बायडेन प्रशासन से भारत को क्या-क्या उम्मीदें हैं
‘आज अमेरिका का दिन है। आज लोकतंत्र का दिन है। आज इतिहास और आशा का दिन है। पुनरुज्जीवन और संकल्प का दिन है।’ इन्हीं शब्दों के साथ अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बायडेन ने बृहस्पतिवार को शपथ ग्रहण के बाद अपना पद संभाल लिया। उन्होंने कैपिटल (अमेरिकी संसद भवन) की सीढ़ियों पर शपथ ली जहां 6 जनवरी को डोनाल्ड ट्रम्प के उकसाए जाने के बाद अनियंत्रित गोरी कट्टरपंथी भीड़ ने जबर्दस्त उत्पात मचाया था। डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव हार गए थे लेकिन वे हार स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।
शपथ ग्रहण समारोह के दौरान बायडेन के भाषण को भीड़ बड़े ध्यान से सुन रही थी। नेशनल गार्ड्स के जवान इस पूरे समारोह पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए थे और पूरी तरह से अलर्ट थे। बायडेन ने कहा- ‘आज हम एक उम्मीदवार की विजय का जश्न नहीं, बल्कि लोकतंत्र के ध्येय की जीत का उत्सव मना रहे हैं। जनता की इच्छा को सुना और समझा गया है। हमने आज फिर सीखा है कि लोकतंत्र बेशकीमती है, लोकतंत्र नाजुक है और मित्रों, इस वक्त लोकतंत्र की विजय हुई है ।’
बायडेन के भाषण को शब्दों में पिरोने, उसे मूर्त्त रूप देने का काम भारतीय मूल के अमेरिकी सी. विनय रेड्डी ने किया था। विनय रेड्डी का परिवार मूल रूप से तेलंगाना का रहनेवाला है। पूरे राष्ट्रपति चुनाव में बायडेन के भाषण को लिखने का काम उन्होंने ही किया था। बायडेन की टीम में वे भाषण लिखने वाली टीम के डायरेक्टर थे। विनय रेड्डी बायडेन के साथ लंबे अर्से से जुड़े हैं। ओबामा के शासनकाल में जब बायडेन उपराष्ट्रपति थे, उस समय भी विनय रेड्डी बायडेन के साथ थे।
बायडेन ने कहा, ‘हम पूरी रफ्तार और तेज़ी के साथ आगे बढ़ेंगे क्योंकि हमें खतरा और संभावनाओं से भरे इस शीतकाल में काफी कुछ करना है, काफी कुछ दुरुस्त करना है, काफी कुछ बहाल करना है, काफी कुछ हासिल करना है। हमारे इतिहास में बहुत कम समय ऐसे आये हैं जो आज की तुलना में ज्यादा कठिन और चुनौतीपूर्ण रहे हैं। सौ साल में एक बार आया यह वायरस देश भर में चुपचाप चहलकदमी कर रहा है। इस वायरस ने एक साल में इतनी जानें लीं जितनी अमेरिका ने पूरे द्वितीय विश्व युद्ध में गंवाई थी। लाखों लोग बेरोजगार हो गए। हजारों कारोबार बंद हो गए…. और अब हम राजनीतिक उग्रवाद, श्वेत वर्चस्व, घरेलू आतंकवाद के मुकाबिल है और इन्हें हरा कर रहेंगे ।’
बायडेन ने कहा: ‘मैं आपको यह वचन देता हूं कि मैं सभी अमेरिकियों का राष्ट्रपति बना रहूंगा।’
इससे पहले कमला देवी हैरिस ने अमेरिका की पहली महिला उपरष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेकर इतिहास रच दिया। कमला हैरिस प्रथम अश्वेत और भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति हैं। शपथ ग्रहण समारोह से कुछ घंटे पहले डोनाल्ड ट्रम्प मरीन वन हेलीकॉप्टर में सवार होकर व्हाइट हाउस से निकल गए। उन्होंने मैरीलैंड हवाई अड्डे पहुंचकर अपने समर्थकों को संबोधित किया। ट्रम्प ने अपने भाषण में कहा- ‘हम किसी न किसी रूप में वापस आएंगे ‘। ऐसी खबरें हैं कि ट्रम्प पैट्रियट पार्टी के नाम से एक नया राजनीतिक संगठन तैयार कर सकते हैं। वहीं ट्रम्प के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति का पद संभालने वाले माइक पेंस ट्रम्प की विदाई में तो शामिल नहीं हुए, लेकिन वे जो बायडेन के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे ।
दरअसल सच्चाई ये है कि अपने चार साल के उथल-पुथल भरे शासन के दौरान, खास कर राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार के बाद के कुछ हफ्तों में, ट्रम्प ने नस्ल और जाति के आधार पर अमेरिकी जनता को बांटने का काम किया। यही वो दर्द था.. यही वो बात थी जो बायडेन के भाषण में बार-बार उभरकर सामने आई। उन्होंने अपने भाषण में बार-बार ‘एकता’ पर जोर दिया।
कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेते देख भारतीय मूल के हर अमेरिकी को गर्व का अनुभव हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्विटर पर बधाई दी और कहा, ‘यह एक ऐतिहासिक अवसर है। भारत-अमेरिका संबंधों को और ज्यादा मजबूत बनाने के लिए उनके साथ बात करने को लेकर आशान्वित हूं। भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी पूरी दुनिया के हित में है।’ वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने जो बायडेन को भी ट्वीट कर बधाई दी। मोदी ने ट्वीट किया: ‘मैं भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए उनके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।”
नये अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन पहले ही भारत-अमेरिका संबंधों को ‘एक द्विपक्षीय सफलता की कहानी’ बता चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि अमेरिका भारत के बारे में अपनी नीतियों में निरंतरता बनाए रखेगा। दोनों देशों के बीच पहले से ही रक्षा क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। भारत को उम्मीद है कि अमेरिका एक व्यापक व्यापार समझौते के साथ आगे आएगा जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा। दोनों देशों को मिलकर उस आतंकवाद का मुकाबला करना होगा जिसका पालन-पोषण भारत के पड़ोस में हो रहा है।
What India expects from the Biden administration
“This is America’s day. This is democracy’s day. A day of history and hope. Of renewal and resolve.” – With these words US President Joe Biden took office on Thursday after being administered the oath of office on the steps of the Capitol, scene of unprecedented violence by an unruly radical white mob which went on rampage on January 6 after being egged on by Donald Trump, his predecessor, who had lost the elections but was unwilling to concede.
As Biden continued, the crowd watched and listened with rapt attention, with National Guards keeping a vigil. He said, “Today we celebrate the triumph, not of a candidate, but of a cause: the cause of democracy. The will of the people has been heard, and the will of the people has been heeded. We have learned again, that democracy is precious. Democracy is fragile. And at this hour, my friends, democracy has prevailed.”
These were words scripted by an American of Indian origin, C. Vinay Reddy, whose family hails from Telangana. He had written Biden’s speeches throughout the presidential election. He is director of speech writing in Biden’s transition team. Reddy was with Biden during his days as Vice-President during Obama’s regime.
Biden said: “We will press forward with speed and urgency, for we have much to do in this winter of peril and possibility. Must to repair. Much to restore. Much to heal. Much to build. And much to gain. Few periods in our nation’s history have been more challenging or difficult than the one we’re in now. A once-in-a-century virus silently stalks the country. It has taken as many lives in one year as America lost in all of World War II. Millions of jobs have been lost. Hundreds of thousands of businesses closed. … And now, a rise in political extremism, white supremacy, domestic terrorism, that we much confront and we will defeat.”
In his speech, Biden said: “I pledge this to you: I will be a President for all Americans”. Earlier, history was created when Kamala Devi Harris took oath of office as the first female Vice-President, the first of Black and Indian heritage. Hours before the inauguration ceremony, Donald Trump exited the White House in a Marine One helicopter to Maryland air base, where he delivered a speech to his supporters promising “we will be back in some form”. There were reports that Trump may form a new political outfit called the Patriot Party. The outgoing Vice-President Mike Pence did not attend Trump’s farewell, but attended Biden’s inauguration.
It is a fact that during his turbulent four-year rule, and particularly during the weeks after his defeat in the presidential elections, Donald Trump divided the American people on the basis of race and ethnicity, and it was left to Biden to stress on “Unity” several times in his inauguration speech.
Every American of Indian origin felt pride on watching Kamala Harris taking oath as the Vice-President. Prime Minister Narendra Modi was to greet her on Twitter and said “It is a historic occasion. Looking forward to interacting with her to make India-USA relations more robust. The India-USA partnership is beneficial to our planet.” To Joe Biden, Modi tweeted: “I look forward to working with him to strengthen India-US strategic partnership.”
The new US Secretary of State Antony Blinken, appointed by Biden, has already described India-USA relations as “a bi-partisan success story”. India expects continuity in US policies towards the world’s most populous democracy. Already there has been much progress in the field of defence ties.
India expects the US to come forward with a comprehensive trade agreement that will be beneficial for both. Both the countries will have to jointly fight the scourge of terrorism that is being nurtured and exported from the neighbourhood.
