Rajat Sharma

My Opinion

सभी धार्मिक स्थलों के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की रोक : एक स्वागत योग्य कदम

AKB30 सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में चल रहे मंदिर मस्जिद के मामलों में एक बड़ा आदेश दिया. निचली अदालतें अब मंदिर मस्जिद से जुड़े मामलों में कोई अंतरिम या अंतिम फैसला नहीं सुनाएंगी. कहीं किसी मस्जिद के सर्वे का आदेश नहीं देंगे. फिलहाल मंदिर मस्जिद को लेकर कोई नया केस किसी कोर्ट में शुरू नहीं होगा. जो पुराने केस चल रहे हैं, उनमें निचली अदालत सुनवाई तो कर सकती हैं, लेकिन कोई आदेश नहीं दे सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को लेकर फाइल की गई अर्जियों पर सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार को चार हफ्ते में इस मामले में जवाब देने को कहा है और अगली सुनवाई तक मंदिर मस्जिद के विवादों में निचली अदालतों को कोई आदेश देने से रोक दिया.
हालांकि वादियों ने मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह, धार में भोजशाला विवाद, जौनपुर की अटाला मजिस्द, अजमेर में ख्वाजा की दरगाह में शिवलिंग के विवाद जैसे 18 मामलों में लोअर कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों की कार्रवाई पर रोक लगाने से तो इंकार कर दिया , पर लोअर कोर्ट को आदेश दे दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई तक इस तरह के किसी मामले में कोई प्रभावी आदेश न दें.
अबपूजा स्थल अधिनियम 1991 पर केन्द्र सरकार को चार हफ्तों में अपना पक्ष पेश करना है.. उसके अगले चार हफ्तों में वादियों को केन्द्र सरकार के पक्ष पर जवाब देने का मौक़ा मिलेगा, यानी कम से कम अगले दो महीनों तक मंदिर मस्जिद से जुड़े विवादों पर ब्रेक रहेगा.
मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को अपनी बड़ी जीत बता रहा है. हिन्दू पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ प3क्रिया का अनुपालन किया है, ये आदेश कोई बड़ी बात नहीं है.
वकील सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहे हैं, कानूनी दांव पेंचों की बात कर रहे हैं, लेकिन मोटी बात ये है कि प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट ये कहता है कि 1947 में जिस धार्मिक स्थान का जो करैक्टर था, वो बरकरार रहेगा. उसे बदला नहीं जा सकता, यानि जो मस्जिद थी, वो मस्जिद रहेगी, जो मंदिर था, वो मंदिर रहेगा.
जब से ज्ञानवापी केस में लोअर कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया, उसके बाद अचानक इस तरह के मामलों की बाढ़ सी आ गई. मथुरा के अलावा धार की भोजशाला में सर्वे का आदेश दिया गया. फिर संभल में सर्वे का आदेश अर्जी देने के दो घंटे के भीतर आ गया. इस चक्कर में संभल में हिंसा हुई, पांच लोगों की मौत हो गई.
अजमेर में ख्वाजा की दरगाह को लेकर अर्जी फाइल हो गई. विष्णुशंकर जैन और हरिशंकर जैन ने कह दिया कि उन्होंने ऐसी कम से कम दर्जन फाइलें और तैयार कर रखी हैं. इसीलिए मुस्लिम पक्षकार सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिली.
अब कम से कम जब तक सुप्रीम कोर्ट 1991 के प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधानिकता पर अंतिम फैसला नहीं करता, तब तक तो इस तरह के विवादों पर रोक रहेगी और भरोसा करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा फैसला करेगा जिसके बाद हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने का सिलसिला और मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर सियासी हंगामा हमेशा के लिए बंद होगा.

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Supreme Court freeze on all religious disputes is a welcome step

AKB30 In a significant step, the Supreme Court on Thursday stayed filing of fresh lawsuits relating to all places of worship and directed courts not to entertain any fresh suit. The apex court also directed courts not to issue any interim or final order, including orders for survey, relating to any place of worship, till the validity of Places of Worship Act, 1991 is examined.

A bench of Chief Justrice Sanjiv Khanna and Justices Sanjay Kumar and K V Vishwanathan asked the Centre to file an affidavit on this issue with next four weeks. The matter will now be heard on February 17, 2025.

Lower courts can continue hearing in all pending cases but shall not pass any interim or final order, the apex court said. Though the Muslim petitioners had sought stay on 18 cases including those relating to Mathura Krishna Janmasthan, Dhar Bhojshala, Jaunpur Atala mosque and Ajmer Sharif dargah, the apex court in its omnibus stay, put a freeze on all orders relating to all places of worship.

Jamiatul Ulama-e-Hind chief Maulana Arshad Madani welcomed the SC order and expressed hope that the Centre, in its affidavit, would defend the Places of Worship Act passed by Parliament in 1991. Islamic scholar Maulana Khalid Rashid Firangimahali said, this order of Supreme Court will strengthen Hindu-Muslim brotherhood. AIMIM chief Asaduddin Owaisi hoped that no fresh dispute will now arising relating to places of worship till the apex court finally settles the dispute.

Hindu side lawyers said that such a stay was normal and should not be termed as victory for any side.

Lawyers may interpret the Supreme Court order in their own way, but the moot point is that the original character of all places of religious worship, as of August 15, 1947, shall continue to remain intact. Mosques shall continue to function and temples will also continue to exist.

After a lower court in Varanasi ordered survey of Gyanvapi mosque, there had been a spate of similar suits relating to mosques across India. A survey order for Sambhal mosque came from a lower court within two hours of the petition been filed. This resulted in violence and arson in Sambhal resulting in death of five people.

Another petition was filed relating to Ajmer Khwaja Dargah by advocates Vishnu Shankar Jain and Hari Shankar Jain, who claimed that they have filed at least a dozen petition in similar cases. Muslim petitioners then moved the Supreme Court and they got relief on Thursday.

Supreme Court will now have to finally decide the validity of Places of Worship Act, 1991, and till that time, there shall be a freeze on all such disputes. Let us hope that the Supreme Court will give its verdict so that this trend of searching for Shiv Lingams under every mosque must cease.

