief ministers of UP. This is the reason why UP is changing and criminals are running for cover. Big businessmen and industrialists are now showing interest in investing in UP. On Tuesday, Yogi while addressing a textile park MOU signing event said, “no mafia or criminal can now threaten an industrialist in UP anymore”.

A ‘GAME OF THRONES’ IN MAHARASHTRA

On Tuesday, NCP supremo Sharad Pawar’s nephew Ajit Pawar told mediapersons that he will remain in NCP and will follow any decision taken by his party. He rubbished speculations about his joining BJP camp as ‘baseless’. But there are conflicting signals coming from Maharashtra. Ajit’s supporter MLAs say that they are with him, and wherever he goes, they will follow him. Ajit Pawar joined an iftaar party which was attended by Sharad Pawar and his daughter Supriya Sule. While other NCP leaders greeted Sharad Pawar, his nephew stood with his back towards the party supremo. There was no eye contact between the uncle and his nephew. There are nearly 40 MLAs presently in Ajit Pawar’s camp. Supriya Sule made a cryptic remark saying, two political earthquakes will take place in the next 15 days, one in Maharashtra and the other in Delhi. Whatever is happening right now in Maharashtra is a classic example of trust deficit. Ajit Pawar says again and again, he is not going to leave NCP, but nobody is trusting his words. Ajit Pawar and his wife’s name are missing in ED’s chargesheet in Maharashtra State Cooperative Bank scam. There are speculations about a secret meeting between him and Home Minister Amit Shah. On the other extreme, Sharad Pawar claims that the Maha Vikas Aghadi (alliance) between NCP, Congress and Shiv Sena (UT) is not going to break, but nobody trusts Pawar’s words. Observers point out that Sharad Pawar’s stand on Veer Savarkar and JPC probe demand against Adani, are clear indications that the alliance is going to break. BJP leaders say they don’t need Ajit Pawar’s support, as the BJP-Shiv Sena alliance already commands majority. There are some who ask what will happen if the Supreme Court disqualifies Shiv Sena MLAs. Such speculations have given rise to talk about Ajit Pawar breaking away from NCP with his MLAs. The entire picture is confusing. Nobody can say, who will betray whom, when and how in Maharashtra politics. In flashback, Shiv Sena had fought Maharashtra assembly polls in alliance with BJP, but Congress and NCP joined hands and formed government. Eknath Shinde had promised to support Uddhav Thackeray, but pulled away his throne in a dramatic manner, Ajit Pawar had once carried out a midnight betrayal of his own party, and formed a two-day-old government with BJP. The common man in the street says, anything can happen in the Game of Thrones in Maharashtra. That is why, most of the people have taken it as a foregone conclusion that Ajit Pawar will make the crossover with his 40-odd NCP MLAs, leaving others to watch in wonder.

WHY MAFIA IS ACTIVE IN BIHAR?

Criminals belonging to an illegal sand mining mafia in Bihar thrashed mining department staff, including two female officials, when they seized 29 overloaded sand trucks near Koliwar bridge under Bihta police station of Patna district. 45 people were detained, but on Wednesday, a large crowd of locals gheraoed the Bihta police station demanding their release. Bihar mining minister Ramanand Yadav promised that innocents will not face criminals cases, but those involved in the attack will not be spared. BJP alleged that this incident proves ‘jungle raj’ is back in Bihar and even officials are not safe. Bihar and Uttar Pradesh are two neighbouring states. In UP, while mafia gangsters live in fear, the opposite is the case in Bihar. Chief Minister Nitish Kumar should ponder why criminals have no fear of police and why the state machinery is unable to take action against mafia gangs.

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