ट्रम्प, मोदी, भारत और पड़ोसी देश
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की. कमला हैरिस को बड़े मार्जिन से हराया. अमेरिका में 132 साल बाद ऐसा हुआ है जब एक बार चुनाव हारने के बाद कोई पूर्व राष्ट्रपति दोबारा राष्ट्रपति चुनाव जीता हो. ये कारनामा करने वाले ट्रंप अमेरिकी इतिहास में दूसरे राष्ट्रपति हैं. बड़ी बात ये है कि स्विंग स्टेटस में भी ट्रंप को एकतरफा जीत मिली. नतीजे आने के बाद ट्रंप ने निर्वाचित उपराष्ट्रपति जे डी वेंस और परिवार के सदस्यों के साथ समर्थकों को संबोधित किया. ट्रंप ने कहा, वो अगले चार साल तक बिना रुके, बिना थके अमेरिका की बेहतरी के लिए काम करेंगे. ट्रंप ने कहा कि आने वाले चार साल अमेरिका के लिए स्वर्णिम होंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले सोशल मीडिया पर ट्रम्प को बधाई दी और उसके बाद टेलीफोन पर ट्रंप को जीत की बधाई दी. सूत्रों के मुताबिक, फोन पर बातचीत के दौरान ट्रम्प ने भारत को “एक शानदार देश” और मोदी को “एक शानदार नेता” बताया, “जिन्हें दुनिया भर के लोग प्यार करते हैं.”
सवाल ये है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से हमारे देश और हमारे पड़ोसी देशों पर क्या असर होगा ? क्या मोदी और ट्रंप की अंतरंग मित्रता दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने में काम आएगी? ट्रंप व्यापारी हैं और एक ज़बरदस्त सौदेबाज़ हैं. क्या ट्रंप के आने से भारत के व्यापार पर असर पड़ेगा? ट्रंप अमेरिका में प्रवेश करने वालों के बारे में सख्त नीति बनाए जाने के हिमायती हैं. क्या इसका असर अमेरिका जाने वाले भारतीयों पर पड़ेगा?
ट्रंप की सत्ता में वापसी को अमेरिका के राजनीतिक इतिहास की सबसे ज़बरदस्त वापसी में रूप में देखा जा रहा है. 2020 में जो बाइडेन से चुनाव हारने के बाद ट्रंप ने एक के बाद एक कई मुश्किलों का सामना किया. समर्थकों ने, रिपब्लिकन पार्टी के बड़े नेताओं ने ट्रंप का साथ छोड़ दिया था, लेकिन ट्रंप ने हार नहीं मानी और वो एक बार फिर से अमेरिका के बिग बॉस बन गए. पिछले चार साल में ट्रंप ने तमाम राजनीतिक और अदालती चुनौतियों का सामना किया. और आखिर में सभी चुनौतियों को मात देकर उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. इस जीत ने अमेरिका को एक मजबूत स्थिति में ला दिया है. अब वहां सरकार को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है. ट्
ट्रंप की जीत का असर पूरी विश्व व्यवस्था पर दिखाई देगा. ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने की कोशिश करेंगे. इसमें भारत की भूमिका अहम हो सकती है. नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों में तीन बार पुतिन से और दो बार जेलेंस्की से मिलकर शांति का रास्ता निकालने की कोशिश कर चुके हैं. ट्रंप की जीत का असर अरब जगत और इजरायल के रिश्तों पर भी पड़ेगा.
भारत के संदर्भ में ट्रंप की जीत को दो तरीके से देखा जा सकता है. एक तो ट्रंप और मोदी के रिश्ते के लिहाज से. जाहिर है कि कमला हैरिस के मुकाबले ट्रंप से मोदी के रिश्ते ज्यादा व्यक्तिगत हैं, पुराने हैं. दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते और समझते हैं. ट्रंप की कूटनीति का अंदाज व्यक्ति आधारित है. व्यक्तिगत रिश्तों पर वो जोर देते हैं और ट्रंप ये कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी उनके दोस्त हैं और एक मजबूत नेता हैं. इस सोच का फायदा भारत को मिलेगा.
दूसरा पैमाना है, भारत की कूटनीतिक जरूरतें. भारत को चीन हमेशा चुनौती देता रहा है. अब ट्रंप और मोदी की दोस्ती का असर यहां दिखाई देगा. कनाडा में जस्टिन ट्रूडो भारत के लिए नई मुसीबत बन गए हैं. वो खालिस्तानियों का समर्थन करते हैं. बायडेन प्रशासन कनाडा का समर्थन करता हुआ दिखाई दे रहा था. अब ये समीकरण भी बदलेंगे और इस मामले में भारत और ज्यादा मजबूत होगा.
इन सबसे ऊपर, ट्रंप का ये कहना कि मैं इंडिया का फैन हूं और हिंदुओं का फैन हूं. अगर मेरी जीत होती है, व्हाइट हाउस में हिंदुओं का एक सच्चा दोस्त होगा. किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले 200 साल में इस तरह की बात नहीं कही और इसका असर नजर आएगा. ट्रंप ने बयान दिया था, जिसमें कहा था, “मैं हिंदुओं का बहुत बड़ा फ़ैन हूं और मैं भारत का भी बहुत बड़ा फ़ैन हूं. मैं सीधे सीधे ये बात कहते हुए शुरुआत करना चाहता हूं कि अगर मैं राष्ट्रपति चुना जाता हूं तो व्हाइट हाउस में भारतीय समुदाय और हिंदुओं का एक सच्चा दोस्त होगा. मैं इसकी गारंटी देता हूं.”
बांग्लादेश
ट्रंप ने इसी तरह का जज्बा हिंसा के शिकार बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए भी दिखाया था. इसीलिए इस बात में कोई शक नहीं है कि अमेरिका में ट्रंप की जीत का असर भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश पर भी असर होगा. कुछ-कुछ असर तो आज ही दिखने लगा. बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ट्रंप को जीत की बधाई दी.
शेख हसीना इस वक्त दिल्ली में हैं. उन्होंने कहा कि वो ट्रंप के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं. अवामी लीग की अध्यक्ष के नाते शेख हसीना के इस बयान के बड़े मतलब हैं. क्योंकि बांग्लादेश में इस वक़्त मुहम्मद यूनुस की अन्तरिम सरकार है. यूनुस क्लिंटन परिवार के करीबी हैं. बाइडेन प्रशासन की मदद से उन्होंने बांग्लादेश में तख्ता पलट करवाया, अन्तरिम सरकार के मुखिया बने. लेकिन, बांग्लादेश को लेकर ट्रंप का रुख़ बिल्कुल साफ़ है.