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अतुल की आत्महत्या का सबक: दहेज कानून में बदलाव

AKBआज मैं आपको बड़े दुखी मन से 34 साल के एक नौजवान की दर्दनाक आत्महत्या के बारे में बताना चाहता हूं. इस सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज किए गए झूठे मामलों और तीन करोड़ रुपये की मांग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली.
ये केस मिसाल है कि हमारा दहेज विरोधी कानून कितना क्रूर है, कैसे इसका दुरुपयोग हो सकता है और कैसे इस अंधे कानून ने एक नौजवान और उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया. वो कोर्ट के चक्कर लगा लगाकर थक गया. पुलिस के आगे हाथ जोड़जोड़ कर रोता रहा और जब इंसाफ की कोई उम्मीद नहीं बची तो उसने फांसी लगाकर जान दे दी.
मौत को गले लगाने से पहले अतुल ने 24 पन्नों का नोट लिखा. फिर डेढ़ घंटे का वीडियो बनाया. अपनी पूरी दास्तां बताई, अपनी आखिरी इच्छा बताई, फिर दीवार पर लिखकर चिपकाया कि Justice Is Due और फांसी लगाकर जान दे दी.
अतुल सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में जो लिखा, अपने आखिरी वीडियो में जो कहा, वो आपके रोंगटे खड़े कर देगा. अतुल सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, बेंगलुरु में अच्छी नौकरी थी, अच्छी सैलरी थी, लेकिन पिछले तीन साल में पत्नी से अनबन के चलते बात कोर्ट तक पहुंची. दहेज विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज हुआ. फिर एक के बाद एक नौ केस दर्ज हो गए.
अतुल कोर्ट में पेशी के लिए बैंगलूरू से जौनपुर के चक्कर काट-काट कर परेशान हो गया, माता-पिता और भाई भी मुकदमों में फंस गए. समझौते के लिए पत्नी ने तीन करोड़ रूपए मांगे. अदालत से इंसाफ के बजाय तारीख पर तारीख मिलती रही.
अतुल सिस्टम से इतना परेशान हो गया कि उसने जिंदगी की बजाय मौत को चुना. अब बैंगलुरू पुलिस अतुल की पत्नी और उसके परिवार वालों से पूछताछ करेगी. अतुल को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का केस दर्ज हुआ है. लेकिन इससे क्या होगा? उन बूढ़े मां-बाप का बेटा वापस तो नहीं आएगा, जो उनके बुढ़ापे का सहारा था. आज जिसने भी दहाड़े मार कर रोती हुई, बेहोश होकर गिरती अतुल की मां की तस्वीरें देखीं, उसका कलेजा फट गया.
अतुल की मौत ने फिर दहेज कानून पर सवाल खड़े कर दिए. हमारी न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा दिए. ये सच है कि जिंदगी से जरूरी कुछ नहीं, मौत किसी समस्या का निदान नहीं. लेकिन अतुल की मौत ने सबको सोचने के लिए मजबूर कर दिया.
अतुल सुभाष के मां-बाप बिहार के समस्तीपुर में रहते हैं. सोमवार की रात बैंगलुरू में उसने ख़ुदकुशी कर ली. आत्महत्या करने से पहले अतुल ने सुसाइड नोट लिखा, अपना वीडियो अपलोड किया, अपने केस से जुड़े ई-मेल अपने जानने वालों को, एक NGO को भेजे. इसके साथ-साथ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी मेल भेजकर अपनी पूरी दास्तां बताई.
अतुल ने लिखा कि वह अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उनके परिवार से तंग आ गए हैं. कोर्ट से भी न्याय के बजाय तारीख पर तारीख मिल रही है. अतुल ने सुसाइड नोट में लिखा कि उनके खिलाफ मुकदमेबाजी में उनके मां-बाप और भाई भी पिस रहे हैं. इन मुसीबतों से निजात का एक ही रास्ता है, ख़ुदकुशी. अतुल की पत्नी दिल्ली में रहती है, सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. पत्नी ने अतुल के खिलाफ IPC दफा 498 के साथ साथ कई दूसरी धाराओं में अलग अलग नौ केस जौनपुर में फाइल किए.
अतुल ने अपने वीडियो में कहा कि पिछले दो साल में कोर्ट में 120 से भी ज़्यादा तारीखें लग चुकी हैं. उन्हें साल में सिर्फ 23 छुट्टी मिलती है. लेकिन वह कोर्ट में पेशी के लिए बैंगलूरू से जौनपुर के चालीस चक्कर लगा चुका है. हर बार परेशानी और नई तारीख के सिवा कुछ नहीं मिला. अतुल ने कहा कि उनकी पत्नी ने उसके पूरे परिवार को झूठे केस में फंसा दिया है. दहेज प्रताड़ना के अलावा मारपीट, धमकी, और तो और अपने पिता की हत्या का केस भी कर रखा है. अतुल ने कहा कि पत्नी चार साल के बेटे से मिलाने के एवज में भी तीस लाख रुपए की मांग कर रही है. वो न माता-पिता और भाई को कोर्ट के चक्कर लगाते हुए देख सकते हैं, न अपने बच्चे से दूर रह सकते हैं, और न इतना पैसा दे सकते हैं. इसलिए मुक्ति का एक ही रास्ता है कि वो अपनी जान दे दें.
अपने सुसाइड नोट में अतुल ने अपनी सास निशा सिंघानिया के बारे में लिखा है. अतुल ने लिखा है कि उनकी सास ने पूछा कि तुमने अब तक सुसाइड क्यों नहीं किया? इसके जवाब में अतुल ने कहा कि अगर वो मर गए, तो आप लोगों की पार्टी कैसे चलेगी? अतुल ने सुसाइड नोट में लिखा कि इसके बाद उनकी सास ने कहा कि पार्टी तब भी चलेगी, तेरा बाप पैसे देगा, पति के मरने के बाद सब पत्नी का होता है. अपने वीडियो में अतुल ने सास की इसी बात को अपनी आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बताया और कहा कि उनके दिए पैसों से ही सारा खेल चल रहा है. इसलिए सुसाइड कर लेंगे, तो ये मामला भी ख़त्म हो जाएगा.
अतुल ने वीडियो में अपनी आख़िरी इच्छा बताईं. अपने परिवार के लोगों को सलाह दी कि वो उसकी पत्नी निकिता सिंघानिया या उनके परिवार के सदस्यों से कभी भी कैमरे के बग़ैर दो चार लोगों को साथ लिए बिना न मिलें, वरना वो कोई नया इल्ज़ाम लगा देंगे. अतुल ने कहा कि मरने के बाद उनकी पत्नी और उसके परिवार के किसी सदस्य को उनके पार्थिव शरीर के आस-पास भी न आने दिया जाए.