हमारे युवा क्रिकेटरों ने ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर यूं रचा इतिहास
नए साल की नई-नई शुरुआत में नए इंडिया की नई टीम ने ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर एक नया इतिहास रच दिया है। गाबा में हो रहे टेस्ट मैच के आखिरी दिन मंगलवार को टीम इंडिया ने स्टार क्रिकेटरों से भरी ऑस्ट्रेलियाई टीम को मात देकर टेस्ट सीरीज पर कब्जा किया और इसके साथ ही कामयाबी की एक नई इबारत लिख दी। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में यह दूसरी टेस्ट सीरीज जीती है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का अभेद्य किला माने जाने वाले गाबा के मैदान पर कंगारू पिछले 32 सालों में एक भी मैच नहीं हारे थे।
युवा भारतीय टीम ने इतिहास बदलकर रख दिया और अविश्वसनीय धैर्य एवं दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करते हुए नए कीर्तिमान स्थापित किए। शुभमन गिल के 91, क्लासिक चेतेश्वर पुजारा के 56 और डायनैमिक ऋषभ पंत के 89 रनों की बदौलत भारत ने टेस्ट मैच में ऐतिहासिक जीत हासिल की। टेस्ट मैच के आखिरी दिन टीम इंडिया के सामने 328 रनों का पहाड़ जैसा टारगेट था। आमतौर पर टेस्ट मैच के अंतिम दिन इतने रन बनाना आसान नहीं होता, क्योंकि पिच वियर एंड टियर हो चुकी होती है, बड़े क्रैक्स पड जाते हैं और गेंद में अनइवेन बाउंस रहता है।
इसके अलावा, ऐसे कम ही लोग होंगे जो ऐसी पिच पर ऑस्ट्रेलिया के विश्व स्तरीय तेज गेंदबाजों के सामने जीतने की कल्पना भी कर सकते हैं। लेकिन भारत के युवा और बहादुर क्रिकेटरों ने न सिर्फ इस चुनौती का मुकाबला किया, बल्कि ऑस्ट्रेलियाई टीम पर पूरी तरह हावी भी रहे। कमेंटेटर्स भारतीय टीम के लिए डिटरमिनेशन, फियरलेस क्रिकेट, इंटेंट और रेजलियंस जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे। वह भी उस टीम के लिए जो अपने सीनियर और अनुभवी क्रिकेटरों के बिना खेल रही थी।
जसप्रीत बुमराह, रविचंद्रन अश्विन, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, रवींद्र जडेजा और हनुमा विहारी जैसे खिलाड़ी घायल होकर पविलियन में बैठे थे, जबकि कप्तान विराट कोहली अपने घर आए हुए थे। हार्दिक पांड्या भी टीम में नहीं थे। ऑस्ट्रेलिया का सामना करने वाले कई खिलाड़ी ऐसे थे जो अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे, कई बॉलर्स तो वे थे जो नेट्स में बॉलिंग करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में रोके गए थे। इन खिलाड़ियों को प्लेइंग इलेवन में चुने जाने की उम्मीद न के बराबर थी। यह युवा टीम मैदान में न तो मैच बचाने के लिए उतरी, और न ही ड्रॉ करने के लिए बल्कि जीत हासिल करने के लिए आगे बढ़ती रही।
जैसा कि आजकल सोशल मीडिया पर लोग काफी ज्यादा ऐक्टिव हैं, इसलिए ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लैटफॉर्म्स पर आज उन लोगों को सबसे ज्यादा आलोचना झेलनी पड़ी, जिन्होंने एडिलेड में ’36 रन पर आउट’ हो जाने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम पर सवाल उठाए थे। कमेंटेटरों और पूर्व क्रिकेटरों में से कइयों ने, जिनमें ज्यादातर विदेशी थे, भारतीय टीम को दूसरे दर्जे का कहा था। कुछ ने तो यह भी भविष्यवाणी की थी कि भारतीय टीम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीत ही नहीं सकती। एडिलेड टेस्ट हारने के बाद विराट कोहली वापस भारत लौट आए थे।
इंग्लैंड की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया इस सीरीज में भारत को 4-0 से हराएगी। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज मार्क वॉ ने भी इसी तरह की बातें की थीं। ऑस्ट्रेलिया के एक और पूर्व क्रिकेटर माइकल क्लार्क ने कहा था कि विराट कोहली के बिना टीम इंडिया की बैटिंग लाइनअप काफी कमजोर दिखती है। अब जबकि भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर धूल चटा दी है, तो इनके जैसे अन्य पूर्व क्रिकेटर्स जैसे कि रिकी पॉन्टिंग को अब अपने बयानों पर शर्मिंदा होना पड़ रहा है। भारत ने 2018-19 में भी ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर मात दी थी और अब 2021 में एक बार फिर से वही कारनामा दोहराया है।
मंगलवार की सुबह अंतिम दिन के खेल को देखते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी बॉलीवुड थ्रिलर को पर्दे पर उतरता हुआ देख रहा हूं। लोग एक-एक रन, एक-एक बाउंड्री के लिए टीम इंडिया का हौसला बढ़ा रहे थे। और जब मैच जीतकर टीम इंडिया के युवा खिलाड़ियों ने ट्रॉफी उठाई, तिरंगे को लहराया और मैदान का चक्कर लगाया, तब जाकर यकीन आया कि ऑस्ट्रेलिया में वाकई चमत्कार हो गया। हमारी टीम ने कंगारुओं को जोर का झटका दे दिया।
इस मैच के हीरो विकेटकीपर बैट्समैन ऋषभ पंत थे। इस खिलाड़ी के बारे में हाल के दिनों में कई लोगों ने तमाम तरह की कड़ी बातें कही थीं। कई लोग कहते थे कि ऋषभ पंत में पोटेंशियल की कमी नहीं है, बस उन्हें थोड़ा डिसिप्लिंड होने की जरूरत है। लेकिन 23 साल के इस नौजवान खिलाड़ी ने सिडनी और ब्रिसबेन में अपने प्रदर्शन से दिखाया कि वह अपने दम पर किसी भी समय मैच पलटने का माद्दा रखता है।
जब चेतेश्वर पुजारा 56 रन बनाकर आउट हुए, तो लगा कि जैसे टीम इंडिया यह मैच अब ड्रॉ करने के लिए खेलेगी। इसके बाद जब मयंक अग्रवाल भी जल्दी आउट हो गए, तो फिर लगा कि इस मैच में तीनों रिजल्ट जीत, ड्रॉ और हार, कुछ भी मुमकिन है। लेकिन ऋषभ पंत के इरादे तो कुछ और ही थे। वह ठानकर आए थे कि जब तक क्रीज पर मौजूद हैं, जीतने के लिए ही खेलेंगे। इसीलिए उन्होंने अपना अटैकिंग गेम जारी रखा और वॉशिंगटन सुंदर के साथ 53 रनों की साझेदारी की। इसके बाद तो जीत के लिए सिर्फ औपचारिकताएं रह गई थीं। लेकिन जब वॉशिंगटन सुंदर और शार्दुल ठाकुर एक के बाद एक आउट हो गए तो प्रेशर एक बार फिर ऋषभ पंत पर आ गया। सुंदर और शार्दुल वही खिलाड़ी थे, जिन्होंने पहली इनिंग्स में 123 रनों की जबर्दस्त पार्टनरशिप करके भारत की मैच में वापसी करवाई थी। ऋषभ पंत आखिर तक टिके रहे, टीम को जीत दिलाकर ही दम लिया, और नाबाद 89 रन बनाने के लिए उन्हें ‘मैन ऑफ द मैच’ का अवॉर्ड भी मिला।
टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री ने बाद में बताया कि कैसे टीम इंडिया इस अग्निपरीक्षा से पार पाने में सफल रही। उन्होंने कहा, ऑस्ट्रलिया का उसी की जमीन पर सामना करना काफी मुश्किल काम है, भारतीय खिलाड़ियों को क्वॉरन्टीन में जाना पड़ा, कई घायल हुए, एडिलेड में इतिहास के अपने न्यूनतम स्कोर 36 रन पर आउट हो गए, और फिर वहां से वापसी की और चैंपियंस की तरह खेले। शास्त्री ने कहा कि यह बेहद अविश्वसनीय था।
ब्रिसबेन के क्रिकेट इतिहास में इससे पहले किसी भी टीम ने 300 रन से ऊपर के स्कोर का पीछा करते हुए जीत दर्ज नहीं की थी। लेकिन हमारी टीम ने एक दिन में ही 300 रन से ज्यादा के स्कोर का कामयाबी से पीछा किया। इस मैच को जीतने में शार्दुल ठाकुर और मोहम्मद सिराज का काफी बड़ा रोल रहा। सिराज अभी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर आए ही थे कि तभी खबर आई कि उनके पिता का देहांत हो गया है। लेकिन अच्छे गेंदबाजों की कमी को देखते हुए सिराज ने ऑस्ट्रेलिया में ही रुकने का फैसला किया। सिडनी और ब्रिस्बेन में उन्हें कुछ ऑस्ट्रेलियाई फैन्स की नस्लीय टिप्पणियों से भी गुजरना पड़ा। सिराज ने इन सभी लोगों को अपनी शानदार परफॉर्मेंस से जवाब दिया।
मंगलवार की सुबह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि टीम इंडिया यह मैच जीतेगी। रोहित शर्मा 7 रन बनाकर आउट हो चुके थे, दुनिया के नंबर एक बल्लेबाज विराट कोहली, जिन्हें रन मशीन कहा जाता है, टीम में ही नहीं थे, लेकिन जब सलामी बल्लेबाज शुभमन गिल ने अच्छे शॉट्स लगाते हुए शानदार 91 रन बनाए, तो ऐसा लगा कि टीम जीत सकती है। चेतेश्वर पुजारा विकेट के सामने दीवार बनकर खड़े थे। उन्होंने कभी छाती पर तो कभी अंगूठे पर, कुल 6 बार बॉल से चोट खाई। जब मैंने उन्हें दर्द से कराहते हुए और मैदान में लेटे हुए देखा तो मुझे लगा कि हम यह मैच लगभग हार गए हैं। लेकिन वह फिर खड़े हुए, 211 गेंदों का सामना करते हुए 56 रन बनाए और ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को जमकर छकाया।
जब मयंक अग्रवाल भी नहीं चले तो जीत की उम्मीद काफी कम हो गई थी। इसके बाद ऋषभ पंत खेलने आए और एक छोर संभाले रखा। वह इस पूरी सीरीज़ में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए थे, और सिर्फ एक ही अच्छी इनिंग्स खेली थी। लेकिन इस बार उन्होंने कमाल कर दिया। जिस अंदाज में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के स्पिनर्स की पिटाई की, उससे लग गया था कि अब जीत तो पक्की है।
पंत ने साबित कर दिया कि वह वाकई में हार को जीत में बदलने वाले बैट्समैन हैं। वह जैसे-जैसे बाउंड्री मार रहे थे, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के चेहरे उतरते जा रहे थे। वॉर्नर और स्मिथ जैसे वर्ल्ड क्लास प्लेयर्स के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि नए खिलाड़ियों ने उनकी टीम को इस अंदाज में मात दी। भारतीय टीम के कई खिलाड़ी अपना पहला ही मैच खेल रहे थे।
भारत की इस युवा टीम की कामयाबी को लफ्जों में बयान नहीं किया जा सकता। गाबा की पिच पर यह भी साबित हो गया कि भारतीय क्रिकेट टीम का भविष्य भी काफी उज्ज्वल है। बस इन युवा खिलाड़ियों को इस सफलता को बड़े संयम से अपनी यादों में संजो कर रखना होगा। हमारे युवा क्रिकेटरों ने जो हिम्मत और दृढ़ संकल्प दिखाया है, उसकी मिसाल आने वाले खिलाड़ियों को हमेशा दी जाएगी।
How our young cricketers scripted history on Australian soil
The New Year has marked a new beginning with a new Indian cricket team scripting a new history on Australian soil. Team India scripted a fairy tale on the final day of the Test at Gabba on Tuesday clinching the Test series by defeating the mighty Australian team packed with star cricketers. This was Indian’s second Test series win in Australia. Gabba is considered an impregnable fortress for the Australians who have not lost a single match on this ground since the last 32 years.
The young Indian team changed history and rewrote records displaying incredible grit and determination. Opened Shubhman Gill’s 91 runs, classic Cheteshwar Pujara’s 56 runs and dynamic Rishabh Pant’s 89 not out forged India’s historic victory. On the last day of the Test, Team India had a huge target of 328 runs. Normally it is difficult to score so many runs on the last day, because the pitch witnesses wear and tear, with big cracks and the ball carries an uneven bounce.
Moreover, few could imagine the team coming out victorious facing world-class fast bowlers of Australia on such a pitch. The young, brave Indian cricketers not only surmounted all obstacles but also dominated last day’s play. The commentators were busy throwing up words like determination, fearless cricket, intent and resilience for the Indian team. That too, for a team sans senior and experienced cricketers.