ट्रंप ने दिवाली के दिन ट्वीट करके, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की कड़ी निंदा की थी. ट्रंप ने लिखा था कि जो बाइडेन और कमला हैरिस ने दुनिया भर के हिंदुओं की अनदेखी की, लेकिन वो ऐसा नहीं होने देंगे. ट्रंप ने वादा किया कि राष्ट्रपति बनने पर वो हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए काम करेंगे, जबरन धर्म परिवर्तन रोकेंगे. इसीलिए, ट्रंप की जीत से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के लिए ख़तरे की घंटी बज गई है. इसी पृष्ठभूमि में शेख हसीना के बयान को समझने की जरूरत है.
पाकिस्तान
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, ट्रंप के जीतने से इमरान ख़ान के समर्थक बहुत ख़ुश हैं, ख़ुशी मना रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं कि ट्रंप, इमरान ख़ान को जेल से छुड़वाएंगे. लेकिन ट्रंप ने इमरान ख़ान के साथ बैठकर कहा था कि पाकिस्तान में आतंकियों को पनाह दी जाती है और वो आतंक के इन अड्डों का सफ़ाया करेंगे. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों के बारे में कड़ा रुख़ अपनाया था. पाकिस्तान को मिलने वाली 24 अरब डॉलर की मदद रोक दी थी.
चीन
भारत के तीसरे पड़ोसी चीन में भी ट्रंप की जीत को लेकर चिंता है. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ दिया था. चीन से आयात होने वाले सामानों पर भारी कस्टम ड्यूटी लगा दी थी. चीन की कंपनियों की डांच कड़ी कर दी थी. इससे दोनों देशों के कारोबार पर असर हुआ था. इसीलिए ट्रंप की वापसी पर चीन के रवैसे में तनाव नज़र आया. नतीजा आने के बाद चीन ने सधी प्रतिक्रिया दी. चीन के विदेश मंत्रीलय की प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति बने उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता, चीन अपनी पुरानी नीति पर चलता रहेगा और ये चाहेगा कि पारस्परिक सम्मान का भाव हो.
यूरोप मध्य पूर्व
ट्रंप की जीत से यूरोपीय देशों के नेता भी असमंजस में है. बालांकि यूरोपीय देशों के राजनेताओं ने ट्रम्प को बधाई दी, लेकिन हकीकत ये है कि ट्रंप की जीत से यूरोपीय देशों के नेता कुछ परेशान हैं. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने कहा था कि यूरोप को अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद उठानी चाहिए. अमेरिका कब तक उनका बोझ उठाए. उन्होंने जर्मनी में तैनात अमेरिकी सैनिकों का ख़र्च भी मांगा था. इसीलिए अब अगर अमेरिका का रूख बदला, अगर ट्रंप अपनी पुरानी नीति पर लौटे, तो दुनिया के तमाम सामरिक समीकरण गड़बड़ा सकते हैं. यूरोप के नेताओं को इसी बात की चिंता है.
यूरोप की चिंता यूक्रेन युद्ध को लेकर है. ट्रंप अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यूक्रेन युद्ध की आलोचना करते रहे. वो कहते रहे कि ये बेकार की जंग है और राष्ट्रपति बनने पर वो एक दिन में ये युद्ध ख़त्म करा देंगे. ट्रंप ने अपने विजय भाषण में भी यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि वो युद्ध लड़ने के लिए नहीं, युद्ध बंद कराने के लिए चुनाव जीते हैं. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ट्रंप को जीत की बधाई नहीं दी, लेकिन क्रेमलिन ने कहा कि ट्रंप की नीति और नीयत देखकर ही रूस अपना रुख तय करेगा.
लेकिन ईरान ज़रूर सदमे में है. ट्रंप के चुनाव जीतने की ख़बर आई, तो ईरान की करेंसी रियाल में भारी गिरावट आई. ट्रंप की जीत से ईरान के लिए ख़तरा और बढ़ गया है क्योंकि ईरान को लेकर ट्रंप बहुत सख़्त नीति पर चलते रहे हैं. पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया था. ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए थे और ईरान पर बमबारी की धमकी दी थी. इस बार ग़ाज़ा में युद्ध चल रहा है. इज़राइल लेबनान में हिज़्बुल्लाह से जंग लड़ रहा है. ऐसे में आशंका है कि अमेरिका सीधे तौर पर कुछ कर सकता है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने युद्ध को लेकर बड़ी बात कही. एस जयशंकर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका अब किसी जंग का हिस्सा बनेगा. बल्कि उल्टा हो सकता है. ट्रंप के राज में अमेरिका दुनिया के तमाम इलाक़ों से अपनी सेनाएं हटा सकता है. विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका ने दूसरों के झगड़ों से पीछे हटने की शुरूआत बराक ओबामा के दौर में ही कर दी थी, बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस बुला ली और ट्रंप तो खुलकर ये कहते हैं कि वो किसी जंग में शामिल नहीं होंगे. जयशंकर की ये बात सही है कि अमेरिका किसी नए झगड़े में नहीं पड़ना चाहता. इस बात को दुनिया के वो सारे मुल्क समझते हैं जो किसी ना किसी युद्ध में उलझे हुए हैं.
Trump, Modi, India and Neighbours !
In the midst of euphoria over the historic comeback of Donald Trump as 47th President of the United States, Prime Minister Narendra Modi, after posting his congratulatory tweet to “my dear friend”, telephoned to greet him on his victory. During the conversation, Donald Trump, according to sources, repeatedly described India as a “magnificent country” and Modi as “a magnificent leader whom much of the world loves”. Trump described the conversation as among the first he had with a head of government after his victory. The question is: what will be the implications on India and her neighbours after a regime change in the White House? Will the Modi-Trump personal chemistry work towards strengthening bilateral relations? Trump is known as a hard bargainer and a sharp businessman. Will it affect India-US trade ties? Trump is a hawk on the issue of immigrant policies. Will it make U.S. visa rules tougher?
Trump’s victory vis-a-vis India can be seen from two angles:
One, his personal friendship with Narendra Modi. Both know each other very well. Trump follows a personalized style in diplomacy and on many occasions, he has described Modi as his friend and a strong leader. This is going to benefit India. Two, India’s diplomacy requirements. China has been posing a challenge to India in the last one decade, and Trump’s friendship with Modi will have its effect here too. Justin Trudeau in Canada has become a headache for India because of his overt support to Khalistani separatists and the outgoing Biden administration had been extending support to Trudeau. These equations are going to change and India will emerge stronger.
BANGLADESH
Trump’s recent statement about atrocities being perpetrated on Hindus in Bangladesh has been widely welcomed in India. On Diwali Festival (October 31), five days before voting, Trump wrote on X: “I strongly condemn the barbaric violence against Hindus, Christians and other minorities, who are getting attacked and looted by mobs in Bangladesh, which remains in a total state of chaos. It would have never happened on my watch. Kamala and Joe have ignored Hindus across the world and in America….We will also protect Hindu Americans against the anti-religion agenda of the radical left. We will fight for your freedom…”. No American President in the last two centuries had ever said that he was a true friend of Hindus in the White House. The impact will surely be seen. Trump’s victory will affect both Pakistan and Bangladesh. Already, there are some straws in the wind. Deposed Bangladesh Prime Minister Sheikh Hasina, staying in exile in India, sent a message of congratulation, as head of Awami League, to Donald Trump, in which she said, she was willing to work with him for improving bilateral relations. The present interim government in Bangladesh is headed by economist Mohammed Yunus, considered to be close to the Clinton family. There are reports that Sheikh Hasina’s government was deposed by him with help from Biden administration.
