बाकी राज्यों के मुकाबले कश्मीर ने कोरोना टीकाकरण मुहिम में कैसे मारी बाजी
आज मैं आपके साथ कोविड वैक्सीनेशन के बारे में एक अच्छी खबर शेयर करना चाहता हूं। यह खबर पिछले 3 दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहे जम्मू और कश्मीर से आई है। खबर के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के जम्मू, शोपियां, सांबा, गांदरबल एवं कुछ अन्य जिलों में 45 साल से ज्यादा उम्र की 100 प्रतिशत जनसंख्या को वैक्सीन की डोज लग चुकी है। यहां के अधिकांश अन्य जिलों में भी 90 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में 28.41 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगाई जा चुकी है। पहली और दूसरी डोज को जोड़ दें तो यह संख्या करीब 34 लाख हो जाती है। इनमें फ्रंटलाइन वर्कर्स, हेल्थ केयर वर्कर्स, 60 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिक और 45 साल से अधिक की आयु के लोग शामिल हैं। इस समय जम्मू और कश्मीर राष्ट्रव्यापी टीकाकरण की लिस्ट में केरल के बाद दूसरे नंबर पर है। जम्मू-कश्मीर की 21.6 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की पहली खुराक लग चुकी है जबकि केरल में यह आंकड़ा 22.4 प्रतिशत लोगों का है। वहीं, पूरे भारत के वर्तमान राष्ट्रीय टीकाकरण औसत की बात करें तो यह सिर्फ 12.6 प्रतिशत है।
जम्मू और कश्मीर में,18-44 आयु वर्ग के 2.57 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है और 48 लाख लोगों को टीका लगाया जाना है। 45 से ज्यादा के आयु वर्ग में सिर्फ 29 लाख लोगों का वैक्सीनेशन बाकी है। जम्मू-कश्मीर के सभी 20 जिलों में वैक्सीनेशन सेंटर्स की तादाद में इजाफा किया गया है। बुजुर्ग, कमजोर और शारीरिक रूप से अक्षम नागरिकों को घर-घर जाकर टीका लगाने का काम शुरू हो गया है।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने श्रीनगर के बटमालू इलाके में एक वैक्सीनेशन सेंटर के बाहर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें दिखाई थीं। हमने राजौरी, शोपियां और आतंकवाद से प्रभावित अनंतनाग के भी विजुअल्स दिखाए थे। इन विजुअल्स से पता चलता है कि हेल्थ केयर वर्कर्स कैसे पैदल ही नदियों और पहाड़ी इलाकों को पार करके गांवों में लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए पहुंच रहे हैं। तमाम बाधाओं के बावजूद अपना काम कर रहे इन बहादुर स्वास्थ्यकर्मियों को सलाम है।
डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सों की टीम को अनंतनाग के दुर्गम इलाकों में रहने वाले खानाबदोश लोगों तक पहुंचने के लिए रोजाना कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। खानाबदोश लोग अपने घरों को एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट करते रहते हैं। जो लोग वैक्सीनेशन को लेकर अब भी संकोच करते हैं और हेल्थ वर्कर्स को अपने गांव में आने नहीं देते, उन्हें जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले से आई तस्वीरें देखनी चाहिए। यहां डॉक्टर और नर्स घुटनों तक पानी भरे नाले को पार कर रहे हैं ताकि लोगों तक पहुंचकर उन्हें वैक्सीन लगाई जा सके। ये दृश्य राजौरी जिले के समोटे के पास स्थित कांडी गांव के थे।
हमारे संवाददाता मंजूर मीर ने एक रिपोर्ट में बताया कि शोपियां जिले के हीरापोरा गांव में 98 परशेंट लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। यह जम्मू और कश्मीर का पहला गांव है जो ‘कोरोना मुक्त’ घोषित किया गया है। इस गांव में 82 लोग कोरोना कोरोना की चपेट में आ गए थे जिससे यहां के लोगों में इस महामारी का जबरदस्त खौफ था। लेकिन लोगों के जज्बे और सरकारी कर्मचारियों के कमिटमेंट के कारण सारे लोग ठीक हो गए और गांव कोरोना मुक्त हो गया। शोपियां जिले के कई और गांवों में इसी तरह के वैक्सीनेशन कैंप लग रहे हैं। इसका श्रेय कश्मीर घाटी के हेल्थ केयर वर्कर्स की मेहनत और डेडिकेशन को जाता है। अकेले श्रीनगर जिले में 45 से अधिक की आयु वर्ग के 47 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की पहली डोज लगवा ली है।
मैं इस बड़ी कामयाबी के लिए जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा की तारीफ करना चाहूंगा। कश्मीर की वैक्सीनेशन ड्राइव मुल्क के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक मिसाल है। कश्मीर घाटी में भी लोगों के मन में डर पैदा करने के लिए WhatsApp पर फर्जी खबरें और आधारहीन अफवाहें फैलाई गईं, लेकिन घाटी के लोगों ने यकीन नहीं किया और वैक्सीन लगवाने के लिए खुलकर आगे आए। कश्मीर घाटी में 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है, लेकिन किसी को भी वैक्सीन से डर नहीं लगा।
कश्मीर की सफलता की तुलना लखनऊ, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात जैसी जगहों पर हो रहे कोरोना टीकाकरण के विरोध से करें। लखनऊ में लोगों द्वारा वैक्सीनेशन वर्कर्स को धमकी देने के बाद मस्जिदों से ये अपील की गई कि लोग सहयोग करें और वैक्सीन लगवाने के लिए आगे आएं। इटावा, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और हापुड़ से भी मस्जिदों से दिन में कई बार वैक्सीन लगवाने की अपील की जा रही है। यहां तक कि दिल्ली में भी मस्जिदों से लोगों से वैक्सीन लगवाने की अपील की गई। हमारे रिपोर्टर सैयद नजीर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके की मदीना मस्जिद गए थे। मस्जिद के इमाम पहले ही वैक्सीन लगवा चुके हैं और अब दूसरों से भी वैक्सीनेशन करवाने के लिए कह रहे हैं।
इस बात में कोई शक नहीं है कि वैक्सीनेशन को लेकर बड़ी संख्या में मुस्लिमों के मन में आशंका और डर है। और यह शक इतना गहरा है कि इसे आसानी से खत्म करना मुश्किल है। इसकी वजह सिर्फ सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहें नहीं हैं। मुस्लिम नेताओं के सियासी और गैरजिम्मेदाराना बयान भी आग में घी का काम कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद सफीकुर्रहमान बर्क ने कहा, ‘कोरोना कोई बीमारी है ही नहीं। कोरोना अगर बीमारी होती तो इसका इलाज होता। यह बीमारी सरकार की गलतियों की वजह से आजादे इलाही है जो अल्लाह के सामने रोकर, गिड़गिड़ाकर माफी मांगने से ही खत्म होगी।’ समाजवादी पार्टी के एक और सांसद एसटी हसन ने कहा, ‘पिछले 7 सालों में बीजेपी के शासन के दौरान गलत कामों के चलते अल्लाह के कुफ्र से कोरोना और चक्रवात आए हैं। इस दौरान सरकार ने शरीयत कानूनों के साथ छेड़छाड़ की और मुसलमानों के खिलाफ सीएए लेकर आई।’ जब नेता इस तरह की बयानबाजी करेंगे, तो मुसलमानों में कोरोना को लेकर भ्रम फैलेगा, वैक्सीन को लेकर कन्फ्यूजन होगा। मुझे अब भी उन मौलवियों पर भरोसा है जिन्होंने खुद आगे आकर वैक्सीन लगवाई है और मुसलमानों से इस अभियान में शामिल होने की अपील कर रहे हैं।
गुजरात के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हिंदुओं में भी वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट है। राजकोट के हिंदू बहुल 98 गांवों में, जो कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का विधानसभा क्षेत्र है, अभी तक 10 प्रतिशत से भी कम वैक्सीनेशन हुआ है। ऐसे कई गांव हैं जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ता सात-सात बार घर-घर घूम आए, लेकिन पूरे गांव में 10 लोगों को भी वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं कर पाए। ज्यादातर गांववालों को ऐसी अफवाहों पर यकीन हो गया था कि जो भी वैक्सीन लगवाएगा बाद में उसकी मौत हो जाएगी। राजकोट जिले के 688 में से करीब 200 गांवों में 10 प्रतिशत से भी कम टीकाकरण हो पाया है।
मुंबई में स्थित एशिया के सबसे बड़े स्लम एरिया धारावी में, जहां कोरोना की पहली लहर ने मौत का तांडव मचाया था, 8 लाख में से सिर्फ 15 से 16 हजार लोगों ने वैक्सीन लगवाई है। संकरी गलियों, एक-दूसरे से सटे छोटे-छोटे घरों और घनी आबादी वाले इस इलाके में टीकाकरण का काम सबसे तेज होना चाहिए था, क्योंकि यहां कोरोना कुछ ही घंटों में फैल सकता है। सरकार ने धारावी में 3 बड़े-बड़े वैक्सीनेशन सेंटर बनाए हैं, टेंट लगे हैं, कुर्सियां पड़ी हैं, पानी का इंतजाम है, हेल्थ वर्कर्स तैनात हैं, वैक्सीन भी है लेकिन वैक्सीन लगवाने के लिए मुश्किल से ही कोई आगे आ रहा है।
मैं जब उत्तर प्रदेश के गांवों में वैक्सीनेशन टीम के पहुंचने पर लोगों के छिपने की खबरें देखता हूं तो दुख होता है। बिहार में कोरोना संकट के दौरान गरीब लोग भूखे न रहें, इसलिए सरकार ने जगह-जगह कम्युनिटी किचन बनाए हैं। लेकिन लोग वहां खाना खाने इसलिए नहीं आते क्योंकि किसी ने अफवाह फैला दी कि जो कम्युनिटी किचन में जाएगा उसे पहले वैक्सीन लगाई जाएगी, फिर खाना दिया जाएगा। मध्य प्रदेश के उज्जैन से खबर आई की एक वैक्सीनेशन टीम पर गांववालों ने हमला कर दिया। जो लोग सोशल मीडिया पर सरकार से वैक्सीनेशन की स्पीड को लेकर सवाल करते हैं, उन्हें इन जगहों पर जाकर देखना चाहिए कि गांववाले किस तरह टीकाकरण का विरोध कर रहे हैं।
वैक्सीनेशन के लिए लोगों को तैयार करना काफी मुश्किल काम है। सरकार का दावा है कि जुलाई तक इतनी वैक्सीन होगी कि हर दिन एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकेगी। मुझे सरकार के दावे पर शक नहीं है, लेकिन क्या हर रोज एक करोड़ लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार होंगे? इसलिए जो लोग वैक्सीन की उपलब्धता पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें टीकाकरण को लेकर जारी आधारहीन अफवाहों पर लगाम लगाने में ज्यादा समय लगाना चाहिए। उन्हें लोगों से अपील करनी चाहिए कि वे वैक्सीन जरूर लगवाएं। इससे कोरोना महामारी के खिलाफ जंग जीतने में काफी मदद मिलेगी।
How Kashmir stole a march over other states in Covid vaccination drive
Today I want to share with you a good piece of news about Covid vaccination. This news has come from the most unlikely places of India: Jammu and Kashmir, hit by terrorism for the last three decades. The news is: J&K has already completed 100 per cent vaccination of 45-plus age groups in Jammu, Shopian, Samba, Ganderbal and some other districts. Ninety per cent vaccination target has been reached in most of the other districts.
