राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 6 दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के आदेश ने पूरे देश को हैरान कर दिया है। यह कोई साधारण आपराधिक मामला नहीं था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक नृशंस आत्मघाती बम विस्फोट में हत्या कर दी गई थी। यह भारत के खिलाफ एक आतंकी हमला था।
चूंकि मामला 31 साल पुराना है, इसलिए मैं इस पर विस्तार से बताऊंगा। टाडा कोर्ट ने 28 जनवरी 1998 को राजीव गांधी की हत्या के आरोप में सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। 11 मई, 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने नलिनी, श्रीहरन, संथन और पेरारीवलन के लिए मौत की सजा की पुष्टि की और रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन के लिए मौत की सजा सुनाई। इसने 19 अन्य को दी गई मौत की सजा को रद्द कर दिया।
अगले साल, 19 अप्रैल, 2000 को तमिलनाडु सरकार ने नलिनी की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की सिफारिश की, और इसे राज्यपाल द्वारा अप्रूव किया गया। एक हफ्ते बाद, श्रीहरन, संथन और पेरारीवलन ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की। 14 साल तक मामला अधर में रहा। 18 फरवरी, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में केंद्र द्वारा अधिक देरी का हवाला दिया और इन तीनों दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
2014 से 2018 तक, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी सात आजीवन कारावास के दोषियों की समय से पहले रिहाई के तमिलनाडु सरकार के फैसले को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इस साल 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था। इस साल अगस्त में, नलिनी और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
संक्षेप में, एक-एक करके सभी दोषियों को, जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी, उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया और शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सभी सात दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया। उन्हें तुरंत तमिलनाडु की जेलों से रिहा कर दिया गया। राजीव गांधी के हत्यारे अब भारत में खुलेआम घूमेंगे।
यह और कुछ नहीं बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था, हमारी न्यायपालिका और हमारी कार्यपालिका पर प्रहार है। सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के आदेश से कई सवाल खड़े होते हैं।
पहला सवाल ये उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आजीवन कारावास के दोषियों की रिहाई का आदेश दे सकता है? दूसरा सवाल ये है कि इस मामले में केंद्र का फरमान चलेगा या राज्य सरकार की मांग मान ली जाएगी? तीसरा सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार को पूर्व पीएम की हत्या जैसे गंभीर मामले में आतंकियों को माफ करने का अधिकार है? क्या ऐसे मामलों में राजनीति होनी चाहिए?
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि सभी हत्यारों को माफ कर दिया जाए। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून की दृष्टि से खराब था। “ये पूरी तरह से अस्वीकार्य, पूरी तरह से गलत था”, और भारत की भावना के अनुरूप नहीं था।
कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, पार्टी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी के विचारों से असहमत है। कांग्रेस पार्टी ने कहा कि वह दोषियों की रिहाई को चुनौती देने के लिए सभी कानूनी उपाय करेगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सवाल उठता है कि भविष्य में उत्पन्न होने वाले समान दावों से कैसे निपटा जाए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करने वाली डीएमके तमिलनाडु में सत्ता में है। इसका कांग्रेस के साथ गठबंधन है, लेकिन मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन की सरकार ने दोषियों की रिहाई के लिए कड़ा संघर्ष किया।
अब हम नजर डालते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्ना की खंडपीठ ने दोषियों को रिहा करते हुए क्या कहा। उन्होंने 18 मई, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आजीवन कारावास की सजा पाए एजी पेरारीवलन को रिहा करने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 6 अन्य उम्रकैदी नलिनी श्रीहरन, वी श्रीहरन उर्फ मुरुगन, संथान उर्फ टी सुथेंद्रराजा, बी रोपर्ट पायस, जयकुमार और पी रविचंद्रन भी उसी स्थिति में हैं, जब उन्होंने 30 साल से अधिक समय जेल में बिताया है। जेल में उनका आचरण संतोषजनक था और उन सभी ने कई स्टडी कीं और जेल के अंदर ही कोर्स पूरा किया। सुप्रीम कोर्ट ने रविचंद्रन द्वारा किए गए धर्मार्थ कार्यों का हवाला दिया और इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि नलिनी एक महिला थी और पायस और सुथेंद्रराजा विभिन्न बीमारियों से पीड़ित थे।
पीठ ने कहा, जिन कारकों के कारण सुप्रीम कोर्ट ने पेरारीवलन की रिहाई का आदेश पारित किया, वे अन्य दोषियों पर भी सीधे लागू होते हैं। पीठ ने कहा, ‘हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ताओं को फौरन मुक्त किया जाए’।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई, 2022 को अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पेरारीवलन को रिहा करने का आदेश दिया था और बाकी छह दोषियों को रिहा करना समय की बात थी।