PAKISTAN
As far as Pakistan is concerned, jailed former PM Imran Khan’s supporters are ecstatic over Trump’s victory and are already celebrating. They are optimistic about Imran’s early release from jail after pressure from Trump administration. But one must remember, it was Trump who, with Imran Khan sitting by his side, had said, Pakistan was sheltering terrorists and he would finish off their bases. It was Trump who had put a brake on 24 billion US dollars assistance to Pakistan.
CHINA
India’s third and biggest neighbour China is already worried after Trump’s win. During his earlier tenure, Trump had unleashed a trade war against China, and imposed heavy tariff on Chinese goods. He had toughened scrutiny of most of the Chinese companies, and this had affected US-China business. A Chinese foreign ministry spokesperson said, “we respect the choice of the American people…China will work with the US on the basis of mutual respect”.
EUROPE, MIDDLE EAST
European leaders have adopted a line of caution after Trump’s win, given his known stand that European countries must bear their security costs themselves. Trump’s win will have immediate repercussions on the ongoing Ukraine-Russia war, in which the US have been providing finance and military aid to Ukraine. The strategic equations in Europe may undergo a reset. The Kremlin has said, “let’s see” if Trump’s win can end the Ukraine war. On Iran, Trump has always followed a tough policy. He had exited from US nuclear deal with Tehran. This time conflicts are going on in Gaza and Lebanon and Trump’s policies will be interesting to note. One must bear in mind what External Affairs Minister S. Jaishankar said about war. Jaishankar said, he does not think the US would like to be part of any war now. The reverse will be the case and Trump may chose to withdraw US troops and armaments from most of the conflict zones. Jaishankar has said that this withdrawal from conflict zones had already begun since the time Barack Obama was president. Joe Biden withdrew US troops from Afghanistan, and Trump has already said that US will not join any war.
सुप्रीम कोर्ट का अच्छा फैसला : मदरसों को आधुनिक बनाना ज़रूरी
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा बोर्ड अधिनियम को लेकर बड़ा और अच्छा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें हाईकोर्ट ने यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसा बोर्ड अधिनियम संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. इसका मतलब है कि मदरसों के चलने पर अब किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि सरकार मदरसों के प्रबंधन में दखल नहीं दे सकती , लेकिन मदरसों में क्या पढाया जाए, शिक्षा का स्तर बेहतर कैसे हो, मदरसों में बच्चों को अच्छी सुविधाएं कैसे मिलें, इन विषयों पर सरकार नियम बना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि मदरसों में जो गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें इस्लामिक साहित्य पढ़ने और इस्लामिक रीति रिवाजों का पालन करने पर मजबूर नहीं किया जा सकता. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों में मिलने वाली ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री को गैरकानूनी घोषित कर दिया.
चीफ जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि मदरसों को मान्यता देने और उन्हें आर्थिक सहायता देने के लिए राज्य सरकार अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा की शर्तें रख सकती हैं. राज्य सरकार मदरसों के कोर्स, शिक्षकों की योग्यता के स्तर और डिग्री के मानदंड तय कर सकती है. राज्य सरकार को मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति, बच्चों की सेहत और साफ़ सफ़ाई और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं के नियम बनाने का पूरा अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि मदरसा बोर्ड फ़ाज़िल और कामिल की डिग्री नहीं दे सकता क्योंकि ये UGC अधिनियम के ख़िलाफ़ है. मदरसों को केवल आलिम तक की डिग्री देने का अधिकार है. आलिम की डिग्री 12वीं क्लास पास करने के बराबर मानी जाती है जिसके आधार पर कॉलेज और विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदरसे, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए जो फ़ाज़िल और कामिल की डिग्री देते हैं, उसकी कोई मान्यता नहीं है और इसके लिए मदरसों को पहले UGC से अनुमति लेनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का लगभग सारे बड़े मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया है. जमीयत उलमा ए हिंद और अखिल भारतीय शिया पसर्नल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की ग़लती सुधार दी है.
यूपी में 16 हज़ार 500 मदरसे चल रहे हैं. इनमें 17 लाख से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं. 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने मदरसों के आधुनिकीकरण की कोशिश शुरू की. मदरसा पोर्टल बनाया, जहां यूपी के सारे मदरसों को अपना पंजीयन कराना था. नतीजा ये हुआ कि गैरकानूनी तरीक़े से चल रहे पांच हज़ार से ज़्यादा मदरसे बंद हो गए. मदरसों में बच्चों को नक़ल से रोकने के लिए वेबकैम लगवाए गए. ग़ैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराया. जिन मदरसों ने सरकारी सहायता की मांग की, ऐसे 558 मदरसों को योगी सरकार मदद देती है. इन मदरसों को सरकार की तरफ़ से शिक्षकों और स्टाफ का वेतन दिया जाता है. बच्चों को NCERT की किताबें और मिड-डे मील मिलता है.
मदरसों को लेकर दो तरह के मसले थे. एक, राज्य सरकारों को लगता था कि मदरसों में आधुनिक शिक्षा नहीं दी जाती, वहां सिर्फ इस्लामिक ग्रंथों की पढाई पर ज्यादा जोर दिया जाता है. दूसरी तरफ मदरसा चलाने वालों को लगता था कि सरकारें मदरसों पर कब्जा करना चाहती हैं, उनके काम काज में दखल देना चाहती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों का जवाब दे दिया.
सरकारें मदरसों के प्रबंध में दखलंदाजी नहीं कर पाएंगी, पर मदरसों में क्या पढ़ाया जाए, पाठ्यक्रम क्या हो, विषय क्या हो, इस बाबत सरकारें फैसला कर सकती हैं. इस फैसले का स्वागत होना चाहिए. मदरसे चलाने वालों को इस मौके का इस्तेमाल आधुनिक शिक्षा की शुरुआत के लिए करना चाहिए ताकि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे आगे चलकर, अच्छे कालेजों में प्रवेश पा सकें, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, वकील और आईटी प्रोफेशनल्स बन सकें.
दूसरी तरफ ये प्रचार खत्म होना चाहिए कि मदरसों में आतंकवादी तैयार किए जाते हैं. दो-चार जगह किसी मौलाना, मौलवी के मदरसों की मिसाल देकर सारे मदरसों को बदनाम नहीं करना चाहिए.
दुख की बात ये है कि राजनैतिक दलों ने इसमें भी सियासी मुद्दा ढूंढ लिया. इसको मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की तनख्वाह तक सीमित कर दिया, जबकि असली जरूरत मदरसों की शिक्षा प्रणाली को, वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता को और मदरसों में पुस्तकालय जैसी सुविधाओं को बेहतर बनाने की है. इसकी कोशिश सब को मिलकर करनी चाहिए.