Players like Jasprit Bumrah, R. Ashwin, Mohammed Shami, Umesh Yadav, Ravindra Jadeja and Hanuma Vihari were injured, sitting in the pavilion, while captain Virat Kohli was busy at home. Hardik Pandya too was absent. The players who faced Australia were mostly those who were playing their first Test, there were bowlers who had been kept during the Australian tour for net practice. Hopes of these players being inducted into the playing Eleven was almost nil. This young team went to the ground not in order to save the match, neither make a try for a draw, but went ahead with the zeal to win.
Since the social media is hyperactive nowadays, cricket fans took to Twitter, Facebook and other platforms to pan those who had written off the Indian team after the “36 not out” fiasco at Adelaide. Many of the commentators and former cricketers, mostly from abroad, had described the Indian team as second-rated, some had predicted that there was no chance of the Indian team taking home the Border-Gavaskar Trophy. Virat Kohli had returned to India after the Adelaide fiasco.
Former England captain Michael Vaughan had predicted a 4-0 whitewash for India. Former Aussie batsman Mark Waugh had given a similar opinion. Another former Australian cricketer Michael Clarke had said that the Indian team without Virat Kohli did not stand a chance in batting. Now that the Indian team has demolished Australia on its own soil, these and other former players like Ricky Ponting will not have to eat their words. India had defeated the Australia on their soil in 2018-19 and have now repeated the same in 2021.
On Tuesday morning, as I watched the final day’s play, I felt as if I was watching a Bollywood thriller rolling out on the screen. People were cheering the Indians for each run and each boundary. And when the brave young Indian players lifted the trophy, waved the Tricolour and jogged round the stadium, it looked as if a miracle has occurred. The kangaroos have been beaten, thoroughly.
The hero of the match was wicketkeeper batsman Rishabh Pant, the player about whom many had said unkind words in the recent past. Some said he lacked potential, some others said he should be more disciplined, but the 23-year-old player showed with his performances at Sydney and Brisbane that he has the capability to turn a match around on its head.
When Cheteshwar Pujara was out for 56, it appeared as if Team India would now struggle for a draw. When Mayank Agrawal left, it looked as if the team could either win, lose or draw. But Rishabh Pant had come with a plan in his mind. He had decided that he would stay on the pitch, come what may, till the team wins. He carried on with his attacking game. Pant did a 53-run partnership with Washington Sundar, and now the win was a mere formality. But when Sundar and Shardul Thakur left one after another, it looked as if the entire weight would now fall on Pant. Sundar and Shardul had done a miraculous 123-run partnership in the first innings. Pant continued to stay on the pitch and remained 89 not out, and ultimately got the Man of The Match award.
It was head coach Ravi Shastri who later summed up how Team India came through the ordeal by fire. He said, it was a huge task to face Australia on its soil, Indian players had to gone into quarantine, were injured, were out for 36 in Adelaide for their lowest total in history, and then they made the comeback and played like champions. It was unbelievable, he said.
Never in Brisbane’s cricketing history had any team successfully chased a score of more than 300 runs. Team India accomplished that within a day. Shardul Thakur and Mohammed Siraj played vital roles. Siraj lost his father when he was playing in Australia, but considering the lack of good bowlers, he decided to stay back. In Sydney and Brisbane, he had to face the torment of listening to racial abuses from some Australian bigots. He gave his reply with his sterling performances.
On Tuesday morning, I never dreamed that Team India would win. Rohit Sharma was already out for 7, World No. 1 Virat Kohli, known as the run machine, was not in the team, but when opener Shubhman Gill started playing well-timed shots and made 91 runs, it appeared as if the team could win. Cheteshwar Pujara stood like a wall, he was hit six times, once on his chest and once on his thumb. When I saw him crying out in pain, lying on the ground, I thought the match was almost lost. But he stood up, made 56 runs facing 211 balls, and pierced the Australian bowling wall.
When Mayank Agrawal failed, chances of a win almost collapsed. Rishabh Pant was holding fort. He had not done well in the series, had played only one good innings. But Lady Luck wasin his favour this time. He spanked the Australian spinners and there was a clear sign of a win on the horizon.
Pant proved that he was a batsman who can indeed turn a match around. As he played boundaries, the Australian players were aghast and they lost their morale. World class players like Warner and Smith looked quite sad. They could not believe their eyes that their team was being roasted by rookies. Most of the players in the Indian team were playing their debut Test match.
One can hardly express admiration for the young Indian team in words. It was made quite clear on Gabba pitch today that the future of Indian cricket team is, indeed, bright. These young players must nurture the adulation that they will receive with modesty and care. The grit and determination that our young cricketers displayed today shall always remain a shining example for all budding players.
किसानों को मेरी सलाह: संशोधन के बाद कृषि कानून पसंद न आएं तो आंदोलन करें
आज अपने 55वें दिन में प्रवेश कर चुके किसान आंदोलन में पर्दे के पीछे से सियासी ताकतें सक्रिय तौर पर काम में लगी हैं। ऐंटी-मोदी मोर्चा अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहा है। सोमवार को किसान नेताओं के बीच अनबन की खबर आई थी। हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के एक किसान नेता, गुरनाम सिंह चढ़ूनी को संयुक्त किसान मोर्चा ने सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद सुलह की कोशिशें की गईं और शाम तक सस्पेंशन वापस ले लिया गया।
किसान नेताओं के बीच एकता में दरार के संकेत हैं जो पिछले 24 घंटों में दिखाई देने लगे हैं। चढ़ूनी और मध्य प्रदेश के एक अन्य किसान नेता शिव कुमार कक्काजी ने एक-दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाजी की। एक स्थानीय मीडिया ने कक्काजी के हवाले से खबर दी थी कि चढ़ूनी ने हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार को गिराने के लिए 10 करोड़ रुपये लिए थे, लेकिन बाद में कक्काजी ने ऐसा कोई भी आरोप लगाने की बात से इनकार कर दिया। वहीं, चढ़ूनी ने पलटवार करते हुए कक्काजी को ‘आरएसएस का एजेंट’ करार दे दिया।
बाद में चढ़ूनी ने साफ किया कि उन्होंने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में राजनीतिक दलों की एक मीटिंग आयोजित की थी। इस मीटिंग में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत 11 पार्टियों के नेता मौजूद थे। उन्होंने इस मीटिंग में व्यक्तिगत तौर पर हिस्सा लिया था और भविष्य में वह ऐसा नहीं करेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार की शाम को एक बयान जारी कर कहा कि चढ़ूनी द्वारा बुलाई गई राजनीतिक दलों की बैठक से उसका कोई लेना-देना नहीं है। मोर्चा ने कहा कि उसने इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। इसने साफ किया कि इसका किसी भी राजनीतिक दल से सीधा जुड़ाव नहीं होगा, हालांकि कोई भी संगठन या पार्टी इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए स्वतंत्र है।
गैर-राजनीतिक किसान नेताओं ने कहा कि उन्होंने अपन आंदोलन स्थल पर न तो किसी पार्टी का झंडा लगने दिया और न ही किसी पार्टी के नेता को अपने मंच पर चढ़ने दिया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों के नेता लगातार आंदोलन में घुसने की कोशिश करते रहे। इन राजनीतिक दलों ने कुछ किसान नेताओं को यह पट्टी पढ़ा दी कि सरकार की कोई बात न मानने में ही उनकी जीत है। जब हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठे चढ़ूनी की तस्वीरें सामने आईं, तो अन्य किसान नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद किसान नेताओं की सबसे प्रमुख 7-मेंबर कमेटी की बैठक बुलाई गई, जिसमें चढ़ूनी को सस्पेंड करने का प्रस्ताव पारित किया गया। यह भी फैसला किया गया कि केंद्र के साथ दसवें दौर की बातचीत के लिए जाने वाले किसानों के प्रतिनिधिमंडल में चढ़ूनी नहीं होंगे। ऐसी अफवाहें थीं कि चढ़ूनी ने हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस नेताओं से डील कर ली है।
अपने सस्पेंशन के तुरंत बाद चढ़ूनी ने आरोप लगाया कि कक्काजी आरएसएस के एजेंट हैं और उन्हें किसानों के आंदोलन में दरार पैदा करने के लिए भेजा गया है। चढ़ूनी ने कहा कि कक्काजी के संगठन में मुश्किल से 100 किसान हैं। उन्होंने उस अखबार को भी मानहानि का नोटिस भेजने की धमकी दी जिसमें कक्काजी का यह आरोप छापा गया था कि चढ़ूनी कांग्रेस पार्टी ने टिकट देने की पेशकश की है।
कक्काजी से चढ़ूनी इसलिए नाराज थे क्योंकि जिस 7-सदस्यीय कमेटी ने उन्हें सस्पेंड किया उसकी अध्यक्षता कक्काजी ही कर रहे थे। शाम को जारी किए गए एक वीडियो संदेश में कक्काजी ने कहा कि उन्होंने कभी भी ऐसा बयान नहीं दिया है कि चढ़ूनी ने कांग्रेस से 10 करोड़ रुपये लिए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि बीकेयू के एक अन्य नेता राकेश टिकैत ने भी कक्काजी का समर्थन किया और कहा कि चढ़ूनी को सस्पेंड करने का फैसला कमेटी ने किया था।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस पूरे घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनका आरोप अब सच साबित हो गया है कि किसानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ है, लेकिन ‘इस तरह की काली करतूतों से कुछ नहीं होगा और न ही वे लोग मेरी सरकार गिरा पाएंगे। ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से एक्सपोज किया जाएगा। न तो मेरी सरकार गिरेगी और न ही मैं अपना टेंपर लूज करूंगा।’ खट्टर को पिछले हफ्ते करनाल में एक किसान महापंचायत को संबोधित करना था, लेकिन चढ़ूनी के नेतृत्व में किसानों ने इसमें तोड़फोड़ कर दी थी और प्रोग्राम को कैंसिल करना पड़ा था।
कांग्रेस को उम्मीद थी कि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल खट्टर सरकार को गिराने के लिए समर्थन करेगी, लेकिन चौटाला ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। सोमवार को दुष्यंत चौटाला ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि मौजूदा गतिरोध का हल ढूंढ़ लिया जाएगा और हरियाणा सरकार को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार निश्चित रूप से 5 साल पूरे करेगी।’
