शरद पवार : क्या नाम ही काफी है ?
महाराष्ट्र में बुधवार को शरद पवार और अजित पवार के बीच शक्ति परीक्षण हुआ. परिवार के इस युद्ध में छोटे पवार ने बड़े पवार को मात दे दी. आज के मैच में भतीजे ने चाचा को हरा दिया. पार्टी के ज़्यादातर विधायक और नेता अजित पवार के साथ दिखाई दिए. दूसरी तरफ़ शरद पवार खड़े थे जिनके साथ 16 विधायक थे और बेटी सुप्रिया सुले मोर्चा संभाले हुए थीं. आज की इस लड़ाई में पार्टी से ज़्यादा परिवार टूटने का दर्द दिखाई दिया. दोनों तरफ़ से बरसों से क़ैद शिकायतें और इमोशन बाहर आ गए. अजित पवार ने कहा कि पवार साब की उम्र 83 साल हो गई है, अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए, मार्गदर्शक की भूमिका में आना चाहिए लेकिन वो मानने को तैयार नहीं हैं, इस्तीफा दिया और पलट गए. अजित पवार ने कहा कि पलटी मारना पवार साहब की आदत है, लेकिन अब ये नहीं चल पाएगा, अब उन्हें आराम करना चाहिए और छोटों को आशीर्वाद देना चाहिए. दूसरी तरफ सुप्रिया सुले ने कहा कि आशीर्वाद तो मिलेगा, लेकिन घर तोड़कर आशीर्वाद मांगने वालों को अपनी गिरेबां में झांकना चाहिए. शरद पवार ने अजित पवार और उनके साथ गए लोगों को खोटा सिक्का बता दिया. लेकिन अजित पवार ने पूछा कि क्या उनका कसूर ये था कि वो शरद पवार के बेटे नहीं हैं. इस पर सुप्रिया सुले ने कहा, ऐसा बेटा होना भी नहीं चाहिए. अब बेटी पिता के सम्मान के लिए लड़ेगी. आज अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, सुनील तटकरे, धनंजय मुंडे जैसे तमाम NCP के बड़े नेताओं ने सालों की टीस बाहर निकाल दी. मौक़ा भी था, संख्या बल भी था. अजित पवार के साथ 31 विधायक दिखाई दिए. शरद पवार के साथ 16 विधायक खड़े हुए. हालांकि अजित पवार का दावा है कि उनके साथ 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है, और कुछ विधायक जो आज संकोचवश शरद पवार के साथ दिख रहे हैं, कुछ दिनों बाद वे भी अजित पवार के साथ होंगे. कुल मिलाकर संख्या बल के खेल में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को मात दे दी. अब आंकड़ों के आधार पर अजित पवार ने NCP के नाम और चुनाव निशान पर दावा ठोक दिया है. चुनाव आयोग में अर्जी दे दी है. शरद पवार के खेमे ने चुनाव आयोग में कैविएट फाइल की, जिसमें कहा गया है कि बग़ावत करने वाले नौ विधायकों को NCP से निकाल दिया गया है, इसलिए उनकी अर्जी पर कोई भी फैसला लेने से पहले शरद पवार के खेमे की बात भी सुनी जाए. लेकिन इसके साथ साथ महाराष्ट्र में जो राजनीतिक संदेश गया, वो बड़ी बात है. आज शरद पवार ने बार बार ये साबित करने की कोशिश की कि NCP में बगावत के पीछे बीजेपी है. सत्ता का लालच देकर पवार के परिवार और पार्टी को तोड़ा गया, लेकिन अजित पवार ने साफ साफ दो टूक कह दिया कि इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है, जो हुआ, उसके लिए शरद पवार जिम्मेदार है. अजित पवार ने जबरदस्त इमोशनल स्पीच दी. करीब एक घंटे के भाषण में अजीत पवार ने 1978 से लेकर अब तक का पूरा इतिहास बता दिया. कहा कि शरद पवार ने जब भी जो कहा, उन्होंने वैसा ही किया, हर आदेश माना. कई बार शरद पवार ने उनके कंधे पर रखकर बंदूक चलाई, बाद में पलट गए और बदनाम उन्हें किया. अजित पवार ने कहा कि शरद पवार ने उन्हें विलेन बना दिया, उन्होंने कभी जुबान नहीं खोली लेकिन ये कब तक चलेगा.
अपने भाषण में शरद पवार ने विचारधारा की बात की. कहा, बीजेपी की विचारधारा NCP से अलग है. शरद पवार ने बीजेपी के हिन्दुत्व को विभाजनकारी, बांटने वाला और शिवसेना के हिन्दुत्व को सबको साथ लेकर चलने वाला बताया लेकिन प्रफुल्ल पटेल ने याद दिलाया कि शरद पवार की सबसे ज्यादा आलोचना बाला साहेब ठाकरे ने की थी, शरद पवार को सबसे ज्यादा बुरा भला शिवसेना ने कहा, इसलिए, अगर शरद पवार शिवसेना के साथ जा सकते हैं, तो बीजेपी में क्या बुराई है. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार के मुंह से विचारधारा की बातें अच्छी नहीं लगतीं, अगर उनको विचारधारा की इतनी ही फ़िक्र थी तो शिवसेना के साथ सरकार क्यों बनाई थी. कुल मिला कर अजित पवार ने दिखा दिया, उनके पास विधायकों का समर्थन है, संगठन का सपोर्ट है, सरकार की ताक़त है, पार्टी का नाम और निशान भी उन्हें मिल जाएगा. इस ताक़त के बल पर, आज अजित पवार जीवन में पहली बार खुलकर बोले और शरद पवार की पूरी पोल खोल दी, चाचा को पलटूराम कह दिया. ऐसा लगा कि अजित पवार बरसों से शरद पवार के साये में घुट रहे थे. आज उनके भीतर की आग धधककर बाहर आ गई. ये देखकर दु:ख हुआ कि जिन शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा था, वो आज अपने भतीजे के सामने बेबस खड़े थे, लेकिन, इसके लिए ख़ुद शरद पवार ही ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने अजित पवार की महत्वाकांक्षा को नज़रअंदाज़ किया. अपने विधायकों की हसरतों को नहीं समझ पाए, अपने दोस्तों की सलाह की उपेक्षा करते रहे. चाचा पवार ये सोचकर बैठे थे कि किसकी हिम्मत है जो मेरे ख़िलाफ़ खड़ा होगा. कल पूरी रात पवार साहब विधायकों को फ़ोन करके अपने यहां आने के लिए कहते रहे. आज सुबह भी उन्होंने कई नेताओं को मनाने की कोशिश की. आज जब सिर्फ़ 16 विधायक वहां पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अगर वो प्रफुल्ल पटेल जैसे अपने शुभचिंतक की बात सुन लेते, तो आज शायद ये दिन नहीं देखना पड़ता. राजनीति संख्या बल का खेल है, ये शरद पवार से ज़्यादा और कौन जानता है. आज ये आंकड़ा अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल के साथ हैं. आज मुझे लगा पवार साब को एक न एक दिन रिटायर तो होना ही है. अगर अजित और प्रफुल्ल की बात मानकर, सम्मानपूर्वक रिटायर हो जाते, तो अच्छा रहता. लेकिन मुझे इस बात पर आश्चर्य नहीं है कि इतना सब हो जाने के बाद भी शरद पवार ज़िद पर अड़े हैं. वो मानते हैं कि इन विधायकों को चुनाव मैंने जिताया, मैंने इन्हें नेता बनाया. अब मैं इन्हें फिर से हरा सकता हूं. मैं शरद पवार की इस हिम्मत की दाद दूंगा कि स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता, उम्र भी उनकी तरफ़ नहीं है, वो सारे नेता जिन्हें उन्होंने बनाया था साथ छोड़ गए, तो भी वो युद्ध के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. हालांकि वो ये मानते हैं कि 2024 में मोदी की जीत होगी. महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना- NCP का गठबंधन अचूक बन जाएगा, तो भी न वो हार मानने को तैयार हैं, न पीछे हटने के लिए. इसीलिए उनका नाम शरद पवार है. और सुप्रिया सुले कहती हैं कि नाम ही काफ़ी है.
लालू यादव : क्या ताक़त अभी बाकी है ?
शरद पवार की तरह लालू यादव भी हार मानने वालों में नहीं हैं. बुधवार को लालू शरद पवार के समर्थन में उतरे. लालू ने कहा कि नरेन्द्र मोदी लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं, विधायकों को तोड़ कर राज्यों में सरकारें गिरायी जा रही हैं. लालू यादव ने कहा कि मोदी को गरीबों की फिक्र नहीं हैं क्योंकि वो तो विधायक खरीद कर सरकारें बनाने में लगे हैं. लालू ने कहा कि अब मोदी की विदाई तय है, विरोधी दल साथ मिलकर नरेन्द्र मोदी को उखाड़ फेंकेंगे. बुधवार को RJD के स्थापना दिवस के मौके पर पटना में कार्यक्रम हुआ. पार्टी अध्यक्ष के तौर पर लालू यादव ने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बताया कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए कैसे तैयारी करनी है. लालू ने कहा कि अब विरोधी दल एक हो गए हैं, 17 पार्टियां मिलकर मोदी को उखाड़ देंगी, उसके बाद एक-एक जुल्म का हिसाब लिया जाएगा. लालू यादव ने कहा कि विपक्ष को डराने के लिए सरकार झूठे केस लगा रही है लेकिन वो डरने वाले नहीं है, मोदी को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि जब वो पद पर नहीं रहेंगे तो उनकी क्या गति होगी. जवाब में बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने कहा कि लालू को मोदी को फिक्र छोड़कर अपनी चिंता करनी चाहिए क्योंकि उनकी पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी. लालू यादव की हिम्मत भी कमाल की है. उनका स्वास्थ्य साथ नहीं देता, उम्र भी ज्यादा है, कई साल जेल में रह चुके हैं. कई मामलों में सजायाफ्ता हैं. उनके खिलाफ नए नए केस दर्ज हो रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी. इसके बावजूद उनका जज्बा ये है कि आने वाले चुनाव में मोदी को उखाड़ फेंकना है. जो लोग सोचते थे लालू यादव का जमाना चला गया, वो खत्म हो गए, वो आजकल लालू यादव के तेवर देखकर हैरान हैं. लालू ने अपने जानी दुश्मन नीतीश के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई. अब वो जल्दी से जल्दी तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालायित हैं और किसी को भी लालू यादव की राजनीतिक क्षमता को, उनकी चतुराई को कम करके नहीं आंकना चाहिए. लालू यादव आज भी चमत्कार कर सकते हैं.
पवार परिवार में फूट क्यों पड़ी : अंदर की बात
महाराष्ट्र में जो हुआ उसमें अंदर की एक-दो बातें आपके साथ शेयर कर सकता हूं. दो महीने पहले अजीत पवार ने शरद पवार को बताया था कि एनसीपी के ज्यादातर विधायक महाराष्ट्र की बीजेपी शिवसेना सरकार में शामिल होना चाहते हैं. शरद पवार ने स्वीकार किया कि ज्यादातर लोग यही चाहते हैं, पर शरद पवार की व्यक्तिगत आपत्ति थी. वो बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहते थे. तो कई बैठकों के बाद ये तय हुआ कि पवार साहब NCP का अध्यक्ष पद छोड़ेंगे, उनकी जगह सुप्रिया सुले को अध्य़क्ष बनाया जाएगा और महाराष्ट्र और केन्द्र में NCP सरकार में शामिल हो जाएगी. अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बनेंगे और केन्द्र में जो एक मंत्री पद NCP को मिलेगा, वो भी सुप्रिया सुले को दिया जाएगा. महाराष्ट्र की राजनीति अजीत पवार चलाएंगे. सारी बातचीत पक्की हो गई. इसी प्लान के तहत शरद पवार ने इस्तीफा दिया, लेकिन दो दिन बाद शरद पवार पलट गए. फिर से पार्टी की कमान अपने हाथ मे ले ली. अजीत पवार को गच्चा दे दिया. इसके बाद अजीत पवार ने प्रफुल्ल पटेल से बात की. दोनों ने तय किय़ा इस ढुलमुल नीति को ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं करेंगे. इन दोनों ने पार्टी के पांच छह वरिष्ठ नेताओं से बात की. उन्होंने आगे विधायकों से चर्चा की, और फैसला किया कि पवार साहब तैयार हों या न हों, NCP को सरकार में शामिल होना चाहिए. ये बात अमित शाह तक पहुंचाई गई. इसके बाद अमित शाह ने पता लगाया कि क्या सचमुच चालीस विधायक अजीत पवार के साथ हैं या नहीं, और जैसे ही इस बात की पुष्टि हुई, रविवार को खेल हो गया. मुझे ये भी पता चला कि ये खेल खेलने की तैयारी एक बार पहले भी की गई थी, जब शिन्दे गुट के लोग दो-दो, चार-चार करके गुवहाटी में इक्कठा हो रहे थे. अजीत पवार ने अपने विधायकों से बात की. 51 विधायक ऐसे थे जो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए तैयार थे. अजीत पवार ने शरद पवार से कहा कि शिन्दे अपने विधायकों को लेकर आएं. इससे पहले अगर एनसीपी बीजेपी के साथ हाथ मिला ले, तो पवार परिवार मजबूत स्थिति में रहेगा. शरद पवार ने कहा, जाओ बात करो. उस समय भी प्रफुल्ल पटेल ने अमित शाह से बात की थी. देवेन्द्र फडनवीस भी तैयार थे. जब सबकुछ तय हो गया तो ऐन मौके पर शरद पवार ने पलटी मार दी, हाथ पीछे खींचे लिए. अजीत पवार बार बार उनसे कहते रहे कि तीसरी बार आपने स्टैंड बदला है, इससे पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है. पार्टी कई कदम पीछे चली गई है. NCP के नेताओं को लगता है कि पवार साहब विरोधी दलों की एकता के सूत्रधार बनना चाहते हैं, वो मोदी से इतने चिढ़े हुए हैं कि किसी भी कीमत पर उनको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं और विरोधी दलों के बीच लीडरी करना तब तक संभव नहीं होगा जब तक NCP फर उनका कन्ट्रोल न हो. इसलिए पार्टी के बड़े नेताओं की, विधायकों की, पूर्व मंत्रियों की राय जानने के बावजूद वो NCP से कन्ट्रोल छोड़ना नहीं चाहते. इस बार अजीत पावर ने उनसे साफ कह दिया कि आपने अपनी पारी खेल ली, आप एक बार भी NCP की सरकार अपने दम पर नहीं बना पाए, केजरीवाल जैसे नए नए नेता ने दो दो राज्यों में सरकारें बना लीं. अगर आपके बस का नहीं, तो अब हमें खेलने दो. उनको ये भी समझाया गया कि 83 साल की उम्र हो चुकी, स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता, अब उन्हें थोड़ा आराम करना चाहिए, लेकिन पवार आराम से बैठने को तैयार नहीं है. अजीत पवार की बगावत के बाद वो फिर मैदान में उतर गए हैं. अब वो पूरे महाराष्ट्र में घूमेंगे. उन्हें इसमें मजा भी आता है, पर प्रफुल्ल पटेल और अजीत पवार शरद पवार की नस-नस से वाकिफ हैं, उनकी हर चाल को पहचानते हैं, उन्हें कैसे काउंटर करना है, इसे भी समझते हैं. इसलिए महाराष्ट्र में अगले कुछ महीनों में जबरदस्त राजनीतिक युद्ध देखने को मिलेगा, ये पक्का है.
