रेलवे दुर्घटनाएँ कराने की साज़िश के पीछे कौन ?
रविवार को कानपुर और अजमेर में रेलगाड़ियों को पटरी से उतारने की कोशिश की दो बड़ी घटनाएं सामने आई. कानपुर के पास एक बार फिर भीषण रेल हादसा होते होते बचा. प्रयागराज से भिवानी जा रही कालिंदी एक्सप्रेस पटरी पर एक भरे हुए गैस सिलेंडर से टकराई. लोको पायलट ने तुरंत ब्रेक लगाई. पटरी के पास सिलेंडर के अलावा, बारूद से भरा थैला, पेट्रोल की बोतल और माचिसें रखी पाई गई. ड्राइवर की सावधानी ने बड़ा हादसा होने से बचा लिया. इसी तरह अजमेर के पास रविवार को रेल पटरी पर 70-70 किलो वजन के पत्थर रखे ऐन वक्त पर पाये गये और Western Dedicated Freight Corridor पर एक मालगाड़ी पटरी से उतरने से बच गई. ट्रेन को पटरी से उतारने की, रेल हादसा करवाने की जो कोशिशें हो रही है, उसे आप एक isolated घटना के रूप में देखेंगे तो ये आपको शरारत नज़र आएगी, किसी बदमाश की करतूत दिखाई देगी, लेकिन पिछले कुछ महीनों मे हुई सारी घटनाओं को अगर आप मिलाकर देखेंगे तो इसके पीछे की मंशा और नापाक इरादे नज़र आएंगे. कानपुर के पास रेलवे ट्रैक पर सिलेंडर रखा गया, इससे पहले 17 अगस्त को कानपुर में ही रेलवे ट्रैक पर भारी बोल्डर रखकर साबरमती एक्सप्रैस को पटरी से उतारा गया था. 20 अगस्त को अलीगढ़ में रेलवे ट्रैक पर अलॉय व्हील्स रखे गए थे. 27 अगस्त को फर्रूखाबाद में रेल पटरी पर लकड़ी के बड़े-बड़े बोल्डर रखे गए थे. 23 अगस्त को राजस्थान के पाली में रेलवे ट्रैक पर सीमेंट के गार्डर रखकर वंदे भारत एक्सप्रेस को डिरेल करने की कोशिश हुई. पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा रेल पटरी से उतरने की घटनाएं हुई. ये सब घटनाएं न तो शरारत है, न सिर्फ संयोग है, ये साज़िश के तहत किए जा रहे प्रयोग हैं. हर जगह मॉडस ऑपरेंडी एक जैसी है. इससे साफ पता चलता है कि ये बड़े रेल हादसे कराने को कोशिश है, रेलवे को बदनाम करने की साजिश है, क्योंकि रेलवे में अच्छा काम हुआ है, इससे सरकार की छवि बेहतर हुई है. रेलवे में हुआ बदलाव लोगों को नज़र आता है, इसीलिए बहुत सोच-समझकर रेलवे के खिलाफ साज़िश रची जा रही है. और इसके पीछे कौन हैं, ये पता लगाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है. लेकिन इसके प्रति सबको सावधान रहने की ज़रूरत है..
Who is conspiring to derail Indian Railways?
Recently, there has been a spate in deliberate multiple sabotage attempts to derail Indian Railways trains, with two attempts made on Sunday alone. In Shivrajpur, 50 km from Kanpur, a deliberate attempt was made to derail the Kalindi Express by placing a gas cylinder on the route. A major accident was averted after the loco pilot heard the sound of train hitting the cylinder, and applied emergency brakes. Authorities recovered a gas cylinder, glass bottles, a matchbox, and a packet containing explosives near the rail track. In Ajmer, Rajasthan, on Sunday, two cement blocks weighing 70 kg each were found placed on rail tracks to derail a goods train on the Western Dedicated Freight Corridor.
The two foiled attempts took place less than a month after 20 coaches of Ahmedabad-bound Sabarmati Express were derailed on August 17 near Govindpuri in Kanpur after the engine hit an object placed on the track. On August 20, alloy wheels were found placed on rail tracks near Aligarh, while on August 27, big wooden boulders were found placed on rail tracks near Farrukhabad. On August 23, big cement girder was placed on rail track near Pali, Rajasthan in a bid to derail Vande Bharat Express.
In the last one month, more than six derailments have taken place in West Bengal, Assam and Jharkhand. All such attempts to derail trains should not be seen in isolation, as if some local miscreants did this. If you look at all these incidents, you can find a chain behind some diabolical conspiracy. These are not acts by miscreants or simply a coincidence, but appear to be part of a chain of ‘experiments’ being carried out as part of a bigger conspiracy. The modus operandi in all these incidents is the same. There are forces which are trying to defame Indian Railways by causing such derailments.
In the last ten years, Indian Railways had done a tremendously good job and the image of the government has improved. The common people have started noticing the huge changes that have come in Indian Railways. There seems to be a clear well-orchestrated conspiracy to defame the railways. It is for the security agencies to take up the challenge to find out who are behind this conspiracy. It is a big challenge. Till then, all of us need to be on our toes and be alert.
सियासी दंगल में पहलवान : नये अखाड़े में विनेश का स्वागत है!