SC judgment is welcome : Need to modernize madrasas
A three-judge bench of Supreme Court has upheld the validity of Uttar Pradesh Board of Madrasa Education Act, 2004, that was struck down by Allahabad High Court in March this year. The High Court had termed the Act as ‘non-secular’ and ‘unconstitutional’, but the apex court said the Act does not violate any provision of the Constitution.
In its 70-page judgment, Chief Justice D Y Chandrachud, Justices J B Pardiwala and Manoj Misra said, the High Court erred in quashing the Act and by ordering shifting of all madrasa students to regular schools. The Supreme Court however struck down the provisions of the Act that allowed the UP Madrasa Board to confer graduate (Kamil) and post-graduate (Fazil) degrees. The apex court said, it was beyond the legislative competence of the state legislature as it is in conflict with the UGC Act which governs standards for higher education.
The Supreme Court judgment has cleared the clouds of uncertainty hanging over the fate of lakhs of students studying in madrasas across the state.
The apex court also made it clear that minorities have no absolute right to administer educational institutions, and the board could exercise regulatory power with approval of state government to ensure that religious minority institutions like madrasas imparted secular education of a requisite standard without destroying their minority character.
The judgment said, “State can regulate aspects of the standards of education such as course of study, qualification and appointment of teachers, health and hygiene of students, and facilities for librariers. Regulations pertaining to standards of education of qualification of teachers do not directly interfere with the administration of recognised madrasas. Such regulations are designed to prevent maldadministration of an educational institution.”
The apex court also made it clear that non-Muslim students studying in madrasas cannot be forced to study Islamic literature or follow Islamic rituals.
Muslim organizations like Jamiat Ulema-e-Hind and All India Shia Personal Law Board welcomed the apex court judgement saying that the apex court has corrected the error made by High Court. There are nearly 16,500 madrasas in UP where more than 17 lakh children study.
In 2017, after becoming CM, Yogi Adityanath started the process of modernisation of madrasas, by creating a portal for registration of all madarsas. As a result, more than 5,000 madrasas that were being run illegally were wound up. Webcams were introduced to stop copying during exams. 558 recognized madrasas are being given assistance by the state in the form of salaries for teachers and staff, NCERT books and mid-day meals for students.
Overall, there were two issues relating to madrasas. One, state governments felt that modern education was not being imparted and stress was only being laid on study of Islamic scriptures.
Secondly, those who were running madrasas felt that the state government was trying to take them over by interfering in their day-to-day administration. Now that the Supreme Court has given its judgment, state government can no more interfere in their management, but the State can decide about the courses of study, syllabus and curriculum.
This judgment should be welcomed. Those running madarsas should welcome this verdict and introduce modern education in their institutions. This will help madrasa students to study in accordance with unversally accepted standards of education and get admission to good colleges. They can aspire to become doctors, engineers, lawyers or IT professionals.
Moreover, misconception must be removed about terrorists being trained in madrasas. By citing examples of a few moulvis working for terrorism in one or two, all the madrasas cannot be tarnished with the same brush. Sadly, political parties gave a political twist to the issue and limited the issue to payment of salaries to teachers working in madrasas. Stress should be laid on improving the qualifications of teachers and providing good libraries in madarsas. All stakeholders must join hands and modernize the madrasas.
कनाडा में हिन्दुओं पर हमला : करारा जवाब मिलेगा
कनाडा से परेशान करने वाली खबर आई. खालिस्तान समर्थकों ने मंदिर में घुसकर हिन्दुओं पर हमला किया, हिन्दुओं को बुरी तरह पीटा गया और स्थानीय पुलिस तमाशा देखती रही. हैरानी की बात ये है कि मंदिर में जबरन घुसने वाले खालिस्तान समर्थक थे, लाठी डंडों से बेकसूर हिन्दुओं पर हमला करने वाले खालिस्तानी थे, जो घायल हुए वो हिन्दू हैं लेकिन कनाडा की पुलिस ने उल्टा काम किया. एक्शन हिंदुओं के खिलाफ लिया, पकड़ा हिन्दुओं को गया. खालिस्तानियों को पुलिस ने छोड़ दिया.
इससे कनाडा में बसे साढ़े आठ लाख हिन्दू गुस्से में हैं, जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ प्रोटेस्ट करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं. कनाडा में भी ‘बंटोगे , तो कटोगे’ के नारे लगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर पर हुए हमले की निंदा की. कहा, कि हमारे राजनयिकों को डराने की कोशिश की गई, लेकिन इससे भारत का संकल्प कमज़ोर नहीं होगा, कनाडा सरकार सुनिशिचत करे कि कानून का राज कायम रहे और सब को न्याय मिले.
विदेश मंत्रालय ने कनाडा की सरकार से हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और हमला करने वाले खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ एक्शन की मांग की. कनाडा के कई सांसदों ने माना कि हिन्दुओं पर हो रहे हमले, मंदिरों में घुसकर मारपीट, जस्टिन ट्रूडो की वोट बैंक वाली सियासत का नतीजा है. उन्होंने कहा कि कनाडा में बोलने की आजादी के नाम पर खालिस्तान समर्थकों को हिंसा की इजाजत देना ठीक नहीं है, लेकिन चिंता की बात ये है कि मंदिर पर हुए हमले में खालिस्तानियों की भीड़ में सिविल ड्रेस में कनाडा पुलिस के कुछ अफसर भी शामिल थे. पुलिस खालिस्तानियों को रोकने के बजाय, विरोध कर रहे हिन्दुओं को डराने धमकाने की कोशिश करती नजर आई.
सारे वीडियों में इसका सबूत है. कनाडा की सरकार इसे स्थानीय लोगों के बीच झड़प बता रही है. हकीकत ये है कि इस हमले की आशंका पहले से जताई गई थी लेकिन कनाडा की पुलिस, और सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया..
कनाडा के टोरंटो में स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने हिंदू सभा की मदद से ब्रैम्पटन के मंदिर में कॉन्सुलर कैंप लगाया था. इस कैंप में भारतीय राजनयिक भारतीय मूल के पेंशनरों को लाइफ सर्टिफिकेट देने के लिए पहुंचे थे. कैंप लगभग एक हज़ार लोगों की मदद के लिए लगाया गया था. लाइफ सर्टिफिकेट की जरूरत उन बुजुर्गों को होती है, जो पेंशनर्स हैं और रिटायर होने के बाद कनाडा में अपने बच्चों के पास रह रहे हैं. इन बुजुर्गों को पेंशन जारी रखने के लिए हर साल अपना लाइफ सर्टिफिकेट जमा कराना होता है.