खालिस्तानियों में जंग
अमेरिका और कनाडा में बैठे हिंदुस्तान के दुश्मनों ने एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश की है. पाकिस्तानी आकाओं के इशारों पर काम करने वाले खालिस्तानी आतंकवादियों ने फिर भारत को धमकी दी है. सैनफ्रांसिको में खालिस्तानी आतंकवादियों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास में घुसने की कोशिश की, वहां आग लगा दी. अमेरिका में भारत के राजदूत और सैन फ्रांसिको में हमारे महावाणिज्यदूत पर हमले की धमकी दी. इसी तरह की हरकतें कनाडा में भी दिखाई दीं. यहां खालिस्तानियों ने पोस्टर्स जारी करके भारत के उच्चायुक्त और महावाणिज्यदूत को जान से मारने की धमकी दी है. पोस्टर पर भारतीय राजनयिकों की तस्वीरें लगाई गईं . अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ने सैन फ्रांसिको में हुए हमले की निंदा की है. हमला करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ एक्शन शुरू हो गया है, लेकिन भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि सिर्फ जुबानी जमा खर्च से काम नहीं चलेगा. अमेरिका और कनाडा दोनों देशों से साफ कहा गया है कि भारत के खिलाफ काम करने वालों पर सख्ती करनी होगी वरना आपसी रिश्ते खराब होंगे. कनाडा के ओटावा में आतंकवादियों ने धमकी दी है कि 8 जुलाई को वहां भारतीय उच्चायोग के बाहर खालिस्तान फ्रीडम रैली निकालेंगे. भारत ने कनाडा से कहा कि इस पर समय रहते एक्शन लिया जाए लेकिन सवाल ये है कि दूसरे मुल्कों में छुपकर बैठे खालिस्तानी दहशतगर्द अचानक इस तरह की हरकतें क्यों करने लगे हैं? उनकी मंशा क्या है? वो इतने बौखलाए हुए क्यों है? क्या वजह है कि अब तक बिलों में छुपे बैठे देश के दुश्मनों को अचानक बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ा? मैं आपको बताता हूं कि विदेशों में छुपे बैठे खालिस्तानी क्यों बौखलाए हुए हैं? क्यों इस तरह की हरकतें कर रहे हैं? दरअसल गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमृतपाल सिंह के जरिए भारत में खालिस्तान के नारे को हवा देने की कोशिश की थी लेकिन अमृतपाल सिंह और सारे साथी पकड़े गए. अब विदेश में बैठे खालिस्तानी आतंकवादी भी मारे जा रहे हैं. पिछले छह महीनों में कनाडा, ब्रिटेन और पाकिस्तान में बड़े बड़े खालिस्तानी आतंकवादी मारे जा चुके हैं. इससे खालिस्तानी आंदोलन को हवा देने की कोशिश कर रहे आतंकवादी बौखलाए हुए हैं. 20 जून को कनाडा के Surrey शहर में खालिस्तान टाइगर फ़ोर्स के चीफ हरदीप सिंह निज्जर को गोली मार दी गई थी. जून में ही खालिस्तान लिबरेशन फ़ोर्स के आतंकवादी अवतार सिंह खांडा की, ब्रिटेन के बर्मिंघम शहर में मौत हो गई थी. अवतार सिंह खांडा, अमृतपाल सिंह का हैंडलर था. उसी ने अमृतपाल को 37 दिन तक पुलिस से बचने में मदद की थी. अवतार सिंह खांडा को कैंसर था लेकिन खालिस्तानी आतंकवादियों को शक है कि उसे अस्पताल में ज़हर देकर मारा गया. मई में खालिस्तान कमांडो फ़ोर्स के आतंकवादी परमजीत सिंह पंजवड़ की हत्या कर दी गई थी. परमजीत सिंह पंजवड़ को लाहौर में दो बाइक सवारों ने उस वक़्त गोली मार दी थी, जब वो मॉर्निंग वॉक के लिए अपने घर से निकला था. इसी साल जनवरी में एक और खालिस्तानी आतंकवादी हरमीत सिंह उर्फ़ हैप्पी पीएचडी की हत्या हो गई थी. उसको भी लाहौर के पास एक गुरुद्वारे में गोली मारी गई थी. हरमीत सिंह खालिस्तानी आतंकवादियों को ट्रेनिंग देता था और ड्रग्स की तस्करी कराता था. पंजाब में संघ के नेताओं की हत्या में भी उसका हाथ रहा था. चूंकि बड़े बड़े खालिस्तानी आतंकवादी मारे जा रहे हैं, इसलिए खालिस्तानियों में दहशत है क्योंकि उन्हें लगता है कि खालिस्तानियों की हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ है. इसीलिए अपने सपोर्टर्स को एकजुट रखने, उन्हें हौसला देने के लिए कनाडा और अमेरिका में भारतीय हाई कमीशन को धमकी दी गई. इन देशों में रहने वाले कई सिख व्द्वानों और सिख समाज के लोगों से मेरी बात हुई. उनका कहना है कि इन हमलों का, इन खालिस्तानियों का सिख समाज से कोई लेना देना नहीं है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड में रहने वाले ज्यादातर सिख अमनपसंद हैं, भारत को प्यार करते हैं.. मुट्ठीभर लोग पूरे सिख समाज को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाब नहीं होने दिया जाएगा. इन मुल्कों में रहने वाले सिख समाज की शिकायत है कि वहां की सरकारों ने अपराधियों की शिनाख्त करने में, उनके खिलाफ एक्शन लेने में देरी की, इसी वजह से इन आंतकवादियों की हिम्मत बढ़ती गई. किसी मुल्क में वोटों की कम्पल्शन सामने आई, तो कहीं लापरवाही दिखाई दी. अब भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है, इसका असर जल्दी दिखाई देगा. भारत के लिहाज से एक पॉजीटिव बात ये है कि पिछले कुछ दिनों से खालिस्तानी संगठन आपस में एक दूसरे से टकराने लगे हैं. ये लोग अपना अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं. इससे ये लोग कमजोर हुए हैं. इनके कमजोर होने से सबसे ज्यादा परेशानी पाकिस्तान में बैठे इन ग्रुप्स के हैंडलर्स को है. जिन्होंने कई बरस तक इन खालिस्तानी आतंकवादियों को तैयार किया. इसलिए अब पाकिस्तान की आईएसआई के एजेंट ये फैला रहे हैं कि खालिस्तानियों की हत्या में इंडियन एजेंसीज का हाथ है, लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि इन खालिस्तानी आतंकवादियों को पाकिस्तान ने हमेशा समर्थन और संरक्षण दिया है.
INSIDE STORY OF THE REVOLT IN PAWAR FAMILY
In the midst of both rival camps of NCP holding parallel meetings in Mumbai to showcase their numbers (with the Ajit Pawar camp cornering most of the MLAs), I want to share two inside information about the developments that led to the revolt. Two months ago, Ajit Pawar had told his uncle that most of the party legislators wanted to join the BJP-Shiv Sena government. Sharad Pawar said, he knew most of his MLAs want so, but he had some personal reservations about BJP and Narendra Modi. After several meetings, it was decided, Sharad Pawar will resign as party president, Supriya Sule will be made party chief and NCP will join both the governments in Maharashtra and Centre. Ajit Pawar will become deputy chief minister, and Supriya Sule will become a Union Minister. Ajit Pawar will manage state politics. The deal was finalized. Accordingly, Sharad Pawar resigned from party president post. Two days later, Pawar made a U-turn, and took back his resignation. Ajit Pawar was shocked. He spoke to Praful Patel. Both decided that they would not tolerate this vacillating policy of their supreme leader anymore. Both of them spoke to five or six other senior leaders and top MLAs. It was finally decided that NCP would join the government, whether Shard Pawar agreed or not. This was conveyed to Home Minister Amit Shah. On his part, Amit Shah checked whether Ajit Pawar really had the support of 40 MLAs or not. Once it was confirmed, the political game was played out on last Sunday morning. I have also learnt that earlier too, a similar political game was planned, when MLAs supporting Eknath Shinde were assembling in Guwahati in twos and fours. Ajit Pawar spoke to his MLAs. There were 51 MLAs who were ready to join the BJP camp. Ajit Pawar told his uncle that NCP should join BJP camp even before Eknath Shinde brings all his MLAs. This would give the Pawar family an edge. Sharad Pawar agreed and asked him to initiate talks. At that time too, Praful Patel spoke to Amit Shah. Devendra Fadnavis was ready to accommodate NCP. As the talks reached a conclusion, Sharad Pawar suddenly backed out. Time and again, Ajit Pawar told his uncle that he had changed his stand thrice, and this has caused harm to the party. The party has now gone several steps back. There was a feeling among NCP leaders that Pawar wanted to become the leader of a united opposition because of his personal aversion to Narendra Modi and that he wanted to harm Modi and his party at all costs. To emerge as a leader of the opposition would require control over his own party NCP. This was the reason why Sharad Pawar, despite the opinion of his own senior party leaders, MLAs and former ministers, was unwilling to cede control over the party. When matters come to a head, Ajit Pawar clearly told his uncle that he had completed his innings, that he failed in forming an NCP government on his own, and that too, at a time when new emerging leaders like Arvind Kejriwal had formed governments in two states. The nephew clearly told his uncle: you have lost the ability to play the game anymore, please allow us to play the game. Sharad Pawar was told that he was now 83 years old, he was suffering from poor health and he should take rest. But Sharad Pawar is unwilling to call it a day and take rest. After Ajit Pawar led the revolt, the patriarch has now decided to go to the people and visit every nook and corner of Maharashtra, because he prefers to be in touch with the public. However, Praful Patel and Ajit Patel know each move that Sharad Pawar is going to make, and will surely work out how to counter them. The coming months in Maharashtra are going to witness a furious political war, the likes of which have not been seen in the past.
KHALISTANIS AT WAR
Khalistan supporters carried out an arson attack and partially damaged the Indian consulate in San Francisco early Sunday and posted the video on social media, claiming that this was in retaliation over the recent murder of wanted Khalistani terrorist Hardeep Singh Nijjar in Canada. The US State Department condemned the attack, while Canada assured India that it will assure safety for Indian diplomats. Khalistani supporters had circulated posters in Canada, naming Indian diplomats as responsible for Nijjar’s killing. India has requested Candaa, US and Australia “not to give space to these elements”. Khalistan supporters have planned to take out a “Khalistan Freedom Rally” in front of the Indian High Commission in Ottawa on July 8. India has summoned the Canadian High Commissioner and requested his government to take timely action. The question is why Khalistani radicals hiding in Canada and other countries have suddenly become active? Khalistan activist Gurpatwant Singh Pannu had tried to fan radicalism in Punjab by sending Amritpal Singh, but he and his associates were nabbed and lodged in Dibrugarh jail of Assam. Several Khalistani activists have been killed in the last six months. Hardeep Singh Nijjar was shot on June 20 in Surrey, Canada. He was the head of Khalistan Tiger Force. Earlier, Avtar Singh Khanda of Khalistan Liberation France died in Birmingham, UK. He was the handler of Amritpal Singh and had provided him protection for 37 days when Amritpal was hiding from police. Khalistani activists suspect Khanda was poisoned, though he was a cancer patient. On May 6, Paramjit Singh Panjwar of Khalistan Commando Force was shot by two assailants on a bike in Lahore. In January this year, Khalistani activist Harmit Singh Happy was shot near a gurudwara in Lahore. Harmit Singh was involved in narcotics trade and was imparting training to terrorists. I spoke to several Sikh scholars and senior leaders of Sikh community living in Canada and UK. They told me that the anti-India attacks have nothing to do with Sikh community, which is a peace-loving one in Australia, US, UK and Canada. Sikhs love India and a handful of them are trying to defame the entire community. Such elements will not be allowed to succeed in their nefarious designs. Some of the Sikh leaders complained that the governments of those countries delayed in identifying the perpetrators. This could be due to compulsion of votes or sheer negligence. Indian government has now taken a firm stand and has conveyed to the governments of these countries in clear terms. One positive aspect of these developments is that Khalistani outfits have now started fighting among themselves and are carrying out attacks to assert their supremacy. These outfits have now become weak and their handlers sitting in Pakistan are worried. The ISI handlers in Pakistan had trained these separatists for the last several years. ISI agents are spreading this disinformation that Indian agencies have a hand behind the elimination of Khalistani terrorists. Such allegations does not hold water anymore. It is because of these intra-rivalry that Khalistani elements are living in fear and they are trying to hold rallies to boost the morale of their supporters.
