Rajat Sharma

हंगामा करने वाले सांसदों को देश कभी माफ नहीं करेगा

मंगलवार की सुबह देश ने देखा कि डिप्टी चेयरपर्सन हरिवंश अपने घर से चाय लेकर धरनास्थल पर आए और सभी निलंबित सांसदों को खुद चाय पिलाई। यह हरिवंश की मानवता थी। यह उनके बड़े दिल और उच्च नैतिक मूल्यों को दिखाता है। जो कानून बनाते हैं वे ही नियमों की धज्जियां उड़ाने लगेंगे, शिष्टाचार की परवाह नहीं करेंगे, तो वे आम आदमी से सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? यदि सांसद अपने खुद के पीठासीन अधिकारी की इज्जत नहीं करेंगे, माइक तोड़ेंगे और कागजात फाड़ेंगे, तो क्या उन्हें लगता है कि आम आदमी उनके इस व्यवहार को देखकर खुश होगा? राज्यसभा को हाउस ऑफ एल्डर्स कहा जाता है, जहां विभिन्न क्षेत्रों के बेहद अनुभवी और पढ़े-लिखे सदस्य सारे राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां बैठते हैं और कानून बनाते हैं।

AKB2209 राज्यसभा में रविवार को 2 कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान विपक्षी सांसदों ने जमकर हंगामा किया। उनमें से कुछ सेक्रेट्री जनरल की मेज पर चढ़ गए, तो कई अन्य चेयरमैन के पोडियम पर जाकर खड़े हो गए। कुछ विपक्षी सांसदों ने डिप्टी चेयरपर्सन हरिवंश की माइक को तोड़ दिया, उन्हें लगातार परेशान करते रहे, सदन के वेल में कागजात को फाड़ा और मार्शलों के साथ दुर्व्यवहार किया। उनमें से कुछ ने डिप्टी चेयरपर्सन पर कागजात और रूलबुक फेंका, साथ ही उन्हें धमकियों और गालियों से डराने की कोशिश भी की।

विपक्षी सांसद मांग कर रहे थे कि कृषि विधेयकों को एक हाउस कमिटी को भेजा जाए, लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक, फार्म बिलों का विरोध करने वाले सांसदों की संख्या 70 के आसपास थी, जबकि 110 सांसद इसके समर्थन में थे। विपक्ष द्वारा हंगामा किए जाने के कारण कोई विभाजन नहीं किया जा सका। यह भारत के 70 साल लंबे संसदीय इतिहास के सबसे अंधेरे क्षणों में से एक था। देश इन सांसदों को उनके गैरजिम्मेदाराना और शर्मनाक आचरण के लिए कभी माफ नहीं करेगा। राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को हंगामा करने वाले 8 सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया। सदन के स्थगित होने के बाद ये सभी सांसद संसद परिसर के अंदर ही धरने पर बैठ गए।

मंगलवार की सुबह देश ने देखा कि डिप्टी चेयरपर्सन हरिवंश अपने घर से चाय लेकर धरनास्थल पर आए और सभी निलंबित सांसदों को खुद चाय पिलाई। यह हरिवंश की मानवता थी। यह उनके बड़े दिल और उच्च नैतिक मूल्यों को दिखाता है। जो कानून बनाते हैं वे ही नियमों की धज्जियां उड़ाने लगेंगे, शिष्टाचार की परवाह नहीं करेंगे, तो वे आम आदमी से सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? यदि सांसद अपने खुद के पीठासीन अधिकारी की इज्जत नहीं करेंगे, माइक तोड़ेंगे और कागजात फाड़ेंगे, तो क्या उन्हें लगता है कि आम आदमी उनके इस व्यवहार को देखकर खुश होगा? राज्यसभा को हाउस ऑफ एल्डर्स कहा जाता है, जहां विभिन्न क्षेत्रों के बेहद अनुभवी और पढ़े-लिखे सदस्य सारे राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां बैठते हैं और कानून बनाते हैं।