इस बीच सोमवार को किसानों ने सिंघू बॉर्डर के पास 26 जनवरी की अपनी ट्रैक्टर रैली का रिहर्सल किया, और कहा कि वे दिल्ली के आउटर रिंग रोड पर अपनी रैली निकालेंगे। ट्रैक्टर रैली का एक और रिहर्सल चंडीगढ़-पंजाब बॉर्डर पर किया गया। मध्य प्रदेश के रतलाम में 5 किमी लंबी रैली निकाली गई जिसमें 500 से भी ज्यादा ट्रैक्टरों ने हिस्सा लिया। भारत के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे ने सोमवार को कहा कि ट्रैक्टर रैली की इजाजत देने के बारे में फैसला दिल्ली पुलिस को करना है। दिल्ली पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने सोमवार को किसान नेताओं से मुलाकात की और उनकी योजनाओं पर चर्चा की।
बहुत से संगठन और देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन की आड़ में अपने मंसूबे पूरे करने की फिराक में हैं। वे किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश में हैं। विदेशों में बैठे खालिस्तानी तत्व, पाकिस्तान के इशारे पर साजिशें रच रहे हैं और राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड में खलल डालने वालों को इनाम देने का ऐलान कर रहे हैं।
मुझे पूरा भरोसा है कि हमारे किसान राष्ट्रवादी हैं। उनका तिरंगे में विश्वास है, वे देशभक्त हैं और वे कभी भी भारत विरोधी ताकतों से हाथ नहीं मिलाएंगे। मैं किसान नेताओं के बीच पैदा हुई दरार को लेकर ज्यादा चिंतित हूं। उनके बीच अब किसानों की बात कम हो रही है, और सियासत की बात ज्यादा हो रही है । अब इस बात की चर्चा ज्यादा होती है कि कौन कांग्रेसी है, कौन अकाली है, कौन कम्युनिस्ट है और कौन RSS में रहा है। कुछ खट्टर सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे हैं तो कुछ सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते रहते हैं।
जो भी नेता या ऐक्टिविस्ट्स मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहते हैं, वे सब इस आंदोलन का हिस्सा बन गए हैं। उनमें से कुछ सामने आ गए हैं तो कुछ पर्दे के पीछे से ही सक्रिय हैं। उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसान नेताओं की जिद सही है या नहीं। उनमें से कोई कहता है कि चूंकि धरने पर बैठे ज्यादातर किसान सिख हैं, इसलिए इनसे धार्मिक भावनाएं जुड़ गई हैं। कोई कहता है कि सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों में से कई को खालिस्तान समर्थक कहकर गलती कर दी। कुछ लोगों ने कहा कि आढ़तियों पर रेड करना और कई किसान नेताओं से NIA की पूछताछ ठीक नहीं है।
लेकिन कोई भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किसानों की शंकाओं को दूर करने की पूरी कोशिश की। बीजेपी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने किसान नेताओं पर खालिस्तान का समर्थक होने का आरोप नहीं लगाया। बल्कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो खुलकर कहा कि किसान नेताओं पर खालिस्तान से जुड़े होने का सवाल उठाना गलत है। पुलिस ने अपनी ओर से पूरा संयम बनाए रखा है। इसलिए इन सारे सवालों का कोई मतलब नहीं है। केंद्र सरकार अभी भी तीनों कृषि कानूनों में शामिल किसी भी प्रावधान में कोई भी संशोधन करने के लिए तैयार है और किसान नेताओं को यह प्रस्ताव मान लेना चाहिए।
इस पर मेरी सलाह है: किसानों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कानूनों में संशोधन किए जाएं, और तीनों कानूनों को एक निश्चित अवधि के लिए आजमाया जाए। यदि कानून किसानों के लिए फायदेमंद साबित नहीं होते हैं, तो किसान फिर से अपना आंदोलन शुरू कर सकते हैं। आज की तारीख में जरूरी ये है कि सियासी लोग अपने फायदे के लिए किसानों के दर्द का, उनकी तकलीफ का फायदा न उठाने पाएं।
My advice to farmers: Amend farm laws, give them a try, then agitate if you are not happy
Political parties are actively working behind the scenes in the ongoing farmers’ agitation which has entered its 55th day today. A coalition of anti-Modi activists is using the farmers to promote its agenda. On Monday, there was news of a rift among farmer leaders. A farmer leader from Bharatiya Kisan Union in Haryana, Gurnam Singh Chaduni was suspended by Samyukta Kisan Morcha. There were efforts for reconciliation and by the evening, the suspension was withdrawn.
There are signs of cracks in unity among the farmer leaders that have started showing in the last 24 hours. Chaduni and another farmer leader from Madhya Pradesh, Shiv Kumar Kakkaji made scathing remarks against each other. A local media quoted Kakkaji as alleging that Chaduni had taken Rs 10 crore to topple Chief Minister Manohar Lal Khattar’s government in Haryana, but Kakkaji later denied making such allegation. Chaduni, on his part, described Kakkaji as “an RSS agent”.
Later Chaduni clarified that he had organized a meeting of 11 political parties, including Congress and AAP, at the Constitution Club in Delhi, attended by political leaders, in his personal capacity, and would not do so in future. The Samyukta Kisan Morcha issued a statement on Monday evening and said that it was not associated with the meeting of political parties called by Chaduni. The Morcha said it has set up a committee to inquire into the matter. It clarified that it will not have direct engagement with any political party, though any organization or party was free to extend support to the movement.
Non-political farmer leaders say, they scrupulously followed the norm of not allowing flags of political parties to flutter at their agitation site, nor did they allow any political leader a platform to address them, but Congress and Left leaders consistently tried to infiltrate the movement. These political parties managed to convince some of the farmer leaders that they would win only if they do not accept any offer from the government. When pictures of Chaduni sitting with Haryana Congress leaders appeared in public, other farmer leaders objected and called for the seven-member apex meeting of farm leaders, in which a resolution was passed to suspend Chaduni. It was also decided that Chaduni will not be allowed to accompany the farmers’ delegation to the tenth round of talks with the Centre. There were rumours that Chaduni had sealed a deal with Congress leaders by taking money to topple Khattar government in Haryana.
Soon after his suspension, Chaduni alleged that Kakkaji has been sent by the RSS as a mole to create rift in the farmers’ agitation and that there were hardly 100 farmers in his organization. He threatened to send a defamation notice to the newspaper which published Kakkaji’s allegation that he was offered a ticket by Congress party.
Chaduni’s ire towards Kakkaji was because the latter was heading the seven-member committee that suspended him. In the evening, Kakkaji, in a video message, denied that he ever made the remark about Chaduni taking Rs 10 crore from Congress party. It should be noted that Kakkaji was supported by another BKU leader Rakesh Tikait who said that the decision to suspend Chaduni was taken by the committee.
Haryana chief minister Manohar Lal Khattar reacted to the development saying that his allegation that Congress was behind farmers’ agitation has now been proved true, but “these black deeds will never succeed and they will not be able to topple my government. Such people will be exposed in public. Neither will my government fall, nor shall I lose my temper”. Khattar was to address a kisan mahapanchayat in Karnal last week but it was disrupted by farmers led by Chaduni.
The Congress was expecting support from Deputy CM Dushyant Chautala’s Indian National Lok Dal to topple Khattar government, but Chautala refused to play ball. On Monday, Dushyant Chautala said, that there must be no doubt that a solution will be found out to the current impasse and there was no danger to the Haryana government. “Our government will surely complete five years”, he added.
Meanwhile, on Monday, farmers carried out a rehearsal of their January 26 tractor rally near Singhu border, and said that they would take out their rally on Delhi’s Outer Ring Road. Another rehearsal of tractor rally was done on Chandigarh-Punjab border. In Ratlam, Madhya Pradesh, more than 500 tractors took part in a five km long rally. The Chief Justice of India S. A. Bobde said on Monday that the decision to allow the tractor rally rests with Delhi Police. A top level official of Delhi Police met the farmer leaders on Monday and discussed their plans.
Already, anti-national elements are active to lower India’s image taking advantage of the farmers’ agitation. Khalistani elements, in collusion with Pakistan, have promised to give rewards to those who can disrupt Republic Day Parade at Rajpath.
I have full faith in the nationalist credentials of our farmer leaders. They have full faith in the Tricolour, they are patriotic and will never join hands with anti-Indian forces. I am more worried about the rift that has developed among farm leaders. They are no more talking about farm issues, but devoting more time to speak on political matters. They are finger pointing at who owes allegiance to the Congress, to AAP, to RSS and to Akali Dal. Some are vowing to topple Khattar government and some are blindly opposed to Prime Minister Narendra Modi.
Most of the leaders and activists, who are opposed to Modi, have now come under a single umbrella. Some of them have come out in the open and others are active behind the scenes. They are least bothered to think over whether the farmer leaders’ insistence on repeal of the three farm laws is justified or not. Some of them have been saying that since most of the farmers sitting on dharna are Sikhs, the issue is now related to religious concerns. Some others say the government made a mistake by saying that many of the agitating farmers were pro-Khalistan. Some leaders say the raids on commission agents (adhatiya) and the NIA interrogation of several farmer leaders were not correct steps.
But nobody is willing to acknowledge that it was Prime Minister Narendra Modi, who himself tried his best to remove all misgivings from the minds of farmers. No senior BJP leader levelled the allegation that the farmer leaders were pro-Khalistan. On the contrary, Defence Minister Rajnath Singh has said that it would be wrong to describe the farmer leaders as Khalistani. The police, on its part, maintained maximum restraint. All these questions are now meaningless. The Centre is still ready to amend any of the provisions mentioned in the three farm laws and the farm leaders must accept this offer.
My take on this is: let there be amendments to the laws to assuage the feelings of farmers, and give the three laws a try for a certain period. If the laws do not prove beneficial for the farmers, there is always the option for farmers to resume agitation. Today, it is essential that no political leader must be allowed to gain undue advantage from the pains and miseries of the farmers.