एनसीपी में टूट : धोखा या गेम प्लान ?
महाराष्ट्र में पिछले रविवार से जो कुछ नाटकीय घटनाक्रम हुआ, उसे बारे में महाराष्ट्र नवनिर्मांण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे का एक कथन उद्धृत करना चाहता हूं. राज ठाकरे ने कहा – “शरद पवार कहते हैं कि उनको इन बातों के बारे में कुछ भी पता नहीं था. ऐसा हो नहीं सकता. ये सब पवार का ही पॉलिटिकल ड्रामा है. दिलीप वल्से पाटिल, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे बड़े नेताओं का वहां जाना कोई सामान्य बात नहीं है. आज समझ में ही नहीं आ रहा है कि राज्य में कौन किसका दुश्मन है. कल को अगर पवार साहब की बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है, तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा”. राज ठाकरे ने जो कहा उस पर बहुत सारे लोग यक़ीन करेंगे. अजित पवार ने नीचे से ज़मीन खिसका दी, लेकिन चाचा ने भतीजे के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ नहीं कहा. ये समस्य़ा इस बात की नहीं है कि प्रफुल्ल पटेल ने और अजित पवार ने क्या किया, क्या नहीं किया, उनकी आलोचना करना बहुत आसान है. आप कह सकते हैं कि जिस शरद पवार ने इन्हें बनाया, उनके साथ इन्होंने धोखा किया, पर सवाल ये है कि इन्होंने ये सब सीखा कहां से? इनके गुरू कौन हैं ? मैंने वो वक्त देखा है जब शरद पवार ने पैंतासील साल पहले, जुलाई 1978 में वसंत दादा पाटिल की सरकार गिराई थी. वसंत दादा शरद पवार के गुरू, मेंटोर, पैट्रॉन सब कुछ थे. वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री थे. यशवंत राव चव्हाण ने कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस-यू बनाई थी. शरद पवार कांग्रेस-यू में थे. विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जनता पार्टी ने जीती थीं, लेकिन जनता पार्टी को सरकार से दूर रखने के लिए कांग्रेस और कांग्रेस-यू ने हाथ मिलाया. शरद पवार मंत्री थे. फिर शरद पवार ने वही किया जो आज अजीत पवार ने किया है. कुछ ही महीनों के बाद शरद पवार ने कांग्रेस-यू के विधायकों को साथ लेकर बगावत कर दी. सरकार से अलग हो गए. जनता पार्टी से हाथ मिलाया और 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के चीफ मिनिस्टर बन गए. शरद पवार राजनीति में रोटी पलटने के मास्टर रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि अजीत पवार ने उनसे ये कला अच्छी तरह सीख ली है. मुझे दो साल पहले वाले वो दिन भी याद हैं जब शरद पवार ने ही अजित पवार को बीजेपी से हाथ मिलाने की अनुमति दी थी और फिर शरद पवार ऐन मौके पर पीछे हट गए तो अजित दादा क्या करते? अजित पवार कैसे भूल सकते हैं कि शरद पवार ने उद्धव को बीजेपी को धोखा देने के लिए उकसाया था? खुद रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाएंगे, ये सोचकर उद्धव से हाथ मिलाया था. इसी से सीखकर एकनाथ शिन्दे ने उद्धव को धोखा दे दिया. तो महाराष्ट्र की राजनीति में धोखा देना, सरकार गिराना, पार्टी तोड़ना, अपने मेंटर की पीठ में छुरा घोंपना कोई नई बात नहीं है. सबके घर शीशे के बने हैं और सबके हाथ में पत्थर है, लेकिन इसके पीछे क्या है, ये भी समझने की कोशिश करनी चाहिए. सच तो ये है कि शरद पवार अपने बाद अपनी पार्टी, अपनी बेटी को सौंपना चाहते हैं. तो फिर बगावत होना लाज़मी था. अगर लालू तेजस्वी को बनाएंगे, सोनिया राहुल को बनाएंगी, उद्धव ठाकरे आदित्य को पार्टी सौंपने की तैयारी करेंगे तो पार्टी के दूसरे नेताओं को लगेगा कि उनके रास्ते बंद हैं. तो बग़ावत तो होगी ही. दूसरी बड़ी समस्या ये है कि चाहे शरद पवार हों, लालू यादव हों, सोनिया हों, उद्धव हों, सब चाहते हैं कि जैसी इज़्ज़त पार्टी में उनको मिली, पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उनके बच्चों को भी वैसी ही इज्जत दें लेकिन वास्तविक जीवन में ये होता नहीं है. मैंने मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और लालू यादव को गांव गांव घूमते देखा है. चल चल कर उनके पैर की एड़ियों में छाले पड़ जाते थे. उन्होंने जिंदगी खपा दी, पार्टी खड़ी की, कार्यकर्ताओं से रिश्ते बनाए, उनकी मदद की, सुख दुख में उनके साथ खड़े रहे लेकिन अगली पीढ़ी के लोग ये सब नहीं कर पाए. इसीलिए आप देखिए कि आज भी बगावत करने वाले प्रफुल्ल पटेल और अजित पवार, शरद पवार के बारे में पूरे मान सम्मान से बात कर रहे हैं. पवार को अपना गुरू बताया. गुरू पूर्णिमा पर उन्हें प्रणाम किया और ये कहा कि NCP को पावर में लाकर उन्होंने शरद पवार को गुरू दक्षिणा दी है. पिछले 48 घंटों में महाराष्ट्र की राजनीति में जो हुआ, उसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा बीजेपी को हुआ है. बीजेपी ने पहले उद्धव से बदला लिया था, अब शरद पवार से भी हिसाब बराबर कर लिया. राज्य में बीजेपी की सरकार पर एकनाथ शिंदे की निर्भरता कम कर दी. बीजेपी को लगता है कि उसने 2024 के चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 40-45 सीटें पाने का इंतज़ाम कर लिया और राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी दलों की एकता पर सवाल खड़े कर दिए. दूसरी तरफ राजनीति के सबसे बड़े सूरमा को उनके भतीजे ने चित कर दिया. उनके सबसे क़रीबी, सबसे भरोसेमंद प्रफुल्ल पटेल ने पवार की बनाई पार्टी पर अपना क़ब्ज़ा घोषित कर दिया. मैं पिछले चालीस साल से पवार साब को जानता हूं. पहली बार वो इतने अकेले, इतने असहाय नज़र आए. इसके बावजूद, शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने अब तक अजित पवार पर खुलकर हमला नहीं किया है, उनके ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ नहीं कहा, इसलिए लोग पूछ रहे हैं – क्या अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल को बीजेपी के पास भेजना, पवार का कोई नया गेम प्लान है ? क्या वाकई में अजित पवार ने शरद पवार को धोखा दिया? या फिर जो कुछ हुआ, उसकी स्क्रिप्ट शरद पवार ने लिखी थी? सच तो ये है कि महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ हुआ उसमें सबसे बड़े loser शरद पवार रहे. जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का मास्टरमाइंड माना जाता था, उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनके नीचे से उनकी पूरी पार्टी खिसक गई. शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया को पार्टी की कमान सौंपने का प्लान बनाया, उसे लागू भी कर दिया, जब वो सोच रहे थे कि मैंने कितना कमाल कर दिया, जब लोग कह रहे थे, वाह पवार साब… वाह, तभी अजित पवार ने दिखा दिया कि असली उत्तराधिकारी कौन है. अब 83 साल की उम्र में कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे पवार साब को फिर से मैदान में उतरना पड़ेगा, फिर से पार्टी खड़ी करनी पड़ेगी. विचारधारा तो उसी दिन चली गई थी, जब शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई. सत्ता उस दिन चली गई, जब शिंदे ने बग़ावत की और पवार साब कुछ नहीं कर पाए. अब पार्टी का कारवां सामने से गुज़र गया, और पवार साब ग़ुबार देखते रह गए. शरद पवार को सबसे बड़ा नुक़सान ये होगा कि वो मोदी के ख़िलाफ़ मोर्चा बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर रहे थे, अब कांग्रेस उनकी क्षमता पर सवाल उठाएगी. पवार साब की भूमिका को सीमित करने की कोशिश करेगी. कांग्रेस के नेता कहेंगे कि जब आप अपना घर नहीं इकट्ठा रख पाए, तो पार्टियों को इकट्ठा कैसे करेंगे? सबसे बड़ी बात ये है कि पवार साब का इतना नुक़सान हुआ, इसके बाद भी लोग कह रहे हैं कि जो कुछ हुआ वो सब शरद पवार के गेम प्लान का हिस्सा है, थोड़े दिन बाद वो भी बीजेपी के साथ आ जाएंगे. ये सवाल तो सबके मन में है कि क्या अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल शरद पवार को धोखा दे सकते हैं? मैं इन दोनों नेताओं को करीब से जानता हूं, मुझे भी इस बात पर शक है कि ये दोनों शरद पवार की मंजूरी के बग़ैर कुछ कर सकते हैं. राजनीतिक गलियारों में जो लोग सक्रिय रहते हैं, उन्हें मालूम है कि अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल पहले से बीजेपी के साथ जाने के पक्ष में थे. उन्होंने शरद पवार से ये बात कही थी और शरद पवार ने उन्हें मंजूरी दी थी. ये बात शरद पवार ने सार्वजनिक तौर पर मानी भी थी कि जो नेता बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं., उनसे उन्होंने कहा है कि वो जो चाहें करें, लेकिन वो फिलहाल बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. यानि शरद पवार ने उन्हें इशारा दे दिया था. इसके बाद पवार ने इस्तीफा दिया. उस वक्त तय ये हुआ था कि अजित पवार को NCP की कमान सौंपी जाएगी, शरद पवार सिर्फ मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे, सुप्रिया सुले केन्द्र की राजनीति करेंगी और अजित पवार महाराष्ट्र में सक्रिय रहेंगे, लेकिन ऐन मौके पर शरद पवार पलट गए. उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया, इसके बाद बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. इस बात से अजित पवार नाराज थे क्योंकि उनके साथ धोखा हो गया था. अब अजित पवार ने फिर रोटी पलट दी और इस बार तवा ही उल्टा कर दिया, इसलिए इतनी हायतौबा मची है. मुंबई से लेकर दिल्ली तक पार्टी पर कब्जे की जोर आइजमाइश चल रही है. NCP में इतना कुछ होने के बाद भी शरद पवार बिल्कुल कूल दिख रहे हैं. पवार ने कह दिया कि वो कोर्ट कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ेंगे. वो जनता की अदालत में जाएंगे और दिखाएंगे कि जनता किसके साथ है.
NCP SPLIT : BETRAYAL OR PAWAR’S GAME PLAN?