अब विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया राजनीति के अखाड़े में नजर आएंगे. विनेश और बजरंग कांग्रेस में शामिल हो गए, विनेश कांग्रेस के टिकट पर जींद की जुलाना सीट से चुनाव लड़ेंगी. बजरंग पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. ओलंपियन रेसलर विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जब राहुल गांधी से मिले थे, उसी वक्त ये साफ हो गया था कि दोनों कांग्रेस में शामिल होंगे. अब दोनों राजनीति के दंगल में क़िस्मत आज़माएंगे. कांग्रेस में शामिल होने से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद विनेश फोगाट ने कहा कि जब वो बेटियों की इज़्ज़त की लड़ाई लड़ रही थीं, तो कांग्रेस ने पूरी मज़बूती से उनका साथ दिया और उस वक्त BJP ने उनको बदनाम करने की मुहिम चलाई थी. लेकिन उन्होंने ख़ुद को सही साबित करने के लिए नेशनल चैंपियनशिप खेली, ओलंपिक के लिए ट्रायल दिया, फाइनल तक पहुंचीं, पर लगता है कि ईश्वर ने उनके लिए कुछ अलग सोच रखा था. विनेश ने कहा कि बेटियों के सम्मान की लड़ाई जारी रहेगी और इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिए उन्हें जिस ताक़त की ज़रूरत है, वो उनको कांग्रेस से मिलेगी. लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ संघर्ष में जम कर लड़ने वाली साक्षी मलिक विनेश और बजरंग के कांग्रेस में शामिल होने से दुखी हैं. साक्षी मलिक ने बडी मायूसी से कहा कि विनेश और बजरंग पूनिया ने अपनी निजी हैसियत से फ़ैसला लिया है, उनसे सलाह मशविरा नहीं किया. साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता. विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें लेकिन वह रेसलिंग फेडरेशन में सुधार के लिए लड़ाई जारी रखेंगी. बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा में विनेश और बजरंग पर कटाक्ष किया. कहा, वो जो बात शुरू से कह रहे थे, वह आज सच साबित हो गई, पूरा देश जान गया कि जंतर मंतर के आंदोलन के पीछे कौन था. हरियाणा के बीजेपी नेता अनिल विज ने कहा कि वह चैंपियन बेटी के तौर पर विनेश का हमेशा सम्मान करेंगे लेकिन विनेश अब तक देश की बेटी थीं, अब वो कांग्रेस की बेटी बनना चाहती हैं, तो भला बीजेपी को क्या ऐतराज़ हो सकता है, आज एक बात साफ हो गई कि पहलवानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस थी. जवाब में बजरंग पूनिया ने कहा कि जब वो जंतर मंतर पर धरना दे रहे थे, तब उन्होंने बीजेपी की महिला सांसदों को चिट्ठी लिखी थी और समर्थन मांगा था, लेकिन तब बीजेपी ने उनका साथ देने के बजाए उन्हें बदनाम किया, इसलिए वो कांग्रेस में आए ताकि इंसाफ़ की लड़ाई को जारी रख सकें. विनेश और बजरंग के बारे में बृजभूषण शरण सिंह को बोलने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हीं की हरकतों की वजह से पहलवानों को सड़क पर उतरना पड़ा. उन्हीं की धमकियों की वजह से पहलवान बेटियों को संघर्ष करना पड़ा. बृजभूषण के हटने के बाद भी रेसलिंग फेडरेशन का रवैया नहीं बदला, पहलवानों ने कोर्ट में केस भी किया लेकिन वहां भी बृजभूषण ने उन्हें कानूनी दांव पेंच मे फंसा दिया, वो कब तक लड़ते ? उन्हें सियासी अखाड़े में उतरना पड़ा. राजनीति के मैदान में आना और चुनाव लड़ना उनकी choice कम और मजबूरी ज्यादा है क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह जैसे लोगों ने उनके सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा. बजरंग और विनेश ने कुश्ती के मैदान में देश का नाम रौशन किया, देश के लिए मेडल जीते, इसलिए उनके फैसले का सम्मान होना चाहिए. विनेश ने जिस हिम्मत के साथ बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ी , फिर सड़क से उठकर पेरिस में ओलंपिक के फाइनल तक का सफर तय किया. इसने उनको youth icon बना दिया. अगर चुनाव लड़कर विनेश अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहती हैं तो ये उनका अधिकार है. इस पर कम से कम वो तो खामोश रहें जिनका लोक सभा का टिकट पार्टी ने काट दिया था.
From wrestling ring to political arena : Respect Vinesh’s decision
Wrestlers Vinesh Phogat and Bajrang Punia will now be seen in the political ring. On Friday, both of them joined the Congress. Vinesh Phogat will contest the Haryana Assembly election from Julana in Jind. Bajrang Punia was appointed the working chairman of All India Kisan Congress. Indications of joining Congress party were clear when both of them met Congress leader Rahul Gandhi. Both quit their jobs in Northern Railways hours before joining the Congress. Vinesh Phogat said it was the Congress which stood by the female wrestlers when they were fighting for their dignity.
She alleged, it was the BJP which orchestrated efforts to defame the wrestlers. Vinesh said, her fight against Brij Bhushan Sharan Singh and his cohorts in Wrestling Federation, for the honour of daughters will continue.
However, another female wrestler Sakshi Malik, who was part of the protest against Brij Bhushan, said both Vinesh and Bajrang Punia have taken personal decisions without consulting her, and it would have been better if they had stayed away from politics. Brij Bhushan Sharan Singh, while speaking in Gonda, UP, said, he has been proved right and the entire nation now knows who was behind the Jantar Mantar wrestlers’ protest. Haryana BJP leader Anil Vij said, he always respected Vinesh for being a ‘champion daughter’, but now that she has opted to become “Congress’ daughter”, it is now clear Congress was behind the wrestlers’ protest. In reply, Bajrang Punia said, the wrestlers during their Jantar Mantar protest, had written letters to all women MPs of BJP seeking their support, but BJP, instead of extending support, defamed them.
I think, Brij Bhushan Sharan Singh has no right to speak about Vinesh Phogat and Bajrang Punia. It was because of his questionable behaviour and threats that the wrestlers had to hit the streets to stage protest. Even after Brij Bhushan’s removal, the attitude of Wrestling Federation office-bearers has not changed. The wrestlers even went to court, but Brij Bhushan got them in a legal tangle. Ultimately, the wrestlers had to enter the political arena. I think, for the wrestlers, entering the political ring is less of a choice and more of a compulsion, because a heavyweight politician like Brij Bhushan did not leave them with any other options.
Both Bajrang Punia and Vinesh Phogat brought laurels to the nation in the field of wrestling, they won medals and their decision to join politics must be respected. The courage displayed by Vinesh in fighting for the honour of daughters, the manner in which she rose from the streets and reached the semi-finals at Paris Olympics, has made her a youth icon. If Vinesh wants to fulfill her political ambitions by contesting elections, it is her right. At least those leaders should keep their mouth shut, who had to lose their Lok Sabha tickets because of the female wrestlers’ protest.
शिमला में बाहर से कौन आया, क्यों आया, कैसे आया?