According to official figures, over 28.41 lakh people in J&K have been given the first vaccine dose. If you add the first and second doses, it comes to nearly 34 lakhs. They include frontline workers, health care workers, senior citizens above 60 years, and citizens above the age of 45 years. Currently, Jammu and Kashmir ranks second after Kerala in the nationwide vaccination list. It has administered first dose to 21.6 per cent of its population, while Kerala has inoculated 22.4 per cent people. India’s national vaccination average presently is only 12.6 per cent.
In Jammu and Kashmir, 2.57 lakh people in the 18-44 age group have already taken the first dose, while 48 lakh people remain to be inoculated. Only 29 lakh people in 45-plus group remain to be inoculated. Vaccination sites have been increased in all the 20 districts. Door-to-door vaccination has already started to include old, infirm and physically challenged citizens.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed long queues of people waiting outside a vaccination centre in Srinagar’s Batmaloo locality. We also telecasted visuals from Rajouri, Shopian and terrorist-infested Anantnag, to show how health care workers are trekking hilly areas on foot and crossing rivers to reach villages for inoculating people. Hats off to these brave health workers who are working against all odds.
Teams of doctors, paramedical staff and nurses have been walking daily for several kilometres in Anantnag’s difficult terrain to reach nomadic groups, who shift their homes from one place to another. Those who still have vaccine hesitancy in rest of India must watch the visuals from Rajouri, where doctors and nurses are wading through knee deep water of rivulets to reach people in order to give them the jabs. The visuals shown were from Kandi village near Samote of Rajouri district.
Our reporter Manzoor Mir sent a report from Shopian to say that 98 per cent eligible people have been vaccinated in a single village called Hirapora till now. This is the first village to be declared ‘Corona free’ in Jammu and Kashmir. In this village, 82 people were infected with Covid-19 virus and there was fear among the villagers. Now the village is Covid-free. Similar vaccination camps are being set up in several other villages of Shopian district. The credit goes to the labour and dedication of health care workers of Kashmir valley. In Srinagar district alone, 47 per cent among the 45-plus age group have taken their first dose.
I want to congratulate the Lt Governor of Jammu and Kashmir Manoj Sinha for this big success. This should act as an example for other states and union territories. Even in Kashmir valley, WhatsApp messages based on fake news and baseless rumours were circulated to create a fear psychosis in the minds of the people, but the citizens of the Valley rose as one and came forward to get themselves vaccinated. Kashmir valley has more than 90 per cent Muslims, and yet people did not fear vaccination.
Contrast the Kashmir success this with the opposition to Covid vaccination in places like Lucknow, Delhi, Maharashtra and Gujarat. In Lucknow, after people threatened vaccination workers, announcements were made from mosques appealing to people to cooperate and come forward to take the jabs. Similar appeals from mosques have been made from Etawah, Varanasi, Muzaffarnagar, Saharanpur and Hapur. Even in Delhi, announcements were made from mosques asking devouts to take vaccine shots. Our reporter Syed Nazeer went to Madina mosque in north-east Delhi’s Jaffrabad area. The imam of the mosque has already taken the dose and he has now appealed to others to come forward for vaccination.
There is no denying the fact that there is fear about Covid vaccine in the minds of a large number of Muslims, and the suspicions are so deep that it will take much effort to remove them. Rumours doing the rounds of social media are not only responsible. Frivolous remarks by politicians also add grist to the mills. Samajwadi Party MP Shafiqur Rehman Barq has said, ‘Covid is not a disease, but a punishment given by Allah for our sins. It is the anger of Allah, which can be calmed only when people weep before Allah’. Another Samajwadi Party MP S. T. Hasan has said ‘Covid and cyclones are due to the wrath of Allah caused by wrongdoings during the last seven years of BJP rule, during which government tinkered with Shariat laws and brought CAA against Muslims’. If politicians make such frivolous comments, there is bound to be suspicion and fear in the minds of sections of gullible Muslims. I still have faith in Islamic clerics who have themselves come forward, taken vaccine doses and are appealing to Muslims to join the drive.
Vaccine hesitancy is also prevalent among Hindus in rural areas of Gujarat. In 98 Hindu-dominated villages of Rajkot, which is Gujarat CM Vijay Rupani’s constituency, there is less than 10 per cent vaccination till now. There were many villages, where health care workers made at least seven rounds, but could not persuade more than 10 villages to come forward and get inoculated. Most of the villagers believe in rumours that anybody who takes the vaccine may die later. Nearly 200 out of 688 villages in Rajkot district have reported less than 10 per cent vaccination.
In Mumbai’s Dharavi, Asia’s largest slum locality, which faced the full brunt of the first wave of pandemic, only 15 to 16 thousand residents have so far taken vaccine in an area populated by more than eight lakhs. In this densely populated locality with narrow lanes and houses adjoining one another, this spot should have been on top of the vaccination list, because virus infection can spread within hours. Three big vaccination camps were set up with tables, chairs and drinking water inside tents, and teams of doctors and nurses ready to give jabs, but there were hardly any visitors ready to take the jab.
I feel said when I see reports of people hiding when vaccination teams reach villages of Uttar Pradesh. In Bihar, the local administration arranged community kitchens for poor people who lost their earnings due to lockdown, but they refused to go to these kitchens because of baseless rumours that those who will go there will be forcibly vaccinated. In Ujjain, MP, a vaccination team was attacked by villagers. People who question the government on social media about the speed of vaccination should go to these places and find out how villagers are resisting vaccination.
Persuading people to get themselves vaccinated has become a tough task. The Centre has promised to touch one crore doses a day target by July. I do not doubt the government’s intentions, but are villagers and sceptics ready to get themselves inoculated? Those questioning the availability of vaccine stocks should devote more time to counter baseless rumours about vaccination. They should go to the people and appeal to them to get themselves vaccinated. This will help all in winning the battle against Covid pandemic.
क्यों बेहद जरूरी है वैक्सीन की बर्बादी को रोकना
एक ऐसे समय में जब पूरे देश में चल रहे टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए कोरोना वैक्सीन की लाखों डोज की जरूरत है, मैं राजस्थान में बड़े पैमाने पर हो रही टीके की बर्बादी को देखकर हैरान हूं। गुरुवार की रात को अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे राजस्थान में टीकाकरण केंद्रों में वैक्सीन की डोज से थोड़ी-बहुत या आधी भरी हुई वायल्स को कूड़ेदान में फेंक दिया गया था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने अब राजस्थान के हेल्थ मिनिस्टर को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वैक्सीन की बर्बादी पर तुरंत अंकुश लगाया जाए। उन्होंने उन मीडिया रिपोर्ट्स की ओर इशारा किया जिनमें कहा गया था कि राजस्थान के 8 जिलों में 35 कोविड टीकाकरण केंद्रों में कुल मिलाकर वैक्सीन की 500 से भी ज्यादा वायल्स कूड़ेदान से बरामद की गई थीं। भास्कर अखबार ने बताया कि कई शीशियों में 20 से 75 प्रतिशत तक वैक्सीन भरी हुई थी, जिससे करीब 2,500 लोगों का टीकाकरण हो सकता था। अखबार के मुताबिक, चुरू जिले में 39 प्रतिशत, हनुमानगढ़ जिले में 29 प्रतिशत और भरतपुर एवं कोटा जिलों में 17-17 प्रतिशत वैक्सीन की बर्बादी हुई। बूंदी, दौसा, अजमेर और जयपुर जिलों में भी वैक्सीन की ऐसी ही बर्बादी देखी गई। पहले तो राजस्थान सरकार ने वैक्सीन की बर्बादी की बात से इनकार किया, लेकिन वीडियो और तस्वीरें कुछ और ही हकीकत बता रही थीं।
राजस्थान में आधी इस्तेमाल हुई वैक्सीन की वायल्स (शीशियां) को या तो कूड़ेदान में फेंक दिया गया, या जमीन के 12 फीट नीचे दफना दिया गया या जला दिया गया ताकि बर्बादी का कोई सबूत ही न बचे। हमारे संवाददाता मनीष भट्टाचार्य जयपुर से करीब 280 किलोमीटर दूर पाली जिले में गए थे। उन्हें कोट खिराना के सामुदायिक केंद्र के कूड़ेदान में फेंकी गई वैक्सीन की ऐसी वायल्स मिलीं जिनमें अभी भी कई डोज थी। इनमें से कुछ वायल्स थोड़ी-बहुत तो कुछ आधी तक भरी हुई थीं जिनसे कई लोगों को टीका लगाया जा सकता था। एक वायल के अंदर तो टीके की लगभग 80 प्रतिशत खुराक बची थी, जिससे 10 लोगों का टीकाकरण हो सकता था। इससे मुश्किल से 4 या 5 लोगों को टीका लगाया गया और इसके बाद वायल को फेंक दिया गया।
मैं यह देखकर स्तब्ध रह गया कि आधी भरी हुई वैक्सीन वायल्स को फेंक दिया गया। एक ऐसे वक्त में जब लाखों लोगों को CoWin पोर्टल पर अपना नाम रजिस्टर करने में मुश्किल आ रही है, टीका लगवाने की अपनी बारी के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा है, पाली में वैक्सीन कूड़ेदान में फेंकी जा रही है। रायपुर वैक्सीनेशन सेंटर में डॉक्टर ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि वायल खुलने क बाद 4 घंटे के अंदर ही वैक्सीन का इस्तेमाल करना होता है, और यदि 4 घंटों में 10 लोग वैक्सीन लगवाने नहीं आते तो बची हुई वैक्सीन को फेंकना पड़ता है। इस वैक्सीनेशन सेंटर पर वैक्सीन से आधी भरी हुई कई वायल्स को बाद में डिस्पोज करने के लिए ‘कोल्ड पॉइंट’ बॉक्स में रखा जा रहा था।
स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल की बात करें तो वैक्सीनेशन का एक सेशन खत्म होने के बाद वैक्सीन की सारी वायल्स को वापस कोल्ड चेन पॉइंट पर लाना होता है। वायल में वैक्सीन हो या न हो, थोड़ी बची हो या ज्यादा हो, उसे जमा करना जरूरी है। इसके बाद इन वायल्स को ऑटोक्लेविंग और माइक्रोवेविंग के जरिए डिस्पोज किया जाता है। ऑटोक्लेविंग में वैक्सीन की इन शीशियों को 10 मिनट के लिए गर्म पानी में उबाला जाता है, और फिर आधे घंटे के लिए 1 पर्सेंट सोडियम हाइपोक्लोराइट के घोल में रखने के बाद इनका केमिकल ट्रीटमेंट किया जाता है। यदि किसी जिले में ऐसी कोई सुविधा नहीं है, तो एक सेफ्टी पिट यानी कि गहरा गड्ढा खोदकर इन शीशियों को डिस्पोज कर दिया जाता है। चूंकि पाली में कोई कॉमन ट्रीटमेंट फैसिलिटी नहीं है, इसलिए वैक्सीन की बची हुई वायल्स को ट्रीटमेंट और डिस्पोजल के लिए जोधपुर भेजा जाता है।