In the midst of melodrama that is going on in Sharad Pawar’s NCP, I would like to draw your attention to what Maharashtra Navnirman Sena chief Raj Thackeray, said on Tuesday. He said, “Sharad Pawar says, he did not know his leaders were going to quit. This cannot be so. It is all Pawar’s political drama. Top leaders like Dilip Valse Patil, Praful Patel and Chhagan Bhujbal joining the other camp is not an ordinary matter. Today nobody knows who is the rival of whom in Maharashtra. I will not be surprised, If tomorrow Pawar Saheb’s daughter Supriya Sule is made a central minister.” Many in Maharashtra may believe what Raj Thackeray says. The fact is, Ajit Pawar made the ground slip from under his uncle’s feet, and yet the uncle is still to utter a word about his rebel nephew. It is very easy to criticize Praful Patel and Ajit Pawar. You can say, Sharad Pawar made both of them what they are today. The two of them betrayed their mentor. But the question is, from whom did they learn all this? I have seen those days when Sharad Pawar toppled his mentor Vasantdada Patil’s government, 35 years ago, in July, 1978 and himself became chief minister. Vasantdada was Sharad Pawar’s guru, mentor and patron, all rolled into one. Vasantdada Patil was the CM, and Yashwantrao Chavan had formed Congress(U) after walking out from Congress(I). Sharad Pawar was in Congress(U). Janata Party became the single largest party in Maharashtra assembly polls, but in order to keep Janata Party away from power, Congress(I) and Congress(U) joined hands. Sharad Pawar was a minister in the coalition government. Sharad Pawar then did, what Ajit Pawar did on Sunday. Within a few months, Sharad Pawar revolted with the help of Congress(U) MLAs, joined hands with Janata Party, and at the age of 38, became India’s youngest chief minister. Sharad Pawar has been a maestro in ‘roti palto’(flipping the roti), and it seems, Ajit Pawar has learnt this art from his uncle perfectly. I also remember how, two years ago, Sharad Pawar allowed his nephew Ajit to join hands with BJP in a midnight drama, but at the last moment, the NCP chief suddenly retraced his steps, leaving his nephew in the lurch. How can Ajit Pawar forget, it was his uncle who instigated Uddhav Thackeray to betray BJP? How can Ajit Pawar forget, his uncle had decided to run the coalition government with the remote control in his hand? Later, Eknath Shinde learnt this bag of tricks and betrayed Uddhav. In Maharashtra politics, backstabbing, betrayal, toppling governments, splitting parties are not new. Here, everybody lives in glass houses and everybody carries stones. One should understand the final motive. The fact is: Sharad Pawar wants to hand over his party to his daughter, and a revolt was bound to take place. If Lalu can make Teajshwi his heir, if Sonia Gandhi can make Rahul her heir, if Uddhav Thackeray starts handing over his party to his son Aditya, then leaders in these parties will then begin to realize that their doors for the future are closed. Revolts are bound to take place. The second big problem is: party supremos, whether Sharad Pawar or Lalu Yadav or Sonia Gandhi or Uddhav Thackeray, want that the respect and adulation that they got from their party leaders and workers, must also be bestowed on their offspring successors. But, in practical life, it is not so. I have seen Mulayam Singh Yadav, Sharad Pawar and Lalu Yadav untiringly touring villages. They used to walk for miles every day till they had foot sores. They spent their life building their parties, struck personal relationships with their workers, helped them, stood by them in times of happiness and distress, but the successors of the new generation could not do so. You may notice: even today, rebels like Praful Patel and Ajit Patel speak about Sharad Pawar with words of respect. They described Sharad Pawar as their guru, paid obeisance on Guru Purnima, and said, bringing NCP to power was their style of offering ‘guru dakshina’ to their mentor. BJP was the biggest winner and Sharad Pawar was the biggest loser in whatever happened in Maharashtra politics during the last 48 hours. By topping MVA government, BJP took its revenge against Uddhav Thackeray, and now it has repaid Sharad Pawar in the same coin. BJP’s dependence on Eknath Shinde and his MLAs is now less. BJP leadership feels that it will manage to win at least 40 to 45 out of a total of 48 LS seats in Maharashtra next year, and, on the national level, it has spoiled opposition unity efforts badly. And Pawar Saheb? He was considered the great mastermind in Maharashtra politics. He did not know that his top leadership had revolted and almost the entire party has bolted. Sharad Pawar had planned to hand over the party’s reins to his daughter Supriya Sule, and he implemented it dramatically. At a time, when Pawar was thinking about the magical drama that he had enacted and people were praising his masterstroke, Ajit Pawar showed who the real successor war. Now, at the age of 83, with Sharad Pawar battling several illnesses, he may have to toil again, do hard work on the ground, and try to resurrect his party. The ideology of his party was given the go by, the day NCP joined hands with Shiv Sena to form MVA government. Power slipped from his hands, when Eknath Shinde revolted and Pawar Saheb could not do anything. For Pawar, the Bollywood couplet- ‘Caravan Guzar Gaya, Gubar Dekhte Rahey’ appears to be apt. His biggest loss will be, he will lose the pivotal role that he planned to play in forging an anti-Modi opposition front. It is now the Congress that will question his ability and try to limit his role. Congress leaders may now say, if a leader cannot keep his house together, how can he keep a bunch of political parties together? The most amazing part is, people are still saying, Pawar is going to make a comeback, and all the developments that took place in the last two days were part of his game plan. Will Pawar also join BJP? Time will tell. I know both Ajit Pawar and Praful Patel quite closely. Even I had doubts whether both these leaders can do anything without the sanction of Sharad Pawar. Those active in the corridors of power know that Ajit Pawar and Praful Patel were in favour of joining the BJP camp since long. They had spoken to Sharad Pawar about this and the NCP chief had given them the go-ahead. Even publicly, Sharad Pawar had said that those leaders who want to leave NCP and join the BJP were free to do so, but personally, he will not join BJP camp. It means, Pawar had given them indication. He then resigned from party chief post. At that time, it was decided that the NCP command will be given to Ajit Pawar, and Sharad Pawar will play the role of ‘margdarshak’ (adviser), Supriya Sule will focus on politics at the Centre and Ajit Pawar will remain active in Maharashtra. At the last moment, Sharad Pawar changed his view. He withdrew his resignation, and made both Supriya Sule and Praful Patel working presidents. Ajit Pawar was peeved over this development. He felt betrayed. He then decided to ‘palto roti’ (flip the roti), and, in the process, he flipped the entire ‘tawa’ (griddle). This resulted in chaos in both Mumbai and Delhi, and both camps are now busy occupying party offices. Even in such a tense atmosphere, Sharad Pawar appears cool. He has said, he would not make rounds of courts, and will instead go to ‘Janata Ki Adalat’ (people’s court) and show to the world whom the man on the street wants.
फ्रांस में हिंसा : मुख्य कारण
इस वक्त पूरे फ्रांस में आग लगी हुई है. हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति ने एलान किया है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो देश में इमरजेंसी लगाई जा सकती है .एक 17 साल के लड़के की पुलिस की गोली से मौत से नाराज लोग पूरे फ्रांस में सड़कों पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं. सरकारी इमारतों, पुलिस थानों और दुकानों में तोड़फोड़ हो रही है, आग लगाई जा रही है. पेरिस में इस वक्त कर्फ्यू है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बंद कर दिया गया है. इसके बाद भी हालात लगातार और खराब होते जा रहे हैं. ट्रैफिक सिग्नल पर चैकिंग के दौरान दो पुलिस वालों ने एक लड़के पर गोली चला दी थी, जिससे लड़के की मौत हो गई. जैसे ही इस घटना का वीडियो वायरल हुआ नाराज लोगों ने पुलिस के खिलाफ आवाज उठाई. फ्रांस से जो तस्वीरें आई हैं, वो हैरान करने वाली हैं. यूरोप में इस तरह के हालात पिछले कई दशकों में नहीं देखे गए. हालांकि फायरिंग करने वाले पुलिस अफसरों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है और इस वजह से पुलिस फोर्स में भी नाराजगी है, लेकिन प्रोटेस्ट करने वाले लोगों का कहना है कि सिर्फ पुलिसवालों को जेल भेजने से काम नहीं चलेगा. उनकी शिकायत है कि फ्रांस में पुलिस वाले निरंकुश हो गए हैं. ये मामला नस्लवाद का है. लोगों का इल्जाम है कि पुलिसवालों ने जानबूझ कर एक अफ्रीकी मूल के बच्चे को मार डाला, इसलिए अब सरकार को सख्त संदेश देना होगा, साफ बात करनी होगी. चालीस हजार पुलिसवालों को हालात पर काबू करने के लिए उतारा गया है लेकिन हालात काबू में नही आए हैं. अब तक हुई हिंसा में सौ से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. करीब तीन दर्जन पुलिस वाले बुरी तरह घायल हैं. क़रीब एक हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. पुलिस को दंगा करने वालों पर गोली चलाने का हुक्म दिया गया है. फ्रांस में इतनी भयंकर हिंसा भड़कने के कई कारण हैं. 2017 में फ़्रांस में एक क़ानून बनाया गया था. इस क़ानून से पुलिस को गोली चलाने के अधिकार में ढील दी गई थी. फ्रांस की मीडिया के मुताबिक़, ये क़ानून पास होने के बाद से फ्रांस में चलती गाड़ियों पर पुलिस के गोली चलाने की घटनाएं बढ़ गई हैं. इस क़ानून के ख़िलाफ़ भी लोगों में ग़ुस्सा है.. इसके अलावा, फ्रांस की इमैन्युअल मैक्रों सरकार के पेंशन सुधार को लेकर भी लोगों में बहुत नाराज़गी है. इसी साल अप्रैल महीने में मैक्रों सरकार ने फ्रांस में रिटायरमेंट की उम्र 62 साल से बढ़ाकर 64 साल करने का एलान किया था. इसके ख़िलाफ़ फ्रांस में कई हफ़्तों तक विरोध प्रदर्शन होते रहे थे. रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने से भी फ्रांस की जनता नाराज़ है. वहीं, यूक्रेन युद्ध की वजह से फ्रांस की जनता को महंगाई की मार झेलनी पड़ी थी. महंगाई की मार ने भी लोगों के ग़ुस्से को भड़का दिया. इसीलिए, जब पेरिस के उपनगरीय इलाके में पुलिस ने एक लड़के को गोली मारी तो फ्रांस की जनता का सब्र टूट गया और भयंकर हिंसा भड़क उठी. बड़ी बात ये है कि फ्रांस में जो हिंसा भड़की उसमें सोशल मीडिया का बड़ा रोल है, इसीलिए प्रेसीडेंट मेक्रों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस को चेतावनी दी है कि वो जल्दी से जल्दी हिंसा के वीडियो हटा लें , वरना उनके खिलाफ एक्शन होगा.
ट्विटर को झटका
ट्विटर को कर्नाटक हाई कोर्ट से शुक्रवार को बड़ा झटका लगा. हाई कोर्ट ने सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली ट्विटर की याचिका ख़ारिज कर दी और कोर्ट का वक़्त बर्बाद करने के लिए ट्विटर पर 50 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया. असल में सरकार ने 2021 से 2022 के बीच ट्विटर को 1474 अकाउंट्स बंद करने और 175 ट्वीट्स ब्लॉक करने का आदेश दिया था. इसके अलावा ट्विटर को 256 URL और एक हैश टैग को बंद करने का निर्देश भी दिया गया था. सरकार का कहना था कि इन एकाउंटस के जरिए माहौल को खराब करने की कोशिश हो रही है, देश की संप्रभुता और एकता को नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए कानून के मुताबिक इन्हें हटाया जाए. लेकिन, ट्विटर ने सरकार के इस आदेश को कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती दे दी. ट्विटर ने कहा कि सरकार ने जो 256 URL हटाने को कहा है उनमें से 39 को हटाना, नागरिकों के मूल अधिकारों के ख़िलाफ़ है. हाई कोर्ट ने छह महीने तक सुनवाई की. अपने फैसले में अदालत ने कहा कि अगर कोई कंपनी भारत में कारोबार करती है, तो उसको यहां के नियम क़ायदे मानने होंगे. सरकार ने कानूनी दायरे में रहकर नियमों के मुताबिक ही ट्विटर को निर्देश दिए थे और ट्विटर को सरकार के निर्देश मानने चाहिए. IT और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार न किसी की आवाज दबाती है, न किसी पर कोई दबाव बनाती है लेकिन किसी को माहौल खराब करने की इजाज़त भी नहीं दी जा सकती. इसलिए कंपनी कितनी भी बड़ी हो, उसे जिम्मेदारी निभानी होगी, कानूनों का पालन करना होगा. आपको याद होगा कुछ दिन पहले ट्विटर के फॉर्मर CEO, जैक डोर्सी ने कहा था कि भारत सरकार ने उन पर विरोधियों के ट्विटर अकाउंट बंद करने का दबाव डाला था. इस बात को लेकर सरकार की आलोचना हुई थी, लेकिन शुक्रवार का हाई कोर्ट का फैसला उन सब लोगों को जवाब है. हाईकोर्ट ने ट्विटर को इसलिए सजा सुनाई क्योंकि उसने भारत के कानून का पालन नहीं किया, समाज में माहौल खराब करने वाले मैटेरियल को अपने प्लेटफॉर्म से नहीं हटाया. ट्विटर ने सरकार के इस ऑर्डर को चैलेंज किया था लेकिन मामला उल्टा पड़ गया. सवाल सिर्फ इस बात का नहीं है कि वो भारत से पैसा कमाते हैं इसलिए rules, regulation follow करें , सवाल इस बात का है कि उनके काम से अगर देश में अशांति फैलती है… अगर लोगों की भावनाएं भड़कती हैं तो, इसकी जिम्मेदारी भी उन्हें उठानी पड़ेगी.
बीरेन सिंह ने इस्तीफा वापस क्यों लिया ?
मणिपुर में शुक्रवार को 4 घंटे तक मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे को लेकर ड्रामा हुआ. बीरेन सिंह अपने 20 विधायकों के साथ राज्यपाल को इस्तीफा देने राज भवन की ओर गये , लेकिन रास्ते में महिलाओं की एक बड़ी भीड़ ने उन्हें रोका, और मुख्यमंत्री को अपने निवास लौटने का मजबूर किया. बाद में बीरेन सिंह ने ट्विटर पर ऐलान किया कि वो इस्तीफा नहीं देंगे. कहा कि वो इस मुश्किल वक्त में मणिपुर को नहीं छोड़ सकते. इस तरह के हालात में उनका इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं हैं. इसके बाद मामला शान्त हुआ. दरअसल गुरुवार की सुबह पश्चिमी इम्फाल में हथियारबंद लोगों ने तीन लोगों की हत्या कर दी जिसके बाद इम्फाल में महिलाओं की सबसे बड़ी मार्केट की तरफ से ये अलटीमेटम दिया गया कि हालात को तुरंत काबू में करें. इसके बाद बीरेन सिंह के इस्तीफे की खबरें फैलने लगीं. बीरेन सिंह पर कई दिनों से इस्तीफा देने का प्रेशर है, लेकिन सब जानते हैं कि इस्तीफा देना कोई समाधान नहीं हो सकता है. बीरेन सिंह कोई पेशेवर राजनीतिक नेता नहीं है. उन्होंने अपना करियर एक फुटबॉलर के रूप में शुरु किया था, नेशनल लेवल के प्लेयर थे, फिर वो सीमा सुरक्षा बल में रहे, BSF छोड़ कर वे पत्रकारिता में आए. एक दैनिक अखबार निकाला फिर बीरेन सिंह ने अपनी पार्टी बनाई, विधानसभा का चुनाव जीता. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए, कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहे. 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए और मुख्यमंत्री बने. बीरेन सिंह 2017 से मुख्यमंत्री हैं, और वह मणिपुर में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उनकी जिम्मेदारी भी ज्यादा है. ये बात सही है कि मणिपुर में हालात अच्छे नहीं हैं.. वहां हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.. उनके घरबार जला दिए गए, संपत्ति लूट ली गई, ये दु:खद है. गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर का दो दिन का दौरा कर चुके हैं सेना फ्लैग मार्च कर रही है. अब राहुल गांधी भी वहां गए, उन्होंने शान्ति की अपील की, कोई सियासी बात नहीं की, ये अच्छी बात है क्योंकि इस वक्त सबको मिलकर मणिपुर में अमन चैन कायम करने की कोशिश करनी चाहिए.