शिमला में गुरुवार को पहली बार मज़हबी झगड़े की आग दिखाई दी. पहली बार हजारों लोग सड़कों पर उतरे. सबकी मांग एक थी कि शिमला में आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर किया जाए. सबकी शिकायत एक थी कि ये लोग शिमला में शान्ति और भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं. ये बात इसलिए बड़ी बन गई क्योंकि हिमाचल की कांग्रेस सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी इस प्रोटेस्ट में शामिल हुए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों की मांग को जायज़ बताया. अनिरूद्ध सिंह ने विधानसभा में भी मुख्यमंत्री से विनती की. कहा कि इस बात की जांच कराई जाए कि अचानक शिमला में बाहरी मुसलमानों की संख्या कैसे बढ़ गई, रेहड़ी पटरी और बाजारों पर रोहिंग्या मुसलमानों का कब्जा कैसे हो गया. जब अनिरुद्ध सिंह हिन्दू संगठनों के प्रोटेस्ट में शामिल हुए, तो मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू को कहना पड़ा कि मंत्रियों, विधायकों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए. शिमला के लोगों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि दो दिन के भीतर शिमला में सरकारी जमीन पर बनी गैर क़ानूनी मस्जिद को गिराया जाए. आरोप है कि ये मस्जिद बाहरी मुसलमानों की पनाहगाह बन गई है, सारी गड़बडियों का केंद्र यही मस्जिद है, अगर सरकार मस्जिद नहीं गिराती है तो हिन्दू ये काम खुद करेंगे. मामला बढ़ा तो इस विवाद में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद इमरान मसूद जैसे नेता भी कूद पड़े. उन्होने कहा कि ये पुरानी मस्जिद है, और मामला कोर्ट में है, इसलिए इसे गिराने का सवाल पैदा नहीं होता. आमतौर पर शिमला शान्त रहता है. सैलानियों से भरा रहता है लेकिन गुरुवार को शिमला की सड़कों पर नारे लगाते हुए हजारों लोगों का हुजूम पहुंचा. चौड़ा मैदान में हिन्दुओं को इकट्ठा होने की अपील देवभूमि क्षत्रिय संगठन की तरफ से की गई थी. मस्जिद का विरोध तो सिर्फ एक छोटा कारण था. लोगों की ज्यादा नाराजगी की मुख्य वजह शिमला में आए दिन होने वाली लूटपाट, चोरी, और छेड़खानी की घटनाएं थी और ज़्यादातर मामलों में इस तरह की हरकतें करने वाले बाहरी मुसलमान हैं. लोगों का इल्ज़ाम है कि संजौली मस्जिद इस तरह के लोगों की पनाहगाह बनी हुई है. जिस मस्जिद में पहले सिर्फ एक मंजिल थी, अब चार मंजिलें बन गई हैं, जहां पहले सिर्फ दो चार लोग रहते थे, अब वहां तीन सौ से ज्यादा लोग मस्जिद में आते जाते रहते हैं. लोगों का कहना है कि मस्जिद गैर क़ानूनी है क्योंकि सरकारी ज़मीन पर बनी है. शिमला में ढाई मंजिल से ज्यादा ऊंचा इमारत बनाने पर पाबंदी है. प्रदर्शनकारियों ने ये भी साफ कर दिया कि उन्हें शिमला में रहने वाले हिमाचली मुसलमानों से कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन बाहर से आए रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि शिमला की सड़कों पर लगने वाली दुकानों पर रेहड़ी पटरी पर, रोहिंग्या मुसलमानों ने क़ब्ज़ा कर लिया है, वे हिन्दुओं को दुकान नहीं लगाने देते, सड़क पर बहन बेटियों को छेड़ते हैं, विरोध करने पर ख़ून ख़राबे पर उतर आते हैं. विधानसभा में मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि 2007 में मस्जिद बननी शुरू हुई, 2010 में इसकी शिकायत की गई, मुकदमा कोर्ट में गया लेकिन मस्जिद का काम जारी रहा और अब मस्जिद चार मंजिल की हो गई हैं. अनिरूद्ध सिंह ने इस बात पर हैरानी जताई कि 14 सालों तक मुक़दमा चलता रहा, मस्जिद भी बनती रही और प्रशासन सोता रहा. शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि संजौली मस्जिद का मसला कोर्ट में है, 44 पेशियां हो चुकी हैं, और कोर्ट का जो भी फ़ैसला होगा, उसका पालन सरकार कराएगी. उन्होने माना कि मस्जिद में अवैध निर्माण किया गया था. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी विवाद में कूद पड़े. राहुल गांधी से पूछा कि मुहब्बत की दुकान में इतनी नफ़रत कैसे भर गई, मस्जिद का मुक़दमा कोर्ट में है और हिंदूवादी उसे गिराने की मांग कर रहे हैं तो कांग्रेस के मंत्री उनका समर्थन कर रहे हैं, देश के नागरिकों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या कह रहे हैं. यूपी से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि अनिरुद्ध सिंह लव जिहाद और रोहिंग्या घुसपैठियों जैसे जुमलों का इस्तेमाल करके बीजेपी की ज़ुबान बोल रहे हैं, जो ठीक नहीं है, वो ये मामला आला कमान के सामने उठाएंगे. हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कहा कि मंत्रियों को सांप्रदायिक बयान नहीं देने चाहिए, किसी को भी क़ानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद उनकी सरकार ज़रूरी क़दम उठाएगी. शिमला के लोगों की नाराज़गी देखकर, इतनी भारी संख्या में प्रोटेस्टर्स को देखकर ये तो साफ है कि मस्जिद का विवाद सिर्फ ट्रिगर प्वाइंट है. असली दिक्कत ये है कि अचानक बाहर से आकर लोग शिमला में बस गए हैं. जो शिमला महिलाओं के लिए सुरक्षित था, वहां आए दिन छेड़खानी होने लगी हैं. जो शिमला हमेशा शांत रहता था, वहां आए दिन झगड़े और लूटपाट की घटनाएं होने लगी हैं. शिमला में लोग पीढ़ियों से मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते रहे हैं. बड़ी संख्या में बाहर से आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या आकर तहखानों में रहने लगे. उनकी न कोई पहचान है, न उनपर कोई रोक. .दूसरी बात, जो बाहरी मुसलमान शिमला में बसे हैं, उन्हें मस्जिद में पनाह मिलती है, जुमे के दिन मस्जिद में सैकड़ों लोग जुटते हैं, कई बार मारपीट की घटनाएं हुई हैं जो शिमला के लिए बड़ी असामान्य घटना है. सबसे बड़ी बात ये कि शिमला में ढ़ाई फ्लोर से ज्यादा के निर्माण की इजाजत नहीं हैं, फिर चार मंजिला मस्जिद कैसे बन गई? नोट करने वाली बात ये है कि ये अवैध निर्माण कुछ महीनों में नहीं हुआ, इसमें बरसों लगे, इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें रहीं. पर किसी ने एक्शन नहीं लिया. अगर ये मसला किसी बीजेपी के नेता ने उठाया होता तो इसे RSS का रंग दे दिया गया होता. पर ये सवाल कांग्रेस के स्थानीय MLA ने उठाया, जो सुक्खू की सरकार में मंत्री हैं. अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में जो कहा वो चेतावनी है. मुख्यमंत्री ने कानून की बात कही पर उन्हें शिमला के लोगों की संवेदनाओं को समझना होगा. सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद भी शिमला वाले हैं, वो लोगों की भावनाओं को समझते हैं. उन्हें इस समस्य़ा के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