अतुल ने अपने वीडियो में निचले स्तर की न्यायपालिका के काम-काज पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने जिन पांच लोगों को अपनी मौत का ज़िम्मेदार ठहराया, उनमें पहला नाम जौनपुर की फैमिली कोर्ट की लेडी जज का है. अतुल का इल्ज़ाम है कि फैमिली कोर्ट की जज उनको परेशान करने में पत्नी और उसके परिवार का साथ देती हैं. उन्होंने मामला सेटेल करने के बदले में पैसे मांगे थे. कोर्ट के क्लर्क भी पैसे लेकर ऐसी तारीख़ें लगाते थे, जिससे वो परेशान हों. अतुल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कम से कम आत्महत्या के बाद उनके परिवार को इंसाफ़ मिलेगा. अतुल ने अपने आखिरी वीडियो में कहा कि अगर उनकी मौत के बाद भी जज और कोर्ट के भ्रष्ट कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो, तो उनकी अस्थियों को कोर्ट के बाहर नाली में बहा दिया जाए.
अतुल का ये कथन हमारे सिस्टम पर करारा प्रहार है. ये संयोग है कि मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज विरोधी क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई. जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह ने कहा कि महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाने के लिए IPC में दफा 498A जोड़ी गई थी, लेकिन, अब इस क़ानून का इस्तेमाल पति के साथ-साथ उसके परिवार को फंसाने के लिए ज़्यादा होने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब घरेलू विवाद बढ़ जाते हैं, तो अक्सर ये देखा जाता है कि पत्नी और उसके परिवार वाले पति के पूरे परिवार के ख़िलाफ़ मुक़दमा कर देते हैं ताकि पति से अपनी मांगें मनवाई जा सकें. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को सलाह दी कि वो दहेज मामलों में बहुत सावधानी से काम लें, पत्नी अगर अपने पति के पूरे परिवार के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाए, तो ऐसे मामलों की बारीक़ी से पड़ताल करें.
अतुल सुभाष की आत्महत्या बहुत सारे सवाल खड़ी करती है. क्या अतुल का कसूर ये था कि उसकी अपनी पत्नी से अनबन हो गई? क्या उसका कसूर ये था कि उसके पास समझौते के लिए तीन करोड़ रुपये नहीं थे? क्या उसका कसूर ये था कि उसने कोर्ट में कुछ लोगों को पैसे नहीं खिलाए? किसी भी इंसान के लिए बैंगलोर से बार-बार केस लड़ने जौनपुर जाना कितना दुखदायी हो सकता है. अदालत से इंसाफ की उम्मीद छूट जाना, कितनी तकलीफ दे सकता है.
अतुल का केस इसका एक ज्वलंत उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट ने दहेज के कानून के बारे में क्या कहा, उसे ध्यान से सुनने और समझने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा दहेज का कानून इसीलिए बनाया गया था कि महिलाओं को दहेज के उत्पीड़न से बचाया जा सके. लेकिन अब किसी भी पारिवारिक विवाद में इस कानून का इस्तेमाल पति और उसके परिवार को फंसाने के लिए होता है. असल में आईपीसी की धारा 498A वो कानून है जिसमें पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती है और इस केस में जमानत नहीं मिलती. बीसियों बार इस तरह के मामले .सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सामने आए हैं और बार-बार अदालतों ने कहा है कि पारिवारिक झगड़े में FIR करने से पहले पुलिस को प्राथमिक जांच करनी चाहिए.
सुलह समझौता कराने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण कमेटी होनी चाहिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ. कोर्ट के दो फैसले ऐसे हैं जिन्हें यहां बताने की जरूरत हैं. कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि धारा 498A का दुरुपयोग करके महिलाओं ने ‘लीगल टेरर’ (कानूनी आतंक) मचा रखा है और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि ‘शादी विवाह से जुड़े हर मामले’ दहेज से संबंधित उत्पीड़न के आरोपों के साथ बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए जा रहे हैं. अगर इसका दुरुपयोग ऐसे ही जारी रहा तो ये विवाह संस्था को ‘बिल्कुल ख़त्म’ कर देगा.
अदालतों की इतनी बड़ी चेतावनी के बावजूद आज भी ये कानून जैसा का तैसा है और हजारों परिवार बर्बाद हो चुके हैं. हजारों बूढ़े मां-बाप जेल में बंद हैं. न्याय की कोई उम्मीद नहीं है. अतुल का केस इसी त्रासदी की तरफ इशारा करता है. उसकी मां हाथ जोड़कर इंसाफ मांग रही है लेकिन ये कानून इतना सख्त है कि कोई भी पत्नी इसका इस्तेमाल करके अपने पति को प्रताड़ित कर सकती है, आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर सकती है. और ये राय अदालतों ने बार बार व्यक्त की है.
इसीलिए अगर अतुल सुभाष की मौत से कोई सबक लेना है तो वो यही होगा कि इस कानून को ऐसा बनाया जाए कि कोई इसका दुरुपयोग न कर सके. फिर कोई अतुल झूठे मामलों की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर ना हो. अतुल ने दीवार पर लिखा था इंसाफ मिलना अभी बाकी है. हालांकि अतुल को इंसाफ कब मिलेगा, हमारे नेताओं को दहेज विरोधी कानून पर विचार करने का वक्त मिलेगा, ये अभी कहना मुश्किल है क्योंकि संसद में लोगों की समस्याओं पर विचार करने की बजाय दूसरे विषयों पर हंगामा चल रहा है.