क्या वसुंधरा सीएम पद की उम्मीदवार बनेंगी ?
शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह ने राजस्थान के उदयपुर में एक बड़ी जनसभा की. ये रैली वैसे तो मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर आयोजित की गई थी, लेकिन असल में बीजेपी ने इसे राजस्थान में विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के तौर पर इस्तेमाल किया. उदयपुर की रैली में मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सीपी जोशी, विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद दिया कुमारी और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया समेत राजस्थान बीजेपी के सभी बड़े नेता मौजूद थे. पहले सीपी जोशी ने भाषण दिया. इसके बाद अमित शाह को आमंत्रित किया गया लेकिन अमित शाह ने कहा कि पहले वसुंधरा राजे बोलेंगी. उसके बाद वो अपनी बात कहेंगे.. वसुंधरा ने कहा कि अशोक गहलोत के राज में राजस्थान की कानून व्यवस्था बिगड़ी है, तमाम राज्यों से कट्टरपंथी आ रहे हैं और राजस्थान का माहौल खराब कर रहे हैं.. उन्होंने कन्हैयाल लाल की हत्या का उदाहरण दिया. कहा, अशोक गहलोत की तुष्टीकरण की नीति के कारण यहां आतंकवाद बढ़ रहा है, इसलिए गहलोत की विदाई जरूरी है. अमित शाह ने कहा, अगर गहलोत सरकार कन्हैया लाल को सुरक्षा देती, तो उसकी हत्या न होती. अमित शाह ने कहा, अशोक गहलोत की सरकार ने हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया, जब NIA ने हत्यारों को पकड़ लिया तो केस के ट्रायल के लिए अब तक राज्य सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं बनाया, इसीलिए अब तक कन्हैया लाल के हत्यारों को फांसी पर नहीं लटकाया जा सका. इसका जवाब अशोक गहलोत ने ट्विटर पर दिया, कहा, अमित शाह झूठ बोल रहे हैं, लोगों को गुमराह कर रहे हैं.. कन्हैया लाल के कातिलों को राजस्थान की पुलिस ने चार घंटे के भीतर पकड़ लिया था, लेकिन अमित शाह बताएं कि इस ओपन एंड शट केस में NIA ने चार्जशीट फाइल करने में इतनी देर क्यों की और अब तक हत्यारों को सजा क्यों नहीं मिली. गहलोत ने कहा कि कन्हैया लाल के हत्यारे बीजेपी के सक्रिय सदस्य थे. दोनों ओर से भले ही आरोप प्रत्यारोप हों, हकीकत यही है कि बीजेपी ने राजस्थान में चुनावी कैंपेन शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजस्थान में दो दौरे हो चुके हैं.. गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्ढा राजस्थान में थे. गौर करने वाली बात ये है कि राजस्थान बीजेपी में पहले जो गुटबाजी दिख रही थी, मोदी के दौरे के बाद वो भले ही दिखाई न दे रही हो., भले ही वसुन्धरा राजे सक्रिय हो गई हों लेकिन सतीश पूनिया , सीपी जोशी, गजेन्द्र सिंह शेखावत और राजेन्द्र राठौर जैसे नेता अंदर ही अंदर वसुन्धरा के खिलाफ हैं. ये बीजेपी हाईकमान के लिए बड़ी समस्या है. इसी तरह की समस्या कांग्रेस में भी है.. सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े से कांग्रेस आलाकमान परेशान है.. दिल्ली में पार्टी हाईकमान ने राजस्थान कांग्रेस के नेताओं की 3 जुलाई को मीटिंग बुलाई है, सचिन पायलट दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं., लेकिन मामला तीन जुलाई तक सुलझ पाएगा इसकी उम्मीद कम है .क्योंकि अशोक गहलोत के पैर में चोट लग गई है, .इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि वो तीन जुलाई की मीटिंग के लिए दिल्ली न आएं .और अगर ऐसा हुआ तो मामला फिर लटक जाएगा.
REASONS BEHIND FRENCH UNREST
France is facing widespread turmoil since the last three days. Violent protests are taking place in Paris, Marseille, Lyon, Toulouse, Lille and Strasbourg after the killing of a 17-year-old youth of Algerian and Moroccan descent, Nahel, by French police. Nearly 45,000 police personnel have been sent to the streets to battle rioters indulging in looting and arson. The youth was shot by a French police officer at a traffic stop in the working class suburb Nanterre in Paris. Buildings, including the world famous Marseille library and vehicles have been torched and stores have been looted by mobs. In Marseille, the second largest city of France, rioters looted a gun store on Friday night and stole hunting rifles. All hotels and restaurants have been asked to close early, while bus and tram traffic across France have been closed from 9 pm onwards. There are reports that President Emmanuel Macron may be forced to declare emergency if the unrest continues. This is the first time in Europe when public unrest has been seen on this massive scale in the last several decades. The police officer who shot the teenager has been sent to jail, resulting in discontent among police personnel. Shoot-at-sight orders against rioters have been issued. There are several reasons behind this violent unrest. In 2017, the French government enacted a law which relaxed rules for policemen shooting at civilians. After this law was passed, there was a spurt in number of incidents in which policemen fired at running vehicles. Secondly, there is widespread discontent among the working class over pension reforms introduced by Macron’s government. In April this year, Macron government raised the retirement age limit from 62 years to 64 years. This resulted in protests in several cities. Thirdly, the French people is groaning under the weight of price rise of essential commodities caused by the ongoing Ukraine war. People lost patience when the killing of the teenager took place. One point to note is that social media played a key role in fomenting public unrest. President Macron has warned social media platforms to immediately remove videos of violence and not to upload videos showing violence in future. Stern action will be taken against social media companies if they disobey the order.
SETBACK FOR TWITTER
In a setback for American social media company Twitter Inc, the Karnataka High Court on Friday dismissed its petition challenging a series of blocking orders issued by the Centre from February 2, 2021 till February 28, 2022. Justice Krishna S. Dixit imposed an exemplary cost of Rs 50 lakh on Twitter for indulging in “speculative litigation”. The amount is payable to Karnataka State Legal Services Authority within 45 days, failing which Twitter will have to pay an additional Rs 5,000 per day. In its petition, the microblogging site had alleged that the blocking orders were “arbitrary” as they failed to provide notice to the content originator in advance. The petitioner had claimed that the Centre’s orders were “unconstitutional” as they did not fulfill the requirements under Section 69A of the Information Technology Act. In his judgement, Justice Dixit said, “the petitioner (Twitter) is not a poor farmer, a menial labourer, a villager of a novice who could have pleaded inability to understand the objectionability of the tweets”. The High Court said, “….their highly objectionable tweets had a great propensity to incite anti-national feelings.” Justice Dixit said, “there is a wilful non-compliance with the blocking orders.” The Centre had asked Twitter in 2021-22 to close 1,474 accounts and block 175 objectionable tweets, apart from blocking 256 URLs and one hashtag. The Centre’s argument was that an effort was made to spoil the atmosphere through these accounts and these tweets could harm sovereignty and national unity. Twitter said, removing 39 out of the 256 URLs would go against the fundamental rights of citizens. After hearing all sides, the High Court in its verdict said, any company doing business in India must follow the rules and laws of this country. IT and Electronics Minister Rajeev Chandrashekhar said, social media companies and internet giants must follow the law of the land in India instead of indulging in non-compliance. You may remember, Jack Dorsey, former CEO of Twitter had alleged a few days ago that there was pressure from the Indian government to close Twitter accounts of political rivals. Questions were raised after Dorsey’s remark, and the government was criticized. Friday’s High Court judgement is a perfect reply to all those who had questioned the intent of the government. The implication of this verdict is that companies working in India must follow laws and rules of the country. The question is not that they must follow Indian laws because they earn from India, but because they must understand the fact that objectionable tweets incite ill-will and cause disturbance in the country. These companies will have to bear the responsibility.
WHY BIREN SINGH DECIDED NOT TO QUIT?
There was big drama for nearly six hours on Friday when Manipur chief minister N. Biren Singh headed to Raj Bhawan with his 20 MLAs to submit his resignation letter to Governor Anusuiya Uikey, but a huge crowd of women supporters stood in the way of the convoy. After persistent requests from elderly Manipuri women, Biren Singh drove back to his residence, where the crowd stayed put. After some time, Biren Singh tweeted: “At this crucial juncture, I wish to clarify that I will not be resigning from the post of chief minister.” The immediate provocation for the CM to resign was an ultimatum given by “mothers” of Imphal’s all-women market asking him to end the unrest immediately and stop further killings. This ultimatum was given after three persons were killed by armed attackers near Imphal West border. There was pressure on Biren Singh to resign since several days, but everybody knows, resigning is not the solution. Biren Singh is not a professional politician. He started his career as a footballer, became a national level player, joined Border Security Force, left and entered journalism, started a daily newspaper, formed his own political party, won assembly election, then joined the Congress to be come a minister, quit Congress in 2017 to join BJP, and has been the first BJP chief minister of Manipur since then. Hence, his responsibility to restore peace is greater. It is true, the situation in Manipur has not improved. Thousands of homeless people are still living in relief camps as their homes have been burnt and their properties have been looted. Home Minister Amit Shah visited the state for two days recently. Army is conducting flag marches. Rahul Gandhi has gone to Manipur and appealed for peace. He did not make any political remark. This is a welcome step. The first priority is to restore peace in the state.
WILL VASUNDHARA BE THE CM FACE IN RAJASTHAN?
On Friday, in Udaipur, Home Minister Amit Shah addressed a big public meeting to mark completion of 9 years of Modi government. It was, in fact, a launch of BJP’s campaign in Rajasthan where assembly election will take this year-end. On the dais sat former CM Vasundhara Raje, state BJP chief C P Joshi, BJP leader of opposition Rajendra Rathore, Union Minister Gajendra Singh Shekhawat, MP Diya Kumari and former state party chief Satish Punia. First, C P Joshi spoke and then Amit Shah was invited to take the rostrum. Instead, Amit Shah said, Vasundhara Raje will speak first. In her speech, Vasundhara alleged there has been deterioration in law and order due to chief minister Ashok Gehlot’s Muslim appeasement policy. She cited the daylight brutal murder of Kanhaiyalal in Udaipur by two jihadis. Amit Shah said, Kanhaiyalal’s murder could have been prevented had the state government provided him security. He also alleged that state police did not arrest the killers, and it was the NIA which arrested them. He also alleged that the Gehlot government is yet to set up a fast track court for trial of these killers. Ashok Gehlot responded on Twitter saying Amit Shah was telling lies and misleading people. He claimed it was Rajasthan police which apprehended the killers within four hours. He asked Amit Shah why NIA has not yet filed chargesheet in this open-and-shut case. Gehlot pointed out that the killers of Kanhaiyalal were at one time active members of BJP. Polemics apart, the fact remains that BJP is already on election mode in Rajasthan. PM Narendra Modi visited Rajasthan twice, BJP chief J P Nadda visited Rajasthan on Thursday. Though factionalism in Rajasthan BJP has been absent after Modi’s visit, and Vasundhara Raje has again become active, several state leaders like Satish Punia, C P Joshi, Gajendra Singh Shekhawat and Rajendra Rathore are reportedly working against Vasundhara. This has become a big problem for BJP high command. In the Congress too, the high command is worried over constant bickerings between Sachin Pilot’s and Gehlot’s camps. A meeting of Rajasthan Congress leaders has been called in Delhi on July 3, but the possibility of a ceasefire between the two camps appears to be negligible. Ashok Gehlot is recovering from leg injury and there are chances that he may not attend the July 3 meeting.