किसानों को सियासी दलों का मोहरा बनने से बचना चाहिए
दिल्ली में शुक्रवार को केंद्र और किसान नेताओं के बीच 5 घंटे तक चली बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि किसान नेता कृषि कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहे, जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उनसे इन कानूनों के एक-एक बिंदु पर चर्चा करने की बात कही थी।
यह मीटिंग तक शुरू होते ही खत्म हो गई जब केंद्र ने किसान नेताओं से उन प्रावधानों के बारे में पूछा जिनपर उन्हें आपत्ति थी। इसके जवाब में किसान नेताओं ने कहा कि वे कानून के प्रावधानों पर बात नहीं करेंगे और बल्कि उनकी मांग है कि तीनों कानूनों को रद्द किया जाए।
केंद्र सरकार के मंत्रियों ने किसान नेताओं से पूछा कि आपकी आशंका क्या है, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार ‘हां’ या ‘ना’ में बता दे कि वह कानून वापस ले रही है या नहीं। तोमर ने ये भी कहा कि अगर किसान नेताओं को कानून की बारीकियों पर बात नहीं करनी तो किसान सगंठन अपने एक्सपर्ट्स की कमेटी बना दें, इसके जरिए भी बात हो सकती है। लेकिन किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि न तो वे कोई कमेटी बनाएंगे, न ही सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से कोई बात करेंगे।
तोमर ने किसान नेताओं को समझाने की बहुत कोशिश की, वे न तो सुनने को तैयार थे, न समझने को। वे तीनों कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर अड़े रहे। फिर ये मीटिंग पांच घंटे तक कैसे खिंच गई? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ किसान संगठनों के नेताओं ने मांग की कि हरियाणा और पंजाब में जिन किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं, वे वापस लिए जाएं। वहीं, कुछ किसान संगठनों ने आढ़तियों के खिलाफ चल रही ईडी की जांच को रोकने की मांग की।
किसानों ने साफ कह दिया कि वे सरकार से बात करने आए हैं और आगे भी आएंगे, लेकिन बात तभी बनेगी जब सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले लेगी। अब अगले दौर की बातचीत 19 जनवरी को होगी और नरेंद्र सिंह तोमर को अभी भी उम्मीद है कि अगले राउंड में बात बन जाएगी। तोमर ने कहा कि सरकार को कड़ाके की ठंड में खुले में बैठे किसानों और उनके परिवारों की चिंता है।
नरेन्द्र सिंह तोमर बहुत पुराने नेता हैं, और बतौर किसान उनकी जड़ें मध्य प्रदेश के खेतिहर समुदाय से जुड़ी हुई हैं। वह अन्नदाता की मुश्किलें भी जानते हैं और किसानों के मुद्दे पर हो रही सियासत को भी समझते हैं। यही वजह है कि वह बार-बार काम बनने की उम्मीद जताते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि किसान संगठनों के कुछ नेता ये तय कर चुके हैं कि आंदोलन 26 जनवरी तक चले और इसके बाद ही कुछ रास्ता निकले। इसका अंदाजा भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की बात सुनकर हुआ जब उन्होंने कहा कि बात होती रहेगी और मीटिंग में भी आते रहेंगे, लेकिन सरकार को कृषि कानून वापस लेने पड़ेंगे और किसान गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे।
किसान संगठन पूरी ताकत के साथ ट्रैक्टर रैली की तैयारी कर रहे हैं और इसमें हिस्सा लेने के लिए पंजाब और हरियाणा से सैकड़ों ट्रैक्टर दिल्ली की तरफ रवाना हो चुके हैं। 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा लेने के लिए हरियाणा के फतेहाबाद-सिरसा से सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टरों का काफिला दिल्ली के लिए रवाना हुआ। सड़क पर चल रहे ट्रैक्टर्स का यह काफिला लगभग 2 किलोमीटर लंबा है। इस काफिले में तमाम ऐसे ट्रैक्टर्स भी शामिल हैं जिन्हें किसानों ने खासतौर से 26 जनवरी के की ट्रैक्टर रैली के लिए खरीदा गया है।
किसान दिल्ली के बाहरी इलाकों में बीते 51 दिनों से धरने पर बैठे हैं। अब तक लोगों की सहानुभूति किसानों के साथ रही है और इसकी एक बड़ी वजह ये है कि कड़ाके की सर्दी का सामना कर रहे किसानों का प्रदर्शन शान्तिपूर्ण है। दूसरी बात ये है कि अब तक किसानों ने नेताओं और राजनीतिक दलों को अपने आंदोलन से दूर रखा है। लेकिन अगर किसानों को भड़काने की बात हुई और उनके आंदोलन में सियासी लोग घुस गए, तो जाहिर है लोगों का सपोर्ट कम हो जाएगा।
गणतंत्र दिवस सेना के हमारे बहादुर अफसरों, जवानों और शहीदों को याद करने का दिन है। यह हमारे शूरवीरों की वीरता का, उनके शौर्य का पर्व है। यदि गणतंत्र दिवस समारोह में बाधा डालने की कोशिश की गई तो इससे सारे देश की बदनामी होगी और दुनिया में भारत का नाम खराब होगा। आंदोलनकारी किसान अपने प्रति लोगों की सहानुभूति और प्यार खो देंगे। मैं अभी भी हमारे किसान नेताओं से अपील करता हूं कि वे एक बार जरूर विचार करें कि उन्हें 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालना चाहिए या नहीं। हालांकि ऐसा मुश्किल ही लग रहा है क्योंकि तमाम सियासी ताकतें किसानों को भड़काने में लगी हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को थकाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल ने कहा कि बीजेपी सरकार को तीन कृषि कानूनों को खत्म करना ही होगा। राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी 4-5 उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा रहे हैं और वे ही देश भी चला रहे हैं। उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि किस तरह कांग्रेस ने भट्टा पारसौल आंदोलन के बाद एनडीए सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से पीछे हटने के लिए मजबूर किया था।
अब इस बात को सब समझते हैं कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट, ये दोनों सियासी दल अपने फायदे के लिए किसानो के आंदोलन का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस और कम्युनिस्ट, दोनों ही पार्टियां किसानों के जरिए अपनी बंजर हो चुकी जमीन पर वोटों की फसल उगाना चाहती हैं। उनकी ख्वाहिश है कि राजनीतिक रूप से बंजर उनकी जमीन पर मेहनत किसानों की लगे, खून-पसीना किसान का बहे और उनके लिए बंपर सियासी फसल पैदा हो।
अगर राहुल गांधी को वाकई में किसानों की चिंता होती तो वह दिल्ली की कड़कड़ाती सर्दी में सड़क पर ठिठुर रहे किसानों को उनके हाल पर छोड़कर नए साल की छुट्टी मनाने इटली न जाते। अगर राहुल गांधी को किसानों की फिक्र होती तो विदेश में न्यू इयर मनाने की बजाए बारिश में सड़क पर भीग रहे किसानों के पास पहुंचते।
क्या ये बात सही नहीं है कि पंजाब के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने कृषि कानूनों में इसी तरह के बदलावों का वादा किया था जैसा कि मोदी सरकार ने किया है? क्या ये सही नहीं है कि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा के इलेक्शन में अपने मैनिफेस्टो में APMC ऐक्ट में बदलाव करके कृषि क्षेत्र में प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देने का, और किसानों को कहीं भी और किसी को भी फसल बेचेने का हक देने का वादा किया था? अब अगर यही बदलाव नरेंद्र मोदी की सरकार ने कर दिए कांग्रेस नेता उन्हें ‘किसानों का दुश्मन’ और ‘अंबानी और अडानी का दोस्त’ करार दे रहे हैं। इसे कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है?
मुझे लगता है कि किसान भाइयों को विपक्षी दलों की सियासत का मोहरा नहीं बनना चाहिए? उन्हें अपना आंदोलन चलाने का और अपनी आवाज उठाने का पूरा हक है, लेकिन सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट की बात भी सुननी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है कि रास्ता बातचीत से ही निकलेगा, क्योंकि जब बातचीत के रास्ते बंद होते हैं तो दोनों पक्षों में दूरियां बढ़ती जाती हैं और फिर रास्ते अलग हो जाते हैं।
Farmers must not become pawns in the hands of political parties
The five-hour-long meeting between the Centre and farmer leaders in Delhi on Friday did not yield any breakthrough as the farmers’ representatives stuck to their single demand for scrapping of the three new farm laws, while the Agriculture Minister Narendra Singh Tomar offered clause-by-clause discussion on these legislations.
The meeting ended almost as soon as it began when the Centre asked farmer leaders to point out the clauses on which they had objections. The farmers’ representatives said they would not discuss the clauses and wanted the three laws to be scrapped.
The Union ministers asked what were their apprehensions, and the farmer leaders replied that the Centre must tell a clear-cut ‘yes’ or ‘no’ to their demand for repeal. Tomar even asked the farmer leaders to set up their own experts’ committee for discussing the legal clauses, but the farmer leaders said they would neither form a committee nor would appear before the experts’ committee set up by the Supreme Court.
Tomar tried his best to persuade the farmer leaders, but the later stuck to their rigid stand for repeal of the three laws. Then why did the talks stretch for five hours? It was because some of the farmer leaders demanded that FIRs filed against them in Haryana and Punjab be withdrawn, while some others demanded that the ED probe against adhatiyas (commission agents) be stopped.
The farmer leaders told the Centre that they would continue to come to the talks but any breakthrough can happen only if the Centre agrees to scrap all the three laws. The next round of talks will take place on January 19 and Tomar was still hopeful of a breakthrough. He said, the government was worried about farmers and their families sitting out in the biting cold in the open.
Tomar is an astute politician and an agriculturist who has his roots among the farming community in Madhya Pradesh. He knows the problems of ‘annadatas’(food providers). He is still hopeful of a breakthrough, but I think most of the farm leaders want the agitation to continue till January 26. Bharatiya Kisan Union leader Rakesh Tikait let the cat out of the bag when he said that the leaders would continue to attend talks, but the Centre must withdraw the laws and the farmers will take out a tractor rally on Republic Day.
Already preparations have started and hundreds of tractors have started moving towards Delhi from Punjab and Haryana to join the rally. A convoy of several hundred tractors started on its journey to Delhi from Haryana’s Fatehabad-Sirsa. The convoy was almost two kilometres long. Several of the tractors taking part were those which were bought by farmers for the January 26 tractor rally.
The farmers are sitting on dharna on Delhi’s outskirts for the last 51 days. They have gained sympathy among the common masses, the main reason being the dharna has so far been peaceful and the squatters have been braving the cold winter. Secondly, till now, the farmers have kept politicians and political parties at arm’s length from their agitation. But if efforts are made to incite farmers and if political activists infiltrate their ranks, the agitating farmers will lose people’s sympathy.
Republic Day is a day for remembering our brave army officers, jawans and martyrs. It is a day for celebrating the gallantry of our heroes and if any effort is made to disrupt the Republic Day celebrations, it will lower India’s prestige in the comity of nations. The agitating farmers will then lose the love and sympathy of the people. I still appeal to our farmer leaders to rethink whether they should bring out a tractor march on January 26 or not. This seems to be a tall order because political parties are already instigating the farmers.
On Friday, Congress leader Rahul Gandhi joined his party workers to demand repeal of the three farm laws. He alleged that the Prime Minister Narendra Modi was trying to tire out the farmers and asserted that the BJP government will have to scrap the three farm laws. Rahul Gandhi also alleged that Prime Minister Modi was benefiting four or five businessmen and they were running the country. He reminded Modi of how the Congress forced the NDA government to back out from amending land acquisition law after the Bhatta Parsol agitation.
It is no more a secret that the Congress and the Left parties have been trying to incite the agitating farmers. Both the Congress and Left are trying to harvest political crops on their fallow land as their mass base is shrinking fast. They want the agitating farmers to toil on their politically unfertile land and hand over a bumper political crop to them.
Had Rahul Gandhi been really worried about the demands of farmers, he would not have gone vacationing to Italy during New Year holidays and left the farmers to fend for themselves in the open in Delhi’s biting winter.
Is it not a fact that the Congress had promised the same laws during assembly polls that Modi government has enacted ? Is it not a fact that the Congress had promised private sector partnership in agriculture, right to sell their crops anywhere in India and amendment of APMC Act in its 2019 Lok Sabha poll manifesto? Now that Modi government has implemented those promises, the Congress leaders are describing him as ‘enemies of farmers’ and ‘friends of Ambanis and Adanis’. How can this be justified?