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Justice for Atul : Amend Anti-Dowry Law soon

AKBThe suicide of a 34-year-old Bengaluru techie Atul Subhash, harassed by his wife and in-laws in legal tangles, has caused pain to millions of people. Atul left behind a 24-page suicide note and an 81-minute video before he committed suicide. In his emotional suicide note, Atul wrote, “Don’t do my ‘Asthi Visarjan’ till my harassers get punished. If the court decides that my wife and other harassers are not guilty, then pour my ashes into some gutter outside the court.”
He further wrote, “there shall be no negotiations, settlements and mediations with these evil people and the culprits must be punished. My wife should not be allowed to withdraw cases to escape punishment unless she explicitly accepts that she has filed false cases.”
The techie uploaded his video on internet titled, “This ATM is closed permanently. A legal genocide is happening in India”. The video detailed “abuse and harassment” that he went through from his wife and in-laws.
Atul’s wife Nikita Singhania had filed nine cases against him and had demanded Rs 3 crore for settlement. It exposes the dark side of our dowry prohibition law that is being misused by people.
The techie after making frequent travels from Bengaluru to Jaunpur, in UP, to attend court hearings, became tired. He pleaded before police and judge with folded hands, but did not get justice. Tired and depressed, Atul wrote the suicide note, recorded the video, wrote “Justice is Due” on the wall of his room and hanged himself.
Atul worked as a software engineer. For the last three years, he had quarrels with his wife and their dispute reached the courts. His parents and brother were also made parties to these legal disputes. Atul was so much exasperated with the system that he decided to choose death over life. His aged parents are now weeping over the loss of their son.
This suicide has raised questions about our judicial system and dowry prevention law. I agree that death is no solution to problems, but this suicide has forced all of us to think.
Atul’s parents live in Samastipur, Bihar. Before he commited suicide in Bengaluru, he uploaded his video on internet, and forwarded his legal cases to his acquaintanes, an NGO and the High Court and Supreme Court. His wife had filed nine different cases under Section 498 IPC and other sections in Jaunpur. Atul had to attend more than 120 court hearings in the last two years. He used to get 23 days’ holiday in his company every year, and already he had made 40 rounds of Jaunpur from Bengaluru.
Atul’s suicide note is a serious blow to our system. A day before, the Supreme Court had strongly criticized growing misuse of Section 498-A of the Indian Penal Code, commonly known as anti-dowry provision, noting that it is increasingly being exploited to settle ‘personal vendettas’ or exert undue pressure on husbands and their families.
The bench of Justices B V Nagarathna and N. Kotiswar Singh, had said, “there has been a growing tendency to use Section 498A as a tool to unleash personal vendetta against the husband and his family members.” The bench said there was need for judicial scrutiny to prevent unwarranted implication of innocent individuals. The apex court advised lower courts to strike a balance between protecting the rights of women and ensure fair treatment for those accused.
The Bengaluru techie’s suicide raises several questions. Was it Atul’s crime that he had quarrels with his wife? Was it his crime that he did not have Rs 3 crore to strike a compromise deal with his wife? Was it his crime that he did not give bribes to lower court staff?
For any individual, frequent travels between Bengaluru and Jaunpur are nothing but woes. Yet, he did not get justice from courts. One must go through the Supreme Court’s observations made on Tuesday in a dowry harassment case.
Supreme Court has said that the anti-dowry law was made to protect married women from dowry harassment. But to use this provision of Section 498-A IPC in all family dispute cases is nothing but blatant misuse of law. Under Section 498-A, police has powers to arrest accused without any warrant, and normally bail is not granted in such cases. There had been scores of such cases in which families were unduly harassed under anti-dowry law provisions. Courts had advised formation of Family Welfare Committee in every district to bring compromise between couples. But this did not happen.
I would like to mention two more observations from two High Courts. Calcutta High Court had said that misuse of Section 498-A IPC is nothing but “legal terror” unleashed by some women litigants. Allahabad High Court had said that almost every case relating to marriage is being exaggerated as dowry harassment case. The High Court opined that if this misuse continued, the very institution of marriage might come to an end.
Thousands of families in India have been adversely affected due to misuse of this provision. Aged fathers and mothers are spending time in jail, with no sign of justice. Atul’s case points towards this tragedy. His weeping parents are seeking justice with folded hands. But the law is so strict that any married woman can misuse it and harass her husband and can even force the latter to commit suicide.
Courts have frequently given their opinions on this matter. We should learn a lesson from Atul’s death. The law must be amended to ensure that no one can misuse its provision. No more Atuls must be forced to commit suicide in future. It is difficult to say when Atul’s family will get justice and when our leaders will get time to do a rethink about anti-dowry law provisions.

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Baba Ka Bulldozer : Illegal portions of mosque razed

akbFive bulldozers were used to demolish illegal constructions made at Noori Jama Masjid in Fatehpur district of Uttar Pradesh on Tuesday. There was no stoning, no firing nor lathicharge. There were no protests. The demolition was done peacefully in the presence of district magistrate, SP, SDM and Tehsildar. The portions of the 185-year-old mosque which were built after encroaching on government land were demolished. Local Muslim residents said, the original mosque was smaller, but over the years there were encroachments to build ‘minars’ and shops.

According to the local administration, bulldozers were used as per recent guidelines given by the Supreme Court. Noori Masjid was built in 1839. Over the years, more additions were made by encroaching upon government land. Four months ago, on August 17, the state Public Works Department issued notices to 139 persons, including the Noori Masjid Management Committee and directed them to remove illegal encroachments within 45 days. Several shopkeepers removed their shops, but the Masjid Committee sought more time.

The Masjid Committee filed a petition in Allahabad High Court, but the High Court refused to stay demolition. Masjid Committee members alleged that the High Court had adjourned the hearing to December 13, but the administration decided to demolish.

Three points are clear from this demolition. One, the original historic structure of the mosque remains intact and only the shops and ‘minars’ that were built on government land were demolished. Two, sufficient time was given by issuing notices. Three, the High Court did not give any relief to the Masjid Committee nor did it stay the demolition.

On the allegation that heavens would not have fallen if the administration had given some more time, it can be said that the constructions were illegal, government land was encroached upon and therefore demolished. Because of these illegal constructions, work on building the state highway had come to a standstill.

I think the Masjid Committee should have come forward on its own and removed the illegal structures. The state highway is going to benefit all sections of society. Use of bulldozers could have been avoided. Whenever demolition takes place near mosques, baseless rumours make the rounds on social media. The manner in which the local administration dealt with the issue is a right one. All the facts were laid before the parties and there was no dispute.

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बाबा का बुलडोज़र चला: पुरानी मस्जिद का गैरकानूनी हिस्सा गिरा

akbउत्तर प्रदेश में बाबा का बुलडोज़र फिर चला. फतेहपुर में 185 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद के अवैध हिस्से को जमींदोज़ कर दिया गया लेकिन न पत्थर चले, न गोलियां चलीं, न लाठीचार्ज हुआ, न विरोध प्रदर्शन हुआ. पूरे शहर में शान्ति रही. पांच बुलडोजर पहुंचे, DM, SP, SDM, तहसीलदार समेत सारे अफसर मुस्तैद थे. पूरी पैमाइश हुई. मस्जिद का जो हिस्सा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया था, उसे तोड़ दिया गया. बड़ी बात ये है कि इलाके के मुस्लिम भाइयों ने भी कहा कि पहले छोटी मस्जिद थी, धीरे धीरे बढ़ती गई, मस्जिद का नया हिस्सा सरकारी जमीन पर बना था, इसीलिए उसे तोड़ा गया.
हालांकि कुछ लोगों ने ये भी कहा कि मस्जिद कमेटी की तरफ से हाईकोर्ट में अपील की गई थी लेकिन प्रशासन ने अदालत का फैसला आने से पहले ही बुलडोजर चला दिया, ये ठीक नहीं हैं. मंगलवार को जब बुलडोज़र चले, तो उस इलाके में पुलिस का जबरदस्त बंदोबस्त था. पुलिस की सख्ती के कारण लोगों ने दुकाने नहीं खोलीं. करीब पांच घंटे की कार्रवाई के बाद मस्जिद के अवैध हिस्से को गिराने का काम पूरा हो गया. नूरी मस्जिद के अवैध हिस्से सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाये गए थे.
पहले इस इलाके में जंगल था, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब यहां स्टेट हाइवे बन रहा है और नूरी मस्जिद का अवैध हिस्सा उसी जमीन में पड़ रहा है जहां से हाइवे को गुजरना है, इसीलिए मस्जिद कमेटी को अगस्त में मस्जिद के अवैध हिस्से को हटाने के लिए नोटिस दिया गया लेकिन मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में अपील कर दी. कमेटी को लोअर कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो सितंबर में प्रशासन ने मस्जिद के आसपास जो दुकाने बनाई गई थी उन्हें गिरा दिया. इसी बीच मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में अर्जी दी, जिस पर 13 दिसंबर को सुनवाई होनी थी.
प्रशासन का कहना है कि फतेहपुर में बुलडोजर एक्शन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का पालन करते हुए लिया गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कोई अवहेलना नहीं हुई है. लेकिन नूरी मस्जिद कमेटी का इल्ज़ाम है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तोड़ा है.
फतेहपुर में जो बुलडोजर चला, उसमें तीन बातें साफ हैं. पहली, मस्जिद के मूल ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, वो पहले की तरह बरकरार है. दो, जिन दुकानों और मीनारों को तोड़ा गया, वो सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई थी. तीन, मस्जिद कमेटी को पर्याप्त नोटिस दिया गया था. हाई कोर्ट से भी मस्जिद कमेटी को राहत नहींमिली. कोर्ट ने डिमोलिशन पर स्टे नहीं दिया था. अब विवाद सिर्फ इस बात पर है कि प्रशासन थोड़ा और वक्त दे देता, तो कौन-सा पहाड़ टूट जाता? लेकिन निर्माण गैरकानूनी था, सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाया गया था, तोड़ा इसीलिए गया क्योंकि इसकी वजह से हाईवे बनाने का काम रुक रहा था.
मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थिति में मस्जिद कमेटी को खुद आगे आकर गैरकानूनी निर्माणों को तोड़ना चाहिए था. हाइवे बनेगा तो इसका फायदा सभी लोगों को होगा. बुलडोजर चलाने की नौबत ना आती तो बेहतर होता क्योंकि जहां मामला मस्जिद से जुड़ा होता है, वहां अफवाहें फैलने का मौका होता है. लेकिन इस बार अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने सावधानी से काम लिया. सारी बातें खुलकर लोगों के सामने रखीं, इसीलिए विवाद ज्यादा नहीं हुआ.