कैंप लगने की ख़बर मिलते ही खालिस्तान समर्थकों ने मंदिर के बाहर प्रोटेस्ट का एलान कर दिया. ब्रैम्पटन की पुलिस ने खालिस्तानियों को मंदिर के ठीक सामने प्रोटेस्ट करने की इजाज़त भी दे दी. शुरू में सिर्फ नारेबाजी हो रही थी लेकिन जैसे ही कुछ लोग कॉन्सुलर कैंप में लाइफ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए पहुंचे तो लाठी डंडों से लैस खालिस्तानियों ने उन पर हमला बोल दिया.
मंदिर के गेट पर ही उन्होंने हिन्दुओं की पिटाई शुरू कर दी. जब हिंदुओं ने इसका विरोध किया तो खालिस्तानियों की हिंसक भीड़ मार-पीट करते हुए मंदिर में दाख़िल हो गई. मंदिर के भीतर देर तक हंगामा चलता रहा. हिंदुओं ने खालिस्तानी हमलावरों से झंडे छीनने शुरू कर दिए. कुछ लोग भारत का तिरंगा लेकर आ गए. उन्होंने खालिस्तानी हमलावरों को चुनौती दी. खालिस्तानियों की भीड़ हिंदुओं को मंदिर परिसर में घुसकर पीटती रही और पुलिस, केवल हिंदुओं को रोकती रही.
वीडियो में जिस शख्स को हाथ में झंड़ा लेकर नारे लगाते हुए देखा गया, वह ब्रैम्पटन इलाक़े की पुलिस फोर्स में सार्जेंट है. उसका नाम हरिंदर सोही है. हरिंदर सोही सिविल ड्रैस में मंदिर पर हमला करने वाले खालिस्तानियों के साथ था. वो खालिस्तान का झंडा लेकर भारत सरकार के खिलाफ नारे लगा रहा था.
असल में इस तरह की हमले की आशंका हिन्दू संगठनों को पहले से थी क्योंकि दिवाली से पहले खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने धमकी दी थी कि वो पंजाब में किसी हिंदू को आतिशबाज़ी नहीं करने देगा, पटाखे नहीं चलाने देगा.
कनाडा में हिंदुओं पर हमला चिंता की बात है. इसलिए नहीं कि कुछ सिरफिरे खालिस्तानी मंदिर में घुस गए, इसलिए नहीं कि भारत के दुश्मनों ने वहां के हिंदुओं के साथ मारपीट की. चिंता की बात इसलिए है कि ऐसे आतंकवादियों को कनाडा की पुलिस ने संरक्षण दिया.
चिंता की बात इसलिए है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो मजबूर हैं और इस घटना पर लीपा-पोती करने में लगे हैं. कनाडा जैसे देश से ऐसे दोहरे मानदंडों की उम्मीद दुनिया के कम मुल्कों को होगी. पर भारत को अब इस पर हैरानी नहीं होती.
पिछले 4 साल से कनाडा खालिस्तान समर्थकों का अड्डा बन गया है. कनाडा इन आतंकवादियों को पनाह देता है. जिन लोगों ने रिकॉर्ड पर कहा है कि भारत में उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे हैं. उन पर भारत में आतंक फैलाने का आरोप है. जिन्होंने माना है कि उनके पास से हथियार बरामद हुए. उन्हें भी कनाडा की सरकार ने अपने यहां शरण दी है. जो लोग डिजिटल मिडिया पर खालिस्तान का समर्थन करते हैं, भारत विरोधी बयान देते हैं. कनाडा की सरकार ने उन्हें अपने यहां मेहमान बनाकर रखा हुआ है.
पिछले साल भारत ने सात गैंगस्टर्स की लिस्ट कनाडा को दी थी लेकिन जस्टिन ट्रूडो ने कुछ नहीं किया. अब कनाडा में हिंदुओं पर हुए हमले ने इस पूरी साजिश को एक्सपोज कर दिया है.
अब सारी दुनिया को पता है कि दंगाइयों, गैंगस्टर्स को पनाह देने का क्या अंजाम हुआ. उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही है .इसीलिए कनाडा में रहने वाले हिंदू गुस्से में हैं. वो मानते हैं कि आज के वक्त खालिस्तान सपोटर्स की मदद करना ट्रूडो की मजबूरी है. उनकी सरकार उन 25 सांसदों के समर्थन पर टिकी है जो खालिस्तान समर्थक हैं.
लेकिन अब ये ज्यादा दिन नहीं चलेगा. कनाडा में न सिर्फ हिंदू गुस्से में है, बल्कि बड़ी संख्या में मॉडरेट सिख समाज के लोग भी हिंदुओं पर हुए हमले से नाराज हैं. वे नहीं चाहते कि कनाडा की छवि को नुकसान पहुंचे. इसमें उनकी भी बदनामी है. इसलिए वह दिन दूर नहीं जब जस्टिन ट्रूडो को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.
Attack on Hindus in Canada : Trudeau will have to face consequences
The deliberate, violent attack by some Khalistan separatists on Hindus outside the Hindu Sabha temple in Brampton, Canada, is a condemnable act, and it brings a bad name to all Indians living in Canada, particularly the Sikh community. Prime Minister Narendra Modi in his post on ‘X’, while condemning the incidents, wrote, “Equally appalling are the cowardly attempts to intimidate our diplomats. Such acts of violence will never weaken India’s resolve. We expect the Canadian government to ensure justice and uphold the rule on law”.
It is deplorable that the local Canadian police watched silently as the separatists attacked Indian Hindus with iron poles outside the temple. Instead of taking action against the attackers, the local police has taken action against Hindus, who bore the brunt of attack. Visuals circulating in social media show policemen pinning down a Hindu youth and handcuffing him.
The immediate provocation for the Khalistan supporters was a consular camp being held by the Indian High Commission at the Hindu Sabha temple in Brampton where life certificates were issued to Indian pensioners living with their families in Canada. Khalistan supporters, holding provocative banners, gathered outside the temple objecting to the holding of the consular camp by Indian diplomats.
The act of local police arresting Hindu youths has caused outrage and anger among nearly 8.5 lakh Hindus residing in Canada. Hindus,holding national tricolour flag, have staged protests against Prime Minister Justin Trudeau and the anti-national Khalistan separatists. Justin Trudeau, in his tweet, condemned the attack, but it was more of a face-saving gesture. Trudeau wrote: “The acts of violence at the Hindu Sabha Mandir in Brampton today are unacceptable. Every Canadian has the right to practice their faith freely and safely.”
The attack on Hindus in Canada is cause for worry, not because that a handful of Khalistanis entered a temple, or enemies of India attacked Hindus, but because Canadian police is openly providing support and protection to pro-Khalistan terrorists. It is more worrying because Canadian Prime Minister Justin Trudeau is now trying to cover up the incidents because of his party’s political compulsions.
Few countries of the world can expect such double standards from a country like Canada. For India, however, it is not surprising. Canada has become a base for Khalistan supporters in the last four years. Canada is giving asylum and protection to these terrorists. Many of them have criminal cases filed by Indian authorities against them. They have been charged of spreading terror in India, providing weapons to terrorists and they are getting protection from Canadian government.