हमारे रिपोर्टर्स ने पाया कि कई डॉक्टरों और नर्सों को वैक्सीन की ये बर्बादी कोई बड़ी बात नहीं लग रही थी। इन स्वास्थ्यकर्मियों के मुताबिक, ज्यादातर वैक्सीनेशन सेंटर्स में वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों की पर्याप्त संख्या नहीं हो पाती, और वायल्स में वैक्सीन की थोड़ी-बहुत डोज बचे होने के बावजूद उन्हें फेंकना पड़ता है। हालांकि जैसलमेर में मामला इसके ठीक विपरीत निकला, जहां हेल्थ टीम की मुस्तैदी और संवेदनशीलता के चलते वैक्सीन की एक भी डोज बर्बाद नहीं हुई। जैसलमेर के स्वास्थ्यकर्मियों ने जिम्मेदारी से काम लिया, वैक्सीन की हर बूंद की कीमत को समझा। कई वैक्सीनेशन सेंटर्स पर तो यहां के स्वास्थ्यकर्मियों ने वायल्स में दी गई एक्स्ट्रा डोज का भी इस्तेमाल कर लिया।
मैं जैसलमेर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और हेल्थ वर्कर्स की तारीफ करना चाहूंगा जिन्होंने वैक्सीन की एक-एक डोज का ख्याल रखा। वहीं, पाली, चुरु, हनुमानगढ़ और कोटा में वैक्सीन का मैनेजमेंट ठीक तरह से नहीं हुआ और सैकड़ों डोज बर्बाद हो गईं। पहले तो सूबे के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा इस बर्बादी पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे, लेकिन केंद्र सरकार के दखल के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वादा किया है कि वह वैक्सीन का ऑडिट करवाएंगे।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हमारी संवाददाता रुचि कुमार जियामऊ और मल्हौर के वैक्सीनेशन सेंटर्स पर गईं। इन टीकाकरण केंद्रों की नर्सों और ANMs ने बताया कि वे वैक्सीन की वायल तभी खोलती हैं जब वैक्सीन लगवाने के लिए कम से कम 5 लोग मौजूद होते हैं। वहीं, शाम 4 बजे के बाद वायल खोलते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि वैक्सीनेशन सेंटर पर कम से कम 7-8 लोग जरूर हों।
बिहार में भी वैक्सीन की बर्बादी को रोकने पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। रक्सौल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के वैक्सीनेशन इंचार्ज ने बताया कि वे वैक्सीन की बर्बादी को रोकने की पूरी कोशिश करते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार काफी इंतजार करने के बाद भी 10 लोग नहीं हो पाते, और वैक्सीनेशन के लिए बैठे लोग और इंतजार करने से मना कर देते हैं, हंगामा करने लगते हैं, तो फिर मजबूरी में वैक्सीन का वायल खोलना पड़ता है। इस स्थिति में वैक्सीन के एक-दो डोज बर्बाद हो जाते हैं। पंजाब के मोहाली फेज 3 वैक्सीनेशन सेंटर पर हमारे रिपोर्टर पुनीत परिंजा को बताया गया कि यहां स्वास्थ्यकर्मी वायल तभी खोलते हैं जब कम से कम 10 लोग वहां मौजूद हों। वायल खोलने का डेट और टाइम बॉक्स पर लिखा होता है, ताकि अगली शिफ्ट के लोगों को आसानी से हैंडओवर किया जा सके।
इन सारी ग्राउंट रिपोर्ट्स को देखने के बाद एक बात तो साफ है कि वैक्सीन की बर्बादी को रोकने के लिए थोड़ी समझदारी की जरूरत है। राजस्थान में हुई वैक्सीन की बर्बादी अस्वीकार्य है। वैक्सीन लगवाने के लिए इंतजार कर रही एक बड़ी आबादी को देखते हुए इसे किसी अपराध से कम नहीं माना जाना चाहिए। सबसे बढ़िया वैक्सीन मैनेजमेंट केरल में देखने को मिला था, जहां स्वास्थ्यकर्मियों ने वायल्स में मौजूद वैक्सीन का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करके उम्मीद से कहीं ज्यादा लोगों को टीका लगा दिया।
आप पूछ सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? असल में एक वायल में 10 लोगों की डोज होती है, लेकिन वैक्सीन निर्माता इसमें थोड़ी ज्यादा मात्रा में वैक्सीन डाल देते हैं। औसतन, एक वायल में 11 डोज होती हैं, क्योंकि बर्बादी का थोड़ा-बहुत मार्जिन रखा जाता है। केरल में वैक्सीन की एक-एक बूंद का इस्तेमाल किया जाता था और हर वायल से 10 की बजाय 11 लोगों को टीका लगाया जाता था। 4 घंटे की समय सीमा के अंदर यदि सिर्फ 4 या 5 लोगों को डोज लगाया जाता है तो बाकी की वैक्सीन बर्बाद हो जाती है।
इसलिए मैं डॉक्टरों और नर्सों सहित सभी स्वास्थ्यकर्मियों से अपील करता हूं कि वे यह सुनिश्चित करें कि वैक्सीन की एक भी डोज बर्बाद न हो। उनके हाथ में उन लाखों भारतीयों की जिंदगियां हैं जिन्हें इस जानलेवा वायरस से सुरक्षा की जरूरत है। ये टीके उनका ‘सुरक्षा कवच’ हैं। यदि वे वैक्सीन की अनावश्यक बर्बादी को रोकते हैं तो देश हमेशा इन स्वास्थ्यकर्मियों का आभारी रहेगा।
Why prevention of vaccine wastage is a must
At a time when millions of Covid vaccine doses are needed to ramp up nationwide vaccination drive, I am shocked to find that Covid vaccine doses are being wasted in Rajasthan on a large scale. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed how half-filled or partially-filled vaccine vials containing doses have been found thrown into waste bins of vaccination centres in Rajasthan.
Already, the Union Health Minister Dr Harsh Vardhan has told his Rajasthan counterpart to ensure that vaccine wastage is curbed immediately. He pointed to media reports of more than 500 vaccine vials found dumped in 35 Covid vaccination centres in eight districts of Rajasthan. The newspaper Bhaskar reported that many of the vials had 20 to 75 per cent doses filled inside, which could have been used for administering to as many as 2,500 people. The newspaper reported that there was 39 per cent wastage in Churu district, 29 per cent wastage in Hanumangarh, and 17 per cent each in Bharatpur and Kota districts. There was vaccine wastage in Boondi, Dausa, Ajmer and Jaipur districts too. At first, Rajasthan government was quick to deny wastage, but videos and pictures pointed to the contrary.
In Rajasthan, half-used vaccine vials were either thrown into waste bins, or buried 12 feet inside the earth or simply burnt, to remove all evidences of wastage. Our reporter Manish Bhattacharya went to Pali, 280 km from Jaipur. He found half-filled vaccine vials thrown into waste bins in Kot Khirana community centre. These vials were either half-filled or partially filled with vaccine doses which could have been given to beneficiaries. Inside one vial, nearly 80 percent vaccine doses were left, enough to inoculate 10 persons. Hardly 4 or 5 persons took the doses, and the remaining vial was thrown away.
I was shocked to see vaccine vials, half filled, being thrown away. At a time when millions of people find it difficult to register their names on CoWin portal, wait for days to get appointment slots, vaccines in Pali were being thrown into waste bins. At Raipur vaccination centre, the doctor told our reporter that any vaccine vial can be kept opened for four hours to administer doses to a maximum of 10 persons. At this centre, many vials, half -filled were being thrown into a ‘cold point’ box for eventual disposal.
As per standard protocol, after a session of vaccination is over, all the vials have to brought back to cold chain point. Whether the vial is empty, or half-full or partially full, it has to be returned. The used vials are then disposed of through autoclaving and microwaving. In autoclaving, the used vials are kept in hot water for 10 minutes, then kept in 1 per cent sodium hypochlorite solution for half an hour, and then all the vials are sent to a common treatment facility. If there is no such facility in a district, these vials are disposed of by throwing them securely inside a deep safety pit. Since there is no common treatment facility in Pali, used or half-used vials are sent to Jodhpur for treatment and disposal.
Our reporter found, many of the doctors and nurses looked not worried about vaccine wastage. In most of the centres, according to these health workers, they do not get sufficient number of people ready to take the dose, and because of this, the vials, after a gap of four hours, have to be discarded, even if they are partially filled. In total contrast was the situation in Jaisalmer, where the health team ensured that not a single dose was wasted. The doctors and nurses knew the worth of each drop of the dose. At some centres, they even used an extra dose found in the vials.
I would like to praise the district collector and the nurses, who took extra care to use every single dose. Vaccine management was the poorest in Pali, Churu, Hanumangarh and Kota, where several hundreds doses were wasted. At first the state health minister Raghu Sharma tried to do a cover-up, but after intervention from the Centre, Rajasthan chief minister Ashok Gehlot has promised to do a vaccine audit.
In UP’s capital Lucknow, our reporter Ruchi Kumar visited vaccination centres at Jiamau and Malhaur. Nurses and ANMs at these centres told her they open the vial only when at least five beneficiaries reach the centre. At 4 pm, when the vial is opened, they see to it that there must be 7 to 8 beneficiaries waiting. In Bihar, too, much care is taken to prevent vaccine wastage. At the Raxaul primary health centre, the vaccination in-charge said that they try their best to prevent wastage. Even after waiting for long, less than 10 beneficiaries appear, and some of the doses go waste. There were instances when people refused to wait for others to appear. They insisted that they should be given the jab immediately. At Mohali Phase 3 vaccination centre in Punjab, our reporter Puneet Parinja was told that health workers open the vial only when 10 beneficaries reach the centre. Date and time of opening the vial is written on the box, for easy handover to the next shift.
All these ground reports make anything clear: a little bit of intelligence is needed to prevent vaccine wastage. The wastage of vaccine that took place in Rajasthan is unacceptable. It should be considered no less than a crime, given the vast population that is waiting to get vaccinated. The best vaccine management was noticed in Kerala, where health workers administered doses to people more than the number they were supposed to, by carefully using the vaccine stored in the vials.
How did this happen? Actually, the manufacturers put more quantity inside the vials, apart from the required doses for 10 persons in one go. On average, one vial contains 11 doses, keeping a small margin for wastage. In Kerala, each drop of vaccine was used and every vial was used to give the jabs to 11 persons instead of ten. Within a time frame of four hours, if only 4 or 5 people appear for doses, the remaining vaccine gets wasted.
I will, therefore, appeal to all health workers including doctors and nurses, to ensure that not a single dose is wasted. In their hands, are the lives of millions of Indians, who need protection from the deadly virus. These vaccines are their ‘protection shields’ (suraksha kavach). The nation will forever remain grateful to these health workers if they prevent unnecessary waste of vaccines.