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सोनिया, राहुल पर वार : सोरोस बने हथियार

AKBनौ दिसम्बर को सोनिया गांधी का जन्मदिन था. उसी दिन बीजेपी ने संसद में सोनिया गांधी पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया. बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने राज्यसभा में आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के संगठन से करीबी रिश्ते हैं. नड्डा ने कहा कि कारोबारी जॉर्ज सोरोस कांग्रेस के साथ मिलकर खुलेआम भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं, सोरोस कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते. वह मोदी सरकार को हटाने और भारत में अस्थिरता पैदा करने का काम करते हैं.
बीजेपी ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी जॉर्ज सोरोस से जुड़े संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष है. बीजेपी ने मांग की कि कांग्रेस के सोरोस के फाउंडेशन के साथ रिश्तों की जांच के लिए JPC का गठन होनी चाहिए और संसद में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए.
बीजेपी के नेताओं ने बार बार ये मांग उठाई तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत कांग्रेस के सारे नेता उत्तेजित हो गए. .सोनिया गांधी पर लगे आरोपों से कांग्रेस के नेता इतने नाराज हो गए कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ पर पक्षपात का इल्जाम लगा दिया. फिर सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया.
सवाल ये है कि आखिर जॉर्ज सोरोस के नाम से कांग्रेस के नेता इतने परंशान क्यों हो गए?

जॉर्ज सोरोस अरबपति अमेरिकी कारोबारी हैं, दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में उनका संगठन काम करता है. फोरम फॉर डेमोक्रेडिट लीडर्स फाउंडेशन को जॉर्ज सोरोस से फंडिग मिलती है. इस संगठन के चार सह-अध्यक्ष हैं जिनमें राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी भी एक हैं. फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन का एजेंडा भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक रहा है.
बीजेपी प्रवक्ता सुधाशुं त्रिवेदी ने आरोप लगाया कि कि जॉर्ज सोरोस के संगठन से जुड़े लोग राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल थे. अब कांग्रेस को साफ करना पड़ेगा कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी भारत में जॉर्ज सोरोस के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स की स्थापना तीस साल पहले दिसंबर 1994 में साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में की गई. इसका गठन साउथ कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति किम डेई जंग की पहल पर हुआ, जो अब भी इसके चार सह-अध्यक्षों में से एक हैं.सोनिया गांधी 1994 में राजनीति में नहीं आई थी लेकिन उस वक्त वो राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष थी, इसीलिए सोनिया गंधी को फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स का सह-अध्यक्ष बनाया गया. जॉर्ज सोरोस की तरफ से राजीव गांधी फाउंडेशन को फंड भी दिए गए.
जॉर्ज सोरोस कश्मीर में जनमतसंग्रह की मांग का समर्थन करते हैं, वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते, नरेन्द्र मोदी को तानाशाह बताते हैं, इसीलिए सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के संगठन के साथ सोनिया गांधी के रिश्तों पर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ेगी क्योंकि ये रिश्ता देशद्रोह जैसा है.
हंगेरी में जन्मे अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस अपने आप को किसी एक देश का नागरिक नहीं मानते. वो अपने आप को stateless कहते हैं. वह पिछले कई साल से भारत के अस्थिर बनाने का एजेंडा चला रहे हैं. खास तौर पर नरेंद्र मोदी हमेशा उनके निशाने पर रहते हैं. भारत में चुनाव के मौके पर वह सूचना जगत से जुड़े कई ऐसे बम फोड़ते हैं जिनसे मोदी को नुकसान हो. संसद के सत्र से पहले उनका पूरा सिस्टम ऐसी खबरें रिलीज करता है जिससे सरकार के खिलाफ माहौल बने.
सवाल ये है कि इन सारी बातों से सोनिया गांधी का क्या कनेक्शन है? और आज बार बार सोरोस के कनेक्शन में सोनिया गांधी का नाम क्यों आया? असल में सोनिया गांधी भारत विरोधी संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष हैं. इसीलिए सोनिया गांधी से बार बार पूछा गया कि उनका इस संगठन से क्या कनेक्शन है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया.
दूसरी तरफ राहुल गांधी को लेकर बीजेपी का आरोप है कि वह सोरोस के साथ मिलकर भारत विरोधी साजिश करते हैं. सोरोस राहुल को अग्रिम सूचना देते हैं. उसके आधार पर वो संसद के अंदर और बाहर मोदी के खिलाफ कैंपेन चलाते हैं.
इस पृष्ठभूमि में दो बातें साफ है. सोनिया और राहुल का सोरोस से, उसके फाउंडेशन से, उसके सिस्टम से पूरा-पूरा संबंध है और सोरोस मोदी के खिलाफ हैं. खुलकर ये बात कहते हैं और मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं.अब सवाल ये है कि सारे मामले में गौतम अडानी का जिक्र क्यों आया ?
राहुल का नया इल्जाम ये है कि सोरोस और उसके संगठनों ने अडानी को एक्सपोज किया और मोदी अडानी का बचाव कर रहे हैं. लेकिन इस पूरे मामले में जॉर्ज सोरोस का रोल बहुत दिलचस्प है.
लंदन के आखबार ‘फायनेंशियल टाइम्स’ से जॉर्ज सोरोस का कनेक्शन है, चार साल पहले 2020 में ‘फायनेंशियल टाइम्स’ ने लिखा अगर मोदी को कमजोर करना है तो गौतम अडानी को टारगेट करना होगा. राहुल गांधी बिलकुल इसी राह पर चलते हैं और इसकी कई मिसाल हैं – G20 समिट से पहले राहुल ने अडानी का नाम लेकर मोदी पर हमला किया. उसके बाद चाहे हिंडनबर्ग रिपोर्ट हो या अमेरिका में अडानी के खिलाफ जांच की खबर, सोरोस खबर बनाते हैं और राहुल मोदी के खिलाफ उसका पूरा पूरा इस्तेमाल करते हैं.
कहा तो ये भी जाता है कि राहुल गांधी जब इंग्लैंड या अमेरिका जाते हैं तो उनकी यात्रा की प्लानिंग सोरोस के सिस्टम द्वारा की जाती है. राहुल गांधी ने इस बात पर न कभी जवाब दिया, न कभी सफाई दी.
राहुल ये तो कहते हैं कि अडानी मोदी एक हैं. वह ये तो कहते हैं कि मोदी अडानी के लिए काम करते हैं लेकिन राहुल गांधी ने बीजेपी के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि अगर अडानी इतने भ्रष्ट हैं तो कांग्रेस की सरकारों ने अडानी को प्रोजेक्ट्स क्यों दिए? तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने, राजस्थान में अशोक गहलोत ने बतौर मुख्यमंत्री अडानी को गले क्यों लगाया? अडानी को लेकर राहुल का ये डबल रोल, सोरोस से उनका कनेक्शन शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव बखूबी समझते हैं. इसीलिए उन्होंने भी इस मसले को लेकर राहुल से दूरी बनाई.