हंगामा करने वाले सांसद ये भी भूल गए थे कि वे कोरोना के समय में सोशल डिस्टैंसिंह के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वे जानबूझकर उन सारे सख्त प्रोटोकॉल्स तोड़ रहे थे जिन्हें कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने सावधानीपूर्वक तैयार किया था। हंगामा करने वाले सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित करने की राज्यसभा के सभापति की कार्रवाई सही दिशा में उठाया गया कदम है। प्रत्येक राजनेता को असहमति व्यक्त करने, विरोध व्यक्त करने और लोगों की आवाज उठाने का हक है, लेकिन सदन के भीतर इन सांसदों ने जिस तरह का व्यवहार किया है वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

ऐसा नहीं है कि सरकार कृषि बिलों को लेकर चिंताओं और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री ने खुद कई बार कहा है कि न तो कृषि उपज विपणन समितियों (APMC), जिन्हें मंडी भी कहा जाता है, को बंद किया जाएगा और न ही अनाज और अन्य उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था को खत्म किया जाएगा। कई राज्यों में किसानों के बीच आधारहीन अफवाहें फैलाई जा रही हैं और उन्हें विपक्षी नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है।

कृषि विधेयकों के मुद्दे पर कांग्रेस डबल गेम खेल रही है। कुछ समय पहले ही डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ‘मंडियों’ को खत्म करने की वकालत की थी। अजय माकन ने राहुल गांधी के बगल में बैठकर पार्टी के 2019 के चुनावी घोषणापत्र को जारी किया था जिसमें मंडियों को खत्म करने और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा देने का वादा किया गया था।। यहां तक कि कपिल सिब्बल ने संसद में अपने भाषण के दौरान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और ‘मंडियों’ को खत्म करने के पक्ष में भी बात की थी।

यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने इस तरह की रणनीति अपनाई है। जब 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल लाई थी, तो राहुल गांधी ने गवर्नमेंट को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहा था। उन्होंने तब आरोप लगाया था कि मोदी सरकार अडानियों और अंबानियों की मदद कर रही है, और किसानों से कहा था कि सरकार उनके खेतों को उद्योगपतियों को सौंप देगी। यह मोदी के शासन का पहला साल था, और किसानों में गलतफहमी न फैले इसलिए सरकार ने विपक्ष के सामने झुकते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस ले लिया।

लेकिन अब वक्त बदल गया है। भारत के किसानों ने अब देख लिया है कि मोदी सरकार ने पिछले 6 सालों में कैसे उनकी मदद की है। फसल बीमा से लेकर मृदा कार्ड तक, प्रत्येक किसान के खाते में 6,000 रुपये सीधे ट्रांसफर करने से लेकर एमएसपी में भारी वृद्धि तक, मोदी सरकार ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है। अब भारतीय कृषि का चेहरा बदलने के लिए सरकार ये नए बिल लेकर आई है। कृषि उत्पादों की बिक्री पर लगी सारी रुकावटों को हटाने के बाद किसानों की औसत आय में निश्चित तौर पर वृद्धि होगी। किसानों के मुनाफे का अधिकांश हिस्सा खुद डकार लेने वाले बिचौलिए और कमीशन एजेंट हमेशा के खत्म हो जाएंगे। इस तरह किसानों के हिस्से का मुनाफा उनकी ही जेब में जाएगा।

यह निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल देगा, और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो वर्तमान में COVID महामारी के कारण संघर्ष कर रही है। बिचौलियों का जमाना अब बीत चुका है, बेहतर होगा कि विपक्षी दल इस बात को समझ लें और किसानों के हित में बोलना शुरू करें। जहां तक मोदी सरकार की बात है, तो यह संसद में विपक्ष से निपट चुकी है और अब सड़क पर भी उनका सामना करने के लिए तैयार है।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.