कोरोना महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की मदद कैसे करें
आज मैं भारत के उन हजारों बच्चों के बारे में बात करना चाहता हूं जो कोरोना महामारी के चलते अनाथ हो गए। ये एक साल से कम की उम्र से लेकर 18 साल तक के हैं। ये बच्चे कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखते हैं क्योंकि उनकी बुनियादी जरूरतों की देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर ऐसे 2,110 बच्चों के बारे में बताया है जिन्होंने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है या जिनके सिर पर अब कोई साया नहीं है। बिहार में 1,327 और केरल ने 952 बच्चे कोरोना महामारी के चलते अनाथ हुए हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महामारी के चलते 1,742 बच्चे अनाथ हो गए हैं, और इनमें से कम से कम 140 बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, जबकि 7,464 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। इन सभी बच्चों को भोजन, आश्रय, वस्त्र और शिक्षा की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से मार्च 2020 से इस साल 29 मई तक की अवधि के दौरान अनाथ हुए बच्चों के बारे में डेटा अपलोड करने को कहा है।
फिलहाल, कोई भी इस बारे में यकीन से नहीं कह सकता कि वास्तव में कोरोना के कारण भारत में कितने बच्चे अनाथ हुए हैं। एक तरफ जहां राज्य सरकारें महामारी के चलते अनाथ हुए बच्चों के बारे में आंकड़े जुटाने के लिए हाथ-पांव मार रही हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही पीएम केयर्स फंड के जरिए इन बच्चों की मुफ्त शिक्षा और देखभाल के लिए कदम उठाए हैं। कोविड-19 के कारण माता-पिता दोनों या माता-पिता में से जीवित बचे या कानूनी अभिभावक/दत्तक माता-पिता को खोने वाले सभी बच्चों को ‘पीएम-केयर्स फॉर चिल्ड्रन’ योजना के तहत सहायता दी जाएगी।
पीएम केयर्स 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले प्रत्येक बच्चे के लिए 10 लाख रुपये का कोष बनाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई एक योजना के माध्यम से योगदान देगा। 18 वर्ष की आयु से अगले 5 वर्षों तक उच्च शिक्षा की अवधि के दौरान उनकी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए मासिक वित्तीय सहायता/छात्रवृति देने के लिए उपयोग किया जाएगा, और 23 वर्ष की आयु पूरी करने पर, उसे व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए एकमुश्त के रूप से कोष की राशि मिलेगी। 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नजदीकी केन्द्रीय विद्यालय या निजी स्कूल में डे स्कॉलर के रूप में प्रवेश दिलाया जाएगा। फंड से बच्चे की फीस, यूनिफॉर्म, पाठ्य पुस्तकों और नोटबुक पर होने वाले खर्च का भुगतान किया जाएगा। 11-18 वर्ष की आयु के बच्चों को केंद्र सरकार के किसी भी आवासीय विद्यालय जैसे कि सैनिक स्कूल, नवोदय विद्यालय आदि में प्रवेश दिलाया जाएगा। उच्च शिक्षा के लिए, बच्चे को शिक्षा ऋण दिलाने में सहायता की जाएगी और इस ऋण पर लगने वाले ब्याज का भुगतान पीएम केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।
यह योजना बहुत अच्छी है, सरकार की नीयत भी साफ है और इस योजना से वाकई में बच्चों को सहारा मिलेगा। लेकिन सवाल ये है कि जिन बच्चों के लिए ये ऐलान किया गया है, उन तक इनका फायदा कैसे पहुंचेगा? बच्चे तो छोटे हैं, दीन दुनिया की इतनी समझ नहीं है, वे सरकार का दरवाजा खटखटाने कहां जाएंगे? क्या हम छोटे या किशोर अनाथ बच्चों से सरकारी विभागों में जाने, फॉर्म भरने, प्रमाण पत्र जमा करने और इस योजना का लाभ उठाने की उम्मीद कर सकते हैं? इसलिए मुझे लगता है ऐसे मासूम बच्चों की मदद करने के लिए सरकार के अफसरों को बच्चों के पास जाना होगा, बच्चे सरकार के पास नहीं आ पाएंगे। राज्य सरकार को चाहिए कि अपने अफसरों को इन बच्चों के पास भेजे, पूरी डीटेल इकट्ठी करे, और स्कॉलरशिप या ऐडमिशन या एजुकेशन लोन आसानी से उपलब्ध कराए। इसका पूरा दारोमदार राज्य सरकारों पर है, जिन्हें केंद्र सरकार को डेटा उपलब्ध कराना होगा।
विभिन्न राज्यों में अनाथ हुए बच्चों की संख्या को लेकर पहले से ही काफी कन्फ्यूजन है। एक तरफ जहां NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि महामारी के दौरान कुल 9,346 बच्चे या तो अनाथ हो गए हैं, या बेसहारा हो गए हैं, तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार की तरफ से अलग से एफिडेविट दाखिल हुआ जिसमें बताया गया कि 4,451 बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता में से किसी एक को या दोनों को खो दिया। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने बताया कि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 25 मई तक 577 बच्चे अनाथ हुए हैं। कुछ लोगों ने इन आंकड़ों को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठा दिए तो मंत्रालय की तरफ से सफाई दी गई कि NCPCR की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े दिए गए वे एक मार्च 2020 से लेकर अब तक के हैं, जबकि स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने सिर्फ 1 अप्रैल से लेकर 25 मई तक का डेटा शेयर किया था।
मुझे लगता है कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे लेकर सियासत नहीं होनी चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों को प्रयास करके उन सभी अनाथ बच्चों तक पहुंचना चाहिए जिन्हें रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा के रूप में सरकारी मदद की जरूरत है। ऐसे बेसहारा बच्चों तक पहुंचना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है, सिर्फ राज्य सरकारों में इच्छाशक्ति की जरूरत है। मैंने बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में अपने रिपोर्टर्स से महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों का पता लगाने के लिए कहा, और जमीन पर हालात बहुत ही भयावह नजर आए। यदि हमारे रिपोर्टर कुछ ही घंटों में इन अनाथ बच्चों तक पहुंच सकते हैं, तो राज्य सरकारों की विशाल मशीनरी जल्दी से जल्दी इन बच्चों का पता लगाकर उनका रिकॉर्ड केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक क्यों नहीं पहुंचा सकती?
हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा गया जिले के डुमरिया गांव में गईं और 11 साल के अनाथ बच्चे शत्रुघ्न और उसके 8 साल के भाई से मुलाकात की। इन बच्चों की मां डोमनी देवी, जो कि एक मजदूर थीं , की अप्रैल में कोरोना से मौत हो गई, जबकि इनके पिता कई साल पहले ही चल बसे थे। अब शत्रुघ्न और उसके भाई अकेले रह गए हैं। उनके पास घर के नाम पर टूटी-फूटी दीवारें हैं, उसके अंदर एक कच्ची अंधेरी कोठरी है। इस कोठरी में सामान के नाम पर एक बॉक्स है जो माता-पिता की मौत के बाद किसी NGO ने इन बच्चों को दिया है। 11 साल के इस अनाथ बच्चे को ईंट ढोने के लिए मजदूरी के रूप में 300 रुपये रोज मिलते हैं, जिससे वह मुश्किल से खुद के और अपने भाई के लिए उस खाने का इंतजाम करता है जिसे दोनों भाई मिलकर पकाते हैं। मेरा सवाल है कि सरकार की तरफ से इन अनाथ बच्चों तक कौन पहुंचेगा, उनका डीटेल केंद्र को भेजेगा, और सरकारी मदद के उन तक आसानी से पहुंचने की व्यवस्था करेगा ताकि ये दोनों बच्चे बड़े होकर सक्षम नागरिक बन सकें?
हमारे रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने जयपुर में टोंक रोड पर 17 साल के अनाथ मनन से मुलाकात की। अप्रैल के पहले हफ्ते तक मनन अपने खुशहाल परिवार में अपने माता-पिता के साथ रहता था। पहले मनन के पिता की 8 अप्रैल को कोरोना से मौत हुई, और इसके 7 दिन बात उनकी मां भी चल बसीं। अब इस दुनिया में मनन अकेला रह गया। उसे संभालने वाला या उसके सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है, फिर भी मनन ने हिम्मत नहीं हारी। माता-पिता की मौत को डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है। वह रात को अपने दोस्त के घर सोता है, वहीं खाना खाता है, क्योंकि कोरोना के कारण अब तक कोई रिश्तेदार उसके घर नहीं आया है। मनन का कहना है कि उसे सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात की है कि माता-पिता का डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है, और जब तक सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा तब तक उसे कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाएगी। सरकार की तरफ से मनन तक कौन पहुंचेगा?
कुछ ऐसा ही मामला जयपुर के गायत्री नगर में रहने वाली राजेश सिंह की विधवा पत्नी का है। अप्रैल में राजेश सिंह की एक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते मौत हो गई। घर में राजेश की पत्नी और 2 छोटे-छोटे बच्चे हैं। राजेश अपने परिवार में एकलौते कमाने वाले थे। राजेश की विधवा पत्नी डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए दर-दर भटक रही हैं, ताकि वह सरकारी सहायता के लिए दावा कर सकें। उनके पास कौन सरकारी कर्मचारी पहुंचेगा?
ग्रामीण इलाकों में स्थिति और जटिल है, जहां हजारों लोग कोविड से संक्रमित थे। उनमें से ज्यादातर कभी किसी अस्पताल नहीं गए, झोलाछाप डॉक्टरों से दवा ली और फिर उनकी मौत हो गई। दूसरे, अनाथ बच्चे मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए सरकारी कार्यालयों में जाने की हालत में नहीं हैं, और इसलिए सरकारी मदद के लिए गुहार नहीं लगा सकते। राजस्थान में बूंदी जिले में स्थित दलेलपुरा गांव में ही कम से कम 2 परिवार ऐसे हैं, जिनमें वयस्क लोगों की कोरोना से मौत हो गई और अब बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा। एक परिवार तो ऐसा था जिसमें सिर्फ 3 भाई-बहन बचे हैं। 7 साल पहले पिता की मौत हो गई, और मां कोरोना की चपेट में आकर चल बसीं। उन्होंने गांववालों से इलाज के लिए 50 हजार रुपये का कर्ज भी लिया था। अब सबसे बड़े बेटे को अपने भाई-बहन की परवरिश भी करनी है और गांववालों का कर्ज भी उतारना है। सरकार की तरफ से इस परिवार तक कौन पहुंचेगा?
जैसलमेर से करीब 230 किमी दूर नोख गांव है। यहां एक परिवार ऐसा है जिसमें मां पहले ही चल बसी थीं, और पिता को पिछले महीने कोरोना ने छीन लिया। केवल 2 बच्चे बचे हैं जिनकी देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है। अलवर जिले में 2 बहनों ने अपने माता-पिता को खो दिया। उनके पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी और पिछले महीने कोरोना के चलते मां की भी जान चली गई। सरकार की ओर से एक भी अधिकारी इन दोनों अनाथ बच्चों से मिलने नहीं आया। इन बच्चों से कौन मिलेगा और आधिकारिक आंकड़ों में उनका नाम जोड़ेगा?
अजमेर में, 2 कोरोना वॉरियर्स (हेल्थ केयर वर्कर्स), चंद्रावती और उनके पति करतार सिंह, 6 दिनों के अंदर ही कोरोना के चलते चल बसे, लेकिन अस्पताल की डेथ समरी में कोरोना संक्रमण का जिक्र नहीं किया गया, जबकि इलाज के दौरान दोनों की रिपोर्ट कई बार पॉजिटिव आई थी। उनकी दो बेटियां हैं, जो अब अनाथ हैं, लेकिन क्या वे सरकारी मदद के लिए दावा कर सकती हैं?