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Why BJP fired Soros missile at Sonia, Rahul Gandhi ?

AKBIn its first sharpest attack on Congress leader Sonia Gandhi, coincidentally on her birthday (December 9), BJP President J P Nadda alleged in Rajya Sabha that a top Congress leader had close links with institutions funded by American billionaire investor George Soros. Nadda alleged that Soros wanted to destablize India, that he does not accept Kashmir as part of India and that he was working on anti-Indian agenda in collusion with Congress.

Without naming Sonia Gandhi, Nadda alleged, “the link between Forum of Democratic Leaders in Asia-Pacific (FDL-AP) and George Soros is a matter of concern. The co-president of this forum is a member of this House”. He alleged that FDL-AP sees Jammu & Kashmir as a separate entity and it gets financial support from Rajiv Gandhi Foundation.

Nadda alleged that “this outfit has been maligning India’s image and it raises concern about our national security. People are worried over the manner in which Congress is playing with national security”. BJP demanded that a Joint Parliamentary Committee be set up to probe the links of George Soros-funded institution with Congress and that there should be a discussion on this issue in Parliament.

In the Rajya Sabha, Leader of Opposition Mallikarjun Kharge strongly opposed the allegations made by Nadda. Kharge alleged that the Chairman Jagdeep Dhankhar was being partial towards the ruling party. Congress leaders threatened to bring a no-confidence motion against the RS Chairman.

Outside the House, BJP spokesperson Sudhanshu Trivedi named Sonia Gandhi and alleged that as co-president of FDL-AP, she had close links with George Soros. Trivedi pointed out that Soros had, in the past, claimed that he was ready to give funds to the tune of one billion dollars to destabilize Modi’s government.

George Soros-funded Forum For Democratic Leaders is active in more than 100 countries and it has four co-presidents, one of whom is Sonia Gandhi, as chairperson of Rajiv Gandhi Foundation. Trivedi alleged that persons linked to Soros-funded outfits had joined Rahul Gandhi’s Bharat Jodo Yatra. He demanded that the Congress must clarify its links with George Soros.

Forum For Democratic Leaders was set up in 1994 in Seoul at the initiative of then South Korean President Kim Dae Jung. Sonia Gandhi was not in active politics at that time, but as chairperson of Rajiv Gandhi Foundation she was appointed one of the four co-presidents of FDL. George Soros had also given funds to Rajiv Gandhi Foundation. Soros had been openly advocating holding of referendum on J&K and he considers Narendra Modi an authoritarian leader.

George Soros is an Hungarian-born American billionaire, but he considers himself a stateless person. For the last several years, he had been working on an agenda to destabilize the Indian government led by Narendra Modi.

During elections in India, institutions connected with Soros deliberately explode information bombs, meant to cause damage to Modi’s party. On the eve of Parliament sessions too, Soros’ eco-system had been releasing news reports meant to create an atmosphere against Modi government.

The question now is, what is Sonia Gandhi’s connection with George Soros? It is a fact that she is one of the co-presidents of Forum of Democratic Leaders for Asia-Pacific. This is an anti-Indian forum which advocates separation of Jammu & Kashmir from India. Questions are being asked about Sonia’s connections with this forum, but, till now, the Congress had not come forward with any response.

Secondly, BJP has alleged that Rahul Gandhi, in collusion with George Soros, has been part of anti-India conspiracies. Rahul had been making vitriolic attacks on Modi inside and outside Parliament, after getting advance news from Soros-funded institutions.

Two things are clear: One, Sonia and Rahul Gandhi have connections with Soros-funded institutions, and Two, Soros is anti-Modi and he wants to destabilize the government. The question now arises about how Gautam Adani comes into the picture?

For the last several days, Congress MPs have been staging protests outside Parliament chanting slogans against Modi and Adani. Rahul Gandhi’s latest allegation is that George Soros and his outfits have exposed Gautam Adani, and that Modi was shielding Adani.

George Soros’ role in this matter is very interesting. He has connections with Financial Times, London. Four years ago, in 2020, Financial Times had commented that if Modi was to be weakened, Gautam Adani should be targeted.

Rahul Gandhi is going ahead on these lines. There are several examples. On the eve of G20 summit in India last year, Rahul had attacked Modi on Adani issue on Hindenburg report. He had also raised the issue of US FBI probe against Adani group. Soros manufactures news, and Rahul uses that news to target Modi.

It has also been alleged that whenever Rahul visits UK or US, the entire planning is done by the eco-system funded by Soros. Rahul Gandhi never replied to such allegations. He has been repeatedly alleging that Modi was trying to shield Adani, but he never replies to this argument that if Adani is corrupt, why are Congress governments giving big ticket projects to Adani group? As chief ministers Revanth Reddy and Ashok Gehlot shook hands with Gautam Adani and gave big projects to his group.

Rahul Gandhi’s double standards on Adani and his connections with George Soros are known to other INDIA bloc leaders like Sharad Pawar, Mamata Banerjee and Akhilesh Yadav. These leaders and their parties have kept themselves away from Rahul Gandhi on Adani issue.