Farmers should not become political pawns in the hands of opposition parties. They have the right to agitate and let their voices be heard, but all parties must respect the Supreme Court’s order. Even the apex court has said that discussions are the only way out and if talks are discontinued, the gap between the two camps will become wider.
कोरोना वायरस की उत्पत्ति के राज़ पर चीन क्यों डाल रहा है पर्दा?
कोरोना वायरस की उत्पत्ति के पीछे क्या राज़ है जिसे चीन छिपाने की कोशिश कर रहा है? पूरी दुनिया जानना चाहती है कि क्या कोरोना वायरस वुहान की हजारों साल पुरानी गुफाओं से निकला या इस वायरस को चीन की लैब में तैयार किया गया। पूरे विश्व के सामने सवाल है कि क्या ये वायरस चीन के चमगादड़ों ने फैलाया या फिर कोरोना वुहान के मार्केट से निकलकर पूरी दुनिया में फैला?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिसर्चर्स की एक ग्लोबल टीम इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए गुरुवार को चीन पहुंची। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, रूस, नीदरलैंड, कतर और वियतनाम के रिसर्चर्स की दस सदस्यीय टीम को काफी जद्दोजहद के बाद शी जिंनपिंग की सरकार ने चीन में घुसने की इजाजत दी थी। सिंगापुर के रास्ते चीन के वुहान पहुंचते ही डब्ल्यूएचओ की इस टीम को क्वारंटीन कर दिया गया। इनका स्वैब टेस्ट और एंटीबॉडी टेस्ट कराया गया।
अब अगले 14 दिन तक डब्ल्यूएचओ की टीम के सारे सदस्य अपने होटल के कमरों में कैद रहेंगे। अब ये लोग वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चीनी एक्सपर्ट्स के साथ काम करेंगे। डब्ल्यूएचओ की टीम ये पता लगाना चाहती है कि कोरोना वायरस का ओरिजिन क्या है, ये वायरस कहां से पैदा हुआ? वुहान के जिस मार्केट से कोरोना वायरस के फैलने का शक है, अब उस मार्केट के हालात क्या हैं? अगर कोरोना वायरस वुहान की हजारों साल पुरानी गुफाओं से निकला तो अब इन गुफाओं में क्या हो रहा है? अभी तक यह तय नहीं है कि टीम के सदस्यों को गुफाओं में या वुहान के मार्केट या फिर वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब जाने की इजाजत दी जाएगी, जहां से वायरस के पनपने और फैलने की आशंका जताई जा रही है।
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के पास कोरोना वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस का एक विशाल संग्रह है जो 2003 SARS (बर्ड फ्लू) महामारी के मद्देनजर बनाया गया था। यह महामारी उस वक्त चीन से एशिया के अन्य देशों में फैली थी। डब्ल्यूएचओ की टीम इस लैब की लॉगबुक और डेटा देखना चाहती है। इसके साथ ही सीनियर और जूनियर चाइनीज रिसर्चर्स से बात करके सैंपल कलेक्शन, स्टोरेज और एनालिसिस के लिए इस्तेमाल होने वाले सेफ्टी प्रोटोकॉल के बारे में पता करना चाहती है।
डब्ल्यूएचओ टीम ऐसे वक्त में चीन पहुंची है जब वहां बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस के ताजा मामले आने पर कई शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया है। करीब 2.2 करोड़ लोगों को लॉकडाउन के कारण घरों के अंदर रहने के लिए कहा गया है। 1.7 करोड़ की जनसंख्या वाले 2 शहरों शिंजुआंग और जिंगताई में लॉकडाउन लगाया गया है जबकि लैंगफैंग (बीजिंग के पास) और वुहान से सटे हेबेई प्रांत में युद्धकालीन आपातकाल घोषित किया गया है। पूर्वोत्तर चीन के हेइलोंगजियांग प्रांत को भी एक ‘आपातकालीन राज्य’ घोषित किया गया है। ट्रांसपोर्ट के सभी साधनों बस और ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है। साथ ही शादियां रद्द कर दी गई है और अंतिम संस्कार को लेकर भी पाबंदिया लगाई गई हैं। चीन ने गुरुवार को आठ महीने के बाद अपने यहां कोरोना वायरस से पहली मौत की सूचना दी।
डब्ल्यूएचओ की टीम जब वुहान एयरपोर्ट पर उतरी तो उसका पीपीई किट पहने चीनी अधिकारियों ने स्वागत किया। इस टीम सभी सदस्य पहले ही सिंगापुर में कोविड टेस्ट करा चुके थे और उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी। टीम के सदस्यों को चीनी अधिकारियों ने नए सिरे से स्वैब टेस्ट कराने के लिए कहा। चीन के अधिकारियों ने कहा कि वे किसी दूसरे देश की टेस्ट रिपोर्ट को नहीं मानते हैं। साथ ही ये भी कहा कि बाहर से चीन आनेवालों को 14 दिनों के क्वारंटीन में रहना होगा। डब्ल्यूएचओ टीम के सदस्यों को बताया गया कि चीन में कोरोना की स्थिति खराब हो गई है और कई शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया है।
डब्ल्यूएचओ टीम का नेतृत्व विश्व प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट डॉ. पीटर बेन एम्बरेक कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘टीम दो हफ्ते के बाद ही अहम जगहों का दौरा करेगी और चीनी रिसर्चर्स से मिल पाएगी। यह आइडिया कोरोना वायरस को लेकर उन स्टडीज को आगे बढ़ाने के लिए था, जो पहले से ही डिजाइन किए गए थे। इन्हें कुछ महीने पहले तय कर लिया गया था ताकि हमें इसकी बेहतर समझ हो कि आखिर हुआ क्या है।’
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको डॉ. एम्ब्रेक का बयान दिखाया जिसमें वह कह रहे हैंः ‘हम जानते हैं कि कोरोना वायरस शायद चमगादड़ से आया। फिर दिसंबर 2019 में पता चला कि वुहान में ये इंसानों में फैल गया। लेकिन इन दोनों घटना के बीच के वक्त में क्या हुआ? कितने दूसरे जानवरों में ये पाया गया? कितना पाया गया? इन सब चीजों की डिटेल आना बाकी है। इसलिए हमें नहीं पता कि इस टाइम गैप में क्या-क्या हुआ। यही वजह है कि हम लोग इन सबकी जांच कर रहे हैं।’
डॉ एम्ब्रेक ने कहा, ‘हमारी टीम में महामारी से डील करनेवाले एक्सपर्ट्स हैं। कई और मेडिकल डॉक्टर्स मौजूद हैं। जानवरों का इलाज करने वाले डॉक्टर्स भी टीम का हिस्सा हैं और वायरस पर काम करने वाले तो मौजूद हैं ही। चूंकि ये सब अपनी फील्ड में एक्सपर्ट है और इन्हें अपनी फील्ड की काफी जानकारी है, इसलिए हम जो जांच करनेवाले हैं उसमें ये काफी मददगार साबित रहेंगे। वैसे एक बात मैं कह दूं कि मुझे नहीं लगता कि इस पहले मिशन के बाद ही हमें सारे जानकारी मिल जाएगी। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इस तरह के और मिशन, और दौरे करेंगे। काफी और रिसर्च की जरूरत है।’
डब्ल्यूएचओ के डॉक्टर और वैज्ञानिक बड़ी उम्मीद के साथ वुहान गए थे लेकिन अब वे चीन की चाल में फंस गए हैं। शुरुआत में चीन ने इस बात से साफ इनकार कर दिया था कि वायरस वुहान से उत्पन्न हुआ है। उसने इटली पर दोष मढ़ने की कोशिश की थी और सवाल उठने पर चीन ने अपने देश में बाहरी लोगों के आगमन पर प्रतिबंध लगा दिया। चीन ने तब यह दावा करना शुरू कर दिया था कि उसने महामारी को नियंत्रित कर लिया है, लेकिन उसने अन्य देशों को चीन में जाने और जांच करने की अनुमति नहीं दी थी। चीन ने एक वर्ष से ज्यादा अंतराल के बाद जांच की इजाजत दी है। इसके बाद अब उसने डब्ल्यूएचओ टीम को क्वारंटीन कर दिया है। चीन बार-बार अपना रुख बदल रहा है।
‘आज की बात’ शो में हमने दिखाया कि जब डब्ल्यूएचओ की टीम वुहान में एयरपोर्ट से बाहर निकल रही थी तो जहां से जहां से इस टीम को ले जाया गया उस पूरे कॉरिडोर को प्लास्टिक शीट्स से कवर किया गया था। एयरपोर्ट का पूरा स्टॉफ, सिक्युरिटी से लेकर बस के ड्राइवर तक सभी पीपीई किट में थे। ये दिखाने की कोशिश हो रही थी जैसे चीन के वुहान में वायरस का खतरा डब्ल्यूएचओ की टीम से ही है। और ये उस वुहान में हो रहा था जिसे चीन की सरकार कोरोना फ्री घोषित कर चुकी थी। लेकिन अचानक फिर वुहान में लोगों को घरों में कैद कर दिया गया।
मुझे इस बात को लेकर हैरानी हुई है क्योंकि कुछ दिन पहले यहां सब कुछ सामान्य था। सच तो ये है कि वुहान के कई इलाके ऐसे हैं जहां लोग अब भी घूम रहे हैं। किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। दो हफ्ते पहले नए साल के मौके पर शी जिंनपिंग की सरकार ने खुद चीन में नए साल के जश्न की तस्वीरें जारी की थी। जब पूरी दुनिया कोरोना प्रोटोकॉल के साथ नए साल का स्वागत कर रही थी तब चीन में लोग जमकर जश्न मना रहे थे। चीन ने दुनिया को ये दिखाने की कोशिश की थी कि उसने कोरोना पर कंट्रोल पा लिया है। लेकिन जब डब्ल्यूएचओ की टीम वुहान पहुंची तो चीन की सरकार ने लॉकडाउन का एलान कर दिया।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चीन ने पिछले साल मई से कोरोना के नए, सक्रिय और मौत के मामलों के बारे में आंकड़े देना बंद कर दिया था। उस समय चीन ने दावा किया था कि कोरोना से केवल 4,000 लोगों की मौत हुई। इसके बाद से चीन के आंकड़ों में कोई बदलाव नहीं हुआ। लेकिन गुरुवार को जब डब्ल्यूएचओ की टीम पहुंची तो चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने दुनिया को बताने के लिए आंकड़े जारी किए। उन्होंने बताया कि चीन में कोरोना के 150 नए मामले सामने आए हैं और एक व्यक्ति की मौत हो गई है। चीन ने दुनिया को बताया कि उसने कई शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया है। कोई भी कोरोना के इन आंकड़ों के बारे में सही तथ्य नहीं जानता है।
असल में वायरस हो या वैक्सीन, चीन ने दुनिया को कभी भी सच बताने की कोशिश नहीं की। चीन ने ना इस बात की परवाह की कि वो दुनिया का विश्वास खो देगा। असल में सच पर पर्दा डालना चीन की आदत है। कोई भी चीन के दीवार के पार जाकर असलियत का पता नहीं लगा सकता। चीन ने कभी इस बात की भी परवाह नहीं की कि कोरोना के वायरस से पूरी दुनिया किस तरह परेशान हुई।
जिस तरह से चीन ने डब्ल्यूएचओ की टीम पर पाबंदियां लगाई उससे साफ है चीन कोरोना वायरस के ओरिजिन (उत्पत्ति) पर पर्दा डालना चाहता है। वैसे तो पूरी दुनिया जानती है और मानती है कि ये वायरस चीन से निकला और पूरी दुनिया में फैल गया। सवाल तो ये है कि ये वायरस चीन की गुफाओं से निकला या फिर लैब में बनाकर जानबूझ कर पूरी दुनिया में फैलाया गया? डब्ल्यूएचओ की जो टीम सबूत जुटाने वुहान पहुंची है उसे क्वारंटीन करके और वुहान में लॉकडाउन लगाकर चीन क्या छिपाना चाहता है? सवाल ये भी है कि जिस लैब इंटर्न ने ये बताया था कि ये वायरस चीन से निकला वो गायब क्यों हो गई? सवाल ये भी है कि जब इटली में लोगों ने दरियादिली दिखाते हुए चीनी टूरिस्ट को गले लगाया था तो उसके बाद ही इटली का इतना बुरा हाल क्यों हुआ? सवाल ये भी है कि ट्रंप ने कोरोना को चाइनीज वायरस क्यों कहा? सवाल तो ये भी है कि जिन लोगों ने इस वायरस की रिपोर्टिंग की वो कुछ दिनों के लिए गायब क्यों हो गए?