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में 318 बच्चों के सिर से उनके माता-पिता का साया उठा गया। हमारे संवाददाता अनुराग अमिताभ ने बताया कि सिर्फ भोपाल में ही 14 ऐसे परिवार हैं, जिनमें माता-पिता दोनों की मौत हो चुकी है। वह भोपाल में 2 ऐसे भाई-बहनों से मिले, जिन्होंने 6 दिन के अंदर अपने माता-पिता को खो दिया। जयंत के पिता नरेश कुमार एक कॉन्ट्रैक्टर थे और परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य थे। इन बच्चों की मां इंद्राणी की कोरोना के चलते 27 अप्रैल को मौत हो गई, और 3 मई को अस्पताल में पिता ने भी दम तोड़ दिया। जयंत इंजीनियरिंग के थर्ड ईयर के स्टूडेंट हैं। लेकिन अब अचानक पिता के नहीं रहने से उनके सामने पढ़ाई को लेकर ही नहीं, गुजर-बसर को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। उनके सिर के ऊपर अब किसी का हाथ नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के प्रकोप से बेसहारा हुए बच्चों की मदद करने की जो योजना बनाई है, वह अच्छी और साइंटिफिक है, लेकिन इस योजना को लागू करना राज्य सरकारों पर निर्भर करता है। सबसे पहले, राज्य सरकारों को ऐसे सभी परिवारों तक पहुंचना होगा और अनाथ हुए बच्चों के बारे में जल्द से जल्द जानकारी जुटानी होगी, क्योंकि एक-एक दिन मायने रखता है। दूसरे, इन अनाथ बच्चों के लिए कागजी कार्रवाई सुचारू रूप से सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य सरकार को एक टास्क फोर्स की नियुक्ति करनी चाहिए, ताकि उन्हें मुफ्त राशन और मुफ्त शिक्षा के रूप में सरकारी मदद मिल सके।
अगर आपको ऐसे किसी बच्चे के बारे मे पता चले जिसके माता-पिता की कोरोना की वजह से मौत हो गई है या उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो आप जल्द से जल्द 1098 पर सूचित करें या पुलिस को बताएं। हर राज्य में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी होती है जो ऐसे बच्चों की देखभाल करती है। इन अनाथ बच्चों को खुद गोद लेने की कोशिश न करें, क्योंकि CARA (सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) के नियमों के तहत ऐसा करना गैरकानूनी है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत CARA भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिए नोडल बॉडी है। राज्य सरकारों की सलाह पर कारा अंतर्देशीय गोद लेने के कार्य में लगी संस्थाओं को मान्यता प्रदान करती है। कारा विदेशी दत्तक संस्थाओं को भी उनके देश के उपयुक्त कानूनों के हिसाब से सूचीबद्ध करती है जिसके बारे में भारतीय मिशन सुझाव देते हैं। इसके साथ ही कारा दत्तक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और इसकी बेहतर निगरानी की व्यवस्था करती है।
यदि आपसे कोई ऐसा व्यक्ति संपर्क करे जो कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों को बेचने की बात करे, उन्हें गोद लेने की बात करे तो आप स्थानीय पुलिस को तुरंत सूचित करें। अगर कोई आपको ऐसा वॉट्सऐप मैसेज भेजे जिसमें बच्चे को गोद लेने की बात कही गई हो या मदद मांगी गई हो, तो ऐसे मैसेज को बिना सोचे-समझे फॉरवर्ड न करें। ऐसे मैसेज का मकसद लोगों को फंसाना हो सकता है। अनाथ हुए ऐसे बच्चों के बारे में सूचित करने के लिए 1098 या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें।
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How to deal with children orphaned by Covid pandemic
Today I want to speak about several thousand children orphaned by the Covid pandemic in India. Their ages range from less than a year to 18 years. These children belong to vulnerable groups as they have no guardian to look after their basic needs. While Uttar Pradesh government has officially reported 2,110 children who have lost one of their parents or left abandoned, Bihar reported 1,327 and Kerala reported 952 orphaned children.
National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR) has told the Supreme Court that the pandemic has orphaned 1,742 children, out of which at least 140 children have been left abandoned, while 7,464 children have lost at least one of their parents. All these children need food, shelter, clothing and education. The Supreme Court has asked all states to upload data about children during the period beginning March 2020 till May 29 this year.
As of this moment, nobody is sure exactly how many children have been orphaned in India due to Covid pandemic. Even as state governments are scrambling to collect data about Covid orphans, Prime Minister Narendra Modi has already initiated steps to provide free education and care for these orphans from PM CARES Fund. All children, who lost both parents or have a surviving parent, legal guardian or adoptive parents, will become beneficiaries.
PM CARES Fund will contribute through a special scheme, a corpus of Rs 10 lakh for each child to fund education, till the child becomes an adult at the age of 18. On reaching the age of 23, the grown up adult will get the entire corpus amount in one lump sum for personal or professional use. For orphans under 10 years of age, the child will be given admission to the nearest Kendriya Vidyalaya or a private school as a day scholar. The Fund will pay for the child’s fees, uniform, and books. For children between 11 to 18 years, the child will be given admission to any Central government school like Navodaya Vidyalaya or Sainik School. For higher education, the child will be assisted in getting education loans and interest on this loan will be paid for by the Fund.
The intentions are good, the schemes are fine but how will orphaned children avail of these benefits? Can we expect small or adolescent orphaned children going to government departments, filling up forms, submitting certificates, and availing of this scheme? The direction has to be reversed. Instead of orphans seeking help from the government, it is the state machinery which should send its officials to meet these orphaned children, prepare details and arrange a smooth transfer of stipends or admissions or education loans.
The entire task devolves upon the state governments, who will have to provide data to the Centre.
Already there is too much confusion about the number of orphaned children in different states. While NCPCR has told the Supreme Court that a total of 9,346 children have been orphaned or abandoned during the pandemic, a separate affidavit filed by Maharashtra government shows the number of orphans at 4,451 in that state alone. These are children who have lost both or either one of their parents and have been abandoned. Union Women and Child Minister Smriti Irani’s ministry says, 577 children have been orphaned till May 25, according to official records. When this figure was challenged by people in social media, it was clarified that the NCPCR had submitted records of Covid orphans from March last year, while Smriti Irani’s ministry had shared data only from April 1 till May 25 this year.
I feel this is a sensitive issue and should not be made a topic for political blame game. Both the Centre and states must reach out to these orphans, who need support from government in the form of food, shelter, education and clothes. Reaching out to these orphans in the states is not a big deal. I asked our reporters in Bihar, Rajasthan, Maharashtra and Madhya Pradesh to trace children orphaned by the pandemic, and the ground reports reflect a horrible situation. If our reporters can reach out to these orphans within hours, why can’t the vast state machinery reach out to them and send correct, credible data to the Centre and Supreme Court?
Our reporter Gonika Arora visited Dumaria village in Gaya district and met a 11-year-old orphan Shatrughan and his 8-year-old brother. Their mother Domni Devi, a labourer, died of Covid in April, while their father had already died several years ago. There was only a box, donated by an NGO, lying inside the dark home created out of broken bricks. The 11-year-old orphan gets Rs 300 wage daily for loading bricks, and barely manages food for himself and his brother, which they cook together. My question: who, from the government, will reach out to these orphans, send their details to the Centre, and arrange smooth transfer of stipends and assistance so that these two orphans can grow up to become able citizens?
Our reporter Manish Bhattacharya in Jaipur met 17-year-old orphan Manan on Tonk Road. Till the first week of April, it was a happy family with Manan staying with his parents. First, his father died of Covid on April 8 and seven days later, his mom passed away. Manan is staring at a dark future as he has no guardian. Manan stays at his friend’s home at night, gets his meals from them. Till now, not a single close relative has come to meet him. Manan is more worried about how to procure death certificates from his parents, because he will not get any assistance unless he gets these certificates. Who, from the government, will reach out to Manan?
Same is the case with Rajesh Singh’s widow in Gayatri Nagar, Jaipur. Rajesh Singh died due to loss of oxygen in April in a hospital. His widow had two small kids to look after. Rajesh was the sole earner in the family. The widow is going from pillar to post to get his death certificate, so that she can claim government assistance. Which government staff will reach out to her?
The situation is complex in rural areas, where thousands of people were infected with Covid. Most of them never went to any hospital, took medicines from quacks and then died. Secondly, children who were orphaned, are not in a position to go to government offices for death certificates, and therefore, cannot claim government aid. In Dalelpura village of Bundi district, there were at least two families, where the adults died of Covid, and there are only orphans left. In one family, there are only three siblings left. Their father passed away seven years ago, their mother died of Covid. She had taken Rs 50,000 loan from villagers for her treatment. The eldest son has to bear the burden of looking after his siblings and return the loan money. Who, from the government, will reach out to this family?
Nearly 230 km from Jaisalmer is Nokh village. In one family, the mother had died earlier, and the father died last month due to Covid. There are only two children left and nobody to look after them. In Alwar district, two sisters lost their parents. Their father had died earlier, and last month their mother died of Covid. Not a single official from the government came to meet these two orphans. Who will meet them and add their names to the official data on orphans?
In Ajmer, two Corona warriors (health care workers), Chandrawati and her husband Kartar Singh, died of Covid within a span of six days, but in the hospital death summary, Covid infection was not mentioned, even though both of them had tested positive several times during treatment. They have two daughters, now orphans, but can they claim government aid?
In Madhya Pradesh, 318 children were orphaned during the second wave of pandemic, according to official data. Our reporter Anurag Amitabh says, there are at least 14 families in Bhopal, where both parents died of Covid leaving their children orphans. He met a brother and sister, Jayant Patharia and Swati, whose parents died of Covid within a span of six days. Jayant’s father Naresh Kumar was a contractor and the only earning member. His mother Indrani died of Covid on April 27, and on May 3, his father died in hospital. Jayant is a third year engineering student. He is now staring at a dark future. There is none to help his family.
There is no denying the fact that Prime Minister Narendra Modi has prepared a scientific and perfect blueprint for helping orphaned children with their education, but implementing this scheme depends upon the state governments. Firstly, the state governments will have to reach out to all such families and collect facts about orphans in the fastest possible time, because every passing day counts. Secondly, every state government must appoint a task force to ensure that the entire paper work is done smoothly for these orphans, so that they can get aid in the form of free ration and free education.
Those among us, who know about such families where children have been orphaned must contact 1098 or the local police and convey the information immediately. There is Child Welfare Committee in every state that looks after such children. Do not try to arrange adoption of these orphans, because it is illegal to do so under CARA (Central Adoption Resource Authority) rules. CARA, under the Ministry of Women and Child Development, is the nodal body for adoption of Indian children and is mandated to monitor and regulate in-country and inter-country adoptions. CARA primarily deals with adoption of orphaned, abandoned or surrendered children through its recognized adoption agencies.
If miscreants try to contact you seeking your help in adopting these orphans, inform the local police immediately. Do not forward WhatsApp messages in which pictures of so-called orphans are posted and your help is sought. These may be intended to trap people. Contact 1098 or the local police to inform about such orphans.