Those supporting Khalistan on digital media and issuing anti-India statements, are being treated as guests by the Canadian government. Last year, Indian government had handed over a list of seven dreaded gangsters to Canada, but Justin Trudeau’s government did nothing. The latest attacks on Hindus in Canada is a consequence of this and it has fully exposed the conspiracy being hatched by enemies of India. The entire world now knows that such violent incidents are the result of giving asylum to rioters and gangsters.
Hindus living in Canada are angry. They know that it is Justin Trudeau’s compulsion to support Khalistan supporters, because his government is thriving on the support of 25 MPs, who are supporters of Khalistan. This cannot continue for long. Not only Hindus, but most of the moderate Sikhs living in Canada for generations, are also unhappy with the attack on Hindu temple. They do not want the image of Sikh community living in Canada to be tarnished. The day is not far enough when Justin Trudeau will have to face the consequences.
चुनाव प्रचार में महिलाओं से अभद्रता : अब बहुत हो गया
मुंबई में एकनाथ शिंदे की शिव सेना के टिकट पर चुनाव लड़ रही शायना एन सी ने उद्धव ठाकरे की शिव सेना के सांसद अरविंद सावंत पर भद्दी टिप्पणी करने का आरोप लगाया है. इसके बाद शायना ने अरविंद सावंत के खिलाफ मुंबई के नागपाड़ा थाने में FIR दर्ज करा दी.
सावंत के खिलाफ एक महिला की मर्यादा को जानबूझकर ठेस पहुंचाने, अपमानित करने, डराने और मानहानि की धाराओं में केस दर्ज किया गया है. दरअसल अरविंद सावंत मुंबा देवी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अमीन पटेल से नामांकन भरवा रहे थे. पत्रकारों से बात करते हुए अरविंद सावंत ने कहा कि मुंबा देवी से शिवसेना के टिकट पर लड़ रहीं शायना एन सी बाहरी उम्मीदवार हैं, वो ‘इम्पोर्टेड माल’ है. इसी बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया.
शायना ने कहा कि अरविंद सावंत का कमेंट बताता है कि महिलाओं के बारे में उनकी सोच कैसी है. सावंत के बयान उनका व्यक्तिगत अपमान ही नहीं, बल्कि सारी महिलाओं का अपमान है, कोई इसे बर्दाश्त नहीं करेगा. शायना ने कहा कि महाविकास अघाड़ी के दूसरे नेताओं उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने अभी तक इस टिप्पणी की निंदा नहीं की.
शायना ने कहा कि वो सावंत को तब तक माफ नहीं करेंगी जब तक वह थाने आकर उनसे माफी नहीं मांगते. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ इस तरह की बात कहना शिवसैनिकों का चरित्र नहीं है, अगर बालासाहेब ठाकरे जिंदा होते तो बयान देने वाले का मुंह तोड़ देते. शिंदे ने कहा कि सावंत के बयान का जवाब महिलाएं चुनाव में महाविकास अघाड़ी को देंगी.
अरविंद सावंत का कहना है कि वह शायना एनसी को मित्र मानते हैं और उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया. सावंत ने मामले को घुमाने के लिए मणिपुर का जिक्र किया और कर्नाटक में प्रज्ज्वल रेवन्ना से लेकर आशीष शेलार तक के बयान गिनाए.
अरविंद सावंत अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने क्या कहा था और किसके लिए कहा था. अब वो इधर-उधर की बातें करके अपनी बदजुबानी को बढ़ा रहे हैं. अगर वह अपने बयान को जस्टिफाई करने की कोशिश न करते तो बेहतर होता. उन्होंने शायना एनसी को इंपोर्टेड माल कहकर अभद्रता की, बदतमीजी की. हो सकता है गलती हो गई हो, जुबान फिसल गई हो, वह माफी मांगकर इस बात को खत्म कर सकते थे.
क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता. पर कुछ नेताओं की आदत होती है. वे राजनीति में आने वाली महिलाओं को दूसरे दर्जे की नागरिक मानते हैं. अभी कुछ दिन पहले 25 अक्टबूर को झारखंड के कांग्रेसी मंत्री इरफान अंसारी ने बीजेपी उम्मीदवार सीता सोरेन को “रिजेक्टेड माल” कहा था.
सीता सोरेन JMM के संस्थापक शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं. उनके पति का निधन 2009 में हो गया था. सीता सोरेन JMM छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई और वह जामताड़ा से चुनाव लड़ रही है. बीजेपी के नेताओं ने राज्यपाल के पास जाकर मांग की कि इरफान अंसारी को कैबिनेट से बरखास्त किया जाय और उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाय.
राजनीति में सक्रिय महिला नेताओं के बारे में भद्दी टिप्पणी करना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं है. झारखंड में सीता सोरेन को ‘रिजेक्टेड माल’ और महाराष्ट्र में शायना NC को ‘इंपोर्टेड माल’ कहा गया. किसी महिला के लिए ऐसी भाषा को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता. यह महिलाओं का अपमान है. ऐसी कोई भी हरकत अक्षम्य है.
Elections, women and indecent remarks : Stop it now
The use of indecent and derogatory remarks about female candidates by some male politicians in Maharashtra and Jharkhand is a matter of concern for all right-thinking Indians. On October 25, Congress minister in Jharkhand Irfan Ansari, contesting from Jamtara, described his BJP political rival Sita Soren as a “rejected maal”. BJP leaders lodged a protest with the Governor and demanded that he be dismissed from cabinet and barred from contesting elections. Ansari, on his part, did not apologize, but said, he did not use the words against Sita Soren, but used it in a general colloquial sense (“bolchaal ki bhaasha me use kiye the”).
Sita Soren is the wife of Jharkhand Mukti Morcha founder Shibu Soren’s eldest son Durga Soren, who died in 2009. She is the estranged sister-in-law of Chief Minister Hemant Soren. A tribal woman, Sita Soren broke down at a public meeting when she narrated the incident.
In Mumbai, Shiv Sena (UBT) MP and a close confidante of Uddhav Thackeray, Arvind Sawant, made an “imported maal” remark about Shaina NC. He faced an immediate backlash and Shaini NC filed an FIR against Sawant at Nagpada police station on Friday. The reason for using this indecent remark, according to Sawant, is that Shaina NC changed her constituency to Mumbadevi.
In his defense, Arvind Sawant says, he considers Shaini NC as “my friend”. Sawant said, “I never mentioned her name, I only said that an outsider is an imported maal, and will not able to work here.”
The fact is, his allusion was clearly towards Shaina NC, who promptly reacted on X saying, “I am a woman, not a maal” (Mai Mahila Hoon, Maal Nahin). She said, the women voters of Mumbai will surely give a befitting reply to such leaders. Shaina NC said, she would not forgive Sawant until and unless he comes to the police station and beg for pardon.