Outsiders in Shimla : CM must take a larger view
Shimla, for the first time, witnessed communal tension, with several thousand protesters, belonging to BJP and various Hindu organizations, demanding demolition of a mosque. The protesters, on Thursday, also demanded identification and removal of all illegal Bangladeshi settlers, particularly Rohingya Muslims, who have entered Himachal Pradesh. The protest took political overtones, when Rural Development Minister Aniruddh Singh joined the protest and later appealed to the Chief Minister in the Assembly that a survey should be conducted for verification of all outsider vendors in Shimla. He alleged that the number of Muslim street vendors in Shimla has already jumped from 190 to 1,900, and that street vending rights should be given only to Himachalis. Local Shimla residents have given a two days’ ultimatum to authorities to demolish the “illegal” mosque. Shimla is, otherwise, a peaceful hill town, but on Thursday, thousands of Hindu protesters came to the streets at the call of Devbhoomi Kshatriya Sangathan. The protesters alleged that Sanjauli Masjid has become a shelter for outsider migrants. They alleged there has been a jump in the number of crimes like theft, snatchings and eve-teasing. They also alleged that earlier hardly two or four people used to stay in Sanjauli Masjid, but now the number has risen to more than 300. They have also alleged that the mosque has now four floors, bypassing municipal building laws. In Shimla, nobody is allowed to construct any building of more than two and a half floors. The Sanjauli Masjid is being constructed since last 14 years and the matter is pending in court. Hindu leaders allege that there is a conspiracy afoot to change the demography of Himachal Pradesh. AIMIM chief Asaduddin Owaisi, taking a dig at Congress party, asked, “why there is so much hatred towards Muslims in ‘muhabbat ki dukaan’? The matter is in court and Hindu outfits are demanding demolition of the mosque. Congress ministers are speaking the lingo of BJP leaders.” Congress MP from Uttar Pradesh Imran Masood objected to the Himachal Congress minister’s remarks and said he would raise the issue before the party high command. Masood said, Sanjauli Masjid has been there since 1947, and the matter of illegal construction is now pending in court. Looking at the anger of local residents in Shimla, one thing is clear: the mosque issue is only a trigger point. The main issue relates to people who have started settling from outside. Shimla town was always regarded as a safe city for women, but incidents of eve-teasing and snatchings have now increased. People have been living in Shimla since generations in an atmosphere of brotherhood. Over the years, Bangladeshis and Rohingya Muslims came and started living in basements of buildings. They have not been properly identified, nor action taken. Had a BJP leader raised this issue, the Congress could have blamed RSS hand behind the protest. The issue has been raised by a local Congress MLA who is a minister in Chief Minister Sukhvinder Singh Sukhu’s government. What minister Aniruddh Singh said in the Assembly should be taken as a warning. The Chief Minister has spoken about upholding rule of law, but he must understand the sentiments of the people of Shimla. Sukhu himself belongs to Shimla and he understands public sentiments. He should take a larger view of this problem.
योगी और अखिलेश के बीच ज़ुबानी जंग क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कह दिया कि माफिया, दंगाई और अपराधियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलता रहेगा, कानून के दायरे में रहकर पहले भी एक्शन हो रहा था, आगे भी होता रहेगा. जवाब में अखिलेश यादव ने कहा कि 2027 में जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी, बुलडोज़र का रूख गोरखपुर की तरफ मोड़ा जाएगा. इसके जवाब में योगी ने कहा कि टीपू फिर सुल्तान बनने का ख्वाब देख रहा है लेकिन मुंगेरी लाल के हसीन सपने पूरे नहीं होंगे. वैसे तो यूपी में सिर्फ दस विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं, लेकिन यूपी में सियासी माहौल जम्मू कश्मीर और हरियाणा से भी ज्यादा गर्म है. योगी और अखिलेश के बीच ज़बरदस्त जुबानी जंग हो रही है. बुधवार को योगी ने कहा कि बुलडोजर चलाने के लिए मजबूत दिल और साफ दिमाग चाहिए. जवाब में अखिलेश ने कहा कि बुलडोजर में