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सामूहिक टीकाकरण अभियान ही कोरोना महामारी का एकमात्र रामबाण उपाय
देश में कोरोना वैक्सीनेशन के अभियान को गति देने की दिशा में केंद्र सरकार ने अहम कदम उठाया है। सरकार की ओर से कहा गया है कि अमेरिका से आयात किए जाने वाले फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को कुछ रियायतें खासतौर से क्षतिपूर्ति देने में कोई समस्या नहीं है। इन वैक्सीन के निर्माताओं ने सरकार से इस बात की मंजूरी मांगी थी कि वह क्षतिपूर्ति और अप्रूवल के बाद लोकल ट्रायल से छूट दे। देश के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने कहा है कि अगर किसी वैक्सीन को अन्य देशों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से मंजूरी मिली हुई है उसे भारत में ब्रिज ट्रायल की जरूरत नहीं होगी। अब सरकार के इस कदम से भारत में फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन के आयात में तेजी आएगी।
उधर, बुधवार को देशभर में कोरोना के 1,32,788 नए मामले सामने आए, जबकि 2,31,456 लोग डिस्चार्ज किए गए। वहीं इस घातक संक्रमण से पिछले 24 घंटे में 3207 लोगों की मौत हो गई। मंगलवार को रूस से स्पुतनिक वी वैक्सीन की एक और खेप हैदराबाद पहुंची। इस खेप में वैक्सीन की 30 लाख डोज है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने जून में कोविशील्ड की 10 करोड़ डोज देने का वादा किया है। भारत बायोटेक ने भी कोवैक्सिन का उत्पादन बढ़ाया है। भारत बायोटेक ने जुलाई महीने में कोवैक्सीन की रोजाना एक करोड़ डोज का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन मुझे शक इस बात का है कि जितनी वैक्सीन होगी, क्या वैक्सीन लगवाने वाले भी उतने होंगे? ये शक इसलिए है क्योंकि अभी भी बड़े पैमाने पर गांव में वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में शक है। हमारे रिपोर्टर्स को देश के विभिन्न हिस्सों से जो ग्राउंड रिपोर्ट मिली वह इस बात की ओर इशारा करती है कि आम लोगों के मन में वैक्सीनेशन को लेकर डर है।
हमारे रिपोर्टर लखनऊ से 10 किलोमीटर दूर अमराई गांव गए जहां का एक भी ग्रामीण वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं था। इनमें से ज्यादातर लोगों ने कहा कि वैक्सीन लगाने से मर जाएंगे, तो वैक्सीन क्यों लगवाएं? जब उनसे ये पूछा गया कि ये किसने कहा, कहां से पता लगा? ज्यादातर लोगों ने तो कह दिया कि सुना है। लेकिन एक-दो लोग मिले, जिन्होंने अपना फोन आगे बढ़ा दिया और कहा कि इस फोन में मैसेज आया है। लखनऊ के ही KGMC में वैक्सीन लगवाने के बाद सौ से ज्यादा डॉक्टर्स कोरोना पॉजिटिव हो गए। इस मैसेज में वैक्सीन लेने के बाद किसी डॉक्टर के मरने का कोई जिक्र नहीं था। सच्चाई ये है कि कोविड पॉजिटिव होन के बाद अधिकांश डॉक्टर स्वस्थ हो गए थे लेकिन इस बात को लोगों के बीच सही ढंग से प्रसारित नहीं किया गया। गांववालों को किसी ने यह नहीं बताया कि अगर ये डॉक्टर कोरोना की वैक्सीन नहीं लेते तो उनकी मौत भी हो सकती थी।
भोपाल से 10 किमी दूर एक गांव में हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ को ग्रामीणों ने ऐसे व्हाट्सएप मैसेज दिखाए, जिसमें दिल्ली, औरंगाबाद, नागपुर और मुंबई के डॉक्टरों के नाम, फोटो और डिग्री थे। इसमें ये दावा किया गया था कि 18 साल से ऊपर के वो लोग जिनकी शादी नहीं हुई है, अगर वो वैक्सीन लगवाएंगे तो वे अपना पौरूष खो देंगे। ये चेतावनी 18 साल से अधिक उम्र की युवतियों को भी दी गई थी कि अगर वे टीका लगवाती हैं तो वे कभी बच्चों को जन्म नहीं दे पाएंगी। इन सभी डॉक्टर्स का पता लगाने की कोशिश की गई तो इनमें से दो डॉक्टर कैमरे के सामने आए। उन्होंने बताया कि इस मैसेज के बारे में उन्हें पहले से पता है। उन्होंने इस दावे को भी पूरी तरह से खारिज नहीं किया। डॉक्टर साहब ने कहा कि फोटो उनकी परमीशन के बिना लगाई गई। इन डॉक्टर्स का बैकग्राउंड चेक किया गया तो इंटरनेट पर इनका पूरा कच्चा चिट्ठा सामने आ गया। दरअसल 5 डॉक्टर वैक्सीन आने से पहले ही सोशल मीडिया पर वैक्सीन के खिलाफ मुहिम शुरू कर चुके थे। ऐसे डॉक्टर्स के खिलाफ एक्शन होना चाहिए। क्योंकि इस तरह के लोग खुद को डॉक्टर भी कहते हैं और कोरोना के खिलाफ जंग को कमजोर करते हैं। वैक्सीनेशन के मुद्दे पर लोगों को गुमराह करते हैं।
अब आपको एक और हैरान करने वाली बात बताता हूं। एक और मैसेज व्हाट्सएप पर सर्कुलेट हो रहा है। इसमें नोबल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक ल्यूक मॉन्टेनियर का नाम लेकर दावा किया गया कि जिसने भी वैक्सीन लगवाई है वे सब दो साल के अंदर मर जाएंगे। आपको बता दें कि ल्यूक मॉन्टेनियर फ्रांस के मशहूर वाइरोलोजिस्ट हैं। इन्होंने 1983 में एक और वैज्ञानिक के साथ मिलकर HIV ( Human Immuno deficiency Virus) का पता लगाया था और 2008 में मेडिसिन के क्षेत्र में काम के लिए इऩ्हें नोबल प्राइज मिल चुका है। जब इस मैसेज की तहकीकात की तो अलग ही बात सामने आई। असल में ये बात सही है कि ल्यूक मॉन्टेनियर ने मास वैक्सीनेशन का विरोध जरूर किया था लेकिन उन्होंने किसी भी इंटरव्यू में ये नहीं कहा कि वैक्सीन लगाने वाले इंसान की मौत दो साल के भीतर हो जाएगी। दरअसल पूरी दुनिया में वैक्सीनेशन के मुद्दे पर ल्यूक से सवाल पूछे गए थे और ये इंटरव्यू फ्रेंच में था। इस इंटरव्यू का इंग्लिश में ट्रांसलेशन किया गया। उसमें कहा गया कि ल्यूक ने वैक्सीनेशन को दुनिया के लिए खतरनाक बताया था। मॉन्टेनियर का सिद्धांत जो कि विवादित भी है, वह यह है कि वैक्सीन म्यूटेंट को बढ़ा रही और इस कड़ी में एडीई (antibody-dependant enhancement) की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित लोगों में गंभीर इंफेक्शन का खतरा हो रहा है। मॉन्टेनियर ने कहीं ये नहीं कहा कि जिन लोगों ने कोविड का टीका लिया है, वे अगले दो वर्षों में मर जाएंगे। भोले-भाले ग्रामीणों के मन में वैक्सीन के प्रति शक पैदा करने के लिए इस तरह की बात जोड़ दी गई।
इस तरह के मैसेज से डर सिर्फ गांवों में नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली में भी लोगों ने कहा कि दुनिया का इतना बड़ा सांइटिस्ट कह रहा है कि वैक्सीन मौत का फरमान है तो क्या वो झूठ बोल रहा है? एक लड़के ने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के.के. अग्रवाल का नाम लेते हुए कहा कि उनके जैसे बड़े डॉक्टर ने वैक्सीन की दोनों डोज ली थी और उनकी मौत हो गई तो फिर हम वैक्सीन क्यों लें? किसी ने उस लड़के को यह बताने की कोशिश नहीं की कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी शरीर की रक्षा करने के लिए एंटी-बॉडीज बनने में कम से कम 3 महीने लगते हैं।
मंगलवार की रात ‘आज की बात’ शो में मैंने एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया से वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट के मुद्दे पर बात की। डॉ. गुलेरिया ने समझाया कि लोगों जिंदगी बचाने के लिए वैक्सीनेशन क्यों जरूरी है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन की डोज से शरीर को कोई नुकसान नहीं है। वैक्सीन इम्यूनिटी बढ़ाएगी। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि वैक्सीनेशन वजह से मौत या नपुंसकता का एक भी मामला सामने नहीं आया है। वहीं कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका के बारे में उन्होंने कहा कि अगर देशभर में लोग कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करेंगे तो फिर तीसरी लहर नहीं आ सकती है। उन्होंने कहा कि अगर इस साल के अंत तक भारत की आधी से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन हो जाता है तो यह सभी के लिए वरदान होगा।
वैक्सीनेशन होने से क्या फायदा होता है इसका उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूं। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में ब्राजील शामिल है। यहां मार्च के अंत तक कोरोना से 4.05 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी। रोजाना होनेवाली मौतों का औसत तीन हजार से ज्यादा थी। ब्राजील का एक शहर है सेरेना जहां की कुल आबादी 45 हज़ार है। यहां पर सारे एडल्टस को वैक्सीन लगा दी गई है। नतीजा ये हुआ कि कोरोना से मरने वालों की संख्या में 95 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि इंफेक्शन के मामले में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। जनवरी में इस शहर में 706 मामले थे जो कि घटकर 235 पर आ गए हैं। यहां के लोगों को चीन की सीनेवैक नाम की वैक्सीन लगाई गई है।
अब मैं आपको दिल्ली के बारे में बताता हूं जहां करीब 2 करोड़ लोग रहते हैं। इनमें से 54 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगाई जा चुकी है। लॉकडाउन और वैक्सीनेशन का असर ये हुआ है कि दिल्ली के सबसे बड़े कोविड अस्पताल एलएनजेपी में फिलहाल 700 आईसीयू बेड खाली पड़े हैं। जबकि 30 अप्रैल को यहां आईसीयू का एक भी बेड खाली नहीं था। 30 अप्रैल को यहां ऑक्सीजन वाला भी कोई बेड उपलब्ध नहीं था। अस्पताल के बाहर गाड़ियों में, एंबुलेंस में कोरोना के मरीज तड़प रहे थे। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। 19 अप्रैल को दिल्ली में कोरोना से 448 लोगों की मौत हुई थी लेकिन 1 जून को सिर्फ 62 लोगों की मौत हुई। दिल्ली में आज पॉजिटिविटी रेट एक प्रतिशत से भी कम है।
ये दो उदाहरण लोगों को यह समझाने के लिए काफी हैं कि बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन से ही संक्रमण और इससे होने वाली मौतों को कंट्रोल किया जा सकता है। इसलिए मैं बार-बार आग्रह कर रहा हूं कि जब भी आपको टाइम स्लॉट दिया जाए तो आप वैक्सीन जरूर लगवाएं।
Why mass vaccination drive is the only panacea for Covid pandemic
The stage is now set for ramping up nationwide vaccination drive with the Centre saying there is no issue in granting indemnity to Pfizer and Moderna vaccines to be imported from the US. Manufacturers of these vaccines had sought the government’s approval for waivers like indemnity and post-approval local trials. The Drugs Controller General of India has said that foreign vaccines approved by other countries and the WHO do not require bridge trials in India. This will fast-track import of Pfizer and Moderna vaccines to India.