अच्छा तो ये होगा कि चीन डब्ल्यूएचओ की टीम को इस वैक्सीन के ओरजिन की तहकीकात करने दे। गुफाओं में जाने दे, वुहान मार्केट और लैब में जाने दे। लेकिन जो लोग चीन को जानते और समझते हैं उनका कहना है कि चीन से सच बाहर निकलेगा इसकी ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए क्योंकि चीन की दीवार बहुत मोटी है।
How China has drawn the Bamboo Curtain over the mystery behind the origin of Coronavirus
What is the mystery behind the origin of Coronavirus that China is trying to hide? The entire world wants to know whether the virus originated from the ancient caves near Wuhan or whether it was prepared in a Chinese lab. People across the world want to know whether the virus originated from a wet market in Wuhan or was it spread by bats that flew out from the caves.
A global team of researchers from the World Health Organization landed in Wuhan from Singapore on Thursday to probe the origin of the virus. The visit of the ten-member team from the US, Australia, Germany, Japan, Britain, Russia, the Netherlands, Qatar and Vietnam, was approved by Chinese government after months of diplomatic wrangling.
The team was immediately put under 14-day quarantine and the members underwent throat swab test and an antibody test. They will now work with Chinese experts via videoconferencing. The team members want to explore whether the virus was passed on to traders in the Huanan seafood market by wildlife poachers who may have visited the caves. It was in this seafood market where the first big cluster of Covid infection cases was noticed. As of this moment, there is no certainty whether the WHO team will be allowed to visit the caves or the seafood market or Wuhan Institute of Virology lab from where the virus was suspected to have originated.
The Wuhan Institute of Virology has a vast archive of genetic sequences of Coronaviruses that was created in the wake of 2003 SARS (bird flu) epidemic which had then spread from China to other countries of Asia. The WHO team wants to access lab logbooks and data, speak to both senior and junior Chinese researchers to find out about safety protocols that are used for sample collection, storage and analysis.
The WHO team’s visit to China comes at a time when nearly 22 million people in China have been asked to stay inside homes due to lockdowns enforced in several cities following fresh outbreak of Covid cases. Lockdown has been imposed in two cities having 17 million population, Shijuazhang and Xingtai, Langfang (near Beijing) and Heibei province adjoining Wuhan, where wartime emergency has been declared. Heilongjiang province in northeastern China has also been declared a an “emergency state”. All bus and train transport, weddings and funerals have been cancelled. On Thursday, China reported its first Covid death after a gap of eight months.
The WHO team that landed at Wuhan airport was welcomed by Chinese officials wearing hazmat suits (PPE kits). All the team members, who had already obtained negative Covid test reports in Singapore, were asked to undergo fresh throat swab tests by Chinese authorities who said they do not recognize Covid reports issued by other countries, and a 14-day quarantine was a must for all outsiders arriving in China. The WHO team members were told that the Covid situation has deteriorated in China and lockdowns have been imposed in many cities.
The WHO team is led by Dr Peter Ben Embarek, a world renowned virologist. He said, the team will be able to move around, visit important sites and meet Chinese researchers only after two weeks. “The idea was to advance the number of studies that were already designed and decided upon some months ago to give us a better understanding of what happened”, he added.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed Dr Embarek saying, “We have been told that the virus originated from bats and it spread to humans in December, 2019. We need to know what happened between this period. Details are yet to come about to which other animals did this virus spread. We don’t know what happened during this time gap. We are probing all this. We will probe what happened at the wet market in Wuhan and what were the conditions prior to that.”
Dr Embarek said, “In our team, we have experts who know how to deal with epidemics, there are doctors who can treat animals, and virologists. Since they are experts in their domains, it will help us in the probe. Let me say it now, we do not expect to reach conclusions in our first visit, this will require more such missions in the coming days, and need more research. Then only we can say anything about the origin of the virus.”
The WHO doctors and scientists had gone to Wuhan with high hopes but they have been trapped by China. In the beginning, China had flatly denied that the virus originated from Wuhan, it tried to shift the blame on Italy. When questions were raised about the origin, China banned arrivals of outsiders into its country. China then started claiming that it has controlled the pandemic, but it did not allow other countries to go to China and investigate. China has given the permission after a gap of more than a year, and now it has quarantined the WHO team of experts, citing fresh outbreak of pandemic and lockdowns. China is changing its stance like a lizard.
In ‘Aaj Ki Baat’ show, we showed how Chinese authorities covered the entire stretch of road where the WHO doctors boarded the buses from the airport with large plastic sheets, the entire airport staff, bus drivers and security personnel were wearing PPE kits, to show as if it was expecting virus to spread from the WHO team. And that too, in Wuhan, which China had declared Corona-free. People in Wuhan have been asked to stay in their homes.
It is surprising that life in Wuhan was normal only a few days ago and there are many localities where people still move freely. Only two weeks ago, Chinese President Xi Jinping had released videos of people celebrating the New Year in China, at a time when the rest of the world was having subdued celebrations with people staying indoors. But when the WHO team came to Wuhan, China quickly drew the Bamboo Curtain by imposing lockdown in several cities to show that there was fresh outbreak of the epidemic.
You will be surprised to know China had stopped giving statistics about fresh and active Covid cases and fatalities since May last year. At that time, China had claimed that only 4,000 people died of Covid, and from then onwards there was no change in the death toll. But on Thursday, when the WHO team arrived, China’s National Health Commission issued figures to tell the world that there has been 150 fresh Covid cases and one person has died. China told the world that it has imposed lockdown in many cities and has asked nearly 40 million people to stay at home.
Nobody knows the true facts about these Covid statistics, only China can tell, but the truth may never come out.
From this entire drama, one thing is crystal clear: China wants to fool the world and is trying to put a curtain over the real cause of origin of Coronavirus. The whole world knows that the Coronavirus originated from China and it caused worldwide pandemic.
The moot question is whether the virus originated from ancient caves or was it developed in a Chinese lab and then deliberately spread across the world. What does China want to hide from the WHO team of scientists that has arrived in Wuhan? Why did the Chinese intern, who broke to the world the story of the virus spreading from the lab, vanish? Why Italy faced the brutal attack of the first wave of pandemic, when Italians graciously hugged Chinese tourists who were visiting Italy? Why did the US President Donald Trump deliberately called Coronavirus as ‘Chinese virus’? Why did those Chinese individuals vanish when they started reporting on the origin and spread of Coronavirus?
The only way out for China to show its bonafide intentions will be to allow the WHO team to investigate independently, without any fetters. China must allow the WHO team to go to the Wuhan caves, the seafood market and the virology lab, without any restraint. People who know deeply about how the Chinese government functions, say there is little hope of the truth emerging from China, because the Great Chinese Wall is the thickest.