समान नागरिक संहिता : सबको समान अधिकार
यूनीफॉर्म सिविल कोड के मसले पर विचार करने के लिए कानून मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थायी समिति की बैठक सोमवार 3 जुलाई को होगी और इसमें कानून मंत्रालय और विधि आयोग के आधिकारियों को बुलाया गया है. इस बीच समान नागरिक संहिता को लेकर देश भर में बहस का दौर जारी है. गुरुवार को ईद की नमाज़ के बाद मौलानाओं ने अपनी तकरीरों में इस पर अपनी अपनी राय रखी. ज्यादातर मुसलमान समान नागरिक संहिता के पक्ष में नहीं है. उनका कहना है कि समान संहिता आने से इस्लाम में लागू शरीयत के नियम कायदे प्रभावित होंगे. कोई कह रहा है कि इसे सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने की नीयत से लाया जा रहा है. किसी ने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का सिर्फ शिगूफा छोड़ा गया है, ये सिर्फ सियासी जुमला है, होगा कुछ नहीं. हालांकि कुछ मौलानाओं का मानना है कि अगर समान नागरिक संहिता सभी धर्मों के लोगों से बात करके, सबकी सहमति से लागू की जाती है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं, लेकिन इसे जबरन नहीं थोपा जाना चाहिए. विरोधी दलों के नेताओं ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जोरदार हमला बोला. फारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू करने से देश में कोई तूफान आ जाए. शरद पवार ने कहा कि मोदी की नीयत में खोट है और उन्होंने विरोधी दलों की एकता से घबरा कर ये मुद्दा उछाला है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के स्टालिन ने कहा कि यह वोटों का ध्रुवीकरण करने की बीजेपी की चाल है, लोगों को इसमें नहीं फंसना चाहिए. कुल मिलाकर अब इस मुद्दे पर आम लोग भी अपनी राय जाहिर कर रहे हैं और राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं. अब सवाल ये है कि क्या ये मसला सिर्फ सियासी है, या वाकई में सरकार संसद के मॉनसून सत्र में सिविल कोड पर बिल पास कर सकती है? यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर जो तस्वीरें पेश की जा रही है, उनमें से एक है कि ये कानून मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लाया जा रहा है. दूसरी तस्वीर ये है कि अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो गया तो धार्मिक आजादी खत्म हो जाएगी, शादी ब्याह के तौर तरीके बदल जाएंगे, रीति रिवाज़ छोड़ने पड़ेंगे. ये कहकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है कि मुसलमानों और ईसाइयों को मरने के बाद दफनाने नहीं दिया जाएगा, सबको हिंदू रिवाजों के मुताबिक शवों को जलाना होगा. लेकिन असलियत में यूनिफॉर्म सिविल कोड का ऐसे रीति रिवाजों और परंपराओं से कोई सरोकार नहीं है. यूनिफॉर्म सिविल कोड तो कुछ सामाजिक नियमों में बदलाव है. ये कानून सबको बराबरी का हक देगा. जैसे अभी अलग अलग धर्मों में लड़की की शादी की उम्र अलग अलग है, वो सबके लिए एक होगी, कई शादियां करने पर रोक लगेगी, हलाला जैसी प्रथाएं खत्म होंगी, अभी सबके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं हैं, यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा. अभी सभी धर्मों में पिता की जायदाद में लड़कियों को मिलने वाले हिस्से के नियम अलग अलग हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड में लड़कियों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का नियम सबके लिए बराबर होगा. इसी तरह अभी बच्चा गोद लेने के नियम भी अलग अलग हैं. कई जगह महिलाओं को बच्चा गोद लेने का हक नहीं है. यूनिफॉर्म सिविल कोड में ये हक महिलाओं को भी मिलेगा और सबको बराबर मिलेगा. पति की मौत के बाद अभी पत्नी को मुआवजा मिलता है लेकिन अगर बाद में वो महिला शादी कर लेती है तो मुआवजे को लेकर अलग अलग नियम हैं, इसको लेकर भी एकरूपता लायी जाएगी. हालांकि कुछ सवाल हैं जिनके जवाब अभी नहीं हैं – जैसे गोवा में जो यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, वहां हिदुओं में भी पहली पत्नी से बेटा न हो तो उन्हें दूसरी शादी करने का अधिकार है. क्या ऐसे नियमों को भी बदला जाएगा? इसी तरह आदिवासी समाज में कई जगह विवाह को लेकर कुछ परंपराएं सदियों से चली आ रहीं हैं, उनका क्या होगा? इसलिए अभी लॉ कमीशन बड़े पैमाने पर लोगों की राय ले रहा है. अब तक नौ लाख से ज्यादा लोगों की राय लॉ कमीशन को मिल चुकी है. 13 जुलाई के बाद लॉ कमीशन का ड्राफ्ट सामने आएगा तब और स्थिति साफ होगी लेकिन अभी तक जो जानकारी मिली है, जो मैंने आपके साथ शेयर की है, उसमें तो ऐसा कुछ नहीं है जिसको लेकर ये कहा जाए कि यूनिफॉर्म सिविल कोड मुसलमानों को निशाना के लिए लाया जा रहा है या इससे किसी के रीति रिवाजों पर कोई असर पढ़ेगा. इसीलिए मैंने कहा कि ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो लोगों के मन में बैठाई गई शंकाओं को दूर करे. उसके बाद ही यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार किया जाए.
राहुल गांधी की मणिपुर यात्रा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी दो दिनों से मणिपुर के दौरे पर हैं. शुक्र वार को राहुल ने मोइरंग के एक राहत शिविर में जाकर हिंसा से प्रभावित बेघर लोगों से मुलाकात की. गुरुवार को ड्रामा हुआ, जब पुलिस ने राहुल को चूड़ाचांदपुर जाते समय रास्ते में रोक लिया और वापस इम्फाल भेज दिया. राहुल बाद में हेलीकॉप्टर से चूड़ाचांदपुर गए और राहत शिविरों में बेघर लोगों से मुलाकात की. राहुल ने एक ट्वीट के ज़रिये कहा कि वह ” मणिपुर मे सभी भाई-बहनों को सुनने के लिए आये हैं. सभी समुदायों के लोगों से उन्हें प्यार मिला. ..मणिपुर के घावों पर मरहम लगाने की जरूरत है. हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि राज्य में शांति स्थापित हो . ” मणिपुर में गुरुवार को सुबह हथियारबंद लोगों ने इम्फाल वेस्ट के पास एक गांव पर हमला कर दो लोगों की हत्या कर दी. असम राइफल्स ने जवाबी कार्रवाई की. शाम को एक बड़ी भीड़ ने इम्फाल में बीजेपी के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और पुलिस को आंसूगैस छोड़नी पड़ीं. राहुल गांधी मणिपुर गए, अच्छा किया. वहां के लोगों से मिले, ये भी अच्छा किया. लेकिन कांग्रेस का ये कहना उचित नहीं है कि मोदी मणिपुर इसलिए नहीं गए कि वो नहीं चाहते कि मणिपुर के हालात के बारे में लोगों को पता चले. आज के ज़माने में जहां मीडिया के कैमरे हर जगह मौजूद रहते हैं, हालात को कोई कैसे छिपा सकता है ? पूरे देश ने टीवी पर देखा है कि मणिपुर में कैसे हिंसा भड़की, कैसे टकराव हुआ. दूसरी बात ये कि गृह मंत्री अमित शाह कई बार मणिपुर गए. कई दिन वहां रुके. अगर मोदी वहां जाते तो यही लोग कहते कि वो पब्लिसिटी लेने हर जगह पहुंच जाते हैं. यही लोग कहते कि उन्हें गृह मंत्री को भेजना चाहिए था, लेकिन विरोधी दलों में ये होता ही है, ‘चित भी मेरी पट भी मेरी’. इसका किसी को बुरा भी नहीं मानना चाहिए.
नीतीश पर अमित शाह का तंज़
गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को बिहार के लखीसराय में एक रैली को संबोधित करते समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बार बार पलटू राम कहा. 23 जून को पटना में विरोधी दलों की मीटिंग के बाद अमित शाह पहली बार बिहार गये थे. अमित शाह ने कहा कि नीतीश कुमार बार-बार घर बदलते हैं, इसलिए उन पर किसी को भरोसा नहीं करना चाहिए. अमित शाह ने कहा कि नीतीश कुमार तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखाकर लालू यादव को मूर्ख बना रहे हैं. अमित शाह ने राहुल गांधी पर भी हमला किया, कहा कि विपक्षी एकता के बहाने कांग्रेस एक बार फिर राहुल गांधी को लॉंच करना चाहती है, लेकिन सबको पता है ये लॉन्चिंग भी फेल होगी. राजनीति में बाजी कैसे पलटती है, ये लखीसराय में देखने को मिला. पहले तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को पलटू चाचा कहते थे. आज अमित शाह ने नीतीश कुमार को पलटूराम कहा. अमित शाह की ये बात सही है कि नीतीश कुमार इधर उधर से जोड़ तोड़ कर, दायें बाएं पलटी मारकर 18 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन लगता है कि अब उनका नंबर लगने वाला है. इस बात की चर्चा है कि लालू यादव अब तेजस्वी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखने के लिए उतावले हैं. विरोधी दलों की एकता के लिए उन्होंने इसीलिए नीतीश का चेहरा आगे किया. लालू की कोशिश है कि विरोधी दलों का मोर्चा जल्दी बने. नीतीश उसके संयोजक बनें, मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करें और तेजस्वी का रास्ता भी साफ हो जाए.
UCC : EQUAL RIGHTS TO ALL
The Parliament Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice headed by BJP leader Sushil Modi will hear on July 3 officials from Law Ministry and the Law Commission on the issue of reviewing personal laws. This comes in the backdrop of the Law Commission inviting views from the public including all stakeholders on the need to bring a Uniform Civil Code. On Eid ul Azha, most of the maulanas and other Islamic clerics pointed out difficulties in adopting a uniform civil code in the light of Islamic sharia laws. They pitched for continuing with separate personal laws for different religions, as has been the practice since independence. AIMIM MLA in Malegaon Mufti Ismail Qasmi told a gathering at Eidgah ground that the pitch for uniform civil code is being made only to ‘harass Muslims’. Addressing a gathering at Eidgah ground in Lucknow, Maulana Khalid Rashid Firangi Mahali described uniform civil code as an “unessential issue” and said, in a pluralist country like India having diverse religions, customs, food habits and traditions, a single uniform civil code cannot be implemented. However, All India Imam Association chairman Maulana Umar Ahmed Ilyasi said it is illogical to oppose the uniform civil code, even before the Law Commission has drafted a bill. He said, a meeting of muftis of Central Darul Kazaa will be called where a draft will be prepared for submitting to Law Commission after consultation among all imams. Several political parties are adding fuel to the fire. National Conference leader Dr Farooq Abdullah warned that a storm can occur if the government went ahead with the UCC, because Muslims follow Shariat rules and there should not be any interference in their personal laws. Shiromani Akali Dal leader Daljit Singh Cheema said, Law Commission had earlier said, a UCC is not required, but if the government pushed ahead, it can create tension. Cheema said, Sikhs will not support the UCC because the community has its own traditions and rules. NCP supremo Sharad Pawar advised the Law Commission to speak to leaders of Sikh, Christian, Jain, Buddhist and Parsi communities first before preparing any UCC draft. An impression is being created that the uniform civil code is being brought “to target Muslims”. The second impression that is being created is that UCC may end religious freedom, and may change marriage practices and traditions. People are being misled by spreading rumours that Muslims and Christians may not get decent burials and they may be cremated as per Hindu rituals. The ground reality is that the uniform civil code has nothing to do with religious practices and traditions. The code is meant for changing some social rules. The UCC will ensure equal rights for all. For example, at present there are different minimum age limits for marriage in different religions. This age limit will be made uniformly applicable. The UCC may ban polygamy, and abolish the tradition of ‘Halala’ among Muslims. At present registration of marriages is not compulsory, and the UCC can make now make all marriage registrations mandatory. For succession, share of daughters in parental property is different in all communities. The UCC will bring uniformity and enact rules for daughters to get equal rights on parental property. In some religions, adoption is restricted. The UCC will provide equal adoption rights to women of all religions. Similarly, there will be uniformity in giving compensation to women after death of their husbands, even if the widows remarry. There are however some questions that still require solutions. For example, in Goa, there is the uniform civil code which says if the first wife does not give birth to a son, the husband has the right to marry a second time. Will such rules be changed? Similarly, among tribal communities, there are marriage traditions that have been continuing since centuries. The Law Commission’s draft is expected to come after July 13 and only then the situation can become clear. I have tried to share with you some of the information that we have collected. There is nothing to show that the UCC is being brought to “target” Muslim community or change social practices and customs. It is the responsibility of the Centre to first remove confusions from the mind of the people and then go ahead with preparing a draft UCC.
RAHUL’S MANIPUR VISIT
Congress leader Rahul Gandhi is on a two-day visit to Manipur meeting families displaced by ethnic violence. On Friday, he met homeless people living in a camp in Moirang and later met civil society leaders and activists of like-minded parties. There was high drama on Thursday, when police stopped him in Bishnupur citing law and order problems. Rahul had to return to Imphal and take a helicopter to meet affected people in Churachandpur. In a tweet, Rahul wrote, “I came to listen to all my brothers and sisters of Manipur. People of all communities being very welcoming and living. It’s very unfortunate that the government is stopping me. Manipur needs healing. Peace has to be our only priority.” On Thursday, two persons were killed after a pre-dawn attack by assailants on a village on Imphal West-Kangpokpi border, and Assam Rifles men had to retaliate. In the evening, hundreds of people protested outside BJP regional office in Imphal, and police had to fire tear gas shells to disperse the mob. I would like to say, Rahul Gandhi did a good thing in going to Manipur and meeting people, but I don’t think that the Congress allegation is justified that Prime Minister Modi did not go to Manipur because he did not want the world to know about what’s happening in the state. In today’s digital age, where nothing can be hidden from media cameras, how can the situation in Manipur be hidden from the rest of the world? The entire nation saw how there was violence in Manipur and thousands had to leave their homes in fear for their lives. Secondly, Home Minister Amit Shah went to Manipur several times to restore peace. Had Modi gone to Manipur, the same parties would have commented that the Prime Minister rushes to such places to get publicity. They would have demanded that the Home Minister should have gone to Manipur. Opposition parties cannot have it both ways.