On Wednesday, India reported 1,32,788 fresh Covid cases, 2,31,456 discharges and 3,207 deaths during past 24 hours. On Tuesday, 30 lakh Sputnik V doses from Russia landed in Hyderabad. Serum Institute of India has promised to deliver 10 crore Covishield doses in June. Bharat Biotech has also ramped up production of Covaxin doses. The nationwide daily one crore dose target has been set for the month of July, but I have certain doubts about whether people in rural and semi-urban areas will come forward to get the doses. Ground reports collected by our reporters from across the country indicate towards a certain sense of fear pervading in the minds of common people about vaccines.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, I had showed how villagers in Bihar, MP, UP and Maharashtra were saying on camera that they fear death if they are vaccinated. Some expressed fear of losing their virility if they get the dose. All these fears have no concrete basis whatsoever, but WhatsApp mills are churning out rumours by the minute. I asked our reporters to find out the source of the fake messages and advices being circulated on social media. They visited far-off villages and found that only two or three persons got such fake messages on their phones, and soon it spread among all villagers. Names, photos of doctors were pasted in those messages to give some dose of authenticity.
Our reporter visited Amrai village, 10 km from Lucknow, where not a single villager was ready to take the vaccine. Most of them said, they feared death if they were vaccinated. Most of them said they heard this from others, while two of them showed their phones which cited a news report saying more than 100 KGMC doctors were found Covid positive, even after taking the dose. There was no mention of any doctor dying after taking vaccine. The fact that most of these doctors later recovered from Covid was not circulated. Nobody told the villagers that the doctor could have faced death, had they not taken the vaccine.
In a village 10 km away from Bhopal, our reporter Anurag Amitabh met villagers who showed WhatsApp messages which bore the names, picturess and degrees of doctors from Delhi, Aurangabad, Nagpur and Mumbai, warning people above the age of 18 years, not to take vaccine, otherwise they would lose their virility. Females above age of 18 years were also warned they would never be able to give birth to babies if they took the vaccine. Our reporters traced two such ‘doctors’ who did not deny that they did not know about these messages. They merely said, their photos were used without their permission. On internet, we checked the antecedents of these five docs, and it was found that they had been launching campaign on social media against Covid vaccines, since long. Action must be taken against such doctors who are trying to misguide people on the issue of vaccination.
Another name being used on WhatsApp is that of Luc Montagnier, the French virologist who jointly won the Nobel Prize for Medicine in 2008 for his discovery of HIV (human immunodeficiency virus). The message that is being wrongly attributed to Montagnier is that all those taking Covid vaccines will die in the next two years, is fake. Montagnier never made such a remark, though he had been publicly advocating against mass Covid vaccination. Montagnier’s theory, though contested, is that vaccines are driving the creation of mutants, and a process called ADE (antibody-dependant enhancement) is driving more serious infection among infected persons. Nowhere did Montagnier said that people who have taken Covid vaccine will die in the next two years. This remark has been added to create serious doubts in the minds of gullible villagers.
This rumours has spread to Delhi too. While arguing in front of our reporter, one sceptic mentioned the name of cardiologist Dr K K Agrawal, who, he said, died of Covid even after taking both doses. Nobody tried to tell him that even after taking both doses, it takes at least three months for anti-bodies to protect the human body.
On Tuesday night in ‘Aaj Ki Baat’ show, I spoke to Dr Randeep Guleria, director of AIIMS about vaccine hesitancy issue. Dr Guleria explained why vaccine doses are necessary to protect people’s lives. Vaccine doses will not do any harm to a human body, instead it will provide immunity, he said. There has been not a single case of death or impotency due to vaccination, Dr Guleria said. About the feared Third Wave of pandemic, he said, the wave may not come, if people across India practised Covid appropriate behaviour strictly. If more than half of India’s population gets vaccinated by this year end, it will be a boon for all, he said.
Here, I can cite one striking example. Serrana is a city with a population of 45,000 in Brazil. By March end this year, when daily death average surged past 3,000 across Brazil, with 4,05 lakh people dying throughout the country, Serrana was like an oasis amidst the desert of death. Only 15 per cent people in Brazil have taken a single vaccine shot, but, in Serrana, all the adults in the city had taken their vaccine shots. In January this year, while there were 706 confirmed Covid cases in the city, it has now declined to 235, because most of the adults have now been vaccinated. Fatalities have decreased by 95 per cent, while infections have decreased by 80 per cent. People in this city had taken the Chinese Sinovac vaccine.
Nearer home, in Delhi, where nearly 2 crore people live, 54 lakh people have already taken their first dose. Because of strict lockdown and mass vaccination, the largest hospital in Delhi, LNJP hospital today has more than 700 ICU beds lying vacant. On April 30, there was not a single bed available in this vast hospital. On April 19, 448 people died of Covid in Delhi, but on June 1, there were only 62 deaths. Positivity rate in Delhi today is less than one per cent.
These two examples are enough to convince people that infections and fatalities can be controlled only through mass vaccination drive. That is why, I have been repeatedly saying, please get yourself vaccinated when you are given the time slot.
अधिकांश लोगों का दिवाली के पहले, और सभी का क्रिसमस के पहले हो टीकाकरण
कोरोना के ऐक्टिव मामलों की संख्या में गिरावट के साथ ही अब पूरा ध्यान सभी नागरिकों को महामारी की तीसरी लहर से बचाने के लिए पूरे देश में टीकाकरण अभियान चलाने पर है। सोमवार को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया कि 18 साल से ऊपर के सभी भारतीयों को साल के अंत तक टीका लगा दिया जाएगा, लेकिन कोर्ट ने सरकार को कोराना टीकाकरण की नीति संबंधी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह जुलाई के मध्य या अगस्त से रोजाना एक करोड़ डोज का लक्ष्य बनाकर टीकाकरण अभियान को ‘मिशन मोड’ में आगे बढ़ाना चाहता है। केंद्र ने कहा कि उसे भारत बायोटेक, SII और स्पुतनिक-वी के टीके बना रही रेड्डीज लैब से ज्यादा सप्लाई की उम्मीद है। इसके अलावा केंद्र और फाइजर के बीच बड़े पैमाने पर कोरोना वैक्सीन की खरीद को लेकर बातचीत चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल डिवाइड’ के मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल से कई सवाल पूछे। बेंच ने पूछा, ‘क्या ग्रामीण क्षेत्रों के हाशिए पर रहने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए CoWin ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन करा पाना मुमकिन है? क्या आप ग्रामीण इलाकों में डिजिटल डिवाइट के बारे में जानते हैं? नीति निर्माताओं को जमीनी हालात पता होने चाहिए और उसी के मुताबिक नीति में बदलाव किए जाने चाहिए। कृपया जमीनी हालात का पता लगाएं और नीतिगत फैसलों में उपयुक्त संशोधन करें।’
बेंच ने यह भी पूछा: ‘केंद्र द्वारा राज्यों के लिए ज्यादा कीमत पर और प्राइवेट अस्पतालों के लिए इससे भी ज्यादा कीमत पर टीके खरीदने के पीछे क्या तर्क है? सरकार ने कीमतें तय करने का जिम्मा वैक्सीन निर्माताओं पर क्यों छोड़ा है? राज्य और यहां तक कि नगर निगम भी टीकों की खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर क्यों जारी कर रहे हैं? आपने मुफ्त में सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए 1978 के नीतिगत फैसले को क्यों छोड़ दिया?’
टीकाकरण पर बहस ऐसे समय में तेज होती जा रही है जब सोमवार को भारत में पिछले 54 दिनों में कोरोना वायरस से संक्रमण के एक दिन में सबसे कम 1.27 लाख मामले सामने आए। इसी के साथ सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 18.95 लाख पर पहुंच गई। पिछले 24 घंटों के दौरान सक्रिय मामलों की संख्या में 1.30 लाख की कमी आई है। वहीं, सोमवार को हुई 2,795 मौतों के साथ कोरोना से अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 3,31,895 हो गई। आंकड़ों की बात करें तो भारत में मई महीने में कोरोना के कुल 90.3 लाख मामले सामने आए जबकि लगभग 1.2 लाख मरीजों को इस महामारी के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी। मई के महीने में मरने वालों की संख्या अप्रैल में हुई 48.768 मौतों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा थी।
महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए केंद्र और राज्य, दोनों अब टीकाकरण अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेकिन क्या भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग कोरोना का टीका लगवाने के लिए तैयार हैं? ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का टीकाकरण एक बड़ी चुनौती बन गया है। सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर बिहार के भागलपुर तक के ग्रामीणों के बीच टीकों को लेकर हिचकिचाहट दिखाई। मेरे पास उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के हमारे रिपोर्टर्स द्वारा भेजी गई रिपोर्ट्स हैं, जो स्पष्ट तौर पर दिखाती हैं कि निरक्षर और अर्ध-शिक्षित ग्रामीण तबका निराधार अफवाहों के चलते टीका लगवाने को तैयार ही नहीं हैं। ऐसे कई इलाके हैं जहां लोग वैक्सीन को ‘जहर का इंजेक्शन’ कह रहे हैं। डॉक्टरों समेत स्वास्थ्यकर्मियों को ग्रामीणों को यह समझाने में मुश्किल हो रही है कि वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं है और ये उन्हें वायरस से बचाने के लिए लगाई जा रही है।
कुछ गांवों में लोगों ने कहा कि वे कोरोना से भले ही मर जाएंगे लेकिन वैक्सीन लगवाकर अपनी जान नहीं देंगे। गांवों में अफवाह फैली हुई है कि वैक्सीन लगवाने वाले ज्यादातर लोगों की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण से हो गई। कई जगह तो हालत ये है कि गांवों के लोग वैक्सीन लगाने के लिए पहुंचे हेल्थ डिपार्टमेंट के कर्मचारियों को मार-मारकर भगा रहे हैं। ऐसे विरोध से तंग आकर उज्जैन और फिरोजाबाद जैसी जगहों पर स्थानीय प्रशासन ने अपने सभी कर्मचारियों को कहा है कि वे या तो टीका लगवाएं या अपनी तनख्वाह छोड़ दें। कर्मचारियों से कहा जा रहा है- ‘वैक्सीन नहीं, तो सैलरी नहीं’। मुलायम सिंह यादव के गृहक्षेत्र सैफई में स्थानीय प्रशासन ने शराब विक्रेताओं को केवल उन्हीं लोगों को शराब बेचने को कहा है जिनके पास कोविड वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट है। जरा सोचिए, जिस देश में स्वास्थ्यकर्मियों, नगर निगम के कर्मचारियों को और सरकारी अफसरों को वैक्सीन लगवाने के लिए तन्ख्वाह रोकने की धमकी देनी पड़े, उस देश में 100 पर्सेंट टीकाकरण कितना कठिन काम है।
हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ भोपाल से 20 किमी दूर रतीबड़ गांव में गांववालों से पूछा कि वे वैक्सीन से परहेज क्यों कर रहे हैं। गांव के ज्यादातर लोगों ने कहा कि वैक्सीन लगवाना मौत को दावत देना है। वहीं, कुछ अन्य गांववालों ने कहा कि टीका लगवाने क बाद कोई नपुंसक भी हो सकता है। उनमें से कुछ लोगों ने यब भी कहा कि वे आए दिन अखबार में, मीडिया में देखते हैं कि कोरोना से मरने वाले लोगों में से कई ने वैक्सीन लगवाई थी। कुछ तो ऐसे भी थे जो इस निराधार अफवाह को हवा दे रहे थे कि हमारे प्रधानमंत्री भी वैक्सीन लगवाने के बाद कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए।
हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने बिहार के भागलपुर में ग्रामीणों से मुलाकात की। गांववालों ने दावा किया कि वैक्सीन लेने के बाद लोगों ने कोरोना से अपनी जान गंवा दी। भागलपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड में गई हेल्थ डिपार्टमेंट की टीम ने बताया कि उनका लक्ष्य रोजाना 400 लोगों को वैक्सीन लगाने का है, लेकिन हालत यह है कि एक हफ्ते में मुश्किल से 250 डोज ही लग पाती हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जहां मुश्किल से 10 लोगों का टीकाकरण हो पाया है। एक हेल्थ वर्कर ने कहा कि उसने एक दिन सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक इंतजार किया, लेकिन एक भी गांववाला वैक्सीन लगवाने के लिए नहीं आया।
हमारी रिपोर्टर रुचि कुमार लखनऊ के पास स्थित रहमतनगर गांव गई थीं। स्थानीय आशा कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को वैक्सीनेशन के लिए समझाने गई थीं, लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर टीका लगवाने के लिए बहुत ही कम लोग पहुंचे। गांववालों के पास टीका न लगवाने को लेकर अपने ही तर्क हैं, अपनी ही दलीलें हैं। साफ है कि इन गांवों में अफवाहों का बोलबाला है।
अलीगढ़ के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कोविड वैक्सीन से भरे हुए 29 इंजेक्शन कूड़ेदान में फेंके गए पाए गए। पूछताछ के बाद स्थानीय ANM (ऑक्जिलरी नर्स मिडवाइफ) निहा खान को बर्खास्त कर दिया गया। ANM निहा खान पर यह कार्रवाई तब हुई जब कुछ ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें वह लोगों को वैक्सीन लगाते वक्त सीरिंज तो उनकी बांह में घुसाते हुए दिख रही थी, लेकिन वैक्सीन को इंजेक्ट किए बिना ही डस्टबिन में फेंक दे रही थी।
टीकाकरण अभियान चलाने को लेकर शोर-शराबा करना तो आसान है, लेकिन इसे लागू करना एक बहुत बड़ा काम है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। जो लोग कोरोना के टीकों की कमी का रोना रो रहे हैं, उनमें से ज्यादातर शहरों से हैं। उन्हें उन दिक्कतों के बारे में पता होना चाहिए जिनका सामना डॉक्टरों, नर्सों, एएनएम को गांववालों को टीका लगाते हुए करना पड़ता है। बड़े पैमाने पर लोगों के मन मे संदेह के पीछे कई कारण हैं – यह मौत का डर, निराधार अफवाहों के चलते पैदा हुआ डर या धार्मिक आधार पर पैदा डर हो सकता है।
केंद्र सरकार सिर्फ टीके खरीद सकती है, राज्यों को भेज सकती है, टीकाकरण केंद्र स्थापित कर सकती है, लोगों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था कर सकती है, आशा कार्यकर्ताओं को लोगों के गांव-घर तक भेज सकती है, लेकिन लोगों को टीका लगवाने के लिए मोटिवेट कौन कर सकता है? जो लोग शहरों में अपने ड्राइंग रूम के अंदर बैठे हैं, वे ब्रिटेन, अमेरिका या यूरोप में हो रहे वैक्सीनेशन के आंकड़ों का हवाला दे सकते हैं, लेकिन उन्हें वास्तव में जमीनी हकीकत जाननी चाहिए, ANM कार्यकर्ताओं, नर्सों और डॉक्टरों से बात करनी चाहिए कि वे टीकाकरण अभियान के दौरान किस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
यह सच है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग या तो साक्षर हैं, अर्ध-साक्षर हैं या भोले हैं, और वे आसानी से निराधार अफवाहों पर विश्वास कर लेते हैं। मैं देश के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सराहना करता हूं जो गांवों में जाते हैं, गालियों, धमकियों और मारपीट का सामना करने के बावजूद लोगों को कोरोना के टीकों के फायदे के बारे में लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं। मेरा सुझाव है कि गांवों में रहने वाले पढ़े-लिखे लोग जैसे कि शिक्षकों, सरपंचों, पंडितों, पुजारियों या मौलवियों को लोगों के बीच कोरोना के टीकों के फायदे के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए। वे खुद आगे आएं और सार्वजनिक रूप से अपना टीकाकरण कराएं, ताकि लोग उनके बताए रास्ते पर चल सकें। 70 प्रतिशत भारतीयों का टीकाकरण होने के बाद ही हम राहत की सांस ले सकते हैं और महामारी खत्म हो सकती है।
Target to vaccinate most of people before Diwali, all before Christmas.
With the number of active Covid cases showing a decline, the entire focus is now on carrying out a nationwide vaccination drive to protect all citizens from the third wave of pandemic. On Monday, the Centre promised the Supreme Court that all Indians above the age of 18 years will be vaccinated by the end of the year, but the apex court wanted a detailed Covid vaccination policy from the government.
The Centre told the Supreme Court that it wants to ramp up vaccination drive in “mission mode” targeting one crore doses per day starting from mid-July or August. The Centre said, it expected more supplies from Bharat Biotech, SII, and Reddy’s Lab which is making Sputnik-V vaccines. Talks are going on between the Centre and Pfizer for procuring Covid vaccines on a large scale.
The apex court grilled the Solicitor General on the issue of ‘digital divide’. The bench said, “Is it possible for a migrant workers from a marginalised section from rural areas to register through CoWin app?..Are you aware of the sharp digital divide in rural areas? The policy makers must have ears to the ground and tweak the policy accordingly…Please smell the coffee and make suitable amendments to the policy decisions”.
The bench also asked: “What is the rationale behind the Centre procuring vaccines at a price that is higher for states, and even more for private hospitals? Why has the government left it to the manufacturers to fix prices? Why are the states and even municipal corporations floating global tenders for procuring vaccines? …Why did you abandon the 1978 policy decision for universal immunisation free of cost?”
The debate over vaccination is raging at a time when India reported the lowest number of daily fresh cases in 54 days at 1.27 lakh on Monday. The number of active case load has declined to a low of 18.95 lakh. Active cases decreased by 1.30 lakh during the last 24 hours. The Covid death toll however climbed to 3,31,895 with 2,795 deaths on Monday. For the record, India reported a whopping 90.3 lakh Covid cases during the month of May, while nearly 1.2 lakh Indians died due to the pandemic during one month alone. The number of deaths in the month of May was two and a half times more compared to April, during which only 48.768 people had died.
To prevent the spread of pandemic, both the Centre and states are now focusing on vaccination drive. But are villagers living across the great Indian hinterland ready to take Covid vaccines? Vaccinating people in rural areas has become a huge challenge. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed villagers from Bhopal to Bhagalpur in Bihar, expressing scepticism about the vaccines. I have reports from our correspondents from UP, MP, Maharashtra and Bihar, which clearly show that illiterate and semi-literate villagers are unwilling to get themselves vaccinated, based on baseless rumours and incorrect conjectures. In some villages, they are calling it ‘zehar ka injection’ (the poisonous injection). Health workers, including doctors, are having a tough time convincing villagers that the vaccines are harmless and are meant to protect them from the virus.
In some villagers, people said they would rather prefer to die in the pandemic rather than get themselves vaccinated and die. Rumours are rife in villages that most of the people who took vaccines died of Coronavirus. In some villages, local residents chased away and beat up health department workers who had come to vaccinate them. Fed up with such protests, local administrations in places like Ujjain and Firozabad have asked all their employees either to get vaccinated, or forego their salaries. The employees are being told – ‘No vaccine, no salary’. In Mulayam Singh Yadav’s homeplace Saifai, the local administration has asked liquor vendors to sell liquor to only those who carry Covid vaccination certificates. Just imagine, what a huge task it is for vaccinating all citizens in India, when even government or municipal staff are unwilling to take the vaccine because of incorrect perceptions.
Our reporter Anurag Amitabh went to Ratibad village, 20 km away from Bhopal, to ask villagers who they are avoiding the vaccine. Some said, they may die if they take the jab, while some others said, one could become impotent if vaccinated. Some of them said, they have read media reports saying, many of the people who died in the pandemic had taken the dose. Some went to the extent of peddling this baseless rumour that even our Prime Minister got infected after taking the vaccine.
In Bhagalpur, Bihar, our reporter Gonika Arora met villagers who claimed that people have died of Covid after taking vaccine. The health care team which had gone to Jagdishpur block of Bhagalpur district, said, every day they aim at vaccinating 400 people, but, in reality, hardly 250 doses are given in one week. There are villages where hardly 10 people get vaccinated. One health worker said, she waited from 9 am till 3 pm one day, but not a single villager turned up for vaccination.
Our reporter Ruchi Kumar visited Rahmatnagar village near Lucknow. Local ASHA worker went among the people persuading them to take the jab, but very few turned up at the community health centre. Most of the villagers had their own peculiar reasons for not opting to get vaccinated. Clearly, rumours are ruling the roost in these villages.
At a primary health centre in Aligarh, 29 loaded Covid vaccine injections were found dumped in the waste bin. After inquiry, the service of the local ANM (auxiliary nurse midwife) Niha Khan was terminated. Action was taken after videos emerged of the ANM making a show of pricking the arm of beneficiary, but in effect, not injecting the vaccine dose in the body. She is then seen throwing the loaded injection in the garbage bin.
To make loud noises about carrying out vaccination drive may be easy, but to implement it is a huge task, particularly in rural areas. People why are crying hoarse about lack of Covid vaccines are mostly from the cities. They should know the problems that doctors, nurses, ANMs face while actually administering vaccines to villagers. There are many reasons behind this pervading sense of scepticism – it could fear of death, fear due to baseless rumours or fear based on religious motives.
The Centre can only procure and send vaccines, set up vaccination centres, arrange registration of beneficiaries, send ASHA workers to people’s homes and villages, but who can motivate people? Those sitting inside their drawing rooms in cities can cite statistics of people getting vaccinated in the UK, US or Europe, but they should actually know the ground realities, speak to ANM workers, nurses and doctors about the difficulties they are facing during the drive.
It is true, most of the people in rural areas are either literate, semi-literate or gullible, and they easily believe in baseless rumours. I am all praise for our health workers who are going to villages, facing abuses, threats and beatings, but still try to convince people about the efficacy of Covid vaccines. My suggestion is: literate people living in villages like teachers, sarpanch, pandits, priests or moulvis should create awareness among people about the benefits of Covid vaccines. They should themselves come out and get themselves vaccinated in public, so that people can follow their path. It is only when 70 per cent of Indians get vaccinated, can we heave a sigh of relief and the pandemic can make its exit.