कैसे मोदी ने एक झटके में HAL पर राहुल के आरोपों को निराधार साबित किया
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार ने बहुत बड़ा फैसला किया है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी तकनीकों से बने 83 तेजस विमानों की खरीद को बुधवार को मंजूरी दे दी। चौथी पीढ़ी के इन लड़ाकू विमानों को भारतीय वायुसेना के लिए खरीदा जाएगा। 46,898 करोड़ रुपये का यह अबतक का सबसे बड़ा स्वदेशी सैन्य सौदा है। सिंगल इंजन वाले तेजस मार्क 1-ए फाइटर जेट्स की डिलीवरी तीन साल में शुरू होगी।
सरकार के इस आदेश से स्वदेशी सैन्य उत्पादन क्षेत्र को एक बड़ा बढ़ावा मिलेगा। इस ऑर्डर को पूरा करने के लिए एचएएल करीब 500 अन्य कंपनियों के साथ काम कर रही है। इस फैसले से भारतीय वायु सेना में फाइटर स्क्वाड्रन की संख्या भी बढ़ेगी। इस सौदे में भारतीय वायुसेना को 10 तेजस ट्रेनर विमानों की डिलीवरी भी शामिल है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सौदे का ऐलान करते हुए कहा-‘यह सौदा डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक गेम-चेंजर होगा। यह घरेलू एयरोस्पेस के इकोसिस्टम को बदलने के लिए एक उत्प्रेरक के तौर पर काम करेगा। एलसीए तेजस आने वाले समय में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बनने जा रहा है।’
तेजस का नया मार्क 1-ए वर्ज़न मौजूदा तेजस से 43 मामलों में बेहतर होगा। भारतीय वायुसेना की तरफ से एचएएल को पहले दिए गए 40 तेजस मार्क-1 के ऑर्डर की तुलना में इस नए वर्जन में 43 सुधार किए गए हैं। इसमें सबसे अहम चीज जो जोड़ा गया है वो है इसका आधुनिक एईएसए रडार। मौजूदा यांत्रिक रूप से संचालित रडार को हटाकर एईएसए रडार लगाया गया है जो कि बिल्कुल नया इल्केट्रॉनिक वॉरफेयर स्यूट होगा। यह दुश्मन के रडार और मिसाइलों को जाम करने की क्षमता से लैस होगा। इसके साथ ही हवा से हवा में ईंधन भरने की सुविधा, 80 किलोमीटर तक मार करनेवाली बीवीआर ( Beyond Visual Range) मिसाइल सिस्टम तेजस के नए वर्जन की खूबी होगी। यह लड़ाकू विमान एक हजार किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति तक उड़ान भर सकता है और 5,000 किलोग्राम से ज्यादा बम और मिसाइल ले जा सकता है। यह चौथी पीढ़ी के फाइटर जेट्स में सबसे छोटा और हल्का है।
बुधवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने अपने डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद की एक रिपोर्ट दिखाई। मनीष ने बेंगलुरु में एचएएल की उस यूनिट का दौरा किया जहां तेजस लड़ाकू विमानों का निर्माण किया जा रहा है। एचएएल के चीफ टेस्ट पायलट ने बताया कि यह चौथी पीढ़ी की सीरीज में सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों में से एक है। यह दुनिया के किसी भी फाइटर जेट से किसी मुकाबले में कम नहीं होगा। तेजस का नया मार्क 1-ए इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट से लैस होगा। तेजस प्रोजेक्ट के जनरल मैनेजर पी जयदेवा ने हमारे डिफेंस एडिटर को बताया कि तेजस के मार्क1-ए वर्ज़न के बाद तेजस मार्क-2 का इंतज़ार होगा। इसमें ताकतवर इंजन, ज़्यादा बम ले जाने की क्षमता होगी और ये आधुनिक रडार और सेंसर होंगे। तेजस मार्क-2 का वजन 17 टन होगा जबकि मौजूदा तेजस विमान का वजन 12 टन है।
मौजूदा समय में भारतीय वायु सेना के पास केवल 30 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं। प्रत्येक स्क्वाड्रन में 16 से 18 लड़ाकू विमान हैं, लेकिन सीमा पर दोतरफा खतरों को देखते हुए जरूरत 42 स्क्वाड्रन की है। इस नई खरीद के साथ ही भारतीय वायुसेना में तेजस लड़ाकू विमानों की संख्या बढ़कर 123 हो जाएगी। फिलहाल वायुसेना में 20 तेजस फाइटर जेट हैं और 20 फाइटर जेट बनाने का काम चल रहा है।
वैसे आपको बता दूं कि तेजस बनाने की प्रक्रिया कोई हाल के दिनों में शुरू नहीं हुई है। पिछले 37 वर्षों के लंबे और जद्दोजहद भरे इंतजार के बाद तेजस की इतनी बड़ी खरीद को मंजूरी मिली है। केंद्र सरकार ने अगस्त, 1983 में 560 करोड़ रुपये के शुरुआती निवेश के साथ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) परियोजना को मंजूरी दे दी थी। यह फैसला पुराने मिग 21 विमानों को बदलने के लिए लिया गया था। 18 साल बाद वर्ष 2001 में तेजस के पहले प्रोटटाइप विमान ने उड़ान भरी थी और इसके 12 साल बाद वर्ष 2013 में सिंगल इंजन तेजस को शुरुआती ऑपरेशनल क्लीयरेंस मिला था।
भारतीय वायु सेना को प्रोजेक्ट शुरू होने के 32 साल बाद जनवरी 2015 में पहला तेजस लड़ाकू विमान मिला। केवल दो विमानों के साथ वायुसेना ने अपनी पहली तेजस स्क्वाड्रन बनाई। फरवरी 2019 में तेजस को फाइनल ऑपरेशनल मंजूरी मिल गई और पिछले साल मई में भारतीय वायुसेना ने दूसरी तेजस स्क्वाड्रन बनाई। भारतीय वायुसेना में तेजस के 83 विमानों को शामिल करने के बाद अब एचएएल पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट जिसे एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) कहा जाता है, को डेवलप करने के लिए तैयार है। भारतीय वायु सेना अपने बेड़े में कम से कम 126 ऐसे स्टील्थ फाइटर जेट्स चाहती है।
एचएएल ऐसे एयरक्राफ्ट्स बनाएगा जो दुनिया में किसी भी आधुनिक एयरक्राफ्ट्स का मुकाबला कर सकते हैं, ये एक बड़ा कदम है और इस पर हर भारतवासी को गर्व होगा। क्योंकि ये आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक बड़ा कदम है। लेकिन मुझे राहुल गांधी की बातें याद आ गईं। राहुल गांधी ने तो पार्लियामेंट में खड़े होकर जोर-जोर से कहा था कि नरेन्द्र मोदी एचएएल को खत्म करना चाहते हैं। वो सारे डिफेंस के ऑर्डर विदेशी कंपनियों को देना चाहते हैं। एचएएल बंद हो जाएगी और इसमें काम करनेवाले लोग बेरोजगार हो जाएंगे। उस समय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहुल गांधी की एक-एक बात को गलत बताया थाऔर ये कहा था कि एचएएल को बहुत सारा काम दिया जा रहा है। बुधवार को जब राजनाथ सिंह ने बताया कि एचएएल से तेजस फाइटर जेट्स 48 हज़ार करोड़ में खरीदे जाएंगे तो ये साबित हो गया कि राहुल गांधी ने उस समय जो कहा था वो बेबुनियाद था,उसका कोई सिर-पैर नहीं था।
मेरा मानना है कि राहुल गांधी को कभी-कभी अपनी कही बातों पर आत्मचिंतन करना चाहिए। उन आरोपों के बारे में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए जो उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ लगाए थे। नरेन्द्र मोदी का सपना है ‘आत्मनिर्भर भारत’, अपने पैरों पर खड़ा भारत,अपनी रक्षा में सक्षम, समर्थ और सबल भारत। हर देशवासी भी यही चाहता है और तेजस उसी दिशा में एक बड़ा कदम है। सरकार का यह फैसला देश के लिए गर्व की बात है। अब तक स्वदेशी हथियार तो छोड़िए, अपने साजो-सामान की मरम्मत के लिए भी सेना दूसरे देशों पर निर्भर थी। फाइटर जेट से लेकर ऑटोमौटिक राइफल्स और उनकी गोलियां तक, सब कुछ विदेशों से मंगाते थे। फौजियों के शरीर पर बुलेटप्रूफ जैकेट से लेकर जूते तक, सब कुछ दूसरे देशों से मंगाया जाता था। लेकिन अब फाइटर जेट, ऑटोमैटिक राइफल और बंदूकों की गोलियां भी स्वदेशी होंगी। ये गौरव की बात है और इसकी तस्वीरें 26 जनवरी की परेड में देखकर आपका सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाएगा। राहुल को इस वर्ष की गणतंत्र दिवस परेड को देखना चाहिए जिसमें सेना अपने स्वदेशी हथियारों का प्रदर्शन करेगी। मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का वादा किया है और इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है, इसीलिए पूरी दुनिया मोदी की तारीफ कर रही है।
How in a single stroke Modi rubbished Rahul’s charge of ‘winding up’ HAL
The Cabinet Committee on Security on Wednesday approved the acquisition of 83 indigenously manufactured fourth-generation Tejas jet fighters from Hindustan Aeronautics Ltd for the Indian Air Force. This is the biggest ever indigenous military deal worth Rs 46,898 crore. Delivery of the single-engine Tejas Mark 1-A fighter jets will begin in three years.
This will give a big boost to the indigenous military production sector with HAL working with nearly 500 other companies to meet the order. It will also boost the number of fighter squadrons in the Indian Air Force. The deal also includes delivery of 10 Tejas trainer aircraft to the IAF.
Defence Minister Rajnath Singh, announcing this acquisition, said “this deal will be a game changer for self-reliance in Indian defence manufacturing. It would act as a catalyst for transforming the domestic aerospace ecosystem. The LCA-Tejas is going to be the backbone of the IAF fighter fleet in the years to come.”
The new Tejas Mark 1-A jet fighters will have 43 improvements over the 40 Tejas Mark-1 fighter jets ordered by the Indian Air Force earlier. The crucial major additions are AESA (active electronically scanned array) radars to replace existing mechanically-steered radars, air-to-air refuelling facility, long-range BVR (Beyond Visual Range) missiles with a range up to 80 kilometres and advanced electronic warfare to jam enemy radars and missiles. It can fly up to a maximum speed of 1,000 kmph and carry more than 5,000 kg of bombs and missiles. It is the smallest and lightest among the fourth-generation fighter jets.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed a report from our Defence Editor Manish Prasad who visited the HAL unit in Bengaluru where the Tejas fighter jets are being manufactured. The new Mark 1-A version will be equipped with electronic warfare suite, and the chief test pilot of HAL told our reporter that it is one of the finest fighter jet in the fourth generation series. Coming soon is the Mark 2 version which will be equipped with a more powerful engine, can carry more bombs and will be equipped with latest avionics like radar and sensor. The new version of the jet will weigh 17 tonnes, whereas the present version weighs only 12 tonnes, P. Jayadeva, general manager of Tejas project told our Defence Editor.
Presently, the Indian Air Force has only 30 fighter squadrons, each squadron having 16 to 18 jets, but the requirements are for 42 squadrons which can act as a deterrent to the twin threats on our borders. With the new acquisition, the number of Tejas fighter jets in the IAF will increase to 123. At present, the IAF has 20 Tejas fighters and 20 more are in different stages of production.
The acquisition of Tejas fighter jet has come after a 37-year-long torturous wait. The Centre had approved the Light Combat Aircraft (LCA) project way back in August, 1983 with an initial investment of Rs 560 crore. It was to replace the ageing MiG-21 jets. The first prototype of Tejas was flown after 18 years in January 2001, and 12 years later, in December,2013, the single-engine Tejas jet got the Initial Operational Clearance.
The Indian Air Force got the first Tejas jet in January 2015, 32 years after the project was launched. The first Tejas squadron was raised a year later with only two jets. Tejas got the final operational clearance in February 2019, and the second Tejas squadron was raised by the IAF in May last year. After the induction of 83 Tejas jets in the IAF, the HAL is set to develop the fifth-generation stealth fighter jet called the Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA). The Indian Air Force wants at least 126 such stealth fighter jets for its arsenal.
Every Indian should hold his head high in pride after the HAL achieves its aim of manufacturing stealth fighter jets. I am now reminded of the vicious allegations made by Congress leader Rahul Gandhi months before the 2019 Lok Sabha elections, in which he said that Narendra Modi wants to wind up the HAL to help foreign defence companies. Rahul had then said that thousands of HAL employees would be rendered unemployed if the 36 Rafale jets are acquired from France. I still remember how the then Defence Minister Nirmala Sitharaman rebutted each and every charge made by Rahul Gandhi. She had then promised that HAL would be given the entire Tejas project to complete. Her words have now come true today. The approval given by the CCS on Wednesday has proved how Rahul Gandhi made baseless charges inside Parliament.
I think Rahul Gandhi should sometimes introspect about the allegations that he levels against the Modi government. He should try to understand the connotations of Atmanirbhar Bharat (Self-Reliant India), an India which is capable of defending its borders with weapons manufactured on its own soil, a strong and capable India. Not only Tejas, there are many other indigenous weapons in the people. He should go and watch this year’s Republic Day parade in which the Indian Army will showcase Uzi-type ASMI machine pistols, universal bulletproof jackets, Switch drone vertical microcopters, and other indigenous weapons all developed by Indian army officers with the ‘Made in India’ label. Modi’s vision of ‘Atmanirbhar Bharat’ has made a spectacular beginning.