Chief Minister Eknath Shinde, on whose party ticket Shaina NC is contesting, said, the women of Maharashtra will reply to Congress-led Maha Vikas Aghadi for this indecent remark. Arvind Sawant, instead of tendering an apology, indulged in whataboutery, mentioning the parade of women in nude by a mob in Manipur to Janata Dal(S) leader Prajjwal Revanna’s sexual acts.
Arvind Sawant knows well what he said and for whom the remark was intended. By obfuscating, he is multiplying his mistake. It would have been better if had he not tried to justify his remark. By describing Shaina NC as “imported maal”, he has insulted womanhood. He could have apologized by saying it was a slip of tongue and the matter could have ended there.
Nobody becomes a lesser mortal by tendering apology. The sad part is that some of our male politicians view women as second-class citizens. Use of indecent remarks like ‘rejected maal’ and ‘imported maal’ about female politicians cannot be justified. It is shameful.
अयोध्या दीपोत्सव: दीप जलते रहें, अंधकार दूर करते रहें
अयोध्या नगरी 25 लाख से ज़्यादा दीपों के बीच जगमगायी. बुधवार को दीपोत्सव का दिव्य नज़ारा देखने को मिला. अय़ोध्या के 55 घाटों पर एक साथ 25 लाख 12 हजार 585 दीए जलाकर गिनीज़ बुक का विश्व रिकॉर्ड बनाया गया. सरयू के तट पर 1,121 वेदाचार्यों ने एक साथ सरयू की आरती की. ऐसा अयोध्या में पहली बार हुआ है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दीपोत्सव की शुरुआत से पहले ही भगवान राम के मंदिर में पहुंचे, उनका दर्शन किया. इसके बाद उन्होंने नए राम मंदिर के प्रांगण में दीया जलाया. योगी सरयू घाट पहुंचे. राम की पैड़ी पर उन्होंने विधिवत तरीके से मंत्रोच्चार के बीच सरयू मइया की पूजा की.
अयोध्या का ये दीपोत्सव इसलिए भी विशेष है क्योंकि 500 साल बाद ये पहली दिवाली है, जब अयोध्या में फिर से भगवान राम का विशाल मंदिर बन चुका है. रामलला अपने अलौकिक मंदिर में विराजमान हैं. अय़ोध्या की सड़कें, गली, चौराहे सब रोशनी से जगमगा रहे थे. पूरे अयोध्या को भव्य तरीके से सजाया गया.
अयोध्या में सनातन धर्म की विरासत औऱ त्रेतायुग की दिवाली की झलक दिखाई दी. दीपोत्सव से पहले 1,121 संतों-महंतो ने सरयू घाट पर भव्य आरती की.
योगी ने भगवान राम औऱ सीता के रूप में आए कलाकारों की आरती उतारी . खुद झांकी में भगवान राम का रथ खींचा. राम मंदिर में भगवान राम की पूजा की. इसके साथ ही योगी ने विरोधियों को कड़ा संदेश दिया. योगी ने दीपोत्सव पर राजनीति करने वालों को करारा जवाब दिया. सनातन धर्म का विरोध करने वालों को कड़ी चेतावनी दी. राम मंदिर के निर्माण पर योगी आदित्यनाथ ने डंके की चोट पर कहा कि हमने जो कहा वह करके दिखाया..
योगी ने कहा कि एक वक्त था जब अयोध्या में न सड़क ठीक थी, न सरयू का घाट कायदे का था, जो भी अयोध्या आता था, निराश होकर जाता था. पहले की सरकारों ने अयोध्या को उसकी बदहाली पर छोड़ दिया था और कुछ लोग तो भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा रहे थे.
योगी ने कहा कि जिन लोगों ने भगवान राम की उपेक्षा की, उन पर सवाल खड़े किए, आज उन्हें अयोध्या की ये तस्वीरें ज़रूर देखनी चाहिए. समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए योगी ने कहा कि जिन लोगों ने अयोध्या में रामभक्तों पर गोली चलवाई, उनके खून बहाए, जब राम मंदिर बनना शुरू हुआ, ज़मीनें अधिगृहीत की गईं, तो उन्होंने ये कहना शुरू किया कि किसानों को, व्यपारियों को परेशान किया जा रहा है. अब वो अयोध्या के विकास में बाधक बन रहे हैं.
अयोध्या में रिकॉर्ड दीये जलाने के उत्सव में कई संदेश छिपे हैं. एक तो ये कि रामलला के मंदिर में विराजमान होने के बाद ये दीपोत्सव का पहला उत्सव है, जो याद दिलाता है कि नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के निर्माण का वादा पूरा किया. इसलिए योगी ने याद दिलाया, जो कहा वह करके दिखाया है.
दूसरा, दीपोत्सव के बहाने योगी ने हिंदू समाज को एक होने का आह्वान किया. सनातन पर हमला करने वालों को चेतावनी दी. तीसरी बात, राम मंदिर को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अपनी गलती दोहराई. उन्होंने एक बार फिर अयोध्या में दीपोत्सव का विरोध किया. एक ने भेदभाव का नाम लिया तो दूसरे ने दीयों के तेल से फैलने वाली गंदगी को बहाना बनाया.
अयोध्या में दिवाली के अवसर पर दीपोत्सव के प्रति लोगों के उत्साह को देखते हुए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का स्टैंड बचकाना लगता है. ये वही काम है जो उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा के समय किया था . अयोध्या में राम का मंदिर बना है, रामलला विराजमान हुए हैं, इसके बाद पहली दीपावली है. सबको इसे मिलकर मनाना चाहिए. इसपर विवाद खड़ा करने का क्या फायदा? लेकिन विवाद सिर्फ अयोध्या के दीपोत्सव को लेकर नहीं हुआ, पटाखों और आतिशबाजी पर भी सवाल उठाए गए.
Ayodhya Deepotsav: Let the lights dispel darkness
The holy city of Ayodhya, birthplace of Lord Rama, dazzled on Diwali-eve as two Guinness world records were set. A record 25 lakh 12,585 diyas were lit across the 55 river banks, as 1,121 vedacharyas performed aarti on the banks of Saryu river. Nearly 500 drones illuminated the night sky with stories from Ramayana.
This was the first ‘Deepotsav’ at Lord Rama’s birthplace since the consecration of Ram Lalla temple in January this year. More than 500 years after the temple was pulled down by foreign invaders and a mosque was built, Lord Rama’s birthtown has celebrated Diwali with gusto.
The roads and lanes of Ayodhya were brightly lit to commemorate the return of Lord Rama, his brother Lakshman and wife Sita, after 14 years of exile. A vast sea of lighted lamps was seen from an aerial drone above the city of Ayodhya. Almost all the temples in the holy city were illuminated. It was a mesmerizing view as synchronized and intricate pattern of laser lights lit the sky.
Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath, the man behind the show, was present to welcome the artistes playing the roles of Lord Ram, Lakshman and Sita and himself pulled their chariot. In his speech, Yogi said, “we have delivered what we had promised”. The local Faizabad MP of Samajwadi Party did not attend the celebration.