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संसद में नोटों की गड्डी : जांच करो, पर नाम न लो

AKB30 पांच सौ रुपये के नोटों की एक गड्डी सियासत का बड़ा मुद्दा बन गई. नोटों की गड्डी पर राज्यसभा में हंगामा हुआ. कांग्रेस के नेताओं और बीजेपी के नेताओं के बीच तीखी नोंकझोंक हुई .और आखिरकार सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित हो गई.
अब इस बात की जांच हो रही है कि आखिर सदन में मिले पांच सौ के नोट असली है या नकली, अगर असली हैं, तो नोटों की ये गड्डी किसकी है, अगर ये नोट सदन में गलती से छूटे, तो कोई इसे क्लेम करने क्यों नहीं आया. सभापति जगदीप धनकड़ ने अब इन सारे सवालों के जबाव खोजने के लिए जांच बैठा दी है, लेकिन जब उन्होंने इसकी जानकारी सदन को दी, कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया.
कांग्रेस को सभापति की बात बुरी लगी. हुआ यूं कि सभापति जगदीप धनकड़ ने कहा कि पांच सौ के नोटों का बंडल सीट नंबर 222 पर मिला है और ये सीट कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी के नाम पर आवंटित है. विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बयान पर आपत्ति जताई. कहा कि अगर सभापति ने जांच के आदेश दे दिए हैं तो फिर जांच पूरी होने से पहले किसी सदस्य का नाम लेने की क्या जरूरत है. अभिषेक मनु सिंघवी का नाम क्यों लिया. संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि सभापति ने सिर्फ उस सीट के बारे में बात की है जिस पर नोटों का बंडल मिला है, इसमें गलत क्या है, इस पर इतनी हायतौबा क्यों मचाई जा रही है.
सदन के नेता जे पी नड्डा ने कहा कि सदन में नोटों की गड्डी मिलना बेहद गंभीर मामला है. इसको हल्के में नहीं लिया जा सकता, इसलिए इसकी जांच तो होनी ही चाहिए लेकिन विपक्ष जिस तरह से सदन में हंगामा कर रहा है, उससे शक पैदा होता है.
कांग्रेस के तर्क को केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पकड़ लिया. गोयल ने कहा कि अगर कांग्रेस तैयार हो तो ये नियम बना दिया जाए कि अगर किसी मामले में जांच चल रही है तो उस मामले में किसी का नाम नहीं लिया जा सकता. पीयूष गोयल ने कहा कि कांग्रेस के नेता तो विदेशी अखवारों में छपी खबरों को उठाकर रोज सदन में हंगामा करते हैं,क्या वो सब ठीक है.
गोयल ने कहा कि अडानी के मामले में भी जांच चल रही है, फिर भी कांग्रेस दिन रात अडानी के नाम की माला जपती है. अगर जांच से पहले सिंघवी का नाम लेना गलत है तो जांच पूरी होने से पहले अडानी का नाम लेना ठीक कैसे हो सकता है.
कांग्रेस का सवाल जायज़ है, जबतक जांच नहीं होती, किसी का नाम कैसे लिया जा सकता है. अभिषेक मनु सिंघवी कह रहे हैं कि नोटों का बंडल उनका नहीं है तो फिर उनका नाम क्यों लिया गया. जांच पूरी होने का इंतजार क्यों नहीं किया गया.
कांग्रेस की ये बात बीजेपी के नेताओं को बहुत पसंद आई.उन्होंने पूछा कि अगर बिना जांच के नाम नहीं लिया जाना चाहिए तो फिर राहुल गांधी रोज रोज अडानी का नाम लेकर हंगामा क्यों करते हैं.
दूसरी बात, अडानी भी कहते हैं कि उनपर लगे आरोप फर्जी हैं. तो उनके मामले में कांग्रेस जांच पूरी होने का इंतजार क्यों नहीं करती. कांग्रेस अपने जाल में फंस गई.जब पीयूष गोयल ने सुझाव दिया कि इस बात पर सहमति बनाई जाए जबतक जांच पूरी हीं हो जाती, किसी का नाम नहीं लिया जाए, तो कांग्रेस के नेता इस बात के लिए तैयार नहीं थे.
अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के नेताओं के लिए नियम अलग होने चाहिए. क्या कांग्रेस को बिना जांच के किसी पर भी आरोप लगाने का लाइसेंस है. आज कांग्रेस के नेताओं के लिए इसका जवाब देना मुश्किल हो गया.

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Who left Currency Notes in Parliament: To name or not to name?

AKB30 A wad of Rs 500 currency notes was found on the seat of Congress MP Abhishek Manu Singhvi in Rajya Sabha. This sparked a row after the Chairman Jagdeep Dhankhar announced that the currency notes were found on seat number 222 allotted to Singhvi, on Thursday evening after the House proceedings were over. The guards were conducting their regular security check inside the Rajya Sabha.

While BJP and its allies demanded a probe, Singhvi said, this was “bizarre” because he always carried one Rs 500 currency note whenever he goes to the House.

Singhvi said, he went inside the House at 12.57 pm on Thursday and the House was adjourned at 1 pm. He said, he then sat in the canteen till 1.30 pm and left Parliament. “There should be an inquiry as to how people can come and put anything anwhere, on any seat. Each seat should be locked so that the member can carry the key home. If anybody puts something on my seat and then levels allegations, it is not only tragic and serious, but comic”, Singhvi said.

Dhankar said he has ordered a probe since no member has come forward to claim the wad of currency notes. Leader of Opposition in Rajya Sabha Mallkarjun Kharge said, the chair should not have named the MP as an inquiry was already underway. Parliamentary Affairs Minister Kiren Rijiju said, the chairman has done the right thing in mentioning the seat number and there was nothing wrong in it. Leader of the House J P Nadda described it as an “extraordinary and serious” incident.

Commerce Minister Piyush Goyal raised an interesting point. He said, if Congress had objection to revealing the name of the MP even while the probe was on, then why were Opposition MPs staging daily protest about reports (relating to Adani) published in foreign newspapers? Goyal said, the Adani issue was still under investigation, but Congress MPs were raising the issue again and again.

Later, Singhvi met the Chairman and said the wad of currency notes does not belong to him.

The question raised by Congress is justified. Congress leaders are saying, how can anybody be named even when the inquiry is in progress. Singhvi has been claiming that the wad of notes does not belong to him, then why was his name mentioned? Why nobody waited till the inquiry was over?

BJP took the cue and countered saying why was Rahul Gandhi raising Adani’s name almost daily even while the probe was on. Adani says, all the allegations against him are baseless and false, then why can’t Congress wait for the probe to be over?

Congress has been caught in its own net. When Piyush Goyal suggested that all parties must reach a consensus not to name anybody in the House unless the probe was over, Congress leaders remained silent.

The question now is; Should there be separate rules for Congress? Should Congress be given a free licence to name anybody without completion of any probe? Congress leaders are finding it difficult to reply to this argument.

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सुखबीर बादल पर हमला : इसके पीछे किसका हाथ?