AMIT SHAH’S JIBE AT NITISH KUMAR
Home Minister Amit Shah on Thursday addressed a rally in Lakhisarai, Bihar. This was his first visit to Bihar after 15 top opposition parties met at a conclave in Patna on June 23. Amit Shah described chief minister Nitish Kumar as “Paltu Ram”(opportunist) several times. He alleged that Nitish “befooled Lalu Yadav” by promising to make his son Tejashwi Yadav the chief minister. He also hit out at Rahul Gandhi saying that Congress, in the guise of opposition unity, is trying to launch Rahul again, but everybody knows this launching will fail again. The Lakhisarai rally clearly showed how things change fast in politics. Earlier, it was Tejashwi Yadav who had coined the sobriquet ‘Paltu Ram’ for Nitish Kumar for changing camps. On Thursday, it was Amit Shah who used the same sobriquet for the Bihar CM. Amit Shah seems to be right. Nitish Kumar managed to stay as chief minister for 18 years, by switching camps several times. But his days as chief minister seem to be numbered. There is speculation that Lalu Yadav is desperate to see his son Tejashwi as chief minister. It was because of this that Lalu Yadav prodded Nitish Kumar to start working for opposition unity. Lalu wants an opposition front soon, so that Nitish Kumar can become its convenor and, in the process, vacate, the throne of chief minister. Tejashwi will then become chief minister.
यूनीफॉर्म सिविल कोड : दुविधा में विपक्ष
यूनीफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर बुधवार को दो घटनाएं हुई. पहली, विधि आयोग (लॉ कमीशन) के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने साफ कह दिया कि वो समान नागरिक संहिता के मसले पर गंभीरता से आगे बढ़ रहे हैं. अब तक इस मसले पर साढे आठ लाख सुझाव मिल चुके हैं. जस्टिस रितुराज अवस्थी ने लोगों से अपील की है कि वो ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस मसले पर अपनी राय दें. दूसरी घटना ये हुई कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर विपक्ष में फूट पड़ गई. आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया कि वो सैद्धान्तिक तौर पर यूनीफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करती है. अरविन्द केजरीवाल की पार्टी के इस रुख से विरोधी दलों में खलबली है. अब कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और जेडी-यू जैसी पार्टियां परेशान हैं. हालांकि केजरीवाल की पार्टी ने ये साफ नहीं किया है कि अगर सरकार यूनीफॉर्म सिविल कोड का बिल लाती है, तो पार्टी इसका समर्थन करेगी या नहीं, लेकिन इतना जरूर कहा है कि सैद्धान्तिक तौर पर पार्टी कॉमन सिविल कोड के पक्ष में हैं. केजरीवाल की पार्टी के इस रुख पर कांग्रेस और जेडीयू ने हैरानी जताई है. अब सवाल ये है कि क्या कॉमन सिविल कोड का मुद्दा विपक्षी एकता के लिए खतरा बन जाएगा? या फिर केजरीवाल कांग्रेस पर दवाब बनाने के लिए इस तरह का दांव चल रहे हैं ? जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी समेत तमाम मौलानाओं ने समान नागरिक संहिता पर एतराज जताया, लेकिन कुछ ऐसे मुस्लिम विद्वान सामने आए जिन्होंने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है, अगर इसे लागू किया जाता है तो ये मुसलमानों की बेहतरी के लिए उठाया गया बड़ा कदम होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में यूनीफॉर्म सिविल कोड की जो बात कही थी. आम आदमी पार्टी ने जो रुख अपनाया उससे विरोधी दल सावधान हो गए हैं, इस मुद्दे पर संभल कर बोल रहे हैं. NCP के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का विरोध तो NCP भी नहीं करती, लेकिन पहले ये पता तो चले कि सरकार क्या करना चाहती है. जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना अररशद मदनी ने कहा कि ये मसला वोटों की खातिर उठाया गया है वरना मुसलमान तो इस देश में 1300 साल से रह रहे हैं, अब तक तो किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई. फिर अचानक इस तरह के कानून की जरुरत क्यों पड़ गई? ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने भी यूनीफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया और कहा कि अगर यूनीफॉर्म सिविल कोड आया तो इससे मुसलमानों को दिक्कत होगी. मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं, इसलिए मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता भी ये बात समझ रहे हैं, इसलिए वो इस मसले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहते. मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि बीजेपी ये सब असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कर रही है. कांग्रेस बीजेपी की चाल में नहीं फंसेगी. कमलनाथ ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा बीजेपी को उठाने दीजिए, कांग्रेस मंहगाई, बेरोजगारी की बात करेगी. जिस तरह से यूनीफॉर्म सिविल कोड पर सियासत शुरू हुई है, उससे ये तो साफ हो गया कि मोदी का तीर निशाने पर लगा है. ये ऐसा मसला है जिससे विरोधी दलों में फूट के आसार दिखाई देने लगे है. इसका पहला सबूत केजरीवाल की पार्टी के रुख से मिल गया. दूसरी बात ओबैसी की पार्टी, फारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टी को छोड़कर दूसरी विपक्षी पार्टियां न तो इसका विरोध कर सकती है, न खुलकर समर्थन कर पाएंगी. अगर विरोध किया तो हिन्दुओं को वोट जाने का खतरा होगा और समर्थन किया तो मुसलमानों की नाराजगी झेलनी पड़गी. इसीलिए अब सभी पार्टियों ने ये कहना शुरू कर दिया है कि सरकार पहले बिल का ड्राफ्ट सामने रखे, सभी पार्टियों की मीटिंग बुलाए, उसके बाद ही वो इस मुद्दे पर अपनी राय देंगे. लेकिन मुझे लगता है कि बीच का ये रास्ता भी काम नहीं आएगा क्योंकि जिस तरह से मोदी ने कल इस पर खुल कर बात की है, उसका संकेत साफ है कि सरकार इस मामले में अपना मन बना चुकी है. संसद का मानसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हो सकता है. अगर सरकार ने मॉनसून सत्र में बिल का ड्राफ्ट पेश कर दिया तो कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों की वही हालत होगी, जो कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकिल 370 को खारिज करने के वक्त हुई थी. सबने मजबूरी में ही सही, इसका समर्थन किया था. इसीलिए मैंने कहा कि आज नहीं तो कल, विरोधी दलों को इस मुद्दे पर साफ स्टैंड लेना ही पड़ेगा और नरेंद्र मोदी विरोधी दलों को इसके लिए मजबूर करेंगे. चूंकि कई मुस्लिम उलेमा ने यूनीफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है, इसलिए विपक्षी दल इस वक्त दुविधा वाली स्थिति में हैं.
बिहार को बाहर से शिक्षकों की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
बिहार में स्कूली शिक्षकों की भर्ती को लेकर हंगामा चल रहा है. बिहार सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में बिहार के अलावा दूसरे राज्यों के लोगों को भी इम्तहान में बैठने की छूट दे दी है. इसका जमकर विरोध हो रहा है. दरअसल बिहार सरकार ने इसी महीने की शुरूआत में 1 लाख 70 हजार शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की थी. उसके बाद इसके नियमों में बदलाव हुए. मंगलवार को राज्य सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया जिसमें बताया गया कि शिक्षकों की भर्ती वाली परीक्षा में शामिल होने के लिए बिहार का मूल निवासी होने की शर्त हटा दी गई है. अब देश के सभी राज्यों के नौजवान बिहार में शिक्षकों की भर्ती की परीक्षा दे सकते हैं. नीतीश कुमार की सरकार के इस फैसले से परीक्षा की तैयारी कर रहे बिहार के नौजवान नाराज हो गए और सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट की कॉल दे दी. बीजेपी ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया. बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने जो बात कही, उससे लोगों का गुस्सा और बढ़ गया. चन्द्रशेखर ने कहा कि चूंकि इससे पहले हुई भर्तियों में गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी के अच्छे शिक्षक नहीं मिल पाते थे, जगह खाली रह जाती थी, इसलिए इस बार दूसरे राज्यों के लोगों को भी परीक्षा में मौका देने का फैसला किया गया. इससे मेधावी उम्मीदवार भर्ती प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे. लेकिन नौकरी की उम्मीद में सालों से तैयारी कर रहे बिहार के नौजवानों को सरकार के ये तर्क नागवार गुजरे हैं. छात्र संगठनों ने फैसला वापस लेने के लिए बिहार सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है. छात्र नेताओं का कहना है कि शिक्षा मंत्री एक तो बिहार के बच्चों के मौके छीन रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी मेधा पर सवाल उठा रहे हैं, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. बिहार के बीजेपी नेता पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों का गुस्सा जायज है, अगर दूसरे राज्यों के बच्चे शिक्षक भर्ती परीक्षा में बैठेंगे तो बिहार के बच्चों का क्या होगा? सुशील मोदी ने कहा कि हकीकत ये है कि नीतीश कुमार की सरकार की मंशा शिक्षकों की भर्ती की है ही नहीं, सरकार चाहती है कि केस कोर्ट में चला जाए और भर्ती की प्रक्रिया लटक जाए.
बिहार सरकार की ये बात तो सही है कि देश के किसी भी हिस्से के नौजवानों को बिहार में रोजगार के मौके से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार को ये बात पहले से नहीं मालूम थी…उन्होंने बार बार नियमों में बदलाव क्यों किया….फिर दूसरे राज्यों के नौजवानों को भर्ती में शामिल करने के लिए अलग से विज्ञापन क्यों निकाला? इसके बाद सरकार अपनी बात सही तरीके से छात्रों को समझाती. ऐसा करने के बजाए शिक्षामंत्री ने बिहार के बच्चों के टैलेंट पर ही सवाल उठा दिया. ये ठीक नहीं हैं, इससे छात्रों का गुस्सा और बढ़ेगा. छात्र संगठन सड़कों पर उतरेंगे, फिर इस पर सियासत होगी और सुशील मोदी की ये बात सही है कि कोई कोर्ट चला जाएगा और भर्ती की प्रक्रिया लटक जाएगी. इससे नुकसान बिहार के नौजवानों का ही होगा.
UCC : OPPOSITION CAUGHT IN A DILEMMA
Two developments took place on the issue of uniform civil code on Wednesday. Law Commission chairman Justice Rituraj Awasthi said, the commission has, till now, received 8.5 lakh responses on UCC after it sought views from the public, religious organizations and other stakeholders within 30 days deadline. He said, commission will have wide consultations with all stakeholders. The second development points towards division among opposition parties on the question of opposing uniform civil code. Aam Aadmi Party general secretary Sandeep Pathak said, his party supports uniform civil code “in principle”, but later senior AAP leader Sanjay Singh said, the Centre must first reveal details of the bill and hold discussion with all parties, and only then will his party decide. Congress, RJD, Samajwadi Party and JD-U are shocked over AAP’s stance. Congress leader Kamal Nath, who is leading his party in the forthcoming Madhya Pradesh assembly polls, said, his party will not “fall into BJP’s trap. Let BJP raise uniform civil code issue, we will raise issues of price rise and unemployment among the people.” NCP working president Praful Patel said, his party does not oppose UCC, but the Centre should come with the details first. Looking at the political thrusts and counter-thrusts, it seems Modi’s arrow has hit the target. It is an issue on which division has appeared among opposition parties. The first sign came from Arvind Kejriwal’s Aam Aadmi Party. Secondly, almost all major opposition parties, except Asaduddin Owaisi’s AIMIM, Farooq Abdullah’s National Conference and Mehbooba Mufti’s PDP, are in a position where they can neither oppose nor openly support uniform civil code. If these parties oppose UCC, they run the risk of losing Hindu voters, and if they support UCC, they may have to face the anger of Muslim voters. To be on the safe side, all these parties have now started saying, let the Centre come with the draft bill first and call an all-party meeting, only then will they reveal their views. But I think this middle path will not work. The emphatic manner in which Prime Minister Narendra Modi pushed the uniform civil code issue on Tuesday, is indicative that the government has already made up its mind on UCC. Parliament’s monsoon session may begin on July 17, and if the government introduces a draft bill on UCC, Congress and other opposition parties will be caught in a bind. A similar thing happened in Parliament on August 5, 2019, when the Centre suddenly came up with a bill to abrogate Article 370 that gave special status to Jammu and Kashmir. All the opposition parties had to fall in line and support the bill. This time, too, Modi may force the opposition parties to fall in line again. Since several top Muslim ulema, including those from All India Muslim Personal Law Board and Jamiat Ulama-e-Hind have opposed UCC, the opposition is now caught in a dilemma.
WHY BIHAR NEEDS TEACHERS FROM OUTSIDE ?
The Bihar government has amended teacher recruitment rules allowing candidates from all over India to apply for the posts of school teachers. Education Minister Chandrashekhar said, this amendment has been made in order to fill up vacancies for Science, English and Maths teachers. “Talented job aspirants from across India can appear for recruitment since there is a dearth of competent candidates for subjects like Science and English. This will improve quality of education in government schools”, he said. A meeting of Bihar cabinet, presided over by chief minister Nitish Kumar, on Tuesday took the decision to amend Bihar State School Teachers (appointment, transfer, disciplinary action and service condition) Rules, 2023 waiving off Bihar domicile for candidates. Notification for recruitment of 1,70,000 school teachers was issued earlier this month. BJP and several student organisations have opposed this move. Former deputy CM and BJP leader Sushil Modi said, people’s anger is justified. “If candidates from other states sit in exams, what will be the fate of candidates from Bihar? Actually, Nitish Kumar’s government has no intention of hiring teachers and it wants that the matter should go to court, and the entire process comes to a standstill”, he said. Bihar government’s view that it cannot refuse jobs to youths from outside the state is alright, but the question is: didn’t Nitish Kumar know about this earlier? Why was a separate ad brought out inviting applications from candidates outside Bihar? Why were the rules changed? The state government could have convinced aspirants from Bihar about this decision. Instead of doing this, the state education minister has questioned the talent of candidates from Bihar, which is not justified. This has already fuelled anger among job aspirants in Bihar and some students’ organizations have given 72 hours’ ultimatum. I think, Sushil Modi is right when he says that the matter could go to court and the hiring process will linger on. Ultimately, the youths of Bihar will be the ultimate losers.
