कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को देशभर के अस्पतालों में पड़े 50 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर के इस्तेमाल और उनकी उपयोगिता पर लेकर संदेह जताया। उन्होंने पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी में ट्वीट किया, ‘पीएम केयर्स के वेंटिलेटर और स्वयं पीएम में कई समानताएं हैं- दोनों का हद से ज़्यादा झूठा प्रचार,- दोनों ही अपना काम करने में फ़ेल, – ज़रूरत के समय, दोनों को ढूंढना मुश्किल।’ जिस समय देश के अस्पतालों में कोरोना के हजारों मरीज वेंटिलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं, ऐसे समय में राहुल की इस टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का तूफान मच गया।
स्वाभाविक रूप से हर किसी के मन में यह सवाल उठा कि क्या ये वेंटिलेटर काम करते हैं? हो सकता है कि आपको किसी नेता की सोशल मीडिया टाइमलाइन से इसके सही जवाब नहीं मिले हों, लेकिन इंडिया टीवी ने केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों को पिछले साल सप्लाई किए गए 50,000 वेंटिलेटर्स को लेकर एक तहकीकात की।
पिछले साल जब महामारी फैली थी तब देश में केवल 16 हजार वेंटिलेटर थे। लेकिन बाद में युद्धस्तर पर इनका निर्माण हुआ और इनकी खरीद के बाद राज्य सरकारों को 50 हजार वेंटिलेटर दिए गए थे। पिछले हफ्ते अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने दिखाया था कि कैसे केंद्र द्वारा भेजे गए वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल नहीं हुआ और ये पूरी तरह पैक ही रह गए थे। राजस्थान, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जिला अस्पतालों के स्टोररूम में ये वेंटिलेटर्स धूल फांक रहे थे। कुछ अस्पतालों के अधिकारियों ने ट्रेंड टेक्नीशियंस और एनेस्थेटिक स्टाफ की कमी का हवाला दिया जबकि कुछ राज्य सरकारों की शिकायत थी कि अधिकांश वेंटिलेटर्स की क्वॉलिटी खराब थी और वे किसी काम के नहीं थे।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने इस बात की पूरी पड़ताल की कि ये वेंटिलेटर किन कंपनियों से खरीदे गए, इनमें क्या खामियां थीं और ये कंपनियां वेंटिलेटर्स के उचित रखरखाव के लिए सर्विस क्यों नहीं दे रही थीं। मुझे लगता है कि इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स द्वारा की गई पड़ताल से सामने आई सच्चाई राहुल गांधी की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है।
सबसे पहले पंजाब की बात करते हैं जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में है। मोदी सरकार ने पीएम केयर्स फंड से 119 वेंटिलेटर गुरु नानक देव अस्पताल, अमृतसर भेजे थे। यहां के स्वास्थ्य अधिकारी ने शिकायत की कि 47 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनका ये बयान गुमराह करनेवाला था। वेंटिलेटर बनाने वाली AgVu कंपनी के एक इंजीनियर ने कैमरे पर इंडिया टीवी के रिपोर्टर को दिखाया कि कैसे कुछ वेंटिलेटर से टयूबिंग गायब थे और कितने ऐसे वेंटिलेटर धूल फांक रहे थे जो कि इस्तेमाल के लिए बिल्कुल फिट हैं, लेकिन इनका उपयोग नहीं किया जा रहा है। वेंटिलेटर को उचित आईसीयू के वातावरण की जरूरत होती है जहां चौबीसों घंटे बिजली हो और नियमित रूप से कम प्रेशर वाली ऑक्सीजन सप्लाई हो। इन सबके अलावा वेंटिलेटर को ऑपरेट करने के लिए ट्रेन्ड स्टाफ को होना सबसे जरूरी है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज अस्पताल गए, जहां उन्हें पीएम केयर्स फंड से भेजे गए 62 वेंटिलेटर स्टोर रूम के अंदर कबाड़ की तरह पड़े मिले। अस्पताल प्रशासन का कहना था कि ये वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इन वेंटिलेटर का निर्माण पीएसयू कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा किया गया था। शिकायत मिलने पर इसके इंजीनियरों ने अस्पताल का दौरा किया। इन इंजीनियरों ने जब जांच की तो पता चला कि इस्तेमाल किए जा रहे अधिकांश वेंटिलेटर के पार्ट्स बदले ही नहीं गए थे, जबकि कुछ अन्य वेंटिलेटर में ऑक्सीजन सेंसर या फ्लो सेंसर या बैक्टीरिया सेंसर काम नहीं कर रहा था। दरअसल इन पार्ट्स को नियमित रूप से बदलने की जरूरत होती है। सेंसर बदलते ही 5 वेंटिलेटर काम करने लगे। बीईएल ने केंद्र को लिखी चिट्ठी में उन परिस्थितियों के बारे में बताया है जिसके चलते इन वेंटिलेटर का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था।