AKB30 अमृतसर में एक बड़ी अनहोनी टल गई. पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल को जान से मारने की कोशिश हुई लेकिन सुरक्षा कर्मियों की मुस्तैदी की वजह से बादल बाल-बाल बच गए.

सुखबीर बादल श्री अकाल तख्त साहिब के हुक्म के मुताबिक स्वर्ण मंदिर के द्वार पर चौकीदारी कर रहे थे. चूंकि बादल के पैर में फ्रैक्चर है, इसलिए वह व्हीलचेयर पर बैठकर दरबान की ड्यूटी दे रहे थे. इसी दौरान एक शख़्स श्रद्धालु के भेष में स्वर्ण मंदिर के गेट पर आया. वह सुखबीर बादल के क़रीब पहुंचा और उसने पिस्तौल निकालकर गोली चलाने की कोशिश की लेकिन सादे लिबास में तैनात एक सुरक्षकर्मी ASI जसबीर सिंह हमलावर को पिस्तौल निकालते हुए देखते ही उस पर टूट पड़ा. सुरक्षाकर्मियों ने हमलावर को वहीं दबोच लिया.

हमलावर ने पिस्तोल से गोली दाग़ दी, गोली किसी को लगी नहीं, स्वर्ण मंदिर की दीवार से टकराई. इसी दौरान आस-पास तैनात कई और पुलिसवालों ने मिलकर हमलावर को शिकंजे में ले लिया.
अमृतसर के पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि हमलावर नारायण सिंह चौड़ा एक दिन पहले स्वर्ण मंदिर आया था, उसने पूरे इलाक़े की रेकी की थी.

नारायण सिंह चौड़ा, गुरदासपुर ज़िले के डेरा बाबा नानक का रहने वाला है. उसके खालिस्तानी संगठनों से पुराने रिश्ते रहे हैं. नारायण सिंह चौड़ा खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और अकाल फेडरेशन के साथ जुड़ा हुआ था.

नारायण सिंह के ख़िलाफ़, अमृतसर, रोपड़, लुधियाना और तरनतारन ज़िलों में 21 मामले दर्ज हैं. उसे 2013 में गिरफ़्तार किया गया था और उसकी निशानदेही पर हथियारों और गोला-बारूद का बड़ा ज़खीरा भी बरामद हुआ था. नारायण सिंह चौड़ा ट्रेनिंग लेने के लिए 1984 में पाकिस्तान भी गया था. वो 2004 की बुड़ैल जेलब्रेक वारदात में भी शामिल था. उस वक्त पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे चंडीगढ़ की जेल से सुरंग खोदकर भाग निकले थे. नारायण सिंह चौड़ा ने “कॉन्सपिरेसी अगेंस्ट खालिस्तान” नाम की एक किताब भी लिखी है. वह 2018 में ज़मानत पर जेल से रिहा हुआ था.

सुखबीर बादल पर हमले की जितनी निंदा की जाए, वह कम है. दरबार साहिब में, भगवान के घर में, सेवा करते व्यक्ति पर गोली चलाना गंभीर जुर्म है, पाप है. हमला करने वाले ने सिर्फ इस बात का फायदा उठाया कि दरबार साहिब की मर्यादा के मुताबिक वहां जाने वालों की चेकिंग नहीं की जाती. अगर सुखबीर के सिक्योरिटी वाले सावधान न होते, तो एक बड़ी दुर्घटना हो सकती थी.

जहां तक इस मामले में राजनीति का सवाल है, यह तो अपेक्षित था कि अकाली दल के नेता सीएम भगवंत सिंह मान को दोषी ठहराएंगे और कांग्रेस पर भी आरोप लगाएंगे. कांग्रेस से भी यही उम्मीद थी कि वो पंजाब सरकार को जिम्मेदार बताएगी. लेकिन अकाली दल के नेता विक्रमजीत सिंह मजीठिया ने इस हमले के पीछे कांग्रेस का हाथ बताया और कहा कि हमलावर कांग्रेस सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा का करीबी है. बीजेपी ने इस घटना के पीछे खालिस्तानियों का हाथ बताया.

अब जिम्मेदारी पंजाब पुलिस की है कि वह इस मामले की तह तक जाए, अपराधी के पीछे कौन है इसका पता लगाए और जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक बाकी पार्टियां इधर-उधर की बयानबाज़ी न करें तो बेहतर होगा.

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Attack on Sukhbir Badal: Who is behind it?

AKB30 A major assassination bid was averted at Golden Temple, Amritsar on Wednesday when an ex-terrorist fired at Shiromani Akali Dal leader Sukhbir Singh Badal, who was performing sewadar duty at the temple as part of his penance rites. An alert Punjab Police ASI, Jasbir Singh, in plainclothes, pounced upon the assailant Narain Singh Chaura when he pulled out a 9 mm pistol from his pocket. The assailant fired but missed his target. He was arrested on the spot.

Narain Singh Chaura, a former terrorist and pro-Khalistan activist is facing over 20 cases. He had gone to Pakistan and had smuggled weapons during the initial militancy days. He helped alleged assassins of former Punjab CM Beant Singh, Jagtar Singh Hawara and Paramjit Singh Beora in the 2004 Burail jailbreak case, police said.

Amritsar Police chief Gurpreet Singh Bhullar said, the assailant had done a recce of the Golden Temple a day before, to find out about the timings of Sukhbir Badal, who used to perform guard duty and washed utensils at the langar.

Undeterred by the assassination bid, Sukhbir Badal on Thursday performed sewadar duty outside Takht Keshgarh Sahib in Punjab amidst tight security.

Charges and counter-charges began to fly after the failed assassination bid. Congress, SGPC and Akali Dal blamed the state AAP government for lax security arrangements. Akali leader Bikram Singh Majithia alleged that the assailant had close links with Congress leader Sukhjinder Singh Randhawa. Randhawa replied that the assailant’s brother was known to him for the last 27 years, while Narain Singh’s past record was known to all. Punjab CM Bhagwant Singh Mann promised a fast probe and stringent punishment for the accused. State BJP chief Sunil Jakhar said, the assailant was linked to Khalistan Liberation Force. He alleged that Arvind Kejriwal had once stayed at the home of an KLF leader.

The assassination bid is condemnable. The act took place at the holiest shrine of Sikhs, Golden Temple, and the shot was fired at a person who was performing sewadar duty. This is a serious crime, a sin. The assailant tried to take advantage of the fact that none of the devotees who go to the Golden Temple is frisked. Had Sukhbir Badal’s personal security man not been alert, a tragedy could have taken place.

As far as politicizing this matter is concerned, it was on expected lines. Akali leaders blamed CM Mann and Congress, while Congress blamed the AAP government. BJP has alleged Khalistani hand behind this assassination bid.

It is now the responsibility of Punjab Police to probe the matter and find out who were the real conspirators. Till the time the probe is not over, it would be better if political parties desist from making unnecessary statements.

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