दिल-दिमाग नहीं होता, स्टियरिंग होती है. योगी ने कहा कि स्टियरिंग संभालने के लिए भी हिम्मत चाहिए, जो माफिया के सामने नाक रगड़ने वालों में कभी नहीं आ सकती. योगी ने कहा कि यूपी में अब पूरी पारदर्शिता के साथ आरक्षण के नियमों का पालन करते हुए लाखों नौजवानों को नौकरियां दी जा रही हैं, लेकिन 2017 से पहले नौकरियों की लूट होती थी, चाचा-भतीजा लूट का माल बांटते थे. जवाब में फिर अखिलेश ने कहा योगी की कुर्सी खतरे में है, इसीलिए बाबा जी का ब्लडप्रैशर हाई है और कुछ भी बोल रहे हैं. योगी ने कहा कि समाजवादी पार्टी के DNA में ही जातिवाद, तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार है. एक बार फिर जवाब में अखिलेश ने कहा कि योगी DNA का फुल फॉर्म बता दें, इसके बाद DNA की बात करें. बुधवार को दिन भर योगी और अखिलेश के बीच एक दूसरे पर कटाक्ष का खेल चलता रहा. योगी ने लखनऊ और प्रयागराज में नौजवानों को नियुक्ति पत्र बांटे और अखिलेश यादव ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मीटिंग ली. योगी पर हमले की शुरूआत अखिलेश ने की. अखिलेश ने कहा कि बीजेपी के शासन में हर वर्ग परेशान है, यूपी बदहाल है, नौजवानों का भविष्य अंधेरे में है, समाजवादी पार्टी के PDA पर लोगों का भरोसा बढ़ा है, 2027 के विधआनसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया होगा, समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी और तब यूपी के सारे बुलडोजरों का रूख गोरखपुर की तरफ होगा. योगी ने जवाब देने में देर नहीं की. लखनऊ में 1,300 से ज्यादा नौजवानों को नौकरी का नियुक्ति पत्र देने के बाद योगी ने कहा कि यूपी में अब पारदर्शी तरीके से भर्ती हो रही है, सभी जिलों और सभी जातियों के नौजवानों को नौकरी दी जा रही है, आरक्षण के मानकों का पालन हो रहा है, किसी के साथ भेदभाव नहीं हो रहा है. लेकिन अखिलेश ने युवाओं के भविष्य को अंधेरे में डाल दिया था. योगी ने अखिलेश के 2027 में सरकार बनाने के दावे पर तंज़ कसा. योगी ने कहा कि अखिलेश मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैं, टीपू सुल्तान बनना चाहते हैं लेकिन उनका ये सपना कभी पूरा होने वाला नहीं है. योगी ने कहा कि अखिलेश सरकार के समय जब भर्ती निकलती थी तब चाचा और भतीजे में वसूली की होड़ लगती थी. यादव परिवार में वसूली के लिए एरिया बांटे जाते थे. योगी ने यादव परिवार की तुलना आदमखोर भेड़ियों से की. उन्होंने कहा कि जैसा आतंक आजकल बहराइच में भेड़ियों का है, 2017 से पहले उसी तरह का खौफ यादव परिवार का था. योगी ने कहा कि लूट-खसोट करने वाले ऐसे लोगों पर यूपी की जनता अब भरोसा नहीं करेगी. अखिलेश ने कहा कि योगी को लोकसभा चुनाव की हार का सदमा लग गया है, उनकी कुर्सी खतरे में है इसलिए वो कुछ भी बोल रहे हैं, भ्रम फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर उनके राज में भर्तियों में गड़बड़ी हुई तो योगी सरकार ने अब तक एक्शन क्यों नहीं लिया? क्या योगी भी इसमें शामिल थे? अखिलेश ने कहा कि आज भी यूपी में वही अफसर काम कर रहे हैं जो उनकी सरकार में काम कर रहे थे, योगी उनकी सरकार पर आरोप लगाकर परोक्ष रूप से उन अफसरों पर भी आरोप लगा रहे हैं, इसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए. योगी ने कहा कि उनकी सरकार का बुलडोज़र कानून के दायरे में चला, बुलडोज़र चलाने के लिए हिम्मत और दृढ इच्छाशक्ति चाहिए, एक वक्त था जब यूपी में दंगा होता था, माफियाओं का आतंक था, यूपी का विकास रुक गया था क्योंकि दंगाईयों और माफिया के आगे घुटने टेकने वाले लोग बुलडोज़र नहीं चला सकते. अखिलेश ने कहा कि बीजेपी राजनीतिक विरोधियों से बुलडोजर के ज़रिए बदला ले रही है. अगर नक्शे पास नहीं है, तो बुलडोजर चला दिया, योगी बताएं क्या मुख्यमंत्री आवास का नक्शा पास है, बुलडोज़र दिल-दिमाग से नहीं स्टियरिंग से कंट्रोल होता है और जनता कल किसी और के हाथ में बुलडोज़र की स्टियरिंग दे सकती है. फूलपुर में 10 हजार युवाओं को स्मार्ट फोन और टैबलेट, और 5 हजार नौजवानों को नियुक्ति पत्र, और उद्योग शुरू करने वाले युवाओं को 600 करोड़ रुपये के लोन अप्रूवल पत्र देने के बाद योगी ने कहा ये उनके बुलडोजर मॉडल का ही असर है कि अब यूपी में दंगा नहीं होता, अखिलेश और उनकी सरकार माफिया को पालती थी, उनके इशारों पर काम करती थी लेकिन 2017 के बाद से सारे माफिया मिट्टी में मिल गए, अब दंगा करने वाले बुलडोजर से डरे हुए हैं.
वार-पलटवार यहीं खत्म नहीं हुआ. अखिलेश ने ट्विटर पर लिखा कि अगर आपका बुलडोजर मॉडल इतना ही कामयाब है तो अलग पार्टी बनाकर बुलडोजर निशान पर चुनाव लड़ लें, आपका भ्रम भी टूट जाएगा और घमंड भी, वैसे भी आपके जो हालात हैं, उसमें आप बीजेपी में होते हुए भी नहीं के बराबर ही हैं, अलग पार्टी तो आपको आज नहीं तो कल बनानी ही पड़ेगी. योगी और अखिलेश ने जो कहा, उनकी हर बात के पीछे एक कहानी है. जैसे टीपू अखिलेश यादव के घर का नाम है, मुलायम सिंह उन्हें इसी नाम से बुलाते थे और बुलडोजर बाबा योगी आदित्यनाथ का नाम है. यूपी में लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं. जब अखिलेश बुलडोजर गोरखपुर की तरफ मोड़ने की बात कहते हैं तो इनका इशारा योगी के मठ की तरफ होता है और जब योगी माफिया के आगे घुटने टेकने वालों का जिक्र करते हैं, तो उनका निशाना अखिलेश पर होता है. अखिलेश जब कहते हैं कि योगी की कुर्सी खतरे में है तो वो बीजेपी में अंदरुनी लड़ाई की तरफ संकेत करते हैं. योगी जब कहते हैं कि पहले चाचा भतीजा माल लूटते थे तो उनका इशारा अखिलेश और शिवपाल की तरफ होता है. आजकल ये जंग इसीलिए इतनी ज्यादा तेज़ है क्योंकि यूपी में 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. योगी और अखिलेश दोनों इन उपचुनावों से यूपी में अपना वर्चस्व साबित करना चाहते हैं..
Why Yogi and Akhilesh are engaged in a war of words?