अस्पताल को न केवल AgVa हेल्थकेयर के वेंटिलेटर की आपूर्ति की गई, बल्कि ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन द्वारा निर्मित 50 वेंटिलेटर भी मिले। उनके वेंटिलेटर भी काम नहीं कर रहे थे। हमारे रिपोर्टर ने ज्योति सीएनसी के अधिकारियों से बात की। उन्होंने अपने इंजीनियरों को अस्पताल भेजा। इंजीनियर्स ने इसकी जांच की और बताया कि ऑक्सीजन की सप्लाई को वेंटिलेटर से जोड़ने के लिए कोई ऑक्सीजन कनेक्टर नहीं था। ऑक्सीजन कनेक्टर ही गायब थे। अब ऐसे में वेंटिलेटर के काम करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
पीएम केयर्स फंड से 809 वेंटिलेटर पंजाब भेजे गए, जिनमें से केवल 532 को इंस्टॉल किया गया और 277 वेंटिलेटर को पैकिंग से निकाला तक नहीं गया। पिछले साल, आंध्र प्रदेश में पांच हजार वेंटिलेटर भेजे गए, महाराष्ट्र और यूपी को 4,000 से ज्यादा जबकि राजस्थान में 1,900 वेंटिलेटर भेजे गए। कर्नाटक को 2,000 से अधिक और 3,400 वेंटिलेटर गुजरात भेजे गए। इनमें से दो राज्यों राजस्थान और पंजाब, जहां कांग्रस का शासन है, को छोड़कर बाकी किसी राज्य ने वेंटिलेटर की गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाया। राजस्थान और पंजाब को वेंटिलेटर की सप्लाई करने वाली कंपनियां वही थीं जिन्होंने अन्य राज्यों को वेंटलेटर्स की सप्लाई की थी।
इन वेंटिलेटर्स को सप्लाई करने वाली कंपनियों के जवाब पढ़ने के बाद कुछ तथ्य साफ तौर पर सामने आते हैं। पहला, कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर्स को खोला भी नहीं गया, वे अनपैक्ड ही रह गए। यहां तक कि जब कोरोना की दूसरी लहर तबाही मचा रही थी उस समय भी ये वेंटिलेटर्स अस्पताल के स्टोर रूम में धूल फांक रहे थे। कुछ अस्पताल वेंटिलेटर ऑपरेट करने के लिए ऑक्सीजन प्वाइंट सेट करने में विफल रहे। कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर को ऑपरेट करने के लिए कोई ट्रेंड टेक्नीशियन या एनेस्थेटिक स्टाफ नहीं था। राजस्थान के एक सरकारी अस्पताल ने तो अपने वेंटिलेटर को कोरोना मरीजों से पैसे वसूलने के लिए एक प्राइवेट अस्पताल को किराए पर दे दिया था। कुछ अस्पतालों में सर्विसिंग और मेंटेनेंस की कमी थी तो कुछ अस्पतालों में कुछ छोटे स्पेयर पार्ट्स या सेंसर को बदलने की जरूरत थी। इन सबको अस्पताल प्रशासन अपने स्तर पर ठीक करा सकता था।
ऊपर बताई गई कमियों के कारण कोई यह नहीं कह सकता कि पीएम केयर्स फंड से भेजे गए सभी वेंटिलेटर खराब थे और इस्तेमाल के लायक नहीं थे। राज्यों को दिए गए 50 हजार वेंटिलेटर्स में से 49 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर पहले से ही काम कर रहे हैं, और इनसे लोगों की जान बच रही है। राहुल गांधी को इस तरह की टिप्पणी करने से बचना चाहिए था कि सभी वेंटिलेटर ‘अपना काम करने में फेल’। इस तरह की टिप्पणी करके वह उन परिवारों के मन में शंका के बीज बो रहे हैं, जिनके परिवार के लोग, रिश्तेदार या अन्य करीबी लोग वेंटिलेटर पर हैं। 85 प्रतिशत वेंटिलेटर जो काम कर रहे हैं, उन्हें कोरोना की दूसरी लहर से बहुत पहले पहले ही खरीद लिया गया था और राज्यों को भेज दिया गया था। इस तरह के एक्शन की तारीफ की जानी चाहिए और जहां कहीं भी कमियां हैं, उन्हें उचित ऑडिट के जरिए दूर करने की जरूरत है।
यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने केंद्र द्वारा विभिन्न राज्यों को दिए गए वेंटिलेटर के इन्स्टॉलेशन और ऑपरेशन का ‘तत्काल ऑडिट’ करने का आदेश दिया है। पीएम केयर्स फंड ने पिछले साल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार द्वारा संचालित कोविड अस्पतालों में 50 हजार वेंटिलेटर्स की आपूर्ति के लिए 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इन वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल नहीं कर पाने के लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए। पीएम ने जरूरत पड़ने पर हेल्थ वर्कर्स को वेंटिलेटर ऑपरेट करने की ट्रेनिंग देने का भी आह्वान किया है। अभी महामारी के ऐसे समय में राजनीतिक दलों को स्वास्थ्य के मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।