मोदी, मुसलमान और समान नागरिक संहिता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जनता के सामने अपना एजेंडा रख दिया है. मोदी ने भोपाल में मंगलवार को बीजेपी के कार्यकर्ताओं को समझाया कि उन्हें जनता के बीच जाकर क्या कहना है. मोदी का एजेंडा नंबर 1 है, यूनिफॉर्म सिविल कोड. पहली बार मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सीधी और साफ बात की. मोदी ने कहा कि एक ही घर में परिवार के लोगों के लिए अलग अलग कानून होंगे तो घर कैसे चलेगा, सबके लिए समान कानून होना जरूरी है. मोदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी बार बार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कहता है लेकिन विरोधी दलों के नेता इसे सिर्फ मुसलमानों से जोड़कर वोट के चक्कर में उन्हें डराते हैं, गुमराह करते हैं. मोदी ने पसमांदा मुसलमानों की बात की, दूसरे देशों का उदाहरण दिया. मोदी का संदेश यह था कि सरकार समान आचार संहिता लागू करने पर आगे बढ़ेगी. जैसे ही मोदी का बयान आया तो विरोधी दलों में हलचल मच गई. शरद पवार, भूपेश बघेल, तारिक अनवर, मनोज झा, विजय चौधरी और असदुद्दीन ओवैसी से लेकर अबु आज़मी और जमीयत उलेमा ए हिन्द के नेता तक सब बोले. सब ने मोदी पर हमला किया. आज मोदी ने जितने विस्तार से समान नागरिक संहिता की बात की, उससे ये साफ हो गया कि मोदी सरकार जल्द ही इसे लेकर कानून ला सकती है. मोदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तो कब से कॉमन सिविल कोड लाने को कह रहा है. मोदी ने कहा कि अगर एक घर में दो कानून नहीं चल सकते तो फिर एक देश में दो कानून कैसे चल सकते हैं ? मोदी ने कहा जो लोग समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं, वो इसी तरह तीन तलाक़ को इस्लाम का जरूरी हिस्सा बता कर उसे खत्म करने का विरोध कर रहे थे. मोदी ने कहा, हकीकत ये है कि तमाम इस्लामी मुल्कों ने तीन तलाक को 90 साल पहले खत्म कर दिया है. अगर तीन तलाक़ इस्लाम का जरूरी अंग होता, तो पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन जैसे मुस्लिम देश इसे खत्म क्यों करते? मोदी ने उन लोगों को भी जबाव दिया जो बीजेपी को मुसलमान को दुश्मन बताते हैं. मोदी ने कहा कि उन्होंने सबका साथ सबका विकास के मंत्र पर काम किया है, पसमंदा मुसलमानों के लिए किए गए सरकार के काम इसका सबूत हैं. मोदी ने कहा कि कुछ पार्टियां और लोग पसमंदा मुसलमानें को मुसलमान नहीं समझते, उनसे भेदभाव करते हैं, उन्हें अछूत मानते हैं. मोदी के भाषण के तुरंत बाद हैदराबाद से AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का रिएक्शन आया. ओवैसी ने पूछा, क्या हिन्दू मैरिज एक्ट खत्म हो जाएगा? क्या मोदी अविभाजित हिन्दू परिवार कानून खत्म कर देंगे? क्या ईसाइयों और दूसरी जनजातियों की परंपराओं पर पबांदी लगा दी जाएगी? ओवैसी ने कहा कि यूनीफॉर्म सिविल कोड़ संविधान की भावना के खिलाफ है. अगर मोदी यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू करेंगे तो क्या कुरान की आयातों का पालन करने पर रोक लग जाएगी? बैरिस्टर असदुद्दीन ओबैसी ने तमाम दलीलें देकर ये साबित करने की कोशिश की कि मोदी सिर्फ चुनावी झुनझुना बजा रहे हैं, वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं, पर होगा कुछ नहीं. ममता बनर्जी ने कहा, मोदी का मुसलमानों के प्रति प्रेम सिर्फ दिखावा है, मोदी सरकार सिर्फ छह महीने की मेहमान है, इसलिए इस तरह के छलावे में फंसने की जरूरत नहीं है. यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर मुस्लिम संगठन और मौलाना भी एक्टिव हो गए हैं. मंगलवार रात को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मीटिंग हुई, जिसमें तय हुआ कि लॉ कमिशन को बो4ड की तरफ से ब्य़ौरा दिया जाएगा. इस मीटिंग में बोर्ड के चेयरमैन सैफुल्लाह रहमानी और ज़मीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी मौजूद थे. जमीयत के सचिव नियाज़ फारुकी ने कहा कि जब विधि आयोग इस पर काम कर रहा है तो प्रधानमंत्री को बयान देकर उस पर दबाब बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी. मोदी के बयान पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है, इसकी वजह भी जान लीजिए. मोदी अगर सिर्फ कॉमन सिविल कोड की बात करते तो विरोधी दलों से इतना तीखा रिएक्शन न आता. चूंकि मोदी ने पसमंदा मुसलमानों की बात कर दी, उनके प्रति हमदर्दी जता दी, इससे ज्यादा दिक्कत है. पसमंदा फारसी शब्द है, इसका मतलब होता है – जो पीछे छूट गए हैं, जो पिछड़े हैं, सताए हुए हैं. भारत में मुसलमानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत पसमंदा मुसलमान है. सिर्फ 15 परसेंट मुसलमान उच्च वर्ग के हैं जिन्हें अशरफ कहते हैं. इनके अलावा 85 परसेंट पिछड़े, शोषित, वंचित हैं, जिन्हें अरजाल और अज़लाफ़ कहा जाता है. मोदी ने मुसलमानों के 85 परसेंट तबके के प्रति हमदर्दी दिखाई है, उनकी तरक्की की बात की है, इसीलिए ओवैसी से लेकर ममता तक सब परेशान हैं, क्योंकि सबको मुस्लिम वोट बैंक में सेंध की फिक्र है. मोदी ने जिस तरह से पसमंदा मुसलमानों की बात की, जिस तरह समान नागरिक संहिता पर साफ साफ शब्दों में बात की , उससे ये तो साफ हो गया कि अब 2024 के चुनाव का यूनीफॉर्म सिविल को एक बड़ा सियासी इश्यू बनेगा. जिस तरह से प्रधानमंत्री ने कॉमन सिविल कोड़ पर सीधी और साफ बात की, उससे लग रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाएगा और विरोधी दल ये बात जानते हैं कि अगर नरेन्द्र मोदी ने ये काम कर दिया तो फिर न मोदी-विरोधी मोर्चे से बात बनेगी, न विपक्षी एकता काम आएगी.
भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी की ‘गारंटी’
नरेंद्र मोदी का एजेंडा नंबर दो है – विरोधी दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार को जनता के सामने उजागर करना. मोदी ने पहली बार नाम लेकर कांग्रेस, आरजेडी, NCP, तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के इल्जामात आंकड़े देकर गिनाये – किसने कितने हजार या लाख करोड़ का घोटाला किया. मोदी ने कहा कि विरोधी दलों की गारंटी है कि वो भ्रष्टाचार नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मोदी की गारंटी है कि किसी भ्रष्टाचारी को नहीं छोड़ेंगे, सबका हिसाब करेंगे. मोदी का एजेंडा नंबर 3 है, परिवारवाद की राजनीति का पुरजोर विरोध. मोदी ने कहा विरोधी दलों के नेता मुफ़्त की गारंटियाँ देते है, सिर्फ अपने अपने परिवार के फायदे के लिए काम करते हैं और बीजेपी जनता के फायदे के लिए काम करती है. 23 जून को जब पटना में 15 विपक्षी दलों की मीटिंग हुई थी तब मोदी अमेरिका की सरकारी यात्रा पर थे, इसलिए मोदी इस मीटिंग पर आज बोले. मोदी ने कहा कि जो विरोधी दल एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते, वो भी उनके खिलाफ एक साथ आ रहे हैं. मोदी ने 2014 और 2019 के चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके खिलाफ इस तरह का गठबंधन पहले भी बना था और हारा था. इस बार भी देश की जनता ने तय कर लिया है कि 2024 में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनानी है. मोदी ने कहा कि विपक्षी पार्टियों में आजकल गारंटी देने का फैशन चल रहा है. कोई फ्री बिजली की गारंटी देता है तो कोई फ्री राशन की. जबकि हकीकत ये है कि इन पार्टियों की सरकारें सिर्फ करप्शन की गारंटी दे सकती है. मोदी ने नाम लेकर हर पार्टी के घोटालों की लिस्ट गिना दी. मोदी ने कहा कि ये विपक्षी पार्टियां तो घोटाले की गारंटी देती हैं लेकिन आज वो देश को इस बात की गारंटी देना चाहते हैं कि जो भी जनता के पैसों को लूटेगा, भ्रष्टाचार करेगा, उनकी सरकार उसे छोड़ेगी नहीं. मोदी ने कहा कि अगर लोग शरद पवार की बेटी की भलाई चाहते हैं तो एनसीपी को वोट दें, अगर लोग लालू के बेटों और बेटियों की भलाई चाहते हैं, तो वे आरजेडी को वोट दें, अगर लोग मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश की भलाई चाहते हैं तो वे समाजवादी पार्टी को वोट दें, अगर लोग के. चंद्रशेखर राव की बेटी की भलाई चाहते हैं, तो वे बीआरएस को वोट दें, अगर लोग करुणानिधि के परिवार की भलाई चाहते हैं, तो वे डीएमके को वोट दें, लेकिन अगर लोग अपने बेटों- बेटियों ओर पोतों की भलाई चाहते हैं, तो वे बीजेपी को वोट दें. मोदी ने जो कहा वो विरोधी दलों के पिछले कई महीनों के कैंपेन के एक एक पॉइंट का जवाब था. मोदी ने जो कहा वो आने वाले चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति का संकेत था. विरोधी दलों का सबसे संगीन इल्जाम ये है कि मोदी सरकार अपने विरोधियों के खिलाफ सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल करती है. मोदी ने विरोधी दलों के नेताओं के भ्रष्टाचातार के मामले गिना दिए और साफ कर दिया कि इस मामले में विरोधी दलों के नेताओं को राहत देने का उनका कोई इरादा नहीं है, भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सरकार का अभियान ,सीबीआई, ईडी का एक्शन बदस्तूर जारी रहेगा. विरोधी दलों का दूसरा बड़ा इल्जाम ये है कि मोदी के राज में मुसलमान परेशान हैं, मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी है और ये सवाल इंटरनेशनल मीडिया में भी उठाए जाते हैं. मोदी ने साफ कर दिया कि वो इस तरह की बयानबाजी से डरने वाले नहीं हैं. उन्होंने समझा दिया कि वो देश में मुसलमानों की भलाई के नाम पर की जाने वाली सियासत को नहीं चलने देंगे, तुष्टीकरण की राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेंगे. जले पर नमक छिड़कने के लिए मोदी ने ये भी कह दिया कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड होना चाहिए, सबके लिए एक जैसा कानून होना चाहिए. मोदी के एजेंडे की तीसरी बड़ी बात ये है कि विरोधी दलों की एकता उनके अपने फायदे के लिए है. पटना में जितने भी विरोधी दलों के नेता इकट्ठे हुए थे मोदी ने बताया कि वो सब अपने परिवार की विरासत को बचाने के लिए अपने बेटे और बेटियों को राजनीति में चमकाने के लिए इकट्ठा हुए. हालांकि पटना में जो नेता मौजूद थे वो मानते हैं कि अगर उनके बेटे या बेटियां राजनीति में आते हैं उनकी पार्टियों को संभालते हैं तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है. लालू यादव तेजस्वी को आगे करें या शरद पवार सुप्रिया को आगे बढ़ाएं इसमें क्या गलत है? अगर राहुल राजीव के बेटे हैं, अखिलेश मुलायम के बेटे हैं तो इसमें क्या प्रॉब्लम है? मोदी ने आज इस बात को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा ये सब लोग अपने बच्चों का अपने परिवार का भला चाहते हैं अगर देश की जनता अपने परिवार का अपने बेटे बेटियों का कल्याण चाहती है तो उन्हें बीजेपी का, मोदी का साथ देना चाहिए. विरोधी दलों की राजनीति का एक और पहलू है चुनाव के मौके पर मुफ्त की चीजें बांटना, बिजली, पानी और सर्विस फ्री देने की गारंटी देना. आज ये भी मोदी के एजेंडे पर था. मोदी ने कहा ऐसा करने वाले नेता सिर्फ अपनी पार्टी का भला चाहते हैं वो ये सब इसलिए करते हैं कि उन्हें कमीशन मिले, कट मनी मिले. कुल मिलाकर मोदी ने आज अपने भाषण से दो काम किए – विरोधी दलों के कैंपेन के एक-एक प्वाइंट का जवाब दिया और दो, अपने कार्यकर्ताओं को टॉपिक प्वाइंट दिए, उन्हें समझाया कि जनता के बीच जाकर उन्हें क्या कहना है.