The “Deepotsav” in Ayodhya has several messages for the rest of India. One, this was the first Diwali celebration after the installation of Lord Ram Lalla at his birthplace. It reminds one how Prime Minister Narendra Modi fulfilled his promise to build the Ram Janmasthan temple, and this was underlined again by Yogi on Wednesday.
Two, by organizing Deepotsav, Yogi has given a clarion call to all Hindus to unite. He warned those attacking Sanatan Dharma and trying to create caste divisions in Hindu society. Three, both Samajwadi Party and Congress repeated their mistakes by opposing Deepotsav. One of them spoke about discrimination, while the other party spoke about how the river was polluted by littering lakhs of tonnes of oil.
Looking at the exhilaration and enthusiasm among the general public, the objections raised by both these parties appear to be childish. These parties had committed the same mistake at the time of consecration of Ram Lalla temple in January this year.
The very fact that Diwali is being celebrated at the birthplace of Lord Rama after the consecration of the grand temple is an event that should have been collectively endorsed. I do not find any reason behind raising any dispute. Already, disputes are being raised about use of firecrackers on Diwali night, but it is better that one should avoid raising disputes during festive cheer.
आयुष्मान उपचार: 70+ को उपहार का त्योहार
धनतेरस को आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की जयंती के तौर पर मनाया जाता है और पूरे परिवार के स्वास्थ्य की मंगलकामनाएं की जाती है. इसी मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 हजार 850 करोड़ रु. की स्वास्थ्य परियोजनाओं का उद्घाटन किय़ा. उसके साथ-साथ देश में 70 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को आयुष्मान भारत स्कीम से जोड़ा है. इससे उन्हें 5 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिलेगी.
मोदी ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल की सरकारों पर निशाना साधा और कहा कि केंद्र सरकार तो पूरे देश के लोगों के लिए ये स्कीम लेकर आई है लेकिन दिल्ली और बंगाल की सरकारें राजनीतिक स्वार्थ की वजह से इस योजना से नहीं जुड़ रही हैं. इसका नुकसान वहां के बुजुर्गों को होगा. मोदी ने कहा कि सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए दिल्ली और बंगाल की सरकारें ऐसा कर रही हैं. इस बात का उन्हें बेहद दुख है. बुज़ुर्गों के लिए जो आयुष्मान योजना शुरू हुई है, वह उनके लिए वरदान है. इन बुजुर्गों का आशीर्वाद मुझे हमेशा मिला है.
मैं थोड़ा समय लेकर 70 साल से ज्यादा उम्र के दशकों को ये स्कीम समझाना चाहता हूं.
पहला सवाल ये है कि क्या इस योजना का लाभ 70 साल से अधिक उम्र के हर बुजुर्ग को मिलेगा या जिनकी आय ज्यादा है उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा? इसका जवाब ये है कि 70 साल से अधिक उम्र के हर बुजुर्ग को चाहे उनकी आय कितनी भी हो, 5 लाख रु. तक का इलाज मुफ्त मिलेगा. आपकी आमदनी कितनी भी हो उससे फर्क नहीं पड़ेगा.
दूसरा सवाल ये है कि क्या परिवार के हर बुजुर्ग को 5-5 लाख का इलाज मिलेगा? तो इसका जवाब ये है कि ये योजना परिवार के लिए है. दादा-दादी दोनों कवर होंगे और सालाना पांच लाख रु. कवर को शेयर करेंगे.
अब तीसरा सवाल, अगर परिवार में पहले से कोई आयुष्मान लाभार्थी है तो क्या होगा? अगर परिवार में पहले से आयुष्मान लाभार्थी है तो भी 70 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों को अलग से लाभ मिलेगा. उनको आपना KYC अपडेट करना होगा. बुजुर्गों के लिए जो पांच लाख रुपये का लाभ मिलेगा, वह सिर्फ उन्हीं के लिए होगा.कोई कम उम्र वाला व्यक्ति उसे शेयर नहीं कर पाएगा.
चौथा सवाल, अब बुजुर्ग ये पूछेंगे कि अगर किसी ने प्राइवेट कंपनी का स्वास्थ्य बीमा लिया हुआ है तो क्या होगा? इसका जवाब है कि स्वास्थ्य बीमा होने के बावजूद बुजुर्ग आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ उठा सकेंगे. लेकिन अगर आप सरकारी कर्मचारी रह चुके हैं..आपके पास CGHS का कार्ड है..जिसमें आपके सारे medical expenses कवर होते हैं तो आपको CGHS या आयुष्मान योजना दोनों में से किसी एक को चुनना होगा. दोनों का लाभ एक साथ नहीं मिलेगा. 70 से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ उठाने के लिए अलग से कार्ड बनवाना होगा, जिसकी प्रक्रिया 29 अक्टूबर से शुरु हो गई.
मैं नरेंद्र मोदी की तारीफ करूंगा कि उन्होंने देश के बुजुर्गों के लिए ये योजना शुरू की और इसे आय से न जोड़कर इसे बहुत आसान बना दिया. उन्हें बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद ज़रूर मिलेगा.
Free Health Cover: Modi’s Festival Gift to Elderly
On Dhanteras, when Indians worshipped God Dhanwantari and Kuber for good health and prosperity, Prime Minister Narendra Modi launched free Rs 5 lakh medical insurance to all citizens aged 70 years and above, irrespective of their income level. This is part of the flagship scheme Ayushman Bharat-PM Jan Arogya Yojana which was launched in 2018 for vulnerable sections with a cover of Rs 5 lakh per family for secondary and tertiary care hospitalisation.
Modi apologized to the elderly people living in Delhi and West Bengal for being “unable to serve” them since the governments of these states have not joined Ayushman Bharat scheme. This will deprive millions of elderly people above 70 years free healthcare. So far, nearly four crore poor people have availed benefits under Ayushman Bharat scheme, Modi said. These poor people would have shelled out Rs 1.25 lakh crore from their own pockets, if they had not been covered under this scheme, the PM said.
Let me explain in brief the benefits that citizens above 70 years of age will get under Ayushman Bharat scheme. One, they will get free hospitalization cover upto Rs 5 lakh, irrespective of their income. Two, elderly couple above 70 will both be covered upto Rs 5 lakh annually under this scheme. If any poor family is already covered under Ayushman scheme, the elderly members above 70 years will get extra benefits of upto Rs 5 lakh. They will have to update their KYC details and the Rs 5 lakh cover will be available only for the elderly. No family member below 70 years can share that cover.
Three, if any elderly citizen is already covered under private medical insurance, he or she will still be entitled to be enrolled under Ayushman scheme. Four, those ex-government employees above 70, already having CGHS card and availing CGHS hospitalization benefits, will have to choose between either CGHS or Ayushman Bharat scheme. They cannot avail benefits of both schemes at a time.
Five, citizens above the age of 70, will have to get their Ayushman Bharat card made, and the process has begun from October 29. I would like to praise Prime Minister Narendra Modi for launching this scheme for the elderly people, without linking it to their income level. Modi is surely going to get the blessings of the elderly Indians.