As a prequel to the forthcoming 10 crucial assembly byelections in Uttar Pradesh, Chief Minister Yogi Adityanath and Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav are presently engaged in a war of words to build up the tempo for electioneering by both parties. On Wednesday, Yogi distributed job letters to youths in Lucknow and Prayagraj, while Akhilesh Yadav addressed a meeting of his party workers in Lucknow. Firing the first salvo, Akhilesh Yadav alleged that all sections of society in UP are facing problems, while lakhs of unemployed youths are staring at a bleak future. He claimed that BJP would be wiped out in 2027 assembly elections, after which “bulldozers under our party’s rule will be sent to Gorakhpur”. Yogi did not spend much time in responding. He identified four topics: bulldozer, economic situation, PDA (backwards, Dalit and minorities) and Akhilesh’s claim to return to power in 2027. Yogi said, Akhilesh is daydreaming on the lines of ‘Mungeri Lal Ke Haseen Sapney’, and it’s not going to happen. Yogi alleged that during Akhilesh’s rule, youths from backward castes and Dalit communities were not given government jobs, and both ‘Chacha-Bhatija’ were busy in extortion. Yogi went to the extent of comparing Akhilesh Yadav’s clan with the ‘pack of wolves on the rampage in Bahraich’. Akhilesh Yadav responded by saying that Yogi is suffering from depression due to reverses in Lok Sabha elections and ‘he may lose his chair anytime’. On bulldozer issue, Yogi Adityanath said, his government used bulldozers to raze illegal properties by following rules. “One needs strong political will and courage to order bulldozers to raze illegal properties…those who bowed before rioters and mafia gangsters can never order bulldozers to raze ”, Yogi said. Akhilesh Yadav pointed out to recent Supreme Court observations on misuse of bulldozers, and alleged that BJP was taking political revenge against rivals by using bulldozers. “Do not forget, people can give the steering of bulldozers to some other parties tomorrow”, Yadav said. In Prayagraj, while giving away loan approval letters worth Rs 600 crore to youths, Yogi said, “it is because of our bulldozer model that there has not been a single major riot in UP till now.” In response, Akhilesh Yadav wrote on social media, “If your bulldozer model is successful, then why don’t you form a separate party with bulldozer as your model and contest elections? Your delusion and ego will crash. Today, your presence in BJP is almost nil and sooner than later, you’ll have to form a new party.” There is a story behind each of the remarks made by both Yogi and Akhilesh Yadav. When Yogi says ‘Tipu’, it refers to Akhilesh’s pet name given by his father, Mulayam Singh Yadav. When Akhilesh says ‘Bulldozer Baba’, it refers to Yogi Adityanath, because people in UP call their CM by this name. When Akhilesh speaks about sending bulldozers to Gorakhpur, it means, Yogi’s Gorakhnath Math. When Akhilesh says ‘Yogi may lose his chair’, he is referring to reported internal squabbles in UP BJP. And when Yogi says, ‘Chacha-Bhatija’, it refers to Shivpal Singh Yadav and his nephew Akhilesh. The war of words is going to assume strident tones in the coming days, once the schedule for 10 assembly byelections is declared. Both Yogi and Akhilesh are out to prove their political supremacy in Uttar Pradesh.
ममता का रेप-विरोधी बिल : ये कानून लागू कैसे होगा?
बंगाल में ममता बनर्जी ने रेप और हत्या के आरोपियों को फांसी की सज़ा दिलाने वाला कानून विधानसभा में पास करवा दिया. बीजेपी ने इसका समर्थन किया. इस कानून में बलात्कार के मामलों की जांच को 21 दिन के अंदर पूरी करने को अनिवार्य बनाया गया है. अपराजिता एक्ट 2024 नामक इस कानून के तहत बंगाल के हर जिसे में अपराजिता टास्क फोर्स बनाई जाएगी जो रेप और इससे जुड़े मामले की जांच 21 दिन में पूरी करके मुजरिम को सज़ा दिलाएगी. इस टास्क फ़ोर्स की अगुवाई एक DSP रैंक के अफसर के पास होगी. अगर किसी मामले में टास्क फ़ोर्स 21 दिन में जांच पूरी नहीं कर पाती तो DSP को इसकी वजह बतानी होगी और अगर कारण सही हुआ तो टास्क फोर्स को जांच पूरी करने के लिए ज्यादा से ज्यादा 15 दिन का एक्सटेंशन मिलेगा. यानी किसी भी हालत में रेप के मामलों में जांच 36 दिन में पूरी होगी. हालांकि इस बिल में इस बात का प्रावधान नहीं है कि अगर रेप के केस में सबूत मिटाने की कोशिश होती है, पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं तो दोषी पुलिसवालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी? अगर रेप का केस दर्ज करने में पुलिस गड़बड़ी करती है तो क्या कार्रवाई होगी? विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस बिल में सात संशोधनों के सुझाव दिए, जैसे अगर कोई पुलिस अफसर रेप की FIR लिखने से मना करता है, तो उसे कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, मेडिकल जांच या फिर पोस्टमॉर्टम में देरी या लापरवाही करने वाले मेडिकल अफसर के लिए भी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. सबूत नष्ट होने पर जांच अधिकारी को ज़िम्मेदार बनाया जाना चाहिए. अगर पोस्टमॉर्टम करने या मेडिकल जांच करने वाला स्वास्थ्य अधिकारी अपना बयान बदलता है, तो उसके लिए भी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. गवाहों को सरकार से पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए और ऐसे मुक़दमों की सुनवाई 30 दिन में पूरी होने की शर्त भी बिल में जोड़ी जानी चाहिए. सरकार ने शुभेन्दु अधिकारी के सुझाव नहीं माने, संशोधनों को खारिज करके बिल पास करवा दिया. बहरहाल इस बिल में ये प्रवधान है कि अगर रेप के बाद विक्टिम की मौत होती है या वो कोमा में जाती है, तो मुजरिम को फांसी की सज़ा मिलेगी. बलात्कार के अपराधियों को ज़िंदगी भर जेल में रहने की सज़ा मिलेगी और सज़ा होने के बाद उसको परोल भी नहीं मिल सकेगी. इस क़ानून के तहत डॉक्टरों और नर्सेज़ को पूर्ण सुरक्षा देने, महिला डॉक्टर्स की केवल 12 घंटे की नाइट ड्यूटी होने, डॉक्टरों और नर्सों के आने जाने के रास्ते की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं. पूरे रास्ते में cctv कैमरे लगाए जाएंगे. ममता सरकार ने इसके लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है. बिल पर चर्चा के दौरान ममता बनर्जी ने बीजेपी के विधायकों से कहा कि वे राज्यपाल से कहकर जल्दी से जल्दी इस बिल पर दस्तखत करा दें ताकि महिलाओं को इंसाफ़ दिलाया जा सके. ममता बनर्जी ने विधानसभा में लंबा राजनीतिक भाषण दिया, कहा कि महिला सुरक्षा के नाम पर उनका इस्तीफा मांगा जा रहा है लेकिन यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में आए दिन महिलाओं पर ज़ुल्म होते हैं, इनमें से कितने राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफ़े दिए? ममता ने कहा कि अगर इस्तीफ़ा देना ही है तो देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री