शुक्रवार को जब कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध कर रहे थे तो तमिलनाडु में नलिनी के घर के बाहर आतिशबाजी चल रही थी। दोषियों के परिजन वेल्लोर जेल के बाहर दोषियों की रिहाई का इंतजार कर रहे थे। लोगों ने खुशी में झूमते हुए मिठाइयां बांटी। एक स्थानीय पार्टी टीपीडीके के अध्यक्ष ने वेल्लोर की सड़कों पर लोगों को मिठाई बांटी।
यह बात सही है कि 19 मार्च 2008 को प्रियंका गांधी वाड्रा ने वेल्लोर जेल में नलिनी श्रीहरन से मुलाकात की थी और बाद में कहा था कि उन्होंने अपने दिवंगत पिता के सभी हत्यारों को माफ कर दिया है। शुक्रवार रात मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने प्रियंका का वह वीडियो भी दिखाया, जिसमें वह हत्यारों को माफ करने की बात कहती नजर आ रही हैं।
प्रियंका गांधी ने कहा, ‘जब मेरे पिता की हत्या हुई तो मैं सिर्फ हत्यारों से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से नाराज थी, गुस्सा थी। लेकिन यह गुस्सा ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रहा। जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, गुस्सा कम होता जाता है। मुझे यह समझ आ गया कि हमेशा विक्टिमहुड की सिचुएशन में रहने से, हमेशा खुद को पीड़ित समझने से कोई फायदा नहीं है। जब आप यह महसूस करते हैं कि सिर्फ आप ही नहीं बल्कि सामने वाला शख्स भी हालात का मारा हुआ है, तब आपके अंदर माफ करने की शक्ति आ जाती है, और आपका विक्टिमहुड गायब हो जाता है।’
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मोदी सरकार ने दोषियों की रिहाई का विरोध किया था और उसकी एवं कांग्रेस की पिछली सरकारों की राय एक जैसी थी। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इस मुद्दे पर गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी की राय अलग-अलग है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई ने भारतीय कानून व्यवस्था को शर्मसार किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने केस की पैरवी सही से नहीं की। लेकिन बीजेपी के नेताओं ने कहा कि गांधी परिवार के सदस्यों ने खुद सार्वजनिक रूप से हत्यारों को माफ करने की बात कही है।
राहुल गांधी ने भी इसी साल ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारों को माफ कर दिया है। उनसे पूछा गया था कि आप हिंसा के भुक्तभोगी रहे हैं, आपकी दादी और पिता की हत्या हुई, इस पर आप क्या सोचते हैं। जवाब में राहुल ने कहा था, ‘मेरे दिमाग में एकमात्र बात जो आती है वह है माफी। एक बेटे के लिए उसके पिता की हत्या से बड़ा कोई दर्द नहीं हो सकता, लेकिन इस घटना ने मुझे जिंदगी में जितने अहम सबक दिए, वे आम हालात में नहीं सीख सकता था।’
आज पहली बार हमने ऐसा अजूबा देखा जहां कांग्रेस की राय मोदी सरकार के साथ है और गांधी परिवार के खिलाफ। यह बात वाकई में हैरान करने वाली है। इस बात में दो राय नहीं होनी चाहिए थी कि जिन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री की नृशंस हत्या की, उन्हें फंसी की सजा मिले। उनके आतंकवादी मंसूबों दुनिया के सामने सारे देश को शर्मसार किया। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। हत्या किसने की, षड्यंत्र में कौन-कौन शामिल था, इसका फैसला भी अदालत ने किया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। बरसों जांच चली थी, लेकिन जिन्हें फांसी की सजा हुई उनकी सजा उम्र कैद में बदल दी गई।
पहली बार आश्चर्य तब हुआ जब सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारों को माफ करने की अपील की। दूसरी बार हैरानी आज हुई जब कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हत्यारों को माफ करने का विरोध किया। तीसरी हैरानी की बात, जैसा मैंने शुरू में कहा, ये है कि मोदी सरकार और कांग्रेस पार्टी की राय एक है और गांधी परिवार की अलग।
यह बात अब तक कोई नहीं समझा पाया कि राहुल और प्रियंका ने अपने पिता के हत्यारों की सजा माफ करने की बात क्यों कही। सोनिया गांधी ने अपने पति के हत्यारों को माफ करने की अपील क्यों की। जिस वक्त सोनिया गांधी ने यह अपील की थी, उस वक्त वह कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। पार्टी के अध्यक्ष की राय अपनी पार्टी से अलग कैसे हो सकती है?
ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब देना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा। लेकिन एक बात पक्की है कि राजीव गांधी के हत्यारों को माफ किए जाने से कांग्रेस के करोड़ों कार्यकर्ताओं को दुख होगा, उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। सोनिया, राहुल और प्रियंका के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को इसे समझा पाना मुश्किल होगा। लेकिन, तमिलनाडू में अब यह बड़ा सियासी मुद्दा बन जाएगा। सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का फैसला किया था। उस वक्त केंद्र सरकार के विरोध की वजह से यह फैसला लागू नहीं हो पाया।
2021 में एम. के. स्टालिन ने भी केंद्र से राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के लिए चिट्ठी लिखी। आने वाले वक्त में AIADMK और DMK के बीच राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का श्रेय लेने की होड़ मचने वाली है। शुक्रवार को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, उस वक्त स्टालिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत कर रहे थे, जो कि तमिलनाडु में कई बड़े प्रोजेक्ट्स का शुभारंभ करने पहुंचे थे।