इस्तीफ़ा दें. बीजेपी ने भी पलटवार किया. कृषि मंत्री शिवराज चौहान ने ममता बनर्जी से पूछा कि क्या वो इस कानून के तहत महिलाओं पर जुल्म करने वाले संदेशखाली के डॉन शाहजहां शेख़ को फांसी की सज़ा दिलाएंगी? अगर ममता शाहजहां शेख़ जैसे अपराधियों को नए क़ानून से सज़ा नहीं दिला सकतीं तो ऐसे क़ानून बनाने का कोई मतलब नहीं है. कोलकाता की डॉक्टर बेटी को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे RG कर हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने ममता बनर्जी के इस बिल पर कहा कि सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि देश में बहुत से क़ानून तो पहले से ही हैं, जरूरत है कानूनों को ठीक से लागू करने की. डॉक्टर्स ने कहा कि डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के डर कर ममता बनर्जी नया बिल लेकर आई हैं. डॉक्टर किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हैं. उन्होंने जो बात कही उस पर गौर करने की जरूरत है. क्योंकि 2012 में रेप करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाया गया. उससे पहले पाक्सो एक्ट है और भी कई कानून हैं. इसलिए ये बात सही है कि अगर कानूनों को ठीक से लागू नहीं किया जाता तो फिर नया कानून बनाने का क्या फायदा? इसलिए सबसे जरूरी तो ये है कि ममता बनर्जी की सरकार सिस्टम के प्रति लोगों का भरोसा पैदा करे. वैसे ममता ने अच्छा कानून बनाया, सख्त कानून बनाया. ये कानून बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को कड़ी सजा दिलाने के रास्ते खोलेगा. पर इसका डर तभी पैदा होगा जब इस कानून के तहत दो-चार अपराधियों को बिना देरी के सजा-ए-मौत मिलेगी. बीजेपी का ये कहना ठीक नहीं है कि ममता ने मजबूरी में ये बिल पेश किया क्योंकि बीजेपी ने भी तो मजबूरी में इस कानून को समर्थन किया. इसी तरह अगर ये बिल पेश करते समय ममता बनर्जी मोदी पर हमला न करतीं तो सारा फोकस महिलाओं की सुरक्षा पर बना रहता. ममता ने मोदी पर अटैक किया तो फिर शिवराज सिंह चौहान ने शाहजहां शेख की याद दिला दी.
Mamata’s anti-rape Bill is good : Implementation is the key
On a day when the Centre’s Ministry of Home Affairs told the Supreme Court that the West Bengal authorities are posing hurdle in deployment of CISF personnel at R.G.Kar Hospital, Chief Minister Mamata Banerjee’s government got the Aparajita Woman and Child Bill passed in the Assembly with the support of BJP. The bill provides for death penalty to those convicted in rape cases where the victim dies or is rendered permanently crippled, imprisonment for rest of life in rape and gang rape cases, life term or death penalty for repeat offenders in rape cases, probe to be completed within 21 days with possible extension of 15 days, creation of 52 special courts, setting up of Aparajita Task Force in districts headed by a DSP, and jail or fine for unauthorized publishing of court proceedings in rape cases. BJP pressed for inclusion of seven amendments providing for stern punishment to police officers who refuse to file rape-related FIR, or to medical officers deliberately causing negligence or delaying post mortem, or to investigating officer destroying vital evidence, but these amendments were rejected. In her reply, Mamata Banerjee gave a political speech demanding resignations of BJP chief ministers in whose states heinous rape-murder crimes have been committed. Union Minister Shivraj Singh Chouhan challenged Mamata to get Shahjahan Sheikh, the prime accused in rapes of women in Sandeshkhali, convicted under the new law. Agitating hospital doctors said, merely amending law will not be sufficient, strict implementation is the key. The doctors said, Mamata Banerjee has brought this new law only after her party became scared after their protests. Doctors of R.G.Kar Hospital and other hospitals in Kolkata are not political party workers and their remarks need to be studied carefully. In 2012, a stern anti-rape law was enacted after the infamous Nirbhaya rape-murder incident in Delhi, POCSO Act was made to give justice to sexually abused children. There are some other similar legislations. The doctors are right when they say that sincere implementation of anti-rape law is the key. Mamata Banerjee’s government must regain the trust of people in the system. No doubt, Mamata has prepared a strong anti-rape law and if implemented honestly, it can open the path for giving stern punishment to rapists and murderers. Criminals will start fearing only when two or four rapists and murderers are given death sentence without delay. It is not right on part of BJP to say that Mamata has introduced this bill because of compulsion. The fact is, BJP itself supported this law out of political compulsion. It would have been better if Mamata had confined her speech to the issue of providing security to women instead of lambasting Prime Minister Narendra Modi. It was only when she attacked Modi that Shivraj Singh Chouhan had to remind her about Shahjahan Sheikh, the dreaded don of Sandeshkhali, where women still live in fear at night.
जाति जनगणना : RSS ने प्रस्ताव क्यों रखा?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार जाति जनगणना का समर्थन किया है. इस हिमायत से RSS ने विरोधी दलों को चौंका दिया. RSS ने जातियों की संख्या गिने जाने के सवाल पर खुलकर अपनी राय जाहिर की. कहा कि संघ जाति जनगणना कराने को जरूरी मानता है. केरल के पालक्काड़ में तीन दिन चली RSS की समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर काफी विचार विमर्श हुआ और तय हुआ कि RSS जाति जनगणना का समर्थन करेगा. RSS के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जो जातियां या वर्ग विकास के क्रम में पिछड़ गए हैं, उनके लिए योजनाएं बनाने से पहले सरकार के पास इस तरह के वर्गों की संख्या की जानकारी होना जरूरी है, इसलिए RSS जाति जनगणना के पक्ष में हैं. हालांकि सुनील आंबेकर ने इसमें एक शर्त भी लगाई. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना हो, लेकिन इस पर सियासत न हो क्योंकि ये मुद्दा सामाजिक बराबरी का है, इसका इस्तेमाल समाज में दूरियां बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. RSS की जिस बैठक में जाति जनगणना पर बात हुई, उसमें बीजेपी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी मौजूद थे लेकिन अब इस बात की संभावना है कि मोदी सरकार जल्दी जातिगत जनगणना के बारे में फैसला करेगी. हालांकि इसका स्वरूप क्या होगा? इसके आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे या नहीं? ये सवाल अभी बने हुए हैं. जाति जनगणना की मांग को सियासी मुद्दा बना रहे राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव जैसे नेता अब क्या करेंगे? RSS के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि संघ का मानना है कि विकास की मुख्यधारा में पीछे रह गए वर्गों के लिए यदि सरकार कुछ योजनाएं बनाना चाहती है तो इसके लिए इन वर्गों की संख्या पता होना चाहिए. इसलिए जाति जनगणना जरूरी है लेकिन इसके आंकड़ों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. ये राजनीति का नहीं, सामाजिक मुद्दा है. इसका सियासी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए लेकिन जाति जनगणना को सियासी मुद्दा बनने से कैसे रोका जाएगा? ये तो सुनील आंबेकर नहीं बताया. ये सवाल इसलिए बनता है क्योंकि जात जनगणना पहले ही राजनीति का मुद्दा बन चुका है. लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने इसे ज़ोर-शोर से उठाया. शुरूआत बिहार से हुई थी जहां तेजस्वी यादव ने बार बार ये इल्जाम लगाया कि जब वो सरकार में थे तो राज्य में जाति जनगणना करवा कर उन्होंने नीतीश कुमार को संख्या के आधार पर आरक्षण में वृद्धि के लिए मजबूर कर दिया लेकिन जब से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए तब से ये मामला लटक गया. आज जैसे ही RSS ने जाति जनगणना के समर्थन की बात कही तो सबसे पहला तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू यादव ने जिस तरह से पिछड़ी जातियों में जागरूकता पैदा की, उसी का नतीजा है कि अब सबको अपना स्टैंड बदलना पड़ रहा है. तेजस्वी ने कहा कि RSS और BJP आरक्षण विरोधी है, ये लोग संविधान बदलना चाहते हैं, इसलिए इनकी बात पर यकीन नहीं है क्योंकि ये लोग कहते कुछ है और करते कुछ और ही हैं. इनके गुप्त एजेंडा का पता लगाना मुश्किल है. अब 10 सितंबर से तेजस्वी यादव बिहार में आभार यात्रा निकालने वाले हैं जिसमें इस मुद्दे को लेकर बीजेपी और जेडीयू को घेरने का उनका प्लान है. आज RSS की राय सामने आने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जाति जनगणना से ही सबका विकास होगा लेकिन बीजेपी समाज के वंचित वर्ग को आरक्षण नहीं देना चाहती. कांग्रेस ने सुनील आंबेकर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया पर कहा कि जाति जनगणना से समाज की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है, ये कहना ही जाति जनगणना की मांग का खुला विरोध है. कांग्रेस अधघ्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने पूछा कि “RSS स्पष्ट रूप से देश को बताए कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है या विरोध में है? देश के संविधान के बजाय मनुस्मृति के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग व ग़रीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है या नहीं?” RSS ने वही स्टैंड लिया है, जो चिराग पासवान की पार्टी का है कि जाति जनगणना हो लेकिन इसके आंकड़े जारी न किए जाएं. आंकड़े सिर्फ सरकार के पास रहें जिससे उन जातियों के लिए योजनाएं बनाने में आसानी हो जो विकास के क्रम में पीछे रह गई हैं या जिन्हें आरक्षण का फायदा अब तक नहीं मिला है. अखिलेश यादव हों, तेजस्वी यादव हों या राहुल गांधी, सारे नेता यही तर्क देते हैं कि जाति जनगणना इसलिए जरूरी है ताकि सभी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगा सके, उसके आधार पर फैसले हो सकें. लेकिन जब वही बात RSS ने कही तो ये बात आरक्षण विरोधी हो गई. हकीकत ये है कि विरोधी दलों के नेताओं की रणनीति बिल्कुल साफ है. वो पहले जाति जनगणना की मांग करेंगे, फिर आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग होगी, फिर “जिसकी जितनी सख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” का नारा लगाएंगे, आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग करेंगे, तमिलनाडु के आरक्षण का हवाला दिया जाएगा. कुल मिलाकर मंसूबा अपनी सियासत चमकाने का है. वोट बैंक का है. इसीलिए आज जब RSS ने कहा कि जाति जनगणना तो हो, लेकिन इस पर सियासत न हो, तो जाति जनगणना की मांग करने वाले सभी विरोधी दलों के नेताओं को आग लग गई. क्योंकि इस तरह का स्टैंड लेकर संघ ने उनकी रणनीति को बेपर्दा कर दिया.
Caste Census : Why did RSS propose?
Rashtriya Swayamsewak Sangh, the ideological mentor of Bharatiya Janata Party, on Monday clearly indicated its support to the caste census, but added a rider saying that the census should not be used as ‘a political tool.’ At the end of the three-day Samanwaya Baithak (coordination meeting) between RSS and its frontline outfits, Sunil Ambekar, prachar pramukh (publicity in-charge) of RSS told a press conference: “For the welfare of communities or castes which are lagging behind, which require special attention, government needs statistics, and it is a well-established practice. It was done in the past and can be done again, but if should be meant only for the welfare of these communities and castes, and it should not be used as a political tool for elections. We want to put this as a line of caution for everyone.” Opposition parties, particularly the Congress, had been demanding caste census, and there are indications that the Centre might soon take a call on caste census issue. But the question remains whether the Centre will put caste census statistics in public domain? While Lalu Prasad’s Rashtriya Janata Dal welcomed the RSS step, it also demanded that caste census and caste-based reservation must be included in the Ninth Schedule of Constitution. RJD leader Tejashwi Yadav is going to take out “Aabhar (thanksgiving) Yatra” in Bihar from September 10, but the objective is to put BJP its ally JD-U in a corner. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav said caste census alone can ensure development of all sections of society. The Congress, however, questioned the RSS spokesperson’s observation that caste census could also pose a danger to social unity. “It means RSS is openly opposing caste census”, the party said. Congress President Mallikarjun Kharge said, “RSS should clearly tell the country whether it is for or against caste census? Is the Sangh Parivar, which supports Manu Smriti in place of our Constitution, really concerned about giving representation to our backward, poor and exploited classes?” RSS has taken the same stand which Chirag Paswan’s LJP(R) has taken. It wants caste census to be undertaken but the figures should not be revealed. It wants the figures to be used only for making welfare plans for those castes, which have been left behind in the march towards progress. Whether it is Akhilesh Yadav, or Tejashwi Yadav, or Rahul Gandhi, all of them insist on caste census in order to know the socio-economic conditions of all castes. But when the RSS said the same thing, it is being dubbed as “anti-reservation”. The strategy of opposition leaders seems to be quite clear. They will first demand caste census, and then demand that the figures be made public. They will then demand proportional representation for castes by taking shelter behind the slogan, “Jiski Jitni Sankhya Bhaari, Uski Utni Hissedari”. They will demand hiking the reservation limit, citing the example of Tamil Nadu. The sole objective is to play vote-bank politics. By extending support to caste census, the RSS has exposed the real strategy of the opposition parties.